Tumgik
#नागालैंड में कौन सी भाषा बोली जाती है
newsguruworld · 1 year
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नागा लोग आदमी खाते है #new #shorts #viral
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hindiblogging · 2 years
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पूरे भारत में कितने जिले है 2022
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Bharat me kitne jile hai? दोस्तों भारत में कितने राज्य है ये हम सब तो जानते ही है. लेकिन अगर आपसे पूछा जाए कि पूरे भारत में कितने जिले है तो शायद एक बार आप सोच पड़ जायेंगे और संभव है आपके पास इस प्रश्न का उत्तर न हो. अगर नहीं पता तो चलिए कोई बात नहीं आज मैं आपको इस लेख के माध्यम से बताऊंगा की भारत में कुल कितने जिले है और प्रत्येक राज्य में कितने है यह भी बताऊंगा. दोस्तों हमारा देश पुरे विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला दूसरा देश है. और हमारा देश कुल 28 राज्य और 9 केंद्र शाशित प्रदेशों में बटा हुआ है. हमारे देश में बहुत सी भाषाएँ बोली जाती है और प्रत्येक राज्य की अपनी संस्कृति और सभ्यता है. बहुआयामी भाषा और और संस्कृतियों में बटा होने के बावजूद हमारा देश अनेकता में एकता की मिशाल पेश करता है. दोस्तों मेरे यहाँ पर एक कहावत मशहूर है कि "कोस कोस पर बदले पानी, कोस कोस पर बानी" यानि कहने का तात्पर्य यह कि यह थोड़ी दूरी पर ही भाषा और पानी दोनों ही बदल जाते है. ठीक इसी प्रकार से सफ़र करते हुए कब कौन सा जिला आ जाये हमें पता ही नहीं चलता है. इसलिए मैंने सोचा क्यूँ न आज आपको ये बताया जाये कि हमारे प्रत्येक राज्य में कितने जिले है और पुरे देश में इनकी कुल संख्या कितनी होती है. हस्त रेखा ज्ञान अपनी राशि कैसे देखें जन्म कुंडली कैसे देखें
भारत में कितने जिले है 2022 (Bharat Me Kitne jile hai)?
एक जिला, एक भारतीय राज्य या क्षेत्र का एक प्रशासनिक प्रभाग है। कुछ मामलों में जिलों को उप-विभाजनों में विभाजित किया जाता है, और दूसरों में सीधे तहसील या तालुका में। 2021 तक भारत में कुल 739 जिले है, जबकि 2001 की जनगणना के अनुसार इनकी संख्या 593 व 2011 की जनगणना के अनुसार 640 जिले थे. बढती आबादी और विकसित होते क्षेत्रों के वजह से इन जिलों की संख्या बढती जा रही है. अभी भी भारत में बहुत से क्षेत्र ऐसे है जिन्हें जिला घोषित करने की मांग स्थानीय स्तर पर की जा रही है. भारत में कुल 28 राज्य है जिनमे कुल जिलों की संख्या 694 होती है और केंद्र शाशित प्रदेशों में कुल जिलों की संख्या 45 है. और राज्य और केंद्र शाशित प्रदेशों को मिलाकर यह संख्या 739 होती है. आइये क्रमवार तरीके से जानते है भारत के राज्यों और केंद्र शाशित प्रदेशों में कुल कितने जिले है. क्रम भारत के राज्य राज्यों में जिलों की संख्या1Andhra Pradesh132Arunachal Pradesh253Assam334Bihar385Chhattisgarh286Goa27Gujarat338Haryana229Himachal Pradesh1210Jharkhand2411Karnataka3012Kerala1413Madhya Pradesh5514Maharashtra3615Manipur1616Meghalaya1117Mizoram1118Nagaland1219Odisha3020Punjab2221Rajasthan3322Sikkim423Tamil Nadu3824Telangana3325Tripura826Uttar Pradesh7527Uttarakhand1328West Bengal23केंद्र शाशित प्रदेशकुल जिलों की संख्या1अंडमान और निकोबार द्वीप समूह32चंडीगढ़13दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव34जम्मू और कश्मीर205लदाख26लक्ष्यद्वीप17दिल्ली118पांडूचेरी436कुल739भारत में 739 जिले है कंप्यूटर इन्टरनेट बैंकिंग प्रदेश के अनुसार जिलों की संख्या। भारत में कितने जिले है? भारत में 739 जिले है। आंध्र प्रदेश में कितने जिले है? आंध्र प्रदेश में 13 जिले है। अरुणाचल प्रदेश में कितने जिले है? अरुणाचल प्रदेश में 25 जिले है। असम में कितने जिले है? असम में 33 जिले ह���। बिहार में कितने जिले है? बिहार में 38 जिले है। छत्तीसगढ़ में कितने जिले है? छत्तीसगढ़ में 28 जिले है। गोवा में कितने जिले है? गोवा में 22 जिले है। गुजरात में कितने जिले है? गुजरात में 33 जिले है। हरियाणा में कितने जिले है? हरियाणा में 22 जिले है। हिमांचल प्रदेश में कितने जिले है? हिमांचल प्रदेश में 12 जिले है। झारखण्ड में कुल कितने जिले है? झारखण्ड में 24 जिले है। कर्नाटक में कितने जिले है? कर्नाटक में 30 जिले है। केरल में कितना जिले है? केरल में 14 जिले है। मध्य प्रदेश MP में कितने जिले है? मध्य प्रदेश में 55 जिले है। महाराष्ट्र में कितने जिले है? महाराष्ट्र में 36 जिले है। मणिपुर में कितने जिले है? मणिपुर में 16 जिले है। मेघालय में कितने जिले है? मेघालय में कितने 11 जिले है। मिजोरम में कितने जिले है? मिजोरम में 11 जिले है। नागालैंड में कितने जिले है? नागालैंड में 12 जिले है। उड़ीसा में कितने जिले है? उड़ीसा में 30 जिले है। पंजाब में कितने जिले है? पंजाब में 22 जिले है। राजस्थान में कितने जिले है? राजस्थान में 33 जिले है। सिक्किम में कितने जिले है? सिक्किम में 4 जिले है। तमिलनाडु में कितने जिले है? तमिलनाडु में 38 जिले है। तेलंगाना में कितने जिले है? तेलंगाना में 33 जिले है। त्रिपुरा में कितने जिले है? त्रिपुरा में 8 जिले है। उत्तर प्रदेश (UP) में कितने जिले है? उत्तर प्रदेश में 75 जिले है। उत्तराखण्ड में कितने जिले है? उत्तराखण्ड में 13 जिले है। पश्चिम बंगाल में कितने जिले है? पश्चिम बंगाल में 23 जिले है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कितने जिले है? अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 3 जिले है। चंडीगढ़ में कितने जिले है? चंडीगढ़ में 4 जिले है। दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव में कितने जिले है? दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव में 3 जिले है। जम्मू और कश्मीर में कितने जिले है? जम्मू और कश्मीर में 20 जिले है। लदाख में कितने जिले है? लदाख में 02 जिले है। लक्ष्यद्वीप में कितने जिले है? लक्ष्यद्वीप में 1 जिला है। पांडूचेरी में कितने जिले है? पांडूचेरी में 1 जिला है। नाम की रिंगटोन अवकाश हेतु प्रार्थनापत्र New Atm Card यह भी पढ़ें - भारत में कितने राज्य है? - उत्तर प्रदेश UP में कितने जिले है नाम सहित 2022 - बिहार में कितने जिले है 2022? बिहार राज्य की जानकारी - MP मध्य प्रदेश में कितने जिले है? MP में सबसे छोटा सबसे बड़ा क्या है? 2022 - भारत का सबसे अमीर राज्य कौन सा है? 2022 - भारत की जनसँख्या कितनी है 2022 में - भारत के राज्यपाल और उनके नाम - भारत के राष्ट्रपति कौन है? - राम नाथ कोविंद जीवन परिचय आशा करता हूँ दोस्तों आपको भारत में कितने जिले है के सम्बन्ध में दी गयी जानकरी अवश्य अच्छी लगी होगी. इसे आप अपने दोस्तों के साथ शेयर कर उनका भी ज्ञानार्जन कर सकते है. आप भारत के किस जिले से है, हमे कॉमेंट्स में जरूर बताएं ताकि हमे पता चल सके ये लेख कितने जिले के लोगों ने पढ़ा है। यदि आप भी हमारे लिए लेख लिखना चाहते है तो हमसे संपर्क करे। Read the full article
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mahenthings-blog · 5 years
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कौन है हम ?? प्रथम पड़ाव -चौथा दिन  
मनुष्य या किसी सभ्यता की पहचान दो तरीके से की जा सकती है एक तो उसकी संस्कृति से जो उसकी सांस्कृतिक पहचान कही जाएगी और दूसरी उसके डील डोल और अंगो की बनावट से जिसे उसकी जैविक पहचान कहा जा सकता है | पुरातात्विक अन्वेषणों से किसी भी मानव सभ्यता की दोनों प्रकार की पहचान जानी जा सकती है | जमीन में दबी किसी बस्ती के अवशेष ,बर्तन ,और शिलालेख उस सभ्यता की सांस्कृतिक पहचान की जानकारी देते है वही खुदाई के दौरान पाए जाने वाले नरकंकाल ,हड्डियां या मानव खोपड़ियां उस सभ्यता में रहने वाले लोगो की जैविक पहचान उजागर करती है | मेरी राय में हमें ये भली भांति समझ लेना चाहिए कि जैविक पहचान अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी व्यक्ति के मूल उद्गम की जानकारी इसी से मिलती है जबकि एक सी जैविक पहचान वाले व्यक्ति अलग अलग संस्कृतियों का हिस्सा हो सकते है |  उत्तर वैदिक काल अथवा यू कहे कि लगभग 800 ईस्वी पूर्व तक भारतीय उपमहादेश में निवास करने वाले लोगो की सांस्कृतिक पहचान स्पष्ट थी कि या तो वे द्रविड़ थे लेकिन वस्तुत ये लोग को थे इनका उद्गम स्थल कोनसा था इसके लिए इनकी जैविक पहचान जानना ही एकमात्र रास्ता है |  वर्तमान सदी में डा गुहा द्वारा 1931 में जनगण���ा के समय प्रस्तुत वर्गीकरण किसी हद तक इस प्रश्न का उत्तर दे देता है , इस वर्गीकरण में जैविक आधार पर भारत उपमहादेश में निवास करने वाले लोगो को 6 प्रजातियों में बांटा गया है |    पहली प्रजाति वो है जिसमे नीग्रिटो तत्व का समावेश है , छोटा सिर ,उभरा ललाट , चपटी नाक ,बाल सुन्दर और घुंघराले ,रंग काला,कोमल हाथ पैर ,सपाट हड्डियां ,छोटी दाढ़ी ,होंठ मोटे और मुड़े हुए ये सभी नीग्रिटो तत्व है |  बंगाल की खाड़ी ,मलेशिया प्रायद्वीप ,फिजी द्वीप समूह ,न्यूगिनी ,दक्षिण भारत और दक्षिणी अरब में नीग्रिटो अथवा आंशिक नीग्रो लोगो की मौजूदगी ये मान लेने को प्रेरित करती है कि किसी पूर्व ऐतिहासिक काल में ये प्रजाति एशिया महाद्वीप के बड़े विशेषकर दक्षिणी हिस्से को घेरे हुए थी |  नीग्रिटो प्रजाति सभ्यता की अविकसित अवस्था में रही थी और ये प्रजाति भारत उपमहादेश में पाषाण युग अर्थात पत्थर के अनगढ़ हथियार और तीर कमान लेकर ही आयी थी |  खेती ,मिट्टी के बर्तन और भवन निर्माण की कला से ये प्रजाति अनभिज्ञ थी , इनका निवास पहाड़ी गुफाओं में था और भोजन के लिए ये विभिन्न वस्तुए एकत्रित करते थे , भारतीय संस्कृति में वटवृक्ष की पूजा और गुफाओ का निर्माण इन्ही की देन है , अंडमान द्वीप वासियो के अतिरिक्त ये तत्व असम ,पूर्वी बिहार की राजमहल पहाड़ियों में भी पाया गया है |  अंगामी ,नागा ,बागड़ी , इरुला ,कडार ,पुलायन ,मुथुवान और कन्नीकर इसी प्रजाति के प्रतिनिधि है ,प्रोफ़ेसर कीन कडार ,मुथुवान ,पनियांग ,सेमांग ,ओरांव और ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियो को इसी प्रजाति के वंशज मानते है जो किसी समय सम्पूर्ण भारत में निवास करते थे , ये लोग ही सबसे पहले मलेशिया से भारत में बंगाल की खाड़ी से घुसे और उत्तर में हिमालय की तलहटी और दक्षिण भारत में फेल गए , बाद में पूर्व द्रविड़ो अथवा द्रविड़ो के आने पर या तो ये समाप्त हो गए या उनमे विलीन हो गए |        
  भारत उपमहादेश में आनेवाली दूसरी प्रजाति संभवतया प्रोटो ऑस्ट्रेलॉयड अथवा आदि द्रविड़ थी , ये कद में नाटे ,गहरे भूरे अथवा काले रंग के ,लम्बा सिर ,नाक चौड़ी ,चपटी अथवा पिचकी ,घुंघराले बाल ,होठ मोटे और मुड़े हुए होते है।  इनके आदि पूर्वजो के अंश फिलिस्तीन में मिलते है लेकिन ये कब और किस प्रकार भारत आये ये जानकारी नहीं मिलती |  भारत की वर्तमान जनजातियों में ये तत्व ही सर्वाधिक मिलता है , दक्षिण भारत के चेंचू मलायन ,कुरुम्बा ,यरुबा ,मुण्डा , कोल ,संथाल और भील समुदायों के अनेक लोगो में इस प्रजाति के तत्व पाए गए है | तीसरी प्रजाति मंगोलायड है जिसका उद्गम स्थान इरावती नदी ,चीन ,तिब्बत और मंगोलिया है , यही से ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के मध्य ये लोग भारत आये और पूर्वी बंगाल के मैदान और असम की पहाड़ियों तथा मैदानों में बस गए |  भारत के उत्तर पूर्व भागो में नेपाल , असम और कश्मीर में तीन प्रकार के मंगोलायड पाए जाते है , चपटा मुंह ,गाल की उभरी हड्डियां ,बादाम की आकृति की आंखे ,  चेहरे और शरीर पर कम बाल ,कद छोटे से मध्यम , चौड़ा सिर और पीलापन लिए हुए रंग इस प्रजाति के प्रमुख तत्व है ,  इनमे पूर्वी मंगोलायड बहुत प्राचीन प्रजाति है जिसे सिर की बनावट ,नाक और रंग से ही पहचाना जा सकता है |  इसमें भी मंगोल प्रजाति जिसका कद साधारण ,नाक साधारण और कम ऊंची ,चेहरे और शरीर पर बालों का अभाव , आँखे तिरछी या कम मोड़ वाली ,चेहरा चपटा और छोटा ,और रंग गहरे से हल्का भूरा होता है |  लम्बे सिर वाली ये प्रजाति उप हिमालय प्रदेश ,असम और म्यांमार की सीमा पर रहने वाले आदि लोगों नागा ,मीरी और बोंडों में सर्वाधिक पाई जाती है |  इस समूह की दूसरी प्रजाति चौड़े सिर वाली है बांग्लादेश में चिटगांव के पर्वतीय आदिवासी और कलिम्पोंग की लेप्चा प्रजाति इसी श्रेणी के है |  तिब्बती मंगोलायड लम्बे कद,चौड़ा सिर और हलके रंग के होते है , ये लोग तिब्बत की और से आये और सिक्किम में बसे , दूध ,चाय ,कागज ,चावल ,सुपारी की खेती ,सामूहिक घर की परंपरा ,सीढ़ीनुमा खेती इन्ही लोगो देन है | चौथा प्रकार द्रविड़ प्रजाति का है  इस प्रजाति की अनेक किस्मे है जो लम्बे सिर ,काला रंग और अपने कद द्वारा पहचानी जाती है |  इनमे प्रथम प्रकार दक्षिण भारत के तमिल और तेलगु ब्राह्मणो में सर्वाधिक मिलता है , भारतीय जनजातियों में नीग्रिटो ,द्रविड़ और मंगोल प्रजातियों के ही तत्व सर्वाधिक पाए जाते है , इस प्रजाति को ही सिंधु घाटी सभ्यता को जन्म देने का श्रेय है | पांचवी प्रजाति नार्डिक है जो भूमध्यसागर से ईरान होते हुए गंगा के मैदान में आये , उत्तरी भारत की जनसँख्या में सबसे अधिक यही तत्व पाया जाता है सामान्य अर्थ में हम इस प्रजाति को आर्य के रूप में जानते है |  ये प्रजाति पंजाब ,कश्मीर ,उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अतिरिक्त मध्यप्रदेश के मराठा और केरल ,महाराष्ट्र और मालाबार के ब्राह्मण इसी प्रजाति का प्रतिनिधित्व करते है |  ये प्रजाति मध्यम से लम्बा कद , संकरी नाक ,उन्नत दाढ़ी ,शरीर पर घने बाल ,काली या गहरी भूरी और खुली आंखे , लहरदार बाल और पतला शरीर लिए हुए है |  इस प्रजाति ने सिंधु घाटी सभ्यता को अपनाया और उसे उन्नत किया , वर्तमान भारतीय धर्म और संस्कृति मुख्यत इन्ही लोगो द्वारा निर्मित है , इन्ही  में हम पूर्वी अथवा सेमेटिक प्रजाति को शामिल कर सकते है जो टर्की और अरब से आये , केवल नाक की बनावट को छोड़कर ये प्रजाति नार्डिक से मिलती जुलती है |  छठी प्रजाति मध्य एशियाई पर्वतो के पश्चिम से भारत में आयी चौड़े सिर वाली प्रजाति है जिसे एल्पोनायड ,दिनारिक और आर्मिनॉयड तीन भागो में बांटा गया है |  छोटा मध्यम कद ,चौड़े कंधे ,गहरी छाती ,लम्बी टांगे ,चौड़ी पर छोटी उंगलियां ,गोल चेहरा ,नाक पतली और नुकीली ,रंग भूमध्यसागरीय लोगो से हल्का ,शरीर मोटा और मजबूत और चेहरे तथा शरीर पर घने बाल इस प्रजाति के तत्व है ,संभवतया ये प्रजाति बलूचिस्तान से सिंध ,सौराष्ट्र और गुजरात होते हुए महाराष्ट्र और आगे तमिलनाडु ,कर्णाटक ,श्रीलंका और गंगा किनारे होते हुए बंगाल पहुंची |  सौराष्ट्र में काठी ,गुजरात में बनिया ,बंगाल में कायस्थ के साथ महाराष्ट्र ,कन्नड़ ,तमिलनाडु ,बिहार और गंगा के डेल्टा में पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी इस प्रजाति के तत्व पाए जाते है |                              किसी भी संस्कृति को उसके भाषाई इतिहास के बगैर नहीं जाना जा सकता ,भाषा ही वो एकमात्र जरिया है जो उस संस्कृति की सांस्कृतिक पहचान बताता है |  भारतीय भाषाई सर्वेक्षण के संपादक प्रियर्सन के अनुसार भारतीयों द्वारा करीब 180 भाषाएँ और 550 बोलियां बोली जाती है | इन्हे चार वर्गों एस्ट्रोएसियाटिक ,तिब्बती -बर्मी ,द्रविड़ और हिन्द -आर्य में बांटा गया है | एस्ट्रोएसियाटिक भाषाएँ प्राचीनतम है और सामान्यतया मुंडा बोली के कारण जानी जाती है इसे बोलने वाले पूर्व में ऑस्ट्रेलिया तक और पश्चिम में अफ्रीका के पूर्वी समुद्रतट के निकट मेडागास्कर तक पाए जाते है | विद्वानों के अनुसार लगभग 40 हजार ईस्वी पूर्व ऑस्ट्रियाई लोग ऑस्ट्रेलिया में आये और इसलिए संभव है ये लोग भारतीय उपमहादेश से होते हुए दक्षिणी पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया गए | ये भी कहा जा सकता है कि इस समय तक भाषा का अविष्कार हो चूका था | मुंडा भाषा झारखण्ड ,बिहार ,पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा में संथालियों द्वारा जो इस उपमहादेश की सबसे बड़ी जनजाति है द्वारा बोली जाती है | एस्ट्रोएसियाटिक की दूसरी शाखा मोन -खमेर है जो उत्तर पूर्वी भारत में मेघालय अंतर्गत खासी और जामितिया पहाड़ियों और निकोबारी द्वीपों में बोली जाती है | तिब्बती -बर्मी बोलने वालो की सख्या बहुत अधिक है  | भारत में त्रिपुरा ,असम ,मेघालय ,अरुणाचल प्रदेश ,नागालैंड ,मिजोरम ,मणिपुर और दार्जिलिंग में ये भाषा बोली जाती है |  द्रविड़ बोली का प्राचीनतम रूप भारतीय उपमहादेश के पाकिस्तान स्थित उत्तर पश्चिम में पाया जाता है | भाषा विज्ञानं के विद्वान इस भाषा की उत्पत्ति का श्रेय एलम अर्थात दक्षिणी पश्चिमी ईरान को देते है | इसकी तिथि चौथी सहस्त्राब्दी निर्धारित की गई है ब्रहुई इसके बाद का रूप है | ये अभी ईरान ,तुर्कमेनिस्तान ,अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान और सिंध राज्यों में बोली जाती है | कहा जाता है कि द्रविड़ भाषा पाकिस्तानी क्षेत्र में होते हुए दक्षिणी भारत में पहुंची जहाँ इससे तमिल ,तेलगु ,कन्नड़ और मलयालम जैसी शाखाओ की उत्पत्ति हुई | झारखण्ड और मध्य भारत में बोली जाने वाली ओरांव अथवा कुरुख भाषा भी वस्तुत द्रविड़ ही है लेकिन ये मुख्यत ओरांव जनजाति द्वारा ही बोली जाती है | कहा जाता है कि हिन्द यूरोपीय परिवार की पूर्वी अथवा आर्य शाखा हिन्द -ईरानी ,दर्दी ,हिन्द -आर्य इन तीन उपशाखाओ में बंट गई | ईरानी जिसे हिन्द- ईरानी भी कहते है ईरान में बोली जाती है और इसका प्राचीनतम नमूना अवेस्ता नामक महाग्रंथ में मिलता है | दर्दी भाषा पूर्वी अफगानिस्तान ,उत्तरी पाकिस्तान और कश्मीर की है यद्यपि कई विद्वान् दर्दी को हिन्द -आर्य की उपशाखा मानते है | हिन्द आर्य भाषा पाकिस्तान ,भारत ,बांग्लादेश ,श्रीलंका और नेपाल में बहुसंख्यक लोगो द्वारा बोली जाती है | लगभग 500 हिन्द -आर्य भाषाएँ उत्तर और मध्य भारत में बोली जाती है | वैदिक संस्कृत प्राचीन हिन्द- आर्य भाषा के अंतर्गत है लगभग 500 ईस्वी पूर्व से 1000 ईस्वी तक मध्य हिन्द आर्य भाषाओँ के अंतर्गत प्राकृत ,पालि और अपभृंश भाषाएँ आती है | मुंडा और द्रविड़ भाषाओ के कई शब्द वैदिक संस्कृति के मूल ग्रन्थ ऋग्वेद में मिलते है |
 मिलते है पड़ाव के पांचवे दिन एक नयी चर्चा के साथ महेंद्र जैन 31 जनवरी 2019
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