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#नाचते
thebharatexpress · 1 year
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इंजीनियर की मौत: शादी में नाचते समय आया हार्ट अटैक, शादी में मच गया हड़कंप
दुर्ग भिलाई : भिलाई स्टील प्लांट के इंजीनियर दिलीप राउतकर को शादी समारोह में नाचते समय हार्ट अटैक आ गया, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना का लाइव वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। भिलाई स्टील प्लांट से मिली जानकारी के मुताबिक, दिलीप राउतकर दल्ली राजहरा में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग बीएसपी में असिस्टेंट इंजीनियर थे। दिलीप के दोस्त केशव जाम्बुलकर ने बताया कि 4 मई को उनकी भांजी की…
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rudrjobdesk · 2 years
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पलक झपकते ही धरती में समा गए नाचते बाराती, शादी की खुशी में ऐसा झूमें लोग की ढह गया डांस फ्लोर
पलक झपकते ही धरती में समा गए नाचते बाराती, शादी की खुशी में ऐसा झूमें लोग की ढह गया डांस फ्लोर
शादी-ब्याह को माहौल को भारत में ऐसे खास मौके पर कुछ अनोखा यादगार पल ना हो, ऐसा भला कैसे हो सकता है. विवाह की रस्मों से लेकर विदाई तक के बीच में न जाने कितने ही ऐसे मौके होते हैं जब या तो कई नाराज़ हो जाता है, कोई अव्यवस्था मुंह फाड़ देती है. किसी की शिकायते ख़त्म नहीं होतीं तो किसी नखरे सिर चढ़कर बोलने लगते हैं. फिर भी हर मौके को लोग खुशी-खुशी जी जाते हैं. शादी के एक ऐसे ही अनोखे पल को ज़िम्मेदार…
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satlokashram · 6 months
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रेखता भक्ति भगवान की बहुत बारीक है, शीश सौंपे बिना भक्ति नाहीं।। होय अवधूत सब आशा तन की तजै, जीवता मरै सो भक्ति पाही।। नाचना कूदना, ताल का पीटना, रांडियाँ का खेल है भक्ति नाहीं।। रैन दिन तारी करतार सों लागी रहै, कहै कबीर सतलोक जाही।। भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी सतगुरू रूप में अपने पाने यानि जीव को मोक्ष दिलाने की विधि स्वयं बताने के लिए प्रकट होते हैं। वे बता रहे हैं कि परमात्मा की भक्ति बहुत नाजुक है। बड़ी सावधानी से साथ करना चाहिए। यदि परमात्मा भक्ति के लिए सिर भी देना पड़े तो चूकना नहीं चाहिए। परमात्मा प्राप्ति के लिए जीवित मरना अनिवार्य है। नाचना-कूदना, ताल-मृदंग का बजाना रंडियां यानि हिजड़ों के खेल के समान है। जो जागरण में या अन्य धार्मिक कार्यक्रम में नाचते-कूदते हैं, वह भक्ति नहीं है। रात-दिन सुरति का तार करतार में लगा रहे, वह मोक्षदायक है।
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naveensarohasblog · 1 year
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#गरिमा_गीता_की_Part_105
हम काल के लोक में कैसे आए?
जिस समय क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) एक पैर पर खड़ा होकर तप कर रहा था। तब हम सभी आत्माऐं इस क्षर पुरुष पर आकर्षित हो गए। जैसे ��वान बच्चे अभिनेता व अभिनेत्री पर आसक्त हो जाते हैं। लेना एक न देने दो। व्यर्थ में चाहने लग जाते हैं। वे अपनी कमाई करने के लिए नाचते-कूदते हैं। युवा-बच्चे उन्हें देखकर अपना धन नष्ट करते हैं। ठीक इसी प्रकार हम अपने परमपिता सतपुरुष को छोड़कर काल पुरुष (क्षर पुरुष) को हृदय से चाहने लग गए थे। जो परमेश्वर हमें सर्व सुख सुविधा दे रहा था। उससे मुँह मोड़कर इस नकली ड्रामा करने वाले काल ब्रह्म को चाहने लगे। सत पुरुष जी ने बीच-बीच में बहुत बार आकाशवाणी की कि बच्चो तुम इस काल की क्रिया को मत देखो, मस्त रहो। हम ऊपर से तो सावधान हो गए, परन्तु अन्दर से चाहते रहे। परमेश्वर तो अन्तर्यामी है। इन्होंने जान लिया कि ये यहाँ रखने के योग्य नहीं रहे। काल पुरुष (क्षर पुरुष = ज्योति निरंजन) ने जब दो बार तप करके फल प्राप्त कर लिया तब उसने सोचा कि अब कुछ जीवात्मा भी मेरे साथ रहनी चाहिए। मेरा अकेले का दिल नहीं लगेगा। इसलिए जीवात्मा प्राप्ति के लिए तप करना शुरु किया। 64 युग तक तप करने के पश्चात् परमेश्वर जी ने पूछा कि ज्योति निरंजन अब किसलिए तप कर रहा है? क्षर पुरुष ने कहा कि कुछ आत्माएं प्रदान करो, मेरा अकेले का दिल नहीं लगता। सतपुरुष ने कहा कि तेरे तप के बदले में और ब्रह्माण्ड दे सकता हूं, परन्तु अपनी आत्माएं नहीं दूँगा। ये मेरे शरीर से उत्पन्न हुई हैं। हाँ, यदि वे स्वयं जाना चाहते हैं तो वह जा सकते हैं। युवा कविर् (समर्थ कबीर) के वचन सुनकर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्मा पहले से ही उस पर आसक्त थे। हम उसे चारों तरफ से घेरकर खड़े हो गए। ज्योति निरंजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्माण्ड प्राप्त किए हैं। वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हम सभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्माण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं। यदि पिता जी आज्ञा दें, तब क्षर पुरूष(काल), पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् (समर्थ कबीर प्रभु) के पास गया तथा सर्व वार्ता कही। तब कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूँगा। क्षर पुरूष तथा परम अक्षर पुरूष (कविर्िमतौजा) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए। सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंसात्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता हैं, हाथ ऊपर करके स्वीकृति दें। अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई। किसी ने स्वीकृति नहीं दी। बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात् एक हंस आत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तो उसकी देखा-देखी (जो आज काल(ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्माण्डों में फँसी हैं) हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी। परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है, मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूँगा। ज्योति निरंजन अपने 21 ब्रह्माण्डों में चला गया। उस समय तक यह इक्कीस ब्रह्माण्ड सतलोक में ही थे।
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तत्पश्चात् पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूप दिया परन्तु स्त्राी इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को (जिन्होंने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) के साथ जाने की सहमति दी थी) उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा (आदि माया/प्रकृति देवी/दुर्गा) पड़ा तथा सत्यपुरूष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है। जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना। पूर्ण ब्रह्म कर्विदेव (कबीर साहेब) ने अपने पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरूष के पास भिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी ने इस बहन के शरीर में उन सब आत्माओं को प्रवेश कर दिया है, जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी। इसको वचन शक्ति प्रदान की है, आप जितने जीव चाहोगे प्रकृति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी। यह कहकर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया।
युवा होने के कारण लड़की का रंग-रूप निखरा हुआ था। ब्रह्म के अन्दर विषय-वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गतिविधि प्रारम्भ की। तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूँगी। आप मैथुन परम्परा शुरू मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द से अण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हो, बहन-भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा। परन्तु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्राी इन्द्री (भग) प्रकृति को लगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी। उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देखकर सूक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्ण ब्रह्म कविर् देव से अपनी रक्षा के लिए याचना की। उसी समय कर्विदेव(कविर् देव) अपने पुत्र योग संतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला तथा कहा ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम ‘काल‘ होगा। तेरे जन्म-मृत्यु होते रहेंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरूष होगा तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्रणियों को प्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा। आप दोनों को इक्कीस ब्रह्माण्ड सहित निष्कासित किया जाता है। इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्माण्ड विमान की तरह चल पड़े। सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह शंख कोस (एक कोस लगभग 3 कि.मी. का होता है) की दूरी पर आकर रूक गए।
विशेष विवरण:- अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।
पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरूष, अकालपुरूष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरूष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।
परब्रह्म जिसे अक्षर पुरूष भी कहा जाता है। यह वास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात शंख ब्रह्माण्डों का स्वामी है।
ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, क्षर पुरूष तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है जो केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी है। अब आगे इसी ब्रह्म (काल) की सृष्टि के एक ब्रह्माण्ड का परिचय दिया जाएगा जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगेः- ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव।
ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्माण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म (क्षर पुरूष) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है। जो ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मा है, वह एक ब्रह्माण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री (स्वामी) है। इसे त्रिलोकिय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है, उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकिय ब्रह्मा कहा है। इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव, महाशिव, महाविष्णु भी कहा है।
श्री विष्णु पुराण में प्रमाण:- चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230-231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहाः- जिस अजन्मा सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य, अन्त, स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते। (श्लोक 83)
जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जो पुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूप से सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है। (श्लोक 86)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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sirfdabba · 6 months
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हम फिर मिलेंगे।
पता नही कहा, कैसे, किस तरह,
पर हम फिर मिलेंगे।
ऐसे मिलेंगे जैसे गुलमोहर की टहनियों पे खेलती,
उछलती, कूदती, गले लग कर रोती,
दो गिलेहेरिया मिलती हो।
शायद किसी झूमते शहर में,
या शहद से लदे किसी पेड़ के नीचे,
तेज गाड़ियोवाले बड़े से रास्ते के बगल में बसे
किसी अमरूद के खेत में,
या चूड़ियों की रेडी पे।
हम फिर मिलेंगे।
किसी गुलदस्ते की दुकान पे।
हम दोनो, खुद के लिए
गजरा खरीदने आयेंगे।
किताब के लिए एक फूल,
और टेबल पे रखे उस कांच के गिलास के लिए एक गेंदा।
वो गजरा लेते वक्त, किसी गुलाब पे हमारी नजर जायेगी,
उस पल में, हम एक दूसरे को देखेंगे,
और मुस्कुरा देंगे।
पता नही कहा, कैसे, किस तरह,
पर हम फिर मिलेंगे।
शायद किसी चश्में की दुकान में,
या किसी पुराने गार्डन की बेंच पे,
झूले पे, सीसौ पे या किसी ट्रेन के लेडीज डिब्बे में।
जब मैं, अपनी कविता की आखिरी पंक्ति के लिए "एक" शब्द
ढूंढ रही होंगी, ढूंढते ढूंढते कही और देख रही होंगी,
मेरा, गलती से, तुम्हे धक्का लगेगा, और,
तुम्हारे बस्ते से "मानशास्त्र" की एक किताब नीचे गिरेगी,
पिछले जन्म की बात करनेवाला कोई पन्ना खुलेगा,
और उस पल में,
हम दोनो उसे देखेंगे,
और मुस्कुरा देंगे।
पता नही कहा, कैसे, किस तरह,
पर हम फिर मिलेंगे।
जब मिलेंगे, तब...
मैं दिल खोलना जानती होंगी,
तू दिल को सहलाना जानती होंगी,
हम हंसना जानते होंगे,
बेवजह, बेमतलब घूमना जानते होंगे।
थोड़ा कम डरते होंगे,
थोड़ा और खिलते होंगे,
थोड़ा खुलके रोते होंगे,
थोड़ा और मुस्कुराते होंगे।
हम हस्ते हुए मिलेंगे,
हम नाचते हुए मिलेंगे,
मन से घावों को, इनायत से,
कानो में घूमकों सा,
पहने हुए मिलेंगे।
पता नही कहा, कैसे, किस तरह,
पर हम फिर मिलेंगे।
ऐसे, जैसे,
खुद से - बेहद, बेइंतेहा, बेशुमार मोहब्बत करनेवाली
दो लड़कियां मिलती हो।
संस्कृती।
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#life
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aniketbiradar · 1 year
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Day 04
The messages keep on relentlessly in a flood and i can only interpret that as a dam bursting open. Bursting open with the collective warmth and affection of all well wishers, who in my naive manner, was so unaware of. The words of praise and of affection of bearing and admiration is overwhelming and honest and pure.
I wish it never ends and i wish that i am there always to acknowledge it in great and absolute humility.
Today was a happy day. It started at 9 am. Almost 10 hours ago after my last post on the blog, the last day of the year 2022 rolled around, and since it was the last day of the year, I was sitting down and writing. Suddenly I had to go out for some household work, and had to stop writing the blog for a while.Came back soon and surprisingly managed to finish all the work by lunch.
I still remember hearing that poem as a child as the last day of the year-वो कल भी भुखा सोया था फुटपाथ में अचानक खूब पटाखे चले रात में, झुमते-चिल्लाते नाचते लोगो को देखा तो हर्षाया पास बैठी ठिठुरती माँ के पास आय बता न माई क्या हुआ हैं क्या बात हैं माँ बोली बेटा आज साल की आखरी रात हैं कल नया साल आएगा बेटा बोला माँ क्या होता हैं नया साल अरे सो जा मेरे लाल मै भीख मांगती हुं तू हर रोज रोता हैं साल क्या हम जैसो की जिंदगी में कुछ भी नया नही होता हैं.
This poem was written when I was 11 years old. At that time I neither had a mobile phone nor could I use a telephone. I listened to it on TV which was in black and white. I don't remember the poet of this poem but I like to listen to this poem on the last day of every year.
I hope you enjoy the blogs I write.
I am still uneducated by this medium, but I will try to broadcast my thoughts further as the system is studied and the days gradually change.
My love and regards to all
Aniket Biradar.
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iskconchd · 2 years
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श्रीमद्‌ भगवद्‌गीता यथारूप 12.8 मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय । निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः ॥ १२.८ ॥ TRANSLATION मुझ भगवान् में अपने चित्त को स्थिर करो और अपनी सारी बुद्धि मुझमें लगाओ । इस प्रकार तुम निस्सन्देह मुझमें सदैव वास करोगे । PURPORT जो भगवान् कृष्ण की भक्ति में रत रहता है, उसका परमेश्र्वर के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है । अतएव इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं कि प्रारम्भ से ही उसकी स्थिति दिव्य होती है । भक्त कभी भौतिक धरातल पर नहीं रहता - वह सदैव कृष्ण में वास करता है । भगवान् का पवित्र नाम तथा भगवान् अभिन्न हैं । अतः जब भक्त हरे कृष्ण कीर्तन करता है, तो कृष्ण तथा उनकी अन्तरंगाशक्ति भक्त की जिह्वा पर नाचते रहते हैं । जब वह कृष्ण को भोग चढ़ाता है, जो कृष्ण प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करते हैं और इस तरह इस उच्छिष्ट (जूठन) को खाकर कृष्णमाय हो जाता है । जो इस प्रकार सेवा में ही नहीं लगता, वह नहीं समझ पाता कि यह सब कैसे होता है, यद्यपि भगवद्गीता तथा अन्य वैदिक ग्रंथों में इसी विधि की संस्तुति की गई है । ----- Srimad Bhagavad Gita As It Is 12.8 mayy eva mana ādhatsva mayi buddhiṁ niveśaya nivasiṣyasi mayy eva ata ūrdhvaṁ na saṁśayaḥ TRANSLATION Just fix your mind upon Me, the Supreme Personality of Godhead, and engage all your intelligence in Me. Thus you will live in Me always, without a doubt. PURPORT One who is engaged in Lord Kṛṣṇa’s devotional service lives in a direct relationship with the Supreme Lord, so there is no doubt that his position is transcendental from the very beginning. A devotee does not live on the material plane – he lives in Kṛṣṇa. The holy name of the Lord and the Lord are nondifferent; therefore when a devotee chants Hare Kṛṣṇa, Kṛṣṇa and His internal potency are dancing on the tongue of the devotee. When he offers Kṛṣṇa food, Kṛṣṇa directly accepts these eatables, and the devotee becomes Kṛṣṇa-ized by eating the remnants. One who does not engage in such service cannot understand how this is so, although this is a process recommended in the Bhagavad-gītā and in other Vedic literatures. -----
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abhishekravat · 2 years
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Day 24
Shubham, Vadodara                July 29, 2022                Fri 12:56 PM
ॐ नमः शिवाय
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It all begins from a shiva, live with a shiva, and concludes in a shiva.
The glorious path it is. The name which we celebrate numerous times in our life in numerous different ways but not a single time do we get over it.
How amazing is this?
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हिंदू जीवनशैली , में कैलाश को शिव का वास कहा गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह नाचते हुए या बर्फ में छिपे हुए वहां बैठे हैं। इसका मतलब है कि उन्होंने अपना ज्ञान वहां भर दिया। जब आदियोगी ने पाया कि हर सप्तऋषि ने ज्ञान के एक-एक पहलू को ग्रहण कर लिया है और उन्हें कोई ऐसा इंसान नहीं मिला, जो सातों आयामों को ग्रहण कर सके, तो उन्होंने अपने ज्ञान को कैलाश पर्वत पर रख देने का फैसला किया। ताकि योग के सभी सात आयाम, जीवन की प्रक्रिया को जानने के सातों आयाम एक ही जगह पर और एक ही स्रोत में सुरक्षित रहें। कैलाश धरती का सबसे बड़ा रहस्यमय पुस्तकालय बन गया – एक जीवित पुस्तकालय, सिर्फ जानकारी ही नहीं, बल्कि जीवंत!
जब कोई इंसान आत्मज्ञान पा लेता है और उसका अनुभव या बोध सामान्य बोध से परे चला जाता है, तो अक्सपर ऐसा होता है कि वह अपने बोध को अपने आस-पास के लोगों में संचारित नहीं कर सकता। उसका सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा ही संचारित किया जा सकता है। ऐसा बहुत ही कम होता है कि किसी गुरु को ऐसे लोग मिलें जिन्हें वो खुद को पूरा संचारित कर पाए।
तो आप इस सारे ज्ञान को कहां छोड़ते हैं। आप नहीं चाहते कि यह ज्ञान नष्ट हो जाए। इसलिए, हजारों सालों से, आत्मज्ञानी लोग हमेशा कैलाश की ओर जाते रहे हैं और अपने ज्ञान को एक ऊर्जा रूप में वहां जमा करते रहे हैं। उन्होंने इस पर्वत को एक आधार रूप में इस्तेमाल किया। इसी वजह से दक्षिण भारतीय आध्यात्मिकता में हमेशा से कहा गया है कि अगस्त्य मुनि, जो रहस्यवाद या आध्यात्मिकता के इस रूप का आधार हैं, कैलाश के दक्षिणी छोर पर रहते हैं। बौद्धों का कहना है कि उनके तीन मुख्य बुद्ध इस पर्वत पर रहते हैं। जैनियों के मुताबिक उनके चौबीस तीर्थंकरों में से पहले तीर्थंकर ऋषभ कैलाश पर रहते हैं।
एक साधक के लिए, कैलाश का मतलब इस धरती पर परम स्रोत को स्पर्श करना है। जो रहस्यवाद, की खोज में हैं, उनके लिए यही उपयुक्त जगह है। ऐसी कोई और जगह नहीं है।
https://isha.sadhguru.org/mahashivratri/hi/shiva/the-presence-of-shiva/
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God bless all of you...   Stay happy...
Har Har Mahadev
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arpitverma · 2 years
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विवाह में ज्ञानहीन नाचते हैं।
सामान्य विधि से विवाह करो । इस गंदे लोक (काल के लोक) में एक पल का विश्वास नहीं कि कब बिजली गिर जाए
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shippersark · 2 days
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rudrjobdesk · 2 years
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म्यूज़िक बजते ही झूमकर नाच उठे फ्लेमिंगों के बच्चे, थिरकते कदमों को देख आएगा खूब मज़ा
म्यूज़िक बजते ही झूमकर नाच उठे फ्लेमिंगों के बच्चे, थिरकते कदमों को देख आएगा खूब मज़ा
खुशी, मस्ती, मज़ा, फन जो भी कह लें, लेकिन इस पर केवल किसी खास का अधिकार ही नहीं होता. जब जो चाहे वो मस्त में मगन हो सकता है. इंसान हो, जीव हो, जानवर हो या पक्षी. हर किस में एक मस्तीखोर मन होता है. जो मौका मिलते ही मैदान में कूद पड़ता है. ठीक वैसे ही जैसे उन छोटे फ्लैमिंगोज़ ने किया. उनकी मस्ती देख कोई भी उनकी तरह ही मस्ती करना चाहेगा. Wildlife viral series में देखिए बेबी फ्लेमिंगो का ज़बरदस्त…
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राधे राधे भाई बहनों
रोज की तरह आज
फिर एक नए विषय को
लेकर चर्चा करते हैं,
जिसका नाम है
"चलो गांव की ओर"
बीते कुछ समय से खेती की
बहुत ज्यादा उपेक्षा होने लगी!
इसका प्रमुख कारण है
हमारे देश की युवा पीढ़ी का
शहर की और रूख!
जिसकी वजह से हमारे
खेत खलिहान बंजर होने की
स्थिति में आ गए!
नौकरी की तलाश में हम
अधिकतर शहर का रुख करते हैं!
जबकि वास्तविकता यह है
इस नौकरी से ज्यादा
धन कमा सकते
अपने खेत खलिहान से!
अब समय आ गया है दोस्तों
वापस चलो अपने गांव की ओर,
जिन खेत खलिहानों को
खोदकर अपने पूर्वज
मिट्टी से सोना निकालते थे!
कुछ समय के लिए हम
बहक गए थे,
शहर की चकाचौंध में!
और भूल गए थे
खेती की ताकत को,
पंगु बना दिया हमारे को
इस शहर की चकाचौंध ने!
सही मायने में देखा जाए तो
हम काम चोर भी हो गए,
इस शहर की विलासिता में!
बहक गए थे हम शहर की
आधुनिक मॉडल में,
जिस परिवार में हम
सभी सम्मिलित रहते थे,
उस परिवार को मिटा दिया
शहर के आधुनिक मॉडल ने!
भाईचारे को खो दिया हमने
शहर में रोजी-रोटी की
जुगाड़ भरी भाग दौड़ में!
फिर से गुलाम होने की
स्थिति में आ गए हम
इन पूंजीपतियों के माहौल में!
पहले राजा महाराजाओं की गुलामी
फिर अंग्रेजों की गुलामी,
और अब अपने नेताओं की
और पूंजीपतियों की गुलामी!
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दोस्तों कुछ नहीं रखा
इस माहौल में चलो वापस
अपने गांव की ओर!
------------------------------------
संभालो अपने पूर्वजों  के
गैती और पावड़ा
चलो अपने खेत की ओर!
दोस्तों अपनी खेती की ताकत को
फिर से पहचानना पड़ेगा!
इन पूंजीपतियों को
अपने इशारों पर नचाना होगा,
धरती मां के साथ
पसीना हम बहाते हैं,
माल हम पैदा करते हैं,
और अपना निचोड़
यह पूंजीपति ले जाते हैं!
दोस्तों अपनी ताकत को
फिर से पहचानना होगा
आधुनिक तकनीक के साथ
फिर से हमें खेत खलिहान पर
नए सृजन करने होंगे!
नई तकनीक से
फसलों की पैदावार को
उन्नत तरीके से बढ़ना होगा!
साथ ही जिस पैदावार
को हम उपजाते है,
उस पैदावार को हमें रोकने की
क्षमता पैदा करनी होगी!
दलालों और आढतियों की
मनमानी को खत्म करना होगा!
सभी किसान भाई एक हो जाए,
मजदूर भाई एक हो जाएं,
तो इन पूजींपतियों को
हमारे इशारो पर नाचना होगा!
यह कोई सपना नहीं हकीकत है,
और इसे साकार करने की
शक्ति हम सभी में है!
लेकिन फर्क सिर्फ इतना है,
हम अपनी शक्ति को
पहचान नहीं पा रहे हैं!
मिलजुल कर आपसी सहयोग
बढ़ाने की भावना मन में
जागृत नहीं हो पा रही!
मैं यहां किसी से दुश्मनी
करने के लिए आपको 
भ्रमित नहीं करना चाहता!
मेरा एक ही उद्देश्य है 
हम अपनी मेहनत का
प्रतिफल पूरा प्राप्त करें!
और वह तभी संभव है
जब सब मजदूर और किसान भाई
अपनी शक्ति को पहचान कर
आपस में एक दूसरे का
सहयोग करना सीख जाएंगे!
हम अपने फायदे के लिए
पूंजीपतियों के इशारे पर
अपने भाइयों का अहित नहीं करेंगे,
इस विचारधारा को
अपने खून में बसाना होगा,
----------------------------
मेरी इस विचारधारा से
किसी को आघात पहुंचा है तो,
इसके लिए मैं
दिल से क्षमा मांगता हूं!
------------------------------
इसी को ध्यान में रखते हुए,
मैंने बहुत पहले एक
कविता लिखी है,
शायद आपको पसंद आए!
"आओ दोस्तों चले गांव की ओर"
कब तक यूं बेकार घूमते रहोगे,
सदियां गुजर गई करते हुए,
गुलामी पूंजीवाद की!
युग बीत गए नाचते हुए,
कठपुतली बनकर
किसी के हाथ की!
भीड़ का हिस्सा बनकर,
क्यों आस लगाए
यूं औरों की!
क्षमता को अपनी
पहचान कर निकल पड़ो
खेत खलियान पर!
खोदकर सीना
धरती मां का,
भरदो पसीना
इसके आंचल में!
नहीं करेगी निराश
कर देगी बहार
तुम्हारे जीवन में!
स्वविवेक व स्वरचित मन के शब्द
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राधेश्याम खटीक
भीलवाड़ा (राजस्थान)
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naveensarohasblog · 2 years
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#मुसलमाननहींसमझेज्ञानकुरआन_Part106 के आगे पढिए.....)
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#मुसलमाननहींसमझेज्ञानकुरआन_Part107
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन"
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पेज नंबर - 264-268
‘‘हम काल के लोक में कैसे आए ?’’
जिस समय क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) एक पैर पर खड़ा होकर तप कर रहा था। तब हम सभी आत्माऐं इस क्षर पुरुष पर आकर्षित हो गए। जैसे जवान बच्चे अभिनेता व अभिनेत्री पर आसक्त हो जाते हैं। लेना एक न देने दो। व्यर्थ में चाहने लग जाते हैं। वे अपनी कमाई करने के लिए नाचते कूदते हैं। युवा-बच्चे उन्हें देखकर अपना धन नष्ट करते हैं। ठीक इसी प्रकार हम अपने परमपिता सतपुरुष को छोड़कर काल पुरुष (क्षर पुरुष) को हृदय से चाहने लग गए थे। जो परमेश्वर हमें सर्व सुख सुविधा दे रहा था। उससे मुँह मोड़कर इस नकली ड्रामा करने वाले काल ब्रह्म को चाहने लगे। सत पुरुष जी ने बीच-बीच में बहुत बार आकाशवाणी की कि बच्चो तुम इस काल की क्रिया को मत देखो, मस्त रहो। हम ऊपर से तो सावधान हो गए, परन्तु अन्दर से चाहते रहे। परमेश्वर तो अन्तर्यामी है। इन्होंने जान लिया कि ये यहाँ रखने के योग्य नहीं रहे। काल पुरुष (क्षर पुरुष = ज्योति निरंजन) ने जब दो बार तप करके फल प्राप्त कर लिया तब उसने सोचा कि अब कुछ जीवात्मा भी मेरे साथ रहनी चाहिए। मेरा अकेले का दिल नहीं लगेगा। इसलिए जीवात्मा प्राप्ति के लिए तप करना शुरु किया। 64 युग तक तप करने के पश्चात् परमेश्वर जी ने पूछा कि ज्योति निरंजन अब किसलिए तप कर रहा है? क्षर पुरुष ने कहा कि कुछ आत्माएं प्रदान करो, मेरा अकेले का
दिल नहीं लगता। सतपुरुष ने कहा कि तेरे तप के बदले में और ब्रह्माण्ड दे सकता हूं, परन्तु अपनी आत्माएं नहीं दूँगा। ये मेरे शरीर से उत्पन्न हुई हैं। हाँ, यदि वे स्वयं जाना चाहते हैं तो वह जा सकते हैं। युवा कविर् (समर्थ कबीर) के वचन सुनकर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्मा पहले से ही उस पर आसक्त थे। हम उसे चारों तरफ से घेरकर खड़े हो गए। ज्योति निरंजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्माण्ड प्राप्त किए हैं। वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हम सभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्माण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं। यदि पिता जी आज्ञा दें, तब क्षर पुरूष(काल), पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् (समर्थ कबीर प्रभु) के पास गया तथा सर्व वार्ता कही। तब कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूँगा। क्षर पुरूष तथा परम अक्षर पुरूष (कविर्िमतौजा) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए। सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंसात्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता हैं, हाथ ऊपर करके स्वीकृति दें। अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई। किसी ने स्वीकृति नहीं दी। बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात् एक हंस आत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तो उसकी देखा-देखी (जो आज काल(ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्माण्डों में फँसी हैं) हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी। परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है, मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूँगा। ज्योति निरंजन अपने 21ब्रह्माण्डों में चला गया।
उस समय तक यह इक्कीस ब्रह्माण्ड सतलोक में ही थे। तत्पश्चात् पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूप दिया परन्तु स्त्री इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को (जिन्होंने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) के साथ जाने की सहमति दी थी) उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा (आदिमाया/प्रकृति देवी/दुर्गा) पड़ा तथा सत्यपुरूष ने कहा कि पुत्री
मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है। जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना। पूर्ण ब्रह्म कर्विदेव (कबीरसाहेब) ने अपने
पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरूष के पास भिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी ने इस बहन के शरीर में उन सब आत्माओं को प्रवेश कर दिया है, जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी। इसको वचन शक्ति प्रदान की है, आप जितने जीव चाहोगे प्रकृति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी। यह कहकर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया। युवा होने के कारण लड़की का रंग-रूप निखरा हुआ था। ब्रह्म के अन्दर विषय-वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गतिविधि प्रारम्भ की। तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूँगी। ��प मैथुन परम्परा शुरू मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द से अण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हो, बहन-भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा। परन्तु ज्योतिनिरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्राी
इन्द्री (भग) प्रकृति को लगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी। उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देखकर सूक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्ण ब्रह्म कविर् देव से अपनी रक्षा के लिए याचना की। उसी समय कर्विदेव(कविर् देव) अपने पुत्रा योग संतायन अर्थात् ��ोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला तथा कहा ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम ‘काल‘ होगा। तेरे जन्म-मृत्यु होते रहेंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरूष होगा तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्रणियों कोप्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा। आप दोनों को इक्कीस ब्रह्माण्ड सहित निष्कासित किया जाता है। इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्माण्ड विमान की तरह चलपड़े। सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक ��े सोलह शंख कोस (एक कोस लगभग 3 कि.मी. का होता है) की दूरी पर आकर रूक गए। विशेष विवरण:- अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।
1. पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरूष, अकालपुरूष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरूष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।
2. परब्रह्म जिसे अक्षर पुरूष भी कहा जाता है। यह वास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात शंख ब्रह्माण्डों का स्वामी है।
3. ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, क्षर पुरूष तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है जो केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी है। अब आगे इसी ब्रह्म (काल) की सृष्टि के एक ब्रह्माण्ड का परिचय दिया जाएगा जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगेः- ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव। ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्माण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म (क्षर पुरूष) स्वयं
तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है। जो ब्रह्म का पुत्रा ब्रह्मा है, वह एक ब्रह्माण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री (स्वामी) है। इसे त्रिलोकिय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है, उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकिय ब्रह्मा कहा है। इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव, महाशिव, महाविष्णु भी कहा है। श्री विष्णु पुराण में प्रमाण:- चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230-231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहाः-
जिस अजन्मा सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य, अन्त, स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते।(श्लोक 83)
जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जो पुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूप से सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है।(श्लोक 86)
( शेष भाग कल )
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abhinews1 · 20 days
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जीएलबीयन्स ने पार्श्व गायक सुखविंदर सिंह की धुनों पर नृत्य किया
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जीएलबीयन्स ने पार्श्व गायक सुखविंदर सिंह की धुनों पर नृत्य किया
अपनी जादुई आवाज से करोड़ों भारतीयों के दिलों में जगह बनाने वाले पार्श्व गायक सुखविंदर सिंह ने शुक्रवार की शाम जीएल बजाज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस मथुरा में ऐसा माहौल बनाया कि हर कोई झूमने पर मजबूर हो गया। एक के बाद एक जय हो, अज्जा अज्जा गुल्लक फोड़े, होले होले हो जाएगा प्यार, बीड़ी जलाए जिगर से पिया जैसे गाने बजाकर विद्यार्थियों को जोश से भर दिया। जीएल बजाज के सालाना कार्यक्रम 'टूनव-2024' में शुक्रवार शाम संगीत की ऐसी महफिल सजी कि मंच के सामने मौजूद हजारों छात्र-छात्राएं सुपरहिट गायक सुखविंदर सिंह के साथ मस्ती में नाचते-गाते नजर आए. इस संगीत सभा में पार्श्व गायक सुखविंदर सिंह ने एक के बाद एक हिंदी गानों की दमदार प्रस्तुतियां दीं. जैसे ही थिएटर के सुरों के जादूगर सिंह ने रीमिक्स म्यूजिक के साथ 1998 की सुपरहिट फिल्म दिल से का गाना चल छैयां-छैयां और फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर का गाना जय हो बजाया तो छात्र खुशी से नाचने लगे।हिंदी गानों के बाद सुखविंदर सिंह ने पंजाबी गानों की ओर रुख किया और चोरी-चोरी मेरा दिल ले गया…गाकर माहौल को मस्ती से भर दिया। दर्शक हर जगह नाचते रहे और 'वन्स मोर, वन्स मोर' का शोर संगीतमय माहौल में घुल गया। हालात ऐसे थे कि कोई बैठकर डांस कर रहा था तो वहीं हजारों छात्र-छात्राएं खड़े होकर डांस कर रहे थे. पार्श्व गायक सुखविंदर सिंह ने मथुरा नगरी और जीएल बजाज ने रंगमंच के विद्यार्थियों की सराहना की। मंचीय कार्यक्रम के बाद संक्षिप्त बातचीत में पार्श्व गायक सुखविंदर सिंह ने कहा कि संगीत की कोई जाति या धर्म नहीं होता. जब कोई गाना लिखा जाता है तो वह कलाकार या गायक को ध्यान में रखकर नहीं लिखा जाता, बल्कि फिल्म की कहानी और कलाकारों की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर गाना तैयार किया जाता है। उन्होंने कहा कि गाना चुनते समय वह इस बात का बहुत गंभीरता से ख्याल रखते हैं कि गाने के बोल में कोई गाली-गलौज न हो. हिंदी गानों के बाद सुखविंदर सिंह ने पंजाबी गानों की ओर रुख किया और चोरी-चोरी मेरा दिल ले गया…गाकर माहौल को मस्ती से भर दिया। दर्शक हर जगह नाचते रहे और 'वन्स मोर, वन्स मोर' का शोर संगीतमय माहौल में घुल गया। हालात ऐसे थे कि कोई बैठकर डांस कर रहा था तो वहीं हजारों छात्र-छात्राएं खड़े होकर डांस कर रहे थे. पार्श्व गायक सुखविंदर सिंह ने मथुरा नगरी और जीएल बजाज ने रंगमंच के विद्यार्थियों की सराहना की। मंचीय कार्यक्रम के बाद संक्षिप्त बातचीत में पार्श्व गायक सुखविंदर सिंह ने कहा कि संगीत की कोई जाति या धर्म नहीं होता. जब कोई गाना लिखा जाता है तो वह कलाकार या गायक को ध्यान में रखकर नहीं लिखा जाता, बल्कि फिल्म की कहानी और कलाकारों की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर गाना तैयार किया जाता है। उन्होंने कहा कि गाना चुनते समय वह इस बात का बहुत गंभीरता से ख्याल रखते हैं कि गाने के बोल में कोई गाली-गलौज न हो. जहां तक ​​सुखविंदर सिंह की बात है तो उन्हें बचपन से ही गाने का शौक रहा है. उन्होंने आठ साल की उम्र में स्टेज परफॉर्मेंस देना शुरू कर दिया था. जब वह 13 साल के हुए तो उन्होंने गायक मलकीत सिंह के लिए तूतक तूतक तूतिया गाना बनाया। सुखविंदर सिंह न केवल एक बेहतरीन गायक हैं बल्कि एक शानदार संगीतकार भी हैं। उन्होंने कई फिल्मों में अपना संगीत दिया है। सुखविंदर सिंह ने बॉलीवुड में फिल्म कर्मा से डेब्यू किया था। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज वह सफलता के शिखर पर हैं। सुखविंदर सिंह स्टेज शो करने में भी माहिर हैं.हली बार उन्होंने स्टेज पर लता मंगेशकर के साथ जुगलबंदी की थी। सुखविंदर ने अपने करियर में कई दिग्गज संगीत निर्देशकों के साथ भी काम किया है, जिनमें देश के जाने-माने संगीतकार एआर रहमान भी शामिल हैं। दोनों ने अपने फैंस को कई सुपरहिट गाने दिए, जिसमें फिल्म दिल से का गाना चल छइयां-छइयां भी शामिल है. सुखविंदर सिंह और एआर रहमान की जोड़ी ने फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर का गाना जय हो बनाया था, जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था. इस गाने को ऑस्कर अवॉर्ड से भी नवाजा गया था. सुखविंदर सिंह न केवल एक अच्छे गायक हैं बल्कि एक दयालु इंसान भी हैं। उन्होंने मंच से नीचे आकर एजुकेशनल ग्रुप के चेयरमैन डॉ. रामकिशोर अग्रवाल और उनकी पत्नी श्रीमती विनय अग्रवाल से आशीर्वाद लिया। इस मौके पर डॉ. अग्रवाल ने उनकी जमकर तारीफ की. कार्यक्रम में आर.के. एजुकेशनल ग्रुप के उपाध्यक्ष श्री पंकज अग्रवाल, उनकी पत्नी श्रीमती अंशू अग्रवाल, प्रबंध निदेशक श्रीमती मनोज अग्रवाल, जीएल बजाज के सीईओ श्री कार्तिकेय अग्रवाल, महाप्रबंधक श्री अरुण अग्रवाल, जीएल बजाज मथुरा की निदेशक प्रोफेसर नीता अवस्थी, के.डी. मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर के डीन एवं प्राचार्य डॉ. आर.के. अशोक, के.डी. डेंटल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के डीन डॉ. मनेश लाहौरी, बड़ी संख्या में प्रोफेसर, डॉक्टर, कर्मचारी एवं छात्र उपस्थित थे। गायक सुखविंदर सिंह का स्वागत आर.के. ने किया। एजुकेशनल ग्रुप के उपाध्यक्ष श्री पंकज अग्रवाल एवं प्रबंध निदेशक श्री मनोज अग्रवाल ने पुष्पगुच्छ भेंट कर किया।
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rupeshkumar9060 · 28 days
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पांचों विकार सताते हैं मनचाहा
नाच नाचते हैं
है साहब ना बच पाते हैं माया ने
जाल बिछाया है
भक्ति की भिक्षा दे दिजो एक दास
भिकारी आया है,
#GodMorningSaturday
#Santrampaljimaharaji
#SantRampalJiQuotes
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