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ojeshagarwal · 1 month
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Delve into the enchanting world of 'Moral Stories in Hindi – बच्चों के लिए नैतिक कहानियाँ हिंदी में' on indiatechmitra.com, a curated collection of captivating tales designed to enlighten and educate young minds. These moral stories, crafted in the beautiful Hindi language, are perfect for parents and educators seeking to instill values such as kindness, honesty, courage, and perseverance in children. Each story is accompanied by a moral lesson that encourages children to reflect on their actions and the consequences thereof, promoting a deeper understanding of ethical principles in everyday life. Whether it's for bedtime reading, classroom discussion, or personal reflection, these stories serve as a valuable resource for nurturing character development and moral reasoning in young readers. Explore a variety of tales that not only entertain but also teach invaluable life lessons, fostering a generation of thoughtful and compassionate individuals. #MoralStoriesInHindi #ChildrensLiterature #EthicalValues #CharacterDevelopment #EducationalStories #HindiKahaniya #ParentingResources #Indiatechmitra
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sachikahaniya · 3 months
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Chacha Sherwani Pehan Kar || Heart Touching Story || Kahaniyan || Urdu S...
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komal7876668 · 10 months
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theblogarticle · 1 year
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05+ Moral Stories in Hindi | हिंदी नैतिक कहानियां | Kids Story
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आज हम इस लेख में नैतिक कहानियों (Short Moral Stories in Hindi) के बारे में जानेगे। जिन्हे पढ़ने के बाद आपको बहुत कुछ सिखने को मिलेगा। जब भी हम कहानियों के बारे में पड़ते है| मोरल स्टोरीज इन हिंदी (Moral Stories in Hindi) में आपका स्वागत है। दोस्तों, आपके लिए Top 06 Moral Stories in Hindi सुनाने जा रहा हूं। आशा रखता हूँ की आपको बेहद पसंद आएगा। कहानी एक (Story) आपके बच्चों को Engaged रखने का एक शानदार तरीका है। शायद आपके बचपन की सबसे स्पष्ट यादों में से एक वह Stories हैं जो आपने बचपन में पढ़ी थीं। तो हमें ज्यादातर कहानियां बच्चो से समन्धित पढ़ने के लिए मिलती है। क्योकिं एक छोटे बच्चो को कुछ भी समझाने के लिए कहानियों को सुनाना बहुत जरुरी है। क्योकिं बच्चे कहानियों को बहुत ध्यान से सुनते है। कुछ नैतिक कहानियां तो ऐसी होती है, जो की सीधे हमारे हृदय मन उतर जाती है। हमें इन कहानियों से बहुत सिखने को मिलता है। ज्यादातर छोटे बच्चे अपने दादा – दादी और नाना – नानी से कहानियां सुनना पसंद करते है। अगर आप भी अपने बच्चो को कहानियां सुनना चाहते है, तो आप यहाँ पर लिखी सभी कहानियों को अपने बच्चो को सुना सकते है। यह सभी कहानियां शिक्षाप्रद है। कहानियों को लेखक कई प्रकार से लिखते है, जिससे की किसी भी कहानी को अधिक से अधिक रोचक बनाया जा सके।
Short Moral Stories in Hindi | हिंदी नैतिक कहानियां
यहाँ पर हम आपको सभी ऐसी कहानियों की List देने जा रहे है, जो की शिक्षाप्रद होने के साथ साथ बहुत मनोरंजक, और रोचक भी है। जिन्हे पढ़ते हुए आपको बहुत मजा आने वाला है। यहाँ पर लिखी गयी सारी कहानियां सभी वर्ग के आयु के लोगो के लिए है। क्योकिं कोई भी कहानी सिर्फ बच्चो को ही कुछ नहीं सिखाती है। बल्कि बड़े लोगो को भी कहानियों से बहुत कुछ सिखने के लिए मिलता है। अगर आप भी अपने बच्चो को कुछ रोचक कहानियां सुनाना चाहते है, तो आप यहाँ से पढ़कर सुना सकते है।
1. लकड़हारा और कुल्हाड़ी की कहानी (Short Stories in Hindi)
एक समय की बात है, एक गांव में एक लकड़हारा रहता है, जो की जंगल से लकड़ियों को काटकर उन्हें बाजार में बेचकर पैसे कमाता था, जो भी पैसे उसे लकड़ी बेच कर मिलते थे|
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वह उसी से अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता था। एक दिन वह जंगल में रोज की तरह लकड़ी काटने के लिए गया, और नदी किनारे एक वृक्ष से लकड़ी काटने लगा। अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर नदी में गिर गयी। इससे लकड़हारे को बहुत दुःख हुआ, और वह नदी में कुल्हाड़ी ढूंढ़ने का प्रयत्न करने लगा। लेकिन उसे नदी में अपनी कुल्हाड़ी नहीं मिली। इस बात से लकड़हारा बहुत ज्यादा दुखी था, और वह नदी के किनारे बैठकर रोने लगा। जब वह नदी किनारे रो रहा था, तो लकड़हारे की आवाज सुनकर नदी से भगवान प्रकट हुए। भगवान् जी ने लकड़हारे से पूछा की तुम क्यों रो रहे हो, इस पर लकड़हारे ने शुरू से अंत की पूरी कहानी भगवान को सुनाई। लकड़हारे की कहानी सुनकर भगवान को उस पर दया आ गयी, और उन्होंने लकड़हारे की मेहनत को देखते हुए उसकी मदद करने की योजना बनाई। https://www.youtube.com/watch?v=zPpsQJhPlaI इसके बाद भगवान जी नदी में गायब हो गए, और एक सोने की कुल्हाड़ी लकड़हारे को देते हुए बोले ये लो तुम्हारी कुल्हाड़ी। सोने की कुल्हाड़ी देखकर लकड़हारे बोलै की “हे भगवन” यह कुल्हाड़ी मेरी नहीं है| इस बात को सुनकर भगवान फिर से नदी में गायब हो गए और इस बार एक चांदी की कुल्हाड़ी लकड़हारे को देते हुए बोले यह लोग तुहारी कुल्हाड़ी, इस बार भी लकड़हारे ने यही कहा की यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है, और मुझे सिर्फ मेरी कुल्हाड़ी चाहिए। भगवान् ने फिर से नदी में गायब होकर एक लोहे की कुल्हाड़ी निकाली और लकड़हारे को देते हुए कहा ये लो तुम्हारी कुल्हाड़ी। इस बार लकड़हारे के चेहरे पर मुस्कान थी, क्योकिं यह कुल्हाड़ी लकड़हारे की थी। उसने कहा ये मेरी कुल्हाड़ी है। भगवान ने लकड़हारे की ईमानदारी से खुश होकर उसे सोने और चंडी की दोनों कुल्हाड़ियाँ भी उसी लकड़हारे को दे दी। इससे लकड़हारा ख़ुशी ख़ुशी घर चला गया। Moral of This Story लकड़हारे की इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है की , "हमें हमेशा अपनी ईमानदारी पर ही रहना चाहिए।" क्योकिं जीवन में ईंमानदार व्यक्ति को कोई भी नहीं हरा सकता है।
2. खजाने की खोज की कहानी (Short Moral Stories in Hindi)
पुराने समय की बात है, गांव में धनीराम नाम का एक किसान रहता था, उसके पास चार लड़के थे। धनीराम अपना घर चलने के लिए अपने खेत में कृषि कार्य करता था। लेकिन धनीराम के चारो लड़के बहुत ज्यादा आलसी थे, वह कभी भी खेतो में काम करने के लिए नहीं गए थे। वह सारा दिन अपना समय गांव में इधर उधार बैठ कर बिताया करते थे।
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एक दिन धनीराम अपनी पत्नी से बोला की आज तो में जिन्दा हूँ तो सब कुछ सही चल रहा है, मेरे बाद कौन खेती करेगा। हमारे बच्चो ने तो आज तक खेतो में कदम तक भी नहीं रखा है। धनीराम पत्नी ने इस पर कहाँ कोई बात नहीं धीरे धीरे यह काम करने लगेंगे। इसी तरह से धीरे धीरे समय गुजरता जा रहा था। एक दिन धनीराम की अचानक से तबियत ख़राब हो जाती है, और वह बहुत ज्यादा बीमार पड़ जाता है। इस दौरान धनीराम अपनी पत्नी से कहता है, की चारो लड़को को मेरे पास बुलाऊँ मेरे पास समय बहुत कम है। इतना सुनने के बाद धनीराम की पत्नी अपने चारो लकड़ो को उनके पिता के पास बुलाकर लाती है। धनीराम इस बात से बहुत ज्यादा चिंतित था, की उसके बाद उसके लड़को का क्या होगा। इसलिए उसने अपने चारो लकड़ो को अपने पास बैठाकर कहा, की मेरे पास जितना भी कमाया हुआ धन था, मैंने वह सारा अपने खेतो के निचे दबाया हुआ है। जब में इस दुनिया में ना रहूं, तो मेरे बाद तुम खेतो में से दबाया हुआ सारा खजाना निकल कर आपस में बाँट लेना है। इतना सुनने के बाद धनीराम के चारो बेटे बहुत खुश हुए। https://www.youtube.com/watch?v=6zt-wkylO9M इसके कुछ समय बाद धनीराम की बहुत ज्यादा बीमार होने की वजह से मृत्यु हो गयी। धनीराम की मृत्यु के कुछ दिन बाद, उसके चारो बेटे खेत में दबे हुए खजाने को खोदने के लिए निकल गए। खेत में पहुंचने के बाद चारो बेटों ने पूरा खेत खोद डाला लेकिन उनमे से किसी को भी खजाने जैसा कुछ नहीं मिला। इस बात से वह चारो बहुत निराश हुए, और उन्होंने घर आकर अपनी माँ से कहा, की पिताजी ने खेत जो खोजने के बारे में बताया था, वह एक झूठ था। हम चारो ने पूरा खेत खोद डाला लेकिन हमें खेत में कोई भी खजाना नहीं मिला। यह सुनकर उनकी माँ बोली की तुम्हारे पिताजी ने अपने पुरे जीवन में यह घर और खेत ही कमाया है, अब जब तुमने इतनी मेहनत करके पूरा खेत खोद दिया है, तो अब उसमे बीज भी डाल दो। इसके बाद चारो बेटों ने खेत में बीज वो दिए, और माँ के कहे गए अनुसार खेत में समय पर पानी और खाद डालने लगे। समय बीतता गया है, और कुछ समय बाद खेत में फसल तैयार हो गयी। फसल काटने के बाद चारो बेटों ने फसल को बाजार में बेचा और उससे जो भी पैसे मिले उससे उन्हें बहुत ख़ुशी मिली। इसके बाद जब चारो बेटे घर गए, तो माँ ने कहा की बेटा तुम्हारे पिताजी तुम्हे यही समझाना चाहते है, की जो हम मेहनत करते है, उसके बदले में ही हमें खजाना मिलता है। Moral of The Story इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है। अगर हमें अपने जीवन में सफल होना है, "तो हमें मेहनत करनी चाहिए।" अगर कोई भी व्यक्त ज्यादा आलस करता है, तो वह अपने जीवन का कीमती समय बर्बाद कर रहा होता है। आपको हमेशा अपने जीवन में सही दिशा में मेहनत करनी चाहिए।
3. नकारात्मक लोगो की बिल्कुल भी नहीं सुननी चाहिए (Short Moral Stories in Hindi)
एक बार एक जंगल में बहुत सारे मेंढकों का ग्रुप घूम रहा था। यह सभी जंगल में आगे यात्रा करते जा रहे है। तभी उनमे से दो मेंढक एक गड्डे में गिर जाते है। यह देखकर दूसरे सभी मेंढक को लगा की अब यह जीवित नहीं बचेंगे, क्योकिं वह गड्डा बहुत गहरा था।
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सभी मेंढक एक साथ चिल्ला रहे थी, की अब तुम बाहर नहीं आ सकते हो। हालाकिं दोनों मेंढक गड्डे से बहार निकलने का प्रयास कर रहे थे। उनके लगातार प्रयास करने पर भी अन्य मेंढक उन्हें यही बोल रहे थे, की तुम्हारी कोशिश बेकार है, तुम गड्डे से बहार नहीं निकल सकते हो। यह बात गड्डे में गिरे एक मेंढक ने सुन ली। और वह हिम्मत हर गया और अंत तक प्रयास करते करते मर गया। लेकिन दूसरे मेंढक ने हिम्मत नहीं हारी वह अपना पूरा प्रयास करता रहा। पहले मेंढक के मरने पर दूसरे मेंढक जोर जोर से चिल्ला रहे थे। लेकिन गड्डे में गिरा हुआ मेंढक अभी भी बहार निकलने का पूरा प्रयत्न कर रहा था। और उसने सभी को नजर अंदाज करके बार बार प्रयास करने के कारण कूद कूद कर गड्डे से बहार निकलने में सफल हो गया। https://www.youtube.com/watch?v=WYZb0vdmB6k जब वह मेंढक गड्डे से बाहर आया तो अन्य सभी मेंढक बोले की जब हम तुम्हे जोर जोर से बोल रहे थे, की तुम गड्डे से बहार नहीं निकल सकते हो, तो क्या तुम्हे यह आवाज नहीं सुनाई दी थी। उस मेंढक ने कहा नहीं मुझे किसी की कोई भी आवाज नहीं सुनाई दी। क्योकिं में बहरा हूँ और मुझे लगा आप सब जोर जोर से बोलकर मेरा उत्साह बढ़ा रहे हो। इसी कारण में गड्डे से बहार निकलने में सफल रहा। Moral of The Story इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। "की हमें कभी भी किसी भी ऐसे व्यक्ति की नहीं सुननी चाहिए, जो हमें ऊपर उठने में या किसी समस्यां को हल करने से रोकते है।" बस आपको आपने ऊपर पूरा विशवास रखना चाहिए। अगर आपको अपने ऊपर पूरा विशवास है, तो आप किसी भी समस्यां का हल ढूंढ सकते है।
4. भेड़िया और सारस की कहानी (Short Moral Stories in Hindi)
एक जंगल में एक भेड़िया रहता था। वह एक दिन एक शिकार करके उस जानवर को खा रहा था। खाते खाते उसके गले में एक हड्डी अटक जाती है। बहुत कोशिश करने के बाद भी भेड़ियाँ अपने गले से उस हड्डी को नहीं निकाल पाता है।
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और उसकी स्तिथि बहुत ज्यादा बुरी हो जाती है। अब वह बहुत परेशान हो जाता है। तभी उसे सामने एक सारस दिखाई देता है। उसकी लम्बी चोंच देखर भेड़ियाँ उस सारस से मदद मांगता है। पहले तो सारा बहुत ज्यादा डरा हुआ सा रहता है, क्योकिं उसे एक भेड़ियें की मदद करना अच्छा नहीं लगता है। लेकिन जब भेड़ियाँ उससे बोलता है, की तुम मेरे गले में फांसी हड्डी को निकालो में तुम्हे इनाम दूंगा| तो इस पर सारस को लालच आ जाता है, और वह भेड़ियें की गले की हड्डी को अपनी लम्बी चोंच से निकल देता है। हड्डी निकल जाने के बाद भेड़ियाँ वहां से जाने लगता है। https://www.youtube.com/watch?v=FbgTukX6oc8 यह देखकर सारस कहता है, मैंने तुम्हारे गले की हड्डी निकाली है, मेरा इनाम कहाँ है। यह सुनकर भेड़ियाँ सारस से कहता है, तुम्हारी गर्दन मेरे गले से सुरक्षित बहार आ गयी है। यही तुम्हारा इनाम है। इस बात से सारस को बहुत दुःख हुआ। Moral of The Story इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है, "की हमें कभी भी स्वार्थी लोगो के साथ नहीं रहना चाहिए।" जिस व्यक्ति का कोई आत्मसम्मान नहीं होता है, उसकी सहायता करने पर बदले में किसी भी तरह के लाभ की अपेक्षा ना करें।
5. डरपोक पत्थर की कहानी (Moral Stories in Hindi)
बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक मूर्तिकार रहता था। उसे एक मूर्ति बनाने के लिए पत्थर की आवश्यकता थी। वह पत्थर खोजने के लिए जंगल में चला गया, वहां पर उसे एक अच्छा और सुन्दर सा पत्थर मिल जाता है|
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जिसे मूर्ति का आकार देना बहुत ही आसान था, वह इस पत्थर को देखकर खुश हो जाता है। और उस पत्थर को उठाकर अपने साथ अपने घर ले जाने लगता था। जब वह रस्ते में आ रहा होता है, तो उसे एक पत्थर और मिल जाता है, मूर्तिकार उस पत्थर को भी अपने साथ ले जाता है। मूर्तिकार दोनों पत्थर को घर ले जाता है, और अपने औजारों से पत्थर को मूर्ति का आकार देने लगता है। जैसे ही वह पत्थर पर चोट मरता है, पत्थर कहने लगता है, की मुझे छोड़ दो इससे मुझे दर्द हो रहा तुम किसी और पत्थर की मूर्ति बना लो। अगर तुम मेरे ऊपर ज्यादा चोट मरोगे तो में टूट कर बिखर जाऊंगा। पत्थर की यह बात सुनकर मूर्तिकार को उस पर दया आ जाती है, और वह उस पत्थर को छोड़ देता है, और दूसरे पत्थर की मूर्ति बनाने लग जाता है। यह पत्थर कुछ नहीं बोला और कुछ ही समय में मूर्तिकार इस पत्थर को एक भगवान की मूर्ति मन बदल देता है। https://www.youtube.com/watch?v=AAb1fD82ZE0 भगवान् की मूर्ति बनने के बाद गांव वाले उस मूर्ति को लेने केलिए आते है। जब गांव वाले उस मूर्ति को ले जाने लगते है, तो वह सोचते है, की मूर्ति के पास नारियल तोड़ने के लिए एक पत्थर की आवश्यकता और पड़ेगी। इसके लिए वह दूसरे पत्थर को भी अपने साथ ले जाते है। गांव वालों ने मूर्ति को मंदिर में रख दिया और उसी मूर्ति के निचे दूसरे पत्थर को भी रख दिया। जब भी मंदिर में लोग पूजा करने के लिए आते तो वह मूर्ति पर दूध चढ़ाते और फूलो की माला डालते और निचे रखे पत्थर पर नारियल को फोड़ते थे। इससे पत्थर बहुत परेशान होता था। जब भी लोग उस पर नारियल फोड़ते थे, उसको दर्द होता था। इस पर वह पत्थर मूर्ति बने पत्थर से बोलता है, की तुम तो बहुत ही आराम मन हो लोग तुम्हे दूध स्नान कराते है, और तुम्हे लड्डू का भोग लगाते है, और मेरी किस्मत तो बहुत ही ख़राब है। इस बात पर मूर्ति वाले पत्थर ने जबाब दिया की मूर्तिकार तो तुम्हे मूर्ति बनाना चाहता था, लेकिन तुमने दर्द की वजह से इंकार कर दिया अगर तुम उस समय ऐसा नहीं करते तो शायद आज में तुम्हारी जगह पर होता, और लोग मेरे ऊपर नारियल फोड़ रहे होते। लेकिन तुमने शुरुआत का दर्द सहन नहीं किया और तुमने आराम का रास्ता चुना जिसकी वजह से अब तुम्हे दर्द सहना पड़ रहा है। यह बात उस पत्थर को समझ आ गयी, और वह आगे से कभी कुछ नहीं बोला जब भी लोग उस पर नारियल को फोड़ते वह सभी दुःख हसकर सहता था। जब लोग मूर्ति को लड्डू का भोग लगाते थे, तो उस पत्थर पर भी लड्डू का भोग लगाते थे। Moral of The Story इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है, "की हमें कभ भी किसी भी कठिन से कठिन परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए। क्योकिं शुरुआत में हमारे जीवन में कठिनाइयां आती है, लेकिन बाद में सब कुछ ठीक हो जाता है।" जो व्यक्ति शुरुआत की कठिनाइयों को सामना करके आगे बढ़ जाता है, उसका आने वाला जीवन पूरा सुखमय हो जाता है।
6. मेहनत के फल की कहानी (Moral Stories in Hindi)
एक गांव में दो दोस्त रहते थे, एक का नाम मोहन और दूसरे का नाम सोहन था। दोनों में बहुत ही गहरी मित्रता थी। मोहन बहुत ही धार्मिक व्यक्ति था, वह हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहता था, जबकि सोहन बहुत ज्यादा मेहनती था।
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एक बार दोनों ने एक बीघा जमीन लेकर उसमे फसल उगाने के बारे में सोचा, जिसके बाद वह एक अच्छा सा घर बनाना चाहते थे। इसके बाद दोनों दोस्तों ने खेत खरीद लिया, सोहन दिन रात खेत में मेहनत करता, और मोहन मंदिर में बैठकर फसल अच्छी होने के लिए भगवान से प्रार्थना किया करता। इसी तरह से समय बीतता गया, और कुछ दिन बाद फसल पक गयी। फसल पकने के बाद उसकी कटाई करके उसे बाजार में जाकर बेच दिया। इसके बाद उन्हें अच्छा पैसा म��ला। इस पर सोहन ने कहा की इसमें से मेरा ज्यादा हिस्सा है, क्योकिं मैंने दिन रात एक करके खेत को खाद पानी देकर फसल उगाई है। https://www.youtube.com/watch?v=8amQs9oJ3Ks लेकिन यह बात सुनकर मोहन गुस्सा हो जाता है, और कहने लगता है, की धन का ज्यादा हिस्सा मुझे मिलना छाइये, क्योकिं मैंने अपने खेत में अच्छी फसल होने के लिए भगवान से प्रार्थना की है। और जब तक भगवान की मर्जी ना हो तब तक कोई भी कुछ नहीं कर सकता है। दोनों इसी बात को लेकर लड़ने लगे, अब यह बात गांव के मुखिया तक पहुंच गयी। गांव के मुखियां ने सारी बात सुनने के बाद एक फैसला किया। मुखियां ने दोनों दोस्तों को चावलों की एक एक बोरी दी, जिसमे चावलों के बिच छोटे छोटे कंकड़ मिले हुए थे। मुखियां ने कहाँ इस चावलों की बोरी को घर ले जाओ और इसमें से सुबह तक चावल और कंकड़ अलग अलग करके लेकर आओ फिर में सुबह फैसला करूँगा की फसल का ज्यादा धन किसको मिलना चाहिए। दोनों अपनी अपनी चावलों की बोरी लेकर घर चले गए। सोहन अपने चावलों की बोरी को खोलकर उसमे से कंकड़ अलग अलग करने में लगा गया। मोहन अपनी चावलों की बोरी को लेकर मंदिर में चला गया और भगवान से चावलों से कंकड़ को अलग करने के लिए प्रार्थना करने लगा, बोलै ही भगवान मेरे चावलों से कंकड़ अलग कर दो। दोनों अगली सुबह मुखियां के पास पहुंचे, सोहन ने तो पूरी रात जागकर चावलों से एक एक करके सारे कंकड़ अलग कर दिए।इस पर मुखियां बहुत खुश हुआ। और मोहन ने अपनी बोरी मंदिर से ले जाकर ऐसी की ऐसी मुखिया के सामने रख दी। और मुखिया से बोला आप बोरी को खोल कर देख लीजिये मुझे भगवान पर पूरा विशवास है, की इस चावल की बोरी से सारे कंकड़ निकल चुके होंगे। लेकिन जब मुखियां ने चावलों की बोरी खुलवाई तो देखा सारे कंकड़ चावलों के बिच ही मौजूद थे। मुखियां ने मोहन को समझाते हुए कहाँ, की भगवान भी हमारी मदद जब ही करते जब हम अपनी तरफ से मेहनत करते है। यह बात समझाते हुए मुखियां ने फसल का ज्यादा धन सोहन को दे दिया। इसके बाद से मोहन भी सोहन के साथ खेत में मन लगाकर मेहनत करने लगा। इस बार इनके खेत में और भी ज्यादा अच्छी फसल हुई। Moral of The Story यह कहानी हमें सिखाती है, "की हमें कभी भी पूरी तरह से भगवान के भरोसे पर नहीं बैठना चाहिए।" क्योकिं भगवान भी हमारी सहायता तभी करते है, जब हम अपनी तरफ से मेहनत करते है। Some Best Post: now gg Roblox | full form for computer Read the full article
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backtoself · 2 years
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परिवर्तन/CHANGE - Hindi kahaniyan - kahaniyan - Story in Hindi
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tomar03 · 9 months
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कालू का बदला Kalu ka badala | New cartoon | Hindi moral story | Kalu Ka...
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gyanibabanet · 2 years
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Top 10 Moral Stories in Hindi
हमारी इन मोरल स्टोरीज इन हिंदी  से आपको बहुत कुछ सीखने को मिल सकता हैं। ये कहानियां बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं और जीवन के जरुरी सबक सीखा जाती हैं।  आज इस पोस्ट से आप जानेंगे कुछ मशहूर कहानियां जो शायद आपने पहले भी सुनी हो अपनी माँ, दादी माँ, या नानी माँ से। तो आइये आगे बढ़ते हैं - top 10 moral stories in hindi। 
1. प्यासा कौआ - ये कहानी भरी गर्मी में प्यास से तड़प रहे एक कौए की हैं। इस कहानी में आप ये जानते हैं की कैसे वो बार बार असफल होने के बाद भी कड़ी मेहनत करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करता हैं और अपनी प्यास बुझाता हैं।  
2. सोने का अण्डा - इस कहानी में एक किसान के एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हाथ लग जाती हैं जिससे वो बहुत ही अमीर हो जाता हैं। लेकिन अपने लाल��� की वजह से वो उस मुर्गी को खो बैठता है और उससे मिलने वाले सोने के अण्डों को भी। 
3. अंगूर खट्टे हैं - एक दिन एक जंगल में जब एक लोमड़ी को एक पेड़ पर अंगूरों का गुच्छा दिखाई देता हैं तो वो उस तक पहुंचने की बहुत कोशिश करती हैं।  लेकिन जब वो अंगूरों तक नहीं पहुँच पाती हैं तो अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिए अंगूरों का दोष मानकर वह से चली जाती हैं। 
4. दो बिल्लियाँ और बंदर - इस मोरल स्टोरी में एक बन्दर दो बिलियों के झगडे का फायदा उठाकर, उन्हें बेवकूफ बनाकर उनकी रोटी हथिया लेता हैं। इससे ये सीख मिलती है की हमेशा मिलके रहना चाहिए नहीं तो कोई और आपके मतभेद फायदा उठा ले जाता हैं।  
5. कछुआ और खरगोश - ये एक कछुआ और खरगोश की कहानी हैं। दोनों दोस्त होते हैं और एक दिन दोनों में रेस हो जाती हैं।  इसमें में आप ये जानते हैं कैसे मेहनती कछुआ ये रेस जीतकर घमंडी खरगोश को हरा देता हैं।   
6. एकता में बल - ये कहानी चार ऐसे भाइयों की है जिनमे बिलकुल नहीं बनती थी।  वे हमेशा झगड़ते रहते थे जिसकी वजह से उनके पिता हमेशा परेशां रहते थे।  एक दिन वे एक युक्ति लगाकर चरों भाइयों को ये सीखा देते हैं की सच्ची जीत साथ मिलकर रहने में ही हैं। 
7. चिड़ियाँ की कहानी -  एक जंगल में सभी जानवर मिलजुल कर रहते थे। एक दिन जंगल में आग लग जाती है। ये देखकर सभी जानवर जंगल से भागने लगते है। उनमे से एक नन्ही सी चिड़िया अपनी चोंच में तालाब से पानी भरके जंगल की आग को बुझाने का प्रयास करने लगती हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता आप कितने बड़े या छोटे हैं।  आपके कम से ही आपके हौसले का पता चलता हैं। 
8. एकता में शक्ति -एक बार कबूतरों का एक झुण्ड एक शिकारी के जाल में फंस जाता हैं।  तब उनका सरदार एक तरकीब लगता हैं और अपने सभी साथी कबूतरों को उनकी एकता के बल पर शिकारी के चंगुल से बचने में सफल हो जाता हैं। एकता में बहुत शक्ति और सबको हमेशा मिलकर रहना चाहिए।
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kahanighargharki · 2 years
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Kahani महंगाई में कमाई बीवी ने उड़ाई: Saas Bahu Stories in Hindi | Hindi Kahaniya | Moral Stories
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webinfosys6 · 1 year
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aravind1 · 4 years
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Greedy Bahu Part 34 | Magical Pillow | लालची बहू जादुई तकिया | Hindi Stories | Stories In Hindi
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merisahelimagazine · 4 years
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कहानी- परवरिश (Short Story- Parvarish)
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“उसके जाने के बाद मैंने यह बगिया बसाई. इन पौधों को रोपकर मैं हर्षित होती हूं, सींचकर परितृप्त होती हूं और इन्हें बढ़ता देखती हूं, तो मन में उल्लास की हिलोरें उठने लगती हैं. मैं सच कहती हूं बेटी, मेरे मन में न इनसे फल पाने की इच्छा है और न ही छाया की चाहत. कभी-कभी सोचती हूं, हम अपने बच्चों को भी इसी तरह बिना किसी अपेक्षा के पालें, तो ज़िंदगी कितनी सुकूनभरी हो जाए. ज़रा सोचो, यदि उस दिन मैं बंटी को रोक लेती, तो वह कुछ कहता या नहीं, यह मैं नहीं जानती, पर मेरी अंतरात्मा तो मुझे मेरे स्वार्थी हो जाने के लिए मरते दम तक धिक्कारती रहती.”
रीमा दोनों बच्चों को लेकर सोसायटी पार्क में दाख़िल हुई, तो माला आंटी बेंच पर बैठी सुस्ता रही थीं. कनी तो आते ही अपने ग्रुप में शामिल हो खेलने लगी थी. बच्चों के पास जाने के लिए मचलते दो वर्षीय हनी को लेकर रीमा माला आंटी के पास आकर बैठ गई.
“बहुत दिनों बाद नज़र आ रही हो. कहीं बाहर गई थी क्या?”
“हां आंटी, ससुराल गई थी. हनी, उधर नहीं बेटा, गिर जाओगे. देखिए न आंटी, कितना परेशान करने लग गया है. वहां भी मुझे सारा दिन इसके पीछे लगे रहना पड़ता था. सास और जेठानी दोनों हंसती थीं मुझ पर.”
“क्यों भला?” माला आंटी ने आश्‍चर्य व्यक्त किया.
“सासूजी कह रही थीं कि हमने तो घर का सारा काम करते हुए 6-6 बच्चे पाल लिए और इनसे एक नहीं संभल रहा. मेरे बच्चे तो इतने सयाने थे कि मैं आंगन धोती थी, तो एक-एक बच्चे को खुली आलमारीकी एक-एक ताक में बिठा देती थी.
मजाल है, जो आंगन सूखने से पहले कोई बच्चा नीचे उतर आए और ज़मीन पर पांव रख दे. और एक इसके हनी को देखो, एक सेकंड टिककर बैठ ही नहीं सकता. कभी यह खींचेगा, तो कभी वह. जाने क्या खाकर पैदा किया है इसकी मां ने इसे?” रीमा रुआंसी हो उठी, तो माला आंटी की हंसी फूट पड़ी.
“इसमें तुम्हारा दोष नहीं है. पहले बच्चे वाक़ई सीधे होते थे. माता-पिता से डरते थे और दबकर भी रहते थे. अब तो सारे ही कंप्यूटर दिमाग़वाले पैदा हो रहे हैं. उनका न दिमाग़ स्थिर रहता है, न हाथ-पांव. पर मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि यह पीढ़ी बहुत आगे तक जाएगी.”
लेकिन रीमा मानो सुन ही नहीं रही थी. उसका मन अभी तक ससुराल और गांव में ही झूल रहा था. “एक और चीज़ मुझे बहुत परेशान कर रही है आंटी. सासूजी और जेठानी के अनुसार कनी और हनी ज़रूरत से ज़्यादा ही नाज़ुक हैं. जब भी मैं ससुराल जाती हूं, दोनों बच्चे बीमार पड़ जाते हैं. वहां वॉटर प्यूरिफायर तो है नहीं, बच्चों को पानी उबालकर, छानकर देती हूं, पर फिर भी उन्हें खांसी, बुख़ार व पेटदर्द हो ही जाता है. पेट की समस्या तो मुझे भी हो जाती है, पर लाज-शरम के मारे चुप रहती हूं. अब वही खाना-पानी जेठजी के बच्चे खाते-पीते हैं और वही हनी-कनी. क्या सच में मेरे बच्चों का इम्यून सिस्टम इतना कमज़ोर है आंटी?”
“तू बेकार ही घबरा रही है बेटी. वे बच्चे वहां के वातावरण के अभ्यस्त हैं, लेकिन हनी-कनी उसके आदी नहीं हैं. हवा-पानी बदलने से तो अच्छे-अच्छों का स्वास्थ्य डगमगा जाता है, फिर ये तो छोटे-छोटे बच्चे हैं.”
हनी फिर उठकर खेल रहे बड़े बच्चों के पास जाने लगा, तो रीमा फिर उसे पकड़कर ले आ��. आंटी की शह पाकर उसका हौसला बढ़ गया था.
“जेठानी की बेटी कनी की हमउम्र है. वह पूरा खाना बना लेती है. रोटियां तो इतनी गोल कि मैं भी नहीं बना पाऊं. कनी तो स़िर्फ नूडल्स बना पाती है. वहां जाकर तो आंटी अमित भी मानो मेरे नहीं रहते. अपने घरवालों के साथ मेरी खिंचाई करने लग जाते हैं. कहते हैं, मैं बच्चों को लेकर ओवर प्रोटेक्टिव हो जाती हूं. कभी पढ़ाई के लिए, कभी दूध के लिए, तो कभी च्यवनप्राश के लिए बच्चों के पीछे ही पड़ी रहती हूं. बच्चे तो अपने आप बड़े हो जाते हैं. हर व़क़्त उनके पीछे डंडा लेकर घूमने की कहां ज़रूरत है?”
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“बहुत ज़्यादा पीछे पड़ने की ज़रूरत नहीं है, यह तो मैं भी मानती हूं. लेकिन एक बात समझने और ग़ौर करने की है और यह बात अपने उनको भी समझा देना कि खर-पतवार हर कहीं उग आती है, वह भी बिना प्रयास के, लेकिन अच्छी नस्ल का गुलाब यदि उगाना है, तो उसे अच्छी खाद और अच्छी मिट्टी देनी होगी. समय-समय पर कटिंग, ग्राफ्टिंग आदि सब करना होगा.”
रीमा का चेहरा गुलाब की मानिंद खिल उठा था. वह आंटी से बच्चों की परवरिश के और भी टिप्स जुटाना चाहती थी, पर तभी हनी के रोने की आवाज़ से वह घबरा गई. शरारती हनी आख़िर बच्चों के बीच चला ही गया था और उनसे टकराकर गिर भी गया था. रीमा ने फटाफट उसे उठाया और कनी को भी खेल से छुड़ाकर ज़बरदस्ती हाथ पकड़कर घसीटते हुए अपने साथ ले गई.
माला आंटी उन्हें तब तक जाते निहारती रहीं, जब तक वे उनकी आंखों से ओझल नहीं हो गए. उन्हें अपनी जवानी के दिन याद आ गए, जब वे भी रीमा की तरह दिनभर बिन्नी और बंटी के पीछे लगी रहती थीं. एक गहरी सांंस भरकर उन्होंने भी क़दम अपने फ्लैट की ओर बढ़ा दिए.
इसके अगले ही दिन की बात है. रिमझिम बारिश हो रही थी. रीमा शाम के खाने की तैयारी करने रसोई की ओर जा ही रही थी कि डोरबेल की आवाज़ सुनकर उसके क़दम मुख्यद्वार की ओर बढ़ गए. माला आंटी को देखकर वह सुखद आश्‍चर्य से भर उठी.
“अजवायन के पत्तों के पकौड़े बनाए थे. तुम्हारे लिए भी ले आई.” उन्होंने प्लेट आगे बढ़ा दी थी.
“अरे वाह! ये तो मुझे बहुत पसंद हैं. लेकिन आप अजवायन के पत्ते लाई कहां से? मुझे तो पूरे मुंबई में नहीं मिले.”
“मैंने अपने घर में उगाए हैं. छोटा-सा टेरेस गार्डन है मेरा. कभी फुर्सत में हो तो आना, दिखाऊंगी.”
“बिल्कुल, बिल्कुल आंटी! कल छुट्टी है. मैं कल ही आती हूं.”
वादे के मुताबिक़ रीमा अगले ही दिन माला आंटी के यहां पहुंच गई थी. बच्चे अपने पापा के संग टीवी देखने में व्यस्त थे, इसलिए रीमा उन्हें लेकर बिल्कुल निश्‍चिंत थी. माला आंटी उसे देखकर बहुत ख़ुश हुईं और सीधे टेरेस पर ले गईं. पूरा टेरेस छोटे-बड़े गमलों और तरह-तरह के पौधों से सजा हुआ लहलहा रहा था. इस लुभावने दृश्य ने रीमा का मन मोह लिया.
“आंटी, मुझे इतना अच्छा लग रहा है यहां पर! यह हरियाली दिल को इतना सुकून दे रही है कि मैं आपको बता नहीं सकती.”
“मैं समझ सकती हूं. घर का यह हिस्सा ख़ुद मेरे दिल के सबसे क़रीब है. इधर देखो, यह मनीप्लांट! इसे छाया में रखना पड़ता है और यह ऑरेंज रेड गुलाब. इसका यह शेडेड कलर पाने के लिए मुझे ख़ूब मेहनत करनी पड़ी थी. बार-बार कटिंग, ग्राफ्टिंग, कीटनाशक, खाद- जाने क्या-क्या. और यह देखो संतरे का बोनसाई, कितना प्यारा है न? पता नहीं इसमें संतरे कब आएंगे? आएंगे भी या नहीं, पर मुझे यह बहुत प्रिय है. जब इसके पास जाती हूं, तो ऐसा लगता है अपनी छोटी-छोटी डालियां फैलाकर यह मुझे बांहों में भर लेना चाहता है.”
रीमा अवाक् हो आंटी को सुन रही थी. आंटी वैसी ही उत्साहित लग रही थीं, जैसे घर में किसी मेहमान के आने पर वह हनी-कनी को लेकर उत्साहित हो जाया करती थी. ‘हनी बेटे, आंटी को वो पोयम सुनाओ. अच्छा बताओ क्लाउन कैसे करता है. कनी बेटी, आंटी को अपनी क्राफ्ट डायरी तो दिखाओ.’
“आंटी, आप तो इन पौधों को बिल्कुल अपने बच्चों की तरह प्यार करती हैं और वैसे ही साज-संभालकर रखती हैं.”
“हां बेटी, और क्या? जैसे हर बच्चा एक अलग व्यक्तित्व का होता है, उसकी अलग ज़रूरतें होती हैं, वैसे ही हर पौधे की भी अपनी अलग ज़रूरत है. किसी को धूप ज़्यादा चाहिए, तो किसी को पानी. कुछ पौधे अपने आप ही पनप आते हैं. उन पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती, तो कुछ का बहुत ज़्यादा ध्यान रखना पड़ता है.”
रीमा बहुत प्रभावित हो रही थी, “आंटी, मैं दावे के साथ कह सकती हूं, आपने अपने बच्चों की भी बहुत अच्छी परवरिश की होगी. कहां हैं वे?”
“चल, अंदर बैठकर चाय पीते हैं. वहीं गपशप भी हो जाएगी.”
“वो सामने तस्वीर देख रही हो न? वो हैं मेरे बच्चे बिन्नी और बंटी. बिन्नी शुरू से ही मेरे दिल के बहुत क़रीब रही है. मैंने उसे बेटी से ज़्यादा सहेली माना. ख़ुद इतनी बंदिशों में रही थी, इसलिए उसे पूरी आज़ादी दी. दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे थे. बिन्नी को विदेश में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप का ऑफर आया, तो मैं ख़ुशी से झूम उठी. नाते-रिश्तेदारों ने जवान बेटी को अकेले विदेश भेजने का जमकर विरोध किया, पर मेरा मन उसे तितली की तरह उड़ते देखना चाहता था.”
“और आपके पति?” रीमा ने झिझकते हुए पूछा.
“उन्होंने मेरा साथ दिया. हमारा आशीर्वाद लेकर बिन्नी विदेश चली गई. पढ़ाई पूरी हुई, तो उसे वहीं एक अच्छी नौकरी का ऑफर मिल गया. वह वहीं बस गई. एक एनआरआई से हमने उसका ब्याह रचा दिया. पर... पर उसके बाद कुछ ऐसा घटा कि मेरी सोच बदलने लग गई. बच्चों के पापा अचानक चल बसे. बिन्नी के जाने के बाद मैं वैसे ही बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी और अब यह आघात! मैं अंदर से बहुत टूट गई थी. बंटी की ख़ातिर ख़ुद को ऊपर से संभाले रहती, पर मन ही मन ख़ुद को बहुत अकेला और असहाय महसूस करने लगी थी. बंटी को ज़रा-सी भी देर हो जाती, तो मैं तुरंत फोन मिला देती. उसका फोन नहीं मिलता, तो उसके दोस्तों या टीचर्स तक को लगा देती. उसका खाना लिए बैठी रहती. उसके घर में घुसते ही प्रश्‍नों की झड़ी लगा देती. वह अक्सर झुंझला जाता था.
‘आपको हो क्या गया है मां? छोटा बच्चा नहीं हूं मैं कि गुम हो जाऊंगा. सब कितना मज़ाक बनाते हैं मेरा! दीदी पर तो कभी इतनी पाबंदियां नहीं लगाईं आपने?...’ फिर मेरा सहमा हुआ चेहरा देख ख़ुद ही चुप हो जाता और हम खाना खाने लगते. वह देर तक मुझे समझाते रहता कि मैं उसका खाने के लिए इंतज़ार न किया करूं. व़क़्त पर खाकर दवा वगैरह ले लिया करूं. मैं सब कुछ समझ जाने की मुद्रा में सिर हिलाती रहती. फिर एक दिन वही हुआ, जिसकी मुझे आशंका थी. बंटी को भी उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप मिली और विदेश जाने का कॉल आया, तो मैं सिहर उठी थी. अगर यह भी चला गया, तो मैं किसके सहारे ज़िंदा रहूंगी? फिर मेरी ही अंतरात्मा मुझे धिक्कारती कि मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो गई हूं? गहरे मानसिक अंतर्द्वंद्व के बाद मैंने निश्‍चय कर लिया कि बंटी विदेश जाएगा. दिल ख़ून के आंसू रो रहा था, पर मैंने उसे हंसते हुए विदा किया.
उसके जाने के बाद मैंने यह बगिया बसाई. इन पौधों को रोपकर मैं हर्षित होती हूं, सींचकर परितृप्त होती हूं और इन्हें बढ़ता देखती हूं, तो मन में उल्लास की हिलोरें उठने लगती हैं. मैं सच कहती हूं बेटी, मेरे मन में न इनसे फल पाने की इच्छा है और न ही छाया की चाहत. कभी-कभी सोचती हूं, हम अपने बच्चों को भी इसी तरह बिना किसी अपेक्षा के पालें, तो ज़िंदगी कितनी सुकूनभरी हो जाए. ज़रा सोचो, यदि उस दिन मैं बंटी को रोक लेती, तो वह कुछ कहता या नहीं, यह मैं नहीं जानती, पर मेरी अंतर��त्मा तो मुझे मेरे स्वार्थी हो जाने के लिए मरते दम तक धिक्कारती रहती.”
यहभीपढ़े: पैरेंट्स भी करते हैं ग़लतियां (5 Common Mistakes All Parents Make)
व़क़्त काफ़ी हो गया था. रीमा को बच्चों की चिंता सताने लगी थी. माला आंटी के प्रति श्रद्धा से अभिभूत रीमा ने जाने की आज्ञा मांगी. परवरिश के इस नए अध्याय ने उसे अंदर तक मथ डाला था.
मंथन अभी जारी ही था कि एक दिन ऑफिस जाते व़क़्त रीमा को ऊपर बालकनी से आंटी की पुकार सुनाई दी. उनके संतरे के बोनसाई में एक फल आया था. हर्षोल्लास से उनका चेहरा दमक रहा था.
“मैंने तो कल्पना भी नहीं की थी कि इसके फल मुझे देखने और चखने को मिलेंगे.”
रीमा ने शाम को देखने आने का वादा किया. पूरे रास्ते रीमा यही सोचती रही कि अनपेक्षित फल सचमुच कितना सुख देता है! उसे चखने का मज़ा ही कुछ और है.
शाम को वादे के मुताबिक़ वह आंटी के टेरेस पर हाज़िर थी. डाल पर गोल-मटोल छोटा-सा संतरा वाक़ई बहुत प्यारा लग रहा था. आंटी ने चहकते हुए बताया कि उन्होंने उसके न जाने कितने फोटो खींच डाले थे और दोनों बच्चों को भेज भी दिए थे. रीमा कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करे, इससे पूर्व आंटी का मोबाइल बज उठा. वे वार्तालाप में संलग्न हो गईं.
“हां, हां बेटा... पर... पर तू तो कह रहा था... अच्छा... ठीक है. ठीक है, मैं इंतज़ार करूंगी.” फोन रखते-रखते आंटी की आंखों से आंसू बहने लगे थे. रीमा घबरा उठी.
“क्या हुआ आंटी? सब ठीक तो है न?”
“बंटी का फोन था. वह इंडिया आ रहा है. यहीं रहकर जॉब करेगा.”
“पर उस दिन तो...”
“मैंने भी यही कहा. कह रहा है कि हां, जॉब ऑफर था, पर मैंने स्वीकारने की बात कब कही?” मैं तो आपको बता रहा था... मैं यहां स़िर्फ पढ़ने आया था. रहूंगा तो अपने देश में ही. सेवा तो अपनी मां और अपने देश की ही करूंगा. वह आ रहा है,
हमेशा के लिए. मुझे तो विश्‍वास ही नहीं हो रहा.” भावविभोर आंटी ने नए-नवेले संतरे को चूम लिया.
   अनिल माथुर
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05+ Moral Stories in Hindi | हिंदी नैतिक कहानियां | Kids Story
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आज हम इस लेख में नैतिक कहानियों (Short Moral Stories in Hindi) के बारे में जानेगे। जिन्हे पढ़ने के बाद आपको बहुत कुछ सिखने को मिलेगा। जब भी हम कहानियों के बारे में पड़ते है| मोरल स्टोरीज इन हिंदी (Moral Stories in Hindi) में आपका स्वागत है। दोस्तों, आपके लिए Top 06 Moral Stories in Hindi सुनाने जा रहा हूं। आशा रखता हूँ की आपको बेहद पसंद आएगा। कहानी एक (Story) आपके बच्चों को Engaged रखने का एक शानदार तरीका है। शायद आपके बचपन की सबसे स्पष्ट यादों में से एक वह Stories हैं जो आपने बचपन में पढ़ी थीं। तो हमें ज्यादातर कहानियां बच्चो से समन्धित पढ़ने के लिए मिलती है। क्योकिं एक छोटे बच्चो को कुछ भी समझाने के लिए कहानियों को सुनाना बहुत जरुरी है। क्योकिं बच्चे कहानियों को बहुत ध्यान से सुनते है। कुछ नैतिक कहानियां तो ऐसी होती है, जो की सीधे हमारे हृदय मन उतर जाती है। हमें इन कहानियों से बहुत सिखने को मिलता है। ज्यादातर छोटे बच्चे अपने दादा – दादी और नाना – नानी से कहानियां सुनना पसंद करते है। अगर आप भी अपने बच्चो को कहानियां सुनना चाहते है, तो आप यहाँ पर लिखी सभी कहानियों को अपने बच्चो को सुना सकते है। यह सभी कहानियां शिक्षाप्रद है। कहानियों को लेखक कई प्रकार से लिखते है, जिससे की किसी भी कहानी को अधिक से अधिक रोचक बनाया जा सके।
Short Moral Stories in Hindi | हिंदी नैतिक कहानियां
यहाँ पर हम आपको सभी ऐसी कहानियों की List देने जा रहे है, जो की शिक्षाप्रद होने के साथ साथ बहुत मनोरंजक, और रोचक भी है। जिन्हे पढ़ते हुए आपको बहुत मजा आने वाला है। यहाँ पर लिखी गयी सारी कहानियां सभी वर्ग के आयु के लोगो के लिए है। क्योकिं कोई भी कहानी सिर्फ बच्चो को ही कुछ नहीं सिखाती है। बल्कि बड़े लोगो को भी कहानियों से बहुत कुछ सिखने के लिए मिलता है। अगर आप भी अपने बच्चो को कुछ रोचक कहानियां सुनाना चाहते है, तो आप यहाँ से पढ़कर सुना सकते है।
1. लकड़हारा और कुल्हाड़ी की कहानी (Short Stories in Hindi)
एक समय की बात है, एक गांव में एक लकड़हारा रहता है, जो की जंगल से लकड़ियों को काटकर उन्हें बाजार में बेचकर पैसे कमाता था, जो भी पैसे उसे लकड़ी बेच कर मिलते थे|
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वह उसी से अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता था। एक दिन वह जंगल में रोज की तरह लकड़ी काटने के लिए गया, और नदी किनारे एक वृक्ष से लकड़ी काटने लगा। अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर नदी में गिर गयी। इससे लकड़हारे को बहुत दुःख हुआ, और वह नदी में कुल्हाड़ी ढूंढ़ने का प्रयत्न करने लगा। लेकिन उसे नदी में अपनी कुल्हाड़ी नहीं मिली। इस बात से लकड़हारा बहुत ज���यादा दुखी था, और वह नदी के किनारे बैठकर रोने लगा। जब वह नदी किनारे रो रहा था, तो लकड़हारे की आवाज सुनकर नदी से भगवान प्रकट हुए। भगवान् जी ने लकड़हारे से पूछा की तुम क्यों रो रहे हो, इस पर लकड़हारे ने शुरू से अंत की पूरी कहानी भगवान को सुनाई। लकड़हारे की कहानी सुनकर भगवान को उस पर दया आ गयी, और उन्होंने लकड़हारे की मेहनत को देखते हुए उसकी मदद करने की योजना बनाई। https://www.youtube.com/watch?v=zPpsQJhPlaI इसके बाद भगवान जी नदी में गायब हो गए, और एक सोने की कुल्हाड़ी लकड़हारे को देते हुए बोले ये लो तुम्हारी कुल्हाड़ी। सोने की कुल्हाड़ी देखकर लकड़हारे बोलै की “हे भगवन” यह कुल्हाड़ी मेरी नहीं है| इस बात को सुनकर भगवान फिर से नदी में गायब हो गए और इस बार एक चांदी की कुल्हाड़ी लकड़हारे को देते हुए बोले यह लोग तुहारी कुल्हाड़ी, इस बार भी लकड़हारे ने यही कहा की यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है, और मुझे सिर्फ मेरी कुल्हाड़ी चाहिए। भगवान् ने फिर से नदी में गायब होकर एक लोहे की कुल्हाड़ी निकाली और लकड़हारे को देते हुए कहा ये लो तुम्हारी कुल्हाड़ी। इस बार लकड़हारे के चेहरे पर मुस्कान थी, क्योकिं यह कुल्हाड़ी लकड़हारे की थी। उसने कहा ये मेरी कुल्हाड़ी है। भगवान ने लकड़हारे की ईमानदारी से खुश होकर उसे सोने और चंडी की दोनों कुल्हाड़ियाँ भी उसी लकड़हारे को दे दी। इससे लकड़हारा ख़ुशी ख़ुशी घर चला गया। Moral of This Story लकड़हारे की इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है की , "हमें हमेशा अपनी ईमानदारी पर ही रहना चाहिए।" क्योकिं जीवन में ईंमानदार व्यक्ति को कोई भी नहीं हरा सकता है।
2. खजाने की खोज की कहानी (Short Moral Stories in Hindi)
पुराने समय की बात है, गांव में धनीराम नाम का एक किसान रहता था, उसके पास चार लड़के थे। धनीराम अपना घर चलने के लिए अपने खेत में कृषि कार्य करता था। लेकिन धनीराम के चारो लड़के बहुत ज्यादा आलसी थे, वह कभी भी खेतो में काम करने के लिए नहीं गए थे। वह सारा दिन अपना समय गांव में इधर उधार बैठ कर बिताया करते थे।
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एक दिन धनीराम अपनी पत्नी से बोला की आज तो में जिन्दा हूँ तो सब कुछ सही चल रहा है, मेरे बाद कौन खेती करेगा। हमारे बच्चो ने तो आज तक खेतो में कदम तक भी नहीं रखा है। धनीराम पत्नी ने इस पर कहाँ कोई बात नहीं धीरे धीरे यह काम करने लगेंगे। इसी तरह से धीरे धीरे समय गुजरता जा रहा था। एक दिन धनीराम की अचानक से तबियत ख़राब हो जाती है, और वह बहुत ज्यादा बीमार पड़ जाता है। इस दौरान धनीराम अपनी पत्नी से कहता है, की चारो लड़को को मेरे पास बुलाऊँ मेरे पास समय बहुत कम है। इतना सुनने के बाद धनीराम की पत्नी अपने चारो लकड़ो को उनके पिता के पास बुलाकर लाती है। धनीराम इस बात से बहुत ज्यादा चिंतित था, की उसके बाद उसके लड़को का क्या होगा। इसलिए उसने अपने चारो लकड़ो को अपने पास बैठाकर कहा, की मेरे पास जितना भी कमाया हुआ धन था, मैंने वह सारा अपने खेतो के निचे दबाया हुआ है। जब में इस दुनिया में ना रहूं, तो मेरे बाद तुम खेतो में से दबाया हुआ सारा खजाना निकल कर आपस में बाँट लेना है। इतना सुनने के बाद धनीराम के चारो बेटे बहुत खुश हुए। https://www.youtube.com/watch?v=6zt-wkylO9M इसके कुछ समय बाद धनीराम की बहुत ज्यादा बीमार होने की वजह से मृत्यु हो गयी। धनीराम की मृत्यु के कुछ दिन बाद, उसके चारो बेटे खेत में दबे हुए खजाने को खोदने के लिए निकल गए। खेत में पहुंचने के बाद चारो बेटों ने पूरा खेत खोद डाला लेकिन उनमे से किसी को भी खजाने जैसा कुछ नहीं मिला। इस बात से वह चारो बहुत निराश हुए, और उन्होंने घर आकर अपनी माँ से कहा, की पिताजी ने खेत जो खोजने के बारे में बताया था, वह एक झूठ था। हम चारो ने पूरा खेत खोद डाला लेकिन हमें खेत में कोई भी खजाना नहीं मिला। यह सुनकर उनकी माँ बोली की तुम्हारे पिताजी ने अपने पुरे जीवन में यह घर और खेत ही कमाया है, अब जब तुमने इतनी मेहनत करके पूरा खेत खोद दिया है, तो अब उसमे बीज भी डाल दो। इसके बाद चारो बेटों ने खेत में बीज वो दिए, और माँ के कहे गए अनुसार खेत में समय पर पानी और खाद डालने लगे। समय बीतता गया है, और कुछ समय बाद खेत में फसल तैयार हो गयी। फसल काटने के बाद चारो बेटों ने फसल को बाजार में बेचा और उससे जो भी पैसे मिले उससे उन्हें बहुत ख़ुशी मिली। इसके बाद जब चारो बेटे घर गए, तो माँ ने कहा की बेटा तुम्हारे पिताजी तुम्हे यही समझाना चाहते है, की जो हम मेहनत करते है, उसके बदले में ही हमें खजाना मिलता है। Moral of The Story इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है। अगर हमें अपने जीवन में सफल होना है, "तो हमें मेहनत करनी चाहिए।" अगर कोई भी व्यक्त ज्यादा आलस करता है, तो वह अपने जीवन का कीमती समय बर्बाद कर रहा होता है। आपको हमेशा अपने जीवन में सही दिशा में मेहनत करनी चाहिए।
3. नकारात्मक लोगो की बिल्कुल भी नहीं सुननी चाहिए (Short Moral Stories in Hindi)
एक बार एक जंगल में बहुत सारे मेंढकों का ग्रुप घूम रहा था। यह सभी जंगल में आगे यात्रा करते जा रहे है। तभी उनमे से दो मेंढक एक गड्डे में गिर जाते है। यह देखकर दूसरे सभी मेंढक को लगा की अब यह जीवित नहीं बचेंगे, क्योकिं वह गड्डा बहुत गहरा था।
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सभी मेंढक एक साथ चिल्ला रहे थी, की अब तुम बाहर नहीं आ सकते हो। हालाकिं दोनों मेंढक गड्डे से बहार निकलने का प्रयास कर रहे थे। उनके लगातार प्रयास करने पर भी अन्य मेंढक उन्हें यही बोल रहे थे, की तुम्हारी कोशिश बेकार है, तुम गड्डे से बहार नहीं निकल सकते हो। यह बात गड्डे में गिरे एक मेंढक ने सुन ली। और वह हिम्मत हर गया और अंत तक प्रयास करते करते मर गया। लेकिन दूसरे मेंढक ने हिम्मत नहीं हारी वह अपना पूरा प्रयास करता रहा। पहले मेंढक के मरने पर दूसरे मेंढक जोर जोर से चिल्ला रहे थे। लेकिन गड्डे में गिरा हुआ मेंढक अभी भी बहार निकलने का पूरा प्रयत्न कर रहा था। और उसने सभी को नजर अंदाज करके बार बार प्रयास करने के कारण कूद कूद कर गड्डे से बहार निकलने में सफल हो गया। https://www.youtube.com/watch?v=WYZb0vdmB6k जब वह मेंढक गड्डे से बाहर आया तो अन्य सभी मेंढक बोले की जब हम तुम्हे जोर जोर से बोल रहे थे, की तुम गड्डे से बहार नहीं निकल सकते हो, तो क्या तुम्हे यह आवाज नहीं सुनाई दी थी। उस मेंढक ने कहा नहीं मुझे किसी की कोई भी आवाज नहीं सुनाई दी। क्योकिं में बहरा हूँ और मुझे लगा आप सब जोर जोर से बोलकर मेरा उत्साह बढ़ा रहे हो। इसी कारण में गड्डे से बहार निकलने में सफल रहा। Moral of The Story इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। "की हमें कभी भी किसी भी ऐसे व्यक्ति की नहीं सुननी चाहिए, जो हमें ऊपर उठने में या किसी समस्यां को हल करने से रोकते है।" बस आपको आपने ऊपर पूरा विशवास रखना चाहिए। अगर आपको अपने ऊपर पूरा विशवास है, तो आप किसी भी समस्यां का हल ढूंढ सकते है।
4. भेड़िया और सारस की कहानी (Short Moral Stories in Hindi)
एक जंगल में एक भेड़िया रहता था। वह एक दिन एक शिकार करके उस जानवर को खा रहा था। खाते खाते उसके गले में एक हड्डी अटक जाती है। बहुत कोशिश करने के बाद भी भेड़ियाँ अपने गले से उस हड्डी को नहीं निकाल पाता है।
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और उसकी स्तिथि बहुत ज्यादा बुरी हो जाती है। अब वह बहुत परेशान हो जाता है। तभी उसे सामने एक सारस दिखाई देता है। उसकी लम्बी चोंच देखर भेड़ियाँ उस सारस से मदद मांगता है। पहले तो सारा बहुत ज्यादा डरा हुआ सा रहता है, क्योकिं उसे एक भेड़ियें की मदद करना अच्छा नहीं लगता है। लेकिन जब भेड़ियाँ उससे बोलता है, की तुम मेरे गले में फांसी हड्डी को निकालो में तुम्हे इनाम दूंगा| तो इस पर सारस को लालच आ जाता है, और वह भेड़ियें की गले की हड्डी को अपनी लम्बी चोंच से निकल देता है। हड्डी निकल जाने के बाद भेड़ियाँ वहां से जाने लगता है। https://www.youtube.com/watch?v=FbgTukX6oc8 यह देखकर सारस कहता है, मैंने तुम्हारे गले की हड्डी निकाली है, मेरा इनाम कहाँ है। यह सुनकर भेड़ियाँ सारस से कहता है, तुम्हारी गर्दन मेरे गले से सुरक्षित बहार आ गयी है। यही तुम्हारा इनाम है। इस बात से सारस को बहुत दुःख हुआ। Moral of The Story इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है, "की हमें कभी भी स्वार्थी लोगो के साथ नहीं रहना चाहिए।" जिस व्यक्ति का कोई आत्मसम्मान नहीं होता है, उसकी सहायता करने पर बदले में किसी भी तरह के लाभ की अपेक्षा ना करें।
5. डरपोक पत्थर की कहानी (Moral Stories in Hindi)
बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक मूर्तिकार रहता था। उसे एक मूर्ति बनाने के लिए पत्थर की आवश्यकता थी। वह पत्थर खोजने के लिए जंगल में चला गया, वहां पर उसे एक अच्छा और सुन्दर सा पत्थर मिल जाता है|
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जिसे मूर्ति का आकार देना बहुत ही आसान था, वह इस पत्थर को देखकर खुश हो जाता है। और उस पत्थर को उठाकर अपने साथ अपने घर ले जाने लगता था। जब वह रस्ते में आ रहा होता है, तो उसे एक पत्थर और मिल जाता है, मूर्तिकार उस पत्थर को भी अपने साथ ले जाता है। मूर्तिकार दोनों पत्थर को घर ले जाता है, और अपने औजारों से पत्थर को मूर्ति का आकार देने लगता है। जैसे ही वह पत्थर पर चोट मरता है, पत्थर कहने लगता है, की मुझे छोड़ दो इससे मुझे दर्द हो रहा तुम किसी और पत्थर की मूर्ति बना लो। अगर तुम मेरे ऊपर ज्यादा चोट मरोगे तो में टूट कर बिखर जाऊंगा। पत्थर की यह बात सुनकर मूर्तिकार को उस पर दया आ जाती है, और वह उस पत्थर को छोड़ देता है, और दूसरे पत्थर की मूर्ति बनाने लग जाता है। यह पत्थर कुछ नहीं बोला और कु��� ही समय में मूर्तिकार इस पत्थर को एक भगवान की मूर्ति मन बदल देता है। https://www.youtube.com/watch?v=AAb1fD82ZE0 भगवान् की मूर्ति बनने के बाद गांव वाले उस मूर्ति को लेने केलिए आते है। जब गांव वाले उस मूर्ति को ले जाने लगते है, तो वह सोचते है, की मूर्ति के पास नारियल तोड़ने के लिए एक पत्थर की आवश्यकता और पड़ेगी। इसके लिए वह दूसरे पत्थर को भी अपने साथ ले जाते है। गांव वालों ने मूर्ति को मंदिर में रख दिया और उसी मूर्ति के निचे दूसरे पत्थर को भी रख दिया। जब भी मंदिर में लोग पूजा करने के लिए आते तो वह मूर्ति पर दूध चढ़ाते और फूलो की माला डालते और निचे रखे पत्थर पर नारियल को फोड़ते थे। इससे पत्थर बहुत परेशान होता था। जब भी लोग उस पर नारियल फोड़ते थे, उसको दर्द होता था। इस पर वह पत्थर मूर्ति बने पत्थर से बोलता है, की तुम तो बहुत ही आराम मन हो लोग तुम्हे दूध स्नान कराते है, और तुम्हे लड्डू का भोग लगाते है, और मेरी किस्मत तो बहुत ही ख़राब है। इस बात पर मूर्ति वाले पत्थर ने जबाब दिया की मूर्तिकार तो तुम्हे मूर्ति बनाना चाहता था, लेकिन तुमने दर्द की वजह से इंकार कर दिया अगर तुम उस समय ऐसा नहीं करते तो शायद आज में तुम्हारी जगह पर होता, और लोग मेरे ऊपर नारियल फोड़ रहे होते। लेकिन तुमने शुरुआत का दर्द सहन नहीं किया और तुमने आराम का रास्ता चुना जिसकी वजह से अब तुम्हे दर्द सहना पड़ रहा है। यह बात उस पत्थर को समझ आ गयी, और वह आगे से कभी कुछ नहीं बोला जब भी लोग उस पर नारियल को फोड़ते वह सभी दुःख हसकर सहता था। जब लोग मूर्ति को लड्डू का भोग लगाते थे, तो उस पत्थर पर भी लड्डू का भोग लगाते थे। Moral of The Story इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है, "की हमें कभ भी किसी भी कठिन से कठिन परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए। क्योकिं शुरुआत में हमारे जीवन में कठिनाइयां आती है, लेकिन बाद में सब कुछ ठीक हो जाता है।" जो व्यक्ति शुरुआत की कठिनाइयों को सामना करके आगे बढ़ जाता है, उसका आने वाला जीवन पूरा सुखमय हो जाता है।
6. मेहनत के फल की कहानी (Moral Stories in Hindi)
एक गांव में दो दोस्त रहते थे, एक का नाम मोहन और दूसरे का नाम सोहन था। दोनों में बहुत ही गहरी मित्रता थी। मोहन बहुत ही धार्मिक व्यक्ति था, वह हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहता था, जबकि सोहन बहुत ज्यादा मेहनती था।
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एक बार दोनों ने एक बीघा जमीन लेकर उसमे फसल उगाने के बारे में सोचा, जिसके बाद वह एक अच्छा सा घर बनाना चाहते थे। इसके बाद दोनों दोस्तों ने खेत खरीद लिया, सोहन दिन रात खेत में मेहनत करता, और मोहन मंदिर में बैठकर फसल अच्छी होने के लिए भगवान से प्रार्थना किया करता। इसी तरह से समय बीतता गया, और कुछ दिन बाद फसल पक गयी। फसल पकने के बाद उसकी कटाई करके उसे बाजार में जाकर बेच दिया। इसके बाद उन्हें अच्छा पैसा मिला। इस पर सोहन ने कहा की इसमें से मेरा ज्यादा हिस्सा है, क्योकिं मैंने दिन रात एक करके खेत को खाद पानी देकर फसल उगाई है। https://www.youtube.com/watch?v=8amQs9oJ3Ks लेकिन यह बात सुनकर मोहन गुस्सा हो जाता है, और कहने लगता है, की धन का ज्यादा हिस्सा मुझे मिलना छाइये, क्योकिं मैंने अपने खेत में अच्छी फसल होने के लिए भगवान से प्रार्थना की है। और जब तक भगवान की मर्जी ना हो तब तक कोई भी कुछ नहीं कर सकता है। दोनों इसी बात को लेकर लड़ने लगे, अब यह बात गांव के मुखिया तक पहुंच गयी। गांव के मुखियां ने सारी बात सुनने के बाद एक फैसला किया। मुखियां ने दोनों दोस्तों को चावलों की एक एक बोरी दी, जिसमे चावलों के बिच छोटे छोटे कंकड़ मिले हुए थे। मुखियां ने कहाँ इस चावलों की बोरी को घर ले जाओ और इसमें से सुबह तक चावल और कंकड़ अलग अलग करके लेकर आओ फिर में सुबह फैसला करूँगा की फसल का ज्यादा धन किसको मिलना चाहिए। दोनों अपनी अपनी चावलों की बोरी लेकर घर चले गए। सोहन अपने चावलों की बोरी को खोलकर उसमे से कंकड़ अलग अलग करने में लगा गया। मोहन अपनी चावलों की बोरी को लेकर मंदिर में चला गया और भगवान से चावलों से कंकड़ को अलग करने के लिए प्रार्थना करने लगा, बोलै ही भगवान मेरे चावलों से कंकड़ अलग कर दो। दोनों अगली सुबह मुखियां के पास पहुंचे, सोहन ने तो पूरी रात जागकर चावलों से एक एक करके सारे कंकड़ अलग कर दिए।इस पर मुखियां बहुत खुश हुआ। और मोहन ने अपनी बोरी मंदिर से ले जाकर ऐसी की ऐसी मुखिया के सामने रख दी। और मुखिया से बोला आप बोरी को खोल कर देख लीजिये मुझे भगवान पर पूरा विशवास है, की इस चावल की बोरी से सारे कंकड़ निकल चुके होंगे। लेकिन जब मुखियां ने चावलों की बोरी खुलवाई तो देखा सारे कंकड़ चावलों के बिच ही मौजूद थे। मुखियां ने मोहन को समझाते हुए कहाँ, की भगवान भी हमारी मदद जब ही करते जब हम अपनी तरफ से मेहनत करते है। यह बात समझाते हुए मुखियां ने फसल का ज्यादा धन सोहन को दे दिया। इसके बाद से मोहन भी सोहन के साथ खेत में मन लगाकर मेहनत करने लगा। इस बार इनके खेत में और भी ज्यादा अच्छी फसल हुई। Moral of The Story यह कहानी हमें सिखाती है, "की हमें कभी भी पूरी तरह से भगवान के भरोसे पर नहीं बैठना चाहिए।" क्योकिं भगवान भी हमारी सहायता तभी करते है, जब हम अपनी तरफ से मेहनत करते है। Some Best Post: now gg Roblox | full form for computer Read the full article
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tomar03 · 10 months
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trendingtelugustory · 3 years
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