দুমড়ে মুচড়ে দেওয়া টুথপেষ্ট এর টিউব, ফুটিফাটা মলিন কলতলায় শ্যাওলার ক্রেপ ব্যান্ডেজ, জোলো চায়ে সাবধানে ঢেলে দেওয়া চিনি, ভেসে ওঠা দু একটা ডেঁয়ো পিঁপড়ে, খাস্তা বিস্কুটের কৌটোর পাশে লক্ষনরেখার মানচিত্র, এর ভিতরে সুর বলে কিছু ছিল না,.. সুরের জায়গাই ছিল না, নিজেদেরই বা ছিল কি? । ক্লান্ত দুপুরে রুগ্ন একটা ঘুঘু ডাকে, চোখমুখ বসে যাওয়া ছেলেটার শেষ সিগারেট জ্বলতে জ্বলতে নিভে যাওয়ার উপক্রম হয়., ছেলেটা দুর্গাপুজো ভালোবাসে খুব.. কোনো কারণ ছাড়াই বাসে.. ছোট্টবেলায় ঠাকুরের চোখ পিটপিট দেখতে পেয়েছিল নাকি, চেঁচিয়ে বাড়ি মাথায় করেছিল ,কেউ বিশ্বাস করেনি অবশ্য ।.. ধুনো ধোঁয়ার গন্ধমাখা ভরাট বাতাস ওর ভালো লাগে বড্ড, মফস্বলের আকাশে মেঘের নকশাগুলোও.।. একটা প্লে লিস্ট বানানো ছিল ওর দিদির, সেকেন্ড হ্যান্ড নোকিয়া তে.. পুজো এলে খুব শুনত, ছুটির দুপুরে.. অঙ্কে ফেইল করার ভয়, পরপর নেমে আসা বেল্ট এর ভয় .. নিমেষে ভুলে যাওয়া যেত ওগুলো শুনলে,। দিদি সুইসাইড করল গত আষাঢ়ে.. তারপর থেকে আর শোনা হয় না গান। শুধু পুজো এলে দূরে বক্স বাজে
हम तुम कितने पास है
कितने दूर है चाँद सितारे
सच पूछो तो मन को
झूठे लगते है ये सारे
মৃদু হাওয়া বয়, দু চারটে মেঘ পথ হারিয়ে একে অন্যের ঘাড়ে চেপে বসে যেন একটা মুখ আঁকে । কপালের কালশিটের ব্যথা চিনচিন করে ওঠে। সূয্যি ডোবার আগে মেঘেরা মুখ আঁকা শেষ করে উঠতে পারেনা। তবু ছেলেটা মুখটা চিনে ফেলে ঠিক...
(যখন ক্লাস এইট নাইনে পড়ি ,তখন এক শরৎকালের কোন এক বেনামী ম্যাগাজিন এর জন্য এই লেখাটা লিখেছিলাম । ম্যাগাজিন টা বন্ধ হয়ে গেছে ,সবাই নাকি খুব ব্যস্ত থাকে)
पवित्र श्रीमद् देवी महापुराण में सृष्टि रचना का प्रमाण
‘‘ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के माता-पिता’’
(दुर्गा और ब्रह्म के योग से ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म)
पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण तीसरा स्कन्द अध्याय 1-3 (गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार तथा चिमन लाल गोस्वामी जी, पृष्ठ नं. 114 से)
पृष्ठ नं. 114 से 118 तक विवरण है कि कितने ही आचार्य भवानी को सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करने वाली बताते हैं। वह प्रकृति कहलाती है तथा ब्रह्म के साथ अभेद सम्बन्ध है। {जैसे पत्नी को अर्धांगनी भी कहते हैं अर्थात् दुर्गा ब्रह्म (काल) की पत्नी है।} एक ब्रह्माण्ड की सृष्टि रचना के विषय में राजा श्री परीक्षित के पूछने पर श्री व्यास जी ने बताया कि मैंने श्री नारद जी से पूछा था कि हे देवर्षे ! इस ब्रह्माण्ड की रचना कैसे हुई? मेरे इस प्रश्न के उत्तर में ��्री नारद जी ने कहा कि मैंने अपने पिता श्री ब्रह्मा जी से पूछा था कि हे पिता श्री इस ब्रह्माण्ड की रचना आपने की या श्री विष्णु जी इसके रचयिता हैं या शिव जी ने रचा है? सच-सच बताने की कृपा करें। तब मेरे पूज्य पिता श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि बेटा नारद, मैंने अपने आपको कमल के फूल पर बैठा पाया था, मुझे ज्ञान नहीं कि इस अगाध जल में मैं कहाँ से उत्पन्न हो गया। एक हजार वर्ष तक पृथ्वी का अन्वेषण करता रहा, कहीं जल का ओर-छोर नहीं पाया। फिर आकाशवाणी हुई कि तप करो। एक हजार वर्ष तक तप किया। फिर सृष्टि करने की आकाशवाणी हुई। इतने में मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस आए, उनके भय से मैं कमल का डण्ठल पकड़ कर नीचे उतरा। वहाँ भगवान विष्णु जी शेष शैय्या पर अचेत पड़े थे। उनमें से एक स्त्राी (प्रेतवत प्रविष्ट दुर्गा) निकली। वह आकाश में आभूषण पहने दिखाई देने लगी। तब भगवान विष्णु होश में आए। अब मैं तथा विष्णु जी दो थे। इतने में भगवान शंकर भी आ गए। देवी ने हमें विमान में बैठाया तथा ब्रह्म लोक में ले गई। वहाँ एक ब्रह्मा, एक विष्णु तथा एक शिव और देखा फिर एक देवी देखी,उसे देख कर विष्णु जी ने विवेक पूर्वक निम्न वर्णन किया (ब्रह्म काल ने भगवान विष्णु को चेतना प्रदान कर दी, उसको अपने बाल्यकाल की याद आई तब बचपन की कहानी सुनाई)। पृष्ठ नं. 119-120 पर भगवान विष्णु जी ने श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी से कहा कि यह हम तीनों की माता है, यही जगत् जननी प्रकृति देवी है। मैंने इस देवी को तब देखा था जब मैं छोटा सा बालक था, यह मुझे पालने में झुला रही थी।
तीसरा स्कंद पृष्ठ नं. 123 पर श्री विष्णु जी ने श्री दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा - तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा आविर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है अर्थात् हम तीनों देव नाशवान हैं, केवल तुम ही नित्य (अविनाशी) हो, जगत जननी हो, प्रकृति देवी हो।
भगवान शंकर बोले - देवी यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट (उत्पन्न) हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे ही बालक हुए। फिर मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम्हीं हो। विचार करें:- उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी नाशवान हैं। मृत्युंजय (अजर-अमर) व सर्वेश्वर नहीं हैं तथा दुर्गा (प्रकृति) के पुत्र हैं तथा ब्रह्म (काल-सदाशिव) इनका पिता है।
तीसरा स्कंद पृष्ठ नं. 125 पर ब्रह्मा जी के पूछने पर कि हे माता! वेदों में जो ब्रह्म कहा है वह आप ही हैं या कोई अन्य प्रभु है ? इसके उत्तर में यहाँ तो दुर्गा कह रही है कि मैं तथा ब्रह्म एक ही हैं। फिर इसी स्कंद अ. 6 के पृष्ठ नं. 129 पर कहा है कि अब मेरा कार्य सिद्ध करने के लिए विमान पर बैठ कर तुम लोग शीघ्र पधारो (जाओ)। कोई कठिन कार्य उपस्थित होने पर जब तुम मुझे याद करोगे, तब मैं सामने आ जाऊँगी। देवताओं मेरा (दुर्गा का) तथा ब्रह्म का ध्यान तुम्हें सदा करते रहना चाहिए। हम दोनों का स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे कार्य सिद्ध होने में तनिक भी संदेह नहीं है।
उपरोक्त व्याख्या से स्वसिद्ध है कि दुर्गा (प्रकृति) तथा ब्रह्म (काल) ही तीनों देवताओं के माता-पिता हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी नाशवान हैं व पूर्ण शक्ति युक्त नहीं हैं।
तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी) की शादी दुर्गा (प्रकृति देवी) ने की। पृष्ठ नं. 128-129 पर, तीसरे स्कंद में।
अनुवाद: (च) और (एव) भी (ये) जो (सात्विकाः) सत्वगुण विष्णु जी से स्थिति (भावाः) भाव हैं और (ये) जो (राजसाः) रजोगुण ब्रह्मा जी से उत्पत्ति (च) तथा (तामसाः) तमोगुण शिव से संहार हैं (तान्) उन सबको तू (मतः,एव) मेरे द्वारा सुनियोजित नियमानुसार ही होने वाले हैं (इति) ऐसा (विद्धि) जान (तु) परन्तु वास्तवमें (तेषु) उनमें (अहम्) मैं और (ते) वे (मयि) मुझमें (न) नहीं हैं।
(काल ब्रह्म व दुर्गा से विष्णु, ब्रह्मा व शिव की उत्पत्ति)
इसी का प्रमाण पवित्र श्री शिव पुराण गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, इसके अध्याय 6 रूद्र संहिता, पृष्ठ नं. 100 पर कहा है कि जो मूर्ति रहित परब्रह्म है, उसी की मूर्ति भगवान सदाशिव है। इनके शरीर से एक शक्ति निकली, वह शक्ति अम्बिका, प्रकृति (दुर्गा), त्रिदेव जननी (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी को उत्पन्न करने वाली माता) कहलाई। जिसकी आठ भुजाऐं हैं। वे जो सदाशिव हैं, उन्हें शिव, शंभू और महेश्वर भी कहते हैं। (पृष्ठ नं. 101 पर) वे अपने सारे अंगों में भस्म रमाये रहते हैं। उन काल रूपी ब्रह्म ने एक शिवलोक नामक क्षेत्र का निर्माण किया। फिर दोनों ने पति-पत्नी का व्यवहार किया जिससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम विष्णु रखा (शिव पुराण पृष्ठ नं102)। फिर रूद्र संहिता अध्याय नं. 7 पृष्ठ नं. 103 पर ब्रह्मा जी ने कहा कि मेरी उत्पत्ति भी भगवान सदाशिव (ब्रह्म-काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) के संयोग से अर्थात् पति-पत्नी के व्यवहार से ही हुई। फिर मुझे बेहोश कर दिया।
फिर रूद्र संहिता अध्याय नं. 9 पृष्ठ नं. 110 पर कहा है कि इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु तथा रूद्र इन तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (काल-ब्रह्म) गुणातीत माने गए हैं।
यहाँ पर चार सिद्ध हुए अर्थात् सदाशिव (काल-ब्रह्म) व प्रकृति (दुर्गा) से ही ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव उत्पन्न हुए हैं। तीनों भगवानों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की माता जी श्री दुर्गा जी तथा पिता जी श्री ज्योति निरंजन (ब्रह्म) है। यही तीनों प्रभु रजगुण-ब्रह्मा जी, सतगुण-विष्णु जी, तमगुण-शिव जी हैं।
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बहुत तेज़ हवा चल रही है। कई दिनों बाद मेरे चेहरे पर मुझे ठंड महसूस हो रही है। पिछले कुछ दिनों से बहुत गर्मी थी। शरीर एकदम झुलस चुका था गर्मी के मारे। न जाने कितने बोतल पानी के गटकने के बाद भी संतोष नहीं होता था। बारिश होना गर्मी में जन्नत के समान है। मगर बारिश भी नहीं हो रही। बस हवा है। ऐसी गर्मी में सफर करना मुश्किल है। मगर ज़िंदगी सर्दी गर्मी के लिए कहाँ रुकती। एग्जाम्स तो और नहीं रुकते। अब सोचता हूँ बेकार इतने फॉर्म्स भर दिए। ख़ैर।
रात को सर दर्द करता रहता है। शायद अधिक सोचने के कारण। बीमार रहना मुझे एकदम पसंद नहीं। मगर बीमारी टालना अपने हाथ में नहीं। कुछ भी अपने हाथ में नहीं। जीवन ऐसा ही है। कभी कभी विज्ञान से भरोसा उठ��े लगता है और उन बातों पर यकीन होने लगता है जिसे मैं हंसकर टाल दिया करता था। लोग कहते है व्रत करने से भगवान हम सबका ख्याल रखते है। मगर माँ को भूखे देखना एकदम अच्छा नहीं लगता। मेरे लिए तो व्रत करने के भी कोई फायदे नहीं।
छत पर हवा सुंदर है। आसमान में तारे बहुत कम है। न जाने कहाँ छिप गए है सब। सिर घुमाने पर चाँद दिखा। रात बहुत शांत होती है। काश दिन भी ऐसा होता। दिन बहुत शोर भरा होता है। शोर मुझे नहीं पसंद। शांति मेरी सबसे प्रिय चीज़ है। और रात में शांति है। रात ने कभी मुझे नहीं रोका सच होने से। सच—जैसा मैं हूँ। दिन मुझे नकाब में रखता है। हँसना सीखना पड़ता है दिन में जीने के लिए। और कुछ सीखने में बहुत मेहनत है। जब खुद को बदलने की बात हो तब मैं आलसी हूँ। बचपन में रात से डर लगता था। क्योंकि दिन में कोई फ़िक्र नहीं थी नक़ाब लगा कर घूमने की। मगर अब दिन और रात के मायने बदल चुके है।
एक दिन जीवन सही होगा मगर सही करने में जीवन लगेगा। न जाने ये कितना सही होगा। ज़िंदगी लगाना ज़िंदगी के लिए। ख़ैर सब लगाते है मैं कोई पहला नहीं। जीवन को जीने के बहुत तरीके हो सकते थे मगर हम इंसानों ने एक अजीब सा तरीका चुना है। और बदलाव लाना मेरे बस की बात नहीं।।।
अन्य संतों द्वारा प्रकृति के निर्माण की एक मूल कहानी
प्रकृति की रचना के बारे में अन्य संतों द्वारा दिया गया ज्ञान क्या है? कृपया संतों के विचार बिन्दुओं को नीचे पढ़ें
प्रकृति की रचना के संबंध में राधास्वामी पंथ और धन-धन सतगुरु के संतों का
Holy book "Jeevan Charitra Param Sant Baba Jaimal Singh JiMaharaj", Page no. 102-103, "Srishti ki Rachna (Creation of Nature)", Sawan Kripal Publication, Delhi):
("Pehle SatPurush nirakaar tha, fir izhaar (aakaar) mein aya to ooparke teen nirmal mandal (Satlok, Alakhlok, Agamlok) ban gaya tatha prakashtatha mandalon ka naad (dhuni) ban gaya.")
"आदि में सतपुरुष निराकार थे, फिर प्रकट हुए (रूप में प्रकट हुए) तो ऊपर तीन शुद्ध क्षेत्र (सतलोक,अलखलोक,अगमलोक) हो गए और प्रकाश और प्रदेश ध्वनि हो गए। "
Holy book "Saarvachan (Nasar)", Publisher - RadhaswamiSatsang Sabha, Dyalbaag, Agra, "Srishti Ki Rachna (Creation of Nature)", Page no. 8:-
aur usse sab rachna huyi, pehle Satlok aur fir Satpurush ki kala se teen lok
aur sab vistaar huya.")
"शुरुआत में, अंधेरा था। पुरुष मौन साधना में था। उस समय, कोई रचना नहीं थी। फिर जब उसने चाहा तो शब्द प्रकट हुआ और उससे सब कुछ बनाया गया। सबसे पहले सतलोक और फिर
सतपुरुष के कौशल से तीन लोक (स्थान) बाकी सब विकास हुआ। "
यह ज्ञान ऐसा है जैसे एक युवक नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गया हो। मालिक ने पूछा "महाभारत पढ़ा है क्या? "
युवक ने कहा, "यह मेरी फिंगर टिप्स पर है"। मालिक ने पूछा पांच पाण्डव के नाम बताओ " युवक ने जवाब दिया," एक भीम था, एक उसका बड़ा भाई था, एक छोटा था
वो, एक और था और एक का नाम, मैं भूल गया हूँ। "ऊपर वर्णित प्रकृति की रचना का ज्ञान इस प्रकार है।
सतपुरुष और सतलोक की महिमा बताने वाले और पांच नाम देने वाले संतों के ग्रंथों से कुछ निष्कर्ष
Niranjan - Raranka - SohM - Satyanaam) and who give three naams(Akaal Murti - SatPurush - Shabd Swaroopi Ram): -In Santmat Prakash, Part 3, on page 76, it is written, "Sachkhand
या सतनाम चौथा लोक (स्थान) है। "यहाँ 'सतनाम' को 'स्थान' कहा जाता है। फिर पेज नं. पर 79 इस पवित्र ग्रंथ में लिखा है कि "एक राम है
'दशरत पुत्र', दूसरा राम 'मन (मन)', तीसरा राम 'ब्रह्म', चौथा राम
is 'Satnaam', and this is the real Ram."
फिर पवित्र ग्रंथ "संतमत प्रकाश" भाग 1 में पृष्ठ 17 पर लिखा है, "सतलोक वही सतनाम है। " पवित्र पुस्तक में
"सार वचन नसर यानी वर्तिक", पेज नं. पर 3, लिखा है कि "अब किसी को यह विचार करना चाहिए कि राधास्वामी सबसे ऊंचा स्थान है, जो
संतों ने सतलोक और सचखंड और सारशब्द और सतशब्द और सतनाम और सतपुरुष के रूप में वर्णन किया है। ऊपर लिखा हुआ वर्णन है
आगरा से प्रकाशित पवित्र पुस्तक "सार वचन (नासर) में भी उल्लेख किया गया है, पेज नं. पर 4।
Holy book 'Sachkhand Ki Sadak', page no. 226; "The country ofsaints is Sachkhand or Satlok, it is also known as Satnaam - Satshabd -Saarshabd."
महत्वपूर्ण :- ऊपर की व्याख्या ऐसे है जैसे किसी ने जिंदगी में न शहर देखा हो, न कार देखा हो; न पेट्रोल देखा हो,
ड्राइवर किसे कहते है ड्राइवर का पता नहीं और वो दूसरे दोस्तों से कहता है कि मैं शहर जाता हूँ, और कार में बैठ कर मजा लेता हूँ।
और अगर दोस्त पूछ लें कि कार कैसी लगती है, पेट्रोल क्या होता है, ड्राइवर क्या होता है, और शहर कैसा होता है? वो गुरुजी जवाब देते हैं
शहर कहो या कार एक ही बात है शहर भी कार पेट्रोल भी कार ड्राइवर भी कार और गली
कार को भी बुला लिया। आइये विचार करें:- सतपुरुष ही पूर्ण/सर्वोच्च परमात्मा है;
सतनाम उन दो मंत्रों का नाम/मंत्र है जिसमें एक 'ॐ' और दूसरा 'तट' है जिसे कोड किया गया है। और इसके बाद है सारनाम,
जो भक्त को पूर्ण गुरु द्वारा दिया जाता है। ये सतनाम
और सारनाम दोनों पाठ के मंत्र हैं। सतलोक वह स्थान है जहाँ सतपुरुष रहते हैं। अब पवित्र आत्माएं खुद तय कर लें कि सच क्या है और झूठ क्या है।
आध्यात्मिक जानकारी प्राप्त करने के लिए संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर रो���ाना शाम 7:30-8:30 बजे से संत रामपाल जी महाराज के मंगल आध्यात्मिक प्रवचन अवश्य सुनें। संत रामपाल जी महाराज ही इस दुनिया में एकमात्र पूर्ण गुरु है। आप सभी से विनम्र निवेदन है कि बिना एक सेकंड बर्बाद किए संत रामपाल जी महाराज से निःशुल्क नाम दीक्षा लें, और अपने मानव जीवन को सफल बनाएं।
अस्ल मे हम अकेले रहते हैं लेकिन हम सपना देखते हैं कि कोई हमारे साथ है जो हमें समझता है और हमारी परवाह करता है लेकिन ये सिर्फ हमारे सपने हैं जो कभी सच नहीं हुए और कभी सच नहीं होंगे!