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#राम की मृत्यु
ramanan50 · 1 year
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क्या श्री राम की मृत्यु श्रीकृष्ण की मृत्यु से केवल 200 वर्ष पहले हुई थी
कृष्ण द्वापर युग में रहते थे, जो त्रेता युग के 8,64,000 साल बाद हुआ था। हम सभी जानते हैं कि रामायण त्रेता युग में हुई थी हालांकि, जब हम वास्तविक खगोलीय घटनाओं जैसे राम की कुंडली, रामायण और महाभारत के दौरान हुए ग्रहणों से विभिन्न पुराणों और ज्योतिषीय आंकड़ों को क्रॉस-सारणीबद्ध करते हैं, तो ये जांच स्थापित करती हैं कि श्री राम की मृत्यु कृष्ण से केवल 200 साल पहले हुई थी। मेरे विचार से यह…
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readspot · 1 month
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कांशी राम जी : जीवन परिचय
जन्म: 15 मार्च 1934, रोरापुर, पंजाब मृत्यु: 9 अक्तूबर 2006 व्यवसाय: राजनेता कांशी राम जी : जीवन परिचय कांशी राम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ ज़िले में हुआ था। उनके पिता का नाम एस. हरि सिंह था। उनकी स्वभाव से सरल और इरादे के पक्के थे। कांशी राम की कर्मयात्रा 60 के दशक से प्रारंभ हुई और 70 के दशक की शुरुआती दिनों में उन्होंने पुणे में रक्षा विभाग की नौकरी छोड़ दी। उन्होंने बाबा साहब डॉ.…
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satlokashram · 5 months
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गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश- साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है। आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (पृ. 350) जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृ. 352) गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृ. 353) बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे। सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृ. 414) मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृ. 439) उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब (प्रभु) एक ही है तथा मेरे गुरु जी ने मुझे उपदेश नाम मन्त्र दिया, वही नाना रूप धारण कर लेता है अर्थात् वही सतपुरुष है वही जिंदा रूप बना लेता है। वही धाणक रूप में भी विराजमान होकर आम व्यक्ति अर्थात् भक्त की भूमिका करता है। शास्त्रविरुद्ध पूजा करके सारे जगत् को जन्म-मृत्यु व कर्मफल की आग में जलते देखकर जीवन व्यर्थ होने के डर से भागकर मैंने गुरुजी के चरणों में शरण ली।
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indrabalakhanna · 1 month
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🔥होली पर जाने राम नाम की होली🔥
🌼समर्थ का शरणा गहो, रंग होरी हो।
कदै न हो अकाज, राम रंग होरी हो🌼🌼
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📚ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2, 5, मण्डल 10 सूक्त 162 मंत्र 2 व मण्डल 10 सूक्त 163 मंत्र 1-3 में प्रमाण मिलता है कि परमात्मा अपने भक्त के हाथ, पैर, सिर, कान, नाक, आंख, हृदय आदि अंगों के सर्व रोगों को समाप्त कर निरोगी काया प्रदान करता है। यहां तक कि भक्त की मृत्यु भी हो गई हो तो परमात्मा उसे जीवित करके उसकी 100 वर्ष के लिए आयु बढ़ा देता है!
📚यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 के अनुसार अपने साधक के सर्व पाप कर्मों को समाप्त कर उसे सुखमय जीवन प्रदान करता है
👉🏽सभी यही मानते हैं कि हिरण्यकशिपु से भक्त प्रहलाद की रक्षा भगवान विष्णु ने की थी, लेकिन क्या आप जानते हैं यह अधूरा सच है।
क्योंकि सूक्ष्मवेद में कबीर परमेश्वर ने कहा है:
हिरण्यक शिपु उदर (पेट) विदारिया, मैं ही मारया कंश।
जो मेरे भक्त को सतावै, वाका खो-दूँ वंश।।
प्रहलाद भक्त की वास्तविक कथा जानने के लिए आज ही Sant Rampal Ji Maharaj App डाऊनलोड करें।
📚ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 80 मंत्र 2 व ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में कहा गया है कि कबीर परमात्मा अपने सच्चे साधक की आयु भी बढ़ा देते हैं!🙏
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singhmanojdasworld · 6 months
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🌷 *जीने की राह* 🌷
*(Part-10)*
*आज भाई को फुरसत*
*(Part -A)*
*Today Brother Has Time (Way of Living)*
📜एक भक्त सत्संग में जाने लगा। दीक्षा ले ली, ज्ञान सुना और भक्ति करने लगा। अपने मित्र से भी सत्संग में चलने तथा भक्ति करने के लिए प्रार्थना की। परंतु दोस्त नहीं माना। कह देता कि कार्य से फुर्सत (खाली समय) नहीं है। छोटे-छोटे बच्चे हैं। इनका पालन-पोषण भी करना है। काम छोड़कर सत्संग में जाने लगा तो सारा धँधा चैपट हो जाएगा।
वह सत्संग में जाने वाला भक्त जब भी सत्संग में चलने के लिए अपने मित्र से कहता तो वह यही कहता कि अभी काम से फुर्सत नहीं है। एक वर्ष पश्चात् उस मित्र की मृत्यु हो गई। उसकी अर्थी उठाकर कुल के लोग तथा नगरवासी चले, साथ-साथ सैंकड़ों नगर-मौहल्ले के व्यक्ति भी साथ-साथ चले। सब बोल रहे थे कि राम नाम सत् है, सत् बोले गत् है। भक्त कह रहा था कि राम नाम तो सत् है परंतु आज भाई को फुर्सत है। नगरवासी कह रहे थे कि सत् बोले गत् है, भक्त कह रहा था कि आज भाई को फुर्सत है। अन्य व्यक्ति उस भक्त से कहने लगे कि ऐसे मत बोल, इसके घर वाले बुरा मानेंगे। भक्त ने कहा कि मैं तो ऐसे ही बोलूँगा। मैंने इस मूर्ख से हाथ जोड़कर प्रार्थना की थी कि सत्संग में चल, कुछ भक्ति कर ले। यह कहता था कि अभी फुर्सत अर्थात् खाली समय नहीं है। आज इसको परमानैंट फुर्सत है। छोटे-छोटे बच्चे भी छोड़ चला जिनके पालन-पोषण का बहाना करके परमात्मा से दूर रहा। भक्ति करता तो खाली हाथ नहीं जाता। कुछ भक्ति धन लेकर जाता। बच्चों का पालन-पोषण तो परमात्मा करता है। भक्ति करने से साधक की आयु भी परमात्मा बढ़ा देता है। भक्तजन ऐसा विचार करके भक्ति करते हैं, कार्य त्यागकर सत्संग सुनने जाते हैं।
भक्त विचार करते हैं कि परमात्मा न करे, हमारी मृत्यु हो जाए। फिर हमारे कार्य कौन करेगा? हम यह मान लेते हैं कि हमारी मृत्यु हो गई। हम तीन दिन के लिए मर गया, यह विचार करके सत्संग में चलें, अपने को मृत मान लें और सत्संग में चले जायें। वैसे तो परमात्मा के भक्तों का कार्य बिगड़ता नहीं, फिर भी हम मान लेते हैं कि हमारी गैर-हाजिरी में कुछ कार्य खराब हो गया तो तीन दिन बाद जाकर ठीक कर लेंगे। यदि वास्तव में टिकट कट गई अर्थात् मृत्यु हो गई तो परमानैंट कार्य बिगड़ गया। फिर कभी ठीक करने नहीं आ सकते। इस स्थिति को जीवित मरना कहते हैं।
वाणी का शेष सरलार्थ:- द्वादश मध्य महल मठ बौरे, बहुर न देहि धरै रे। सरलार्थ:- श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते अर्थात् उनका पुनर्जन्म नहीं होता। वे फिर देह धारण नहीं करते। सूक्ष्मवेद की यह वाणी यही स्पष्ट कर रही है कि वह परम धाम द्वादश अर्थात् 12वें द्वार को पार करके उस परम धाम में जाया जाता है। आज तक सर्व ऋषि-महर्षि, संत, मंडलेश्वर केवल 10 द्वार बताया करते। परंतु परमेश्वर कबीर जी ने अपने स्थान को प्राप्त कराने का सत्यमार्ग, सत्य स्थान स्वयं ही बताया है। उन्होंने 12वां द्वार बताया है। इससे भी स्पष्ट हुआ कि आज तक (सन् 2012 तक) पूर्व के सर्व ऋषियों, संतों, पंथों की भक्ति काल ब्रह्म तक की थी। जिस कारण से जन्म-मृत्यु का चक्र चलता रहा।
वाणी सँख्या 5:- दोजख बहिश्त सभी तै देखे, राजपाट के रसिया।
तीन लोक से तृप्त नाहीं, यह मन भोगी खसिया।।
सरलार्थ:- तत्वज्ञान के अभाव में पूर्णमोक्ष का मार्ग न मिलने के कारण कभी दोजख अर्थात् नरक में गए, कभी बहिश्त अर्थात् स्वर्ग में गए,कभी राजा बनकर आनन्द लिया। यदि इस मानव को तीन लोक का राज्य भी दे दंे तो भी तृप्ति नहीं होती।
उदाहरण:- यदि कोई गाँव का सरपंच बन जाता है तो वह इच्छा करता है कि विधायक बने तो मौज होवे। विधायक इच्छा करता है कि मन्त्राी बनूं तो बात कुछ अलग हो जाएगी। मंत्राी बनकर इच्छा करता है कि मुख्यमंत्राी बनूं तो पूरी चैधर हो। आनन्द ही न्यारा होगा। सारे प्रान्त पर कमांड चलेगी। मुख्यमंत्राी बनने के पश्चात् प्रबल इच्छा होती है कि प्रधानमंत्राी बनूं तो जीवन सार्थक हो। तब तक जीवन लीला समाप्त हो जाएगी। फिर गधा बनकर कुम्हार के लठ (डण्डे) खा रहा होगा। इसलिए तत्वज्ञान में समझाया है कि काल ब्रह्म द्वारा बनाई स्वर्ग-नरक तथा राजपाट प्राप्ति की भूल-भुलईया में सारा जीवन व्यर्थ कर दिया। कहीं संतोष नहीं हुआ, यह मन ऐसा खुसरा (हिजड़ा) है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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noisywagonllamapizza · 6 months
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#KabirIsSuperemGod
यह तो हम सभी जानते हैं कि जो जन्म लेता है वो मृत्यु को भी प्राप्त होता है लेकिन पूर्ण परमात्मा / आदि राम जन्म – मृत्यु से रहित है वे माँ के पेट से जन्म नहीं लेता। कबीर साहेब ही वह परमात्मा हैं जिनका जन्म मां से नहीं होता लेकिन यह कै���े संभव है? यह प्रश्न आपके मन में उठ रहा होगा कि इसका प्रमाण कहां है?
प्रमाण-: ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 1 पूर्ण परमात्मा कविर्देव विशेष बालक के रूप में प्रकट होता है। उस परमात्मा का जन्म माँ के गर्भ से नहीं होता। वह बालक रूप में आया परमात्मा कुंवारी गाय का दूध पीता है l वह अपनी वाणी को सरल भाषा में अपने मुख कमल से लोगों को बताता है। 
हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।
नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक।।
गुरु नानक देव ने अपनी अमृत वाणी में कबीर साहेब जी के बारे में स्पष्ट रूप से बताया है। नानक साहेब ने लिखा हैः बेई नदी पर उन्हें जो जिंदा महात्मा रूप में मिले थे वे कोई और नहीं, बल्कि काशी वाले कबीर साहेब थे। नानक साहेब की वाणी में बहुत जगह यह प्रमाण है कि कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा हैं, वे ही इस सृष्टि के रचनहार हैं।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया। 
जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
आदरणीय गरीबदास जी की वाणी में भी कबीर परमेश्वर से मिलने का प्रमाण है। गरीबदास जी महाराज जी ने बताया कि मुझे और दादू को जो आकर मिला और सतज्ञान दिया वह कोई और नहीं बल्कि काशी वाला जुलाहा कबीर परमेश्वर ही है।
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rajurajaksblog · 1 year
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#Who_Is_AadiRam
इस रामनवमी पर जाने की असली राम कौन है जो जन्म मृत्यु में नहीं आता और जिसकी पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जानकारी के लिए
निशुल्क पाए पवित्र पुस्तक *ज्ञान गंगा*
Kabir Is God
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mala-dasi · 1 year
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#Who_Is_AadiRam
इस रामनवमी पर जाने की असली राम कौन है जो जन्म मृत्यु में नहीं आता और जिसकी पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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Kabir Is God
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naveensarohasblog · 2 years
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#गहरीनजरगीता_में_Part_206 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#गहरीनजरगीता_में_part_207
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हम पढ़ रहे है पुस्तक "गहरी नजर गीता में"
पेज नंबर 393–394
जो प्राणी मेरे अन्तर्गत है मैं उन सब प्राणियों में आत्मा हूँ, आदि-मध्य तथा अन्त भी मैं हूँ क्योंकि ये सब काल के रंग में रंगे हैं। इनको अन्य परमात्मा का ज्ञान नहीं है। मैं देवों में विष्णु, ग्रहों
में सूर्य हूँ, तारों में चन्द्रमा हूँ, वेदों में साम वेद हूँ, रूद्रों में शंकर हूँ, धन का देवता कुबेर हूँ, सबसे ऊँचा पर्वत सुमेरु हूँ, बृहस्पति स्कन्द, समुन्द्र (जल स्तोत्रा) हूँ, मैं ही भृगु ऋषि हूँ, शब्दों में एक अक्षर ओंकार हूँ, सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ, सिद्धों में कपिल मुनि हूँ, देव ऋषियों में नारद हूँ,
मनुष्यों में राजा हूँ, गौओं में कामधेनु हूँ, सर्पों में वासुकि हूँ, नागों में शेष नाग मैं ही हूँ, जंगली जानवरों मे शेर तथा पक्षियों में गरूड़ हूँ। जल जीवों में मगर हूँ, धनुषधारियों में राम (श्री रामचन्द्र
पुत्रा श्री दशरथ) हूँ। मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु हूँ। इसलिए हे अर्जुन! भूतों (प्राणियों) का बीज (उत्पत्ति व प्रलय का कारण) मैं ही हूँ। मेरी विभूतियाँ तो अनन्त हैं। यह तो कुछ ही कहा है तथा जो भी अच्छी वस्तुएँ हैं वे मेरे से उत्पन्न जान। हे अर्जुन! इसे बहुत जानने से तुझे क्या प्रयोजन
है? सुन, मैं इस सारे संसार (तीन लोकों) को एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ अर्थात् अधिक
क्या बताऊँ? इस सारे संसार को मैं (काल) ही नचा रहा हूँ। जंगली जानवरों में शेर को शक्तिशाली बना दिया। वह सर्व वन्य प्राणियों को तंग रखता है अर्थात् भयभीत रखता है। जब चाहे खा जाता है। फिर मगर मच्छ जल के जीवों को परेशान अर्थात् भयभीत रखता है। जब चाहे खा जाता है। इसी प्रकार काल भगवान है जिसको चाहे खा जाता है अर्थात् 21 ब्रह्मण्ड में काल का राज्य है। यही सर्व प्राणियों के दुःख का कारण है जो स्वयं स्पष्ट कह रहा है।
(नोट:- काल ब्रह्म को जानने के लिए पढ़ें अध्याय ‘‘सृष्टि रचना’’ में जो इसी पुस्तक के प्रारम्भ में है।)
विशेष:- गीता ज्ञान दाता अपनी फोकट महिमा बना रहा है। यह इसका मत है, परंतु वास्तविकता भिन्न है। काल ब्रह्म ने अध्याय 10 के श्लोक 40.42 में कहा है कि मैं सर्व का मालिक हूँ। मेरी दिव्य विभूतियों का अंत नहीं है। सम्पूर्ण संसार को अंश मात्रा पर धारण करके मैं स्थित हूँ।
यदि ऐसा है तो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 तथा 17 में किसलिए कहा है कि तत्वज्ञान प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहाँ पर गए साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। जिस परमेश्वर ने संसार रूपी वृक्ष का विस्तार किया है यानि रचना की
है। उसी की भक्ति करो।(15/4)
अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम पुरूष यानि पुरूषोत्तम तो अन्य ही है जो परमात्मा कहा जाता है। वही वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है जो तीनों लोकों में (क्षर पुरूष यानि काल ब्रह्म के लोक में, अक्षर पुरूष के लोक में तथा अपने परम अक्षर ब्रह्म के लोक में) प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है।
गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा। जिस परमेश्वर के विषय में अध्याय 18 श्लोक 46 तथा 61 में तथा अध्याय 8 के श्लोक 3, 8–10, 20–22 में बताया है.
और भी अन्य अध्यायों में अनेकों श्लोकों में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य परमेश्वर की महिमा कही है। परंतु इस अध्याय 10 श्लोक 40.42 में केवल छल करके अर्जुन को डरा रहा है। यह सारी व्यवस्था झूठ और छल से करता है। किसी को भी सत्य नहीं बताता। पाठकों को यहाँ शंका भी होगी कि यदि काल ब्रह्म सब झूठ बोलता है तो गीता के शेष ज्ञान को सत्य कैसे माना जा सकता है। इसने अध्यात्म का कुछ सत्य ज्ञान बोला तो किसलिए? इसका कारण यह है कि एक तो इसने अपने को ज्ञान सागर सिद्ध करके अपनी महिमा बताई है। दूसरा इसको पता है कि वेद ज्ञान संसार में पढ़ा जा रहा है। यदि सब उसके विपरित बोलूंगा तो मेरी पोल खुल जाएगी। तीसरा पूर्ण परमात्मा के हाथ में इसका भी संचालन है। उसने इसके मुख से कहलवाया है कि मैं काल हूँ। (गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में) परमात्मा ने बताया है कि यह झूठा है। अपने को सबका कर्ता बताता है।
सूक्ष्मवेद में परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को संत गरीबदास जी ने कहा है कि:-
ज्योत स्वरूपी कह निरंजन, मैं ही कर्ता भाई।
एक न कर्ता दो न कर्ता, नौ ठहराए भाई। दसवां भी धूंधर में मिल जागा, सत कबीर दुहाई।
भावार्थ:- काल ब्रह्म अपने आपको सर्व प्राणियों का उत्पत्तिकर्ता इस अध्याय 10 के श्लोक 40. 42 में बता रहा है। पौराणिक दस अवतार कर्ता बताते हैं। कबीर जी ने कहा है कि जैसे नौ अवतार मर गए जो कर्ता माने जाते थे। दसवां भी ऐसे ही नष्ट हो जाएगा। केवल कबीर ही सर्व का उत्पत्तिकर्ता, पालनकर्ता तथा कुल का स्वामी है। परमेश्वर कबीर जी ने भी बताया है कि:-
औंकार निश्च�� भया, या कूँ कर्ता मत जान��� साच्चा शब्द कबीर का, पर्दे मांही पहचान।।
भावार्थ:- काल ब्रह्म की साधना का नाम औंकार यानि ओम् (ॐ) है। यह तो पक्की बात है यानि सत्य है, परंतु ज्योति निरंजन काल को कर्ता मत जान। परमात्मा की प्राप्ति का सच्चा भक्ति मंत्र कबीर जी ने बताया है। वह गुप्त रखा गया है। संत से उसे गुप्त विधि से जानकर पहचान लेना। वह बताएगा कि कुल का मालिक काल ब्रह्म से अन्य है।
( अब आगे अगले भाग में)
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jyoti000 · 1 year
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🧿 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🧿
प्रसिद्ध कवि एवं जुलाहे की भूमिका करने वाले महान सन्त के रूप में विख्यात कबीर साहेब जी ही पूर्ण परमेश्वर हैं। जिनका जन्म मां के गर्भ से नहीं होता। इसका वेदों में भी प्रमाण है कि पूर्ण परमेश्वर ऊपर से गति करके स्वयं प्रकट होता है एवं नि:संतान दंपत्ति को मिलता है। वह पृथ्वीलोक में वाणियों, कविताओं के माध्यम से तत्वज्ञान सुनाता है व कवि की उपाधि धारण करता है।
कलयुग में पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब अपने वास्तविक नाम कबीर देव अर्थात कबीर साहिब नाम से प्रकट होते हैं। विक्रम संवत 1455 (सन 1398) जेष्ठ मास की पूर्णिमा सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में काशी के अंदर लहरतारा नामक तलाब पर कमल के फूल पर नीरू और नीमा नामक एक दंपति जो जुलाहे का काम करते थे, उन्हें मिले थे। परमेश्वर कबीर साहेब 120 वर्ष तक इस पृथ्वीलोक में रहे और अनेकों चमत्कार व तत्वज्ञान का प्रचार किया।
सूखी पड़ी आमी नदी में जल बहाना
मगहर के पास एक आमी नदी बहती थी, जो शिवजी के श्राप से सूख पड़ी थी। आमी नदी को देखकर कबीर साहेब ने हाथ से आगे बढ़ने की ओर इशारा किया उतने में ही नदी जल से प्रवाहित हो गई और बहने लगी। वह नदी आज भी बह रही है।
वही पाखण्डी धर्मगुरुओं ने अफवाह फैला रखी थी कि जो काशी में मरेगा वह स्वर्ग जायेगा तथा जो मगहर में मरेगा वह गधा बनेगा।
परमेश्वर कबीर जी कहते थे कि जैसी काशी है वैसा ही मगहर है, केवल हृदय में सच्चा राम होना चाहिए, यदि आप सतभक्ति करते हो तो आप कही भी प्राण त्यागो, मोक्ष के अधिकारी हो।
505 वर्ष पूर्व सन् 1518 वि. स. 1575 महीना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी को कबीर साहेब जी सशरीर सतलोक गये थे तब हिंदू तथा मुस्लिम आपस में कबीर साहिब के शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर लड़ाई करने की तैयारी में थे, तभी कबीर परमेश्वर जी ने आकाशवाणी की कोई झगड़ा न करे। जो भी चादर के नीचे मिले उसे आधा-आधा बांट ले, कबीर परमेश्वर के शरीर के स्थान पर सुगंधित फूलों के अलावा कुछ न मिला क्योंकि कबीर परमेश्वर सशरीर सत्यलोक चले गए थे।
तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांडी पदहि समाये |
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं ||
हिंदू व मुसलमानों ने बिना झगड़ा किये दोनों धर्मों ने आधे-आधे फूल बांटे एवं उस पर एक यादगार बना दी। आज भी मगहर में यह यादगार विद्यमान है। आज भी मगहर में कबीर परमेश्वर के आशीर्वाद से हिन्दू व मुस्लिम भाईचारे के साथ रहते हैं व धर्म के नाम पर आपस में कोई झगड़ा नहीं करते हैं।
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी सशरीर आये तथा अनेक लीलाएं करके पुनः सशरीर सतलोक गए क्योंकि पूर्ण परमात्मा कभी भी न जन्म लेता है और न उसकी मृत्यु होती है।
#कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023
#मगहर_लीला
#SantRampalJiMaharaj
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jaykumars-world · 1 year
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#मगहर_लीला
कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस
कौन है पूर्ण परमात्मा/अविनाशी भगवान जो कभी माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते, ना ही मृत्यु को प्राप्त होते, सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं?
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब प्रत्येक युग मे आते हैं, माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं, सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं। सतलोक से आते हैं शिशु रूप में प्रकट होते हैं। सभी धर्मों में फैली कुरीतियों को दूर कर सद्भक्ति बताकर जाति, धर्म का का भेद मिटाकर मानव धर्म की स्थापना करते हैं।
505 वर्ष पहले कबीर साहिब सतलोक जा रहे थे तब हिन्दू-मुस्लिम उनके शरीर को लेकर लड़ने को तैयार हो रहे थे, तब कबीर जी ने समझाया मेरा शरीर नहीं मिलेगा, जो मिलेगा उसको आधा आधा बांट लेना।
उनके शरीर के स्थान पर सुगन्धित पुष्प मिले।
आज भी मगहर में इसका प्रमाण है। वहाँ एक ही स्थान पर हिन्दू मुस्लिमों ने मजार बना रखी है।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) को काशी के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर प्रकट हुए तथा माघ मास की शुक्ल एकादशी वि.सं.1575 सन् 1518 को मगहर से सशरीर सतलोक गये।
कबीर साहेब के अतिरिक्त जितने भी देव/साहब/भगवान है सभी जन्म मृत्यु में हैं। अर्थात अविनाशी नहीं हैं।
कबीर साहेब की वाणी है:-
राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाहि संसार।
जिन साहब संसार किया, सो किनहु ना जनम्या नार।।
अर्थात सभी अवतार, तीनों प्रधान देव (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी ) तथा इनके पिता ब्रह्म (काल) भी जन्म मृत्यु में हैं।
जबकि पूर्ण परमात्मा कविर्देव/ कबीर साहेब अविनाशी, जन्म-मृत्यु से परे हैं, सर्व सृष्टि रचनहार हैं, कुल के मालिक हैं।
कबीर साहेब की वाणी:-
ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे कूं पाया।।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब 505 वर्ष पहले काशी में लहरतारा तालाब में सन 1398 में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे वहां से नि:संतान दंपति नीरू नीमा उनको ले गए थे। 120 वर्ष तक लीला की, अपनी प्यारी आत्माओं को तत्वज्ञान बताया। सामाजिक कुरूतियों तथा पाखण्डवाद का विरोध किया। जातिवाद तथा साम्प्रदायिकता को मिटाकर सबको मानवता के सूत्र में पिरोया।
1518 में सशरीर अपने निज धाम सतलोक गये। जाते समय हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच होने वाले भयंकर गृहयुद्ध को टाल दिया।
कबीर परमेश्वर ने कहा था कि जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जायेगा तब मैं पुनः पृथ्वी पर आऊँगा। सब धर्म / पंथों को मिटाकर एक कर दूँगा।
#कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023
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santram · 1 year
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🌳 *कबीर बड़ा या कृष्ण* 🌳
*(Part -16)*
*‘‘परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति से पूर्ण मोक्ष होता है’’*
📜काल ब्रह्म व देवताओं की भक्ति करके भी जीव का जन्म-मरण का चक्र समाप्त नहीं होता क्योंकि ये स्वयं जन्म व मृत्यु के चक्र में पड़े हैं।
संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को इस प्रकार बताया है:-
{संत गरीबदास जी, गाँव-छुड़ानी हरियाणा की अमृतवाणी}
मन तू चलि रे सुख के सागर, जहाँ शब्द सिंधु रत्नागर। (टेक)
कोटि जन्म तोहे मरतां होगे, कुछ नहीं हाथ लगा रे।
कुकर-सुकर खर भया बौरे, कौआ हँस बुगा रे।।1।।
कोटि जन्म तू राजा किन्हा, मिटि न मन की आशा।
भिक्षुक होकर दर-दर हांड्या, मिल्या न निर्गुण रासा।।2।।
इन्द्र कुबेर ईश की पद्वी, ब्रह्मा, वरूण धर्मराया।
विष्णुनाथ के पुर कूं जाकर, बहुर अपूठा आया।।3।।
असँख्य जन्म तोहे मरते होगे, जीवित क्यूं ना मरै रे।
द्वादश मध्य महल मठ बौरे, बहुर न देह धरै रे।।4।।
दोजख बहिश्त सभी तै देखे, राज-पाट के रसिया।
तीन लोक से तृप्त नाहीं, यह मन भोगी खसिया।।5।।
सतगुरू मिलै तो इच्छा मेटैं, पद मिल पदै समाना।
चल हँसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।6।।
चार मुक्ति जहाँ चम्पी करती, माया हो रही दासी।
दास गरीब अभय पद परसै, मिलै राम अविनाशी।।7।।
सूक्ष्मवेद की वाणी का सरलार्थ:-
आत्मा अपने साथी मन को अमर लोक के सुख तथा इस काल ब्रह्म के लोक के दुख को बताकर सुख के सागर रूपी अमर लोक (सत्यलोक) में चलने के लिए प्ररित कर रही हैं। काल (ब्रह्म) के लोक (इक्कीस ब्रह्माण्डों) में रहने वाले प्राणी को क्या-क्या कष्ट होते हैं, पहले यह जानकारी बताई है। कहा है कि:-
काल (ब्रह्म) के लोक का अटल विधान है कि जो जन्मता है, उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मर जाता है, उसका जन्म निश्चित है।
प्रमाण गीता जी में देखें:-
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक 22 में इस प्रकार कहा है:-
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रा ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त करता है।
गीता अध्याय 2 श्लोक 27:- क्योंकि जन्में हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है। इसलिए बिना उपाय वाले विषय में तू शोक करने के योग्य नहीं है।
श्रीमद् भगवत गीता शास्त्र से स्पष्ट हुआ कि काल (ब्रह्म) के लोक का अटल नियम है कि जन्म तथा मृत्यु सदा बने रहेंगे। जैसे गीता अध्याय 2 श्लोक 12 में भी कहा है कि:- हे अर्जुन! तू, मैं (गीता ज्ञान दाता) तथा ये सर्व राजा लोग पहले भी जन्मे, ये आगे भी जन्मेंगे।
गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, उन सबको तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ।
गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान ने यह भी स्पष्ट किया है कि मेरी उत्पत्ति को न तो ऋषिजन जानते हैं, न देवता जानते हैं क्योंकि ये सर्व मेरे से उत्पन्न हुए हैं।
इसलिए गीता अध्याय 8 श्लोक 15 में कहा है कि:-
माम् उपेत्य पुनर्जन्मः दुःखालयम् अशाश्वतम्।
न आप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिम् परमाम् गता।।
अनुवाद:- गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि (माम्) मुझे (उपेत्य) प्राप्त होकर तो (दुःखालयम् अशाश्वतम्) दुःखों के घर व नाशवान संसार में (पुनर्जन्मः) पुनर्जन्म है। (महात्मानः) महात्माजन जो (संसिद्धिम् परमाम्) परम सिद्धि को (गता) प्राप्त हो गए हैं, (न अप्नुवन्ति) पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते।
विशेष:- पाठकजनों से निवेदन है कि मुझ (लेखक संत रामपाल दास) से पहले सर्व अनुवादकों ने गीता के इस श्लोक का गलत (ॅतवदह) अनुवाद किया है। (गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मुझे प्राप्त होकर पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते।)
विचार करें:- पहले लिखे अनेकों गीता के श्लोकों में आप जी ने पढ़ा कि गीता ज्ञान दाता ने स्वयं कहा है कि मेरे तथा तेरे अनेकों जन्म हो चुके हैं। फिर भी इस श्लोक का यह अर्थ करना‌ कि मुझे प्राप्त महात्मा का पुनर्जन्म नहीं होता, गीता की यथार्थता के साथ खिलवाड़ करना तथा अर्थों का अनर्थ करना मात्र है।
सूक्ष्मवेद की अमृतवाणी का यह भावार्थ है:-
वाणी का सरलार्थ:- आत्मा और मन को पात्र बनाकर संत गरीबदास जी ने संसार के मानव को समझाया है। कहा है कि ‘‘यह संसार दुःखों का घर है। इससे भिन्न एक और संसार है। जहाँ कोई दुःख नहीं है। वह शाश्वत् स्थान है (सनातन परम धाम = सत्यलोक) वह सुख सागर है तथा वहाँ का प्रभु (अविनाशी परमेश्वर) भी सुखदायी है जो उस सुख सागर में निवास करता है। सुख सागर अर्थात् अमर लोक की संक्षिप्त परिभाषा बताई है:-
शंखों लहर मेहर की ऊपजैं, कहर नहीं जहाँ कोई।
दास गरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।
भावार्थ:- जिस समय मैं (लेखक) अकेला होता हूँ, तो कभी-कभी ऐसी हिलोर अंदर से उठती है, उस समय सब अपने-से लगते हैं। चाहे किसी ने मुझे कितना ही कष्ट दे रखा हो, उसके प्रति द्वेष भावना नहीं रहती। सब पर दया भाव बन जाता है। यह स्थिति कुछ मिनट ही रहती है। उसको मेहर की लहर कहा है। सतलोक अर्थात् सनातन परम धाम में जाने के पश्चात् प्रत्येक प्राणी को इतना आनन्द आता है। वहाँ पर ऐसी असँख्यों लहरें आत्मा में उठती रहती हैं। जब वह लहर मेरी आत्मा से हट जाती है तो वही दुःखमय स्थिति प्रारम्भ हो जाती है। उसने ऐसा क्यों कहा?, वह व्यक्ति अच्छा नहीं है, वो हानि हो गई, यह हो गया, वह हो गया। यह कहर (दुःख) की लहर कही जाती है।
उस सतलोक में असँख्य लहर मेहर (दया) की उठती हैं, वहाँ कोई कहर (भयँकर दुःख) नहीं है। वैसे तो सतलोक में कोई दुःख नहीं है। कहर का अर्थ भयँकर कष्ट होता है। जैसे एक गाँव में आपसी रंजिस के चलते विरोधियों ने दूसरे पक्ष के एक परिवार के तीन सदस्यों की हत्या कर दी, कहीं पर भूकंप के कारण हजारों व्यक्ति मर जाते हैं, उसे कहते हैं कहर टूट पड़ा या कहर कर दिया। ऊपर लिखी वाणी में सुख सागर क�� परिभाषा संक्षिप्त में बताई है। कहा है कि वह अमर लोक अचल अविनाशी अर्थात् कभी चलायमान नहीं है, कभी ध्वस्त नहीं होता तथा वहाँ रहने वाला परमेश्वर अविनाशी है। वह स्थान तथा परमेश्वर सुख का समन्दर है। जैसे समुद्री जहाज बंदरगाह के किनारे से 100 या 200 किमी. दूर चला जाता है तो जहाज के यात्रियों को जल अर्थात् समंदर के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता। सब और जल ही जल नजर आता है। इसी प्रकार सतलोक (सत्यलोक) में सुख के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है अर्थात् वहाँ कोई दुःख नहीं है।
अब पूर्व में लिखी वाणी का सरलार्थ किया जाता है:-
मन तू चल रे सुख के सागर, जहाँ शब्द सिंधु रत्नागर।।(टेक)
कोटि जन्म तोहे भ्रमत होगे, कुछ नहीं हाथ लगा रे।
कुकर शुकर खर भया बौरे, कौआ हँस बुगा रे।।
परमेश्वर कबीर जी ने अपनी अच्छी आत्मा संत गरीबदास जी को सूक्ष्मवेद समझाया, उसको संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर, हरियाणा प्रान्त) ने आत्मा तथा मन को पात्र बनाकर विश्व के मानव को काल (ब्रह्म) के लोक का कष्ट तथा सतलोक का सुख बताकर उस परमधाम में चलने के लिए सत्य साधना जो शास्त्रोक्त है, करने की प्रेरणा की है। मन तू चल रे सुख के सागर अर्थात् हे मन! तू सनातन परम धाम में चल। शब्द को अविनाशी अर्थ दिया है क्योंकि शब्द नष्ट नहीं होता। इसलिए शब्द का अर्थ अविनाशीपन से है कि वह स्थान अमरत्व का सिंधु अर्थात् सागर है और मोक्षरूपी रत्न का आगार अर्थात् खान है। इस काल ब्रह्म के लोक में आप जी ने भक्ति भी की। परंतु शास्त्रानुकूल साधना बताने वाले तत्त्वदर्शी संत न मिलने के कारण आप करोड़ों जन्मों से भटक रहे हो। करोड़ों-अरबों रूपये संग्रह करने में पूरा जीवन लगा देते हो। अचानक मृत्यु हो जाती है। वह जोड़ा हुआ धन जो आपके पूर्व के संस्कारों से प्राप्त हुआ था, उसे छोड़कर संसार से चला गया। उस धन के संग्रह करने में जो पाप किए, वे आप जी के साथ गए। आप जी ने उस मानव जीवन में तत्त्वदर्शी संत से दीक्षा लेकर शास्त्राविधि अनुसार भक्ति की साधना नहीं की। जिस कारण से आपको कुछ हाथ नहीं आया। पूर्व के पुण्यों के बदले धन ले लिया। वह धन यहीं रह गया, आपको कुछ भी नहीं मिला। आपको मिले धन संग्रह तथा भक्ति शास्त्रनुकूल न करने के पाप।
जिनके कारण आप कुकर = कुत्ता, खर = गधा, सुकर = सूअर, कौआ = काग पक्षी, हँस= एक पक्षी जो केवल सरोवर में मोती खाता है, बुगा = बुगला पक्षी आदि-आदि की योनियों को प्राप्त करके कष्ट उठाया।
कोटि जन्म तू राजा कीन्हा, मिटि न मन की आशा।
भिक्षुक होकर दर-दर हांड्या, मिला न निर्गुण रासा।।
सरलार्थ:- हे मानव! आप जी ने काल (ब्रह्म) की कठिन से कठिन साधना की। घर त्यागकर जंगल में निवास किया, फिर भिक्षा प्राप्ति के लिए गाँव व नगर में घर-घर के द्वार पर हांड्या अर्थात् घूमा। जंगल में साधनारत साधक निकट के गाँव या शहर में जाता है। एक घर से भिक्षा पूरी नहीं मिलती तो अन्य घरों से भोजन लेकर जंगल में चला जाता है। कभी-कभी तो साधक एक दिन भिक्षा माँगकर लाते हैं, उसी से दो-तीन दिन निर्वाह करते हैं। रोटियों को पतले कपड़े रूमाल जैसे कपड़े को छालना कहते हैं। छालने में लपेटकर वृक्ष की टहनियों से बाँध देते थे। वे रोटियाँ सूख जाती हैं। उनको पानी में भिगोकर नर्म करके खाते थे। वे प्रतिदिन भिक्षा माँगने जाने में जो समय व्यर्थ होता था, उसकी बचत करके उस समय को काल ब्रह्म की साधना में लगाते थे। भावार्थ है कि जन्म-मरण से छुटकारा पाने के लिए अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्ति के लिए वेदों में वर्णित विधि तथा लोकवेद से घोरतप करते थे। उनको तत्त्वदर्शी संत न मिलने के कारण निर्गुण रासा अर्थात् गुप्त ज्ञान जिसे तत्त्वज्ञान कहते हैं। वह नहीं मिला क्योंकि यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 में तथा चारों वेदों का सारांश रूप श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 4 श्लोक 32 तथा 34 में कहा है कि जो यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों का विस्तृत ज्ञान स्वयं सच्चिदानन्द घन ब्रह्म अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म अपने मुख कमल से बोलकर सुनाता है, वह तत्त्वज्ञान अर्थात् सूक्ष्मवेद है। गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि उस तत्त्वज्ञान को तू तत्त्वज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको दण्डवत् प्रणाम करने से नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को भली-भाँति जानने वाले तत्त्वदर्शी संत तुझे तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे। इससे सिद्ध हुआ कि तत्त्वज्ञान न वेदों में है और न ही गीता शास्त्र में। यदि होता तो एक अध्याय और बोल देता। कह देता कि तत्त्वज्ञान उस अध्याय में पढ़ें। संत गरीबदास जी ने मन के बहाने मानव शरीरधारी प्राणियों को समझाया है कि वह निर्गुण रासा अर्थात् तत्त्वज्ञान न मिलने के कारण काल ब्रह्म की साधना करके आप जी करोड़ों जन्मों में राजा बने। फिर भी मन की इच्छा समाप्त नहीं हुई क्योंकि राजा सोचता है कि स्वर्ग में सुख है, यहाँ राज में कोई सुख-चैन नहीं है, शान्ति नहीं है।
निर्गुण रासा का भावार्थ:- निर्गुण का अर्थ है कि वह वस्तु तो है परंतु उसका लाभ नहीं मिल रहा। वृक्ष के बीज में फल तथा वृक्ष निर्गुण रूप में है, उस बीज को मिट्टी में बीजकर सिंचाई करके वह सरगुण वस्तु (वृक्ष, वृक्ष को फल) प्राप्त की जाती है। यह ज्ञान न होने से आम के फल व छाया से वंचित रह जाते हैं। रासा = झंझट अर्थात् उलझा हुआ कार्य। सूक्ष्मवेद में परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि:-
नौ मन (360 कि.ग्रा.) सूत = कच्चा धागा
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझे न दूजी बार।।
सरलार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि अध्यात्म ज्ञान रूपी नौ मन सूत उलझा हुआ है। एक कि.ग्रा. उलझे हुए सूत को सीधा करने में एक दिन से भी अधिक जुलाहों का लग जाता था। यदि सुलझाते समय धागा टूट जाता तो कपड़े में गाँठ लग जाती। गाँठ-गठीले कपड़े को कोई मोल नहीं लेता था। इसलिए परमेश्वर कबीर जुलाहे ने जुलाहों का सटीक उदाहरण बताकर समझाया है कि अधिक उलझे हुए सूत को कोई नहीं सुलझाता था। अध्यात्म ज्ञान उसी नौ मन उलझे हुए सूत के समान है जिसको सतगुरू अर्थात् तत्त्वदर्शी संत ऐसा सुलझा देगा जो पुनः नहीं उलझेगा। बिना सुलझे अध्यात्म ज्ञान के आधार से अर्थात् लोकवेद के अनुसार साधना करके स्वर्ग-नरक, चैरासी लाख प्रकार के प्राणियों के जीवन, पृथ्वी पर किसी टुकड़े का राज्य, स्वर्ग का राज्य प्राप्त किया, पुनः फिर जन्म-मरण के चक्र में गिरकर कष्ट पर कष्ट उठाया। परंतु काल ब्रह्म की वेदों में वर्णित विधि अनुसार साधना करने से वह परम शांति तथा सनातन परम धाम प्राप्त नहीं हुआ जो गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है और न ही परमेश्वर का वह परम पद प्राप्त हुआ जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है। काल ब्रह्म की साधना से निम्न लाभ होता रहता है।
वाणी नं 3:- इन्द्र-कुबेर, ईश की पदवी, ब्रह्मा वरूण धर्मराया।
विष्णुनाथ के पुर कूं जाकर, बहुर अपूठा आया।।
सरलार्थ:- काल ब्रह्म की साधना करके साधक इन्द्र का पद भी प्राप्त करता है। इन्द्र स्वर्ग के राजा का पद है। इसकोे देवराज अर्थात् देवताओं का राजा तथा सुरपति भी कहते हैं। यह सिंचाई विभाग अर्थात् वर्षा मंत्रालय भी अपने आधीन रखता है।
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jayshriram2947 · 1 year
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अति दुर्लभ कैवल्य परम पद। संत पुरान निगम आगम बद॥
राम भजत सोइ मुकुति गोसाईं। अनइच्छित आवइ बरिआईं॥2॥
संत, पुराण, वेद और (तंत्र आदि) शास्त्र (सब) यह कहते हैं कि कैवल्य रूप परमपद अत्यंत दुर्लभ है, किंतु हे गोसाईं! वही (अत्यंत दुर्लभ) मुक्ति श्री रामजी को ��जने से बिना इच्छा किए भी जबर्दस्ती आ जाती है॥2॥
��िमि थल बिनु जल रहि न सकाई। कोटि भाँति कोउ करै उपाई॥
तथा मोच्छ सुख सुनु खगराई। रहि न सकइ हरि भगति बिहाई॥3॥
जैसे स्थल के बिना जल नहीं रह सकता, चाहे कोई करोड़ों प्रकार के उपाय क्यों न करे। वैसे ही, हे पक्षीराज! सुनिए, मोक्षसुख भी श्री हरि की भक्ति को छोड़कर नहीं रह सकता॥3॥
अस बिचारि हरि भगत सयाने। मुक्ति निरादर भगति लुभाने॥
भगति करत बिनु जतन प्रयासा। संसृति मूल अबिद्या नासा॥4॥
ऐसा विचार कर बुद्धिमान् हरि भक्त भक्ति पर लुभाए रहकर मुक्ति का तिरस्कार कर देते हैं। भक्ति करने से संसृति (जन्म-मृत्यु रूप संसार) की जड़ अविद्या बिना ही यंत्र और परिश्रम के (अपने आप) वैसे ही नष्ट हो जाती है,॥4॥
भोजन करिअ तृपिति हित लागी। जिमि सो असन पचवै जठरागी॥
असि हरि भगति सुगम सुखदाई। को अस मूढ़ न जाहि सोहाई॥5॥
जैसे भोजन किया तो जाता है तृप्ति के लिए और उस भोजन को जठराग्नि अपने आप (बिना हमारी चेष्टा के) पचा डालती है, ऐसी सुगम और परम सुख देने वाली हरि भक्ति जिसे न सुहावे, ऐसा मूढ़ कौन होगा?॥5॥
दोहा :
सेवक सेब्य भाव बिनु भव न तरिअ उरगारि।भजहु राम पद पंकज अस सिद्धांत बिचारि॥119क॥
हे सर्पों के शत्रु गरुड़जी! मैं सेवक हूँ और भगवान् मेरे सेव्य (स्वामी) हैं, इस भाव के बिना संसार रूपी समुद्र से तरना नहीं हो सकता। ऐसा सिद्धांत विचारकर श्री रामचंद्रजी के चरण कमलों का भजन कीजिए॥119(क)॥
जो चेतन कहँ जड़ करइ जड़हि करइ चैतन्य।अस समर्थ रघुनायकहि भजहिं जीव ते धन्य॥119ख॥
जो चेतन को जड़ कर देता है और जड़ को चेतन कर देता है, ऐसे समर्थ श्री रघुनाथजी को जो जीव भजते हैं, वे धन्य हैं॥119(ख)॥
जय श्री राम🏹ᕫ🙏श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड गरुड़ काकभुशुण्डि संबाद
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helputrust · 2 years
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तम्बाकू खाने से गला, मुँह्, श्वासनली व फेफड़ों का कैंसर होता है। तम्बाकू मे अन्य बहुत से कैंसर उत्पन्न करने वाले तत्व पाये जाते है  - प्रो० (डॉ०) राजेन्द्र प्रसाद
नशे से सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं उसके साथ रहने वाले परिवार तथा आसपास के लोग भी बहुत अधिक प्रभावित होते है - डॉ रूपल अग्रवाल
“जन-जन का यही संदेश, नशा मुक्त हो अपना देश” l
लखनऊ 31 मई, 2022 | माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के आह्वान "तम्बाकू सेवन को ना कहकर हम स्वस्थ भारत की नीव रख सकते हैं” से प्रेरित होकर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने “विश्व तम्बाकू निषेध दिवस-2022” के अवसर पर ट्रस्ट के सेक्टर-25, इंदिरा नगर, कार्यालय के राम दरबार में ऑनलाइन विचारगोष्ठी, विषय: “तम्बाकू हमें और हमारे घर, परिवार, समाज को मार रहा है” का आयोजन किया l
“ऑनलाइन विचारगोष्ठी” में प्रमुख वक्तागणों के रूप में प्रो० (डॉ०) राजेन्द्र प्रसाद, वरिष्ठ पल्मोनरी चिकित्सक, श्री महेन्द्र भीष्म, साहित्यकार, श्रीमती वंदना सिंह, शिक्षाशास्त्री ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये I विचारगोष्ठी का सीधा प्रसारण फेसबुक लिंक https://www.facebook.com/HelpUEducationalAndCharitableTrust पर किया गया I जिसमें लोगों ने तम्बाकू से स्वस्थ्य व पर्यावरण पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को जाना I
प्रो० (डॉ०) राजेन्द्र प्रसाद, जो वर्तमान में विभागाध्यक्ष, पल्मोनरी विभाग, एरा मेडिकल कालेज हैं तथा पूर्व में निर्देशक, वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट, दिल्ली, और विभागाध्यक्ष, पल्मोनरी विभाग, KGMU रहे हैं I (डॉ०) राजेन्द्र प्रसाद ने तम्बाकू से स्वास्थ्य पर होने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में बताते हुए कहा कि, “प्रति वर्ष 31 मई को धूम्रपान से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूकता फैलाने हेतु "विश्व तम्बाकू निषेध दिवस" मनाया जाता है। तम्बाकू से प्रति वर्ष 8 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो जाती है। इनमें से 7 लाख से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु तम्बाकू का सेवन करने व तकरीबन 1.2 लाख लोग तम्बाकू सेवन करने वाले लोगों के सम्पर्क में आकर मौत का शिकार हो जाते हैं। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (GATS 2) के अनुसार औसतन 42.4% पुरुष व 14.2% महिलायें तम्बाकू का उपयोग करते हैं एवं करीब 38.7% वयस्क घर में ही परोक्ष धूम्रपान (Second hand smoke) के शिकार हो जाते हैं। तम्बाकू के सेवन से न सिर्फ श्वसन संबंधी रोग जैसे फेफड़ों का कैंसर, COPD, श्वसन नली में इन्फेक्शन होते हैं बल्कि हृदय सम्बन्धी रोग, मुख कैंसर, अन्नप्रणाली कैंसर व मोतियाबिंद जैसी बीमारियों भी हो जाती हैं। डा० प्रसाद ने आगे कहा कि धूम्रपान में, भारत में सबसे अधिक बीड़ी का उपयोग किया जाता है, जो कि सिगरेट स्मोकिंग से भी ज्यादा हानिकारक है। इस वर्ष विश्व तम्बाकू निषेध दिवस की थीम है:- Protect the environment अर्थात हमें अपने आस-पास के वातावरण को तम्बाकू से होने वाले दुष्प्रभावों से बचाना है क्योंकि तम्बाकू न सिर्फ हमारी पृथ्वी को दूषित करता है अपितु मानव जाति के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है। फेंके हुऐ सिगरेट के टुकड़ों से प्लास्टिक प्रदूषण फैलता है। तम्बाकू की खेती करने में बहुत सारे रसायनों का प्रयोग किया जाता है जो पर्यावरण के लिये अत्यन्त हानिकारक है। तम्बाकू को उगाने के लिये अत्यधिक मात्रा में पानी का इस्तेमाल होता है, जिससे वातावरण में पानी की कमी हो जाती है। जंगलों के कटने से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ जाता है जोकि मानव जाति के लिये घातक है। संक्षेप में तम्बाकू हर तरीके से हमारे शरीर व पर्यावरण को हानि पहुंचा रहा है I Covid-19 महामारी के दौरान जब लोगों को यह बात पता चली कि धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों पर कोविड़ -19 के दुष्प्रभाव अधिक होते हैं तो लोगों में धूम्रपान न करने की ललक दिखी परन्तु धूम्रपान एक ऐसी आदत है जो एक बार लग जाये तो उसे छुटाना बहुत मुश्किल होता है। अध्ययनों से भी यह सिद्ध हो चुका है कि धूम्रपान करने वालों पर कोरोना का अधिक प्रभाव दिखाई दिया है।
अतः मनुष्य जाति और अपनी पृथ्वी को बचाने हेतु तम्बाकू को "न" कहें और तम्बाकू के उत्पाद और उपयोग पर रोक लगाये । विश्व तम्बाकू निषेध दिवस- 2022 को हम सब यह संकल्प लें कि अपनी धरती को धूम्रपान और उससे होने वाले दुष्प्रभावों से मुक्ति दिलाएंगे।
श्री महेन्द्र भीष्म ने अपने अभिभाषण कहा कि, “आज विश्व तंबाकू निषेध दिवस है विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा अप्रैल 1987 को यह तय किया गया था कि प्रत्येक वर्ष 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन तंबाकू से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्परिणामों के प्रति लोगों को जागरूक करने का कार्य किया जाता है। विश्व में प्रत्येक वर्ष लगभग 67 लाख व्यक्ति तंबाकू से मृत्यु को प्राप्त होते हैं। घर परिवार और समाज के लिए तंबाकू का प्रयोग किसी भी रूप में क्यों न किया जाता हो वह न केवल मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है, बल्कि इससे सामाजिक रिश्ते भी खराब होते हैं। श्री महेन्द्र भीष्म ने अपनी एक कहानी जो 'स्टोरी' शीर्षक से है, प्रस्तुत की । इस कहानी में तंबाकू से होने वाले दुष्परिणाम का चित्रण तो है ही साथ ही किस तरह से यह दिवस एक खानापूर्ति बनकर रह गया है इस पर करारा व्यंग्य किया गया है।
श्रीमती वंदना सिंह ने विद्यार्थियों के जीवन में तम्बाकू के कारण हो रहे दुष्प्रभावों को बताते हुए कहा कि, सभी जानते हैं कि गुटका और सिगरेट स्वास्थ्य के लिए कितने नुकसानदेह है जो उसकी पैकेजिंग पर भी पिक्चर बना कर चेतावनी दी जाती है। लेकिन ये कोई कम्पनी नहीं बताती किं ये सिर्फ हमारा नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए, जलवायु के लिए कितना खतरनाक है। इसका कूड़ा जो गैर-अपघटनीय प्लास्टिक से बनता है 2.4 मिलियन है जो की फ़ूड के पैकेजिंग कूड़े से भी कहीं ज्यादा हैं जो कि 1.7 मिलियन है। तम्बाकू को इस्तेमाल करने के बाद का कूड़ा हमारे ग्रह को कई तरीके से संकट में डालता है।
कार्यक्रम की संयोजिका व हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, ने सभी वक्तागणों का स्वागत किया व कहा कि, “विश्व भर में हर वर्ष 31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया जाता है l इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को तम्बाकू य�� नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रहने के लिए जागरूक करना है l WHO के अनुसार तम्बाकू के सेवन से हर वर्ष दुनिया भर में 80 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं l तम्बाकू निषेध के प्रति लोगों को जागरूक करने हेतु सिनेमा घरों में किसी भी फिल्म के शुरू होने से पहले भी यही सन्देश दिखाया जाता है कि धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है l पोस्टर, बैनर और दृश्य-श्रव्य माध्यमों के जरिये अक्सर तम्बाकू निषेध के सन्देश दिखाई देते हैं फिर भी लोग जानबूझकर अपना और अपने परिवार का जीवन खतरे में डालते हैं” l
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने (डॉ०) राजेन्द्र प्रसाद की प्रेरणा से अनेकों चिकित्सकीय तथा टीबी जागरूकता शिविरों का आयोजन किया है, इसी क्रम में तम्बाकू निषेध के लिए जागरूकता फ़ैलाने हेतु हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा इस ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया है l
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#SantRampalJiMaharaj
जानें असली राम कौन है जो जन्म मृत्यु में नहीं आता
और जिसकी पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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daseshwari · 2 years
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#SupremeKnowledge_Of_GodKabir
🌸🌸पर्वत पर्वत में फिरया, कारण अपने राम।
राम सरीखे जन मिले, जिन सारे सब काम।।🌸🌸
🔔14 जून कबीर प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में जरूर जानें कबीर साहिब जी का शास्त्र प्रमाणित तत्वज्ञान🔔
आज का समाज परमात्मा कबीर जी को एक सामान्य संत समझता है जबकि अपनी महिमा बताते हुए परमात्मा कबीर जी ने हमें बताया कि वही सृष्टि के रचनहार हैं और चारों युगों में आते हैं अपनी प्यारी आत्माओं को मिलते हैं जो युगों- युगों से परमात्मा प्राप्ति के लिए भटक रहे हैं।
आज तक हम जो भी साधना भक्ति करते आ रहे थे। उससे ना तो सुख की प्राप्ति होती है और ना ही मोक्ष की। जितने भी संत, गुरु व महामंडलेश्वर हुए हैं उन्हें स्वर्ग तक की ही जानकारी है। परंतु कबीर परमेश्वर ने हमें सतलोक के विषय में बताया कि ऊपर एक ऐसा लोक है जहां कोई कष्ट नहीं है सुख ही सुख है। जिस की गवाही संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में दी है।
संखों लहर मेहर की ऊपजैं, कहर नहीं जहाँ कोई।
दास गरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।
कबीर परमेश्वर ने ही यथार्थ ज्ञान बताया कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश की जन्म और मृत्यु होती है, ये अविनाशी नहीं हैं।
यही प्रमाण श्रीमद्देवी भागवत पुराण, स्कंद 3, अध्याय 5 में है।
कबीर परमेश्वर ने बताया कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश की भी जन्म तथा मृत्यु होती है। इनकी माता दुर्गा तथा पिता काल (ब्रह्म) हैं।
कबीर, मां अष्टंगी पिता निरंजन, ये जम दारुण वंशन अंजन।
तीन पुत्र अष्टंगी जाए, ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराए।।
जहां हम रह रहे हैं यह काल का लोक हैं यह 21 ब्रह्मांडों का स्वामी हैं इस काल को एक लाख मानव शरीरधारी प्राणियों का आहार करने का शाप लगा है काल (ब्रह्म) इक्कीस ब्रह्मण्ड के प्राणियों को तप्तशिला पर भून कर खाता है। इसीलिए जन्म-मृत्यु तथा अन्य दुःखदाई योनियों में पीड़ित करता है तथा अपने तीनों पुत्रों रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी से उत्पत्ति, स्थिति, पालन तथा संहार करवा कर अपना आहार तैयार करवाता है।
जितने भी धर्मगुरु हुए हैं उनका कहना है कि मनुष्य को अपने किये कर्मों को भोगकर ही पूरा करना पड़ता है
जबकि यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि परमात्मा साधक के घोर से घोर पापों का भी नाश कर देता है
ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 161 मंत्र 2, 5, सुक्त 162 मंत्र 5, सुक्त 163 मंत्र 1 - 3 में स्पष्ट है कि यदि रोगी की जीवन शक्ति नष्ट हो गई हो और रोगी मृत्यु के समीप पहुंच गया हो तो भी परमात्मा उसको सही करके सौ वर्ष की आयु प्रदान करता है।
आज वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज के रूप में पूर्ण संत (तत्वदर्शी) संत की भूमिका निभाने वाले कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि स्वयं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी आये हुए हैं उनका लक्ष्य है संपूर्ण विश्व के सभी मानव समाज को अपने शास्त्रों से परिचित कराकर एक परमात्मा की सत भक्ति करवाकर मोक्ष प्रदान करना अपने निज घर सतलोक ले जाना है।
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
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Kabir Prakat Diwas 14 June
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