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#फूलनदेवी
bansgaonbhim · 2 years
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सांसद स्व फूलनदेवी का जन्म दिवस निषाद समाज के द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया गया
सांसद स्व फूलनदेवी का जन्म दिवस निषाद समाज के द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया गया
सांसद स्व फूलनदेवी का जन्म दिवस निषाद समाज के द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया गया विकास खंड बडहलगंज के बाछे पार कस्बे में स्थित निषाद समाज के द्वारा स्थापित श्री राम जानकी मंदिर पर वीरांगना सांसद स्व, फूलनदेवी का जन्म दिवस निषाद समाज के द्बारा बड़े धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम में निषाद समाज के लोगों ने स्व,फूलन देवी के चित्र पर फूल माला अर्पित कर जन्म दिवस बड़े धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर ग्राम…
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bhimsenachief · 2 years
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22 बलात्कारियों को मौत की सजा देने वाली, महिलाओं की प्रेरणास्रोत, बैंडिट क्वीन, बीहड़ की शेरनी, चंबल की डाकू, पूर्व सांसद, महान वीरांगना
फूलन देवी
के जन्मदिवस की हार्दिक बधाई एवं कोटि-कोटि नमन
नवाब सतपाल तंवर
भीम सेना चीफ
#BhimSenaChief
#NawabSatpalTanwar
#PhoolanDevi #फूलन_देवी #फूलनदेवी
#PhoolanDeviBirthAnniversary
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apnaran · 2 years
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फूलन देवी: ‘बैंडिट क्वीन’ नाम से मशहूर फूलन देवी ने कैसे लिया अपने बलात्कार का बदला
फूलन देवी: ‘बैंडिट क्वीन’ नाम से मशहूर फूलन देवी ने कैसे लिया अपने बलात्कार का बदला
फूलन देवी को किस रूप देखें, क्या उसे उस लड़की के रूप में देखें जिसने 10 वर्ष की उम्र में ही अपनी जमीन के लिए, अपने चाचा से भिड़ गयी थी या फिर उस रूप में जिसकी 11 वर्ष की उम्र में शादी उससे 35 से 40 साल बड़े उम्र दराज़ वाले व्यक्ति से हो गयी थी, जिसने उसका शारीरिक शोषण किया था या कहा जाए तो वह खतरनाक डाकू जिसका नाम सुनकर बड़े-बड़े तुर्रमखां मैदान छोड़ कर भाग जाते थे या फिर उस महिला के रूप में जिसने 22…
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chaitanyabharatnews · 4 years
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बेहमई हत्याकांड : कोर्ट ने टाली सुनवाई, अब 18 जनवरी को आएगा फैसला, फूलन देवी मुख्य आरोपी
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चैतन्य भारत न्यूज कानपुर. 39 साल पहले देश-प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला देने वाले बेहमई कांड पर सोमवार को यानी आज फैसला आना था। लेकिन निचली अदालत ने सुनवाई टाल दी है। इस मामले में आरोपियों के वकील ने कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी। अब कोर्ट 18 जनवरी को इस मामले पर अपना फैसला ��ुनाएगी। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); बता दें 39 साल पहले 14 फरवरी 1981 को बेहमई गांव में डकैत से सांसद बनी दस्यु सुंदरी फूलन देवी और उनके गिरोह ने कतार में खड़ा कर 20 लोगों की गोली मारकर सामूहिक हत्या कर दी थी। इन लोगों का नाम जगन्नाथ सिंह, तुलसीराम, सुरेंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह, लाल सिंह, रामाधार सिंह, वीरेंद्र सिंह, शिवराम सिंह, रामचंद्र सिंह, शिव बालक सिंह, नरेश सिंह, दशरथ सिंह, बनवारी सिंह, हिम्मत सिंह, हरिओम सिंह, हुकुम सिंह था। इसके बाद राजाराम सिंह ने फूलन देवी समेत 35 डकैतों के खिलाफ थाना सिकंदरा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान फूलन समेत 15 आरोपियों की मौत हो चुकी है। फूलन ही मुख्य आरोपी थी, लेकिन मौत के बाद उसका नाम हटा दिया गया। इसके अलावा बचे हुए 5 आरोपियों के खिलाफ केस शुरू हुआ। इनके नाम श्याम बाबू, भीखा, विश्वनाथ, पोशा और राम सिंह थे। राम सिंह की भी पिछले साल 13 फरवरी को मौत हो गई थी। फिलहाल पोशा जेल में है और बाकि तीन आरोपी जमानत पर है। बता दें साल 1983 में फूलन देवी ने कई शर्तो के साथ मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण किया था। फिर वो 1993 में जेल से बाहर आई थी। फूलन देवी समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर लोकसभा सीट से दो बार सांसद भी बन चुकी हैं। बता दें 2001 में शेर सिंह राणा ने फूलन देवी की दिल्ली में उनके घर के पास हत्या कर दी थी।   Read the full article
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aman-samachar · 3 years
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sunilastay · 4 years
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#फूलन_देवी_अमर_रहे 💐 हमारे भारतीय सभ्य समाज ने एक बहादुर नारी को बर्दाश्त नही किया और 25 जुलाई 2001 को नृशंस हत्या कर उन्हें शरीर से भले मार डाला लेकिन फूलनदेवी को ऐतिहासिक पात्र बनने से कोई मनुवाद रोक नही सकता है। प्रेरणास्रोत फूलन देवी को उनकी पुण्यतिथि पर नमन है। @BhimArmyChief @SunilAstay https://t.co/7rdifpFpI1 https://www.instagram.com/p/CDDT5sglKYi/?igshid=h93dc3hjx1zx
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darkwombatnacho · 4 years
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फूलन देवी ने एक साथ 20 को खड़ा कर मारी थीं गोलियां, एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी किताब में लिखी इसकी दास्तान
फूलन देवी ने एक साथ 20 को खड़ा कर मारी थीं गोलियां, एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी किताब में लिखी इसकी दास्तान
भोपाल:HN/  खूंखार डकैत फूलनदेवी को जब मैंने पहली बार देखा तब चौंक गया था। क्योंकि, मेरे सामने एक पांच फीट की लंबी लड़की ऑटोमेटिक राइफल लिए मंच पर चढ़ रही थी। उसने मेरे पैर छूए और हथियार मेरे पैरों में डालकर हाथ जोड़ा। मेरी सहानुभूति उसके साथ थी। क्योंकि, उसको कानून हाथ में लेने के लिए कुछ लोगों ने मजबूर किया था। जिस कारण वह साधारण लड़की से खूंखार दस्यू बनी और कइयों को मौत के घाट उतारा। ये बातें…
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ajitnehrano0haryana · 5 years
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अजमेर। राजस्थान के मारवाड़ी नस्ल के घोड़े की कीमत जानकर चौंक जायेंगे आप। जी हाँ यहां के घोड़े कारों से भी महंगे हैं। पंजाब और हरियाणा में इस नस्ल के घोड़ों की जबरदस्त डिमांड है और मुंह मांगे दाम भी मिल रहे हैं। पुष्कर मेले में पहुंचे पंजाब-हरियाणा के अश्वपालकों के पास ज्यादातर मारवाड़ी नस्ल के घोड़े हैं। मेले में अब तक पहुंचे कुल 3 हजार 451 घोड़ों में से करीब 75 फीसदी घोड़े मारवाड़ी नस्ल के हैं।
इन की कदकाठी और स्टेमिना घोड़ों की अन्य ब्रीड काठियावाड़ी, नुगरा, सिंधी आदि से कई गुणा ज्यादा है। देखने में बेहद सुंदर मारवाड़ी नस्ल के इन घोड़ों की कीमतें 1 लाख से लेकर एक करोड़ तक हैं। मारवाड़ी और काठियावाड़ी घोड़े की शुद्ध नस्ल है, जबकि अन्य क्रासब्रीड हैं। मालूम हो कि महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक मारवाड़ी नस्ल का था, उसकी कठ-काठी और ताकत के चर्चे आज तक होते हैं।
जब भी महाराणा प्रताप के अदम्य शोर्य और साहस की बात होती है, देश-विदेश के इतिहासकार चेतक का जिक्र जरूर करते हैं। राजस्थान के मारवाड़ी घोड़े की यह नस्ल अरबी घोड़ों को टक्कर देती है। कुदरत, टारजन, रौनक, क्रिस्टल, बीबा, साहिबा, ग्रेस, विक्टोरिया, अलबक्ख और फूलनदेवी यह कोई फिल्म के किरदार नहीं बल्कि पंजाब और हरियाणा से पुष्कर मेले में पहुंचे घोड़े-घोड़ियां के नाम हैं। कुराली पंजाब के बाबा गगनदीप सिंह, शाहपुरा के हरिंदर सिंह, ल���धियाना के अरजिंदर सिंह गिल सहित पंजाब से बड़ी संख्या में अश्वपालक यहां पहुंचे हैं।
पशु चिकित्सक डा. चक्रवृत्ति सिंह ने बताया कि मारवाड़ी और काठियावाड़ी प्योर नस्ल के घोड़े हैं जबकि अन्य मिक्सब्रीड के हैं। यह घोड़े बीमार कम होते हैं, और स्टेमिना अन्य नस्लों की तुलना में अच्छा होता है। इसी तरह एक ब्रीड थोरो भी है, लेकिन पुष्कर मेले में इनकी संख्या बेहद कम है। कुछएक अश्वपालकों के पास यह ब्रीड है। यह गर्म और ठंडे प्रदेशों के घोड़ों की क्रासब्रीड है। जिसका इस्तेमाल हार्स रेसिंग में किया जाता है। इनका इंड्यूरेंस अच्छा होता, लंबीरेस के घोड़े कहलाते हैं।
रेस जीतने पर बढ़ जाते हैं दाम आर्मी, पुलिस और अर्धसैनिक बलों के पास इसी ब्रीड के घोड़े हैं। स्टड बुक ऑफ इंडिया में थोरो नस्ल के घोड़ों की वंशावली दर्ज है, यानि इनके ग्रैंड पेरेंट्स और पेरेंट्स कहां से हैं व कौन हैं, इस बारे में पूरी जानकारी है। पुणे और दुबई के रेसकोर्स में घोड़ों की दौड़ होती है, शर्ते लगती हैं जो जीतता है उस चेन की घोड़ी की कीमत रातो रात 10 लाख से एक करोड़ तक पहुंच जाती है।
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samarindialive · 5 years
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.फूलन देवी का उन्नीस सहादत दिवस मनाया गया
.फूलन देवी का उन्नीस सहादत दिवस मनाया गया
समर इण्डिया के लिए ब्यूरो मधुकर राव मोघे मण्डल ब्यूरो
कानपुर l आज बहन फूलनदेवी का 19 वॉ शहादत दिवस अंजली पार्टी लॉन मैनावती, कानपुर में श्रद्धांजलि सभा पुष्प अर्पित कर किया गया ।जिसमें मुख्य वक्ता श्री रमेश वर्मा एकलव्य जी ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुये समाज काे शिक्षित हाेने पर बल दिया ।विशिष्ट अतिथि श्री राम नारायण निषाद जी ने प्रतिवर्ष शहादत दिवस मनाने की घोषणा करी व फूलनदेवी जी से प्रेरणा…
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देश में तलवारों और त्रिशूल के दम पर शासन चलाया जा रहा: जिग्नेश मेवाणी बाबा साहब ने 1938 में रेलवे मज़दूरों के आंदोलन में कहा था कि दलित, किसान और मज़दूरों का दुश्मन सिर्फ़ ब्राह्मणवाद नहीं, बल्कि पूंजीवाद भी है. क्या आज दलित संगठन ब्राह्मणवाद के साथ पूंजीवाद को भी शत्रु मानने को तैयार हैं? केंद्र सरकार और राज्य सरकार से हम अपील करना चाहते हैं कि इधर कुछ महीनों में भीड़ द्वारा हो रही हिंसा में बढ़ोतरी हुई है. ऊना की घटना, दादरी और पहलू खान मामले में जो भीड़ द्वारा हिंसा हो रही है, उसके संदर्भ में सरकार इस भीड़ तंत्र के खिलाफ़ क़ानून बनाए. मॉब लिंचिंग के खिलाफ़ अगर कोई क़ानून नहीं बनता तो हम पूरी ताक़त के साथ सड़कों पर उतरेंगे. मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ अलग से क़ानून बनना चाहिए, क्योंकि हमारे देश में क़ानून और संविधान की हर रोज़ धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. ये लोग संविधान को हटाकर मनुस्मृति लागू करना चाहते हैं. कब्रिस्तान से महिलाओं के शव निकालकर उनके साथ बलात्कार करने की बात करते हैं. यह कितनी अमानवीय और घटिया मानसिकता है, जो आज तक किसी मंच से नहीं बोली गई थी. ये (हिंदूवादी) लोग त्रिशूल और तलवार वाले लोग हैं. सरकार बन गई है तो त्रिशूल और तलवार लेकर शासन चलाया जा रहा है, तभी तो दादरी की घटना हुई, पहलू खान की हत्या हुई, अहमदाबाद में अयूब के साथ ऐसा ही हुआ. लोग कहते हैं कि वैसे भी हत्या करना जुर्म है और क़ानून में इसके लिए सज़ा का प्रावधान है, तो नए क़ानून की क्या आवश्यकता है? जैसे दलितों पर अत्याचार करने पर सज़ा होती है और नाबालिग महिला पर अत्याचार करने का पोक्सो क़ानून है, उसी प्रकार सामान्य क़ानून के अलावा इन सभी घटनाओं को रोकने के लिए एक नया क़ानून बनाना चाहिए. ब्राह्मणवादी और मनुवादी सोच वाले लोग जब त्रिशूल और तलवार लेकर सत्ता पर काबिज़ होंगे, तो मुस्लिम और दलितों पर अत्याचार बढ़ना स्वाभाविक है. हमारे संविधान का मुख्य उद्देश्य है इस देश को सेक्युलर, समाजवादी और लोकतांत्रिक बनाना. लेकिन हिंदू राष्ट्र की कल्पना में ये सब नहीं है. मनुवादी सोच वाले लोग हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं, जिसमें मुसलमानों की स्वीकार्यता नहीं है. हमारा संविधान इसकी इजाज़त नहीं देता, फिर भी ऐसी मानसिकता वाले लोग देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रयास कर रहे हैं. हमारे देश में आज की तारीख़ में मॉब लिंचिंग करने की परमिशन दी जा रही है, जिसके कारण कोई भी सामान्य नागरिक उसका शिकार होगा. मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ क़ानून का मक़सद सिर्फ़ दलितों और मुसलमानों की सुरक्षा नहीं, बल्कि सभी सामान्य नागरिकों की सुरक्षा है. हम इस क़ानून का ड्राफ्ट ज़ल्द सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सौंप कर उनसे इस नए क़ानून की स्थापना की बात करेंगे. भारत ख़तरे में है, संविधान ख़तरे में है और संविधान को पूर्ण रूप से लागू करने के लिए इस तरह की हत्याओं को रोकना होगा. प्रधानमंत्री का कहना है कि वे नए भारत का निर्माण कर रहे हैं. वे तो नटसम्राट हैं और उनकी यही विशेषता है. उन्होंने कहा, यंग इंडिया और हर साल 2 करोड़ का रोज़गार देने का वादा किया लेकिन उसका एक प्रतिशत भी रोज़गार नहीं मिला. मोदी जी डिजिटल इंडिया और भीम एप लाते हैं. हमारे देश में दलित इतना कुपोषित है, मैं तो कहता हूं भीम ऐप की नहीं बल्कि भीम ब्रेड की ज़रूरत है. सहारनपुर में जातीय हिंसा डॉ. आंबेडकर की मूर्ति को लेकर हई थी. वहां पर बस्ती दलितों की है, बाबा साहब उनके हैं, वो मूर्ति उनकी है, उस मूर्ति को लगाने का स्थान उनका है, तो इस मामले में किसी गैरदलित समाज के व्यक्ति को क्यों आपत्ति हुई? ये लोग इसी लहज़े में दलित बस्ती को घेरते हैं, उन्हें त्रिशूल और तलवार दिखाते हैं. असलहे और बंदूक से डराते हैं. जैसे जैसे दलित सामाजिक रूप से ऊपर आने की कोशिश कर रहा है, वैसे वैसे तथाकथित सवर्ण समाज की चर्बी भी बाहर आ रही है. मैं यह खुले शब्दों में कह सकता हूं कि जबसे मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से ये आरएसएस वाले, एबीवीपी वाले और भाजपा वालों को चर्बी चढ़ गई है. ये सोचते हैं कि किसी भी दलित, मुसलमान और दलित महिला पर अत्याचार कर सकते हैं, जैसे इन्हें अत्याचार का लाइसेंस मिल गया हो. सहारनपुर में जब हिंसा शुरू हुई तब पुलिस के लोग भी वहां मौज़ूद थे. ग्रामप्रधान ने पुलिस को फ़ोन करके घटना के बारे में बताया भी था. मौक़े पर पुलिस होने के बावज़ूद निवारक उपाय क्यों नहीं किए गए, जबकि दलित अत्याचार उन्मूलन क़ानून का आधार ही यही है कि जल्द से जल्द निवारक उपाय किया जाएं. वहां दलितों की हत्या हो रही है, गर्भवती महिला को तलवार से काटा जा रहा है. लेकिन पुलिस यह सब रोक पाने में नाकाम रही. क़ानून व्यवस्था की स्थिति बदतर हो चुकी है. सहारनपुर दंगे की पीछे की साज़िश बाहर आना ज़रूरी है. महाराणा प्रताप की प्रतिमा के उद्घाटन के लिए फूलनदेवी हत्या से जुड़े शेर सिंह राणा को भी बुलाया गया था. ये सब कड़ियां कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं. दरअसल, अत्याचार की ज़्यादा घटनाएं पश्चिम उत्तर प्रदेश में हो रही हैं, जहां दादरी है, सहारनपुर है, मुज़फ़्फ़रनगर है और इसका प्रभाव गुजरात चुनाव, मध्य प्रदेश चुनाव, राजस्थान और हिमाचल के चुनाव पर पड़ेगा और फिर 2019 आ जाएगा. ये सभी घटनाएं जनता का ध्यान भटकाने के लिए हैं, ताकि लोग यह न पूछें कि दो करोड़ रोज़गार का क्या हुआ? 30 लाख आवास का क्या हुआ? भ्रष्टाचार और महंगाई कम क्यों नहीं हुई? किसानों की आत्महत्या क्यों नहीं रुक रही? उन्हें एमएसपी क्यों नहीं मिल रहा? रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और चिकित्सा जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए है. भारत में विपक्ष के विचारों में बहुत बड़ी गड़बड़ है. उन्हें ये नहीं पता कि वो किस मुद्दे के लिए खड़े हैं. सरकार के विपक्ष के एक बड़े तबके को इतना दे दिया है कि वो लड़ना ही नहीं चाहते. सरकार के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरने का ज़ज़्बा अब विपक्ष में रहा नहीं है. अब हमें ही विपक्ष का किरदार निभाना पड़ेगा और देश भर में जो अपने अपने स्तर पर लड़ रहे हैं, उन सभी को साथ आना होगा. ऐसे लोगों को साथ आना होगा जो जनता के लिए सड़क पर लड़ भी सकता है और चुनावी प्रक्रिया में भी हिस्सा ले सकता है. पिछले साल कन्हैया, उमर ख़ालिद और शेहला के साथ पूरे जेएनयू को टॉरगेट किया गया, ताकि जनता का ध्यान भटका दिया जाए. उन सभी को देशद्रोही बनाने का प्रयास किया गया. हम तो कहते हैं कि जो संविधान को हटाकर हिंदू राष्ट्र लाना चाहते हैं, वो सभी लोग देशद्रोही हैं. हम बिना समझौते किए इन सभी मुद्दों के साथ लड़ते रहेंगे और संघर्ष करते रहेंगे. सहारानपुर में भीम आर्मी ने हिंसा की है या नहीं, यही स��से बड़ा सवाल है. हिंसा करना और आक्रोश दिखाना, ये दोनों अलग बाते हैं. भीम आर्मी और उनके कार्यकर्ताओं पर जो भी मुक़दमे लगाए गए हैं, वो सब मुझे ग़लत लगते हैं. सरकार के लिए यह बहुत आसान बात है कि हिंसा का ठप्पा लगा देना. ख़ुद की रक्षा करने के लिए अगर दलित हमलावरों को मारे नहीं, तो क्या करें? भारत में हर दिन 2 दलित की मौत होती है. 4 दलित महिलाओं का बलात्कार होता है. दलितों के खिलाफ़ हर 18 मिनट में एक अत्याचार का मामला सामने आता है. राष्ट्रीय स्तर पर महज़ 18 प्रतिशत मामलों में सज़ा होती है. प्रधानमंत्री गुजरात मॉडल की बात करते हैं, वहां दलित अत्याचार के मामलों में सिर्फ़ 3 प्रतिशत सज़ा हो पाती है. न्याय नहीं मिलने की कुंठा मन में रह जाती है, फिर दलित उस कुंठा को कहां ले जाएगा. भीम आर्मी द्वारा हिंसा पर तो सब बात करते हैं, लेकिन उन्होंने ग्राउंड ज़ीरो पर शिक्षा के लिए जो काम किया है वो क़ाबिल-ए-तारीफ़ है. भीम आर्मी की ज़रूरत क्यों पड़ रही है, इसका मतलब संविधान पूर्णरूप से लागू नहीं है. अत्याचार निरोधक क़ानून ठीक से लागू नहीं है. जाति व्यवस्था ख़त्म करने का प्रयास या उसपर चर्चा नहीं हो रही है. मैं यह बात हर जगह कहता हूं कि ये संघर्ष इस बात का नहीं है कि मैं दलित हूं और आप सवर्ण हैं. मैं तो कहता हूं कि न आप सवर्ण हैं और न मैं दलित हूं, बल्कि हम दोनों इंसान हैं. जाति की जो पहचान है हम उसे पकड़ कर रखना नहीं चाहते. हम तो इस जाति को इतिहास के कूड़े में फेंक देना चाहते हैं. अगर दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा होती रही, तो भीम आर्मी बार-बार बनेगी. भीम आर्मी के ऊपर मायावती ने आरोप लगाया कि वह भाजपा की प्रोडक्ट है. यह बेहद दुःखद और ग़लत बयान है. मैं मायावती से अपील करना चाहता हूं कि सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में वे गई थीं. अब वे कांशीराम का नारा बुलंद करें कि ‘जो ज़मीन सरकारी है वो ज़मीन हमारी है.’ हमने गुजरात में ऊना आंदोलन के समय भी कहा था कि आप अपनी गाय की पूंछ अपने पास रखो और हमें हमारी ज़मीन दे दो. मायावती से कहना चाहूंगा कि बयानबाज़ी से अच्छा है ‘जो ज़मीन सरकारी है वो ज़मीन हमारी है’ का नारा बुलंद करें. हजारों लोगों के साथ सड़क पर उतरना चाहिए और भीम आर्मी का समर्थन करना चाहिए. मायावती वही नेता हैं, जिन्होंने भाजपा के साथ एक से ज्यादा बार मिलकर सरकार बनाई है और 2002 दंगों के बाद गुजरात में मोदी का प्रचार करने भी गई थीं. मायावती को यह शोभा नहीं देता कि वे कहें कि चंद्रशेखर बीजेपी का आदमी है. मायावती से कहना चाहूंगा कि ये बयानबाज़ी छोड़ो, सड़कों पर उतरो, हाथ से मल उठाने की प्रथा के ख़िलाफ़, ठेका प्रथा के ख़िलाफ़ और जो दलित निजी कंपनी या फैक्ट्री में काम कर रहे हैं, उन्हें न्यूनतम मेहनताना न मिलने के ख़िलाफ़. वक़्त की मांग है कि चंद्रशेखर पर टिप्पणी करने से अच्छा है मायावती सड़क पर उतरें. दलित आंदोलनों में लालची लोग भर गए हैं. ये उदित राज, राम विलास पासवान, अठावले इन तीनों में से किसी ने भी सहरानपुर की घटना पर कुछ नहीं बोला. मुझे लगता है सारे आंबेडकरवादी लोगों को मिलकर उन्हें ग्लूकोज़ का पैकेट देना चाहिए, ताकि उनके बदन में शक्ति आए और वो सहारनपुर के बारे में मुंह खोलें. दलित राजनीतिक पार्टियों का लालचीपन ही दलित आंदोलन को ख़त्म कर रहा है. मैं मानता हूं कि दलित आंदोलन और आंबेडकरवादी विचारधारा के लोग और मैं ख़ुद भी, अपने अंदर कमी पाता हूं कि हम आज तक जाति के समाप्त होने की प्रक्रिया पर विमर्श नहीं कर पाए. दलित संगठन हो या दलित पार्टी, उनका सिर्फ़ एक ही लक्ष्य होना चाहिए, वो है जाति को समाज से ख़त्म करना. लक्ष्य यह नहीं होना चाहिए कि ओबीसी, एससी और एसटी 85 प्रतिशत मिलकर 15 प्रतिशत को हटाएं, यह लक्ष्य नहीं है बल्कि संघर्ष करके जाति का उन्मूलन करना होना चाहिए. दलित आंदोलन और संगठनों में इस तरह के विमर्श और विचार बहुत ही कम हैं. हम गुजरात मेें एक मोर्चा बनाने पर विचार कर रहे हैंं. अल्पेश ठाकुर और हार्दिक पटेल के साथ कोई गठबंधन करेंगे या नहीं करेंगे, यह तो भविष्य के गर्भ में हैं. मैंने कोशिश की थी, लेकिन कोई बात नहीं बनी. बहुत सारे कारणों से इस संभावना पर कोई बात नहीं बन पाई. विचारधारा को भी लेकर भी विवाद है, जिसके कारण इस संभावना पर अभी तक कोई सकारात्मक रुख़ नहीं बन पाया है. राजनीति तो ठीक है, लेकिन हमारा जो आंदोलन है उसे बस राजनीति के परिपेक्ष में नहीं देखा जाना चाहिए. मुझे लगता है बिना विधायक या संसद बने भी सामाजिक बदलाव किए जा सकते हैं. जैसे कोई छुआ-छूत के लिए काम करे या फिर महिलाओं को घूंघट और बुरक़े से आज़ादी दिलवाए, तो वो भी बड़ा काम है. ऐसा नहीं है कि मुझे चुनावी प्रक्रिया में विश्वास नहीं. लेकिन अभी वो वक़्त नहीं है कि हम चुनाव में शामिल हों. आने वाले दिनों में कोई मोर्चा बनाएंगे, जिसका एक लक्ष्य होगा कि संघ और भाजपा मुक्त भारत. गुजरात में सात प्रतिशत दलित हैं. हमें उन पर भरोसा है कि इस बार एक प्रतिशत महत्वाकांक्षी दलितों को छोड़ कर सभी दलित भाजपा के ख़िलाफ़ हैं. चुनाव का परिणाम कुछ भी हो लेकिन हम सड़क पर लड़ते रहेंगे और भविष्य में अगर राजनीतिक संभावना बनी, तो सोचेंगे. हम फ़िलहाल तीसरा मोर्चा में बनाने में असफल हैं और मैं इसे हमारी विफ़लता मानता हूं. फ़िलहाल भारत में ऐसी कोई पार्टी नहीं जिसके लिए दिल से कूद जाने का मन करता है. हम कोशिश करेंगे कि जनता को एक नया विकल्प भविष्य में ज़रूर दें. हमारे जैसे सामाजिक आंदोलन से जुड़े लोगों को प्रेशर ग्रुप की तरह काम करना होगा. प्रेशर ग्रुप बनाकर राज्य और केंद्र सरकार पर दबाव बनाना होगा कि यह क़ानून बने. लोग मर रहे हैं और ये नहीं चलेगा. गाय की पूंछ आप रखो हमें हमारी ज़मीन दे दो. हजारों एकड़ ज़मीन अगर अडाणी और अंबानी और एस्सार ग्रुप में आवंटित हो सकती है, तो भूमिहीन दलित और आदिवासियों को क्यों नहीं. मैंने वाइब्रेंट गुजरात के समय कहा था कि अगर हमें हमारी ज़मीन नहीं दोगे तो मैं मोदी जी का काफ़िला रोक दूंगा. मुझे यक़ीन है कि अगर इस देश के दलित और प्रगतिशील संगठन अगर भूमि सुधार के लिए 10-15 राज्यों की सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलेंगे और इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा करूंगा. हमें वैचारिक मतभेद पर भी काम करना होगा. आंबेडकरवादी और मार्क्सवादी लोगों को एक साथ आना चाहिए. कुछ लोग इसका विरोध करते हैं लेकिन मैं कहता हूं कि अगर बाबासाहेब आंबेडकर ने वामपंथ में विश्वास नहीं करने की बात कही हो तो में पब्लिक लाइफ छोड़ने को तैयार हूं. साम्यवाद को बाबा साहब ने कभी ख़ारिज नहीं किया. लेकिन 2-3 बातों पर उनकी असहमति ज़रूर थी. जैसे बाबा साहब तानाशाही सरकार के ख़िलाफ़ थे. मैं भी यही मानता हूं. मज़दूरों की भी तानाशाही नहीं होनी चाहिए. मैं यह मानता हूं मार्क्सवाद विकसित हो रहा है. आज की तारीख़ में बहुत सारे मार्क्सवादी मानते हैं कि तानाशाही नहीं होनी चाहिए. बाबा साहब को हिंसा से परहेज था, लेकिन उन्होंने वामपंथ और मार्क्सवाद को कभी ख़ारिज नहीं किया. 1930 के दशक में बाबा साहब काफ़ी उग्र होकर पक्ष ले रहे थे. 1936 में उन्होंने लाल झंडे के नीचे इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की थी. वो दलितों की पार्टी नहीं, बल्कि किसान और मज़दूरों की पार्टी थी. इस बाबा साहब आंबेडकर को कोई याद नहीं करता. लोग आरपीआई और अनसूचित जाति संगठन वाले बाबा साहब को याद करते हैं, लेकिन किसानों और मजदूरों के लिए खड़े होने वाले बाबा साहब को कोई याद नहीं करता. उन्होंने कहा था कि सारी ज़मीन, विशेष उद्योग और बीमा का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए. यह राष्ट्रीकरण की बात तो वामपंथ का एजेंडा है और लोग इस बाबा साहब की बात नहीं करना चाहते, भूमि सुधार की बात करने वाले बाबा साहब की बात नहीं होती. 1938 के रेलवे मज���दूरों के आंदोलन में बाबा साहब ने कहा था कि इस दलित, किसान और मज़दूरों का दुश्मन सिर्फ़ ब्राह्मणवाद नहीं, बल्कि पूंजीवाद भी है. क्या आज दलित संगठन ब्राह्मणवाद के साथ पूंजीवाद को भी शत्रु मानने को तैयार हैं? वामपंथ के ऐतिहासिक ग़लती का आज लोगों को बोध हो रहा है. वामपंथ में भी बहुत से लोग हैं जो क्लास के साथ कास्ट के ख़िलाफ़ भी लड़ रहे हैं. जाति को समाप्त करने और उसके निर्मूलन के लिए चर्चा कर रहे हैं, प्रयास कर रहे हैं. पहले लोग यह कहते थे कि वामपंथ जाति के सवाल तो उठाता ही नहीं. अब जब उठा रहा है तो लोग कहते हैं कि ये तो सवर्ण ब्राह्मणवादी वामपंथी हैं. अगर आप ऐसा कहेंगे तो ये नहीं चलेगा, फिर मैं इसे आपका भी नया-ब्राह्मणवाद कहूंगा. आंबेडकरवादी और वामपंथी विचारधारा के गठजोड़ की संभावना भविष्य में बन सकती है. साम्यवाद क्या कहता है? यही कहता है कि दुनिया में जितने भी मनुष्य हैं, उन्हें सामान्य दर्जे की रोटी, कपड़ा और मकान मिले. वामपंथ भी चाहता है कि समाज वर्गों में न बटा हो, क्योंकि अगर ऐसा रहा तो एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करेगा. मान लीजिए कि कल अगर जाति व्यवस्था ख़त्म हो जाती है तो भी समाज वर्गों में बंटा होगा और जब वो शोषण करेगा तो फिर आपको उससे भी लड़ना होगा. अगर जाति व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं, तो वर्ग व्यवस्था के ख़िलाफ़ भी लड़ना चाहिए और दोनों साथ में ख़त्म होगा तो और भी बेहतर है. अगर वामपंथी हमारे आंदोलन से जुड़ते हैं तो मैं उनको कभी ख़ारिज नहीं करूंगा. विचारधारा के आधार पर किसी को ख़ारिज कर देना ठीक बात नहीं. हमारे देश के दलित संगठन ब्राह्मणवाद मुर्दाबाद, मनुवाद मुर्दाबाद और जय भीम के नारों में सिमट कर रह गए हैं. क्यों दलित संगठन महंगाई के ख़िलाफ़ मोर्चा नहीं निकालते? सारे दलित संगठन मिलकर अंतराष्ट्रीय मज़दूर दिवस क्यों नहीं मनाते? आंबेडकर आंदोलन में भी बहुत ग़लतियां रही हैं. लेकिन अब वक़्त आ गया है कि आपकी ऐतिहासिक ग़लतियों को सुधार कर सभी एक साथ होकर इस व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ें. दलित आंदोलन अपने साथ महिला समाज को नहीं जोड़ सका है. यह हमारी और इस देश के तमाम आंबेडकरवादी और दलित संगठनों की बदनसीबी है. हम सावित्रीबाई फुले ज़िंदाबाद का नारा तो लगाते हैं लेकिन जितना नारीवाद आंबेडकरवाद से जुड़ेगा, उतना ही आंबेडकर आंदोलन मज़बूत होता जाएगा. सिर्फ़ जाति और वर्ग ही समस्या नहीं, बल्कि लिंगभेद भी समस्या है. इस भेद को भी ख़त्म करना होगा, तभी अंबेडकर आंदोलन सफल होगा. हमने जब गुजरात में 5 एकड़ ज़मीन के आवंटन की बात कही तो, हमने यह भी कहा कि प्राथमिकता पहले गरीबों को हो और गरीबों में पहले दलितों को और दलितों में पहले दलित बहनों को और उन बहनों में पहले वाल्मीकि समाज की बहनों को और उसमे भी वाल्मीकि विधवा बहनो को मिलना चाहिए. दलितों को लेकर मीडिया का भी रवैया भेदभावपूर्ण है. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात सरकार मिलकर लगभग 20,000 आदिवासियों को विस्थापित करना चाहती हैं. क्या कोई मीडिया इस बात को लाइव दिखाएगा. तमिलनाडु के किसान 48 डिग्री तापमान में दिल्ली आकर बिना कपड़े ज़मीन पर लेट गए और यह बात कितने मीडिया वालों ने लाइव दिखाया? मोदी जी के आने के बाद मज़दूरों से संबंधित क़ानून को पूरी तरह बर्बाद कर दिया गया और इस मुद्द्दे पर एक बड़ी चर्चा होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. कितने प्राइम टाइम में ये मुद्दा उछलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सिर्फ़ दलित नहीं ग़रीब, किसान और मज़दूर की बात मुख्यधारा के मीडिया में नहीं होती. गुजरात में दलितों के लिए आए पैसे से मोदी जी के ऊपर फिल्म बन रही है. उस पैसे से फिल्म बना रहे हैं, सड़क और पुल बना रहे हैं. आदिवासियों और दलितों का पैसा कहीं और ख़र्च कर रहे हैं. यह सरकार करोड़ों दलित और आदिवासियों का पैसा चाट रही है. इसकी चर्चा कहीं नहीं है. इसलिए इस देश के दलितों को आत्मसम्मान की लड़ाई के साथ आर्थिक बराबरी की लड़ाई भी लड़नी होगी. (सामाजिक कार्यकर्ता जिग्नेश मेवाणी से कृष्णकांत और प्रशांत कनौजिया की बातचीत पर आधारित)
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chaitanyabharatnews · 4 years
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बेहमई नरसंहार कांड में 39 साल बाद कल आएगा फैसला, फूलन देवी ने कतार में खड़ा कर 20 लोगों को मारी थी गोली
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चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. भारत के सबसे चर्चित बेहमई कांड की सुनवाई 39 साल बाद पूरी होने वाली है। इस केस का फैसला सोमवार यानी 6 जनवरी 2020 को आ सकता है। इस मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); जानकारी के मुताबिक, 39 साल पहले 14 फरवरी 1981 को बेहमई गांव में डकैत से सांसद बनी दस्यु सुंदरी फूलन देवी और उनके गिरोह ने कतार में खड़ा कर 20 लोगों की गोली मारकर सामूहिक हत्या कर दी थी। इन लोगों का नाम जगन्नाथ सिंह, तुलसीराम, सुरेंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह, लाल सिंह, रामाधार सिंह, वीरेंद्र सिंह, शिवराम सिंह, रामचंद्र सिंह, शिव बालक सिंह, नरेश सिंह, दशरथ सिंह, बनवारी सिंह, हिम्मत सिंह, हरिओम सिंह, हुकुम सिंह थ��। इसके बाद राजाराम सिंह ने फूलन देवी समेत 35-36 डकैतों के खिलाफ थाना सिकंदरा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान फूलन समेत 15 आरोपियों की मौत हो चुकी है। साल 2012 में फूलन देवी, भीखा, पोसा, विश्वनाथ, श्यामबाबू और राम सिंह पर आरोप तय किए गए थे। पूरे मामले पर पिछले डेढ़ महीने ले चल रही बहस कानपुर देहात के स्पेशल कोर्ट में पूरी हो गई है। इस फैसले को लेकर सरकारी वकील राजू पोरवाल काफी उत्सुक हैं। उन्होंने कहा कि, '2011 में जब ट्रायल शुरू हुआ था तब 5 आरोपी थे, जिसमे से एक आरोपी की जेल में ही मौत हो गई थी और जिस दिन घटना हुई थी, उस दिन दर्ज एफआईआर में पुलिस ने चार गैंग फूलनदेवी, राम औतार, मुस्तकीम और लल्लू गैंग और 35-36 डकैतों को आरोपी बनाया था।' राजू पोरवाल ने यह भी बताया कि, 'आरोप पत्र दाखिल होने के बाद कभी सारे आरोपी एक साथ अदालत में हाजिर नहीं हो पाए इस वजह से ट्रायल नहीं शुरू हो पाया।' राजू पोरवाल ने बताया कि, 'अब चार आरोपी बचे हैं उनके लिए फैसला आने वाला है।' डीजीसी ने बताया कि बेहमई हत्याकांड में आरोपी भीखा, श्यामबाबू व विश्वनाथ उर्फ पूतानी जमानत पर हैं। आरोपी पोसा अभी भी जेल में बंद है।   Read the full article
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chaitanyabharatnews · 4 years
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बेहमई नरसंहार कांड में 39 साल बाद आएगा फैसला, फूलन देवी ने कतार में खड़ा कर 20 लोगों को मारी थी गोली
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चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. भारत के सबसे चर्चित बेहमई कांड की सुनवाई 39 साल बाद पूरी होने वाली है। इस केस का फैसला सोमवार यानी 6 जनवरी 2020 को आ सकता है। इस मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); जानकारी के मुताबिक, 39 साल पहले 14 फरवरी 1981 को बेहमई गांव में डकैत से सांसद बनी दस्यु सुंदरी फूलन देवी और उनके गिरोह ने कतार में खड़ा कर 20 लोगों की गोली मारकर सामूहिक हत्या कर दी थी। इन लोगों का नाम जगन्नाथ सिंह, तुलसीराम, सुरेंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह, लाल सिंह, रामाधार सिंह, वीरेंद्र सिंह, शिवराम सिंह, रामचंद्र सिंह, शिव बालक सिंह, नरेश सिंह, दशरथ सिंह, बनवारी सिंह, हिम्मत सिंह, हरिओम सिंह, हुकुम सिंह था। इसके बाद राजाराम सिंह ने फूलन देवी समेत 35-36 डकैतों के खिलाफ थाना सिकंदरा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान फूलन समेत 15 आरोपियों की मौत हो चुकी है। साल 2012 में फूलन देवी, भीखा, पोसा, विश्वनाथ, श्यामबाबू और राम सिंह पर आरोप तय किए गए थे। पूरे मामले पर पिछले डेढ़ महीने ले चल रही बहस कानपुर देहात के स्पेशल कोर्ट में पूरी हो गई है। इस फैसले को लेकर सरकारी वकील राजू पोरवाल काफी उत्सुक हैं। उन्होंने कहा कि, '2011 में जब ट्रायल शुरू हुआ था तब 5 आरोपी थे, जिसमे से एक आरोपी की जेल में ही मौत हो गई थी और जिस दिन घटना हुई थी, उस दिन दर्ज एफआईआर में पुलिस ने चार गैंग फूलनदेवी, राम औतार, मुस्तकीम और लल्लू गैंग और 35-36 डकैतों को आरोपी बनाया था।' राजू पोरवाल ने यह भी बताया कि, 'आरोप पत्र दाखिल होने के बाद कभी सारे आरोपी एक साथ अदालत में हाजिर नहीं हो पाए इस वजह से ट्रायल नहीं शुरू हो पाया।' राजू पोरवाल ने बताया कि, 'अब चार आरोपी बचे हैं उनके लिए फैसला आने वाला है।' डीजीसी ने बताया कि बेहमई हत्याकांड में आरोपी भीखा, श्यामबाबू व विश्वनाथ उर्फ पूतानी जमानत पर हैं। आरोपी पोसा अभी भी जेल में बंद है।   Read the full article
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