Formal Police Blues Scene in Season 10 ✅
This season is already shaping off to be a good one!
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धान की खेती: रोग और कीटों का उन्नत प्रबंधन करें - सही तरीका
धान की फसल में समय रहते रोग-कीटों का प्रबंधन करना ज़रूरी है
चावल की खपत सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बहुत अधिक है। ऐसे में वैश्विक आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पैदावार बढ़ाना ज़रूरी है, मगर कीट और रोग धान की खेती में बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।
धान हमारे देश की एक महत्वपूर्ण खरीफ़ फसल है। धान से ही चावल निकाला जाता है। देश के 36.95 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है, जिसकी वजह से भारत धान का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, ओडिशा, बिहार और छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है।
धान की खेती किसानों की आमदनी का सबसे अहम स्रोत है, लेकिन कई बार कीटों और बीमारियों के कारण फसल को बहुत नुकसान पहुंचता है, जिसकी वजह से किसानों को मुनाफे की बजाय नुकसान उठाना पड़ जाता है। ऐसे में धान की फसल में सही कीट प्रबंधन बहुत ज़रूरी है। इसके लिए किसानों को धान में लगने वाले रोग और कीटों की जानकारी होनी चाहिए, साथ ही साथ उसे नियंत्रित करने का तरीका भी पता होना चाहिए। आइए, जानते हैं धान में लगने वाले प्रमुख रोग व कीट के नियंत्रण के तरीके।पुरा पढने के लिए
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Seed Drill Farming Of Paddy: धान की सीधी बुआई तकनीक का आसान मतलब है कम लागत में अधिक उत्पादन
सीधी बुआई तकनीक की सफलता के लिए इसकी सही विधियों को अपनाना और सही समय से बुआई करना बेहद ज़रूरी है
धान की सीधी बुआई तकनीक से 20 प्रतिशत सिंचाई और श्रम की बचत होती है। यानी, कम लागत में धान की ज़्यादा पैदावार और अधिक कमाई। इस तकनीक से मिट्टी की सेहत में भी सुधार होता है, क्योंकि पिछली फसल का अवशेष वापस खेत में ही पहुँचकर उसमें मौजूद कार्बनिक तत्वों की मात्रा में इज़ाफ़ा करता है। इस तकनीक से धान की फसल भी 10 से 15 दिन पहले ही पककर तैयार हो जाती है। खरीफ मौसम में धान की सीधी बुआई को मॉनसून के दस्तक देने से 10-12 दिन पहले करना बहुत उपयोगी साबित होता है।
परम्परागत तरीके से धान की खेती भले ही सदियों से होती चली आ रही है, लेकिन नयी तकनीकों और मशीनीकरण के मौजूदा दौर में सीधी बुआई की आधुनिक तकनीक का जबाब नहीं, क्योंकि इससे 20 प्रतिशत सिंचाई और श्रम की बचत होती है। इसका साफ़ मतलब है कि कम लागत में धान की ज़्यादा पैदावार और अधिक कमाई। धान की सीधी बुआई की तकनीक से मिट्टी की सेहत में भी सुधार होता। लेकिन सीधी बुआई तकनीक की सफलता के लिए इसकी सही विधियों को अपनाना और सही समय से बुआई करना बेहद ज़रूरी है।
धान की सीधी बुआई तकनीक की सिर्फ़ एक ही चुनौती है कि इसमें खेत में खरपतवारों की अधिकता होती है। इसलिए जब धान की सीधी बुआई में उपयोगी उन्नत मशीनें सुलभ नहीं थीं और खरपतवार प्रबन्धन की व्यापक तकनीकें भी मौजूद नहीं थीं, तब धान की सीधी बुआई तकनीक को अपनाना ख़ासा मुश्किल था। लेकिन अब उन्नत किस्म की सीड ड्रिल मशीनें और कारहर खरपतवारनाशी उपलब्ध हैं इसीलिए किसानों को इनका भरपूर फ़ायदा उठाना चाहिए।
धान की सीधी बुआई से लाभ
सीड ड्रिल के ज़रिये धान की सीधी बुआई करने पर पलेवा और खेत की तैयारी में लगने वाले समय और श्रम की बचत होती है। धान की फसल भी 10 से 15 दिन पहले ही पककर तैयार हो जाती है। इससे किसानों को अगली फसल की तैयारी के लिए ज़्यादा वक़्त मिल जाता है और फसल चक्र को अपनाने में आसानी होती है। सीड ड्रिल विधि से मिट्टी की उपजाऊ परत का क्षरण (erosion) कम होता है। इस तकनीक में अचानक पड़ने वाले सूखे को झेलने की क्षमता भी कहीं ज़्यादा होती है।
सीधी बुआई के लिए सही बीज ही चुनें
किसी भी उन्नत और वैज्ञानिक तकनीक की तरह सीधी बुआई से धान की खेती करने से पहले सही किस्म के बीजों का चुनाव करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए उपयुक्त बीजों में ऐसे गुण होने चाहिए जिसके पौधे बुआई के बाद शुरुआती दौर में तेज़ी से बढ़ने वाले हों और जिन्हें ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती हो। इसके अलावा धान की अच्छी फसल के लिए बीज दर, बीज के बोये जाने की गहराई, बुआई का समय, बीजोपचार और खरपतवार नियंत्रण जैसी हरेक गतिविधि को सही ढंग से करना बेहद ज़रूरी है। इसी से ज़्यादा उपज मिलने के साथ लागत, पानी और मज़दूरी पर होने वाले खर्च की बचत होगी।
धान की उन्नत किस्में: JR 201, पूसा सुगन्धा 3, पूसा सुगन्धा 5, क्रान्ति, सोनम, पूसा बासमती, MTU 1010, तुलसी, वन्दना, पन्त 4, MR 219, WGL 32100, JGL 3844, HMT, शबनम, गोविन्दा, दुबराज और विष्णुभोग।
धान की हाइब्रिड किस्में: NPH 567, NPH 207, SBH 999, बायर 6129 , बायर 158, JRH-5, प्रो एग्रो-6201, PA 6444 और PHB 711.
सीधी बुआई विधि के लिए खेत की तैयारी
धान की सीधी बुआई के लिए लेजर लेवलर से खेत का समतलीकरण करना चाहिए।
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पंजाब में शुरू हुई धान की खरीदी, पहले दिन 8 फीसदी मंडियों में ही हुई आवक
पंजाब में शुरू हुई धान की खरीदी, पहले दिन 8 फीसदी मंडियों में ही हुई आवक
पंजाब में धान खरीदी के लिए कुल 2,153 मंडियां हैं, जिनमें 1,804 अधिसूचित और 349 अस्थायी अधिसूचित हैं.
मंडियों में धान की आवक शुरू हो गई है.
Image Credit source: file photo
खरीफ सीजन अपने पीक पर है. इसके साथ ही खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान की कटाई भी शुरू हाे गई है. जिसे देखते हुए पंजाब सरकार ने 1 अक्टूबर से धान की खरीद प्रक्रिया शुरू कर दी है. वहीं धान खरीदी प्रक्रिया शुरू होने के बाद किसान भी…
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นาขั้นบันได, Doi Inthanon
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Kharif Tips: बारिश में घर-बागान-खेत में उगाएं ये फसल-साग-सब्जी, यूं करें बचत व आय में बढ़ोतरी
इसे प्रकृति का मानसून ऑफर समझिये और अपने घर, बगिया, खेत में लगाएं मानसून की वो फसल साग-सब्जी, जिनसे न केवल घरेलू खर्च में हो कटौती, बल्कि खेत में लगाने से सुनिश्चित हो सके आय में बढ़ोतरी।
लेकिन यह जान लीजिये, ऐसा सिर्फ सही समय पर सही निर्णय, चुनाव और कुशल मेहनत से संभव है।
घर की रसोई, छत की बात करें, इससे पहले जान लेते हैं मानसून की फसल यानी खरीफ क्रॉप में मुख्य फसलों के बारे में। खरीफ की यदि कोई मुख्य फसल है तो वह है धान।
धान के उन्नत परंपरागत बीज मुफ्त प्रदान करने वाले केंद्र के बारे में जानिये
(Paddy Farming: किसानों को इस फार्म से मुफ्त में मिलते हैं पांरपरिक धान के दुर्लभ बीज)
जबलपुर निवासी, अनुभवी एवं प्रगतिशील युवा किसान ऋषिकेश मिश्रा बताते हैं कि, बारिश के सीजन में धान की रोपाई के लिए अनुकूल समय, बीज, रोपण के तरीके के साथ ही सिंचन के विकल्पों का होना जरूरी है।
ये भी पढ़ें: मध्यप्रदेश के केदार बाँट चुके हैं 17 राज्यों के हजारों लोगों को मुफ्त में देसी बीज
धान (dhaan) के लिए जरूरी टिप्स (Tips for Paddy)
खरीफ क्रॉप टिप्स (Kharif Crop Tips) की बात करें, तो वे बताते हैं कि शुरुआत में ही सारी जानकारी जुटा लें, जैसे खेत में ट्रैक्टर, नलकूप आदि के साथ ही कटाई आदि के ���िए पूर्व से मजदूरों को जुटाना, लाभ हासिल करने का बेहतर तरीका है।
समय पर डीएपी, यूरिया, सुपर फास्फेट, जिंक, पोटास आदि का प्रयोग लाभ कारी है। धान की प्रजाति की किस्म का चुनाव भी बहुत सावधानी से करना चाहिए।
ये भी पढ़ें: स्वर्ण शक्ति: धान की यह किस्म किसानों की तकदीर बदल देगी
ऋषिकेश बताते हैं कि, एक एकड़ के खेत में बोवनी से लेकर कटाई की मजदूरी, बिजली, पानी, ट्रैक्टर, डीजल आदि पर आने वाले खर्चों को मिलाकर, जुलाई से नवंबर तक के 4 से 5 महीनों के लगभग 23 से 24 हजार रुपये के कृषि निवेश से, औसतन 22 क्विंटल धान पैदा हो सकता है। मंडी में इसका समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल था। ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रति एकड़ पर 20 से 21 हजार रुपये की कमाई हो सकती है।
खरीफ सीजन की मेन क्रॉप धान की रोपाई वैसे तो हर हाल में जुलाई में पूर्ण कर लेना चाहिए, लेकिन लेट मानसून होने पर इसके लिए देरी भी की जा सकती है बशर्ते जरूरत पड़ने पर सिंचाई का पर्याप्त प्रबंध हो।
ये भी पढ़ें: तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)
कृषि के जानकारों की राय में, धान की खेती (Paddy Farming) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा को रोपाई के 58 दिन बाद प्रयोग करना चाहिए।
खरीफ कटाई का वक्त
जून-जुलाई में बोने के बाद, अक्टूबर के आसपास काटी जाने वाली फसलें खरीफ सीजन की फसलें कही जाती हैं। जिनको बोते समय अधिक तापमान और आर्द्रता के अलावा परिपक़्व होने, यानी पकते समय शुष्क वातावरण की जरूरत होती है।
घर और खेत के लिए सब्जियों के विकल्प
खरीफ की प्रमुख सब्जियों की बात करें तो भिंडी, टिंडा, तोरई/गिलकी, करेला, खीरा, लौकी, कद्दू, ग्वार फली, चौला फली के साथ ही घीया इसमें शामिल हैं।
इन बेलदार सब्जियों के पौधे घर की रसोई, दीवार से लेकर छत पर लगाकर महंगी सब्जियां खरीदने के खर्च में कटौती करने के साथ ही सेहत का ख्याल रखा जा सकता है।
ये भी पढ़ें: बारिश में लगाएंगे यह सब्जियां तो होगा तगड़ा उत्पादन, मिलेगा दमदार मुनाफा
वहीं किसान खेत के छोटे हिस्से में भिंडी, तोरई, कद्दू, करेला, खीरा, लौकी, के साथ ही फलीदार सब्जियों जैसे ग्वार फली लगाकर एक से सवा माह की इन सब्जियों से बेहतर रिटर्न हासिल कर सकते हैं।
साग-सब्जी टिप्स
घर में पानी की बोतल, छोटे मिट्टी, प्लास्टिक, धातु के बर्तनों में मिट्टी के जरिये जहां इन सब्जियों की बेलों को आकार दिया जा सकता है, वहीं खेत में मिश्रित खेती के तरीके से थोड़े, थोड़े अंतर पर रसोई के लिए अनिवार्य धनिया, अदरक जैसी जरूरी चीजें भी उगा सकते हैं। घरेलू उपयोग का धनिया तो इन दिनों घरों में भी लगाना एक तरह से नया ट्रेंड बनता जा रहा है।
source Kharif Tips: बारिश में घर-बागान-खेत में उगाएं ये फसल-साग-सब्जी, यूं करें बचत व आय में बढ़ोतरी
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Terraced rice fields in Vietnam
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Photo of my house (and other things)
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☘️Randy and Towelie☘️South Park/South Paws 🐾
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धान की खेती: रोग और कीटों का उन्नत प्रबंधन करें - सही तरीका
धान की फसल में समय रहते रोग-कीटों का प्रबंधन करना ज़रूरी है
चावल की खपत सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बहुत अधिक है। ऐसे में वैश्विक आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पैदावार बढ़ाना ज़रूरी है, मगर कीट और रोग धान की खेती में बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।
धान हमारे देश की एक महत्वपूर्ण खरीफ़ फसल है। धान से ही चावल निकाला जाता है। देश के 36.95 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है, जिसकी वजह से भारत धान का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, ओडिशा, बिहार और छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है।
धान की खेती किसानों की आमदनी का सबसे अहम स्रोत है, लेकिन कई बार कीटों और बीमारियों के कारण फसल को बहुत नुकसान पहुंचता है, जिसकी वजह से किसानों को मुनाफे की बजाय नुकसान उठाना पड़ जाता है। ऐसे में धान की फसल में सही कीट प्रबंधन बहुत ज़रूरी है। इसके लिए किसानों को धान में लगने वाले रोग और कीटों की जानकारी होनी चाहिए, साथ ही साथ उसे नियंत्रित करने का तरीका भी पता होना चाहिए। आइए, जानते हैं धान में लगने वाले प्रमुख रोग व कीट के नियंत्रण के तरीके।पुरा पढने के लिए
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खरीफ फसलों पर सूखे के बाद अब भारी बारिश की मार, अनुमान से भी कम हो सकता है उत्पादन
खरीफ फसलों पर सूखे के बाद अब भारी बारिश की मार, अनुमान से भी कम हो सकता है उत्पादन
कई राज्यों में खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान पक कर तैयार हो गई है. जिसकी कटाई की प्रक्रिया शुरू होने को है. लेकिन, बीते दिनों हुई भारी बारिश से फसलें खेत में गिर गई हैं.
भारी बारिश से फसलों को नुकसान
खरीफ सीजन पर इस साल मौसम की मार पड़ी है. पहले मानसून की बेरूखी के चलते हुई कम बारिश की वजह से पहले कई राज्यों में सूखे के हालात बने थे. इस वजह से धान की खेती पर असर पड़ा था. मसलन, धान की खेती के रकबे…
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