Love Letter Hindi For Girlfriend Propose प्यार भरा लव लेटर
Love Letter Hindi For Girlfriend Propose प्यार भरा लव लेटर
Love Letter In Hindi
Love Letter Hindi For Girlfriend Propose, Love Letter Kaise Likhe, लव लेटर लिखा हुआ हिंदी में ! आज हम आपके लिए लेकर आए हैं कुछ बेहतरीन दिल को छू जाने वाली लव लेटर जो की हमारे ही ब्लॉग के नियमित पाठको के द्वारा भेजा गया हैं। अगर आप भी अपने किसी खास के लिए लव लिखने की सोच रहे हैं तो हमारा यह लेख आपको एक अच्छा प्यार भरा लव लेटर लिखने के लिए काफी मदद करेगा।
पहले के ज़माने की…
खुशियों के पलो को गहने समझ कर उनकी गठड़ी बना कर संभाल कर रखना, जब मन करे उन्हें निकाल कर खुद पर मुस्कुराहटो के तौर पर सजाना।
दुःख और दर्द को मेहंदी के रंग की तरह समझना... जैसे वो शुरुआत में गहरा होता है फिर वक्त के साथ हल्का और फीका होने लगता है और धीरे धीरे वक्त के साथ चला जाता है बिल्कुल वैसे ही ये मुश्किलें भी आज ज्यादा है, धीरे धीरे ये गम कम हो जाएगा और एक दिन चला जायेगा।
बस इतना ही, मुझसे तुम तक एक सर्द सुबह वो नवंबर। ~ सिमरन।
मैं देख रहा हूँ कि तुम टेबल पर झुकी हुईं अपने काम में व्यस्त हो, तुम्हारी गरदन एकदम नंगी, मैं ठीक तुम्हारे पीछे खड़ा हूँ, तुम्हें इसकी कोई ख़बर नहीं- तुम बिल्कुल भी मत घबराना अगर तुम्हें गले के पीछे मेरे होंठों की छुअन महसूस हो, मेरा बिल्कुल भी इरादा "नहीं था चुम्बन का, यह सिर्फ़ असहाय प्रेम है...
मैं केवल सलाह दे सकता हूँ और जहाँ तक सम्भव हो उसका पालन किया जा सकता है, किन्तु मैं किसी के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता। आख़िरकार, मुझसे प्रेम के कारण ही आप सभी श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए इतना कठिन परिश्रम कर रहे हैं, इसलिए यदि प्रेम है तो जबरदस्ती का प्रश्न ही नहीं उठता। हमें कभी भी किसी के साथ ना ही जबरदस्ती का प्रयास करना चाहिए ना ही इस संस्था को एक व्यापारी संस्थान जैसा बनाना चाहिए। इससे सबकुछ नष्ट हो जायेगा। प्रत्येक प्रयास में हमारा एकमात्र उद्देश्य आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करना अथवा श्रीकृष्ण को प्रसन्न करना है। भक्तदास को पत्र, 9 अप्रैल 1972
लखनऊ, 28.04.2023 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना के 11 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर "स्थापना दिवस कार्यक्रम" तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (NCZCC) के संयुक्त तत्वावधान में सांस्कृतिक कार्यक्रम "धरोहर” का आयोजन सी एम एस ऑडिटोरियम, विशाल खंड, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया |
कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रगान तथा श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, संस्थापक एवं प्रबंध न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा डॉ रूपल अग्रवाल, न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, ट्रस्ट की आतंरिक सलाहकार समिति के सदस्यगण ने दीप प्रज्वलन करके किया l
सांस्कृतिक कार्यक्रम "धरोहर” में, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक पद्माभूषण स्वर्गीय गोपाल दास नीरज, पद्माश्री स्वर्गीय अनवर जलालपुरी तथा वर्तमान संरक्षक पद्माश्री अनूप जलोटा की रचनाओं, गीतों, शायरी तथा भजनों की प्रस्तुति प्रदीप अली, आकांक्षा सिंह, मल्लिका शुक्ला ने की तथा भारतीय सभ्यता और संस्कृति को समर्पित सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत भाव नृत्य राम भी रहीम भी, अवधी नृत्य नाटिका वैदेही के राम, महारास, राजस्थानी लोक नृत्य घूमर, की प्रस्तुति उर्मिला पाण्डेय ग्रुप द्वारा की गयी |
मल्लिका शुक्ला की प्रस्तुति –
अनूप जलोटा का भजन - जय गणपति वंदन गणनायक....
प्रदीप अली की प्रस्तुति –
गोपाल दास नीरज जी के गीत - दिल आज शायर है गम आज नगमा है,....
अनवर जलालपुरी जी की ग़ज़ल - मयकदे से, दैर से, काबा से रखसत हो गए...., हवा हो तेज तो शाखों से पत्ते टूट जाते है...
आकांक्षा सिंह की प्रस्तुति –
गोपाल दास नीरज जी के गीत - जैसे राधा ने माला जपी श्याम की...
उर्मिला पाण्डेय ग्रुप - भाव नृत्य राम भी रहीम भी
हमारी भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही राष्ट्रीय भाईचारे और सौहार्द को बढ़ावा दिया है । राष्ट्रीय भाईचारे और सौहार्द्र को समर्पित भाव नृत्य शीर्षक राम भी रहीम भी प्रस्तुत किया ।
कलाकार- रॉनी सिंह, प्रेक्षा श्रीवास्तव, ज्योति शुक्ला, मलखान सिंह
अवधी नृत्य नाटिका वैदेही के राम
श्री राम तथा माता सीता इनके मिलन की ही गाथा है ये नृत्य नाटिका वैदेही के राम। प्रभु श्री राम जब महर्षि विश्वामित्र के साथ मिथिला नगरी पहुँचे और वहाँ की पुष्प वाटिका में देवी सीता और श्री राम एक दूसरे को देख मंत्र मुग्ध हो गए। अंततः प्रभु श्री राम ने स्वयंवर में रखे शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर राजकुमारी सीता से विवाह किया।
राधा कृष्ण और गोपियों द्वारा किया जाने वाला आनंदमयी तथा सौंदर्यवर्धक नृत्य रास कहलाता है। लीलापुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात में छः महीने की रातों को एक कर ब्रजभूमि के कुंज में सर्वप्रथम यह नृत्य किया था । नृत्य की बंदिशों के साथ भाव भंगिमाओं तथा डांडिया नृत्य का उच्चतम प्रयोग रास के अंतर्गत देखने को मिलता है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है तथा यह राधा कृष्ण के प्रेम से परिपक्व नृत्य शैली मानी जाती है।
आज की इस रासलीला में सर्वप्रथम बाल कृष्ण तत्पश्चात युवा कृष्ण एवम् राधा रानी का नृत्य प्रस्तुत किया ।
घूमर और राजस्थान दोनो एक दूसरे के पर्याय हैं और घूमर राजस्थान का सर्व जन प्रिय लोक नृत्य है। यह नृत्य महिलाओं द्वारा किया जाता है। किसी भी मांगलिक अवसर एवम् उत्सव में घूमर नृत्य अति आवश्यक रूप से नाचा जाता रहा है।
"स्थापना दिवस कार्यक्रम" में, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट की न्यासी डॉ० रूपल अग्रवाल, ट्रस्ट की आतंरिक सलाहकार समिति के सदस्यगण ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की विवरण पुस्तिका का विमोचन किया गया | विवरण पुस्तिका में ट्रस्ट के विगत 11 वर्षों के कार्यों का विवरण उपलब्ध है |
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा विगत 11 वर्षों में ट्रस्ट को महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करने वाली 7 विभूतियों का हेल्प यू सम्मान तथा वैश्विक महामारी कोरोना काल में बहुमूल्य सहयोग प्रदान करने हेतु 119 कोरोना वॉरियर्स का सम्मान किया गया |
हेल्प यू सम्मान से सम्मानित विभूतियां डॉ जगदीश गाँधी, फाउंडर मैनेजर, सिटी मांटेसरी स्कूल, डॉ तूलिका चंद्रा, विभागाध्यक्ष, ट्रांसफ्यूजन विभाग, के जी एम यू, जोनल मैनेजर, बैंक ऑफ़ इंडिया, जोनल मैनेजर, पंजाब नेशनल बैंक, श्री योगेश नारायण माथुर, अधिवक्ता, फॅमिली कोर्ट, डॉ संजय कुमार राणा, होमोपैथी चिकित्सक, डॉ अलका निवेदन, प्राचार्या, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स पी जी कॉलेज |
119 कोरोना वॉरियर्स से सम्मानित विभूतियां के पी एस चौहान, ए. के. जायसवाल, मानवेंद्र प्रताप सिंह, प्रशांत सिंह अटल, स्वर्गीय अमित पुरी, कुलदीप पांडे, महेंद्र कुमार, अनुज जिंदल, डॉ. एसएन कुरील, गोविंद गौर, वंश खन्ना, मनीष शर्मा, मनीष अग्रवाल, सीए तुषार गर्ग और सीए प्रियंका गर्ग, विपिन जायसवाल , हर्ष बर्धन सिंह और प्रीति सिंह, पल्लवी आशीष, वैभव कुमार शाह, नम्रता रॉय, दिनेश चंद्र अवस्थी, अतुल चौरसिया, वी के श्रीवास्तव, शिप्रा श्रीवास्तव, काजी मैराज अहमद, आदर्श कुमार पांडे, प्रगति सिंह, सुभाष चंद्र श्रीवा���्तव, संतोष कुमार सिंह, अमित श्रीवास्तव और अक्षिता श्रीवास्तव, राजेश्वर यादव और उर्मिला यादव, आदित्य भटनागर, प्रीति तिवारी, वीरेंद्र कुमार यादव, राज कुमार सिंह, राजेश कुमार यादव, अनिल सिंह, मोध। जमील, मोहम्मद अली साहिल, अनूप जायसवाल, अमरेश कुमार सिंह, प्रेम कुमार गुप्ता, स्वंतना अवस्थी, अरुणा नारायण और सफदर अली सिद्दीकी को प्रशस्ति पत्र से अलंकृत किया गया |
इस मौके पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि, "आज के मुख्य अतिथि आदरणीय श्री बृजेश पाठक जी प्रदेश में निकाय चुनाव में व्यस्तता के कारण कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हो पा रहे हैं, वह आज इस समय वाराणसी में हैं | परन्तु समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन लाने के हमारे लक्ष्य को पूर्ण करने में हमें हमारे मुख्य अतिथि आदरणीय श्री बृजेश पाठक जी का भरपूर प्रोत्साहन मिला है |
हमारे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने अपनी स्थापना के 11 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं | अपने पूज्य बाबा श्री राधेश्याम अग्रवाल जी व अपने पिताजी श्री राजीव अग्रवाल जी के जनहित के कार्यों से प्रभावित होकर 28 अप्रैल, 2012 को हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की | तत्कालीन मेयर परम आदरणीय श्री दिनेश शर्मा जी ने ट्रस्ट को अपना बहुमूल्य सहयोग एवं मार्गदर्शन प्रदान किया | आगे समाज के सवेदनशील लोगों की मदद से हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का कारवां आगे बढ़ता गया तथा हमें संरक्षक के रूप में महाकवि पदम भूषण डॉ श्री गोपाल दास नीरज जी, पदम श्री अनवर जलालपुरी तथा भजन सम्राट पदम श्री अनूप जलोटा जी का सानिध्य प्राप्त हुआ | जिनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन में ट्रस्ट के जनहित के कार्यों को एक नई दिशा मिली | यह कहना उचित होगा कि हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश में जनसेवा के क्षेत्र में एक नई पहचान मिली |
आज यह आप सबका ही आशीर्वाद है कि हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट निरंतर ही जनसेवा तथा समाज सेवा के कार्यों में कार्य कर रहा है जिसका विवरण ट्रस्ट की वेबसाइट एवं सोशल मीडिया फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, टम्बलर तथा youtube पर उपलब्ध है |
साथ ही देश के सभी राज्यों की राजधानियों तथा अन्य देशो में ट्रस्ट के कार्यालय स्थापित कर जनहित के कार्यों को और विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे हम सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में जनहित के कार्यों में अपना योगदान दे सकें |
वर्तमान समय में माननीय प्रधानमंत्री परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी के मूल मंत्र सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास का अनुसरण करते हुए समाज के हर क्षेत्र में लोगों की मदद कर रहे हैं |
आप यदि समाजसेवा में अपना योगदान करना चाहें तो आप हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़ सकते हैं और ट्रस्ट को अपना बहुमूल्य सहयोग प्रदान कर, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से समाजसेवा कर सकते हैं I यह आवश्यक नहीं है कि आप ट्रस्ट को आर्थिक सहयोग (Donation, Sponsorship, CSR आदि) ही प्रदान करें बल्कि आप अपने सेवा क्षेत्र के माध्यम से हमारे सलाहकार, आतंरिक सलाहकार समिति के सदस्य, समन्वयक, सद्भावना राजदूत, स्वयंसेवक बनकर, संयुक्त तत्वावधान मं आयोजन करके, भी अपना बहुमूल्य योगदान जनहित में प्रदान कर सकते हैं I
आपसे सादर अनुरोध है कृपया ट्रस्ट द्वारा विगत 11 वर्षों से निरंतर किये जा रहे जनहित में समाज उत्थान व समाज कल्याण के कार्यों के दृष्टिगत, लाभार्थियों के हित में तथा ट्रस्ट को प्रभावशाली कार्य करने हेतु अपना बहुमूल्य सहयोग प्रदान करना चाहें l
आज सम्मानित होने वाले सभी महानुभावों का सम्मान करके ट्रस्ट स्वयं सम्मानित हो रहा है |
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की न्यासी डॉ० रूपल अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि," मैं हमारे मुख्य अतिथि माननीय श्री बृजेश पाठक जी, जोकि कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हो पाए है तथा सम्मानित अतिथि डॉ श्री राजेंद्र प्रसाद जी का हार्दिक अभिनंदन करती हूं |
हेल्प यू सम्मान से नवाजे गए सभी विभूतियों तथा हेल्प यू कोरोना वॉरियर्स से सम्मानित महानुभावों को बहुत-बहुत बधाई |
आज हम हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का 11 वां स्थापना दिवस मना रहे हैं तथा विगत 11 वर्षों में बहुत कुछ बदला और हमने सबसे कठिन दौर तब देखा जब वैश्विक महामारी कोरोना ने पूरे विश्व को ज़कर लिया | उस समय लखनऊ शहर के अनेक संवेदनशील लोगों ने हमारा साथ दिया, जिससे हम सही समय पर असहाय व जरूरतमंद लोगों की मदद कर पाए |
मैं बस यही कहना चाहूंगी कि आप भविष्य में भी इसी तरह हमारा साथ दीजिए जिससे हम समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की अपनी मुहिम को पूरा कर सकें |
कार्यक्रम के अंत में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने सभी का धन्यवाद व आभार व्यक्त किया | कार्यक्रम का संचालन डॉ अलका निवेदन ने किया I
कार्यक्रम के हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ० रूपल अग्रवाल तथा ट्रस्ट की आतंरिक सलाहकार समिति के सदस्यगण डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ संतोष कुमार श्रीवास्तव, श्री एम० पी० अवस्थी, श्री अशोक कुमार जायसवाल, श्री एम०पी० सिंह, श्री मोहम्मद शहरयार, श्री विनय त्रिपाठी, प्रोफ़ेसर राज कुमार सिंह, डॉ अलका निवेदन, श्री पंकज अवस्थी, श्री कुलदीप पाण्डेय, श्रीमती श्रुति सिंह तथा शहर के गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही |
पुस्तकालय - library (masculine), also लाइब्रेरी (feminine)
सार्वजनिक पुस्तकालय - public Library (masculine)
राष्ट्रीय पुस्तकालय - national library (masculine)
बालपुस्तकालय - children's library (masculine)
चिकित्सा पुस्तकालय - medical library (masculine)
विश्वविद्यालय का पुस्तकालय - university library (masculine)
अनुसंधान पुस्तकालय - research library (masculine)
Role of Libraries
संकलन, संग्रह - collecting, gathering (masculine)
संकलन, संग्रह करना - to compile, gather (transitive)
संगृहीत, संकलित - archived, collected (adjective)
संगृहीत, संकलित करना - to store, archive (transitive)
संरक्षित रखना - to preserve (transitive)
सुलभ करना - to make accessible (transitive)
शिक्षित करना - to educate (transitive)
साक्षरता - literacy (feminine)
साक्षरता बढ़ावा देना - to promote literacy (transitive)
समान सुविधा प्रदान करना - to provide equal facilities (transitive)
Library Collection
ज्ञान - knowledge (masculine), also जानकारी (feminine)
सूचना, जानकारी - information (feminine)
शिक्षाप्रद - educational, instructive (adjective)
पाठ्य - educational, related to learning (adjective)
स्रोत इबारत, संदर्भ - source text, reference (masculine)
संदर्भ सेवा - reference service (feminine)
ग्रंथसूची - bibliography, references (feminine)
ग्रंथ - written work, text (masculine)
हस्तलिखित ग्रंथ - handwritten text (masculine)
दस्तावेज़, पत्र - document (masculine)
सामग्री - material (feminine)
* पठनीयसामग्री, पठनसामग्री reading material (feminine)
* अध्ययन सामग्री study material (feminine)
पुस्तक, किताब - book (feminine)
विश्वकोश - encyclopedia (masculine)
शब्दकोश - dictionary (masculine)
कोश - thesaurus (masculine)
अखबार, समाचारपत्र - newspaper (masculine)
पत्रिका - magazine, journal (feminine)
* newspapers and magazines can be दैनिक (daily), साप्ताहिक (weekly), or मासिक (monthly).
मानचित्र, नक़्शा - map, chart, blueprint (masculine)
सरकारी प्रकाशन - government publication (masculine)
Literature
साहित्य - literature (masculine)
लेखक - author, writer (masculine)
कवि - poet (masculine)
महाकाव्य - epic (masculine)
नाटक - play, drama (masculine)
कविता, शायरी - poetry, poem (feminine)
कथा, कहानी, दास्तान, गाथा - story, tale (feminine), also अफ़साना, क़िस्सा (masculine)
उपन्यास - novel (masculine)
लघुकथा - short story (feminine)
शैली - genre of literature (feminine)
गैर काल्पनिक - non-fiction (adjective)
कपोलकल्पना, काल्पनिक साहित्य - fiction (adjective)
प्रेम की कहानी, प्रेमाख्यान, प्रेमगाथा - love story (feminine), also रोमांस
भूत की कहानी - ghost story (feminine)
आत्मकथा - autobiography (feminine)
जीवनी - biography (feminine)
सत्य कथा - true story (feminine)
पाठ्यपुस्तक - textbook (feminine)
चित्रकथा - comics (feminine), also कॉमिक्स (masculine)
अध्ययन मार्गदर्शिका - study guide (feminine)
युवा वयस्क - young adult (adjective)
भाषाविज्ञान - linguistics (masculine)
In a Library
पढ़ने की अभिलाषा - desire to read (feminine)
अपनी रुचि का साहित्य - literature of one's interest (masculine)
पढ़ना - to read (transitive)
पाठक - reader (masculine)
अनुसंधान - research (masculine)
अनुसंधानकर्ता - researcher (masculine)
अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान - international exchange (masculine)
बालविभाग - children's department (masculine)
भाग - section (masculine)
विभाग - department (masculine)
किताब उधार लेना - to borrow a book (transitive)
किताब लौटाना, वापस करना - to return a book (transitive)
पुस्तकालय जुरमाना, विलंब शुल्क - library fee, late fee (masculine)
जुर्माना वसूलना - to collect a fine (transitive)
जुर्माना भरना - to pay a fine (transitive)
पुस्तकालय कार्ड - library card (masculine)
कार्ड के लिए आवेदन करना - to apply for a card (masculine)
पढ़ने का क्षेत्र - reading area, room (masculine), also कक्ष (feminine)
संचलन डेस्क - service desk, circulation desk (masculine)
देय तिथि - due date, return date (feminine)
चुप रहना - to keep quiet (intransitive)
पुस्तकालय अध्यक्ष - librarian (masculine), also लाइब्रेरियन
शोर न करें - please don't make noise
शांति बनाए रखें - please stay calm
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति से विचलित थे भारतेंदु हरिश्चंद्र
- कामिनी मोहन पाण्डेय।
मुंशी प्रेमचंद ने लिखा है कि जिन्होंने राष्ट्र का निर्माण किया है उनकी कृति अमर हो गई है। त्याग तपस्या और बलिदान 1857 की क्रांति के रणबांकुरों ने ही नहीं किया बल्कि उससे प्रभावित होकर कई लेखकों, साहित्यकारों, पत्रकारों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उसी त्याग की भावना व संघर्ष की प्रेरणा को जगाने में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने महती भूमिका निभाई।
भारतेंदु ने भारत की स्वाधीनता, राष्ट्र उन्नति और सर्वोदय भावना का विकास किया। आज के संदर्भ में बात करें तो भारतेंदु ने हीं देश के सभी पत्रकारों, संपादकों व लेखकों को देश की दुर्दशा यानी देश की दशा और दिशा को समझने का मंत्र दिया। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की हुंकार की गूंज के बाद इस संबंध पर बेतहाशा लेखन और पठन-पाठन हुआ। उस समय क्रांति के असफल होने के बाद जब निराशा का बीज व्याप्त हो गया था, तब समाज की दुर्दशा देखकर भारतेंदु का हृदय काफी व्यथित हुआ। देश की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक गिरावट देखकर वह तिलमिला उठे थे। देश की दशा पर उनकी अभिव्यक्ति थी- "हां हां भारत दुर्दशा न देखी जाई।" उनके इस प्रलाप पर भारत आरत, भारत सौभाग्य, वर्तमान-दशा, देश-दशा, भारत दुर्दिन जैसे नवजागरण की पोषक रचनाएँ प्रकाशित हुई।
इनमें देश के प्राचीन गौरव के स्मरण, समाज में व्याप्त आलस्य तथा देश की दीनता का वर्णन होता था। क्रांति के समय एवं उसके बाद स्वदेशाभिमानी पत्रकारों ने अपनी विवेचना शक्ति के बल पर जनमानस को सशक्त अभिव्यक्ति दी। उस समय हिंदी अपने विकास के नए आयाम गढ़ रही थी। सारे प्रतिरोधों के बीच पत्रकारिता की पैनी नज़र खुल चुकी थी। ऐसे में स्वाभिमान के संचार व स्वदेश प्रेम के उदय तथा आंग्ल शासन के प्रबल प्रतिरोध पत्रों में प्रकाशित तत्वों में दिखता था। पत्र और पत्रकार ख़ुद स्वतंत्रता आंदोलन के सक्षम सेनानी बन गए थे। अन्याय, अज्ञान, प्रपीड़न व प्रव॔चना के संहारक समाचार पत्रों ने ही हिंदी पत्रकारिता की आधारशिला रखी थी।
राष्ट्र उत्थान की दृष्टि से इतिहास एवं पत्रकारिता दोनों संश्लिष्ट हैं। राष्ट्रीय अस्मिता को समर्पित भारतेंदु की रचनाओं का मूलाधार गौरव की वृद्धि रहा है। नौ सितंबर 1850 को काशी में जन्मे भारतेंदु को हिंदी पत्रकारिता का आधार स्तंभ कहा जाता है। भारतेंदु द्वारा पत्रकारिता में देश प्रेम के लिए जलाई गई अलख काशी में अब भी दिखती है। इसका कारण यह है कि यहाँ जो पैदा हुआ वह भी गुरु जो मर गया वह भी गुरु होता है। यहाँ किसी बात के लिए कोई हाय-हाय नहीं है।
काशी की हिंदी पत्रकारिता की नींव 1845 में बनारस अखबार के रूप में पड़ी। इसके बारह साल बाद देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम आम लोगों को गहरे तक प्रभावित कर गया था। क्रांति का बिगुल काशी में भी सुनाई दिया। क्रांति के दौर में देश की आज़ादी के लिए यहाँ कई अख़बार प्रकाशित होते रहे। स्वाभिमान के साथ उठ खड़े होने को आमजन और क्रांतिकारियों को जो उसे से भरते रहे।
प्रमुख प्रकाशनों में कवि वचन सुधा (1867) हरिश्चंद्र मैगजीन (1875), हरिश्चंद्र चंद्रिका (1879) में भारतेंदु का मूल मंत्र सामाजिक और राष्ट्रीय उन्नति जगाना तथा सभी जातियों के अंदर स्वाभिमान का भाव भरना था। वे मानते थे कि "जिस देश में और जिस समाज में उसी समाज और उसी देश की भाषा में समाचार पत्रों का जब तक प्रचार नहीं होता, तब तक उसे देश और समाज की उन्नति नहीं हो सकती। समाचार पत्र राजा और प्रजा के वकील है। समाचार पत्र दोनों की ख़बर दोनों को पहुँचा सकता है जहाँ सभ्यता है, वहीं स्वाधीन समाचार पत्र है"।
देश में लकड़ी बीनने वाले से लेकर लकड़ी का तमाशा दिखाने वाले तक सभी ने क्रांति के जयकारे में लकड़ी बजाते हुए आहुति दी थी। यह वह दौर था, जिस पर क्रांति ने अपना असर गहरे तक छोड़ा था। इसी का परिणाम रहा कि देश के हर नौजवान ने अपनी छाती अंग्रेजों की गोलियाँ खाने के लिए चौड़ी कर ली थी। अल्पायु में ही भारतेंदु अपने युग का प्रतिनिधित्व करने लगे थे रचनात्मक लेखन, पत्रकारिता के माध्यम से भारतेंदु ने देश की राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक विसंगतियों पर अपने आक्रामक तेवर के साथ संवेदन पूर्ण विचारों से सार्थक हस्तक्षेप किया था। साहित्य को उन्होंने जनसामान्य के बीच लाकर खड़ा कर दिया था���
घोर उथल-पुथल के बावजूद उनके काल में साहित्यिक विचारों के कारण आत्ममंथन शुरू हो गया था। वे ब्रिटिश राज की कार्यप्रणाली पर जमकर बरसते थे। हर समस्या के प्रति भारतेंदु का दृष्टिकोण दूरगामी होता था। वे वैचारिक क्रांति लाने के लिए हर घड़ी प्रतिबद्ध दिखते थे। भारतेंदु चाहते थे कि भारतवासी स्वयं आत्मोत्थान और देशोत्थान में सक्रिय हो। यह बात आज भी प्रासंगिक है कि आर्थिक उत्थान से ही देश का भला हो सकता है।
आर्थिक लूट पर वे लिखते हैं-
भीतर-भीतर सब रस चूसै, बाहर से तन-मन-धन मूसै।
जाहिर बातन में अति तेज, क्यों सखि सज्जन नहिं अंग्रेज अंग्रेजों।।
अंग्रेजों को अपना भाग्य विधाता मानने वालों को भारतेंदु ने झकझोरा था। कविवचन सुधा में वे लिखते हैं- "देशवासियों तुम इस निद्रा से चौको, इन अंग्रेजों के न्याय के भरोसे मत फूले रहो।... अंग्रेजों ने हम लोगों को विद्यामृत पिलाया और उससे हमारे देश बांधवों को बहुत लाभ हुए, इसे हम लोग अमान्य नहीं करते, परंतु उन्हीं के कहने के अनुसार हिंदुस्तान की वृद्धि का समय आने वाला हो, सो तो, एक तरफ रहा, पर प्रतिदिन मूर्खता दुर्भिक्षता और दैन्य प्राप्त होता जाता है।... अख़बार इतना भूंकते हैं, कोई नहीं सुनता। अंधेर नगरी है। व्यर्थ न्याय और आज़ादी देने का दावा है।"
गांधीजी की कई नीतियों व योजनाओं के बीज भारतेंदु साहित्य में पहले ही आ चुके थे। भारतीय धर्मनिरपेक्षता, जाति निरपेक्षता, जो भारतीय संविधान के मूलाधार है, उन पर भारतेंदु के चिंतन में तात्कालिकता ही नहीं, भविष्योन्मुखता भी थी। वे हिंदू व मुसलमानों के प्रति भाईचारे का भाव रखने को प्रेरित करते थे। कहना ही ��ड़ता है कि देश के विकास उसकी उन्नति के लिए भारतेंदु स्वदेशी और राष्ट्रीयता के संदर्भ में दूरगामी अंतर्दृष्टि रखते थे।
समय बदल गया, हम आज़ाद हैं। भारत वही है। संविधान वही है। भारत में रहने वाले जीव-जंतु, पशु-पक्षी और मनुष्य भी वही है। विभिन्न धर्मों, मज़हबों,पंथों को मानने वाले मुसलमानों के सभी फ़िरक़ों, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाईयों तथा सनातन धर्म की गहराई में उतरने वाले हिन्दू क्रांति के बीज को आज भी वृक्ष बनते देखते हैं। उन विचारों की जो भारतेंदु के समय लोगों तक पत्रकारिता के माध्यम से पहुंचे थे, वे विचार आज भी प्रासंगिक हैं। देश के लोगों को इसकी परम आवश्यकता है।
🧿सद्गुरु रामपाल जी महाराज की अद्भुत क्रांतिकारी आध्यात्मिक जीवन की यात्रा🧿
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितम्बर 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत हरियाणा में एक किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई पूरी करके हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजिनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे।
17 फरवरी 1988 फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम् संत रामदेवानंदजी महाराज से दीक्षा प्राप्त की तथा तन-मन-धन से सक्रिय होकर स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए भक्ति मार्ग से साधना की तथा परमात्मा का साक्षात्कार किया।
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज को सत्संग करने की आज्ञा दी तथा सन् 1994 में नामदान करने की आज्ञा प्रदान की। भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण जूनियर इंजीनियर की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा पत्र क्रमांक 3492-3500, तिथि 16-5-2000 के तहत स्वीकृत है।
संत रामपाल जी महाराज ने घर-घर जाकर सत्संग किया। साथ-साथ ज्ञानहीन संतों का विरोध भी बढ़ता गया। चंद दिनों में संत रामपाल महाराज जी के अनुयायियों की संख्या लाखों में पहुंच गई।
ज्ञान में निरूत्तर होकर अपने अज्ञान का पर्दाफाश होने के भय से उन अंज्ञानी संतों, महंतों व आचार्यों ने संत रामपाल जी महाराज को बदनाम करने के लिए दुष्प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया तथा 12.7.2006 को संत रामपाल जी को जान से मारने तथा आश्रम को नष्ट करने के लिए स्वयं तथा अपने अनुयायियों से सतलोक आश्रम पर आक्रमण करवाया। जब संत रामपाल जी को मारने में असफल रहे तो एक व्यक्ति की हत्या कर दी जिसका आरोप संत रामपाल जी महाराज पर लगा दिया। संत रामपाल जी महाराज 2006 से 2008 तक जेल में रहे।
हत्या के झूठे केस में संत रामपाल जी महाराज बाइज्जत बरी हो चुके हैं।
सन 2008 से पुनः समाज सुधार के कार्य किये और तत्वज्ञान की अलख जगाई, नकली धर्मगुरुओं की दुकानें बंद होने लगी तो षड्यंत्र करके 2013 में करौंथा कांड व 2014 में बरवाला कांड करा दिया। और संत जी को पुनः जेल में भेज दिया। क्योकि ज्ञान में तो कोई बोल न सका।
लेकिन जेल में जाने के बावजूद भी उनका ज्ञान नहीं रुका, ना ही समाज सुधार का मिशन डगमगाया।
बल्कि अब तो यह ज्ञान पूरे संसार में छा गया है।
विश्व के एकमात्र संत एवं सबसे बड़े समाज सुधारक हैं संत रामपाल जी महाराज जिनका उद्देश्य है- जातिवाद, साम्प्रदायिकता समाप्त कर आपसी भेदभाव मिटाना, अंधविश्वास, पाखण्डवाद से मुक्ति दिलाना, सभी प्रकार के नशे पर प्रतिबंध लगाना, दहेज जैसी कुप्रथाएं समाप्त कर बेटियों को न्याय दिलाना तथा भ्रष्टाचार मुक्त स्वच्छ समाज का निर्माण कर भारत को विश्वगुरु बनाना।
वे पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के अवतार हैं।
परमेश्वर कबीर बन्दीछोड़ जी ने अपनी अमृत वाणी में पवित्र ‘कबीर सागर‘ ग्रंथ में कहा है कि एक समय आएगा जब पूरे विश्व में मेरा ही ज्ञान चलेगा। पूरा विश्व शांति पूर्वक भक्ति करेगा। आपस में विशेष प्रेम होगा, सतयुग जैसा समय (स्वर्ण युग) होगा। परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ द्वारा बताए ज्ञान को संत रामपाल जी महाराज ने समझा है। इसी ज्ञान के विषय में कबीर साहेब जी ने अपनी वाणी में कहा है कि --
कबीर, और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोब का, करता चले मैदान।।
#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
#SantRampalJiMaharaj
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
जाह्नवी… मेरे लबों से फिसलती हुई, मेरे दिल में उतरती है, मेरे पास ना रहकर भी दूर नहीं होती है। हवा के झोंके सी, विरह की जलन भी, मेरी पत्नी, मेरी जाह्नवी। जैसे बादल और धरा, वैसे मैं और मेरी जाह्नवी। बादल बारिशों से अपने प्रेम पत्र भेजता है और पूरी धरती खिल उठती है, मेरी जाह्नवी भी बारिश में, मोरनी सी बौखला उठती है। आज फिर हमेशा की तरह उसने बारिश के वक़्त सारी खिड़कियां खोल दी, पूरा पानी पानी हो गया…
[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #2. १6th नवंबर २०२३. गुरूवार.]
सर्द सुबह की ठंड में गरम चाय सुकून की वो प्याली है जिसका खुमार दिन भर रहता है। सर्दियां आ चुकी है, असमंजस बरकरार है।
कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम है, इसी के साथ मेरे कदम चलते चलते यहां तक आ चुके और सांसे ठहरती नही।
आज कल सुबह कब हुई? दोपहर कहा गई? शाम कब ढली? रात कैसे गुजरी कुछ समझ नही आ रहा... वक्त इतनी तेज रफ्तार पकड़ रहा है जैसे उसे कही पोहचने की जल्दी है। कुछ बातों को अपने अंदर रख तो लिया मगर वो इतनी भारी होती जा रही है मानो रूई में किसी ने पानी डाल दिया हो, ये राज़ तो रोज बढ़ता जा रहा हैं खैर किसी दिन यहां से निकल जाऊंगी।
लोग कहते हैं में खामोश बड़ी रहती हु,
में सोच में डूब कर गुमसुम सी रहती हु,
जब ऊंचे आसमान के परिंदो की उड़ान में बंद कमरे की खुली खिड़की से देखती हु,
तब में ये सोचती हु,
बदलाव मुझे नापसंद है फिर भी उड़ान की चाह है,
फिर याद आता है की में तो बंदिशों में रहती हु,
मगर,
जब चंद लोग मुझे ये कहते हैं की में बड़ा अच्छा में लिखती हु
बस इसीलिए,
मेरे कदम रुकते नही और में चलती रहती हु।
सिमरन। ~
खैर उम्मीद पर दुनिया कायम है और मुझ पर मेरा भविष्य।
देश के इतिहास में पहली बार पिता की जगह पति की आरक्षित जाति का प्रमाण पत्र का लाभ दिया
भाजपा की पूर्व सासंद श्रीमती ज्योति बेवा स्वर्गीय प्रेम धुर्वे को पांच साल से मिल रही पेंशन की रबड़ी
बैतूल (वेबवार्ता), चाल – चरित्र – चेहरा की दुहाई देने वाली भाजपा के प्रधानमंत्री से लेकर लोकसभा अध्यक्ष एवं लोकसभा सचिवालय से एक आरटीआई के माध्यम से पुछा गया एक सवाल केन्द्र एवं राज्य की भाजपा सरकार को कटघरे में ला खड़ा किया है। आरटीआई एक्टविस्ट, पत्रकार एवं बैतूल जिला नवयुवक पंवार जागृति मंच के…
🧿सद्गुरु रामपाल जी महाराज की अद्भुत क्रांतिकारी आध्यात्मिक जीवन की यात्रा🧿
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितम्बर 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत हरियाणा में एक किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई पूरी करके हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजिनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे।
17 फरवरी 1988 फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम् संत रामदेवानंदजी महाराज से दीक्षा प्राप्त की तथा तन-मन-धन से सक्रिय होकर स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए भक्ति मार्ग से साधना की तथा परमात्मा का साक्षात्कार किया।
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज को सत्संग करने की आज्ञा दी तथा सन् 1994 में नामदान करने की आज्ञा प्रदान की। भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण जूनियर इंजीनियर की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा पत्र क्रमांक 3492-3500, तिथि 16-5-2000 के तहत स्वीकृत है।
संत रामपाल जी महाराज ने घर-घर जाकर सत्संग किया। साथ-साथ ज्ञानहीन संतों का विरोध भी बढ़ता गया। चंद दिनों में संत रामपाल महाराज जी के अनुयायियों की संख्या लाखों में पहुंच गई।
ज्ञान में निरूत्तर होकर अपने अज्ञान का पर्दाफाश होने के भय से उन अंज्ञानी संतों, महंतों व आचार्यों ने संत रामपाल जी महाराज को बदनाम करने के लिए दुष्प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया तथा 12.7.2006 को संत रामपाल जी को जान से मारने तथा आश्रम को नष्ट करने के लिए स्वयं तथा अपने अनुयायियों से सतलोक आश्रम पर आक्रमण करवाया। जब संत रामपाल जी को मारने में असफल रहे तो एक व्यक्ति की हत्या कर दी जिसका आरोप संत रामपाल जी महाराज पर लगा दिया। संत रामपाल जी महाराज 2006 से 2008 तक जेल में रहे।
हत्या के झूठे केस में संत रामपाल जी महाराज बाइज्जत बरी हो चुके हैं।
सन 2008 से पुनः समाज सुधार के कार्य किये और तत्वज्ञान की अलख जगाई, नकली धर्मगुरुओं की दुकानें बंद होने लगी तो षड्यंत्र करके 2013 में करौंथा कांड व 2014 में बरवाला कांड करा दिया। और संत जी को पुनः जेल में भेज दिया। क्योकि ज्ञान में तो कोई बोल न सका।
लेकिन जेल में जाने के बावजूद भी उनका ज्ञान नहीं रुका, ना ही समाज सुधार का मिशन डगमगाया।
बल्कि अब तो यह ज्ञान पूरे संसार में छा गया है।
विश्व के एकमात्र संत एवं सबसे बड़े समाज सुधारक हैं संत रामपाल जी महाराज जिनका उद्देश्य है- जातिवाद, साम्प्रदायिकता समाप्त कर आपसी भेदभाव मिटाना, अंधविश्वास, पाखण्डवाद से मुक्ति दिलाना, सभी प्रकार के नशे पर प्रतिबंध लगाना, दहेज जैसी कुप्रथाएं समाप्त कर बेटियों को न्याय दिलाना तथा भ्रष्टाचार मुक्त स्वच्छ समाज का निर्माण कर भारत को विश्वगुरु बनाना।
वे पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के अवतार हैं।
परमेश्वर कबीर बन्दीछोड़ जी ने अपनी अमृत वाणी में पवित्र ‘कबीर सागर‘ ग्रंथ में कहा है कि एक समय आएगा जब पूरे विश्व में मेरा ही ज्ञान चलेगा। पूरा विश्व शांति पूर्वक भक्ति करेगा। आपस में विशेष प्रेम होगा, सतयुग जैसा समय (स्वर्ण युग) होगा। परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ द्वारा बताए ज्ञान को संत रामपाल जी महाराज ने समझा है। इसी ज्ञान के विषय में कबीर साहेब जी ने अपनी वाणी में कहा है कि --
कबीर, और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोब का, करता चले मैदान।।
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यहाँ तककि श्रीमती राधारानी के दल में भी श्रीकृष्ण से प्रेम करने की स्पर्धा रहती है। यह एक प्रकार का रस है जिसमें श्रीकृष्ण को केन्द्र में रखते हुए प्रेमपूर्वक स्पर्धा होती है। ब्रह्मानन्द को पत्र, 18 नवम्बर 1967