क्या श्री राम की मृत्यु श्रीकृष्ण की मृत्यु से केवल 200 वर्ष पहले हुई थी
कृष्ण द्वापर युग में रहते थे, जो त्रेता युग के 8,64,000 साल बाद हुआ था। हम सभी जानते हैं कि रामायण त्रेता युग में हुई थी
हालांकि, जब हम वास्तविक खगोलीय घटनाओं जैसे राम की कुंडली, रामायण और महाभारत के दौरान हुए ग्रहणों से विभिन्न पुराणों और ज्योतिषीय आंकड़ों को क्रॉस-सारणीबद्ध करते हैं, तो ये जांच स्थापित करती हैं कि श्री राम की मृत्यु कृष्ण से केवल 200 साल पहले हुई थी।
मेरे विचार से यह…
*🙇🏽♂️ बन्दीछोड सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय 🙇🏽♂️*
*📚 भक्ति बोध*
*📚 असुर निकंदन रमैणी का सरलार्थ*
*🍁 वाणी :-*
कालयवन मथुरा पर धाये।
18 कोटि कटक दल चढ़ि आए।।(64)
मुचकन्द पर पीताम्बर डार्या।
कालयवन जहाँ बेग सिंघार्या।।(65)
*➡️ सरलार्थ :- कहते हैं कि कंश की मृत्यु जब श्री कृष्ण ने कर दी तो उसका ससुर कालयवन बदला लेने की भावना से श्री कृष्ण को मारने के लिए 18 करोड़ सेना लेकर मथुरा की ओर शीघ्रता से दौड़ा तथा चढ़ाई कर दी। (चढ़ाई करना=हमला करना) उस समय राजा अग्रसैन (कंश का पिता) ने अपने दोहते (देवकी के पुत्र) श्री कृष्ण को मथुरा राजा नियुक्त कर दिया था। मथुरा में सेना कम थी। जिस कारण से श्री कृष्ण जी ने सेना को युद्ध करने के लिए तैयार किया, मैदान में खड़ा कर दिया। दूसरी ओर कालयवन की सेना खड़ी हो गई। कुछ दिन पहले नारद मुनि जी ने श्री कृष्ण जी को बताया था कि थोड़ी दूर पर एक गुफा है। एक मुचकन्द नाम का राजा सो रहा है। वह छः महीने सोता और छः महीने जागता है। यदि उसको सोते हुए को छः महीने होने से पहले जगा देता है तो मुचकन्द की आँखों से अग्नि बाण छूटते हैं, जगाने वाला मारा जाता है। श्री कृष्ण जी भी रथ पर सवार होकर लड़ाई के लिए तैयार होकर कालयवन के सामने गए। श्री कृष्ण जी ने देखा कि कालयवन की सेना हमारी सेना से कई गुणा अधिक है तो लड़ाई से विजय सम्भव न जानकर नारद जी की बात याद आई और कालयवन को मुचकन्द से मरवाने की योजना बनाई। कालयवन को युद्ध के लिए ललकारा। सेना लड़ने लगी। कालयवन भी श्री कृष्ण के साथ युद्ध करने के लिए आगे बढ़ा तो श्री कृष्ण जी रण छोड़कर रथ सहित भाग लिए। जिस कारण से श्री कृष्ण को रणछोड़ भगवान कहा जाने लगा। श्री कृष्ण जी ने रथ को गुफा के सामने छोड़ा, स्वयं गुफा में प्रवेश कर गए। कालयवन सब देख रहा था। वह भी पीछे-पीछे गुफा में गया। श्री कृष्ण जी ने अपना पीताम्बर (पीला वस्त्र चद्दर जो पीले रंग की थी) मुचकन्द के ऊपर डाल दी और स्वयं गुफा में थोड़ा आगे जाकर अन्धेरे में छिप गया। कालयवन ने मुचकन्द को श्री कृष्ण जानकर पैर पकड़कर मरोड़ा और कहा, कायर! उठ यहाँ क्यों छिप गया? आज तेरा काम-तमाम कर दूंगा। मुचकन्द की नींद खुल गई। आँखों से अग्नि बाण छूटे और कालयवन मारा गया। श्री कृष्ण जी ने कालयवन के शव को घसीटकर दोनों सेनाओं के बीच में डाल दिया। जब कालयवन की सेना को पता लगा कि उनका राजा मारा गया तो अपनी हार मान ली, हथियार डाल दिए। राजा का शव लेकर चले गए, परंतु चेतावनी दे गए कि दूसरा राजा नियुक्त होने के पश्चात् फिर लड़ाई करने आएंगे। श्री कृष्ण जी ने सोचा कि यहाँ रहना उचित नहीं है। इसलिए मथुरा-वृन्दावन को त्यागकर वहाँ से 1600 (सोलह सौ) कि.मी. दूर गुजरात प्रान्त में समुद्र के अंदर एक लंबा-चौड़ा टापू था जिसके तीन ओर समुद्र था, केवल एक ओर खाली था। उसका एक द्वार होने के कारण उस टापू का नाम द्वारिका (द्वार इका=एक द्वार वाली नगरी) पड़ा। श्री कृष्ण जी ने सब सेना को उस द्वार पर रख लिया और मथुरा की सब जनता को लाकर उस एक रास्ते वाले टापू (द्वारिका) में बस गए। यह टापू लगभग 100 (सौ) मील लम्बा तथा 12 मील चौड़ा था, परंतु आगे वाला हिस्सा केवल 4 मील चौड़ा तथा तथा छ: मील लंबा था। इसके साथ-साथ बाहर का क्षेत्र भी श्री कृष्ण के आधीन था। द्वारिका में नगर बनाकर रहने लगे। अंत में द्वारिका में 56 करोड़ यादव हो गए थे। लगभग एक अरब की जनसँख्या श्री कृष्ण के वंशज यादवों की हो गई थी। पुरूष 56 करोड़ थे, स्त्रियाँ भी लगभग बराबर थी।(64-65)*
*🚨 मालिक की दया से इससे आगे की वाणी का सरलार्थ कल सुबह 9 बजे ग्रुप में डाला जाएगा जी।*
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
*‘‘तीनों गुण रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी हैं। ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुए हैं तथा तीनों नाशवान हैं‘‘*
📜प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिव महापुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार पृष्ठ सं. 24 से 26 विद्यवेश्वर संहिता तथा पृष्ठ 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता ‘‘इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु तथा शिव तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म-काल) गुणातीत कहा गया है।
दूसरा प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123:- भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तुति की: कहा कि मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शंकर तुम्हारी कृपा से विद्यमान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होती है। हम नित्य (अविनाशी) नहीं हैं। तुम ही नित्य हो, जगत् जननी हो, प्रकृति और सनातनी देवी हो। भगवान शंकर ने कहा: यदि भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु तुम्हीं से उत्पन्न हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाला मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ ? अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हों। इस संसार की सृष्टि-स्थिति-संहार में तुम्हारे गुण सदा सर्वदा हैं। इन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम, ब्रह्मा-विष्णु तथा शंकर नियमानुसार कार्य में तत्त्पर रहते हैं।
उपरोक्त यह विवरण केवल हिन्दी में अनुवादित श्री देवीमहापुराण से है, जिसमें कुछ तथ्यों को छुपाया गया है। इसलिए यही प्रमाण देखें श्री मद्देवीभागवत महापु���ाण सभाषटिकम् समहात्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुम्बई, इसमें संस्कृत सहित हिन्दी अनुवाद किया है। तीसरा स्कंद अध्याय 4 पृष्ठ 10, श्लोक 42ः-
ब्रह्मा - अहम् ईश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे वयं जनि युता न यदा तू नित्याः के अन्ये सुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या त्वमेव जननी प्रकृतिः पुराणा। (42) हिन्दी अनुवाद:- हे मात! ब्रह्मा, मैं तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, नित्य नही हैं अर्थात् हम अविनाशी नहीं हैं, फिर अन्य इन्द्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम ही अविनाशी हो, प्रकृति तथा सनातनी देवी हो।
पृष्ठ 11-12, अध्याय 5, श्लोक 8:- यदि दयार्द्रमना न सदांऽबिके कथमहं विहितः च तमोगुणः कमलजश्च रजोगुणसंभवः सुविहितः किमु सत्वगुणों हरिः।(8)
अनुवाद:- भगवान शंकर बोले:-हे मात! यदि हमारे ऊपर आप दयायुक्त हो तो मुझे तमोगुण क्यों बनाया, कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को रजोगुण किस लिए बनाया तथा विष्णु को सतगुण क्यों बनाया? अर्थात् जीवों के जन्म-मृत्यु रूपी दुष्कर्म में क्यों लगाया? श्लोक 12:- रमयसे स्वपतिं पुरुषं सदा तव गतिं न हि विह विद्म शिवे (12)
हिन्दी - अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।
निष्कर्ष:- उपरोक्त प्रमाणों से प्रमाणित हुआ की रजगुण - ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव है ये तीनों नाशवान है। दुर्गा का पति ब्रह्म (काल) है यह उसके साथ भोग विलास करता है।
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कौन है पूर्ण परमात्मा/अविनाशी भगवान जो कभी माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते, ना ही मृत्यु को प्राप्त होते, सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं?
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब प्रत्येक युग मे आते हैं, माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं, सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं। सतलोक से आते हैं शिशु रूप में प्रकट होते हैं। सभी धर्मों में फैली कुरीतियों को दूर कर सद्भक्ति बताकर जाति, धर्म का का भेद मिटाकर मानव धर्म की स्थापना करते हैं।
505 वर्ष पहले कबीर साहिब सतलोक जा रहे थे तब हिन्दू-मुस्लिम उनके शरीर को लेकर लड़ने को तैयार हो रहे थे, तब कबीर जी ने समझाया मेरा शरीर नहीं मिलेगा, जो मिलेगा उसको आधा आधा बांट लेना।
उनके शरीर के स्थान पर सुगन्धित पुष्प मिले।
आज भी मगहर में इसका प्रमाण है। वहाँ एक ही स्थान पर हिन्दू मुस्लिमों ने मजार बना रखी है।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) को काशी के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर प्रकट हुए तथा माघ मास की शुक्ल एकादशी वि.सं.1575 सन् 1518 को मगहर से सशरीर सतलोक गये।
कबीर साहेब के अतिरिक्त जितने भी देव/साहब/भगवान है सभी जन्म मृत्यु में हैं। अर्थात अविनाशी नहीं हैं।
कबीर साहेब की वाणी है:-
राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाहि संसार।
जिन साहब संसार किया, सो किनहु ना जनम्या नार।।
अर्थात सभी अवतार, तीनों प्रधान देव (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी ) तथा इनके पिता ब्रह्म (काल) भी जन्म मृत्यु में हैं।
जबकि पूर्ण परमात्मा कविर्देव/ कबीर साहेब अविनाशी, जन्म-मृत्यु से परे हैं, सर्व सृष्टि रचनहार हैं, कुल के मालिक हैं।
कबीर साहेब की वाणी:-
ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे कूं पाया।।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब 505 वर्ष पहले काशी में लहरतारा तालाब में सन 1398 में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे वहां से नि:संतान दंपति नीरू नीमा उनको ले गए थे। 120 वर्ष तक लीला की, अपनी प्यारी आत्माओं को तत्वज्ञान बताया। सामाजिक कुरूतियों तथा पाखण्डवाद का विरोध किया। जातिवाद तथा साम्प्रदायिकता को मिटाकर सबको मानवता के सूत्र में पिरोया।
1518 में सशरीर अपने निज धाम सतलोक गये। जाते समय हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच होने वाले भयंकर गृहयुद्ध को टाल दिया।
कबीर परमेश्वर ने कहा था कि ��ब कलयुग 5505 वर्ष बीत जायेगा तब मैं पुनः पृथ्वी पर आऊँगा। सब धर्म / पंथों को मिटाकर एक कर दूँगा।
#कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023
#मगहर_लीला
#SantRampalJiMaharaj
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📜सतगुरु के दरबार में कमी काहे की नाहीं। हंसा मौज न पावता तेरी चूक चाकरी माहीं।।
मैं भक्त रामजी दास ग्राम-कटरा पोस्ट-सलेहा, जिला-पन्ना (मध्यप्रदेश) का निवासी हूँ। मैं बचपन से परमात्मा की खोज में लगा हुआ था और हिन्दू धर्म के मंदिरों व धामों आदि पर जाता रहता था। साथ ही एक कबीरपंथी संत से नाम-उपदेश भी लिया हुआ था। मेरी शादी को कई साल बीत गए थे। लेकिन हमें कोई संतान प्राप्ति नहीं हुई। जहाँ मैडिकल फेल हो जाता है, वहाँ परमात्मा का विधान शुरू होता है।
कई जगह (देवी-देवताओं के पास मंदिर-मस्जिद, झाड़-फंूक करवाया) गए, वैष्णो देवी जम्मू भी गया, बड़े-बड़े डाॅक्टरों को दिखाया। सबसे पहले सिविल अस्पताल मैहर में डाॅ. श्रीमति एस. बी. अवधाया एम.डी., प्रसूति एवम् स्त्राी रोग चिकित्सक को दिखाया और अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी के द्वारा उन्होंने देखा कि उनकी बच्चेदानी में गाँठें हैं, वे निकालनी पड़ेंगी। इसके लिए सतना में जाना पड़ेगा। 18 फरवरी 2009 में शकुंतलम् नर्सिंग होम सतना में बच्चेदानी का आॅपरेशन हुआ। इसके बाद भी हमें संतान प्राप्ति नहीं हुई। लेकिन दवाएँ चलती रही। इसके बाद सन् 2012 में शारदा हाॅस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर सतना में डाॅ. महेन्द्र सिंह के यहाँ 1 वर्ष तक इलाज चला। फिर अंत में डाॅक्टरों ने हमें बोल दिया कि आप टेस्ट-ट्यूब बेबी करवा सकते हैं। परंतु उसकी भी कोई गारंटी नहीं है। उसमें लाख दो लाख रूपये खर्च आता है।
हम गरीब आदमी इतनी बड़ी रकम कहाँ से लाते? हमने मना कर दिया। हमने दुनिया के लोगों की रोज की बातों से तंग आकर फैसला किया कि चलो! रोज की खिच-खिच से अच्छा हम नोएडा (उत्तर प्रदेश) चलते हैं। वहीं काम करेंगे और वहीं इलाज करवाएँगे। फिर हमने सुन रखा था कि वैष्णों देवी जाने से संतान प्राप्ति होती है तो जुलाई 2012 में कटरा (जम्मू) जाकर वैष्णों देवी की यात्रा की। इससे भी कोई राहत नहीं मिली। हम मकर सक्रांति को जनवरी 2013 को घर आये। हम साधना चैनल पर सत्संग कार्यक्रम देखते थे। मेरे पिता जी बोले कि कबीर साहेब जी का सत्संग आता है, आप भी देखो। हमने सत्संग देखा और पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ मंगवाई जो हमारे घर निःशुल्क प्राप्त हुई। पिताजी बोले कि आप बरवाला आश्रम चले जाओ, परमात्मा शायद दया करें।
हम दोनों ने 21 अप्रैल 2013 को सतलोक आश्रम बरवाला में सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम-दीक्षा लेकर अरदास लगाई कि कई साल हो गए, हमें संतान प्राप्ति नहीं हो रही है। परमात्मा बोले कि बेटा! भक्ति करो, परमात्मा दया करेंगे। इस प्रकार चलते-चलते नवम्बर 2014 में बरवाला कांड की लीला हो गई। हम घर आ गए। हमें पता लग गया था कि ये मानव जीवन किसलिए मिला है और हम भक्ति करने लगे थे। कुछ दिनों बाद फिर घर-परिवार वाले और रिश्तेदार वही पुराना रोना रोने लगे कि एक संतान तो होनी ही चाहिए। गाँव के लोग तो कभी-कभी यहाँ तक बोलने लगे कि इनका तो मुँह भी नहीं देखना चाहिए। एक दिन भक्तमति बोली कि चलो दवा करवाते हैं। परमात्मा दवा के लिए तो मना नहीं करते। हमने गुरु जी से अरदास लगाई कि दवा करवा लें। गुरु जी बोले कि करवा लो, परमात्मा दया करेंगे। फिर हमने डाॅ. आभा पाठक नर्सिंग होम सतना में मार्च 2019 में इलाज शुरू किया। उन्होंने भी लाॅस्ट में बोल दिया कि हम ऐसे केस नहीं लेते। आपका तो भगवान ही मालिक है। अब मेडिकल और सांइस दोनों फेल हो चुके थे। डाॅक्टर मैडम के ऐसे बोलने पर हमने फैसला कर लिया कि अब हम कहीं दवा नहीं करवाएँगे।
जो करेंगे, वो सब बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज ही करेंगे। फिर सितम्बर 2020 में परमात्मा ने अपने कोटे से एक भक्त आत्मा हमें संतान रूप में दी जो हमारी किस्मत में नहीं थी। वह परमात्मा ने दी। यहाँ तक कि जब हमारी भक्तमति घर से बाहर निकलती थी तो लोग बोलते थे कि यह बांझ है, इसका मुँह नहीं देखना चाहिए। परमात्मा ने उन्हें भी दिखा दिया।
उसके बाद तो परमात्मा पल-पल हमारे साथ चमत्कार करते हैं। एक समय की बात है, हम और भक्तमति मोटरसाइकिल पर कहीं जा रहे थे। अचानक हमारा एक्सीडेंट हो गया। भक्तमति ���ा सिर फट गया। मुँह से झाग निकलने लगा, मानो मृत्यु हो गई हो। अस्पताल में डाॅक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि ये बेहोश हैं और सिर की चोट है। अगर इनको होश नहीं आया तो ये कोमा में भी जा सकती हैं। सुबह 10ः00 बजे हमारा एक्सीडेंट हुआ था और शाम को 3ः00 बजे के आसपास भक्तमति जी को होश आ गया और हम घर आ गये।
एक जगह दास मजदूरी करता है। एक जगह काम के लिए गया था। जिनके यहाँ काम करना था, उनका मकान जर्जर था। जैसे ही दास ने प्रवेश किया, उस मकान में ऊपर से एक लकड़ी का गार्डर मेरे ऊपर गिर गया और लोगों ने कहा कि यह तो मर गया होगा। लेकिन जब दास ने ऊपर देखा तो सिर से 6 अंगुल ऊपर वह गार्डर का टुकड़ा हवा में लटकता रहा। जब दास ने उसको देखा तो दास के आँसू निकलने लगे। परमात्मा की केवल एक वाणी याद आई कि:-
🌲 पूर्ण परमात्मा कबीर जी ही वास्तव में अविनाशी हैं 🌲
हिन्दू धर्म में अनेकों देवी देवता हैं। परंतु वह सभी देवी-देवता तथा 24 अवतार जो हुए हैं वे कर्मों के अनुसार ही जीव को कर्म फल प्रदान करते हैं। पापकर्म नहीं काट सकते। और कर्म फल को भोगने से ये देवी देवता भी नहीं बच पाए।
जैसे की तीन ताप के अन्तर्गत भगवान विष्णु जी को भी कर्म का फल राम और कृष्ण अवतार रूप में भोगना पड़ा।
श्रीकृष्ण जी ने श्री राम वाले जन्म में बाली को धोखे से मारने का कर्म भोगा। बाली को धोखे से मारने का कर्म श्री कृष्ण रुप में भोगा।
बाली वाली जीव आत्मा जो एक भील के रूप में था, उसके द्वारा छोड़े गए विशाख्त तीर लगने के कारण धोखे से मृत्यु हुई।
इसी प्रकार
श्री रामचंद्र जी का वनवास भी उनके प्रारब्ध कर्म फल स्वरुप था।
तैंतीस करोड़ देवताओं का रावण की क़ैद में रहना भी प्रारब्ध का कर्म फल ही था।
इससे सिद्ध है कि ये देवी देवता तथा अवतार तीन ताप का नाश कर अपने तथा अपने भक्तों के कर्मो में फेर बदल नहीं कर सकते। सिर्फ़ पुण्य कर्म फल ही प्रदान कर सकते हैं। पापकर्म नहीं काट सकते। पाप कर्म तो पूर्ण परमात्मा ही काट सकते हैं।
जबकि यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में प्रमाणित है के पूर्ण परमात्मा अपने भक्तों के घोर से घोर पाप भी क्षमा कर देता है। और
वह पूर्ण परमेश्वर कबीर जी हैं।
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में प्रमाण है कि, पूर्ण परमात्मा कबीर जी अपने साधक के रोग समाप्त कर देता है। यदि आयु शेष न हो तो भी परमात्मा उसको स्वस्थ करके सौ वर्ष तक की आयु बढा़ देता है।
इसी प्रकार,
यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में प्रमाण है कि
"कविरंघारि: असि, बम्भारी: असि स्वज्योति ऋतधामा असि" अर्थात कबीर परमेश्वर पापों का शत्रु यानि सर्व पापों से मुक्त करवाकर, सर्व बंधनों से छुड़वाता है। वह स्वप्रकाशित सशरीर है और सतलोक में रहता है।
कबीर साहेब वास्तविक पूर्ण परमेश्वर हैं। जो चारों युगों में स्वयं ही भिन्न-भिन्न नामों से प्रकट होते हैं और अपनी महिमा आप ही बताते हैं। उनका जन्म कभी माता के गर्भ से नहीं होता।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 से 20 में स्पष्ट है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) शिशु रूप धारण करके अपना तत्वज्ञान संसार को देने के लिए प्रकट होता है। जो अपना तत्वज्ञान दोहों, कविताओं द्वारा बोलकर सुनाता है, जिससे लोग उन्हें एक संत और कवि कहकर संबोधित करने लग जाते हैं। वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा है।
कलयुग में भी कबीर परमेश्वर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत 1455 सन् 1398 ब्रह्म मुहूर्त में लहरतारा सरोवर में कमल के फूल पर एक नवजात शिशु का रूप धारण करके प्रकट हुए थे। वह 120 वर्ष तक पृथ्वी पर रहे, अनेकों लीलाएं की और कविताओं व् लोकोक्तियों द्वारा अपने तत्वज्ञान का प्रचार किया था।
कबीर साहेब ने स्वयं कहा है कि:-
"मात-पिता मेरे घर नाहीं, ना मेरे घर दासी।
तारण-तरण अभय पद दाता, हूँ कबीर अविनाशी॥"
लेकिन हिन्दू धर्म के सभी देवी देवता व् अवतारों का जन्म माता के गर्भ से हुआ है।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश को खास तौर पर अविनाशी माना जाता है।
लेकिन श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध पृष्ठ 123 पर स्पष्ट प्रमाण है कि तीनों गुण रजोगुण ब्रह्मा जी, सतोगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी हैं। ये सभी ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुऐ है तथा यह तीनों प्रभु नाशवान हैं।
इससे सिद्ध है कि वास्तविक परमेश्वर सिर्फ़ कबीर जी हैं।
हिंदू तथा अन्य धर्मों द्वारा पूजे जाने वाले देवताओं में से कोई भी उनके शास्त्रों में वर्णित पूर्ण परमात्मा नहीं है। इन देवताओं की शक्ति तो सीमित है लेकिन पूर्ण परमात्मा कबीर जी की शक्ति की कोई सीमा नहीं है।
"कबीर चारभुजा के भजन में, भूलि परे सब संत।
कबीरा सुमिरै तासु को, जाके भुजा अनंत॥"
जैसे कि हम सभी कहते भी हैं कि, परमात्मा ही "अनहोनी को होनी और होनी को अनहोनी" में बदल सकता है।
ऐसे ही अनेकों अनहोनीयां, चमत्कार कबीर परमेश्वर ने किए थे, आज से लगभग 600 वर्ष पहले।
जैसे कि,
कबीर परमेश्वर के सत्य ज्ञान को स्वीकार करके लाखों लोगों ने उनसे उपदेश लिया था। उनकी बढ़ती हुई महिमा के कारण ईष्यावश शेखतकी पीर ने कबीर परमेश्वर को जान से मारने के लिए 52 बार प्रयत्न किए, जिसे बावन कसनी भी कहते हैं।
"मुर्दे को जीवित करना"
एक बार शेखतकी ने शर्त रखी कि, अगर कबीर साहेब मुर्दे को जीवित कर देगा तो मैं उसे अल्लाह मान लूंगा। फिर कबीर परमेश्वर ने
मुसलमान पीर शेखतकी की कब्र में दफ़न मरी हुई लड़की को हजारों लोगों के सामने जीवित किया था। जिसे देखकर हजारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से उपदेश लिया। फिर उस लड़की का नाम कमाली रखा। और पुत्री रूप में पालन पोषण किया।
इसी तरह एक दरिया में बहते हुए शव को हजारों लोगों के सामने जीवित किया था। जिसे कबीर परमेश्वर ने कमाल नाम दिया और पुत्र रुप में पालन पोषण किया।
एक बार कबीर परमेश्वर को शेखतकी ने खूनी हाथी के सामने हाथ पैर बांध कर डलवा दिया। लेकिन जैसे ही हाथी कबीर परमेश्वर के पास आया तो कबीर परमेश्वर ने उसे बब्बर शेर का रुप दिखाया। जिसे देखकर हाथी डरके मारे भाग गया।
◆ कबीर सागर में ‘‘अनुराग सागर’’ अध्याय में धर्मदास जी के विषय में विशेष प्रकरण है जो इस प्रकार है :-
‘‘नारायण दास को काल का दूत बताना‘‘
◆ अनुराग सागर पृष्ठ 115 का सारांश :-
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को सत्यज्ञान समझाकर तथा सत्यलोक में ले जाकर अपना परिचय देकर धर्मदास जी के विशेष विनय करने पर उनको दीक्षा मंत्र दे दिये। प्रथम मंत्र में कमलों के देवताओं के जो जाप मंत्र हैं, वे दिए जाते हैं। धर्मदास जी उन देवों को ईष्ट रूप में पहले ही मानता था, पंरतु अब ज्ञान हो गया था कि ये ईष्ट रूप में पूज्य तो नहीं हैं, परंतु साधना का एक अंग हैं। धर्मदास की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने अपने परिवार का कल्याण करना चाहा। धर्मदास जी के साथ उनकी पत्नी आमिनी देवी दीक्षा ले चुकी थी। केवल इकलौता पुत्र नारायण दास ही दीक्षा बिना रहता
था। धर्मदास जी ने परमात्मा कबीर जी से अपने पुत्र नारायण दास को शरण में लेने के लिए प्रार्थना की।
‘‘धर्मदास वचन‘‘
हे प्रभु तुम जीवन के मूला। मेटेउ मोर सकल तन सूला।।
आहि नरायण पुत्र हमारा। सौंपहु ताहि शब्द टकसारा।।
इतना सुनत सदगुरू हँसि दीन्हा। भाव प्रगट बाहर नहिं कीन्हा।।
भावार्थ :- धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्रार्थना की कि हे प्रभु जी! आप सर्व प्राणियों के मालिक हैं। मेरे दिल का एक सूल यानि काँटे का दर्द दूर करें। मेरा पुत्र नारायण दास है। उसको भी टकसार शब्द यानि वास्तविक मोक्ष मंत्र देने की कृपा करें। जब तक नारायण दास आपकी शरण में नहीं आता। तब तक मेरे मन में सूल (काँटे) जैसा दर्द बना है।
धर्मदास जी की बात सुनकर परमात्मा अंदर ही अंदर हँसे। हँसी को बाहर प्रकट नहीं किया। कारण यह था कि परमेश्वर कबीर जी तो जानीजान हैं, अंतर्यामी हैं। उनको पता था कि काल का मुख्य दूत मृत्यु अंधा ही नारायण दास रूप में धर्मदास के घर पुत्र रूप में
भावार्थ :- कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हे धर्मदास! अपने पुत्र को भी बुला ले और जो कोई आपका मित्र या निकटवासी है, उनको भी बुला लो, सबको एक-साथ दीक्षा दे दूँगा।
धर्मदास जी ने नारायण दास तथा अन्य आस-पड़ोस के स्त्री-पुरूषों से कहा कि परमात्मा आए हैं, दीक्षा लेकर अपना कल्याण कराओ। फिर यह अवसर हाथ नहीं आएगा। यह बात सुनकर आसपास के बहुत से जीव आ गए, परंतु नारायण दास नहीं आया। धर्मदास जी को चिंता हुई कि मेरा पुत्र क्यों नहीं आया? वह तो बड़ा प्रवीन है। तीक्ष्ण बुद्धि वाला है। धर्मदास जी ने अपने नौकर तथा नौकरानियों से कहा कि मेरे पुत्र नारायण दास को बुलाकर लाओ।
नौकरों ने देखा कि वह गीता पढ़ रहा था और आने से मना कर दिया।
‘‘नारायण दास वचन‘‘
हम नहिं जायँ पिता के पासा। वृद्ध भये सकलौ बुद्धि नाशा।।
हरिसम कर्ता और कहँ आहि। ताको छोड़ जपैं हम काही।।
वृद्ध भये जुलाहा मन भावा। हम मन गुरू विठलेश्वर पावा।।
काहि कहौं कछु कहो न जाई। मोर पिता गया बौराई।।
भावार्थ :- नारायण दास ने नौकरों से कहा कि मैं पिताजी के पास नहीं जाऊँगा। वृद्धावस्था (बुढ़ापे) में उनकी बुद्धि का पूर्ण रूप से नाश हो गया है। हरि (श्री विष्णु जी) के समान और कौन कर्ता है जिसे छोड़कर हम अन्य किसकी भक्ति करें? पिता जी को वृद्ध
अवस्था में जुलाहा मन बसा लिया है। मैंने तो बिट्ठलेश्वर यानि बिट्ठल भगवान (श्री कृष्ण जी) को गुरू मान लिया है। क्या कहूँ? किसके सामने कहने लायक नहीं रहा हूँ। मेरे पिताजी
पागल हो गए हैं।
नौकरों ने जो-जो बातें नारायण ने कही थी, धर्मदास जी को सुनाई। धर्मदास जी स्वयं नारायण दास को बुलाने गए और कहा कि हे पुत्र! आप चलो सतपुरूष आए हैं। चरणों में गिरकर विनती करो। अपना कल्याण कराओ। बेटा! फिर ऐसा अवसर हाथ नहीं आएगा। हे भोले बेटा! यह हठ छोड़ दे।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
Hindu Date - Vedic Hindu Calendar of 31 March 2024
हिंदू दिनांक - 31 मार्च 2024 का वैदिक हिन्दू पंचांग
दिन - रविवार
विक्रम संवत् - 2080
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - चैत्र
पक्ष - कृष्ण
तिथि - षष्ठी रात्रि 09:30 तक तत्पश्चात सप्तमी
नक्षत्र - ज्येष्ठा रात्रि 10:57 तक तत्पश्चात मूल
योग - व्यतिपात रात्रि 09.53 तक, तत्पश्चात वरियान
राहु काल - शाम 05:20 से शाम 06:52 तक
सूर्योदय - 06:33
सूर्यास्त - 06:52
दिशा शूल - पश्चिम
ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:00 से 05:46 तक
निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:19 अप्रैल 01 से 01:06 अप्रैल 01 तक
व्रत पर्व विवरण - संत एकनाथजी षष्ठी
विशेष - षष्ठी को नीम-भक्षण (पत्ती, फल खाने या दातुन मुँह में डालने) से नीच योनियों की प्राप्ति होती है ।
गर्मी में दस्त
1 कटोरी नारियल पानी में आधा चम्मच धनिया-जीरा, 1 चम्मच मिश्री व आधा चम्मच जायफल चूर्ण डालकर दिन में 3 बार पीने से गर्मी के दस्त बंद हो जाते है ।
ज्योतिष ग्रंथ मुर्हूत चिंतामणि के अनुसार
हिंदू धर्म में दैनिक जीवन से जुड़ी भी अनेक मान्यताएं और परंपराएं हैं। ऐसी ही एक मान्यता है नाखून, दाढ़ी व बाल कटवाने से जुड़ी। माना जाता है कि सप्ताह के कुछ दिन ऐसे होते हैं जब नाखून, दाढ़ी व बाल कटवाना हमारे धर्म ग्रंथों में शुभ नहीं माना गया है, जबकि इसके बिपरीत कुछ दिनों को इन कामों के लिए शुभ माना गया है। आइए जानते हैं क्या कहते हैं शास्त्र...
ज्योतिष ग्रंथ मुर्हूत चिंतामणि के अनुसार जानिए किस दिन नाखून, दाढ़ी व बाल कटवाने से होता है क्या असर..
1. सोमवार
सोम का संबंध चंद्रमा से है इसलिए सोमवार को बाल या नाखून काटना मानसिक स्वास्थ्य व संतान के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना गया है।
2. मंगलवार
मंगलवार को बाल कटवाना व दाढ़ी बनाना उम्र कम करने वाला माना गया है।
3. बुधवार
बुधवार के दिन नाखून और बाल कटवाने से घर में बरकत रहती है व लक्ष्मी का आगमन होता है।*
4. गुरुवार
गुरुवार को भगवान विष्णु का वार माना गया है। इस दिन बाल कटवाने से लक्ष्मी का नुकसान और मान-सम्मान की हानि होती है।
5. शुक्रवार
शुक्र ग्रह को ग्लैमर का प्रतीक माना गया है। इस दिन बाल और नाखून कटवाना शुभ होता है। इससे लाभ, धन और यश मिलता है।
6. शनिवार
शनिवार का दिन बाल कटवाने के लिए अशुभ होता है यह जल्दी मृत्यु का कारण माना जाता है।
7. रविवार
रविवार को बाल कटवाना अच्छा नहीं माना जाता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में बताया गया है कि ये सूर्य का वार है इससे धन, बुद्धि और धर्म का नाश होता है।
इसी प्रकार की रोचक और जीवन उपयोगी जानकारियां पाने के लिए
◆◆ गीता के अध्याय 4 श्लोक 6 में यह कहा है कि मैं (अजः) अजन्मा अर्थात् मैं तुम्हारी तरह जन्म नहीं लेता, मैं लीला से प्रकट होता हूँ। जैसे गीता अध्याय 10 में विराट रुप दिखाया था, फिर कहा है कि (अव्ययात्मा) मेरी आत्मा अमर है। फिर कहा है कि
(आत्ममायया) अपनी लीला से (सम्भवामि) उत्पन्न होता हूँ। यहाँ पर उत्पन्न होने की बात है क्योंकि यह काल ब्रह्म अक्षर पुरुष के एक युग के उपरान्त मरता है। फिर उस समय एक
ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाता है (जैसा कि आपने ऊपर के प्रश्न के उत्तर में पढ़ा) फिर दूसरे ब्रह्माण्ड में सर्व जीवात्माएं चली जाती हैं। काल ब्रह्म की आत्मा भी चली जाती है। वहाँ
इसको पुनः युवा शरीर प्राप्त होता है। इसी प्रकार देवी दुर्गा की मृत्यु होती है। फिर काल ब्रह्म के साथ ही इसको भी युवा शरीर प्राप्त होता है। यह परम अक्षर ब्रह्म (सत्य पुरूष) का विधान है। तो फिर उस नए ब्रह्माण्ड में दोनों पति-पत्नी रुप में नए रजगुण युक्त ब्रह्मा, सतगुण युक्त विष्णु तथा तमगुण युक्त शिव को उत्पन्न करते हैं। फिर उस ब्रह्माण्ड में सृष्टि
क��रम प्रारम्भ होता है। इस प्रकार इस काल ब्रह्म की मृत्यु तथा लीला से जन्म होता है। गीता अध्याय 4 श्लोक 9 में भी स्पष्ट है जिसमें गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मेरे जन्म तर्था कर्म अलौकिक हैं। वास्तव में यह नाशवान है। आत्मा सर्व प्राणियों की भी अमर है। आपके महामण्डलेश्वरों आचार्यों तथा शंकराचार्यों को अध्यात्मिक ज्ञान बिल्कुल नहीं है। इसलिए अनमोल ग्रन्थों को ठीक से न समझकर लोकवेद (दन्तकथा) सुनाते हैं। आप देखें इस गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में स्वयं कह रहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं।
उन सबको मैं जानता हूँ, तू नहीं जानता। इसका अभिप्राय ऊपर स्पष्ट कर दिया है।
सम्भवात् का अर्थ उत्पन्न होना है।
प्रमाण :- यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10 में भी कहा है कि कोई तो परमात्मा को
(सम्भवात्) जन्म लेने वाला राम व कृष्ण की तरह मानता है, कोई (असम्भवात्) उत्पन्न न होने वाला निराकार मानता है अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्त जो सत्यज्ञान बताते हैं, उनसे सुनो।
वे बताएंगे कि परमात्मा उत्पन्न होता है या नहीं। वास्तव में परमात्मा स्वयंभू है। वह कभी नहीं जन्मा है और न जन्मेगा। मृत्यु का तो प्रश्न ही नहीं। दूसरी ओर गीता ज्ञान दाता स्वयं
कह रहा है कि मैं जन्मता और मरता हूँ, अविनाशी नहीं हूँ। अविनाशी तो ‘‘परम अक्षर ब्रह्म’’ है।
प्रश्न :- (जिन्दा बाबा परमेश्वर जी का) : आप जी ने कहा है कि हम शुद्र को निकट भी नहीं बैठने देते, शुद्ध रहते हैं। इससे भक्ति में क्या हानि होती है?
‘‘कथनी और करनी में अंतर‘‘
उत्तर :- (धर्मदास जी का) :- शुद्र के छू लेने से भक्त अपवित्र हो जाता है, परमात्मा रुष्ट हो जाता है, आत्मग्लानि हो जाती है। हम ऊँची जाति के वैश्य हैं।
प्रश्न तथा स्पष्टीकरण (बाबा जिन्दा ने किया) :- यह शिक्षा किसने दी? धर्मदास जी ने कहा हमारे धर्मगुरु बताते हैं, आचार्य, शंकराचार्य तथा ब्राह्मण बताते हैं। परमेश्वर कबीर
जी ने धर्मदास को बताया (उस समय तक धर्मदास जी को ज्ञान नहीं था कि आपसे वार्ता करने वाला ही कबीर जुलाहा है) कि कबीर जुलाहा एक बार स्वामी रामानन्द पंडित जी के
साथ तोताद्रिक नामक स्थान पर सत्संग-भण्डारे में गया। वह स्वामी रामानन्द जी का शिष्य है। सत्संग में मुख्य पण्डित आचार्यों ने बताया कि भगवान राम ने शुद्र भिलनी के झूठे बेर
खाए। भगवान तो समदर्शी थे। वे तो प्रेम से प्रसन्न होते हैं। भक्त को ऊँचे-नीचे का अन्तर नहीं देखना चाहिए, श्रद्धा देखी जाती है। लक्ष्मण ने सबरी को शुद्र जानकर ग्लानि करके
बेर नहीं खाये, फैंक दिए, बाद में वे बेर संजीवन बूटी बने। रावण के साथ युद्ध में लक्ष्मण मुर्छित हो गया। तब हनुमान जी द्रोणागिरी पर्वत को उठाकर लाए जिस पर संजीवन बूटी उन झूठे बेरों से उगी थी। उस बूटी को खाने से लक्ष्मण सचेत हुआ, जीवन रक्षा हुई। ऐसी
श्रद्धा थी सबरी की भगवान के प्रति। किसी की श्रद्धा को ठेस नहीं पहुँचानी चाहिए। सत्संग के तुरन्त बाद लंगर (भोजन-भण्डारा) शुरु हुआ। पण्डितों ने पहले ही योजना बना रखी थी
कि स्वामी रामानन्द ब्राह्मण के साथ शुद्र जुलाहा कबीर आया है। वह स्वामी रामानन्द का शिष्य है। रामानन्द जी के साथ खाना खाएगा। हम ब्राह्मणों की बेईज्जती होगी। इसलिए दो स्थानों पर लंगर शुरु कर दिया। जो पण्डितों के लिए भण्डार था। उसमें खाना खाने
के लिए एक शर्त रखी कि जो पण्डितां वाले भण्डारे में खाना खाएगा, उसको वेदों के चार मन्त्र सुनाने होंगे। जो मन्त्र नहीं सुना पाएगा, वह सामान्य भण्डारे में भोजन खाएगा। उनको
पता था कि कबीर जुलाहा काशी वाला तो अशिक्षित है शुद्र है। उसको वेद मन्त्र कहाँ से याद हो सकते हैं? सब पण्डित जी चार-चार वेद मन्त्र सुना-सुनाकर पण्डितों वाले
भोजन-भण्डारे में प्रवेश कर रहे थे। पंक्ति लगी थी। उसी पंक्ति में कबीर जुलाहा (धाणक) भी खड़ा था। वेद मन्त्र सुनाने की कबीर जी की बारी आई। थोड़ी दूरी पर एक भैंसा (झोटा)
घास चर रहा था। कबीर जी ने भैंसे को पुकारा। कहा कि हे भैंसा पंडित! कृपया यहाँ आइएगा। भैंसा दौड़ा-दौड़ा आया। कबीर जी के पास आकर खड़ा हो गया। कबीर जी ने भैंसे की कमर पर हाथ रखा और कहा कि हे विद्वान भैंसे! वेद के चार मन्त्र सुना। भैंसे ने
(1) यजुर्वेद अध्याय 5 का मन्त्र 32 सुनाया जिसका भावार्थ भी बताया कि जो परम शान्तिदायक (उसिग असि), जो पाप नाश कर सकता है (अंघारि), जो बन्धनों का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है = बम्भारी, वह ‘‘कविरसि’’ कबीर है। स्वर्ज्योति = स्वयं प्रकाशित अर्थात् तेजोमय शरीर वाला ‘‘ऋतधामा’’ = सत्यलोक वाला अर्थात् वह सत्यलोक में निवास करता है। ‘‘सम्राटसि’’ = सब भगवानों का भी भगवान अर्थात् सर्व शक्तिमान समा्रट यानि महाराजा है।
(2) ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मन्त्र 26 सुनाया। जिसका भावार्थ है कि परमात्मा ऊपर के लोक से गति (प्रस्थान) करके आता है, नेक आत्माओं को मिलता है। भक्ति करने
वालों के संकट समाप्त करता है। वह कर्विदेव (कबीर परमेश्वर) है।
(3) ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्रा 17 सुनाया जिसका भावार्थ है कि (‘‘कविः‘‘ = कविर) परमात्मा स्वयं पृथ्वी पर प्रकट होकर तत्त्वज्ञान प्रचार करता है। कविर्वाणी (कबीर वाणी) कहलाती है। सत्य आध्यात्मिक ज्ञान (तत्त्वज्ञान) को कबीर परमात्मा लोकोक्तियों, दोहों, शब्दों, चौपाइयों व कविताओं के रुप में पदों में बोलता है।
(4) ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मन्त्र 1 भी सुनाया। जिसका भावार्थ है कि परमात्मा कवियों की तरह आचरण करता हुआ पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान जाता है। भैंसा फिर बोलता है कि भोले पंडितो जो मेरे पास इस पंक्ति में जो मेरे ऊपर हाथ रखे खड़ा है, यह वही परमात्मा कबीर है जिसे लोग ‘‘कवि’’ कहकर पुकारते हैं। इन्हीं की कृपा से मैं आज मनुष्यों की तरह वेद मन्त्र सुना रहा हूँ।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
पवित्र हिन्दू समाज में चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है। माना जाता है कि वेदों में परमेश्वर की पूजा व साधना का सर्वोत्तम ज्ञान है। आश्चर्य की बात है कि 80% हिन्दू समाज वेदों के विपरीत भक्ति कर्म करते हैं तथा 80% हिन्दुओं ने वेदों की शक्ल भी नहीं देखी है।
(विशेष:- हिन्दू समाज श्रीमद्भगवत गीता को चारों वेदों का सार तथा संक्षिप्त रूप मानते हैं। गीता में वेद ज्ञान निष्कर्ष रूप में संक्षेप में कहा है। यह भी निर्विरोध राय है।)
- जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
📚पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू
आश्चर्य:- शिक्षित हिन्दू श्रद्धालु प्रतिदिन श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करते हैं। पुराणों को पढ़ना भी हिन्दू समाज की पूजा का अहम हिस्सा है।
रामायण ग्रन्थ व महाभारत ग्रन्थ का पढ़ना-सुनना मुख्य धर्म-कर्म है, परंतु हिन्दू श्रद्धालुओं को इन ग्रन्थों का यथारूप में ज्ञान कतई नहीं है। यही कारण है कि ढेर सारी पूजा करके भी प्यासे ही हैं, मोक्ष नहीं।
- जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
📚पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू
हिंदुओं के साथ हुआ धोखा
हिन्दू समाज का मानना है कि तीनों देवताओं कभी मरते नहीं हैं। इनका जन्म भी नहीं हुआ है, ये स्वयंभू हैं।
पेश है सच्चाई
प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123 पर ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शंकर जी स्वयं स्वीकार करते हैं कि उनका तो जन्म होता है और मृत्यु हुआ करती है।
📚‘‘पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू’’
हिंदुओं के साथ हुआ धोखा
हिन्दू समाज का मानना है कि तीनों देवताओं के कोई माता-पिता नहीं हैं।
जबकि सच यह है कि दुर्गा इनकी माता है।
प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123
भगवान शंकर, भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु स्वयं को माता दुर्गा से उत्पन्न हुआ बता रहे हैं।
📚पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू
क्या श्री कृष्ण से अन्य कोई परमेश्वर है?
गीता जी अध्याय 15 श्लोक 17 में है कि अविनाशी व सबका धारण-पोषण करने वाला व पुरूषोत्तम परमात्मा तो गीता ज्ञान देने वाले से अन्य ही बताया है।
हिन्दू समाज गीता को शिरोधार्य मानता है। और गीता ज्ञान दाता स्वयं स्वीकार करता है कि उस एक परमेश्वर की शरण में जाओ।
अज्ञानी गुरुओं ने हिंदुओं की आंखों पर अज्ञान की पट्टी बांध दी। जिसे अब संत रामपाल जी महाराज ही खोलेंगे।
अध्याय 9 के श्लोक 7 में स्पष्ट है पहले तो काल भगवान कह रहा है कि मेरे उपासक का जन्म-मरण नहीं होता। अब श्लोक 7 में कहता है कि अर्जुन कल्पों के अंत में सर्व प्राणी मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं। (अर्थात नष्ट हो जाते हैं)। कल्पों के प्रारम्भ में उनको फिर रचता हूँ। इससे स्वसिद्ध है कि काल ब्रह्म की साधना से कोई भी प्राणी जन्म-मृत्यु से मुक्त नहीं होता। अध्याय 8 के श्लोक 16 में प्रमाण है कि ब्रह्मलोक से लेकर सब (ब्रह्मा-शिव-विष्णु तथा इनके लोक तथा अन्य लोक) लोक पुनरावर्ती में हैं यानि इन लोकों में गए साधक का पुनर्जन्म अवश्य होता है तथा अन्य अनुवादकर्ताओं ने लिखा है कि मुझे प्राप्त होकर पुर्नजन्म नहीं होता और काल प्राप्त हो ही नहीं सकता। (चूंकि अध्याय 11 के श्लोक 47 और 48 में प्रत्यक्ष है कि किसी भी साधना से मुझे प्राप्त नहीं हो सकता) इसलिए सर्व प्राणियों की मुक्ति असम्भव। इसलिए अध्याय 7 के श्लोक 18 में अनुत्तमम् गतिम् घटिया से घटिया मुक्ति कही है।
।। प्रकृति व ब्रह्म (काल) से प्राणियों की उत्पत्ति।।
अध्याय 9 के श्लोक 8 में कहा है कि अपनी प्रकृति को अंगीकार यानि देवी दुर्गा से सहवास करके स्वभाव बल (मन द्वारा वासनाओं) से परतन्त्रा (वश) हुए इन सम्पूर्ण प्राणियों को बार-बार रचता हूँ। अध्याय 9 के श्लोक 9 में कहा है कि मैं (ब्रह्म) कर्मों के वश नहीं हूँ। (चूंकि कर्म ब्रह्म से उत्पन्न हैं। अध्याय 3 के श्लोक 14,15 में।)
अध्याय 9 के श्लोक 10 में कहा है - हे अर्जुन! मेरे आधीन (पत्नी रूप में) प्रकृति यानि देवी दुर्गा चराचर सहित जगत् को उत्पन्न करती है। इस प्रकार यह जन्म-मरण चक्र चलता रहता है।
।। ब्रह्म (काल) कभी स्थूल शरीर में आकार में नहीं आता।।
अध्याय 9 के श्लोक 11 में कहा है कि जो मूर्ख लोग पूर्ण परमात्मा तथा मेरे परम भाव को {काल का परम भाव अध्याय 7 के श्लोक 24 में है कि मेरे घटिया भाव को यानि मैं कभी आकार में नहीं आता। यह मेरा अविनाशी (अटल) नियम (भाव) है कि मैं कभी आकार में शरीर धारण करके नहीं आता। मेरा जन्म-मरण सदा बना रहता है। सबका मालिक यानि महेश्वर सदा अविनाशी है व कभी जन्मता-मरता नहीं है। वही सर्व का उत्पत्तिकर्ता, धारण-पोषणकर्ता है।} नहीं जानते। मुझे मनुष्य शरीर धारण करने वाला तुच्छ समझते हैं अर्थात् मैं स्थूल शरीर धारी श्री कृष्ण नहीं हूँ।
गीता अध्याय 9 श्लोक 11 का अनुवाद:- (मूढ़ाः) मूर्ख जन (माम्) मुझको (मानुसीम्) मनुष्य का (तनुम्) शरीर (आश्रितम्) धारण करने वाला (अवजनन्ति) तुच्छ जानते हैं क्योंकि वे (मम) मेरे व (भूत महेश्वरम्) प्राणियों के महान स्वामी के (परम् भावम अजानन्त) विशेष अन्य भाव को नहीं जानते। (9:11)
भावार्थ:- तत्वज्ञान के अभाव से मूर्ख प्राणी मुझे सर्व प्राणियों का प्रभु मानते हैं। मैं महेश्वर नहीं हूँ, महेश्वर तो पूर्ण परमात्मा है। जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 व 16, 17, गीता अध्याय 18 श्लोक 46, 61, 62, 66 में तथा अध्याय 8 श्लोक 3, 8, 9, 10, 20-21-22 में वर्णन है तथा मुझे शरीर धारण करने वाला अवतार रूप में श्री कृष्ण समझ रहा है, मैं श्री कृष्ण नहीं हूँ। इसी का प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में तथा गीता अध्याय 8 श्लोक 20 से 22 में दोनों (ब्रह्म तथा पूर्ण ब्रह्म) को अव्यक्त बताया है तथा विस्तृत वर्णन है। उपरोक्त मूर्खों का विवरण निम्न श्लोक में भी दिया है कि वे कहने से भी नहीं मानते, अपनी जिद्द के कारण मुझे सर्वेश्वर-महेश्वर व श्री कृष्ण ही मानते रहते हैं। यदि कोई तत्वदर्शी संत समझाएगा की पूर्ण परमात्मा कोई और है तथा श्री कृष्ण जी ने गीता जी नहीं बोला तथा यह काल महेश्वर नहीं है। वे मूर्ख नहीं मानते।
विशेष:-- गीता 9 श्लोक 11 का अनुवाद अन्य अनुवाद कर्ता ने किया है उस में प्रथम पंक्ति के दूसरे अक्षर ‘‘माम्’’ को द्वितिय पंक्ति के ‘‘भूत महेश्वरम्’’ से जोड़ा है जो व्याकरण दृष्टिकोण से न्याय संगत नहीं है क्योंकि ‘‘भूत महेश्वरम्’’ के साथ ‘‘मम’’ शब्द लिखा है अन्य अनुवाद कर्ताओं ने गीता ज्ञान दाता को सम्पूर्ण प्राणियों का महान् ईश्वर किया है। यदि एैसा ही माना जाए तो पाठक जन कृप्या इसका भावार्थ यह जाने की ब्रह्म कह रहा है कि मैं अपने इक्कीस ब्रह्मण्डों के सर्व प्राणियों का महान ईश्वर अर्थात् प्रमुख हूँ। वास्तव में उपरोक्त अनुवाद जो मुझ दास द्वारा किया है। वह यथार्थ है।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न भिन्न-2 स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्चीसवाँ दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फाँसी पर लटक जाऊँगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए पीए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोच कर फूट-2 कर रो रही थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।
भगवान शिव, एक ब्राह्मण (ऋषि) का रूप बना कर नीरू की झोंपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। सन्त रूप में खड़े भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी हे ब्राह्मण ! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। फकीर वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आँसू जिव्हा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे महात्मा जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूँगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी। नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाईए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर ऋषि के समक्ष प्रस्तुत किया। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाऐं व हस्त रेखाऐं देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे विप्रवर! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की साँस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुँवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याए (अर्थात् कुँवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।
शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण ने कहा नीरू! आप एक कुँवारी गाय लाओ। वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कुँवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार विप्ररूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने ब्राह्मण रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। विप्र रूपधारी भगवान शंकर बोले! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधु नाहीं। यह कहकर विप्र रूपधारी शिवजी ने वहाँ से प्रस्थान किया।
विशेष वर्णन अध्याय ’’ज्ञान सागर‘‘ के पृष्ठ 74 तथा ’’स्वसमबेद बोध‘‘ के पृष्ठ 134 पर भी है जो इस प्रकार है:-
’’कबीर सागर के ज्ञान सागर के पृष्ठ 74 पर‘‘
सुत काशी को ले चले, लोग देखन तहाँ आय। अन्न-पानी भक्ष नहीं, जुलहा शोक जनाय।।
तब जुलहा मन कीन तिवाना, रामानन्द सो कहा उत्पाना।। मैं सुत पायो बड़ा गुणवन्ता। कारण कौण भखै नहीं सन्ता।
रामानन्द ध्यान तब धारा। जुलहा से तब बचन उच्चारा।।।
पूर्व जन्म तैं ब्राह्मण जाती। हरि सेवा किन्ही भलि भांति।।
कुछ सेवा तुम हरि की चुका। तातैं भयों जुलहा का रूपा।।
प्रति प्रभु कह तोरी मान लीन्हा। तातें उद्यान में सुत तोंह दिन्हा।।
नीरू वचन
हे प्रभु जस किन्हो तस पायो। आरत हो तव दर्शन आयो।।
सो कहिए उपाय गुसाई। बालक क्षुदावन्त कुछ खाई।।
रामानन्द वचन
रामानन्द अस युक्ति विचारा। तव सुत कोई ज्ञानी अवतारा।।
बछिया जाही बैल नहीं लागा। सो लाई ठाढ़ करो तेही आगै।।
साखी = दूध चलै तेहि थन तें, दूध्हि धरो छिपाई।
क्षूदावन्त जब होवै, तबहि दियो पिलाई।।
चैपाई
जुलहा एक बछिया लै आवा। चल्यो दूत (दूध) कोई मर्म न पावा।।
चल्यो दूध, जुलहा हरषाना। राखो छिपाई काहु नहीं जाना।।।
पीवत दूध बाल कबीरा। खेलत संतों संग जो मत धीरा।।
ज्ञान सागर पृष्ठ 73 पर चैपाई
’’भगवान शंकर तथा कबीर बालक की चर्चा’’
{नोटः- यह प्रकरण अधूरा लिखा है�� फिर भी समझने के लिए मेरे ऊपर कृपा है परमेश्वर कबीर जी की। पहले यह वाणी पढ़ें जो ज्ञान सागर के पृष्ठ 73 पर लिखी है, फिर अन्त में सारज्ञान यह दास (रामपाल दास) बताएगा।}
चैपाई
घर नहीं रहो पुरूष (नीरू) और नारी (नीमा)। मैं शिव सों अस वचन उचारी।।
आन के बार बदत हो योग। आपन नार करत हो भोग।।
नोटः- जो वाणी कोष्ठक { } में लिखी हैं, वे वाणी ज्ञान सागर में नहीं लिखी गई हैं जो पुरातन कबीर ग्रन्थ से ली हैं।
{ऐसा भ्रम जाल फलाया। परम पुरूष का नाम मिटाया।}
काशी मरे तो जन्म न होई। {स्वर्ग में बास तास का सोई}
{ मगहर मरे सो गधा जन्म पावा, काशी मरे तो मोक्ष करावा}
और पुन तुम सब जग ठग राखा। काशी मरे हो अमर तुम भाखा
जब शंकर होय तव काला, {ब्रह्मण्ड इक्कीस हो बेहाला}
{तुम मरो और जन्म उठाओ, ओरेन को कैसे अमर कराओ}
{सुनों शंकर एक बात हमारी, एक मंगाओ धेनु कंवारी}
{साथ कोरा घट मंगवाओ। बछिया के पीठ हाथ फिराओ}
{दूध चलैगा थनतै भाई, रूक जाएगा बर्तन भर जाई}
{सुनो बात देवी के पूता। हम आए जग जगावन सूता}
{पूर्ण पुरूष का ज्ञान बताऊँ। दिव्य मन्त्रा दे अमर लोक पहुँचाऊँ}
{तब तक नीरू जुलहा आया। रामानन्द ने जो समझाया}
{रामानन्द की बात लागी खारी। दूध देवेगी गाय कंवारी}
{जब शंकर पंडित रूप में बोले, कंवारी धनु लाओ तौले}
{साथ कोरा घड़ा भी लाना, तास में धेनु दूधा भराना}
{तब जुलहा बछिया अरू बर्तन लाया, शंकर गाय पीठ हाथ लगाया}
{दूध दिया बछिया कंवारी। पीया कबीर बालक लीला धारी}
{नीरू नीमा बहुते हर्षाई। पंडित शिव की स्तुति गाई}
{कह शंकर यह बालक नाही। इनकी महिमा कही न जाई}
{मस्तक रेख देख मैं बोलूं। इनकी सम तुल काहे को तोलूं}
{ऐस नछत्र देखा नाहीं, घूम लिया मैं सब ठाहीं।}
{इतना कहा तब शंकर देवा, कबीर कहे बस कर भेवा}
{मेरा मर्म न जाने कोई। चाहे ज्योति निरंजन होई}
{हम है अमर पुरूष अवतारा, भवसैं जीव ऊतारूं पारा}
{इतना सुन चले शंकर देवा, शिश चरण धर की नीरू नीमा सेवा}
हे स्वामी मम भिक्षा लीजै, सब अपराध क्षमा (हमरे) किजै
{कह शंकर हम नहीं पंडित भिखारी, हम है शंकर त्रिपुरारी।}
{साधु संत को भोजन कराना, तुमरे घर आए रहमाना}
{ज्ञान सुन शंकर लजा आई, अद्भुत ज्ञान सुन सिर चक्राई।}
{ऐसा निर्मल ज्ञान अनोखा, सचमुच हमार है नहीं मोखा}
कबीर सागर अध्याय ‘‘स्वसम वेद बोध‘‘ पृष्ठ 132 से 134 तक परमेश्वर कबीर जी की प्रकट होने वाली वाणी है, परंतु इसमें भी कुछ गड़बड़ कर रखी है। कहा कि जुलाहा नीरू अपनी पत्नी का गौना (यानि विवाह के बाद प्रथम बार अपनी पत्नी को उसके घर से लाना को गौना अर्थात् मुकलावा कहते हैं।) यह गलत है। जिस समय परमात्मा कबीर जी नीरू को मिले, उस समय उनकी आयु लगभग 50 वर्ष थी। विचार करें गौने से आते समय कोई बालक मिल जाए तो कोई अपने घर नहीं रखता। वह पहले गाँव तथा सरकार को बताता है। फिर उसको किसी निःसंतान को दिया जाता है यदि कोई लेना चाहे तो। नहीं तो राजा उसको बाल ग्रह में रखता है या अनाथालय में छोड़ते हैं। नीमा ने तो बच्चे को छोड़ना ही नहीं चाहा था। फिर भी जो सच्चाई वह है ही, हमने परमात्मा पाना है। उसको कैसे पाया जाता है, वह विधि सत्य है तो मोक्ष सम्भव है, ज्ञान इसलिए आवश्यक है कि विश्वास बने कि परमात्मा कौन है, कहाँ प्रमाण है? वह चेष्टा की जा रही है। अब केवल ’’बालक कबीर जी ने कंवारी गाय का दूध पीया था, वे वाणी लिखता हूँ’’।
स्वसम वेद बोध पृष्ठ 134 से
पंडित निज निज भौन सिधारा। बिन भोजन बीते बहु बारा (दिन)।।
बालक रूप तासु (नीरू) ग्रह रहेता। खान पान नाहीं कुछ गहते।
जोलाहा तब मन में दुःख पाई। भोजन करो कबीर गोसांई।।
जोलाहा जोलाही दुखित निहारी। तब हम तिन तें बचन उचारी।।
कोरी (कंवारी) एक बछिया ले आवो। कोरा भाण्डा एक मंगाओ।।
तत छन जोलाहा चलि जाई। गऊ की बछिया कोरी (कंवारी) ल्याई।।
दोऊ कबीर के समुख आना। बछिया दिशा दृष्टि निज ताना।।
बछिया हेठ सो भाण्डा धरेऊ। ताके थनहि दूधते भरेऊ।
दूध हमारे आगे धरही, यहि विधि खान-पान नित करही।।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
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आश्चर्य:- शिक्षित हिन्दू श्रद्धालु प्रतिदिन श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करते हैं। पुराणों को पढ़ना भी हिन्दू समाज की पूजा का अहम हिस्सा है।
रामायण ग्रन्थ व महाभारत ग्रन्थ का पढ़ना-सुनना मुख्य धर्म-कर्म है, परंतु हिन्दू श्रद्धालुओं को इन ग्रन्थों का यथारूप में ज्ञान कतई नहीं है। यही कारण है कि ढेर सारी पूजा करके भी प्यासे ही हैं, मोक्ष नहीं।
- जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज📚पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू
(हे अर्जुन!) मैं, तू तथा ये राजा लोग पहले भी जन्में थे, आगे भी जन्मेंगे।(गीता अध्याय 2 श्लोक 12)
इस प्रमाण से स्पष्ट है कि गीता ज्ञान दाता (श्री कृष्ण जी उर्फ़ श्री विष्णु जी) नाशवान है। उसकी जन्म-मृत्यु होती है।
आश्चर्य की बात है पवित्र गीता जी में यह प्रमाण होते हुए भी हिन्दू भाई गीता ज्ञान दाता को अविनाशी मानते हैं।📚‘‘पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू’’
हिंदुओं के साथ हुआ धोखा
हिन्दू समाज का मानना है कि तीनों देवताओं के कोई माता-पिता नहीं हैं।
जबकि सच यह है कि दुर्गा इनकी माता है।
प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123
भगवान शंकर, भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु स्वयं को माता दुर्गा से उत्पन्न हुआ बता रहे हैं।
हिंदू धर्म सबसे पुराना धर्म है जिसे सनातन धर्म के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है शाश्वत धर्म। हिंदू धर्म को मानने वाले मुख्य रूप से ब्रह्मा, विष्णु, महेश/शंकर, देवी दुर्गा, भगवान गणेश, भगवान राम और सीता, श्री कृष्ण, हनुमान, शनि देव, सूर्य, देवी सरस्वती, धर्मराज (मृत्यु के देवता) और इंद्र इत्यादि देवी देवताओं की पूजा करते हैं। जबकि हिंदू ध���्म के अनुसार 33 कोटि (करोड़) देवी-देवता और 88 हज़ार ऋषि हैं जिनकी हिंदू समाज में पूजा की जाती है।
परंतु सबसे बड़ी विडंबना यह है कि कोई भी हिंदू इन तैंतीस कोटि (करोड़) देवताओं और 88 हज़ार ऋषियों के नाम तक नहीं जानता है। लोग धार्मिक रीति-रिवाजों का आंख मूंदकर पालन करते हैं बिना यह जाने कि एकमात्र पूज्य भगवान कौन है जिसने इन सब देवी देवताओं और हमारी भी उत्पत्ति की है? पवित्र शास्त्र इस बात का प्रमाण देते हैं कि 'ईश्वर एक है' और सभी देवता और ऋषि-महर्षि भी उस एक ईश्वर को सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी मानते हुए उसकी पूजा करते हैं, पर वह एक ईश्वर कौन है जिसको वह न तो जानते हैं, न पहचानते हैं और न ही उन्होंने कभी उसका असली स्वरूप देखा।
शास्त्रानुकूल साधना क्या है जो साधकों को मोक्ष प्रदान करती है तथा जिसे भक्त समाज के लिए समझना अतिआवश्यक है।
चारों वेदों में, छः शास्त्रों तथा अठारह पुराणों में पूर्ण परमात्मा के बारे में जानकारी लिखित है फिर भी हिंदू धर्म के श्रद्धालु शास्त्र विरुद्ध भक्ति करते हैं। श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में प्रमाण है कि उपर्युक्त बताए गए सभी देवी-देवताओं की पूजा करना मनमाना आचरण है और इनकी पूजा करने से साधकों को कोई लाभ नहीं मिलता है। सभी पवित्र शास्त्र सिद्ध करते हैं कि केवल एक सर्वशक्तिमान कविर्देव ही पूजनीय हैं।
कालाष्टमी व्रत के दिन काल भैरव की पूजा का है खास महत्व, जानिए शुभ मुहूर्त
माना जाता है कि जो लोग कालाष्टमी का व्रत रखते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। आइए व्रत का महत्व जानते हैं?
इस साल माघ मास की कृष्ण पक्ष की तिथि 2 फरवरी को है, जो शाम 04:03 तक रहेगी। इसके बाद अष्टमी तिथि आरंभ हो जाएगी, जो अगले दिन यानी 3 फरवरी को शाम 05:20 तक रहेगी। ऐसे में 2 फरवरी 2024, दिन शुक्रवार को कालाष्टमी का व्रत रखा जाएगा। वहीं कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 2 फरवरी के दिन शाम 04:02 पर होगा, जिसका समापन अगले दिन 3 फरवरी को साय काल 05:20 पर हो रहा है।
कालाष्टमी व्रत के दिन काल भैरव की पूजा का महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार कालाष्टमी व्रत के दिन भगवान महादेव के तीन रूपों में से काल भैरव स्वरूप की उपासना की जाती है। दरअसल, बाबा भैरव के तीन स्वरूप हैं- काल भैरव, रूरू भैरव और बटुक भैरव। इस दिन विशेष तौर पर तंत्र-मंत्र के देवता काल भैरव की पूजा-अर्चना की जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि जो लोग कालाष्टमी का व्रत रखते हैं, उनके ऊपर से अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है। साथ ही राहु और शनि के दुष्प्रभावों से भी मुक्ति मिलती है। इसके अलावा इस दिन काल भैरव को प्रसन्न कर विभिन्न सिद्धियों को भी हासिल किया जा सकता हैं।
Pandit Subham Shastri JI
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