मुझे तन्हा न कर जाना
मुझे तन्हा न कर जाना
कहने में देर हो गई कि
मुझे तन्हा न कर जाना।
तन्हा हैं रात-दिन और फ़ज़ाएँ
कहाँ खोजें, कैसे भूल जायें?
अब है तन्हाई की उस मंज़िल पर,
जहाँ मालूम नहीं
यह मकाँ है, क़ब्र है, या मज़ार है?
जी रहे है क्योंकि मर-मर कर,
जीने के तरीक़े हज़ार है।
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रोशनी के जहर को यूँ पी रहे हैं,
तेरे प्यार के बिना ज़िन्दगी जी रही है,
अकेलेपन से तो अब डर नहीं लगता हमें,
तेरे जाने के बाद यूँ ही तन्हा जी रह रहे हैं।
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देखूँ जो आसमाँ से तो इतनी बड़ी ज़मीं.....इतनी बड़ी ज़मीन पे छोटा सा एक शहर
छोटे से एक शहर में सड़कों का एक जाल.... सड़कों के जाल में छुपी वीरान सी गली
वीराँ गली के मोड़ पे तन्हा सा इक शजर....तन्हा शजर के साए में छोटा सा इक मकान
छोटे से इक मकान में कच्ची ज़मीं का सहन ..कच्ची ज़मीं के सहन में खिलता हुआ गुलाब
खिलते हुए गुलाब में महका हुआ बदन ......महके हुए बदन में समुंदर सा एक दिल
उस दिल की वुसअ'तों में कहीं खो गया हूँ मैं ..यूँ है कि इस ज़मीं से बड़ा हो गया हूँ मैं ।।
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कहे चंदा -" मेरा यारा, मैं तन्हा एक तारा "
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जब मैं तुम्हें नशात-ए-मोहब्बत ना दे सका,
ग़म मैं कभी सुकून-ए-रिफ़ाक़त न दे सका
जब मेरे सब चराग-ए-तमन्ना हवा के हैं
जब मेरे सारे ख्वाब कोई बेवफा के हैं
फिर मुझे चाहने का तुम्हें कोई हक नहीं
तन्हा कराहने का तुम्हें कोई हक नहीं ।
- जॉन एलिया
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उसके कानो में झुमके झचते है, मानों जैसे बच्चे चांद को देख हस्ते है, उसे देख रंग भी अब फीके लगते है
उसके नाक पर सुंदर सी वो बाली, कमाल हैं रेशम सी जुल्फे वो काली,
अनजानी कशिश जगाती है उसके होटों की वो लाली, और अदाएं तो उफ्फ मदहोश करने वाली
काजल से सजी नशीली वो आंखें, उसकी मुस्कुराहट और उसकी बातें,
उसकी करीबी में कुछ तो बात है, अब तन्हा नही लगती ये राते
शौक से मेंहदी वो कुछ यूं लगाती हैं, गजरे अपने बालो में सजाती है
जब सज धज कर वो आती है, एक हसीन सी कयामत ढाती है
कलाई में चूड़ियां और पैरो में वो पायल, ना जाने कितनो को करती होगी घायल
सजना संवरना हो या नही, उसमे कुछ तो है कायल।
-Om
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तन्हा कब थी
तन्हा कब थी मैं, साथ तन्हाई तो थी।
खामोशी कब थी,रोती शहनाई तो थी।
डूबने ही नही दिया साँसो के बोझ ने,
समुद्र मे भी वर्ना, ऐसी गहराई तो थी।
जीने के लिये क्यू सहारा ढूंढते हम
ग़म थे,यादें थी ,तेरी बेवफाई तो थी।
सोचती हू कहां भूल आई हू तुम को
कुछ बाते खुद से ,मैने छिपाई तो थी।
उठते देखा था जब जनाजा वफा का
खुशक आँखे मेरी ,डबडबाई तो थी।
एक तेरे न आने से ,रुक गई थी साँसे
इंतजार मे तेरे, पलके बिछाई तो थी।
एक खिजां का मौसम ठहर सा गया है
जिंदगी मे कभी यू,बहार आई तो थी।
Surinder Blackpen
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when asha bhosle sang "इक तुम ही नहीं तन्हा, उलफ़त में मेरी रुसवा, इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं"
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चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है (part 1)
-hasrat mohani
बा-हज़ाराँ इज़्तिराब ओ सद-हज़ाराँ इश्तियाक़
तुझ से वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है
बार बार उठना उसी जानिब निगाह-ए-शौक़ का
और तिरा ग़ुर्फ़े से वो आँखें लड़ाना याद है
तूझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मिरा
और तिरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है
खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अ'तन
और दुपट्टे से तिरा वो मुँह छुपाना याद है
जान कर सोता तुझे वो क़स्द-ए-पा-बोसी मिरा
और तिरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था
सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है
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तन्हा तन्हा सफ़र
जहान में आए तन्हा,
जाना है यहाँ से तन्हा।
तन्हाई अकेलापन नहीं, है एकांत।
ग़र मिलना है ख़ुदा से, ख़ुद से।
तन्हाईयाँ हीं मुलाक़ात हैं करातीं।
अक्सर जीवन का सफ़र होता है क़ाफ़िले में,
फिर भी होती हैं दिल में तनहाइयाँ।
मिलो सबों से,
पर करो अपने साथ सफ़र।
ना जाने क्यों ख़ूबसूरत तन्हाईयाँ हैं बदनाम।
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रात इतनी तन्हा क्यू होती है
किस्मत से अपनी सबको शिकायत क्यों होती है
अजीब खेल खेलती है किस्मत
जिसे हम पा नहीं सकते
उसी से मोहब्बत क्यू होती है
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इक चांद मैं भी अधूरा था, इक शाम वो भी अधूरी थी,
इक रात मैं भी तन्हा था, इक मुलाकात वो भी कस्तूरी थी,
हुई यूं बात की,
इश्क़ तो मुक्कमल हूं उससे,
पर
इक मैं इंसान मामूली सा, इक वो कल्पना मयूरी थी,
इक मैं रैन काला सा और एक वो भोर नूरी थी ।।
- अय्यारी
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ह�� बार मेरे सामने आती रही हो तुम
हर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं
तुम कौन हो ये ख़ुद भी नहीं जानती हो तुम
मैं कौन हूँ ये ख़ुद भी नहीं जानता हूँ मैं
तुम मुझ को जान कर ही पड़ी हो अज़ाब में
और इस तरह ख़ुद अपनी सज़ा बन गया हूँ मैं
तुम जिस ज़मीन पर हो मैं उस का ख़ुदा नहीं
पस सर-ब-सर अज़िय्यत ओ आज़ार ही रहो
बेज़ार हो गई हो बहुत ज़िंदगी से तुम
जब बस में कुछ नहीं है तो बेज़ार ही रहो
तुम को यहाँ के साया ओ परतव से क्या ग़रज़
तुम अपने हक़ में बीच की दीवार ही रहो
मैं इब्तिदा-ए-इश्क़ से बे-मेहर ही रहा
तुम इंतिहा-ए-इश्क़ का मेआ'र ही रहो
तुम ख़ून थूकती हो ये सुन कर ख़ुशी हुई
इस रंग इस अदा में भी पुरकार ही रहो
मैं ने ये कब कहा था मोहब्बत में है नजात
मैं ने ये कब कहा था वफ़ादार ही रहो
अपनी मता-ए-नाज़ लुटा कर मिरे लिए
बाज़ार-ए-इल्तिफ़ात में नादार ही रहो
जब मैं तुम्हें नशात-ए-मोहब्बत न दे सका
ग़म में कभी सुकून-ए-रिफ़ाक़त न दे सका
जब मेरे सब चराग़-ए-तमन्ना हवा के हैं
जब मेरे सारे ख़्वाब किसी बेवफ़ा के हैं
फिर मुझ को चाहने का तुम्हें कोई हक़ नहीं
तन्हा कराहने का तुम्हें कोई हक़ नहीं
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देखूँ जो आसमाँ से तो इतनी बड़ी ज़मीं
इतनी बड़ी ज़मीन पे छोटा सा एक शहर
छोटे से एक शहर में सड़कों का एक जाल
सड़कों के जाल में छुपी वीरान सी गली
वीराँ गली के मोड़ पे तन्हा सा इक शजर
तन्हा शजर के साए में छोटा सा इक मकान
छोटे से इक मकान में कच्ची ज़मीं का सहन
कच्ची ज़मीं के सहन में खिलता हुआ गुलाब
खिलते हुए गुलाब में महका हुआ बदन
महके हुए बदन में समुंदर सा एक दिल
उस दिल की वुसअ'तों में कहीं खो गया हूँ मैं
यूँ है कि इस ज़मीं से बड़ा हो गया हूँ मैं
~ अशफ़ाक़ हुसैन
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देखूँ जो आसमाँ से तो इतनी बड़ी ज़मीं
इतनी बड़ी ज़मीन पे छोटा सा एक शहर
छोटे से एक शहर में सड़कों का एक जाल
सड़कों के जाल में छुपी वीरान सी गली
वीराँ गली के मोड़ पे तन्हा सा इक शजर
तन्हा शजर के साए में छोटा सा इक मकान
छोटे से इक मकान में कच्ची ज़मीं का सहन
कच्ची ज़मीं के सहन में खिलता हुआ गुलाब
खिलते हुए गुलाब में महका हुआ बदन
महके हुए बदन में समुंदर सा एक दिल
उस दिल की वुसअ'तों में कहीं खो गया हूँ मैं
यूँ है कि इस ज़मीं से बड़ा हो गया हूँ मैं
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मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा
तुम्हारा फ़ैसला था याद होगा
बहुत से उजले उजले फूल ले कर
कोई तुम से मिला था याद होगा
बिछी थीं हर तरफ़ आँखें ही आँखें
कोई आँसू गिरा था याद होगा
उदासी और बढ़ती जा रही थी
वो चेहरा बुझ रहा था याद होगा
वो ख़त पागल हवा के आँचलों पर
किसे तुम ने लिखा था याद होगा
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