Tumgik
#वो दिन याद कर
manishdas30 · 7 months
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amar123sblog · 7 months
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delhidreamboy · 6 months
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दोस्त की बीवी के साथ रात भर चुदाई
दोस्तो, सबसे पहले मैं अपना परिचय दे देता हूँ.
मेरा नाम समीर है मैं बहराइच शहर क�� रहने वाला हूँ. मैं पाँच फिट ग्यारह इंच लम्बा हूँ और मेरे बाल काफ़ी लम्बे हैं.
मैं अपने दोस्तों में सबसे ज्यादा स्मार्ट हूँ.
सेक्स मेरी कमज़ोरी है.
किसी भी लड़की को देखता हूँ तो अपने पर कंट्रोल नहीं कर पाता और मौक़ा मिलते ही मुठ मार लेता हूँ.
मैं अपने दोस्त जुनैद खान की शादी में ना जा सका था.
उस दिन किसी काम के सिलसिले में फंस गया था.
उसके बाद मैं अपने कामों में ऐसा फंसा कि क़रीब पाँच साल तक दोस्ती यारी सब भूल गया.
जब मैं काम से थोड़ा आजाद हुआ तो दोस्तों की याद आई.
मगर अब दोस्त भी सब अपने अपने कामों में लगे हुए थे.
फिर एक दिन अचानक से जुनैद से यहीं मार्केट में मुलाक़ात हुई.
उसके साथ उसकी बीवी भी थी.
हम दोनों दोस्त अपनी बातों में मस्त हो गया.
कुछ देर में मेरी नज़र जुनैद की बीवी पर पड़ी.
वह बड़ी मस्त माल थी. यह Xxx सेक्सी हिंदी कहानी उसी के साथ की है.
उसके 36 साइज़ के चूचे और 38 इंच की गांड एकदम आग बरपा रही थी.
मैंने भाभी से हैलो की और सॉरी बोलते हुए कहा- सॉरी भाभी, मैंने आप पर ध्यान ही नहीं दिया. हम दोनों दोस्त अपनी पुरानी यादों में मस्त हो गए, माफ़ी चाहता हूँ!
जुनैद की बीवी ने जवाब दिया- आपने मुझ पर ध्यान नहीं दिया, कोई बात नहीं. पर आप शादी में भी नहीं आए. जुनैद हमेशा आपकी बातें करते रहते थे. मैं भी आपसे मिलने को उतावली थी.
ये कहती हुई उसने मेरे हाथ को दबा दिया.
मैं समझ गया कि भाभी चालू माल है.
मैंने बात को खत्म करते हुए हंसते हुए कहा- अरे भाभी, यहीं सब बातें कर लेंगी या कभी घर भी बुलाएंगी.
फिर हमारी बातें ख़त्म हुईं.
भाभी ने जाते वक्त कहा- आपका घर है, जब चाहें आ जाएं. जुनैद तो रात को दो के बाद ही आते हैं. आपकी जब मर्ज़ी हो, आ जाइए.
मैं भाभी का इशारा समझ गया और वहां से निकलते हुआ बोला- ओके भाभी, आपसे जल्दी ही मिलता हूँ.
मैं वहां से निकल गया.
इस बात को दो दिन हो गए थे.
मैं घर पर आराम कर रहा था.
उसी वक्त व्हाट्सैप पर अनजान नम्बर से एक मैसेज आया ‘क्या कर रहे हो मेरी जान!’
मेरे दोस्त अक्सर मैसेज से मुझे परेशान करते रहते हैं तो मैंने इस मैसेज पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया कि किसी दोस्त ने अनजान नंबर से मैसेज करके मुझसे शैतानी की होगी.
मैं उस मैसेज का बिना कोई जवाब दिए सो गया.
सुबह जब उठा तो देखा कि उसी नंबर से काफ़ी मैसेज आए हुए थे और दो मिस्ड कॉल भी थीं.
मैंने उसी नंबर पर कॉलबैक की, तो उधर से एक सुरीली सी आवाज़ आई- हैलो मिस्टर समीर, गुड मॉर्निंग. कैसी कटी आपकी रात!
मैंने भी बिना कुछ सोचे समझे सीधा बोल दिया कि अपनी भाभी के साथ सपने में कबड्डी खेलता रहा.
मेरी इस बात से उस तरफ से ज़ोर ज़ोर की हंसी के साथ आवाज आई- सही पहचाना, मैं ही हूँ आपकी कबड्डी खेलने वाली भाभी.
मैंने एकदम से अपने कहे पर खेद जताते हुए उनसे पूछा- सॉरी मेम, आप कौन?
‘मैं नादिया भाभी बोल रही हूँ.’
मैंने अब स्क्रीन पर उनका नंबर औ�� ट्रू कॉलर पर आया हुआ नाम देखा.
फिर कहा- जी हां मुझे पता लग गया है. ट्रू कॉलरपर आपका नाम लिखा हुआ आया है. आप बताएं भाभीजान … सुबह सुबह अपने देवर को कैसे याद कर लिया?
वह बोली- सुबह सुबह तो छोड़िए, मैं तो सारी रात से आपको काफ़ी याद कर रही थी. कई मैसेज किये और दो बार कॉल भी किया, पर आपने फ़ोन ही नहीं उठाया. लगता है मुझसे नाराज़ हैं?
मैंने कहा- अरे भाभी जान, आपसे नाराज़ होकर कहां जाऊंगा. अपन तो दिल से ही आपके ही पास हैं.
वह हंसती हुई कहने लगी- काफ़ी अनुभव है आपको बात करने का … लगता है काफ़ी गर्लफ़्रेंड पटा रखी हैं.
मैं बोला- गर्लफ्रेंड तो नहीं, हां आप जैसी कुछ भाभियां हैं. जो समय समय पर अनुभव करवा देती हैं.
नादिया भाभी मेरी बात को क़ाटती हुई बोली- अच्छा वो सब छोड़ो … ये बताओ कि क्या आप मेरे घर आ सकते हैं?
मैंने कहा- कोई ज़रूरी काम हो, तो अभी आ जाऊं?
उधर से जवाब आया- अरे यार समीर … कल से जुनैद घर पर है नहीं. मैं अकेले बोर हो रही हूँ. आप आ जाएंगे तो आपसे जरा दिल बहला लूँगी.
मैं खुश होते हुए बोला- भाभी अभी तो सुबह हुई है, रात को आता हूँ.
उसने कहा- चलो मैं आपका इंतजार करूंगी.
कुछ देर और इधर उधर की बातचीत के बाद मैंने फ़ोन कट कर दिया.
अब मुझे और भाभी को रात का बेसब्री से इंतज़ार था कि कब रात हो और हम दोनों का मिलन हो.
मैं सोच रहा था कि बस कैसे भी करके नादिया भाभी को चोद लूं.
तो मैं नहाने गया तो झांटें साफ कर लीं.
रात होते ही मैंने मेडिकल से दो पैकेट कंडोम के ले लिए और भाभी के घर चला आया.
उनके घर पहुंचते ही मैंने दरवाजे की घंटी बजाई.
कुछ पल बाद दरवाज़ा खुला. दरवाजा खुलते ही मैं भाभी को देखता रह गया.
भाभी तो कहीं से शादीशुदा लग ही नहीं रही थी. उसने शॉर्ट्स और टॉप पहना था.
उसका रेड कलर का टॉप एकदम पारदर्शी था.
उस टॉप में से भाभी के दोनों चूचे और उन पर तने हुए गुलाबी निप्पल साफ़ दिख रहे थे.
उसने ब्रा नहीं पहनी थी.
सीन देख कर तो दिल कर रहा था कि अभी ही इसे पकड़ कर चोद दूँ. पर ऐसा करना ठीक नहीं होता है.
सेक्स का जो मज़ा आराम से करने में है, वह ज़बरदस्ती में नहीं है.
हालांकि मेरा मुँह खुला का खुला रह गया था.
भाभी ने इतराते हुए कहा- अन्दर आ जाओ, फिर इस खुले हुए मुँह का इलाज भी कर देती हूँ.
मैं झेंप गया.
अन्दर जाते ही मैंने अपनी पैंट एडजस्ट की क्योंकि मेरा लंड खड़ा हो गया था.
भाभी ने बैठने को कहा और बोली- क्या लोगे, चाय कॉफ़ी!
मैंने कहा- भाभी आप जो देंगी, प्यार से ले लूँगा. वैसे दूध मिल जाता तो और अच्छा होता.
भाभी मुस्कुराती हुई अपने दूध हिला कर बोलीं- ठीक है, मैं लाती हूँ.
वह किचन जाने के लिए मुड़ी ही थी कि मैंने हाथ बढ़ाया और भाभी को अपनी ओर खींच लिया.
हम दोनों बेड पर गिर गए.
भाभी ने कहा- अरे, ये क्या कर रहे हो देवर जी?
मैंने कहा- भाभी, मैं तो दूध ताज़ा वाला ही पीता हूँ.
ये कहते हुए मैंने भाभी का टॉप तेज़ी से खींचा और उसको बाहर निकाल फेंका.
मैं उसके दोनों रसभरे चूचों पर टूट पड़ा.
भाभी की 36 साइज़ की चूचियां मेरे हाथों में नहीं आ रही थीं.
नादिया भाभी को अपने नीचे दबा कर उसकी दोनों चूचियों को हाथ से पकड़ कर मसलने लगा और एक चूची के निप्पल को अपने होंठों में दबा कर खींच खींच कर चूसने लगा.
भाभी की मादक आहें और कराहें निकलना शुरू हो गईं.
मैंने क़रीब दस मिनट तक भाभी के दोनों चूचे चूसे … और चूस चूस लाल कर दिए.
अब हम दोनों का किस चालू हुआ.
मैं भाभी के पूरे बदन पर किस करता रहा.
वह आपे से बाहर हो रही थी.
किस करते करते मैं नीचे को सरकने लगा और भाभी की चूत पर आ गया.
भाभी की चूत शॉर्ट्स से ढकी हुई थी.
मैंने झटके से शॉर्ट्स को उतारा और चूत के अन्दर अपनी ज़ुबान डाल कर ��ूसने लगा.
अपनी चूत पर मेरी जुबान का अहसास पाते ही भाभी एकदम से सिहर उठी और छटपटाने लगी.
मैंने उसकी दोनों टांगों को अपने हाथों से दबोचा और चूत को चाटना शुरू कर दिया.
भाभी की चिकनी चूत एकदम कचौड़ी सी फूली हुई थी और रस छोड़ रही थी.
उसकी चूत का नमकीन रस चाटने से मुझे नशा सा आ गया और मैं पूरी शिद्दत से उसकी चूत को चाटने में तब तक लगा रहा, जब तक चूत का पानी नहीं निकल गया.
मैं चूत का रस चाटने लगा और चाट चाट कर भाभी की चूत को वापस कांच सा चमका दिया.
अब वह एकदम से निढाल हो गई थी और तेज तेज सांसें भर रही थी.
कुछ देर के बाद मैं उसके चेहरे को चूमने लगा तो वह बोली- सच में बड़े जानवर हो तुम … तुमने मेरी चूत में से पानी निकाल कर इसमें दोगुनी आग लगा दी है.
मैंने कहा- नादिया मेरी जान … अभी फायर बिर्गेड वाला पाइप खड़ा है … कहो तो तत्काल पाइप घुसेड़ कर आग बुझा दूँ.
वह बोली- आग तो बुझवानी ही है, पर उसके पहले मुझे उस पाइप को प्यार करना है जो मेरी आग बुझाएगा.
मैंने कहा- हां हां कर लो प्यार!
ये कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख दिया.
उसने लंड मसलते हुए कहा- ये तो बड़ा अकड़ रहा है. इसे पहले मेरे मुँह में डालो … मैं इसकी अकड़ निकालती हूँ.
हम दोनों 69 की पोजीशन में आ गए.
नादिया भाभी ने मेरे लंड को बहुत प्यार से चूसा और उसे एकदम गर्म लोहे से तप्त सरिया बना दिया.
वह मेरे लौड़े को गले के आखिरी छोर तक लेकर चूस रही थी.
मैंने आह भरते हुए कहा- आह भाभी … मेरी जान और चूसो.
उधर भाभी भी दुबारा से गर्मा गई थी.
उससे रहा ना गया और वह बोली- समीर, मैं बहुत प्यासी हूँ. पहले मेरी चूत की प्यास मिटा दो. जुनैद के साथ कभी ऐसा मज़ा नहीं आया. वह तो मेरे ऊपर चढ़ता है और दो मिनट में झड़ कर सो जाता है. आज तक न तो उसने कभी मुझे ओरल सेक्स का सुख नहीं दिया.
मैंने कहा- अरे मेरी भाभी जान … अभी तो ये शुरुआत है. अगर आपको मुझसे चुदवाने में मज़ा ना आया, तो मेरा नाम भी समीर नहीं.
बस ये कह कर मैंने भाभी को अपनी तरफ़ खींचा और लंड पर कंडोम लगा कर अपने लंड को भाभी की मखमली चूत पर सैट कर दिया.
लौड़े को सैट करते ही मैंने एक ज़ोरदार धक्का मारा. मेरा लंड भाभी की चूत को चीरता हुआ अन्दर घुसता चला गया.
एकदम से लौड़े ने चूत को फाड़ा, तो भाभी की चीख निकल गई.
भाभी की आंख से आंसू निकल आए और वह चिल्लाने लगी- समीर, मेरी चूत फट गई है, प्लीज़ निकाल लो.
लेकिन मैंने भाभी की एक ना सुनी और दोबारा झटका मार कर अपने लंड को पूरा अन्दर तक डाल दिया.
फिर मैं थोड़ी देर रुक गया.
Xxx सेक्सी भाभी दर्द से चीखती रही और छटपटाती रही.
कुछ देर बाद जब भाभी के चेहरे पर थोड़ा बदलाव आया और वह अपनी गांड को थोड़ा थोड़ा हिलाने लगी, तो मैं समझ गया कि भाभी को मज़ा आने लगा है.
अब म���ंने भाभी को और तेज़ी से चोदना चालू कर दिया.
भाभी का सुर बदल गया था और वह बार बार कह रही थी- समीर, और तेज चोदो … और तेज.
यही सब कहते हुए वह अपने सर को इधर से उधर पटक रही थी.
हम दोनों की चुदाई का यह सिलसिला क़रीब बीस मिनट तक चला.
उसके बाद वह झड़ गई और उसके झड़ते ही मैं भी कंडोम में निकल गया.
झड़ने के बाद काफी थकान हो गई थी तो हम दोनों ऐसे ही नंगे सो गए.
आधा घंटा बाद उठे और वापस चुदाई चालू हो गई.
उस रात हम दोनों ने चार बार सेक्स किया.
यह सिलसिला अभी तक चल रहा है.
मैं आगे बताऊंगा कि भाभी की बहन को सेक्स की गोली खिला कर उसकी सील पैक चूत को कैसे चोदा.
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scribblersobia · 9 months
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जब तुम दिन के शोर में मुझे याद करते हो,
अच्छा लगता है।
जब तुम मेरी छोटी - छोटी बातें याद रखते हो,
अच्छा लगता है।
जब वो फूलों की दुकान में से एक सुंदर सा फूल तुम मेरे लिए लाते हो,
अच्छा लगता है।
जब मुझपे अपना हक समझ कर मुझे कभी - कभी प्यार वाली डांट लगाते हो,
अच्छा लगता है।
जब रात को तुम्हारे कंधे पर सर रखकर, मैं और तुम आसमान को निहारते हैं,
अच्छा लगता है।
जब मेरी मेंहदी में तुम अपना नाम ढूंढते हो,
अच्छा लगता है।
जब मेरी लिखी कविताओं को पढ़ कर तुम शर्माते हो,
अच्छा लगता है।
तुम्हारे लिए त्यार होना, सजना संवरना मुझे,
अच्छा लगता है।
जब हम - तुम, हम - तुम की खामोशियों में भी अल्फाजों को चुनते हैं,
अच्छा लगता है।
मेरा हाथ पकड़कर जब तुम मुझे चूमते हो तब,
अच्छा लगता है।
तुम्हारा साथ होना, मोहब्बत का गीत लगता है, जिसे सुनकर मुझे,
अच्छा लगता है।
तू मेरा, तेरा साथ मेरा,
मैं तेरी, मेरा साथ तेरा,
मुझे तेरे साथ बिताया हर एक पल बहुत अच्छा लगता है।
_ सोबिया।
@scribblersobia
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helputrust · 16 days
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लखनऊ, 11.05.2024 | मातृ दिवस 2024 के उपलक्ष्य में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा सरस्वती बालिका इंटर कॉलेज के तत्वावधान में सरस्वती बालिका इंटर कॉलेज, इन्दिरा नगर, लखनऊ में "मातृ सम्मान" कार्यक्रम का आयोजन किया । कार्यक्रम के अंतर्गत सरस्वती बालिका इंटर कॉलेज के कक्षा 1 से कक्षा 12 तक प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं की माताओं व विद्यालय की शिक्षिकाओं को हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा सम्मानित किया गया साथ ही विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने सांस्कृतिक प्रस्तुति देकर अपनी माताओं का आभार व्यक्त किया व उन्हें सादर नमन किया | कार्यक्रम का शुभारंभ हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्षवर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य श्री महेंद्र अवस्थी तथा सरस्वती बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाध्यापिका श्रीमती रीति कुशवाहा द्वारा दीप प्रज्वलित व मां सरस्वती जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया |
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने वहां मौजूद सभी महिलाओं को मातृ दिवस की बधाई दी और कहा कि, “माँ शब्द की गरिमा शब्दों में बयां नहीं की जा सकती क्योंकि अगर माँ नहीं होती तो बच्चों के अस्तित्व भी नहीं होते | दुनिया में माँ को भगवान का दर्जा दिया गया है | भगवान हर जगह नहीं हो सकते इसलिए उन्होंने माँ को बनाया | आज मातृ दिवस पर हम सभी माताओं को बधाई देते हैं तथा उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं |"
ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य श्री महेंद्र अवस्थी ने कहा कि, “हमारे लिए हर दिन मातृ दिवस की तरह होना चाहिए | हमें जीवन की पहली शिक्षा अपनी माँ से मिलती हैं | पुराणों में अन्न, धन और ज्ञान की देवी भी अन्नपूर्णा माँ, लक्ष्मी माँ और सरस्वती माँ है तथा जिस धरती पर हम रहते हैं वह भी हमारी धरती माँ है | जो संस्कार एक माँ अपने बच्चो को देती हैं वो कोई और नहीं दे सकता | माँ कभी भी अपने बच्चो के लिए बुरा नहीं सोचती | सभी बच्चे आज यहां से यही सीख लेकर जाएँ कि वह प्रतिदिन अपने माता-पिता का आदर करेंगे तथा अपनी माँ का सम्मान करेंगे |”
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने उपस्थित सभी माताओं को मातृ दिवस की बहुत-बहुत बधाई | सरस्वती बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाध्यापिका श्रीमती रीति कुशवाहा तथा सभी शिक्षिकाओं का हार्दिक आभार जिन्होंने मातृ दिवस कार्यक्रम का सफल आयोजन किया | साथ ही आगामी 20 मई को होने वाले चुनाव में 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों से मतदान करने की अपील करी ।
सरस्वती बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाध्यापिका श्रीमती रीति कुशवाहा ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि, “माँ से बड़ा कोई शब्द नहीं होता | जीवन में अगर हमें कोई कठिनाई आती है तो हम ईश्वर से पहले माँ को ही याद करते हैं |”
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा 30 माताओं को सम्मानित किया गया जिनमे श्रीमती रेखा, श्रीमती सुमन गुप्ता, श्रीमती चंद्रा देवी, श्रीमती श्यामा, श्रीमती कमला देवी, श्रीमती विलाशा निषाद, श्रीमती मोनिका मिश्रा, श्रीमती कंचन, श्रीमती मोनिका मिश्रा, श्रीमती विमला केवट, श्रीमती गीतांजलि दुबे, श्रीमती लक्ष्मी, श्रीमती चंद्रावती चौरस, श्रीमती सुमन गुप्ता, श्रीमती शैल कुमारी, श्रीमती सारिका वर्मा, श्रीमती सुशीला, श्रीमती रंजना विश्वकर्मा, श्रीमती अनीता, श्रीमती रेखा देवी, राबिया खातून जी, श्रीमती कांति वर्मा, श्रीमती रीता मिश्रा, श्रीमती मीनू, श्रीमती सारिका वर्मा, श्रीमती मीना कश्यप, श्रीमती उर्मिला कश्यप, श्रीमती किरण देवी, श्रीमती कौशल्या साहू शामिल हैं ।
ट्रस्ट द्वारा सरस्वती बालिका इंटर कॉलेज की शिक्षिकाओं श्रीमती राज लक्ष्मी, सुश्री हर्षबाला, श्रीमती विभा सिंह, सुश्री नीतिका, श्रीमती आराधना, सुश्री अर्चना कश्यप, सुश्री शालिनी, श्रीमती प्रीति, श्री प्रियांशु, सुश्री अंजू वर्मा, श्री हिमांशु, श्रीमती प्रीति, सुश्री अपर्णा गौड़, श्रीमती नीलम वर्मा, श्रीमती शशि लता, सुश्री शशि किरण को भी सम्मानित किया गया |
कार्यक्रम का संचालन श्रीमती नीलम वर्मा ने किया |
समारोह में  हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य श्री महेंद्र अवस्थी, सरस्वती बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाध्यापिका श्रीमती रीति  कुशवाहा, शिक्षिकाओं सहित माताओं, छात्र- छात्राओं व ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही l
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likhe-jo-khat-tujhe · 6 months
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #2. १6th नवंबर २०२३. गुरूवार.]
सर्द सुबह की ठंड में गरम चाय सुकून की वो प्याली है जिसका खुमार दिन भर रहता है। सर्दियां आ चुकी है, असमंजस बरकरार है।
कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम है, इसी के साथ मेरे कदम चलते चलते यहां तक आ चुके और सांसे ठहरती नही।
आज कल सुबह कब हुई? दोपहर कहा गई? शाम कब ढली? रात कैसे गुजरी कुछ समझ नही आ रहा... वक्त इतनी तेज रफ्तार पकड़ रहा है जैसे उसे कही पोहचने की जल्दी है। कुछ बातों को अपने अंदर रख तो लिया मगर वो इतनी भारी होती जा रही है मानो रूई में किसी ने पानी डाल दिया हो, ये राज़ तो रोज बढ़ता जा रहा हैं खैर किसी दिन यहां से निकल जाऊंगी।
लोग कहते हैं में खामोश बड़ी रहती हु,
में सोच में डूब कर गुमसुम सी रहती हु,
जब ऊंचे आसमान के परिंदो की उड़ान में बंद कमरे की खुली खिड़की से देखती हु,
तब में ये सोचती हु,
बदलाव मुझे नापसंद है फिर भी उड़ान की चाह है,
फिर याद आता है की में तो बंदिशों में रहती हु,
मगर,
जब चंद लोग मुझे ये कहते हैं की में बड़ा अच्छा में लिखती हु
बस इसीलिए,
मेरे कदम रुकते नही और में चलती रहती हु।
सिमरन। ~
खैर उम्मीद पर दुनिया कायम है और मुझ पर मेरा भविष्य।
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trulyyoursss · 2 months
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चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है (part 1)
-hasrat mohani
बा-हज़ाराँ इज़्तिराब ओ सद-हज़ाराँ इश्तियाक़
तुझ से वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है
बार बार उठना उसी जानिब निगाह-ए-शौक़ का
और तिरा ग़ुर्फ़े से वो आँखें लड़ाना याद है
तूझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मिरा
और तिरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है
खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अ'तन
और दुपट्टे से तिरा वो मुँह छुपाना याद है
जान कर सोता तुझे वो क़स्द-ए-पा-बोसी मिरा
और तिरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था
सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है
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thesolitarysoul · 3 months
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उन के अंदाज़-ए-करम उन पे वो आना दिल का
हाय वो वक़्त वो बातें वो ज़माना दिल का
न सुना उस ने तवज्जोह से फ़साना दिल का
ज़िंदगी गुज़री मगर दर्द न जाना दिल का
कुछ नई बात नहीं हुस्न पे आना दिल का
मश्ग़ला है ये निहायत ही पुराना दिल का
वो मोहब्बत की शुरूआ'त वो बे-थाह ख़ुशी
देख कर उन को वो फूले न समाना दिल का
दिल लगी दिल की लगी बन के मिटा देती है
रोग दुश्मन को भी यारब न लगाना दिल का
एक तो मेरे मुक़द्दर को बिगाड़ा उस ने
और फिर उस पे ग़ज़ब हंस के बनाना दिल का
मेरे पहलू में नहीं आप की मुट्ठी में नहीं
बे-ठिकाने है बहुत दिन से ठिकाना दिल का
वो भी अपने न हुए दिल भी गया हाथों से
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना दिल का
ख़ूब हैं आप बहुत ख़ूब मगर याद रहे
ज़ेब देता नहीं ऐसों को सताना दिल का
बे-झिजक आ के मिलो हंस के मिलाओ आँखें
आओ हम तुम को सिखाते हैं मिलाना दिल का
नक़्श-ए-बर आब नहीं वहम नहीं ख़्वाब नहीं
आप क्यूँ खेल समझते हैं मिटाना दिल का
हसरतें ख़ाक हुईं मिट गए अरमाँ सारे
लुट गया कूचा-ए-जानां में ख़ज़ाना दिल का
ले चला है मिरे पहलू से ब-सद शौक़ कोई
अब त��� मुम्किन नहीं लौट के आना दिल का
उन की महफ़िल में 'नसीर' उन के तबस्सुम की क़सम
देखते रह गए हम हाथ से जाना दिल का
-Peer Naseeruddin Naseer
instagram
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adhoori-kahani · 4 months
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ख़ुद का होना है, या खुदा का
क्या अगर में खो जाऊंगा ,तो मुझे ढूंढ पाओगे?
और अगर छुप जाऊ कहीं, तो?
‍ऐसे मत देखो, यूंही पूछ रहा हु....
सवाल नही है बस सोच रहा हु....
क्या तुम नही थक जाते कभी?
चेहरे पे चेहरे ओढ़े,
व्यक्तित्व पे जैसे चादर ओढ़े,
मुझे तो यू लगता है अब ..
मुझमें तुममें कुछ असली बचा ही नही है,
हममें उनमें में फरक रहा ही नहीं है,
अपना-पराया, क्या गलत, क्या सही है।
में तो थक गया हु,
देखो डरना मत..
अगर तुम्हें किसी दिन मेरी जगह खाली दिखे,
ना याद मुझे करना तुम,
वो जगह मेरी से नाम हटा कर,
नया किरायदार ढूंढ लेना फिर।
क्यूंकि में तो थक गया हु मुखौटा ओढ़े,
सोचते सोचते सोच रहा हु,
क्यूं ना बनके चिड़िया,
फुर्र से उड़ जाऊ,
या फिर वापिस खुद का बनके,
खो जाऊ....
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om-is-ok · 1 year
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Lyrics which reminds me of you:
सुरीली अँखियों वाले, सुना है तेरी अँखियों से, बहती है नींदें और नींदों में सपने, कभी तो किनारों पे उतर मेरे सपनों से, आ जा ज़मीन पे और मिल जा कहीं पे, मिल जा कहीं ओ ओ, मिल जा कहीं समय से परे, समय से परे मिल जा कहीं, तू भी अँखियों से कभी मेरी अँखियों की सुन...
Tere liye chaand bhi rukta hai, tere liye oas tehrti hai, yaad nahi tha, yaad aaya...
Chand aasmano se laapata ho gaya, Chal ke mere ghar mein aa gaya, aa gaya... Main khush kismat hoon bakhuda iss tarah, Ho jaaye poori ik dua jis tarah... Tere bin meri jaana kabhi, Ek pal bhi guzaara nahi... Teri aarzoo ne khud se begana kar diya...
तुझे सोचता हूँ मैं शाम-ओ-सुबह इससे ज़्यादा तुझे और चाहूँ तो क्या? तेरे ही ख़यालों में डूबा रहा इससे ज़्यादा तुझे और चाहूँ तो क्या?
Dekha hazaron dafa aapko, Phir beqarari kaisi hai, Sambhale sambhalta nahi ye dil, Kuch aap mein baat aisi hai...
Tum sabah ho, ya ghata ho khekasha ho saiba ho, Subha ki pehli kiran ke jaise, Beba ke alhade pawan ke jaise, Khusboyein tum lootathi ho, Masti mein chur chur, Masha allah, masha allah, masha allah...
Uska hoon, usmein hoon, Us-se hoon usi ka rehne de, Main to pyaasa hoon hai dariya wo zariya wo jeene ka mere, Mujhe ghar de, gali de, shehar de, Usi ke naam ke, Kadam yeh chalein ya rukein, Ab usi ke vaste, Dil mujhe de agar dard de uska par, Uski ho wo hansi goonje jo mere ghar, Aye Khuda, aye Khuda jab bana uska hi bana...
है जो ईरादे बता दूँ तुम को शरमा ही जाओगी तुम, धडकने जो सुना दूँ तुम को घबरा ही जाओगी तुम, हम को आता नही है छुपाना होना है तुझं मै फणा, चांद सिफ़ारिश जो करता हमारी देता वो तुमको बता...
Jab tujhko paata hai Dil muskurata hai, Kya tujh se hai waasta, Kya tujh me dhoondu main, Kya tujh se chaahu main, Kya kya hai tujhme mera, Jaanu na main tujhme mera hissa hai kya, Par ajnabi apna mujhe tu lagaa, Jaanu na main tujhse mera rishta hai kya, Par ajnabi apna mujhe tu laga...
और मिश्री सी तेरी बातें ये, यूँ हौले-हौले याद आ रहीं हैं, और मीठी सी तेरी यादें अब, यूँ रातों में सुला जा रहीं हैं
....
तेरा, तेरा ही, मैं हो गया हूँ सोने के महलों में, तेरा, तेरा ही, मैं हो गया हूँ मिट्टी के शहरों में
Marhami sa chaand hai tu, Diljala sa main andhera, Ek dooje ke liye hain, Neend meri khwaab tera, Tu ghata hai phuhaar ki, Main ghadi intezaar ki, Apna milna likha issi baras hai na, Jo meri manzilon ko jaati hai, Tere naam ki koi sadak hai na, Jo mere dil ko dil banati hai, Tere naam ki koi dhadak hai na...
Marne ka sabab maangta raha dar-ba-dar, Mitne ko toh dil pal mein raazi hua, Poori hui har aarzoo har daastaan meri, Ke tum shuru hue jahan main khatam hua... Kurbaan hua…
Hale dil tujhko sunata, Dil agar yeh bol pata, Bakhuda tujhko hai chahta jaan, Tere sang jo pal bitaata, Waqt se main woh maang laata, Yaad karke muskuraata haan...
Tham gaya ye shama hosh hai laapta tere deedar kar, Rafta rafta sanam tumse mili nazar toh hua hai asar...
खामोशियाँ जो सुनले मेरी इनमे तेरा ही ज़िक्र है खाव्बों में जो तू देखे मेरे तुझसे ही होता इश्क है, उल्फत कहो इसे मेरी ना कहो है मेरा कुसूर कोई हूर.. जैसे तू कोई हूर.. जैसे तू...
Sundar sundar woh haseena badi sundar sundar, main to khone laga, uske nashe mein bin piye behka...
Kisi shaam ki tarah tera rang hai khila, Main raat ek tanha tu chand sa milla, haan tujhe dekhta raha kissi khwab ki tarah jo ab samne hai tu ho kaise yakeen bhala, Toota jo kabhi tara sajna ve tujhe rab se maanga rab se jo maanga mileya ve...
क्या कह के गया था शायर वो सयाना, आग का दरिया डूब के जाना, तू सबर तो कर मेरे यार, ज़रा सांस तो ले दिलदार, चल फिकर न�� गोली मार यार है दिन जिंदडी दे चार, हौले हौले हो जाएगा प्यार चलिया, हौले हौले हो जाएगा प्यार
Par uss ladki ka thoda alag andaz, Ankhey nashili uska chehra noorani, Jab chalti thi lagti thi, Dunia ki rani, Meethi meethi uski batein, Uski apni ada thi vo sabsey juda...
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hi-avathisside · 3 months
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लोग चले जाते हैं, यादें रह जाती हैं, वादे रह जाती हैं,
लोग चले जाते हैं, टूटे दिल रह जाते हैं,
लोगों को भुलाना आसान नहीं होता साहिब, भला इंसान आदत को कैसे भुला दे? आदतों को भुला भी दे तो यादें को कैसे भुलाए? उसकी याद जो मुझे रात के 3 बजे भी उतना ही सताती है जितना दोपहर के 3 बजे, पूरा दिन,पूरी शाम उसकी ही तो यादों में खोया रहता हूं ।
वो तो चली गई कब की जिंदगी से, अपनी यादें पता नहीं क्यों छोड़ गई ? वो टूटें,अधूरे वादें क्यों छोड़ गई? जिंदगी भर का साथ का वादा क्यों अधूरा छोड़ दिया? दिल क्यों टूटा छोड़ दिया?
"पहले हम अनकहे शब्द भी एक दूसरे के समझ लेते थे, लेकिन अब शब्द कह कर भी एक दूसरे को समझ नहीं पाते।"
एक शायरी सुनी थी हमने,
"उसने कहा, शायद खुदा को यहीं मंजूर होगा, लेकिन खुदा ने कहा, मैं तो मान जाता, लेकिन उसने कभी तुझे मांगा ही नहीं।"
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मुआविया ज़फ़र ग़ज़ाली मुस्तफ़ाई एक मनमोहक अति सुंदर व आकर्षक व्यक्ति हैं, अगर बात करें इनकी विशेषता की तो ये एक दार्शनिक, एक स्वतंत्र लेखक, एक कार्यकर्ता, एक प्रेरक वक्ता, एक समाज सुधारक, एक प्रभावशाली व्यक्ति, एक समाजवादी, एक स्वतंत्र लेखक, एक शोधकर्ता, एक भावुक कवि, एक उपन्यासकार, एक नाटककार, एक निबंधकार, एक पटकथा लेखक, एक लघु कहानी लेखक, एक कानूनी अध्ययन अनुसंधान केंद्र में शोधकर्ता एवम् मिस्र व ईरान के विश्व इस्लामी केंद्र से स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। इसके अलावा क़ुरैश और क़ुरैशी सादात के महान भव्य सुनहरा एवम् पवित्र परिवार से संबंधित हैं तथा पवित्र व्यक्तित्व इब्ने शाकिर-उल्लाह हुज़ूर सेठ शाह हाजी बरकतउल्लाह क़ुरैश क़ुरैशी नक़्शबंदी अलैहिर्रहमा बॉम्बे महाराष्ट्र के पोते हैं।
इनके कुछ छंद अति लोक प्रिय हुए हैं जैसे....
फ़िरौन का अंदाज़-ओ-लहजा हम को ना दिखाना
शाह हमने हर इक दौर के जाबिर से बगावत की है
नूर ही नूर के क़ुरआन से चेहरे पे वो नूरी आँखें
उनकी इंजील सी पलकों में खुली ज़बूरी आँखें
मैं हज़रत-ए-अ'ब्बास का नौकर हूँ
और सैय्यद-ए-हुसैन मेरे मालिक हैं
शाह टकरा गया वो मुझ से ईमान के लिए
फिर मिरे ईमां से उसका कुफ्र बिख़र गया
ग़ज़ाली बस यूँ तिरी याद में दिन-रात मगन रहता है
अल्लाह दिल धड़कना तिरी वहदत की सदा लगता है
शाह दिल ठंडा है अल्लाह के ज़िक्र से मिरा
सो देख इस बर्फ़ ने क्या आग लगा रक्खी है
इक अल्लाह है जो दिल में बसा रहता है
शाह ये ईमान है जो तन्हा नही होने देता
दिल में बुग्ज-ए-फ़ातिमा और ज़ुबां पर मुस्तफ़ा मुस्तफ़ा
तमाम इबादत को खा जाएगी इक शिक़ायत-ए-फ़ातिमा
दूर वाला भी हो अहले सुन्नत तो अपना भाई
घर में कोई गुस्ताख़ तो उसकी मैय्यत छोड़ दे
मेरे क़ल्ब पे बोझ रहा ज़हन भी परेशां हुआ
बुतपरस्तों को देखकर मेरा बड़ा नुक़्सा हुआ
जिस्म सस्ते है बोहोत ही सस्ते
इतने सस्ते की निकाह महंगे हैं
हमे फिर मिटाने की ज़ालिम साज़िश कर रहे हैं
अपनी औकात से बाहर की ख़्वाइश कर रहे हैं
ग़ज़ाली हमे ज़माने में ढूंढने वाले
एक दिन ज़माने में हम को ढूंढेंगे
शाह जाता है ख़ून उजले परों को समेट कर
ज़ख़्मों को अब गिनूँगा मैं कर्बल पे लेट कर
ना हुक़ूमत कभी मत उलझना ख़ुदाई से
ख़ुदाई बादशाहों से हुक़ूमत छीन लेती है
इसके अलावा आपने अपनी तन्हाई का इक अनोठा तथा अनोखा परिचय समाज को दिया था की,
मेरे साथ मेरी दुनियाँ में मेरी सबसे पुरानी साथी रहती है, मैं जब भी जहाँ से वापस आता हूँ या ख़ुद के अंदर से वापस आता हूँ, तो वो मेरा इस्तकबाल करती है मुझे गले लगाती है मुझे लाड करती है मुझे प्यार करती है इतना ही नही बल्कि घंटो-घंटो मेरे साथ बैठ कर मुझ से बाते करती है, क्या आपने नही देखा कितनी अनोखी है मेरी तन्हाई॥
इस जानकारी की पुष्टि अल्लामा हसन अली की किताब हुस्ने क़ायनात के करम नामे, हाफ़िज़ मख़दूम हुसैन के रिसाले हक़िकत के फैज़ नामे, मौलाना अबुल फ़ज़ल इमाम की किताब तिब्बियात के अहसान नामे, प्रोफेसर सीएनआर राव की किताब इंदजीत के शुभचिंतक पृष्ठ तथा सोलह अन्य पुस्तकों आदि से की गई है तथा यहां मुआविया ज़फ़र ग़ज़ाली मुस्ताफ़ाई का पूर्ण जीवन परिचय नही बताया गया है अनेकों जानकारी गुप्त रखी गई है। धन्यवाद॥
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helputrust · 1 month
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23.04.2024, लखनऊ |  हनुमान जयंती के पावन अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा चन्द्रशेखर आज़ाद बाल विद्या मंदिर, महामायानगर, तकरोही, लखनऊ में "पुष्प अर्पण एवं प्रसाद वितरण" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, चन्द्र शेखर आज़ाद बाल विद्या मंदिर के प्रबंधक श्री संतोष वर्मा एवं शिक्षकों द्वारा दीप प्रज्वलित किया गया तथा पवन पुत्र हनुमान जी की पूजा अर्चना कर सभी को प्रसाद वितरित किया गया |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने कहा कि, “हनुमान जयंती आध्यात्मिक रूप से भगवान हनुमान से जुड़ने और उनके गुणों को याद करने का एक अवसर है । अपार ताकत होने के बावजूद वह एक नदी की तरह शांत थे । उन्हें अपने कौशल पर कभी कोई गर्व नहीं रहा है और इसका उपयोग वो केवल दूसरों के हित के लिए करते है । यह त्यौहार हमें स्वयं को भगवान हनुमान के रूप में आध्यात्मिक और मानसिक रूप से विकसित होना सिखाता है । यह हमें भगवान हनुमान पर पूरा भरोसा बनाये रखते हुए कठिन परिस्थितियों में धैर्य और शांतचित्त रहना सिखाता है और इससे बाहर निकलने की योजना बनाना भी सिखाता है ।“
चन्द्र शेखर आज़ाद बाल विद्या मंदिर की शिक्षिका श्रीमती संगीता भट्ट ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का धन्यवाद करते हुए कहा कि, “जैसा कि आप सभी जानते हैं आज का दिन पवन पुत्र हनुमान जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है । हनुमान जी भगवान राम के परम भक्त हैं तथा बल, बुद्धि और विद्या के प्रतीक है | हमें भी हनुमान जी की तरह बलशाली एवं बुद्धिमान बनना चाहिए जिससे हम अपने समाज और देश पर आने वाले संकटों का डटकर सामना कर सकें | जय श्री राम |
अंत में श्री हर्षवर्धन अग्रवाल ने सभी का धन्यवाद करते हुए कहा कि "इस तरह के कार्यक्रम प्रत्येक स्कूल में आयोजित होने चाहिए जिससे विद्यार्थी भारत देश के आध्यात्मिक एवं पौराणिक इतिहास के बारे में जान सके |"
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, चन्द्र शेखर आज़ाद बाल विद्या मंदिर के प्रबंधक श्री संतोष वर्मा, प्रधानाध्यापिका श्रीमती सीमा वर्मा, शिक्षकों श्रीमती संगीता भट्ट, यासमीन फातिमा, सुश्री साक्षी, सुश्री अंजना, सुश्री अनीता, श्री अंशुमन, सुश्री अंजलि, सुश्री नीलम, सुश्री सभ्यता, शाहीना, सुश्री मानसी, श्री विकास, छात्र-छात्राओं तथा ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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myhindipoems · 6 months
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                पलट कर देखा...तो पाया...
  पीछे देखती हूँ, तो कुछ बातों पर हंसती हूँ,
की कुछ बातें कभी समझ नहीं आती और जो उन्हें याद कर मुस्कुराती हूं...
                            मुझे अपने में ही ऐसा अंतर दिखा,
                            जैसे मुझमें परिवर्तन लाने के लिए कोई मंतर फुंका ...
 मन से बच्ची थी, बच्ची हूं और बच्ची ही रहूंगी,
पर अब वो बचपन के दिन वापस कहां से लाऊंगी...
                            नियति ने मुझे लाखो रंग दिखाए,
                            मैंने उनको अपने जीवन के सतरंग बनाया...
मैं आज प्रसन्न तो हूं पर उसमे 'किंतु' खूब है,
आज तक, के पहले काल में 'परंतु' बहुत है...
                 मुझे वो पल वापस जीना है जिनमें कोई शर्त लागू नहीं थी,
                 जिनके मन मर्जियों के अलावा दूसरी कोई विचारधारा चालू नहीं थी...
  मैं प्रसन्न हूं और हमेशा रहूंगी,
और अपने आप से कभी नहीं भागूंगी ...
                                                                                 ~रेवती 🦚                                                                                     23/11/2023
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likhe-jo-khat-tujhe · 6 months
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #7. २१th नवंबर २०२३. मंगलवार.]
इन सर्द हवाओं में, इस सर्द मौसम में कुछ तो ऐसा है जो हकीकत से मिला देते है... मौसम हो, वक्त हो या इंसान बदल जाते है। बदलाव ज़िंदगी की ऐसी परछाई है जो अक्सर अंधेरों में रुला दिया करती है या कभी चाय पर हसा दिया करती है। कभी कभी हम उस बदलाव को अपनाने से इंकार कर देते है, मुकर जाते हैं की नही ये नही हो सकता ये हकीकत नही है मगर कब तक?
दो साल पहले जब हम अपना पुराना मकान छोड़ कर आ रहे थे तब मुझे फर्क नही पड़ा और आज भी नही पड़ता, ना उन लोगों से ना उस जगह से... ऐसी कोई याद बनी ही नही जो मुझे बांध सके। यादों की बंदिशों में रहने से अच्छा है में उन्हें दफना दु। अब जब वो सब याद करती हु तो एक सपना लगता है...
सही कहा,
ab vo galiyāñ vo makāñ yaad nahīñ
kaun rahtā thā kahāñ yaad nahīñ
-Ahmad Mushtaq
जब तक फर्क नही पड़ता तब तक चीजे सही रहती है, जब फर्क पड़ने लग जाए तब समझ लेना जिस चीज़ से फर्क पड़ने लगा है उसके बदलाव से या तो घाव मिलेगा या सबक।
ये मकान अब मुझे घर लगने लगा है, पहले से बेहतर है ये जगह।
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crazybutgood · 2 years
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Birthday fic (curlyy-hair-dont-care)
Happyyy birthdayyy @curlyy-hair-dont-care !!!! 🥳🥰❤️❤️❤️ I hope you have the bestest day and all the nice things because you deserve them so much 💖 I'm so grateful to call you my friend. All the hugs and love for you ❣️ I wrote you a smol fluffy drarry fic, in Hindi, samvaad style! I hope you'll like it~
Massive thanks to the lovely @whataboutmyfries for the beta and encouragement 💕
Please do not translate my fic. I'll eventually post an English translation myself!
Read here on ao3, or below the cut:
[मैं, स्कौरपियस, एक दिन पिताजी के पढ़ाई कक्ष में था। उनकी मेज़ पर अपनी भूली हुई किताब लेते समय, मैंने एक और किताब वहाँ पड़ी देखी। और वह ऐसी थी कि उसे देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ । मैं जल्दी से उसे उठाकर पापा को घर में दूँढने गया। वे मुझे रसोई में गुड़-मूँगफली खाते हुए मिले । ]
मैं : पापा ?
पापा : अरे, बेटा ! दहलीज़ पर यूँ झाँकते हुए क्यों खड़े हो ? अंदर आओ । देखो, आज शाम एक ठेले से जो मूँगफलियाँ मैंने खरीदी थीं, वे कितनी बढ़िया हैं! तुम भी इन्हें गुड़ के साथ चखो।
मैं : सच में यह बहुत अच्छी हैं । मगर पिताजी को अगर पता चला कि आप रात के खाने से पहले यह खा रहे हैं, तो वे कहेंगे कि आप अपना आहार बिगाड़ रहे हैं । वैसे भी आज आपका मनपसंद पुलाओ बना है ।
पापा : इसीलिए तो मैं फटाफट थोड़ी सी खा रहा हूँ, इससे पहले कि ड्रेको काम से लौट जाएँ । तुम उन्हें  बताना मत ! और चिंता मत करो, मैं पुलाओ खाने के लिए हमेशा तैयार हूँ । लो, तुम आराम से मेरे साथ मूँगफलियाँ तोड़ो—अरे, तुमने एक हाथ पीठ के पीछे क्यों छिपा रखा है? 
मैं : वो…मैं… 
पापा : परेशान मत हो। बताओ, बात क्या है?
मैं : (संकोची से छिपी हुई किताब उनके सामने पेश करते हुए ) मैं आपसे इसके बारे में पूछना चाहता था।
पापा : ओह ! यह तुम्हें कैसे मिली ? 
मैं : कल जो किताब मैं पिताजी के साथ पढ़ रहा था, वह उनके पढ़ाई कक्ष में छूट गयी । और उनकी  मेज़ पर यह कविताओं की पुस्तक भी पड़ी थी । मैं कैसे इससे हैरान ना होता ! ज़रा देखो , इसमें से कैसे रंग-बिरंगे काग़ज़ बाहर निकल रहे हैं । कुछ काग़ज़ इसमें मोढ़कर फ़साएँ भी गए हैं । और मैंने उसे खोला—ज़्यादा नहीं पढ़ा ! बस एक पन्ना । तब मैंने देखा कि उसमें कुछ बातें भी लिखीं थी ! यह तो पिताजी हरगिज़ नहीं करते । कुछ शब्द आपकी लिखावट में भी थे, तो मुझे लगा शायद आप इसके बारे में कुछ बता सकते हो।
पापा : सही पहचाना तुमने ! आओ, यहीं खाने की मेज़ पर बैठकर बात करते हैं । ज़रा गुड़ का डब्बा साथ ले आना ।
मैं : (बेसब्रता से) चलो, बैठ गए । 
पापा: अच्छा अच्छा , बताता हूँ । वैसे तो यह किताब तुम्हारे पिताजी एक ड्रॉर में सम्भाल कर रखते हैं । लेकिन कभी-कभी वे भावुक होकर उसे निकालकर पढ़ते हैं ।
मैं : ज़रूर यह आप दोनो के लिए ख़ास होगी !
पापा : बिलकुल । हमने होगवार्ट्स के आठवी साल में ही दोस्ती की थी , जब हमने पुस्तकालय में साथ पढ़ना ओर बात करना शुरू किया । कुछ हफ़्तों बाद मुझे पता चला की ड्रेको को कविताएँ बहुत पसंद हैं । मैंने जब यह जानकर खुद कविताएँ ढूँढी , मुझे यही किताब मिली । इसमें कई नगमे हैं जिन्हें पढ़कर मुझे ड्रेको का ख़्याल आया था । 
मैं: क्या फिर आपने पिताजी को दिखाई?
पापा: अरे नहीं ! काफी देर में, हमारी तीसरी डेट के बाद ही मुझे उन्हें दिखाने की हिम्मत मिली । मैंने उनके किताबों की देखरेख को ध्यान में रखते हुए उसमें केवल कुछ पोस्ट-इट चिपकाए । उन पर मैंने लिखा था कि कौन सी किताबें मुझे उनकी याद दिलाती हैं , और क्यों । 
मैं : फिर पिताजी ने क्या कहा ?
पापा: (हँसते हुए ) ऐसा बहुत कम होता है की उनके पास बोलने के लिए कोई शब्द नहीं होते—वह ऐसा एक पल था। फिर तीन दिन बाद उन्होंने मुझे चौंका दिया। मुझे सुबह नाश्ते के समय वही पुस्तक वापस दी, और मुझे लगा शायद मुझसे कोई गलती हो गयी है । लेकिन उन्होंने मुझे उसे खोलने को कहा, और फिर भाग गए ।
मैं: भाग गए ? शायद वो शर्मा गए होंगे ! ऐसा क्या था उसके अंदर ?
पापा: पहले तो मैंने किताब वहाँ पलटी जहाँ मैंने खुद पोस्ट-इट चिपकाए थे । उन्होंने पन्नों पर मेरी बातों का जवाब लिखा था ! और अपनी कुछ बातें भी लिखीं । वो भी पेंसिल से—तब तक उनको मेरी वजह से ‘ मगल स्टेशनरी ’ इस्तेमाल करने का चस्का लग गया था । थोड़ा और पलटते हुए मैंने अन्य पन्नों पर भी पेंसिल में उनके ख्याल देखे । मुझे आज तक मालूम नहीं कि क्यों उन्हें ख़ास इस किताब में लिखना वग़ैरा ठीक लगा । शायद उन्हें इस ज़रिए से मन की बातें करना आसान लगा । ख़ैर , ऐसा हुआ कि साल भर हम यह किताब एक दूसरे को देते रहे । यह भावनाएँ बयान करने का अच्छा तरीका तो था ही । उसके अलावा कभी किसी कविता से कोई अन्य कविता या कहानी का ख्याल आता, तो हम लिखकर उसका ध्यान रखते, फिर ढूँढकर एक साथ पढ़ते ।
मैं : और शायद आप उनको सुनाते भी ! जैसे मैंने आपको कभी-कभी आज भी करते सुना है।
पापा : तुम्हें तो सब पता है !
पिताजी : यह सब जासूसी उसने तुम्ही से सीखी होगी।
मैं : (पीछे मुड़ते हुए ) पिताजी ! आप अंदर कब आए ?
पिताजी : (पापा के पास जाते हुए ) बस अभी । यह सब क्या हो रहा है ? तुम्हारे पापा क्या बता रहे है तुम्हें ?
पापाः (मुस्कुराते हुए) यही, कि तुम्हारे लिए कितने नगमें याद किए हैं, और करता रहूँगा ।
पिताजी: (लाल गालों के साथ) ओह, बस करो।
मैं: (हँसी छिपाते हुए ) और इसके अंदर दबे कागज क्या हैं, पिताजी ?
पिताजी : कक्षा में उबते समय लिखी बात-चीत, और साथ रहने से पहले एक दूसरे को भेजे खत । अब अगर तुम्हें तसल्ली मिल गई हो, तो क्या तुम हमारी किताब वापस रख सकते हो ?
मैं : ओह, हाँ ज़रूर !
[ स्कौरपियस कविता संगठन लेकर कमरे से चला जाता है ।]
पिताजी : उसकी तो आज ऐश हो गई । बहुत होशियार है यह लड़का । और ऊपर से तुमसे बिगड़ा ।
पापा : जैसे तुम भी उसे अलग तरीकों से नहीं बिगाड़ते । जाने दो, प्यारा सा जिज्ञासु बच्चा है। मैंने सोचा तुम्हारे आने से पहले मैं उसे दो-चार बातें बता दूँ ।
पिताजी : हाँ, और दो-चार मूँगफलियाँ भी खा लो । वो तो दिख ही रहा है, तुम राज़ छिपाने में कितने अव्वल हो । 
पापा : ऐसा नहीं है! कुछ चीज़े मैं राज़ रख सकता हूँ, जैसे कि परसों हमारी सालगिराह के लिए मैंने क्या तैयार किया है। और तुम ज़रूर सालगिरह करीब होने की वजह से हमारी किताब पढ़ रहे होगे ।
पिताजी : (आश्चर्य से) तुम्हें कैसे पता ?
पापा : “कुछ बातें ऐसी होती हैं, जो कही नहीं जाती, सिर्फ समझी जाती है”।
पिताजी: ओफो, तुम और तुम्हारे फिल्मी डायलॉग! तुम्हारे साथ-साथ मुझे भी यह याद हो गए हैं, वो भी हिन्दी में, और मतलब के साथ ।
पापा : चलो आज रात हम सब पुलाओ खाते वक्त एक और फिल्म देखें जिसकी लाइनें मैं तुम्हें तंग करने के लिए रट सकूँ ?
पिताजी : (मज़ाक में आहें भरते हुए) ठीक है। मगर परसों का इंतज़ाम इससे बेहद बेहतर होना चाहिए !
पापा : (हँसते हुए) जो हुक्म, हुज़ूर ।
[ स्कौरपियस के आ जाने पर तीनों पुलाओ परोसकर, टीवी के सामने बैठकर खाते हुए एक मनोरंजक रात बिताते हैं।]
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