"क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?"
From पंच परमेश्वर by प्रेमचंद
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सेक्सी पत्नी को लम्बे लुं*ड वाले दोस्त से चु*वाया😌🤝
हेलो फ्रेंड्स मेरा नाम रोहित है बठिंडा पंजाब से ये मेरी 5वी कहानी है इसे पहले दोस्त या उसकी बहन की चुदाई या दोस्त के सामने उसकी बीवी की चुदाई को इतना पसंद करने के लिए धन्यवाद। कुछ लोग के कमेंट आते हैं की प्लीज मुझे भी हमें भाभी से मिलवा दो पर सॉरी दोस्तो मैं किसी की निजता के साथ समझौता नहीं कर सकता।
अब बिना किसी के आते हैं अपनी सेक्सी पत्नी को लम्बे लु*ड वाले दोस्त से चुडवे की कहानी पे। इसे ही मैं अपनी जीमेल आईडी इस्तेमाल कर रहा हूं। ऐसा ही हुआ था।
जब मैंने मेल खोला तो उसमे कुछ इसे लिखा हुआ था
हैलो रोहित मेरा नाम सौरभ है या मेरी बीवी का नाम कल्पना है मेरी उम्र 30 या उसकी उम्र 27 साल की है। हम आपके साथ अपना पहला अनुभव मतलब अपनी पहली बार सेक्स स्टोरी शेयर करना चाहते हैं क्या आप हमारी कहानी को लोगो को सुना दोगे।
मुझे कुछ उत्साह सा हुआ मेने सोचा इक नई अंतवासना कहानी मिल जाएगी या इक दोस्त की फंतासी भी पूरी हो जाएगी या कुछ लोगो को नया अनुभव भी हो जाएगा।
रोहित: हैलो हांजी मैं जुर आपकी कहानी को सुन्ना या सुनाना चाहूंगा😚
सौरभ: क्या हम व्हाट्सएप पर बात कर सोटे हैं
रोहित : जी बिलकुल फिर मेने उनको मैंने अपना व्हाट्सएप नंबर दिया
व्हाट्सएप पर..
सौरभ: हांजी माई मोगा पंजाब से संबंधित करता हूं मैं आपको बताना चाहता हूं कि केसे में अपनी पत्नी को उसके पहले कोयल के लिए मनाया।
रोहित: दैट्स नाइस मुजे व्यभिचारी पति कहानी बहुत अच्छी लगती है।
सौरभ: जेसा की मैंने आपको बताया मेरी पत्नी कल्पना की उम्र 27 साल है.वो दिखने में बहुत सुंदर या सेक्सी है उसका आकार 34 32 34 है उसके स्तन या गांड को देखकर कोई भी दीवाना हो जाता है। उसका रंग धुध की त्रा सफेद है अगर जोर से पक्दो तो निशान पद जाए। Read more
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बलिदान परम धर्म
मैं रोज सुबह आजकल देर से उठ रहा था, अपने पिता के साथ रहने का ये परिणाम हो गया था कि अब वो मेरे लिए नाश्ता बना दिया करते थे। बाबा के जाने के बाद से दादी माँ के साथ रहने लगीं और मैं और पिताजी मुंबई आ गए मेरे भाग्य सुधारने। घर के काम मैं कर लेता हूँ, और कभी कभी करता भी हूँ लेकिन जब तक मैं कॉफी इत्मीनान से हलक से नीचे उतार पाता हूँ, तब तक वे आधी दुनिया से जीत चुके होते हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि हमारे पिताजी के लिए कर्म सबसे ऊपर है, तो वे बिना सोचे काम करते ही जाते हैं, उन कामों मे अब उनके बेटे के लिए नाश्ता बनाना या उसके कपड़े प्रेस के लिए देना आम बात हो गई थी। ये सब उनकी दिनचर्या मे शामिल होता जा रहा था।
ऐसा नहीं है कि मैं पास खड़े सब देखूँ और मुझे लज्जा ना आए, मैं तो अंदर ही अंदर खुद को बहुत कोसता हूँ लेकिन आजकल दिन ऐसे हैं कि काम की थकावट के चलते मेरा शरीर मुझे दिन के अंत मे ज्यादा कुछ करने की अनुमति नहीं देता। और ये अपने आप मे एक बहाना लगने लगता है जिसके चलते दिमाग मन को खूब गालियां देता है।
एक दिन की बात है जब मैं प्रेस किये हुए कपड़ों को अलमारी मे रख रहा था, मैंने देखा कि प्रेस करने मे लापरवाही की गई है। मुझे ये बिल्कुल पसंद न आया और मैंने झट से पिताजी से शिकायत की। उन्होंने भी यही सोचा होगा कि एक तो इसका काम करो ऊपर से नखरे सुनो। लेकिन हमेशा की तरह उन्होंने इन भावों को अपनी शब्दावली से दूर रखा। कहने लगे, चलो किसी और प्रेसवाले को ढूंढते हैं। मैंने सिर हिलाकर प्रेस किये हुए कपड़े अलमारी मे रख दिए।
कुछ दिनों तक ये चलता रहा। दरअसल जब हम दिल्ली मे रहते थे, तो जीवन बहुत सरल हुआ करता था। मुंबई आने पर कठिनाईयां तो सामने आई, पर मैंने पाया कि उनसे भागने की जगह उन्हे तालाब समझ कर उसमे लेट जाओ तो तैरने मे मज़ा आने लगता है।
मुझे सज धज के टिंच होकर काम पर जाना बहुत अच्छा लगता था, तो अगर मेरी शर्ट ढंग से प्रेस न हुई हो तो आज भी बहुत चिढ़ मचती है। मुझे ऐसा लगने लगा कि हमारे प्रेसवालेने बहुत ज्यादा ही काम उठा लिया था और अब उससे ढंग से काम हो नहीं पा रहा था। लगातार शिकायतों के बाद एक दिन पिताजी ने मुझे डांटा, कि तुम खुद भी तो ढूंढ सकते हो एक नया प्रेसवाला।
माँ बाप की डांट हमेशा कडवे करेले की भांति मुख पर चार चाँटों की तरह लगती है। सारा अभिमान धरा का धरा रह जाता है और आप चींटी समान हो जाते हैं। आप जितना भी हीरो बन लें, एक बार उनका स्वर घूमा तो आप घूम जाते हैं। और मैंने ये पाया है कि उनकी डांट सच से परिपूर्ण होती है। और सच करेले की तरह (लास्ट टाइम आई चेक्ड) कड़वा ही होता है। पर करेला स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है।
जी हाँ, तो इस डांट के बाद मुझे लगा बात तो सही कह रहे हैं पर फिर भी मैं किसी को न ढूंढ पाया और इस बारे मे हमारी दोबारा बात नहीं हुई।
एक दिन सुबह 11 बजे उठने पर मैंने सुबह की कॉफी के बाद, नहाने से पहले कपड़े निकालकर रखना चाहा। मैंने जो देखा उससे मैं बहुत प्रसन्न हुआ। पिताजी की उँगलियाँ कीबोर्ड पर शताब्दी एक्स्प्रेस की तरह दौड़ रहीं थी। मैंने उनकी तरफ देखा तो वे मगन होकर लिख रहे थे और लिखते समय मैं उन्हे टोकने की गलती कभी नहीं करता था। एक लेखक इसके पीछे का कारण जरूर समझेगा।
अब मैं आपको बताता हूँ कि मैंने क्या देखा। सटीक किनारे, महसूस करने मे एकदम कड़क, चमचमाती और साफ सुथरी शर्ट जिसपर प्रेस बहुत अच्छे से हुआ था। मुझे बहुत खुशी हुई देखकर। मैंने आखिर मे पिताजी को बोल ही दिया कि अरे वाह, ये प्रेस वाला तो लगता है सीख गया। पिताजी पहले तो कुछ न बोले, थोड़ा मुस्कुराये और फिर कहा हाँ, आज आया था तो बता रहा था नया लड़का रख लिया है, वो गठरी थोड़ी ढीली बांधता है। ये कहकर वे वापस से लिखने लगे।
मैं खुशी खुशी नहाकर ऑफिस चल गया। शाम को घर आया तो अपनी वाली चाबी से घर का दरवाजा खोला। घर पर मैं अकेला था, पिताजी शाम को अक्सर मीटिंग और प्रोग्रामों मे जाते थे। चाबी खूंटी मे टाँगने के बाद जब मैंने जूतों वाली अलमारी खोली तो उसमे पीछे एक नया कपड़ा किसी चीज को ढ़क रहा था, कपड़ा उठाया तो वहाँ एक नई प्रेस रखी थी। प्रेसवाले ने जो नया लड़का रखा था, वो मुझे इस कदर भावुक कर देगा, ये कौन सोच सकता था।
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Premchand – Shaap | मुंशी प्रेमचंद – शाप | Story | Hindi Kahani #Premchand #MunshiPremchand
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खुशियों की धारI Flow of Happiness I # Story in Hindi #shorts video
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Watch the Food Vlogger's Hilarious Identity Mix-up. is a delightful Hindi comedy show on the ChanaJor OTT platform, promising a generous dose of mistaken identity, misunderstandings, and uproarious adventures.
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छोटे बच्चों की कहानी श्रद्धा और कैटी की दोस्ती Moral Stories In Hindi
छोटे बच्चों की कहानी श्रद्धा और कैटी
छोटे बच्चों की कहानी, छोटे बच्चों की मजेदार कहानियां, Bacchon Ke Liye Kahaniyan, Moral Stories In Hindi ! एक बार एक छोटे से गाँव में श्रद्धा नाम की एक छोटी लड़की रहती थी। श्रद्धा अपने दयालु हृदय और जानवरों, विशेषकर बिल्लियों के प्रति अपने प्यार के लिए जानी जाती थीं। वह हमेशा अपनी खुद की एक पालतू बिल्ली रखना चाहती थी, लेकिन उसका परिवार एक का खर्च नहीं उठा सकता…
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"सारी सृष्टि एक बिंदु से बनी है और एक बिंदु में समा गई, उसी तरह सुधा की यह भादों की घटाओं जैसी फैली हुई बेचैनी और गीली उदासी एक चंदर के ध्यान से उठी और उसी में समा गई।"
Trans.:
The whole creation was made of one point and merged into one point, in the same way Sudha's restlessness and blue sadness, spread like the clouds of monsoon, arising from focusing on Chandar and getting merged into him.
From गुनाहों का देवता by Dharmaveer Bharti
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आवाज़ें
वह जब भी मेरे पास आता था, उसकी एक ही तकलीफ रहती थी। वो मुझसे बार-बार यही कहता था कि डॉक्टर साहब कुछ भी करके ये शोर कम कर दीजिए। मैंने उसे कुछ दवाइयाँ भी दी थी लेकिन लगता है उसने वही किया जिसके लिए मैंने उसे सख्त मना किया था।
राहुल मेरे पास पहली बार तब आया था जब उसका स्कूल खत्म हुआ था और कॉलेज शुरू होने ही वाला था। पहले उसकी तकलीफें कम और शिकायतें ज्यादा थी। जब देखो कहता कान मे दर्द हो रहा है, उसने बताया था कि कोई व्यक्ति अजीब सी वेश भूषा मे उसके सामने आया और भीख मांगते-मांगते कान मे फूँक मारकर चल गया। मुझे ये बात बड़ी अटपटी सी लगी। उसकी माँ तो मानो तुरंत समझ गईं थी कि मेरे लड़के पर किसी ने टोटका कर दिया है और अब उसे एक अच्छे पंडित से मिलना चाहिए। मैंने अपने हासिल किये हुए ज्ञान से यही पाया कि राहुल की मानसिक स्थिति बिगड़ रही थी। उसे तरह तरह की आवाज़ें सुनाई देने लगीं थीं, मानो कोई उसे पुकार रहा हो, चिढ़ा रहा हो, गालियां दे रहा हो। वो हर समय परेशान रहने लगा। उसके दोस्त भी उसे पागल कहते और दूर भागते। मैंने उसे सीधी सलाह दी की "राहुल, ये आवाज़ें तुम्हारे दिमाग मे हैं, इन पर ज्यादा ध्यान मत दो और भूल कर भी इनका जवाब बिल्कुल मत देना वरना हालत बिगड़ सकती है"। उसे देखकर ऐसा लगा जैसे उसे मेरी बात समझ मे आ गई हो। लेकिन फिर भी उसने वही किया जिसके लिए मैंने उसे मन किया था, पता नहीं क्यों उसने मेरी बात नहीं मानी।
राहुल के कान का दर्द बढ़ता गया, और अब उसका कॉलेज मे भी ध्यान न लगता। वो जब फिरसे मेरे पास आया तब अपनी माँ और एक पंडित जी को साथ लाया था। पंडित मुझे पैनी आँखों से घूरने लगा और उसकी माँ ने तुरंत मेरे कैबिन के सोफ़े पर उसे लिटा दिया। मेरी असिस्टन्ट उनके पीछे पीछे अंदर आई, उसने मेरी तरफ देखा और मैंने उसे बाहर जाने का इशारा किया। देखने मे लग रहा था कि ये इनका घर है और मैं यहाँ कोई मेहमान हूँ। राहुल की हालत बहुत खराब थी। पंडित ने मुझे नजदीक बुलाया और राहुल का तापमान और दिल की धड़कने मापने को कहा। मैंने अकढ़ मे पहले उन्हे डांटना चाहा लेकिन स्थिति की गंभीरता देखते हुए मैंने कुछ नहीं बोला।
राहुल चिल्लाने लगा। कहता "ये आवाज़ें कहाँ से आ रही हैं! इन्हे रोको!"
बाहर मेरे बाकी मरीज ये तमाशा देखकर लौटने लगे। मुझे लगा मेरी बहुत बदनामी हो रही है। राहुल की माँ ने रोना शुरू कर दिया। पर मैंने साहस जुटा कर उनसे कहा कि ये कोई तरीका नहीं हुआ। आप लोग बाहर जाएँ यहाँ से नहीं तो मैं पुलिस को बुला दूंगा, ये मेरा क्लिनिक है। यहाँ मैं इस तमाशे की इजाजत नहीं दूंगा। बोलते ही मुझे लगा शायद नहीं बोलना चाहिए था। पंडित ने तुरंत अपने हाथों से राहुल को उठाया और कोई मंत्र पढ़ते पढ़ते वहाँ से बाहर चला गया। मैं भी उनके साथ बाहर निकला और अपने बाकी मरीजों के सामने ठेठ मे बोलने लगा "न जाने कहाँ से आ जाते हैं"। मेरे बाकी मरीजों को थोड़ी सी तसल्ली हुई और वे सब वापस या गए। खुसुर फुसुर शुरू हुई और मैंने भी हिस्सा लिया। अब सब ठीक लग रहा था। दिन की दिहाड़ी सुरक्षित थी। मैं वापस अपने काम मे लग गया।
कुछ दिनों बाद मुझे राहुल पार्क मे दिखा, वो अब व्हील चेयर पर था। उसके पीछे एक और आदमी खड़ा था जो शायद उसका भाई था। राहुल मुझे देखकर बहुत खुश हो गया। मैं उसके करीब गया, और जाकर घुटनों पर बैठ गया, बोला तुम्हारी अंधविश्वासी ��ाँ ने अगर ठीक तरह से तुम्हारा इलाज कराया होता तो शायद तुम्हें कुछ न हुआ होता।
"लेकिन बीमारी क्या थी?" पीछे खड़े आदमी ने मुसकुराते हुए पूछा। मेरे सामने राहुल का चेहरा लटक गया। मेरे आस पास सब नीला सा हो गया। वो आदमी मेरे पास आया और मेरे कान मे कुछ कहने की बजाय, फूँक मारकर राहुल को अपने साथ ले गया।
मेरी आँखें फिर उसी पार्क मे तीन से चार घंटे बाद खुलीं। एक चौकीदार मुझे अपने पैर से मारकर ये भांप रहा था कि मैं जिंदा हूँ या मर गया। शराबियों के लिए बचाया हुआ ताना उसने मुझपर मार दिया और फिर डांट-डपट कर चला गया। मैं भागता हुआ वहाँ से अपने घर चला गया।
कुछ दिनों बाद मैं अपने क्लिनिक पर ही बैठा कुछ काम कर रहा था। सामने से राहुल अंदर आया, जो अब अपने पैरों पर था। मैं थोड़ा चौंका। मैंने उससे हाल चाल पूछे तो उसने बताया कि अब आवाज़ें नहीं आती हैं। मैंने पार्क मे हुए हादसे के बारे मे पूछने की कोशिश की लेकिन न जाने क्यों मुझे शर्मिंदगी सी हुई। राहुल उठकर जाने लगा और दरवाजे के समीप पहुंचते ही क्षण भर के लिए रुका। अपनी जेब टटोलकर शायद फोन निकालना चाह रहा था। मेरा स्वभाव था कि मैं अक्सर अपने मरीजों को गेट तक छोड़कर आता था लेकिन जब मैंने उठने की कोशिश करी तो देखा कि मेरे पैर एक जगह जम से गए हैं। गर्दन के पीछे एक तेज हवा सुनाई दी। मैंने कुर्सी मोड़ कर पीछे देखा तो पार्क वाला आदमी फटे-फूटे कपड़ों मे खड़ा मुस्कुरा रहा था। देखकर लगा कोई भिकारी है। पीछे से राहुल ने कहा "आवाज़ें तो आएंगी, लेकिन उत्तर मत देना डॉक्टर साहब"। दोबारा पीछे मुड़कर देखा तो राहुल जा चुका था और दरवाजा धीरे धीरे अपनी गति से बंद हो रहा था...
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कंसिस्टेंट कैसे बने – Consistent kaise bane
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