जितने भी नकली संत, महंत हैं वे सभी सनातन धर्मग्रंथ के विपरीत विधान बताते हैं कि परमात्मा निराकार है।
जबकि संत रामपाल जी महाराज सनातन धर्म ग्रंथ पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15, अध्याय 5 मंत्र 1, पवित्र ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मंत्र 1-2, सूक्त 86 मंत्र 26-27 आदि से स्पष्ट करते हैं कि परमात्मा मानव सदृश्य साकार, राजा के समान दर्शनीय है, उसका नाम कबीर है।
संत रामपाल जी महाराज, सर्वसुख व पूर्णमोक्ष दायक शास्त्रानुकूल भक्ति साधना (धार्मिक अनुष्ठान) करवाते हैं, जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना करके पित्तर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है।
जिस प्रकार भक्त प्रह्लाद ने भक्ति करके परमेश्वर को याद किया जिससे उसकी सदैव रक्षा हुई। तो क्यों ना हम भी उस परमेश्वर को सदा याद करें जिससे हमारी भी सदैव रक्षा हो।
The film of your previous lives will be played in the court of God, in which whenever you obtained a human life, each time you said– ‘Give me one more human life; I will do bhakti for the whole of my life.’
On 17-20 February, a huge Bhandara is being organized in 10 Satlok Ashrams on the occasion of Bodh Diwas of Sant Rampal Ji Maharaj and Nirvana Day of Kabir Parmeshwar Ji. In which the entire world has been invited.
गरीब, एक राम कहते राम है, जिनके दिल हैं एक। बाहिर भीतर रमि रह्या, पूर्ण ब्रह्म अलेख।।
जिन साधकों का दिल परमात्मा में रम (लीन हो) गया, वे एक परमात्मा का नाम जाप करके राम हो जाते हैं यानि आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करके देव के समान पद प्राप्त कर लेते हैं यानि देवताओं जितनी आध्यात्मिक शक्ति वाले हो जाते हैं। परमात्मा शरीर के कमलों में तथा बाहर सब जगह विद्यमान है।
510 years ago, Lord Kabir had organized "Divine Dharma Yagya" for three days. In which more than 18 lakh sadhus, saints and people performed Mohan Bhandara. The same history is being recreated under the guidance of Bandichod Satguru Rampal Ji Maharaj. 'Divya Dharma Yagya Diwas' is being organized in 10 Satlok Ashrams from 26 to 28 November 2023 in the presence of Jagatguru Tatvadarshi Sant Rampal Ji Maharaj in which all of you are cordially invited.
गरीब, बैरागर की खानिकूं, जो कोई लेवे चाहिI
बिना धनी की बंदगी, नगर लगौ तिस भाहिII
यदि कोई (बरागर) हीरे की खान की इच्छा रखता है। भक्ति पूर्ण परमात्मा की नहीं करता है। उस नगर को (भाहि) आग लगे।