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#समझाना
aryaraj08 · 2 years
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जहाँ #दूसरों को #समझाना #कठिन हो जाए वहाँ #खुद को #समझा लेना #बेहतर होता है (at अब मैं खुद अपने आप से बात कर लेता हूं तो उसी में खुश रहता हूं) https://www.instagram.com/p/CfWa4axPj48/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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khemulnews · 5 months
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मुस्कान अधरों पर लिए ,
क्यूँ मैं सदा चुप ही रहा ?
पावन तुम्हारे प्रेम को ,
क्यों मोह था मैंने कहा ?
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shakuntalasworld · 11 months
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helputrust · 15 days
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लखनऊ, 26.04.2024 । माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मुहिम आत्मनिर्भर भारत को साकार करने तथा महिला सशक्तिकरण हेतु गो कैंपेन (अमेरिकन संस्था) के सहयोग से हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में कुम्हरावाँ इंटर कॉलेज, लखनऊ में आत्मरक्षा कार्यशाला आयोजित की गई जिसमे 49 छात्राओं ने मेरी सुरक्षा, मेरी ज़िम्मेदारी मंत्र को अपनाते हुए आत्मरक्षा के गुर सीखे तथा वर्तमान परिवेश में आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को जाना ।
कार्यशाला का शुभारंभ राष्ट्रगान से हुआ तथा कुम्हरावाँ इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य श्री शिवेन्द्र कुमार सिंह, शिक्षक श्री बृजेश कुमार  एवं रेड ब्रिगेड से श्री अजय पटेल, तंजीम अख्तर ने दीप प्रज्वलित किया ।
कुम्हरावाँ इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य श्री शिवेन्द्र कुमार सिंह ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का धन्यवाद करते हुए कहा कि, “हमारे गाँवों की महिलाएं भी अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं अगर उन्हें सही दिशा और सही ज्ञान मिले । महिलाओं को किसी भी प्रकार की समस्या का सामना करने हेतु आत्मविश्वास एवं आत्मबल को मजबूत करने की जरूरत होती है | वर्तमान समय में महिलाओं को शिक्षित बनाने के साथ-साथ उन्हें अपनी आत्मरक्षा की भी जानकारी देनी चाहिए । यह न केवल उन्हें स्वतंत्र बनाएगा बल्कि उन्हें समाज में सम्मान और भी दिलाएगा । हमें समाज को समझाना होगा कि महिलाएं सिर्फ भारत देश की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की आधारशिला हैं इसलिए हमें महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए साथ मिलकर काम करना होगा ताकि हमारा देश और समाज दोनों ही प्रगति की राह पर आगे बढ़ सकें ।“
कार्यशाला में रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख श्री अजय पटेल ने बालिकाओं को आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को बताते हुए कहा कि, "किसी पर भी अन्याय तथा अत्याचार किसी सभ्य समाज की निशानी नहीं हो सकती हैं, फिर समाज के एक बहुत बड़े भाग यानि स्त्रियों के साथ ऐसा करना प्रकृति के विरुद्ध हैं | महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ देश में हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं तथा सरकार निरंतर महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं चला रही है लेकिन यह अत्यंत दुख की बात है कि हमारा समाज 21वीं सदी में जी रहा है लेकिन कन्या भ्रूण हत्या व लैंगिक भेदभाव के कुचक्र से छूट नहीं पाया है | आज भी देश के तमाम हिस्सों में बेटी के पैदा होते ही उसे मार दिया जाता है या बेटी और बेटे में भेदभाव किया जाता है | महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा होती है तथा उनको एक स्त्री होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है | आत्मरक्षा प्रशिक्षण समय की जरूरत बन चुका है क्योंकि यदि महिला अपनी रक्षा खुद करना नहीं सीखेगी तो वह अपनी बेटी को भी अपने आत्म सम्मान के लिए लड़ना नहीं सिखा पाएगी | आज किसी भी क्षेत्र में नजर उठाकर देखियें, नारियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति में समान की भागीदार हैं | फिर उन्हें कमतर क्यों समझा जाता है यह विचारणीय हैं | हमें उनका आत्मविश्वास बढाकर, उनका सहयोग करके समाज की उन्नति के लिए उन्हें साहस और हुनर का सही दिशा में उपयोग करना सिखाना चाहिए तभी हमारा समाज प्रगति कर पाएगा | आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित करने का हमारा यही मकसद है कि हम ज्यादा से ज्यादा बालिकाओं और महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखा सके तथा समाज में उन्हें आत्म सम्मान के साथ जीना सिखा सके |"
आत्मरक्षा प्रशिक्षण की प्रशिक्षिका तंज��म अख्तर ने लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाते हुए लड़कों की मानसिकता के बारे में अवगत कराया तथा उन्हें हाथ छुड़ाने, बाल पकड़ने, दुपट्टा खींचने से लेकर यौन हिंसा एवं बलात्कार से किस तरह बचा जा सकता है यह अभ्यास के माध्यम से बताया |
कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाण पत्र वितरित किये गये ।
कार्यशाला में कुम्हरावाँ इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य श्री शिवेन्द्र कुमार सिंह, शिक्षकों श्री बृजेश कुमार, श्री जय प्रकाश, छात्राओं, रेड ब्रिगेड ट्रस्ट से श्री अजय पटेल, तंजीम अख्तर तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही l
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brijpal · 2 months
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#सत_भक्ति_संदेश
कबीर-मुरगी मुल्लासों कहै, जबह करत है मोहि। साहब लेखा माँगसी, संकट परिहें तोहि ।।
जिस समय बकरी को मुल्ला मारता है तो वह बेजुबान प्राणी आँखों में आंसू भर कर म्यां-म्यां करके समझाना चाहता है कि हे मुल्ला मुझे मार कर पाप का भागी मत बन । जब परमेश्वर के न्याय अनुसार लेखा किया जाएगा उस समय तुझे बहुत संकट का सामना करना पड़ेगा।
📲अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj " Youtube Channel पर विजिट करें।
Watch sadhna TV_7:30pm Daily 👀
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neilperrysme · 2 years
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क्यूं तुम समझ पाए नहीं
kyu tum samajh paye nahi
पावन प्रणय की रीत को
paawan pranay ki reet ko
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क्यूं मोह तुमने कह दिया
kyu moh tumhne keh diya
निश्छल हृदय की प्रीत को
nishchhal hriday ki preet ko
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मुस्कान अधरों पर लिए
muskan adhron par liye
क्यूं मैं सदा चुप ही रहा
kyun main sada chup hi raha
पावन तुम्हारे प्रेम को
paawan tumhare prem ko
क्यूं मोह था मैंने कहा
kyun moh tha maine kaha
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हर बात समझाना सदा
har baat samjhana sada
संभव नही राधे
sambhav nahi radhe
समय समझाएगा
samay samjhayega
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तुमको कदाचित लग रहा
tumko kadachit lag raha
की मुझको तुमने खो दिया
ki mujhko tumne kho diya
झांको स्वयं के मन में तुम
jhanko swayam ke mann mein tum
मैं तो तुम्ही मे बस रहा
main toh tumhi me bas raha
राधे
radhe
तुम प्रीत हो, मनमीत हो
tum preet ho, manmeet ho
मेरे हृदय का,संगीत हो
mere hriday ka, sangeet ho
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– tum prem ho
mohit lalwani | shekhar astitva | surya raj kamal
ive found all these paintings on pinterest if you're the rightful owner please let me know ill remove it or give credits according to your wishes
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naveensarohasblog · 1 year
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📖📖📖
#गहरीनजरगीता_में_part_299
हम पढ़ रहे है पुस्तक "गहरी नजर गीता में"
पेज नंबर 584-586
अध्याय 18 का श्लोक 40
न, तत्, अस्ति, पृथिव्याम्, वा, दिवि, देवेषु, वा, पुनः,
सत्त्वम्, प्रकृतिजैः, मुक्तम्, यत्, एभिः, स्यात्, त्रिभिः, गुणैः।।40।।
अनुवाद: (पृथिव्याम्) पृथ्वीमें (वा) या (दिवि) आकाशमें (वा) अथवा (देवेषु) देवताओं में (पुनः) फिर कहीं भी (तत्) वह ऐसा कोई भी (सत्त्वम्) सत्व (न) नहीं (अस्ति) है (यत्) जो (प्रकृतिजैः) प्रकृतिसे उत्पन्न (एभिः) इन (त्रिभिः) तीनों (गुणैः) गुणोंसे (मुक्तम्) रहित (स्यात्)
हो।(40)
अध्याय 18 का श्लोक 41
ब्राह्मणक्षत्रियविशाम्, शूद्राणाम्, च, परन्तप,
कर्माणि, प्रविभक्तानि, स्वभावप्रभवैः, गुणैः।।41।।
अनुवाद: (परन्तप) हे परन्तप! (ब्राह्मणक्षत्रियविशाम्) ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के (च) तथा (शूद्राणाम्) शूद्रोंके (कर्माणि) कर्म (स्वभावप्रभवैः) स्वभाव से उत्पन्न (गुणैः) गुणोंके द्वारा (प्रविभक्तानि)
विभक्त किये गये हैं।(41)
अध्याय 18 का श्लोक 42
शमः, दमः, तपः, शौचम्, क्षान्तिः, आर्जवम्, एव, च,
ज्ञानम्, विज्ञानम्, आस्तिक्यम्, ब्रह्मकर्म, स्वभावजम्।।42।।
अनुवाद: (शमः) छूआ छूत रहित तथा सुख दुःख को प्रभु कृप्या जानना (दमः) इन्द्रियों का
दमन करना (तपः) धार्मिंक नियमों के पालन के लिये कष्ट सहना (शौचम्) बाहर-भीतर से शुद्ध
रहना अर्थात् छलकपट रहित रहना (क्षान्तिः) दूसरोंके अपराधोंको क्षमा करना (आर्जवम्) मन,
इन्द्रिय और शरीर को सरल रखना (आस्तिक्यम्) शास्त्र विधि अनुसार भक्ति से परमेश्वर तथा
उसके सत्लोक में श्रद्धा रखना (ज्ञानम्) प्रभु भक्ति बहुत आवश्यक है। नहीं तो मानव जीवन व्यर्थ
है, यह साधारण ज्ञान तथा पूर्ण परमात्मा कौन है, कैसा है? उसकी प्राप्ति की विधि क्या है इस
प्रकार का ज्ञान (च) और (विज्ञानम्) परमात्मा के तत्वज्ञान को जानना तथा अन्य तीनों वर्णों को
शास्त्रा विधि अनुसार साधना समझाना (एव) ही (ब्रह्मकर्म) ब्रह्म के विषय में कत्र्तव्य कर्म को जानने
वाले ब्रह्मण के कर्म हैं। जो (स्वभावजम्) स्वभाव जनित होते हैं क्योंकि भगवान प्राप्ति के विषय में
भक्त के स्वाभाविक कर्म हैं।(42)
अध्याय 18 का श्लोक 43
शौर्यम्, तेजः, धृतिः, दाक्ष्यम्, युद्धे, च, अपि, अपलायनम्,
दानम्, ईश्वरभावः, च, क्षात्राम्, कर्म, स्वभावजम्।।43।।
अनुवाद: (श���र्यम्) शूर-वीरता (तेजः) तेज (धृतिः) धैर्य (दाक्ष्यम्) चतुरता (च) और (युद्धे)
युद्धमें (अपि) भी (अपलायनम्) न भागना (दानम्) दान देना (च) और (ईश्वरभावः) पूर्ण
परमात्मा मे रूचि स्वामिभाव ये सब के सब ही (क्षात्राम्) क्षत्रियके (स्वभावजम्) स्वाभाविक (कर्म)
कर्म हैं।(43)
अध्याय 18 का श्लोक 44
कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यम्, वैश्यकर्म, स्वभावजम्,
परिचर्यात्मकम्, कर्म, शूद्रस्य, अपि, स्वभावजम्।।44।।
अनुवाद: (कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यम्) खेती, गऊ रक्षा और उदर के लिए परमात्मा प्राप्ति का
सौदा करना ये (वैश्यकर्म, स्वभावजम्) वैश्यके स्वाभाविक कर्म हैं तथा (परिचर्यात्मकम्) सब
वर्णोंकी सेवा तथा पूर्ण प्रभु की भक्ति करना (शूद्रस्य) शूद्रका (अपि) भी (स्वभावजम्) स्वाभाविक
(कर्म) कर्म है।(44)
अध्याय 18 का श्लोक 45
स्वे, स्वे, कर्मणि, अभिरतः, संसिद्धिम्, लभते, नरः,
स्वकर्मनिरतः, सिद्धिम्, यथा, विन्दति, तत्, श्रृणु।।45।।
अनुवाद: (स्वे,स्वे) अपने-अपने स्वाभाविक (कर्मणि) व्यवहारिक कर्मों तथा सत् भक्ति रूपी
कर्मों में (अभिरतः) तत्परता से लगा हुआ (नरः) मनुष्य (संसिद्धिम्) परम सिद्धि को (लभते) प्राप्त हो
जाता है (स्वकर्मनिरतः) अपने स्वाभाविक कर्ममें लगा हुआ मनुष्य (यथा) जिस प्रकारसे (सिद्धिम्)
परम सिद्धिको (विन्दति) प्राप्त होता है (तत्) उस विधि को तू (श्रृणु) सुन।(45)
अध्याय 18 का श्लोक 46
यतः, प्रवृत्तिः, भूतानाम्, येन्, सर्वम्, इदम्, ततम्,
स्वकर्मणा, तम्, अभ्यच्र्य, सिद्धिं, विन्दति, मानवः।।46।��
अनुवाद: (यतः) जिस परमेश्वरसे (भूतानाम्) सम्पूर्ण प्राणियों की (प्रवृतिः) उत्पत्ति हुई है और
(येन) जिससे (इदम्) यह (सर्वम्) समस्त जगत् (ततम्) व्याप्त है (तम्) उस परमेश्वर की
(स्वकर्मणा) अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा अर्थात् हठ योग न करके सांसारिक कार्य करता हुआ
(अभ्यच्र्य) पूजा करके (मानवः) मनुष्य (सिद्धिम्) सिद्धि को (विन्दति) प्राप्त हो जाता है।(46)
अध्याय 18 का श्लोक 47
श्रेयान्, स्वधर्मः, विगुणः, परधर्मात्, स्वनुष्ठितात्,
स्वभावनियतम्, कर्म, कुर्वन्, न, आप्नोति, किल्बिषम्।।47।।
अनुवाद: (विगुणः) गुण रहित (स्वनुष्ठितात्) स्वयं मनमाना अर्थात् शास्त्रा विधि रहित अच्छी प्रकार आचरण किए हुए (परधर्मात्) दूसरेके धर्म अर्थात् धार्मिक पूजा से (स्वधर्मः) अपना धर्म अर्थात् शास्त्र विधि अनुसार धार्मिक पूजा (श्रेयान्) श्रेष्ठ है (स्वभावनियतम्) अपने वर्ण के
स्वभाविक कर्म अर्थात् जो भी जिस क्षत्राी, वैश्य, ब्राह्मण व शुद्र वर्ण में उत्पन्न है (कर्म) कर्म तथा भक्ति कर्म (कुर्वन्) करता हुआ (किल्बिषम्) पापको (न आप्नोति) प्राप्त नहीं होता।(47)
अध्याय 18 का श्लोक 48
सहजम्, कर्म, कौन्तेय, सदोषम्, अपि, न, त्यजेत्,
सर्वारम्भाः, हि, दोषेण, धूमेन, अग्निः, इव, आवृताः।।48।।
अनुवाद: (कौन्तेय) हे कुन्तीपुत्रा! (सदोषम्) दोष युक्त होने पर (अपि) भी (सहजम्) सहज योग अर्थात् वर्णानुसार कार्य करते हुए शास्त्रा विधि अनुसार भक्ति (कर्म) कर्मको (न) नहीं (त्यजेत्) त्यागना चाहिए (हि) क्योंकि (धूमेन) धूएँसे (अग्निः) अग्निकी (इव) भाँति (सर्वारम्भाः) सभी कर्म
(दोषेण) दोष से (आवृताः) युक्त हैं।(48)
भावार्थ:-- जिस भी व्यक्ति का जिस वर्ण (ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्राीव शुद्र कुल) में जन्म है उस के कर्म में पाप भी समाया है। जैसे ब्राह्मण हवन करता है उसमें प्राणियों कि हिंसा होती है। वैश्य खेती व व्यापार करता है, क्षत्राी शत्राु से युद्ध करता है। शुद्र सफाई आदि सेवा करता है। प्रत्येक कर्म में
हिंसा होती है। फिर भी त्यागने योग्य कर्म नहीं है। क्योंकि इन कर्मों में हिंसा करना उद्देश्य नहीं होता। यदि देखा जाए तो सर्व उपरोक्त कर्म दोष युक्त हैं। तो भी प्रभु आज्ञा होने से कत्र्तव्य कर्म हैं। यही प्रमाण अध्याय 4 श्लोक 21 में है कि शरीर समबन्धि कर्म करता हुआ पाप को प्राप्त नहीं होता। गीता अध्याय 18 श्लोक 56 में भी है।
अध्याय 18 का श्लोक 49
असक्तबुद्धिः, सर्वत्रा, जितात्मा, विगतस्पृहः,
नैष्कम्र्यसिद्धिम्, परमाम्, सóयासेन, अधिगच्छति।।49।।
अनुवाद: (सर्वत्रा) सर्वत्र (असक्तबुद्धिः) आसक्तिरहित बुद्धिवाला (विगतस्पृहः) स्पृहारहित और (जितात्मा) बुरे कर्मों से विजय प्राप्त भक्त आत्मा (सóयासेन) तत्व ज्ञान के अतिरिक्त सर्वज्ञानों से सन्यास प्राप्त करने वाले द्वारा (परमाम्) श्रेष्ठ (नैष्कम्र्यसिद्धिम्) पूर्ण पाप विनाश होने पर जो पूर्ण मुक्ति होती है, उस सिद्धि अर्थात् परमगति को (अधिगच्छति) प्राप्त होता है।(49)
अध्याय 18 का श्लोक 50
सिद्धिम्, प्राप्तः, यथा, ब्रह्म, तथा, आप्नोति, निबोध, मे,
समासेन, एव, कौन्तेय, निष्ठा, ज्ञानस्य, या, परा।।50।।
अनुवाद: (या) जो कि (ज्ञानस्य) ज्ञानकी (परा) श्रेष्ठ (निष्ठा) उपलब्धि है (सिद्धिम्) उस नैष्कम्र्यसिद्धिको (यथा) जिसे (प्राप्तः) प्राप्त होकर (ब्रह्म) परमात्मा को (आप्नोति) प्राप्त होता है (तथा) उस प्रकार को (कौन्तेय) हे कुन्तीपुत्रा! तू (समासेन) संक्षेपमें (एव) ही (मे) मुझसे (निबोध)
समझ।(50)
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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bakaity-poetry · 1 year
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शायरी, कविता, नज़्म, गजल, सिर्फ दिल्लगी का मसला नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि कविता ने हमेशा इंसान को सांस लेने की सहूलियत दी है। जब चारों ओर से दुनिया घेरती है; घटनाओं और सूचनाओं के तेज प्रवाह में हमारा विवेक चीजों को छान-घोंट के अलग-अलग करने में नाकाम रहता है; और विराट ब्रह्मांड की शाश्वत धक्कापेल के बीच किसी किस्म की व्यवस्था को देख पाने में असमर्थ आदमी का दम घुटने लगता है; जबकि उसके पास उपलब्ध भाषा उसे अपनी स्थिति बयां कर पाने में नाकाफी मालूम देती है; तभी वह कविता की ओर भागता है। जर्मन दार्शनिक विटगेंस्टाइन कहते हैं कि हमारी भाषा की सीमा जितनी है, हमारा दुनिया का ज्ञान भी उतना ही है। यह बात कितनी अहम है, इसे दुनिया को परिभाषित करने में कवियों के प्रयासों से बेहतर समझा जा सकता है।
कबीर को उलटबांसी लिखने की जरूरत क्यों पड़ी? खुसरो डूबने के बाद ही पार लगने की बात क्यों कहते हैं? गालिब के यहां दर्द हद से गुजरने के बाद दवा कैसे हो जाता है? पाश अपनी-अपनी रक्त की नदी को तैर कर पार करने और सूरज को बदनामी से बचाने के लिए रात भर खुद जलने को क्यों कहते हैं? फैज़ वस्ल की राहत के सिवा बाकी राहतों से क्या इशारा कर रहे हैं? दरअसल, एक जबरदस्त हिंसक मानवरोधी सभ्यता में मनुष्य अपनी सीमित भाषा को ही अपनी सुरक्षा छतरी बना कर उसे अपने सिर के ऊपर तान लेता है। उसकी छांव में वह दुनियावी कोलाहल को अपने ढंग से परिभाषित करता है, अपनी ठोस राय बनाता है और उसके भीतर अपनी जगह तय करता है। एक कवि और शायर ऐसा नहीं करता। वह भाषा की तनी हुई छतरी में सीधा छेद कर देता है, ताकि इस छेद से बाहर की दुनिया को देख सके और थोड़ी सांस ले सके। इस तरह वह अपने विनाश की कीमत पर अपने अस्तित्व की संभावनाओं को टटोलता है और दुनिया को उन आयामों में संभवत: समझ लेता है, जो आम लोगों की नजर से प्रायः ओझल होते हैं।
भाषा की सीमाओं के खिलाफ उठी हुई कवि की उंगली दरअसल मनुष्यरोधी कोलाहल से बगावत है। गैलीलियो की कटी हुई उंगली इस बगावत का आदिम प्रतीक है। जरूरी नहीं कि कवि कोलाहल को दुश्मन ही बनाए। वह उससे दोस्ती गांठ कर उसे अपने सोच की नई पृष्ठभूमि में तब्दील कर सकता है। यही उसकी ताकत है। पाश इसीलिए पुलिसिये को भी संबोधित करते हैं। सच्चा कवि कोलाहल से बाइनरी नहीं बनाता। कविता का बाइनरी में जाना कविता की मौत है। कोलाहल से शब्दों को खींच लाना और धूप की तरह आकाश पर उसे उकेर देना कवि का काम है।
कुमाऊं के जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’ इस बात को बखूबी समझते थे। एक संस्मरण में वे बताते हैं कि एक जनसभा में उन्होंने फ़ैज़ का गीत 'हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे' गाया, तो देखा कि कोने में बैठा एक मजदूर निर्विकार भाव से बैठा ही रहा। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, गोया कुछ समझ ही न आया हो। तब उन्हें लगा कि फ़ैज़ को स्थानीय बनाना होगा। कुमाऊंनी में उनकी लिखी फ़ैज़ की ये पंक्तियां उत्तराखंड में अब अमर हो चुकी हैं: ‘हम ओढ़, बारुड़ी, ल्वार, कुल्ली-कभाड़ी, जै दिन यो दुनी धैं हिसाब ल्यूंलो, एक हांग नि मांगूं, एक भांग नि मांगू, सब खसरा खतौनी किताब ल्यूंलो।'
प्रेमचंद सौ साल पहले कह गए कि साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है, लेकिन उसे हमने बिना अर्थ समझे रट लिया। गिरदा ने अपनी एक कविता में इसे बरतने का क्या खूबसूरत सूत्र दिया है:
ध्वनियों से अक्षर ले आना क्या कहने हैं
अक्षर से फिर ध्वनियों तक जाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाना क्या कहने हैं
गीतों से कोहराम मचाना क्या कहने हैं
प्यार, पीर, संघर्षों से भाषा बनती है
ये मेरा तुमको समझाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? डेल्यूज और गटारी अपनी किताब ह्वॉट इज फिलोसॉफी में लिखते हैं कि दो सौ साल पुरानी पूंजी केंद्रित आधुनिकता हमें कोलाहल से बचाने के लिए एक व्यवस्था देने आई थी। हमने खुद को भूख या बर्बरों के हाथों मारे जाने से बचाने के लिए उस व्यवस्था का गुलाम बनना स्वीकार किया। श्रम की लूट और तर्क पर आधारित आधुनिकता जब ढहने लगी, तो हमारे रहनुमा ही हमारे शिकारी बन गए। इस तरह हम पर थोपी गई व्यवस्था एक बार फिर से कोलाहल में तब्दील होने लगी। इसका नतीजा यह हुआ है कि वैश्वीकरण ने इस धरती पर मौजूद आठ अरब लोगों की जिंदगी और गतिविधियों को तो आपस में जोड़ दिया है लेकिन इन्हें जोड़ने वाला एक साझा ऐतिहासिक सूत्र नदारद है। कोई ऐसा वैचारिक ढांचा नहीं जिधर सांस लेने के लिए मनुष्य देख सके। आर्थिक वैश्वीकरण ने तर्क आधारित विवेक की सार्वभौमिकता और अंतरराष्ट्रीयतावाद की भावना को तोड़ डाला है। ऐसे में राष्ट्रवाद, नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता आदि हमारी पहचान को तय कर रहे हैं। इतिहास मजाक बन कर रह गया है। यहीं हमारा कवि और शायर घुट रहे लोगों के काम आ रहा है।
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padamchand · 1 year
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#सर्वशक्तिमान_कबीरभगवान
पूर्ण प्रभु कबीर जी (कविर्देव)
सतयुग में सतसुकृत नाम से स्वयं प्रकट हुए थे। श्री मनु महर्षि जी को भी तत्वज्ञान समझाना चाहा था।
Supreme God Kabir
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noisywagonllamapizza · 11 months
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#राधास्वामी_पंथ_की_सच्चाई
कबीर साहिब कहते हैं
कबीर – गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण ॥
राधा स्वामीजी महाराज का कोई गुरु नहीं था, और न किसी से उन्होने परमार्थ का उपदेश लिया।
गुरू धारण किए बिना यदि नाम जाप की माला फिराते हैं और दान देते हैं, वे दोनों व्यर्थ हैं। यदि आप जी को संदेह हो तो अपने वेदों तथा पुराणों में प्रमाण देखें।
कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरू कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरू आगे आधीन।।
कबीर परमेश्वर जी हमें समझाना चाहते हैं कि आप जी श्री राम तथा श्री कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा अर्थात् समर्थ नहीं मानते हो। वे तीन लोक के मालिक थे, उन्होंने भी गुरू बनाकर अपनी भक्ति की, मानव जीवन सार्थक किया। इससे सहज में ज्ञान हो जाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति यदि गुरू के बिना भक्ति करता है तो कितना सही है? अर्थात् व्यर्थ है।
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sumitroy22139 · 1 year
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जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के उद्देश्य
न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त कर न्याय व्यवस्था सुधारना
भ्रष्ट मीडिया में सुधार कर मीडिया के कर्तव्य समझाना ।
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सतयुग में परमेश्वर कविर्देव जी ने सतसुकृत रूप में महर्षि मनु को भी तत्वज्ञान
समझाना चाहा था परन्तु श्री मनु जी ने परमेश्वर के ज्ञान को सत न जानकर, ब्रह्माजी
द्वारा दिए ज्ञान पर आरूढ़ होकर परमेश्वर सतसुकृत जी का उपहास करने लगे और
परमेश्वर सतसुकृत का नाम 'वामदेव' निकाल लिया।
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anitadasisblog · 1 year
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Watch "कबीर साहेब जी द्वारा रामानंद जी को तत्वज्ञान समझाना | Sant Rampal Ji Satsang | SATLOK ASHRAM" on YouTube
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marchsstuff · 11 months
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हर बात समझाना सदा
संभव नहीं राधे
समय समझाएगा ||
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scribblersobia · 2 years
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सपने पूरे करने के लिए नींदो से लड़ना पड़ता है,
सुबह जल्दी जग के फिर से प्रयास शुरू करना पड़ता है,
आराम को छोड़ त्याग को अपनाना पड़ता है,
हमें खुद को समझाना पड़ता है,
की सपने पूरे करने के लिए खुद से हर दफा लड़ना पड़ता है ।
_ सोबिया।
@scribblersobia
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