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#ये सच है
mera-mann-kehne-laga · 8 months
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Every time the October sun hits your coffee irises 
I realise why I've become so addicted to caffeine.
Those eyes keep me up all night 
just like a strong cup of my nescafé.
I think about your smile on my cheek.
I know that it's easier to kiss you in my head, because I worry that you might realise 
that I'm more of a paper person, 
that I am still learning how to build, 
that I'm probably not good enough.
The point of this poem is simple, 
it's a lot of things that I should do
like touching and holding and kissing,
a lot of things that I should do with you
// हम तुम कितने पास‌ हैं, कितने दूर है चांद सितारे,
सच पूछो तो मन को झूठे लगते हैं ये सारे //
because who cares how far or up close the moon or the sun is, 
you're here, next to me, so real that 
I cannot stop myself from putting my head on your shoulder.
The point of this poem is simple,
I want to touch you so much that 
my arms don't ever get to know 
how winter will leave me cold and hungry without you,
I want to touch you and I want you to touch me back,
I don't want to forget you
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শরৎ
দুমড়ে মুচড়ে দেওয়া টুথপেষ্ট এর টিউব, ফুটিফাটা মলিন কলতলায় শ্যাওলার ক্রেপ ব্যান্ডেজ, জোলো চায়ে সাবধানে ঢেলে দেওয়া চিনি, ভেসে ওঠা দু একটা ডেঁয়ো পিঁপড়ে, খাস্তা বিস্কুটের কৌটোর পাশে লক্ষনরেখার মানচিত্র, এর ভিতরে সুর বলে কিছু ছিল না,.. সুরের জায়গাই ছিল না, নিজেদেরই বা ছিল কি? । ক্লান্ত দুপুরে রুগ্ন একটা ঘুঘু ডাকে, চোখমুখ বসে যাওয়া ছেলেটার শেষ সিগারেট জ্বলতে জ্বলতে নিভে যাওয়ার উপক্রম হয়., ছেলেটা দুর্গাপুজো ভালোবাসে খুব.. কোনো কারণ ছাড়াই বাসে.. ছোট্টবেলায় ঠাকুরের চোখ পিটপিট দেখতে পেয়েছিল নাকি, চেঁচিয়ে বাড়ি মাথায় করেছিল ,কেউ বিশ্বাস করেনি অবশ্য ।.. ধুনো ধোঁয়ার গন্ধমাখা ভরাট বাতাস ওর ভালো লাগে বড্ড, মফস্বলের আকাশে মেঘের নকশাগুলোও.।. একটা প্লে লিস্ট বানানো ছিল ওর দিদির, সেকেন্ড হ্যান্ড নোকিয়া তে.. পুজো এলে খুব শুনত, ছুটির দুপুরে.. অঙ্কে ফেইল করার ভয়, পরপর নেমে আসা বেল্ট এর ভয় .. নিমেষে ভুলে যাওয়া যেত ওগুলো শুনলে,। দিদি সুইসাইড করল গত আষাঢ়ে.. তারপর থেকে আর শোনা হয় না গান। শুধু পুজো এলে দূরে বক্স বাজে
हम तुम कितने पास है
कितने दूर है चाँद सितारे
सच पूछो तो मन को
झूठे लगते है ये सारे
মৃদু হাওয়া বয়, দু চারটে মেঘ পথ হারিয়ে একে অন্যের ঘাড়ে চেপে বসে যেন একটা মুখ আঁকে । কপালের কালশিটের ব্যথা চিনচিন করে ওঠে। সূয্যি ডোবার আগে মেঘেরা মুখ আঁকা শেষ করে উঠতে পারেনা। তবু ছেলেটা মুখটা চিনে ফেলে ঠিক...
(যখন ক্লাস এইট নাইনে পড়ি ,তখন এক শরৎকালের কোন এক বেনামী ম্যাগাজিন এর জন্য এই লেখাটা লিখেছিলাম । ম্যাগাজিন টা বন্ধ হয়ে গেছে ,সবাই নাকি খুব ব্যস্ত থাকে)
@intellectual6666 করে দিলাম পোস্ট একখানা 🙂
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naveensarohasblog · 1 year
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#गरिमा_गीता_की_Part_114
पवित्र श्रीमद् देवी महापुराण में सृष्टि रचना का प्रमाण
‘‘ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के माता-पिता’’
(दुर्गा और ब्रह्म के योग से ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म)
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पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण तीसरा स्कन्द अध्याय 1-3 (गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार तथा चिमन लाल गोस्वामी जी, पृष्ठ नं. 114 से)
पृष्ठ नं. 114 से 118 तक विवरण है कि कितने ही आचार्य भवानी को सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करने वाली बताते हैं। वह प्रकृति कहलाती है तथा ब्रह्म के साथ अभेद सम्बन्ध है। {जैसे पत्नी को अर्धांगनी भी कहते हैं अर्थात् दुर्गा ब्रह्म (काल) की पत्नी है।} एक ब्रह्माण्ड की सृष्टि रचना के विषय में राजा श्री परीक्षित के पूछने पर श्री व्यास जी ने बताया कि मैंने श्री नारद जी से पूछा था कि हे देवर्षे ! इस ब्रह्माण्ड की रचना कैसे हुई? मेरे इस प्रश्न के उत्तर में ��्री नारद जी ने कहा कि मैंने अपने पिता श्री ब्रह्मा जी से पूछा था कि हे पिता श्री इस ब्रह्माण्ड की रचना आपने की या श्री विष्णु जी इसके रचयिता हैं या शिव जी ने रचा है? सच-सच बताने की कृपा करें। तब मेरे पूज्य पिता श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि बेटा नारद, मैंने अपने आपको कमल के फूल पर बैठा पाया था, मुझे ज्ञान नहीं कि इस अगाध जल में मैं कहाँ से उत्पन्न हो गया। एक हजार वर्ष तक पृथ्वी का अन्वेषण करता रहा, कहीं जल का ओर-छोर नहीं पाया। फिर आकाशवाणी हुई कि तप करो। एक हजार वर्ष तक तप किया। फिर सृष्टि करने की आकाशवाणी हुई। इतने में मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस आए, उनके भय से मैं कमल का डण्ठल पकड़ कर नीचे उतरा। वहाँ भगवान विष्णु जी शेष शैय्या पर अचेत पड़े थे। उनमें से एक स्त्राी (प्रेतवत प्रविष्ट दुर्गा) निकली। वह आकाश में आभूषण पहने दिखाई देने लगी। तब भगवान विष्णु होश में आए। अब मैं तथा विष्णु जी दो थे। इतने में भगवान शंकर भी आ गए। देवी ने हमें विमान में बैठाया तथा ब्रह्म लोक में ले गई। वहाँ एक ब्रह्मा, एक विष्णु तथा एक शिव और देखा फिर एक देवी देखी,उसे देख कर विष्णु जी ने विवेक पूर्वक निम्न वर्णन किया (ब्रह्म काल ने भगवान विष्णु को चेतना प्रदान कर दी, उसको अपने बाल्यकाल की याद आई तब बचपन की कहानी सुनाई)। पृष्ठ नं. 119-120 पर भगवान विष्णु जी ने श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी से कहा कि यह हम तीनों की माता है, यही जगत् जननी प्रकृति देवी है। मैंने इस देवी को तब देखा था जब मैं छोटा सा बालक था, यह मुझे पालने में झुला रही थी।
तीसरा स्कंद पृष्ठ नं. 123 पर श्री विष्णु जी ने श्री दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा - तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा आविर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है अर्थात् हम तीनों देव नाशवान हैं, केवल तुम ही नित्य (अविनाशी) हो, जगत जननी हो, प्रकृति देवी हो।
भगवान शंकर बोले - देवी यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट (उत्पन्न) हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे ही बालक हुए। फिर मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम्हीं हो। विचार करें:- उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी नाशवान हैं। मृत्युंजय (अजर-अमर) व सर्वेश्वर नहीं हैं तथा दुर्गा (प्रकृति) के पुत्र हैं तथा ब्रह्म (काल-सदाशिव) इनका पिता है।
तीसरा स्कंद पृष्ठ नं. 125 पर ब्रह्मा जी के पूछने पर कि हे माता! वेदों में जो ब्रह्म कहा है वह आप ही हैं या कोई अन्य प्रभु है ? इसके उत्तर में यहाँ तो दुर्गा कह रही है कि मैं तथा ब्रह्म एक ही हैं। फिर इसी स्कंद अ. 6 के पृष्ठ नं. 129 पर कहा है कि अब मेरा कार्य सिद्ध करने के लिए विमान पर बैठ कर तुम लोग शीघ्र पधारो (जाओ)। कोई कठिन कार्य उपस्थित होने पर जब तुम मुझे याद करोगे, तब मैं सामने आ जाऊँगी। देवताओं मेरा (दुर्गा का) तथा ब्रह्म का ध्यान तुम्हें सदा करते रहना चाहिए। हम दोनों का स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे कार्य सिद्ध होने में तनिक भी संदेह नहीं है।
उपरोक्त व्याख्या से स्वसिद्ध है कि दुर्गा (प्रकृति) तथा ब्रह्म (काल) ही तीनों देवताओं के माता-पिता हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी नाशवान हैं व पूर्ण शक्ति युक्त नहीं हैं।
तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी) की शादी दुर्गा (प्रकृति देवी) ने की। पृष्ठ नं. 128-129 पर, तीसरे स्कंद में।
गीता अध्याय नं. 7 का श्लोक नं. 12
ये, च, एव, सात्विकाः, भावाः, राजसाः, तामसाः, च, ये,
मतः, एव, इति, तान्, विद्धि, न, तु, अहम्, तेषु, ते, मयि।।
अनुवाद: (च) और (एव) भी (ये) जो (सात्विकाः) सत्वगुण विष्णु जी से स्थिति (भावाः) भाव हैं और (ये) जो (राजसाः) रजोगुण ब्रह्मा जी से उत्पत्ति (च) तथा (तामसाः) तमोगुण शिव से संहार हैं (तान्) उन सबको तू (मतः,एव) मेरे द्वारा सुनियोजित नियमानुसार ही होने वाले हैं (इति) ऐसा (विद्धि) जान (तु) परन्तु वास्तवमें (तेषु) उनमें (अहम्) मैं और (ते) वे (मयि) मुझमें (न) नहीं हैं।
(काल ब्रह्म व दुर्गा से विष्णु, ब्रह्मा व शिव की उत्पत्ति)
इसी का प्रमाण पवित्र श्री शिव पुराण गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, इसके अध्याय 6 रूद्र संहिता, पृष्ठ नं. 100 पर कहा है कि जो मूर्ति रहित परब्रह्म है, उसी की मूर्ति भगवान सदाशिव है। इनके शरीर से एक शक्ति निकली, वह शक्ति अम्बिका, प्रकृति (दुर्गा), त्रिदेव जननी (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी को उत्पन्न करने वाली माता) कहलाई। जिसकी आठ भुजाऐं हैं। वे जो सदाशिव हैं, उन्हें शिव, शंभू और महेश्वर भी कहते हैं। (पृष्ठ नं. 101 पर) वे अपने सारे अंगों में भस्म रमाये रहते हैं। उन काल रूपी ब्रह्म ने एक शिवलोक नामक क्षेत्र का निर्माण किया। फिर दोनों ने पति-पत्नी का व्यवहार किया जिससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम विष्णु रखा (शिव पुराण पृष्ठ नं102)। फिर रूद्र संहिता अध्याय नं. 7 पृष्ठ नं. 103 पर ब्रह्मा जी ने कहा कि मेरी उत्पत्ति भी भगवान सदाशिव (ब्रह्म-काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) के संयोग से अर्थात् पति-पत्नी के व्यवहार से ही हुई। फिर मुझे बेहोश कर दिया।
फिर रूद्र संहिता अध्याय नं. 9 पृष्ठ नं. 110 पर कहा है कि इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु तथा रूद्र इन तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (काल-ब्रह्म) गुणातीत माने गए हैं।
यहाँ पर चार सिद्ध हुए अर्थात् सदाशिव (काल-ब्रह्म) व प्रकृति (दुर्गा) से ही ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव उत्पन्न हुए हैं। तीनों भगवानों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की माता जी श्री दुर्गा जी तथा पिता जी श्री ज्योति निरंजन (ब्रह्म) है। यही तीनों प्रभु रजगुण-ब्रह्मा जी, सतगुण-विष्णु जी, तमगुण-शिव जी हैं।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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raviqw1290 · 2 months
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क्या ये सच है कि,प्रेम समर्पण के बिन अपूर्ण होता है!
ज़ब कोई मानिनी स्वेच्छा से किसीको वरती है, तब पूर्ण सहमति से अपना सर्वस्व अर्पण करती है !
जब प्रेमसिक्त आँखें हृदय भाव का दर्पण दिखाती है, तो सामने प्रियतम की छवि अनायास ही आती है !
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adhoori-kahani · 1 year
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मैं नहीं हारा,
हर सांस है गवाह l
मैं हू चला,
रैत है गवाह l
मैने है लिखा,
कोरा कागज़ है गवाह l
अपने डर की आँखों में है झाँका ,
शीशा है गवाह l
मैं था खुश कभी,
यादें हैं गवाह l
क्या ये सब सच है?
या सब कर रहे हैं गुमराह?
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rishitsblog · 1 year
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सच कहूँ तो किसी मोहब्बत से कम नहीं है ये हिमाचल भी किसी जन्नत से कम नहीं है🪬
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scribblesbyavi · 9 months
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Baaton se Sukoon. 16.
बातों से सुकून ।
में क़िस्मत पर यक़ीन नहीं करती ।
पर क्यों?
मैंने कभी इतना सोचा नहीं इस बाड़ें में
लेकिन अगर तुम जानना चाहते हो तो,
थोड़ी उमर क्या हो गई घरवालों ने शादी करा दी
और यहाँ भेज दिया मेरे हाल पर
सैम जब छोटा था तभी मेरा पति हम दोनों को छोड़कर भाग गया
इसलिए अब जो है यही है और इसी में हमने खुश रहना सिख लिया
ये क़िस्मत बिस्मत बड़े लोगों की बातें हैं ।
मंदिरा, क्या तुमने कभी सोचा है की हम कैसे यूँ मिल गये ?
शायद, शायद खुदा सबको इम्तिहानों से गुजरना सिखाता है
और देर से ही सही जिसे जो मिलना होता है वो उसे मिल ही जाता है
इसलिए तुम आये ना मेरी ज़िंदगी में?
सैम भी कितना खुश है
सिर्फ़ सैम?
ठीक है बाबा, मैं भी बेहत खुश हूँ।
लेकिन सच में,
तुम दोनों बाप बेटे नहीं दोस्त जैसे लगते हो ।
लगते क्या? हम दोस्त हैं ।
We are friends, Mandira.
सच है, तकलीफ़ें जीतने भी हो
अगर हम चलते जायें तो एक ना एक दिन सब कुछ ठीक हो ही जाता है ।
तो क्या अब भी तुम यही कहोगी?
क्या?
की तुम क़िस्मत पर यक़ीन नहीं करती?
avis
17th part
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themoonlitsea · 2 months
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बड़े दिन बाद उदासी आई है दरवाज़े पर मेरे,
ना ख़बर, ना ख़्याल, ना शिकन है दिल में मेरे,
फ़िर क्यूंँ आई है ये पुरानी कोई ख़बर बनके ज़हन में मेरे,
ढलते सूरज के साथ ढली पहरों की ठहर बनके,
बड़े दिनों बाद उदासी आई है दरवाज़े पर मेरे,
अब तो तौबा करली है आदतों से कितनी,
अब तो तौबा करली है ख़्वाबों के मिट्टी के महल बनाने से,
ये लंबे दौर की लहरें ले डुबा है ज़मीर के ख़ज़ाने मेरे कितने,
अब तो किनारे ही रह जाने की दरख़्वास्त है मेरी,
सुनने–सुनाने के किस्से यूंँ किस से जताऊंँ,
अब तो तौबा करली है लफ्ज़ों से ही ज़बान ने मेरी,
ना ख़बर, ना ख़्याल, ना शिकन है दिल में मेरे,
तब भी बड़े दिन बाद उदासी आई है दरवाज़े पर मेरे,
लगता है क़िस्मत बड़ी ख़फ़ा है मुझसे,
कितना डर–डर के जिया है जिगर मेरा हर दम,
अपना हर ग़म छुपाया है अल्फ़ाज़ों के पर्दों में मैंने,
दूर ही रहता हूंँ इन टूटे शीशों से बनी बदनुमा दुनिया से,
हर पल ये भीड़ बताती है मुझे,
ऐ बंदे, बर्बादी बड़ी खड़ी है इस राह पर तेरे,
पर इस राह पर तो मुझे अपना सच दिखता है,
बर्बादी ही सही, सच तो रहे,
कफ़न ही सही, पर सर पर बंँधे,
पर सामना सिर्फ़ करना चाहता हूंँ इसका ज़माने के सामने,
अपनों के शायद मर्म को सह ना पाऊंँगा,
बड़ा बुज़दिल जो हुंँ कहीं मर ही जाऊंँगा,
आज हर सही–ग़लत का हिसाब करने आयी है इस ज़माने का पूरे,
बड़े दिन बाद उदासी आई है दरवाज़े पर मेरे
–शशि
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Allam Iqbal said,
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
And Rahat Indori said,
सच बात कौन है जो सर-ए-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझ को सज़ा देनी चाहिए
And Krishna Bihari Noor said,
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
And Akhtar Saiyad Khan said
किस जुर्म-ए-आरज़ू की सज़ा है ये ज़िंदगी
ऐसा तो ऐ ख़ुदा मैं गुनहगार भी नहीं
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praphullverma · 21 days
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बहुत तेज़ हवा चल रही है। कई दिनों बाद मेरे चेहरे पर मुझे ठंड महसूस हो रही है। पिछले कुछ दिनों से बहुत गर्मी थी। शरीर एकदम झुलस चुका था गर्मी के मारे। न जाने कितने बोतल पानी के गटकने के बाद भी संतोष नहीं होता था। बारिश होना गर्मी में जन्नत के समान है। मगर बारिश भी नहीं हो रही। बस हवा है। ऐसी गर्मी में सफर करना मुश्किल है। मगर ज़िंदगी सर्दी गर्मी के लिए कहाँ रुकती। एग्जाम्स तो और नहीं रुकते। अब सोचता हूँ बेकार इतने फॉर्म्स भर दिए। ख़ैर।
रात को सर दर्द करता रहता है। शायद अधिक सोचने के कारण। बीमार रहना मुझे एकदम पसंद नहीं। मगर बीमारी टालना अपने हाथ में नहीं। कुछ भी अपने हाथ में नहीं। जीवन ऐसा ही है। कभी कभी विज्ञान से भरोसा उठ��े लगता है और उन बातों पर यकीन होने लगता है जिसे मैं हंसकर टाल दिया करता था। लोग कहते है व्रत करने से भगवान हम सबका ख्याल रखते है। मगर माँ को भूखे देखना एकदम अच्छा नहीं लगता। मेरे लिए तो व्रत करने के भी कोई फायदे नहीं।
छत पर हवा सुंदर है। आसमान में तारे बहुत कम है। न जाने कहाँ छिप गए है सब। सिर घुमाने पर चाँद दिखा। रात बहुत शांत होती है। काश दिन भी ऐसा होता। दिन बहुत शोर भरा होता है। शोर मुझे नहीं पसंद। शांति मेरी सबसे प्रिय चीज़ है। और रात में शांति है। रात ने कभी मुझे नहीं रोका सच होने से। सच—जैसा मैं हूँ। दिन मुझे नकाब में रखता है। हँसना सीखना पड़ता है दिन में जीने के लिए। और कुछ सीखने में बहुत मेहनत है। जब खुद को बदलने की बात हो तब मैं आलसी हूँ। बचपन में रात से डर लगता था। क्योंकि दिन में कोई फ़िक्र नहीं थी नक़ाब लगा कर घूमने की। मगर अब दिन और रात के मायने बदल चुके है।
एक दिन जीवन सही होगा मगर सही करने में जीवन लगेगा। न जाने ये कितना सही होगा। ज़िंदगी लगाना ज़िंदगी के लिए। ख़ैर सब लगाते है मैं कोई पहला नहीं। जीवन को जीने के बहुत तरीके हो सकते थे मगर हम इंसानों ने एक अजीब सा तरीका चुना है। और बदलाव लाना मेरे बस की बात नहीं।।।
—praphull
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minyminymo · 2 months
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मैं अगर कहूँ, "तुम सा हसीं
कायनात में नहीं है कहीं"
तारीफ़ ये भी तो सच है कुछ भी नहीं
Urge to Sing these lyrics for him
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essentiallyoutsider · 2 months
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जगहें
यहां आए नौ महीने पूरे हुए
बल्कि दस दिन ज्‍यादा
इतने में पनप सकता था एक जीवन
बदली जा सकती थी दुनिया
बच सकते थे बचे-खुचे जंगल
लिखी जा सकती थी एक कविता
या कोई उपन्‍यास, लंबी कहानी
पलट सकती थी सत्‍ताएं तानाशाहों की
मूर्त हो सकती थीं जिसके रास्‍ते
कुछ योजनाएं और थोड़ा बहुत लोकमंगल।
जगह बदलने से क्‍या बदल जाता है
जीवन भी और इतना कि पूर्ववर्ती जगहों
के अभाव में उपजे नए खालीपन से
घुल-मिल कर पुरानी एकरसताएं
नए भ्रम रचती हैं? क्‍या आदमी
वही रहता है और केवल धरा नचती है
दिशाएं ठगती हैं?
वैसे, हवा इधर बहुत तेज चलती है
लखपत के किले में जैसे हहराकर गोया
फंस गई हो ईंट-पत्‍थर के परकोटे में
भटकती हुई कहीं और से आकर
जबकि‍ पौधे बदल ही रहे हैं अभी पेड़ों में
जिन पर बसना बोलना सीख रहे
पक्षी सहसा चहचहा उठते हैं भ्रमवश
आधी रात फ्लड लाइट को समझ कर सूरज
और सहसा नींद उचट जाती है
अब जाकर जाना मैंने इतने दिन बाद
ठीक पांच बजे तड़के यहां भी
कहीं से एक ट्रेन धड़धड़ाती हुई आती है।
जगहें कितनी ही बदलीं मैंने पर
बनी रही मेरी सुबहों में ट्रेन की आवाज
धरती पर अलहदा जगहों को जोड़ती होंगी
शायद कुछ ध्‍वनियां, छवियां, कोई राज
मसलन, नहीं होती जहां रेल की पटरी
बजती थी वहां भी सुबह एक सीटी
जैसे गाजीपुर या चौबेपुर में पांच बजे ठीक
जबकि इंदिरापुरम में हुआ करता था
और अब शहादरे में भी काफी करीब है
रेलवे स्‍टेशन तो बनी हुई है
पुरानी लीक।
एक बालकनी है यहां भी
बिलकुल वैसी ही
खड़ा होकर जहां बची हुई दुनिया से
आश्‍वस्‍त होना मेरा कायम है आदतन
एक शगल की तरह जब तब
एक मैदान है हरे घास वाला
जैसा वहां था
और उसमें खेलते बच्‍चे भी
और कभी कभार टहलती हुई औरतें बेढब
दिलाती हैं भरोसा कि हवा कितनी ही
हो जाए संगीन बनी रहेगी उसमें सांस
हम सब की किसी साझे उपक्रम की तरह
उसे कैद करने की साजिशें अपने
उत्‍कर्ष पर हों जब।
देशकाल में स्थिर यही कुछ छवियां हैं
कुछ ध्‍वनियां हैं
ट्रेन, बच्‍चे और औरतें
घास के मैदान, बालकनी और बढ़ते हुए पौधे
ये कहीं नहीं जाते
और हर कहीं चले आते हैं
हमारे साथ याद दिलाते
कि हमारे चले जाने के बाद भी
कायम रहती है हर जगह
एक भीतर और एक बाहर से
मिलकर ही बनती है हर जगह
और दोनों के ठीक बीचोबीच होने के
मुंडेर पर लटका आदमी कभी भीतर
तो कभी बाहर झांकते तलाशता है अर्थ
पाने और खोने के।
दो जगहों का फर्क जितना सच है
उतनी ही वास्‍तविक हैं खिड़कियां
भीत, परदे, मुंडेर और दीवारें
जिनसे बनती है जगहें और
जगहों को जाने वाले।
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naveensarohasblog · 1 year
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#Wayofliving_Part214
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प्रकृति की सम्पूर्ण रचना || भाग-एच (8)
अन्य संतों द्वारा प्रकृति के निर्माण की एक मूल कहानी
प्रकृति की रचना के बारे में अन्य संतों द्वारा दिया गया ज्ञान क्या है? कृपया संतों के विचार बिन्दुओं को नीचे पढ़ें
प्रकृति की रचना के संबंध में राधास्वामी पंथ और धन-धन सतगुरु के संतों का
Holy book "Jeevan Charitra Param Sant Baba Jaimal Singh JiMaharaj", Page no. 102-103, "Srishti ki Rachna (Creation of Nature)", Sawan Kripal Publication, Delhi):
("Pehle SatPurush nirakaar tha, fir izhaar (aakaar) mein aya to ooparke teen nirmal mandal (Satlok, Alakhlok, Agamlok) ban gaya tatha prakashtatha mandalon ka naad (dhuni) ban gaya.")
"आदि में सतपुरुष निराकार थे, फिर प्रकट हुए (रूप में प्रकट हुए) तो ऊपर तीन शुद्ध क्षेत्र (सतलोक,अलखलोक,अगमलोक) हो गए और प्रकाश और प्रदेश ध्वनि हो गए। "
Holy book "Saarvachan (Nasar)", Publisher - RadhaswamiSatsang Sabha, Dyalbaag, Agra, "Srishti Ki Rachna (Creation of Nature)", Page no. 8:-
("Pratham dhundhukaar tha. Usmein Purush sunn samaadh mein the.
Jab kuchh rachna nahin huyi thi. Fir jab mauj huyi tab shabd prakat huya
aur usse sab rachna huyi, pehle Satlok aur fir Satpurush ki kala se teen lok
aur sab vistaar huya.")
"शुरुआत में, अंधेरा था। पुरुष मौन साधना में था। उस समय, कोई रचना नहीं थी। फिर जब उसने चाहा तो शब्द प्रकट हुआ और उससे सब कुछ बनाया गया। सबसे पहले सतलोक और फिर
सतपुरुष के कौशल से तीन लोक (स्थान) बाकी सब विकास हुआ। "
यह ज्ञान ऐसा है जैसे एक युवक नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गया हो। मालिक ने पूछा "महाभारत पढ़ा है क्या? "
युवक ने कहा, "यह मेरी फिंगर टिप्स पर है"। मालिक ने पूछा पांच पाण्डव के नाम बताओ " युवक ने जवाब दिया," एक भीम था, एक उसका बड़ा भाई था, एक छोटा था
वो, एक और था और एक का नाम, मैं भूल गया हूँ। "ऊपर वर्णित प्रकृति की रचना का ज्ञान इस प्रकार है।
सतपुरुष और सतलोक की महिमा बताने वाले और पांच नाम देने वाले संतों के ग्रंथों से कुछ निष्कर्ष
Niranjan - Raranka - SohM - Satyanaam) and who give three naams(Akaal Murti - SatPurush - Shabd Swaroopi Ram): -In Santmat Prakash, Part 3, on page 76, it is written, "Sachkhand
या सतनाम चौथा लोक (स्थान) है। "यहाँ 'सतनाम' को 'स्थान' कहा जाता है। फिर पेज नं. पर 79 इस पवित्र ग्रंथ में लिखा है कि "एक राम है
'दशरत पुत्र', दूसरा राम 'मन (मन)', तीसरा राम 'ब्रह्म', चौथा राम
is 'Satnaam', and this is the real Ram."
फिर पवित्र ग्रंथ "संतमत प्रकाश" भाग 1 में पृष्ठ 17 पर लिखा है, "सतलोक वही सतनाम है। " पवित्र पुस्तक में
"सार वचन नसर यानी वर्तिक", पेज नं. पर 3, लिखा है कि "अब किसी को यह विचार करना चाहिए कि राधास्वामी सबसे ऊंचा स्थान है, जो
संतों ने सतलोक और सचखंड और सारशब्द और सतशब्द और सतनाम और सतपुरुष के रूप में वर्णन किया है। ऊपर लिखा हुआ वर्णन है
आगरा से प्रकाशित पवित्र पुस्तक "सार वचन (नासर) में भी उल्लेख किया गया है, पेज नं. पर 4।
Holy book 'Sachkhand Ki Sadak', page no. 226; "The country ofsaints is Sachkhand or Satlok, it is also known as Satnaam - Satshabd -Saarshabd."
महत्वपूर्ण :- ऊपर की व्याख्या ऐसे है जैसे किसी ने जिंदगी में न शहर देखा हो, न कार देखा हो; न पेट्रोल देखा हो,
ड्राइवर किसे कहते है ड्राइवर का पता नहीं और वो दूसरे दोस्तों से कहता है कि मैं शहर जाता हूँ, और कार में बैठ कर मजा लेता हूँ।
और अगर दोस्त पूछ लें कि कार कैसी लगती है, पेट्रोल क्या होता है, ड्राइवर क्या होता है, और शहर कैसा होता है? वो गुरुजी जवाब देते हैं
शहर कहो या कार एक ही बात है शहर भी कार पेट्रोल भी कार ड्राइवर भी कार और गली
कार को भी बुला लिया। आइये विचार करें:- सतपुरुष ही पूर्ण/सर्वोच्च परमात्मा है;
सतनाम उन दो मंत्रों का नाम/मंत्र है जिसमें एक 'ॐ' और दूसरा 'तट' है जिसे कोड किया गया है। और इसके बाद है सारनाम,
जो भक्त को पूर्ण गुरु द्वारा दिया जाता है। ये सतनाम
और सारनाम दोनों पाठ के मंत्र हैं। सतलोक वह स्थान है जहाँ सतपुरुष रहते हैं। अब पवित्र आत्माएं खुद तय कर लें कि सच क्या है और झूठ क्या है।
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anne-zindagi · 10 months
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अस्ल मे हम अकेले रहते हैं लेकिन हम सपना देखते हैं कि कोई हमारे साथ है जो हमें समझता है और हमारी परवाह करता है लेकिन ये सिर्फ हमारे सपने हैं जो कभी सच नहीं हुए और कभी सच नहीं होंगे!
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official-aryan · 3 months
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अपने अंदर ख़ुशी ढूँढ़ना इतना आसान नहीं, और एक सच ये भी है, इसे और कहीं ढूँढ़ना तो संभव ही नहीं।
🅰️ryan
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scribblesbyavi · 1 year
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बातों से सुकून (१५)
हमें नहीं करनी आपसे कोई बात।
और ऐसा क्यूँ?
हमने क्या किया?
आपने दिन भर हमें इग्नोर किया
आपने एक कॉल तक नहीं किया हमें
में मश्रूफ था
काम ही इतने थे
जी हमें पता है
पर हम आपको ही याद करते रहे पूरे दिन
हमने कॉल ना किया हो
पर हमारे ज़हन में आप हमेशा रहती हैं
काम ख़त्म होते ही हम आपके पास सीधे चले आए
और आपके लिए गजरा भी लाए हैं
शुक्रिया, ये बहत सुंदर हैं।
सिर्फ़ आपके लिए
क्यूँकि हम आपसे बहत मोहब्बत करते हैं।
सच कह रहे हैं आप?
हम क्यूँ झूठ कहेंगे आपसे भला?
हमें भी आपसे मोहब्बत है
हमें आप का साथ बहत पसंद है
आपकी हर बात और आपका हमारे तरफ़ तवज्जो
हमें भी।
इसलिए आप ऐसे फिर कभी मत कहना।
क्या?
यही की आपको नहीं करनी हमसे कोई बात ।
avis
Part 16
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