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#वैदिकमंत्र
vedicgracefoundation · 10 months
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The key to making mantras and stotras fruitful - the importance of resolution
🕉️ Understand The Amazing Power Of Vedic Mantras And Stotras 🕉️ Vedic culture world full of simplicity and antiquity has filled us with wonderful knowledge of countless mantras and hymns. In this special video, we will take you through the important guidance of Sankalp, through which you can chant Vedic Mantras and Stotras in the right way.
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yogianand · 4 years
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महामारी Covid-19 Novel Corona कोरोना रोकथाम और इलाज के लिए मंत्र उपचार
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Covid-19 Novel Corona Virus
महामारी कोरोना रूपी राक्षस की रोकथाम व मृत्यु के लिए, शुक्ल यजुर्वेद का महामृत्युंजय, और श्री दुर्गासप्तशती में निर्दिष्ट निम्नांकित मंत्रों का विधिपूर्वक जाप और उपासना सहायक हो सकता है:
शुक्ल यजुर्वेद का महामृत्युंजय मंत्र: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ।
मंत्र का शब्दशः अर्थ: ॐ – सर्वव्यापक ईश्वर त्रय…
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devtantra · 6 years
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🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞 आओ समझें तंत्र-ज्योतिष के रहस्य.. *कैसे सिद्ध - और सफल हो सकते हैं मंत्र-जाप । कहीं आप गलत जाप तो नहीं करते।....* 🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞 प्रत्येक मंत्र में विलक्षण शक्ती होती है... परन्तु जप-भेद से कोई भी मंत्र सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दे सकता है। *समझें ये रहस्य ।* *और पाये इच्छित फल।* यदि साधनाकाल में नियमों का पालन न किया जाए तो कभी-कभी बड़े घातक परिणाम सामने आ जाते हैं । प्रयोग करते समय तो विशेष सावधानी‍ बरतनी चाहिए। मंत्र उच्चारण की तनिक सी त्रुटि सारे करे-कराए पर पानी फेर सकती है तथा गुरु के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन साधक ने अवश्य करना चाहिए। साधक को चाहिए कि वो प्रयोज्य वस्तुएँ जैसे आसन, माला, वस्त्र, हवन सामग्री तथा अन्य नियमों जैसे- दीक्षास्थान, समय और जपसंख्या आदि का दृढ़तापूर्वक पालन करें, क्योंकि विपरीत आचरण करने से मंत्र औरउसकी साधना निष्फल हो जाती है। जबकि विधिवत की गई साधना से इष्ट देवता की कृपा सुलभ रहती है। *साधना काल में निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है।* जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति पूर्ण आस्था हो। मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति। साधना-स्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ-साथ साधन का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग-अलग हो। उपवास प्रश्रय और दूध-फल आदि का सात्विक भोजन किया जाए तथा श्रृंगार-प्रसाधन और कर्म व विलासिता का त्याग आवश्यक है। साधनाकाल में भूमि-शयन , वाणी का असंतुलन, कटु-भाषण, प्रलाप, मिथ्या वाचन आदि का त्याग करें और कोशिश मौन रहने की करें। निरंतर मंत्रजप अथवा इष्ट देवता का स्मरण-चिंतन आवश्यक है। मंत्रसाधना में प्राय: विघ्न-व्यवधान आ जाते हैं। निर्दोष रूप में कदाचित ही कोई साधक सफल हो पाता है, अन्यथा स्थानदोष, कालदोष, वस्तुदोष और विशेष कर उच्चारण दोष जैसे उपद्रव उत्पन्न होकर साधना को भ्रष्ट हो जाने पर जप तप और पूजा-पाठ निरर्थक हो जाता है। इसके समाधान हेतु आचार्य ने काल, पात्र आदि के संबंध में अनेक प्रकार के सावधानी परक निर्देश दिए हैं। *मंत्रों की जानकारी एवं निर्देश* यदि शाबर मंत्रों को छोड़ दें तो मुख्यत: दो प्रकार के मंत्र है- वैदिकमंत्र और तांत्रिक मंत्र। जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्थ पहले से समझ लेना चाहिए। तत्पश्चात मंत्र का जप और उसके अर्थ की भावना करनी चाहिए। ध्यान रहे, अर्थ व भावार्थ जाने बिना कोई भी जाप निरर्थक रहता है। *मंत्र के भेद क्रमश: तीन माने गए हैं।* 1.वाचिकजप 2. मानसजप और 3.उपाशुजप। *वाचिकजप-* ज (at Chhattisgarh)
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