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#कपास की खेती
kisanofindia · 1 year
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कपास की खेती में फायदेमंद है स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर का इस्तेमाल
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कपास की खेती और स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर: पूरी दुनिया में कपास की खेती (Cotton Farming) में क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का स्थान पहला है, लेकिन उत्पादन के मामले में ये पहले नंबर पर नहीं आता। कपास की उत्पादकता कम होने की कई वजहें हैं, सही मिट्टी न होना, सिंचाई की उचित व्यवस्था न होना और उर्वरकों का सही वितरण नहीं होना।कपास की खेती में खाद व उर्वरकों की बहुत अहम भूमिका है।अधिक उत्पादन के लिए इनका सही मात्रा में उपयोग ज़रूरी है। हाथ से उर्वरक का छिड़काव करने पर ये सभी पौधों में सही मात्रा में नहीं पहुंच पाते। इसलिए वैज्ञानिकों ने स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर (Spot Fertilizer Applicators) बनाया। इस उपकरण के इस्तेमाल से उर्वरक समान रूप से सभी पौधों में डाला जाता है और उर्वरक की बर्बादी भी नहीं होती, जिससे खेती की लागत में कमी आती है।
कपास की खेती
भारत पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा क्षेत्रफल में कपास का उत्पादन करता है और देशभर में कपास की सबसे ज़्यादा खेती होती है महाराष्ट्र में। कपास महाराष्ट्र की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसल है। राज्य खानदेश, सोलापुर, सांगली, सतारा, जलगांव ज़िलों में बड़े पैमाने पर कपास की खेती की जाती है। महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक, गुजरात और आंध्रप्रदेश में भी इसकी खेती में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
दरअसल, कपास में ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती है, इसलिए पानी की कमी वाले इलाकों में भी किसान इसकी खेती कर सकते हैं। हां, इसकी खेती में उर्वरक का सही इस्तेमाल बहुत ज़रूरी है और ये काम स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर की बदौलत आसान हो गया है।
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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merikheti · 2 years
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पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी
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लक्ष्य की आधी हुई कपास की खेती, गुलाबी सुंडी के हमले से किसान परेशान
मुआवजा न मिलने से किसानों ने लगाए आरोप
भूजल एवं कृषि भूमि की उर्वरता में क्षय के निदान के तहत, पारंपरिक खेती के साथ ही फसलों के विविधीकरण के लिए, केंद्र एवं राज्य सरकारें फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजनाएं संचालित कर रही हैं। इसके बावजूद हैरानी करने वाली बात है कि, सरकार से सब्सिडी जैसी मदद मिलने के बाद भी किसान फसल विविधीकरण के तरीकों को अपनाने से कन्नी काट रहे हैं।
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क्या वजह है कि किसान को फसल विविधीकरण विधि रास नहीं आ रही? क्यों किसान इससे दूर भाग रहे हैं? इन बातों को जानिये मेरी खेती के साथ। लेकिन पहले फसल विवधीकरण की जरूरत एवं इसके लाभ से जुड़े पहलुओं पर गौर कर लें।
फसल विविधीकरण की जरूरत
खेत पर परंपरागत रूप से साल दर साल एक ही तरह की फसल लेने से खेत की उपजाऊ क्षमता में कमी आती है। एक ही तरह की फसलें उपजाने वाला किसान एक ही तरह के रसायनों का उपयोग खेत में करता है। इससे खेत के पोषक तत्वों का रासायनिक संतुलन भी गड़बड़ा जाता है।
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भूमि, जलवायु, किसान का भला
यदि किसान एक सी फसल की बजाए भिन्न-भिन्न तरह की फसलों को खेत में उगाए तो ऐसे में भूमि की उर्वरकता बरकरार रहती है। निवर्तमान जैविक एवं प्राकृतिक खेती की दिशा में किए जा रहे प्रयासों से भी भूमि, जलवायुु संग कमाई के मामले में किसान की स्थिति सुधरी है।
नहीं अपना रहे किसान
पंजाब सरकार द्वारा विविधीकृत कृषि के लिए किसानों को सब्सिडी प्रदान करने के बावजूद किसान कृषि की इस प्रणाली की ओर रुख नहीं कर रहे है। प्रदेश में आलम यह है कि यहां कुछ समय तक विविधीकरण खेती करने वाले किसान भी अब पारंपरिक मुख्य खेती फसलों की ओर लौट रहे हैं।
किसानों को नुकसान
पंजाब सरकार खरीफ कृषि के मौसम में पारंपरिक फसल धान की जगह अन्य फसलों खास तौर पर कम पानी में पैदा होने वाली फसलों की फार्मिंग को सब्सिडी आदि के जरिए प्रेरित कर रही है।
सब्सिडी पर नुकसान भारी
सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के मुकाबले विविधीकृत फसल पर कीटों के हमले से प्रभावित फसल का नुकसान भारी पड़ रहा है।
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पंजाब के किसानों क मुताबिक उन्हें विविधीकरण कृषि योजना के तहत सब्सिडी आधारित फसलों पर कीटों के हमले के कारण पैदावार कम होने से आर्थिक नुकसान हो रहा है। इस कारण उन्होंने फसल विविधीकरण योजना एवं इस किसानी विधि से दूसी अख्तियार कर ली है।
कपास का लक्ष्य अधूरा
पंजाब कृषि विभाग द्वारा संगरूर जिले में तय किया गया कपास की खेती का लक्ष्य तय मान से अधूरा है। कपास के लिए निर्धारित 2500 हेक्टेयर खेती का लक्ष्य यहां अभी तक आधा ही है।
पिंक बॉलवर्म (गुलाबी सुंडी)
किसान कपास की खेती का लक्ष्य अधूरा होने का कारण पिंक बॉलवर्म का हमला एवं खराब मौसम की मार बताते हैं।
गुलाबी सुंडी क्या है
गुलाबी सुंडी (गुलाबी बॉलवार्म), पिंक बॉलवर्म या गुलाबी इल्ली (Pink Bollworm-PBW) कीट कपास का दुश्मन माना जाता है। इसके हमले से कपास की फसल को खासा नुकसान पहुंचता है।
किसानो के मुताबिक, संभावित नुकसान की आशंका ने उनको कपास की पैदावार न करने पर मजबूर कर दिया।
एक समाचार सेवा ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि, जिले में 2500 हेक्टेयर कपास की खेती का लक्ष्य तय मान से अधूरा है, अभी तक केवल 1244 हेक्टेयर में ही कपास की खेती हो पाई है।
7 क्षेत्र पिंक बॉलवर्म प्रभावित
विभागीय तौर पर फिलहाल अभी तक 7 क्षेत्रों में पिंक बॉलवर्म के हमलों की जानकारी ज्ञात हुई है। विभाग के अनुसार क��ास के कुल क्षेत्र के मुकाबले प्रभावित यह क्षेत्र 3 प्रतिशत से भी कम है।
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नुकसान आंकड़ों में भले ही कम हो, लेकिन पिछले साल हुए नुकसान और मुआवजे संबंधी समस्याओं के कारण भी न केवल फसल विविधीकरण योजना से जुड़े किसान अब योजना से पीछे हट रहे हैं, बल्कि प्रोत्साहित किए जा रहे किसान आगे नहीं आ रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स में किसानों ने बताया कि, पिछली सरकार ने पिंक बॉलवर्म के हमले से हुए नुकसान के लिए आर्थिक सहायता देने का वादा किया था।
नहीं मिला धान का मुआवजा
भारी बारिश से धान की खराब हुई फसल के लिए मुआवजे से वंचित किसान प्रभावित 47 गांवों के किसानों की इस तरह की परेशानी पर नाराज हैं।
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बार-बार नुकसान वजह
किसानों की फसल विविधीकरण योजना से दूरी बनाने का एक कारण उन्हें इसमें बार-बार हो रहा घाटा भी बताया जा रहा है। दसका गांव के एक किसान के मुताबिक इस वर्ष गेहूं की कम उपज से उनको बड़ा झटका लगा। पिछले दो सीजन से नुकसान होने की जानकारी किसानों ने दी है।
कझला गांव के एक किसान ने खेती में बार-बार होने वाले नुकसान को किसानों को नई फसलों की खेती के प्रयोग से दूर रहने के लिए मजबूर करने का कारण बताया है। उन्होंने कई किसानों का उदाहरण सामने रखने की बात कही जो, फसल विविधीकरण के तहत अन्य फसलों के लिए भरपूर मेहनत एवं कोशिशों के बाद वापस धान–गेहूं की खेती करने में जुट गए हैं।
किसानों के अनुसार फसल विविधीकरण के विस्तार के लिए प्रदेश में सरकारी मदद की कमी स्पष्ट गोचर है।
सिर्फ जानकारी से कुछ नहीं होगा
इलाके के किसानो का कहना है कि, जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए सिर्फ जानकारी प्रदान करने से लक्ष्य पूरे नहीं होंगे। उनके मुताबिक कृषि अधिकारी फसलों की जानकारी तो प्रदान करते हैं, लेकिन फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रोत्साहन राशि के साथ अधिकारी किसानों के पास बहुत कम पहुंचते हैं।
हां नुकसान हुआ
किसान हित के प्रयासों में लगे अधिकारियों ने भी क्षेत्र में फसलों को नुकसान होने की बात कही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार किसानों को हो रहे नुकसान को उन्होंने भी फसल विविधीकरण नहीं अपनाने की वजह माना है।
नाम पहचान की गोपनीयता रखने की शर्त पर कृषि विकास अधिकारी ने बताया कि, फसल के नुकसान की वजह से कृषक फसल विविधीकरण कार्यक्रम में अधिक रुचि नहीं दिखा रहे हैं। उन्होंने बताया कि, केवल 1244 हेक्टेयर भूमि पर इस बार कपास की खेती की जा सकी है।
source पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी
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todaymandibhav · 2 years
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खेती बाड़ी समाचार: गंगानगर हनुमानगढ़ जिले में इस साल ग्वार का रकबा घटा, जबकि नरमा (कॉटन) का बढ़ा
खेती बाड़ी समाचार 8 जुलाई 2022: राजस्थान प्रदेश के हनुमानगढ़ और श्री गंगानगर जिलों में इस बार ताज़ा आकड़ों के मुताबिक ग्वार का रकबा (क्षेत्रफल) घटा है जबकि कॉटन का रकबा इस बार बढ़ा है। आइये जाने, सरकारी आकड़ों के मुताबिक अब तक ग्वार और नरमे की बजाई कितनी की जा चुकी है? ग्वार की बिजाई का रकबा घटा:- हनुमानगढ़ जिले में इस बार अब तक ग्वार की बिजाई 2 लाख 11 हजार 554 हेक्टेयर में हुई है, जोकि बीते साल के…
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merikhetisblog · 2 years
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किसानों के लिए सफेद सोना साबित हो रही कपास की खेती : MSP से डबल हो गए कपास के दाम
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MSP से डबल हो गए कपास के दाम – किसानों के लिए सफेद सोना साबित हो रही कपास की खेती
नई दिल्ली। कपास की खेती करने वाले किसानों की इस साल खूब बल्ले-बल्ले हुई है। बाजार में कपास को अच्छा भाव मिला है। एमएसपी से भी डबल दामों में कपास की बिक्री हुई। कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना साबित हुई है।
लांग स्टेपल कॉटन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6025 रुपए प्रति क्विंटल है। जबकि बाजार में इसके भाव 12000 से 13000 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है। ऐसे में किसानों के लिए इस बार कपास की खेती सफेद सोना बनी हुई है।
पिछले साल प्रकृति के कहर से सभी फसल बर्बाद हुईं थीं। उधर कपास को अच्छा भाव भी नहीं मिला। जिसके चलते किसानों व बड़े व्यापारियों ने कपास का भंडारण भी कम ही किया गया। जिसके चलते इस बार कपास की फसल ने किसानों को अच्छा मुनाफा दिया है। और उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले सीजन में भी कपास की खेती फायदे का सौदा रहेगी।
कपास के बीज खरीदने लगे किसान
– कपास की खेती करने वाले किसानों ने कपास के बीज खरीदना शुरू कर दिया है। कपास के बीज बिक्री पर 31 मई तक रोक थी, अब बाजार में कपास के बीज की बिक्री शुरू हो गई है। अनुमान है कि बारिश होते ही कपास की बुवाई शुरू हो जाएगी।
ये भी देखें: कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
कपास के पौधों का रखरखाव एवं बचाव
– कपास की खेती में जब पौधों में फूल लगने वाले हो तब खरपतवार पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। उस समय कई तरह के खरपतवार उग आते है, जिसमे कई प्रकार की कीट जन्म लेते है | यही कीट पौधों में कई तरह के रोग उत्पन्न करते है। इन रोगो से बचाव के लिए ही खरपतवार नियंत्रण पर अधिक ध्यान देना चाहिए। इसके लिए समय-समय पर कपास के खेत की निराई – गुड़ाई करते रहना चाहिए। खेत में बीज लगाने के 25 दिन के बाद से ही निराई-गुड़ाई शुरू कर देनी चाहिए। इससे पौधों के विकास में किसी तरह की रुकावट नहीं आती है, तथा पौधे अच्छे से विकास भी कर पाते है।
कैसे करें कपास की फसल की सिंचाई
– कपास की खेती में बहुत ही कम पानी की जरूरत होती है, यदि फसल बारिश के मौसम में की गयी है तो इसे पहली सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, और यदि खेती बारिश के मौसम में नहीं की गयी है तो 45 दिन के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। कपास के पौधे अधिक धूप में अच्छे से विकसित होते है इसलिए पहली सिंचाई करने के बाद जरूरत पड़ने पर ही इसकी सिंचाई करनी चाहिए किन्तु पौधों में फूल लगने के वक़्त खेत में नमी की उचित मात्रा बनी रहनी चाहिए जिससे पौधों के फूल झड़े नहीं, किन्तु अधिक पानी भी नहीं देना चाहिए इससे फूलो के ख़राब होने का खतरा हो सकता।
—– लोकेन्द्र नरवार
Source : https://www.merikheti.com/msp-se-dabal-hue-kapaas-ke-daam-kisaanon-ke-lie-saphed-sona-ho-rahee-kapaas/
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shriramfarmsoutions · 21 days
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Shriram 361 BT Narma Emerges as Premier Cotton Seed Variety in 2024
आइए हम जानें, श्रीराम फार्म सॉल्यूशंस द्वारा प्रस्तुत प्रमुख कपास के बीज - श्रीराम 361 बीटी नर्मा के लाभों में। इसके बड़े और अधिक भारी टिंडे के साथ, यह बीज किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण और लाभदायक विकल्प के रूप में सामने आता है। इस वीडियो में, हम आपको श्रीराम 361 बीटी नर्मा की खेती में लाभों, अनुप्रयोगों, और उपयोग के विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे। इसके अलावा, आप जानेंगे कि श्रीराम फार्म सॉल्यूशंस से ये प्रमुख कपास के बीज किसानों की उत्पादकता को कैसे सुधारते हैं।
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gaurav34 · 2 months
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भारत में मिट्टी के प्रकार (Soil Types in India)
मिट्टी, धरती का वह ऊपरी भाग है जिसमें पौधे उगते हैं। यह चट्टानों, खनिजों, और जैविक पदार्थों से बनती है। भारत में, विभिन्न प्रकार की मिट्टी पाई जाती हैं, जो जलवायु, वनस्पति, और भूगर्भीय संरचना के आधार पर भिन्न होती हैं।
यहाँ भारत में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख मिट्टी के प्रकारों का विवरण दिया गया है:
1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil): यह भारत में सबसे व्यापक रूप से पाया जाने वाला मिट्टी का प्रकार है। यह नदियों द्वारा लाए गए गाद से बनती है और गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, और सिंधु नदी के मैदानी इलाकों में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी उपजाऊ और कृषि के लिए उपयुक्त होती है।
2. काली मिट्टी (Black Soil): यह मिट्टी बेसाल्ट चट्टानों के अपक्षय से बनती है और इसे 'रेगुर' भी कहा जाता है। यह मिट्टी काली, भारी और चिकनी होती है और इसमें जल धारण क्षमता अधिक होती है। काली मिट्टी कपास, बाजरा, और सोयाबीन जैसी फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
3. लाल मिट्टी (Red Soil): यह मिट्टी ग्रेनाइट, शेल, और गनीस चट्टानों के अपक्षय से बनती है। यह मिट्टी लाल रंग की और रेतीली होती है। लाल मिट्टी में जल धारण क्षमता कम होती है और यह धान, चना, और मूंगफली जैसी फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
4. लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil): यह मिट्टी गर्म और आर्द्र जलवायु में बनती है। यह मिट्टी लाल, भूरी, या पीले रंग की होती है और इसमें लोहे और एल्यूमीनियम का उच्च प्रतिशत होता है। लैटेराइट मिट्टी चाय, कॉफी, और रबर जैसी फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
5. रेगिस्तानी मिट्टी (Desert Soil): यह मिट्टी शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है। यह मिट्टी रेतीली, ढीली, और कम उपजाऊ होती है। रेगिस्तानी मिट्टी में जल धारण क्षमता कम होती है और यह बाजरा, ज्वार, और मूंगफली जैसी फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
6. बलुई मिट्टी एक प्रकार की मिट्टी है जो अपेक्षाकृत रेतीली और मानव गतिविधियों के फलस्वरूप उत्तेजित होती है।बलुई मिट्टी कहां पाई जाती है ? यह उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में पाई जाती है, जैसे कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली आदि। इसमें अधिकतर रेत का होना इसे पहचानी जाती है। यह मिट्टी खेती में उपयुक्त होती है लेकिन इसमें अधिक संकरण की आवश्यकता होती है।
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currenthunt · 4 months
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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि स्वदेशी जीएम सरसों का उद्देश्य खाद्य तेल को सस्ता बनाना
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भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि सरसों (Mustard ) जैसी आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें आम जन के लिये गुणवत्तापूर्ण खाद्य तेल को सस्ता कर देंगी तथा विदेशी आयात पर निर्भरता को कम करके राष्ट्रीय हित में योगदान देंगी।जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने सरसों के आनुवंशिक रूप से संशोधित संस्करण, धारा मस्टर्ड हाइब्रिड -11 को जारी किये जाने हेतु पर्यावरणीय मंज़ूरी दे दी है।यदि इसे व्यावसायिक खेती के लिये मंज़ूरी मिल जाती है तो यह भारतीय किसानों के लिये उपलब्ध पहली आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य फसल होगी। भारत की खाद्य तेल मांग - भारत की कुल खाद्य तेल मांग 24.6 मिलियन टन (2020-21) थी और घरेलू उपलब्धता 11.1 मिलियन टन (2020-21) थी। - वर्ष 2020-21 में कुल खाद्य तेल मांग का 13.45 मिलियन टन (54%) लगभग ₹1,15,000 करोड़ के आयात के माध्यम से पूरा किया गया, जिसमें पाम ऑयल (57%), सोयाबीन तेल (22%), सूरजमुखी तेल (15%) और कुछ मात्रा में कैनोला गुणवत्ता वाला सरसों का तेल शामिल थे। - वर्ष 2022-23 में कुल खाद्य तेल मांग का 155.33 लाख टन (55.76%) आयात के माध्यम से पूरा किया गया। - भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है, ध्यातव्य है की भारत की वनस्पति तेल की खपत में  40% हिस्सेदारी पाम ऑयल की है। - भारत अपनी वार्षिक 8.3 मीट्रिक टन पाम ऑयल ज़रूरत का आधा हिस्सा इंडोनेशिया से पूरा करता है। - वर्ष 2021 में भारत ने घरेलू पाम तेल उत्पादन को बढ़ावा देने के लि��े राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम (National Mission on Edible Oil-Oil Palm) का अनावरण किया। आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM ) फसलें - GM फसलों के जीन कृत्रिम रूप से संशोधित किये जाते हैं, आमतौर इसमें किसी अन्य फसल से आनुवंशिक गुणों जैसे- उपज में वृद्धि, खरपतवार के प्रति सहिष्णुता, रोग या सूखे से  प्रतिरोध, या बेहतर पोषण मूल्य का समामेलन किया जा सके। - इससे पहले, भारत ने केवल एक GM फसल, BT कपास की व्यावसायिक खेती को मंज़ूरी दी थी, लेकिन GEAC ने व्यावसायिक उपयोग के लिये GM सरसों की सिफारिश की है। GM सरसों - धारा मस्टर्ड हाइब्रिड-11 (DMH-11) एक स्वदेशी रूप से विकसित ट्रांसजेनिक सरसों है। यह हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) सरसों का आनुवंशिक रूप से संशोधित संस्करण है। - DMH-11 भारतीय सरसों की किस्म 'वरुणा' और पूर्वी यूरोपीय 'अर्ली हीरा-2' सरसों के बीच संकरण का परिणाम है। - इसमें दो एलियन जीन ('बार्नेज' और 'बारस्टार') शामिल होते हैं जो बैसिलस एमाइलोलिफेशियन्स (Bacillus amyloliquefaciens) नामक मृदा जीवाणु से पृथक किये जाते हैं जो उच्च उपज वाली वाणिज्यिक सरसों की संकर प्रजाति विकसित करने में सहायक है। - DMH-11 ने राष्ट्रीय सीमा की तुलना में लगभग 28% अधिक और क्षेत्रीय सीमा की तुलना में 37% अधिक उपज प्रदर्शित है और इसके उपयोग का दावा तथा अनुमोदन GEAC द्वारा अनुमोदित किया गया है। - "बार जीन" संकर बीज की आनुवंशिक शुद्धता को बनाए रखता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति - जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत कार्य करती है। - यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों तथा पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से जुड़ी गतिविधियों के मूल्यांकन हेतु उत्तरदायी है। - समिति प्रायोगिक क्षेत्र परीक्षणों सहित पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GE) जीवों और उत्पादों को जारी करने से संबंधित प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिये भी उत्तरदायी है। - GEAC की अध्यक्षता MoEF&CC के विशेष सचिव/अपर सचिव द्वारा की जाती है और सह-अध्यक्षता जैवप्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के एक प्रतिनिधि द्वारा की जाती है। - वर्तमान में, इसके 24 सदस्य हैं और ऊपर बताए गए क्षेत्रों में अनुप्रयोगों की समीक्षा के लिये प्रत्येक माह बैठक होती है। Read the full article
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igamravatirange · 11 months
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Post#15
करोड़ों लोगों की तरह मेरी भी कर्मभूमि मुंबई है। मुंबई पर मेरा पारंपरिक अधिकार है, ऐसा मैं मानता हूँ। परिंचे से ११ किलोमीटर की दूरी पर स्थित वाल्हे रेलवे स्टेशन, परिंचे के लोगों के लिए बड़ा वरदान था। गठरी बांधकर चलते हुए वाल्हे पहुँच जाते। वहाँ से पैसेंजर से सीधे बोरीबंदर उतरते। किसी मूर्तिकार को उच्चकोटि का पत्थर मिल जाए और वह उसका रूपांतरण, मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रतिमा में कर दे, कुछ ऐसा ही मुंबई शहर का हाल है। अंग्रेजों को यह प्राकृतिक बंदरगाह बिल्कुल ख़ाली मिला और उन्होंने मनमाफ़िक ढंग से उसे बसाया। इस शहर के विकास में दो प्रकार के व्यापार की मुख्य भूमिका थी। पहला था, सर्वश्रुत कपास का व्यापार। मैंचेस्टर की कपड़ा मिलों को लगने वाले कच्चे कपास की गांठें, यहाँ से जातीं और वहाँ से बाज़ार में बेचने के लिए तैयार कपड़े लाए जाते। दूसरा और बेहद कम लोगों को पता व्यापार था, अफ़ीम का। अमर फ़ारूकी की किताब ‘द ओपियम सिटी’ पढ़कर अफ़ीम के व्यापार से बड़े बने लोगों के बारे में पता चलता है।
आज़ादी से पहले ही मेरे दादाजी धोंडिबा ने, वाल्हे से पैसेंजर पकड़ी और मुसाफ़िरी करने मुंबई पहुँच गए। उस समय की ट्राम कंपनी में, जो आज ‘बेस्ट’ के नाम से प्रसिद्ध है, बतौर कंडक्टर काम करने लगे और डिलाइल रोड की बी.डी.डी. चाल में अपना संसार बसा लिया। डिलाइल रोड में ही दादा, हौसा बुआ और मारूति अन्ना का जन्म हुआ और उनकी प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा भी यहीं से हुई। सेवानिवृति के बाद दादाजी ने मुंबई में अपनी मिल्कियत की जगह खरीदने के बजाय, १९६० के आस-पास परिवार के साथ मुंबई छोड़कर गाँव जाने का ग़लत निर्णय लिया। उन्होंने सेवानिवृति के पैसे से परिंचे में ज़मीन खरीदने, कुआं खोदने का काम कर खेती करने का असफल प्रयास किया। इसका नतीजा यह हुआ कि मेरे पिताजी को अगले बीस साल, अपने दूर के पटीदार पिराजी हवलदार के दादर के सर भालचंद्र मार्ग पर स्थित, पुलिस क्वार्टर में पेइंग-गेस्ट बनकर रहना पड़ा।
दादा दादर की टाटा मिल में नॉन ओवन विभाग में मिल कामगार की नौकरी करते थे। शायद सुरेश मामा में, ढंग से नौकरी न करने के अवगुण का संचार हमारे पिता, जगन्नाथ दादा से प्रेरणा लेकर हुआ होगा। सुरेश मामा की तरह दादा को भी नौकरी में कोई प्रमोशन नहीं मिला। हमेशा सामाजिक काम, दूसरों की समस्याओं का समाधान करने और नेतागिरी करने में पेइंग-गेस्ट ही बने रहे। दादा बीस साल तक सामर्थ्य से बाहर, आब-ओ-दाना-आशियाना ढूँढ़ते रहे। आख़िरकार १९८० में कुर्ला में म्हाडा के बनाए एल.आई.जी. टाइप के घर की लॉटरी लग गई और हमें १८,००० रुपए में, अपनी मिल्कियत का वन-रूम-किचन घर मिल गया। कुर्ला पश्चिम में विनोबा भावे नगर, एल.आई.जी. कॉलोनी, बिल्डिंग क्रमाँक २३, खोली क्रमाँक १३ हमारा पता था। सी-आकार की एक-दूसरे से जुड़ी चार मंज़िला इमारतों के पाँच क्लस्टर्स थे।
बारहवीं की परीक्षा ख़त्म होने के बाद, गाँव से छुट्टियों में कुर्ला आया था। मशहूर युनियन लिडर दत्ता सामंत ने मिल मज़दूरों की हड़ताल की थी, जिससे दादा की मिल बंद थी। दादा दिन भर न जाने कहाँ-कहाँ घूमते रहते थे। तीसरी मंज़िल पर स्थित हमारे कमरे की खिड़की पश्चिम दिशा में खुलती थी। लोकेशन बेहतरीन था। घर ख़ाली-ख़ाली दिखता था, इसलिए मेरे स्कूल दोस्त राजा शितोले दादर में फ़र्नीचर की जिस दुकान में काम करते थे, वहाँ से लोहे की चारपाई बनवाई गई।
जब पता चला की पुणे का मेरा मित्र विनायक दराडे, गोरेगाँव में अपनी बहन के पास रहता है, तो एक बार उससे मिलने गया, लेकिन वह घर पर नहीं था। उसकी बहन ने बताया कि वह कॉलेज गया है। कॉलेज का पता ले लिया। उसने विलेपार्ले में, श्री भगुभाई मफतलाल पॉलिटेक्निक (एस.बी.एम.पी.) में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाख़िला लिया था। मुझे कॉलेज बहुत पसंद आया। कुछ दिन बाद बारहवीं में ५८% अंक मिलने पर, मैं मन में गिल्ट लिए मुंबई के कुर्ला स्थित घर पर, स्थायी रूप से रहने के लिए आया। दसवीं के अंकों के आधार पर विनायक के कॉलेज में डिप्लोमा कोर्स के लिए आवेदन किया। पहली सूची में ही इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के लिए नाम आ जाने से, मैं बेहद ख़ुश हो गया। दूसरे दिन, १३५ रुपए भर कर प्रवेश लेना था। दादा मुंबई में नहीं थे और मारूति चाचा इतने पैसे का इंतजाम नहीं कर पाए। मैं दोपहर से शाम तक बिनावजह कॉलेज में रुका रहा। डोडेचा और कांगा नामक दो शिक्षक प्रवेश प्रक्रिया का ज़िम्मा संभाल रहे थे। मैंने उनसे पैसे भरने के लिए एक दिन की मोहलत माँगी, लेकिन उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि, यदि शाम तक पैसे नहीं भरे गए, तो दूसरे दिन वेटिंग लिस्ट के विद्यार्थी को वह जगह मिल जाएगी। मैं मुंबई में अकेला था, किससे पैसा माँगा जाए? कुछ पता नहीं था। नाराज़ होकर, मैं घर आ गया और रोते हुए सो गया।
उस समय कुछ दिनों के लिए वसंत पोल और उसका बड़ा भाई राजू हमारे कुर्ला के घर रह रहे थे। राजू पोस्टमैन था, उसकी पगार हुई और मारुति अन्ना, राजू के साथ मैं लिस्ट लगने के तीसरे दिन, पैसे लेकर भगुभाई कॉलेज में हम पहुँच गये। बहुत आग्रह किया, लेकिन निर्धारित समय पर फीस न भरने के कारण प्रवेश रद्द हो गया था। हम परेशान होकर, कॉलेज के गेट के पास बने पुतले के बग़ल में बैठे थे। तभी इर्ला बीट का पोस्टमैन डाक बाँटने कॉलेज में आया। राजू ने उसे पकडा और, अपनी पहचान और मेरी समस्या उसे बताई। वह पोस्टमैन राजू को कॉलेज के कैशियर लक्ष्मण के पास लेकर गया। लक्ष्मण ने सारी समस्या सुनी और वे तीनों किसी अज्ञात स्थान पर गए।
कुछ देर बाद वे तीनों और कॉलेज में मेट्रोलॉजी पढ़ाने वाले साठे नाम के शिक्षक, हाथ में सूची लिए आए। उन्होंने पूछा, प्लास्टिक्स इंजीनियरिंग में प्रवेश मिल जाए तो चलेगा क्या? बैगर्स आर नो चूज़र्स, मुझे बस प्रवेश पाने से मतलब था। चाचा ने तुरंत १३५ रुपए भर दिए और प्लास्टिक्स इंजीनियरिंग में मेरा प्रवेश पक्का हो गया। १३५ रुपए में भगुभाई में प्रवेश लिया। पत्नी, रीना से यहीं मुलाक़ात हुई। इसी तरह ताउम्र के जिगरी दोस्त मिलिंद, महेश, मुकेश, विद्याधर, दिनेश, संजय मिले। इंजीनियरिंग में करियर नहीं बनाया, लेकिन वैयक्तिक जीवन की दृष्टि से यह सौदा सस्ता पड़ा।
-Jayant Naiknavare, IPS
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khetikisaniwala · 11 months
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आईये जानते है की Kapas Kya Hota Hai? और इसके Top 15 फायदे
परिचय
आपने सुना होगा की बाजार में कपास के तार और कपास (Cotton)देखने को मिलते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि Kapas Kya Hota Hai (कपास क्या होता है) और इसके फायदे क्या हैं? यदि आप भी इसके बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो आप बिल्कुल सही जगह पर हैं। इस Post में हम आपको कपास के बारे में विस्तार से बताएंगे और आपको इसके Top- 15 फायदों के बारे में भी बताएंगे।
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आइए जानें Kapas Kya Hota Hai (कपास क्या होता है) ?
अगर हम विज्ञान की बात करें तो कपास, जिसे अंग्रेजी में 'Cotton' कहा जाता है, एक सूक्ष्म रेशा होती है जो कपास की खेती में प्राप्त की जाती है। कपास की पैदावार कर्मचारियों के द्वारा की जाती है जो इसे ध्यानपूर्वक उगाते हैं। कपास को अलग करने के बाद, यह काटी जाती है और इसके बाद उसे धोया और साफ किया जाता है। इसके बाद, इसे ढलाई या मशीनों के उपयोग से अलग किया जाता है ताके कपास को रूपांतरित किया जा सके। कपास का उपयोग वस्त्र उद्योग, चारधारा, औषधीय उपयोग, और अन्य उद्योगों में किया जाता है।
कपास के Top 15 फायदे
यहां हम आपको कपास के Top- 15 फायदों के बारे में बता रहे हैं:
1. स्वास्थ्य के लिए लाभदायक
कपास के कपड़ों का उपयोग आपके त्वचा के लिए बहुत लाभदायक होता है। यह मुलायम और सुंदर कपड़ों का निर्माण करता है जो आपको ठंड में गर्म रखता है और त्वचा को स्वस्थ बनाये रखता है।
2. पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता
कपास की खेती एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाती है। कपास की उत्पादन में विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि यह पर्यावरण के लिए हानिकारक पदार्थों से मुक्त रहे।
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3. आर्थिक संप्रभुता
कपास की खेती एक मुख्य आय स्रोत हो सकती है जो ग्रामीण क्षेत्रों के लिए आर्थिक संप्रभुता लाती है। इसके साथ ही, कपास के उत्पादन से संबंधित उद्योग भी रोजगार का निर्माण करते हैं, जिससे आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
4. कपास के उपयोग का विस्तार
कपास का उपयोग सिर्फ वस्त्र निर्माण तक ही सीमित नहीं होता है। इसका उपयोग चारधारा, तार, रस्सी, तारपाया, रस्सी आदि के निर्माण में भी किया जाता है।
5. प्राकृतिक रंगों में सुंदरता
कपास की तार का उपयोग रंगों के निर्माण में किया जाता है। इससे अद्भुत प्राकृतिक रंगों की प्राप्ति होती है जो वस्त्रों को अत्यधिक सुंदर बनाते हैं।
6. शुद्धता और सुरक्षा
कपास के कपड़ों का उपयोग करने से आपकी त्वचा सुरक्षित रहती है और आपको धूल और कीटाणुओं से बचाती है। यह अन्य संशोधित या केमिकल सामग्रियों से बने कपड़ों की तुलना में अधिक शुद्ध होता है।
7. कपास के वित्तीय लाभ
कपास की खेती से किसानों को वित्तीय लाभ मिलता है। यह उचित मूल्य पर बिकता है और किसानों को मार्केट में अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है।
8. संरक्षण का साधनिक उपाय
कपास एक अच्छा संरक्षण साधन भी हो सकती है। इसका उपयोग उत्पादों को रखने और पैक करने में किया जा सकता है, जो उन्हें कीटाणुओं, फफूंदों और नमकीन पानी से बचाता है।
9. परंपरागत संगणकों की संरक्षणा
कपास का उपयोग परंपरागत संगणकों की संरक्षा में भी किया जाता है। इसकी तार का उपयोग किसी भी अंधकार और तापमान पर प्रकाश संगणकों को सुरक्षित रखने के लिए किया जा सकता है।
10. कपास का उपयोग औषधीय उद्योग में
कपास का उपयोग विभिन्न औषधीय उद्योगों में भी किया जाता है। इसकी फाइबर्स का उपयोग विभिन्न दवाओं और स्वास्थ्य सप्लीमेंट में किया जाता है।
11. वातावरण संरक्षण
कपास की खेती वातावरण के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कपास की उत्पादन प्रक्रिया में केवल प्राकृतिक तत्वों का ही उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरण के लिए अच्छा होता है।
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12. कपास की आवश्यकता
कपास विश्व भर में उपयोग होने वाली मुख्य कृषि फसलों में से एक है। इसकी मांग वस्त्र उद्योग, टेक्सटाइल उद्योग, औषधीय उपयोग, और अन्य उद्योगों में बढ़ती जा रही है।
13. कृषि विकास के लिए महत्वपूर्ण
कपास की खेती कृषि विकास के लिए महत्वपूर्ण है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करती है और किसानों को आर्थिक स्वावलंबी बनाने में मदद करती है।
14. क्षेत्रीय विकास का सहारा
कपास की खेती क्षेत्रीय विकास के लिए एक महत्वपूर्ण सहारा साबित हो सकती है। यह क्षेत्रीय आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती है और सामाजिक व आर्थिक समानता में मदद करती है।
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mandirate · 1 year
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कपास की खेती | मंडी रेट
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कपास की उन्नत खेती के लिए एक उचित मिट्टी का चयन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। कपास उन्नत खेती के लिए अलग-अलग भौगोलिक, जलवायु और मौसमी शर्तों की आवश्यकता होती है। 
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cartoonistpm · 1 year
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ये कपास की खेती का नया तरीका हो सकता है😜? #winter #funnyquotes #hindiquotes #cartoonistprakash https://www.instagram.com/p/CoHBYtRPBGs/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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kisanofindia · 10 months
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Farming Tractors: इन 5 बेहतरीन ट्रैक्टर्स का इस्तेमाल कर अपनी खरीफ़ फसलों की पैदावार बढ़ाएं
खरीफ़ फसलों के लिए 5 बेहतरीन ट्रैक्टर्स
गेस्ट ब्लॉग: TractorKarvan | ट्रैक्टर, विज्ञान और तकनीक की एक ऐसी देन है, जिसने अपने शुरुआत से आज तक कृषि कार्यों को आसान और उन्नत तरीके से करने में अपनी अहम भूमिका निभायी है। जानिए ऐसे 5 बेहतरीन ट्रैक्टर्स के बारे में, जिससे आप उन्नत तरीके से कृषि कार्यों को कर खरीफ़ फसलों की पैदावार बढ़ा सकते हैं।
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Top 5 Tractors for Farming: (खेती से जुड़े कार्यों के लिए 5 बेहतरीन ट्रैक्टर्स) | भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी दो-तिहाई आबादी आज भी अपने जीवन यापन के लिए कृषि पर निर्भर है। कृषि प्राथमिक क्रिया है, जो हमारे लिए अधिकांश खाद्यान्न पैदा करती है। इसके साथ ही कृषि पर कच्चे माल के लिए विभिन्न उद्योग भी निर्भर हैं।भारत में मौसम के आधार पर फसलों को तीन प्रकारों में बांटा गया है:
रबी (नवम��बर से मार्च)
खरीफ़ (जुलाई से अक्टूबर)
जायद (अप्रैल से जून)
तीनों प्रकारों में से खरीफ़ सीज़न का भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे ज़्यादा महत्व है। इस सीज़न के दौरान बोई जाने वाली फ़सलें खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोज़गार और आय सृजन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, दालें, तिलहन, कपास, गन्ना और जूट सहित ये फसलें विभिन्न तरीकों से भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
अगर नयी तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए खरीफ़ फसलों की खेती की जाए, तो उत्पादन की बढ़ोतरी होगी और इनका अर्थव्यवस्था में योगदान और भी बढ़ जाएगा। ट्रैक्टर, विज्ञान और तकनीक की एक ऐसी देन है, जिसने अपने शुरुआत से आज तक कृषि कार्यों को आसान और उन्नत तरीके से करने में अपनी अहम भूमिका निभायी है। फसल बुआई से लेकर कटाई तक के कार्यों के लिए आवश्यक हर प्रकार के इम्प्लीमेंट्स को चलाने में ट्रैक्टर का अहम योगदान होता है। आज हम इस आर्टिकल में ऐसे 5 बेहतरीन ट्रैक्टर्स की बात करेंगे, जिससे आप उन्नत तरीके से कृषि कार्यों को कर खरीफ़ फसलों की पैदावार बढ़ा सकते हैं।
खरीफ़ फसलों के लिए 5 बेहतरीन ट्रैक्टर्स
खेती के लिए मिट्टी की तैयारी, बीज बुआई से लेकर अनाज को मंडी ले जाने तक ट्रैक्टर अहम भूमिका अदा करते हैं। ट्रैक्टर्स से जोड़कर किसान विभिन्न प्रकार के कृषि इम्प्लीमेंट्स जैसे कि कल्टीवेटर, रोटावेटर, एमबी प्लाऊ, पडलर और अन्य इम्प्लीमेंट्स चला सकते हैं। नीचे दिए गए 5 बेहतरीन ट्रैक्टर्स, न केवल आपकी खरीफ़ फसलों के लिए आवश्यक हर ज़रूरतों को पूरा करेंगे, बल्कि ये कीमत के हिसाब से भी आपके बजट के अनुकूल हैं।
स्वराज 735 FE
स्वराज 735 FE (Swaraj 735 FE) एक पॉवरफुल और मल्टी-टास्किंग ट्रैक्टर है, जो खरीफ़ फसलों से संबंधित कृषि गतिविधियों के लिए उपयुक्त है। ये ट्रैक्टर 35-40 हॉर्स पॉवर इंजन के साथ आता है, जो जुताई, बुआई, जैसे भारी-भरकम कार्यों के लिए आवश्यक इम्प्लीमेंट्स को आसानी से चलाने में सक्षम है। इसमें 3-सिलेंडर इंजन है, जो ईंधन की बचत भी करते हैं। इस ट्रैक्टर का ERPM रेटिंग 1800 RPM है, जो सामान्य से अधिक है। यानी इसमें अधिक फ्यूल बर्न होगा और पॉवर भी ज़्यादा देगा। जहां तक इसकी कीमत का सवाल है, तो ये आपको 7 लाख* से 8 लाख* रूपये के प्राइस रेंज में मिल जाएगा।
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merikheti · 2 years
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महाराष्ट्रः विदर्भ, मराठवाड़ा में फसलें जलमग्न, किसानों के सपनों पर फिरा पानी
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नांदेड़, हिंगोली, लातूर और बीड में नुकसान
गढ़चिरौली, नागपुर, बुलढाणा जिलों में सोयाबीन, कपास की खेती प्रभावित
देश के राज्यों में मौसम के बदले मिजाज ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। कई राज्यों में पिछले रिकॉर्ड के अनुसार देर से बारिश शुरू होने से खरीफ की फसल लेट चल रही है, तो महाराष्ट्र में इतनी बारिश हुई कि किसानों की खेती पर संकट खड़ा हो गया।
महाराष्ट्र के किसानों से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रदेश में भारी बारिश ने किसानों के सपनों पर पानी फेर दिया है। सूत्र आधारित सूचना के अनुसार महाराष्ट्र राज्य में आठ लाख हेक्येटर भूमि खेतों में लगी फसल पानी के कारण खराब हो गई।
इंडियन एक्सप्रेस ने कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से महाराष्ट्र में भारी बारिश से फसलों के बारे में न्यूज रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार कुछ जिलों और तालुका में भारी बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति निर्मित हुई। खेतों में बाढ़ का पानी भरने से फसलों को खासा नुकसान हुआ। प्रदेश के मराठवाड़ा और विदर्भ के इलाकों में मिट्टी का कटाव होने से नुकसान ज्यादा होने की आशंका है।
प्रदेश में किसानों को हुआ नुकसान छिन्न-भिन्न स्थिति में हैं। विभागीय सरकारी स्तर पर यह नुकसान फिलहाल कुछ जिलों तक ही सीमित होने की बात कही गई है।
कहर बनकर बरपा जुलाई
महाराष्ट्र के किसानो�� के लिए जुलाई का महीना कहर बनकर बरपा। इस महीने के तीसरे सप्ताहांत में हुई भारी बारिश ने खेतों को तगड़ा नुकसान पहुंचाया। कृषि विभाग से प्राप्त सूत्र आधारित सूचना के अनुसार महाराष्ट्र राज्य में आठ लाख हेक्येटर भूमि खेतों में लगी फसल पानी के कारण खराब हो गई।
आईएमडी ने दी चेतावनी
फिलहाल किसानों की परेशानी कम होती नहीं दिख रही है क्योंकि, मौसम विभाग ने संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD – INDIA METEOROLOGICAL DEPARTMENT) ने उत्तरी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, विदर्भ और कुछ क्षेत्रों में आगामी एक सप्ताह तक अति बारिश का पूर्वानुमान व्यक्त किया है। एक सप्ताह लगातार हुई बारिश के बाद मिली राहत के बाद तटीय कोंकण में फिर एक बार मध्यम बारिश की संभावना जताई गई है।
ये भी पढ़ें: भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दी किसानों को सलाह, कैसे करें मानसून में फसलों और जानवरों की देखभाल
कितना पिछड़ी महाराष्ट्र में खेती
सामान्य मानसून की स्थिति में पिछले रिकॉर्ड्स के मान से महाराष्ट्र में अब तक डेढ़ सौ (152) लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में किसान बुवाई कर चुके होते।
जून के महीने में ही महाराष्ट्र में आमद दर्ज कराने वाले मॉनसून से किसानों को जो आस बंधी थी, वह बारिश में देरी होने के कारण काफूर हो गई। बारिश में देरी के कारण बुवाई के लिए खेत तैयार करने के लिए किसान लगातार चिंतित रहे। कृषि मंत्रालय ने भी किसानों को पर्याप्त बारिश होने पर ही बुवाई करने की सलाह दी थी।
जुलाई के पहले सप्ताह में हुई बारिश के बाद किसानों ने खेत में देर से बुवाई कार्य किया। पहले जिस बारिश ने किसान को बुवाई के लिए तरसाया उसी बारिश ने जुलाई के मध्य सप्ताहों में ऐसा तेज रुख अख्तियार किया कि किसानों के पास खेत में खराब होती फसलों के देखने के सिवाय कोई और चारा नहीं था।
उप-मुख्यमंत्री फडणवीस ने दिए निर्देश
उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से किसानों ने बाढ़ से हुए फसल के नुकसान का मुआवजा प्रदान कर अगली फसल के लिए सहायता एवं राहत प्रदान करने की मांग की है।
सोयाबीन सड़ी, कपास डूबी
महाराष्ट्र में विदर्भ का इलाका सोयाबीन और कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध है। यहां भंडारा, गोंदिया, वर्धा, चंद्रपुर, गढ़चिरौली, नागपुर, अमरावती, यवतमाल और बुलढाणा जिलों में भारी बारिश के कारण किसानों ने नुकसान की जानकारी दी है।
ये भी पढ़ें: सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन
मराठवाड़ा में नुकसान
मराठवाड़ा के लगभग सभी प्रमुख जिलों में भारी वर्षा के कारण कृषि उपज को नुकसान हुआ है। यहां नांदेड़, हिंगोली, लातूर और बीड जिलों में तेज बारिश से भारी बारिश होने की जानकारियां सामने आई हैं।
महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भारी बारिश से प्रभावित संबंधित जिलों के प्रशासनिक अमले को नुकसान का आंकलन कर मुआवजा राशि तय करने के लिए निर्देशित किया है।
ये भी पढ़ें: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को क्या है फायदा
नुकसान जांचने में परेशानी
महाराष्ट्र में तेज बारिश से हुए नुकसान का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि, बाढ़ की स्थिति के कारण प्रदेश में कई गांवों से संपर्क टूट गया है। संपर्क टूटने के कारण फील्ड अधिकारी एवं उनके मातहत बाढ़ एवं डूब प्रभावित इलाकों के किसानों के खेतों, मकानों में हुए नुकसान का आंकलन करने में असमर्थ हैं।
source महाराष्ट्रः विदर्भ, मराठवाड़ा में फसलें जलमग्न, किसानों के सपनों पर फिरा पानी
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worldinyourpalm · 1 year
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जीएम सरसों पर प्रतिबंध से भारतीय किसानों को नुकसान सुप्रीम कोर्ट को विचारधारा के ऊपर विज्ञान को चुनना चाहिए | Indian farmers suffer from the GM mustard ban. The Supreme Court must favour science over dogma;
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Source: theleaflet.in
पिछले दो दशकों से जीएम तकनीक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने जीएम सरसों की रिहाई की मांग वाली अर्जी को स्वीकार करते हुए किसान संघ शेतकरी संगठन से ���ूछा, 'आप इतने साल कहां थे?'
जैसा कि सुप्रीम कोर्ट एक ऐसे मामले पर विचार-विमर्श कर रहा है जो भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों के भाग्य का निर्धारण कर सकता है, एक किसान निकाय भारत की शीर्ष अदालत में अपनी आवाज सुनने का प्रयास कर रहा है।
महाराष्ट्र स्थित किसान संघ, शेतकरी संगठन, सामाजिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स द्वारा दायर याचिका का विरोध कर रहा है। बीटी कपास के साथ अपने अनुभव के आधार पर, किसानों का तर्क है कि जीएम सरसों में खाद्य उत्पादन बढ़ाने और उनकी आजीविका में सुधार करने की क्षमता है।
भले ही उनके आवेदन को 17 नवंबर 2022 को रिकॉर्ड में ले लिया गया, लेकिन यह निराशाजनक है कि जिन किसानों की खेल में सबसे अधिक चमड़ी है, उन्हें अब तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा नहीं सुना गया है।
जीएम सरसों की रिहाई की वकालत करने वाले आवेदन को स्वीकार करते हुए पीठ ने पूछा, 'आप इतने सालों में कहां थे?' यह सवाल जीएम की रिहाई के लिए और उसके खिलाफ लड़ने वालों के बीच संसाधनों और शक्ति में असमानता को ध्यान में रखने में विफल रहता है। सरसों।
कार्यकर्ता, अदालत का दरवाजा खटखटाने और अपना मामला बनाने के साधनों के साथ, पिछले दो दशकों से जीएम तकनीक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर जोर दे रहे हैं। इस बीच, जिन किसानों को बहुत अधिक लाभ होने वाला है, वे रोजी-रोटी कमाने के दैनिक संघर्ष में व्यस्त हैं। क्या प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से एक बेहतर जीवन चुनने का किसान का अधिकार संसाधनों की कमी और कानूनी रास्ते तक पहुंच से बाधित होना चाहिए?
जीएम फसलों पर प्रतिबंध
पिछले 18 वर्षों से जीएम फसलों का व्यावसायिक उपयोग अधर में लटका हुआ है। 2002 में व्यावसायिक खेती के लिए पहली बार पेश किए जाने के बाद से ही ये फसलें भारत में बहस का एक विवादास्पद विषय रही हैं। अरुणा रोड्रिग्स और अन्य के साथ एक गैर सरकारी संगठन जीन कैंपेन ने 2004 में जीएम जीवों के उपयोग को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की थी। जीएम सरसों इनका ताजा शिकार है।
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित, जीएम सरसों में कृषि में क्रांति लाने और किसानों की आजीविका में सुधार करने की क्षमता है। हालांकि, कार्यकर्ताओं ने दावा किया है कि यह पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है। दूसरी ओर, किसानों का तर्क है कि प्रतिबंध कृषिविदों के लिए एक बड़ा झटका है और उन्हें अन्य देशों के किसानों की तुलना में नुकसान में डाल देगा जो पहले से ही जीएम तकनीक का उपयोग कर रहे हैं।
आजीविका में सुधार के अलावा, किसानों का मानना ​​है कि जीएम तकनीक उन्हें बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल बनाने, टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने में मदद कर सकती है। संगठन ने अपने आवेदन में शीर्ष अदालत से किसानों और कृषि उद्योग के लिए जीएम सरसों के लाभों पर विचार करने का आग्रह किया है। इस तरह की तकनीकों पर प्रतिबंध किसानों को और नुकसान पहुंचाएगा, खासकर भारत के शुष्क क्षेत्रों में, जहां पारंपरिक खेती के तरीके अपर्याप्त साबित हुए हैं। संगठन ने इस बात पर जोर दिया कि याचिकाकर्ताओं के अप्रमाणित और अंधविश्वासी विश्वासों के कारण किसानों को प्रौद्योगिकी का उपयोग करने से नहीं रोका जाना चाहिए। जीएम फसलें पैदावार बढ़ा सकती हैं और उत्पादन लागत कम कर सकती हैं, जिससे अधिक मुनाफा हो सकता है।......
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किसानों की बढ़ी मुश्किल, कपास को लेकर नई मुसीबत का सामना कर रहे हैं इसकी खेती करने वाले लोग
किसानों की बढ़ी मुश्किल, कपास को लेकर नई मुसीबत का सामना कर रहे हैं इसकी खेती करने वाले लोग
नंदुरबार जिले में कई किसानों द्वारा काटकर रखी गई कपास की फसल रात के समय चोरी हो जा रही है. चोरों के बढ़ते खतरे से किसानों में भय का माहौल है. उनका नुकसान हो रहा है. वहीं दूसरी ओर कई जिलों में फसल कटाई के लिए मज़दूरों की कमी पड़ रही है. इससे किसान संकट में हैं. कपास उत्पादकों की बढ़ी समस्या Image Credit source: TV9 Digital महाराष्ट्र में इस साल कपास उत्पादकों की समस्या बढ़ती ही जा रही है. कभी बेमौसम…
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shriramfarmsoutions · 2 months
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Shriram Sprayit Cotton: Profitable, Healthy Crop
खेती के विशेषज्ञ डॉ। दिवाकर राय और हिसार के विजेंदर कुमार से "श्रीराम स्प्रेइट कॉटन" का उपयोग करने के कपास में लाभों की जानकारी प्राप्त करें। सही तरीके, मात्रा, और स्प्रे अंतराल के बारे में जानकारी प्राप्त करें। एक लाभकारी, स्वस्थ कपास की फसल सुनिश्चित करने के लिए वीडियो देखें।
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