आज का पंचांग, 1 सितंबर, 2022: गुरुवार के लिए तिथि, शुभ मुहूर्त, राहु काल और अन्य विवरण देखें
आज का पंचांग, 1 सितंबर, 2022: गुरुवार के लिए तिथि, शुभ मुहूर्त, राहु काल और अन्य विवरण देखें
आज का पंचांग, 1 सितंबर, 2022: इस गुरुवार का पंचांग भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को चिह्नित करेगा। हिंदू इस दिन पांच धार्मिक अवसरों का पालन करेंगे: ऋषि पंचमी, संवत्सरी पर्व, स्कंद षष्ठी, रवि योग और विदाल योग। अपने सभी कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए आपको दिन के शुभ और अशुभ समय के बारे में पता होना चाहिए। उसी के बारे में विवरण जानने के लिए नीचे देखें।
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।। नमो नमः ।। ।।भाग्यचक्र ।। आज का पंचांग :- संवत :- २०७८ ( आनंद ) दिनांक :- 19 सितंबर 2021 सूर्योदय :- 06:15 सूर्यास्त :- 18:27 सूर्य राशि :- कन्या चंद्र राशि :- कुम्भ चंद्रोदय :- 17:45 चन्द्रास्त :- 04:28 मास :- भाद्रपद तिथि :- चतुर्दशी वार :- सूर्यवार नक्षत्र :- शतभिषा योग :- धृति करण :- गर अयन:- दक्षिणायन पक्ष :- शुक्ल ऋतू :- वर्षा लाभ :- 09:17 - 10:49 अमृत:- 10:50 - 12:20 शुभ :- 13:51 - 15:23 राहु काल :- 16:55 - 18:27 जय श्री महाकाल :- *विसर्जन मुहूर्त :-* भगवान् श्री गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जित करने से पहले नए वस्त्र पहनावे, एक रेशमी कपड़े मे लड्डू, दक्षिणा , दुर्वा व सुपारी बांधकर उस पोटली को भगवान् के पास रख देवें तत्पश्चात पुजन, आरती करें ओर उनसे अपनी गलतीयो की क्षमा मांगे, फिर मान सम्मान के साथ विदा करे व पोटली सहित विसर्जित करे । *विसर्जन का शुभ मुहूर्त ।* प्रातः 6:39 मिनट से 12:20 मिनट तक । दोपहर 1:51 मिनट से 3:23 मिनट तक । संध्या 6:28 मिनट से रात्रि 10:46 मिनट तक । अर्ध रात्री को 1:43 मिनट से 3: 11 मिनट तक । उषाकाल 4:40 मिनट से प्रातःकाल 6:08 मिनट तक विसर्जित करे । विसर्जन करते समय प्रार्थना करें के विसर्जन प्रभु आपकीं प्रतिमा का कर रहे हैं आप सदैव हमारे घर मे विराजमान रहें। आज का मंत्र :- ""|| ॐ घृणि सूर्याय नमः।। ||"" *🙏नारायण नारायण🙏* जय श्री महाकाल। माँ महालक्ष्मी की कृपा सदैव आपके परिवार पर बनी रहे। 🙏🌹जय श्री महाकाल🌹🙏 श्री महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग का आज का भस्म आरती श्रृंँगार दर्शन। 19 सितंबर 2021 ( सूर्यवार ) जय श्री महाकाल। सभी प्रकार के ज्योतिष समाधान हेतु। For Kundli /Horoscope Queries : Name :- Date of Birth :- Time of Birth:- Place of Birth :- Question:- Mobile Number :- Whatsapp@9522222969 https://www.facebook.com/Bhagyachakraujjain शुभम भवतु ! 9522222969 https://www.instagram.com/p/CT_P_inIXbf/?utm_medium=tumblr
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देश में मनाई जा रही है Radha Ashtami, जानें इस दिन का महत्व
आज देश भर में Radha Ashtami मनाई जा रही है। भगवान श्रीकृष्ण के नाम के साथ हमेशा राधा रानी का नाम भी लिया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद Radha Ashtami का पर्व आता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को Radha Ashtami व्रत रखा जाता है। इस साल Radha Ashtami 14 सितंबर, मंगलवार को मनाई जा रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राधा रानी की पूजा के बिना भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही Radha Ashtami का त्योहार बड़े धूमधाम के साथ मनाते हैं।
जानें, Radha Ashtami 2021 शुभ मुहूर्त
Radha Ashtami तिथि 13 सितंबर दोपहर 3 बजकर 10 मिनट से शुरू होगी, जो कि 14 सितंबर की दोपहर 1 बजकर 9 मिनट तक रहेगी।
जानें, Radha Ashtami का महत्व – जन्माष्टमी की तरह ही Radha Ashtami का विशेष महत्व है। कहते हैं कि Radha Ashtami का व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं संतान सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो लोग राधा जी को प्रसन्न कर देते हैं उनसे भगवान श्रीकृष्ण अपने आप प्रसन्न हो जाते हैं। कहा जाता है कि व्रत करने से घर में मां लक्ष्मी आती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सुहागिन स्त्रियां इस दिन व्रत रखकर राधा जी की विशेष पूजा करती हैं। इस दिन पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। Radha Ashtami का पर्व जीवन में आने वाली धन की समस्या को भी दूर करता है।
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हिंदू कैलेंडर के अनुसार सितंबर के आखिरी दिनों में प्रदोष और अक्टूबर के पहले हफ्ते में अधिक मास की पूर्णिमा का व्रत रहेगा। इनके अलावा कोई तीज-त्योहार नहीं है। अधिक मास के कारण ऐसी स्थिति बन रही है। अधिक मास में कोई पर्व या उत्सव नहीं होता है। इस दौरान सिर्फ भगवान विष्णु की पूजा के साथ व्रत-उपवास और स्नान दान किया जाता है। इस हफ्ते अधिक मास के शुक्लपक्ष के 15 दिन खत्म होंगे और कृष्ण पक्ष शुरू हो जाएगा। इस सप्ताह में विश्व हृदय दिवस, राष्ट्रीय रक्तदान दिवस, लालबहादुर शास्त्री जयंती और गांधी जयंती जैसे खास दिन रहेंगे। ज्योतिष के नजरिये से भी ये हफ्ता बहुत खास रहेगा। इन दिनों में शनि की चाल बदलेगी और मंगल ग्रह राशि बदलकर मीन में आ जाएगा। इनके अलावा 3 दिन खरीदारी के शुभ योग रहेंगे।
28 सितंबर से 4 अक्टूबर तक का पंचांग
28 अगस्त, सोमवार - अश्विन, अधिक शुक्लपक्ष, द्वादशी
29 सितंबर, मंगलवार - अश्विन अधिक शुक्लपक्ष, त्रयोदशी, प्रदोष व्रत
30 सितंबर, बुधवार - अश्विन अधिक शुक्लपक्ष, चतुर्दशी
1 अक्टूबर, गुरुवार - अश्विन अधिक शुक्लपक्ष, पूर्णिमा, स्नान-दान और व्रत
2 अक्टूबर, शुक्रवार - अश्विन अधिक कृष्णपक्ष, प्रतिपदा
3 अक्टूबर, शनिवार - अश्विन अधिक कृष्णपक्ष, द्वितीया
4 अक्टूबर, रविवार - अश्विन अधिक कृष्णपक्ष, तृतीया
अन्य महत्वपूर्ण दिन और जयंती
29 सितंबर, मंगलवार - विश्व हृदय दिवस
1 अक्टूबर, गुरुवार - राष्ट्रीय रक्तदान दिवस
2 अक्टूबर, शुक्रवार - लालबहादुर शास्त्री और गांधी जयंती
ज्योतिषीय नजरिये से ये सप्ताह
29 सितंबर, मंगलवार - शनि मकर राशि में मार्गी होगा। यानी सीधी चाल से चलने लगेगा।
30 सितंबर, बुधवार - रवियोग
2 अक्टूबर, शुक्रवार - सर्वार्थसिद्धि योग
4 अक्टूबर, रविवार - सर्वार्थसिद्धि योग
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Hindu Calendar October 1st Week 2020 Panchang: October 1st Week Holiday Festivals Vrat Upavas Teej Tyohar Parva Astrological Events Important Days
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|| आज का पंचांग || Aaj Ka Panchang - 26 September 2020, Saturday(शनिवार) || देवांश पंचांग || Dewans Panchang || By - Dr Dadhichy - डॉ० दधीचि
आज का ज्ञान :- जो नर निज स्त्री, भोजन, धन पर करे संतोषा, वो नर एहि धारा पर सदा मगन रहे सुख सोहा।
26 सितंबर 2020, शनिवार
तिथि: दशमी, रात: 9:50 तक
पक्ष:- शुक्ल
मास:- प्रथम आश्विन
सूर्योदय:- 6:02
सूर्यास्त:- 5:58
काल:- उत्तर
नक्षत्र:- उत्तराषाढा रात: 11:09 उपरान्त श्रवणा
योग:- अतिगण्ड
करण:- तैतिल
दिक्शूल:- पूर्व
अर्द्धपहरा:- दिवा 1, 6, 8 रात्रि 1, 6, 8
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हर साल आश्विन मास में पितृ पक्ष की अमावस्या के बाद अगले दिन से ही नवरात्रि शुरू हो जाती है। लेकिन, इस बार अधिकमास की वजह से नवरात्रि पूरे एक माह देरी से यानी 17 अक्टूबर से शुरू होगी। हिन्दी पंचांग में हर तीन साल में एक बार अतिरिक्त माह आता है, इसे ही अधिक मास, पुरुषोत्तम मास और मलमास के नामों जाना जाता है। ये माह 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक रहेगा।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार 160 साल बाद आश्विन मास का अधिकमास और अंग्रेजी कैलेंडर के लीप ईयर का संयोग बना है। 2020 से पहले 2 सितंबर 1860 से आश्विन अधिक मास शुरू हुआ था। अश्विन माह का अधिक मास 19 वर्ष बाद आया है। इससे पहले 2001 में आया था।
अंग्रेजी कैलेंडर और हिन्दू पंचांग में अंतर?
अंग्रेजी कैलेंडर सूर्य वर्ष पर आधारित है। इसके मुताबिक एक सूर्य वर्ष में 365 दिन और करीब 6 घंटे होते हैं। हर चार साल में ये 6-6 घंटे एक दिन के बराबर हो जाते हैं और उस साल फरवरी में 29 दिन रहते हैं। जबकि, हिन्दू पंचांग चंद्र वर्ष के आधार पर चलता है।
एक चंद्र वर्ष में 354 दिन होते हैं। इन दोनों सूर्य और चंद्र वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर रहता है। हर तीन साल में ये अंतर 1 महीने के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को खत्म करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास यानी अधिक मास की व्यवस्था की गई है। अतिरिक्त महीना होने की वजह से इसका नाम अधिक मास है।
अधिक मास से क्या लाभ?
अधिक मास की वजह से सभी हिन्दू त्योहारों और ऋतुओं का तालमेल बना रहता है। जैसे, सावन माह वर्षा ऋतु में और दीपावली सर्दियों की शुरुआत में ही आती है। इसी तरह सभी त्योहार अपनी-अपनी ऋतुओं में ही आते हैं। अगर इस माह की व्यवस्था न होती तो सभी त्योहारों की ऋतुएं बदलती रहती। जैसे अधिक मास न होता तो दीपावली कभी बारिश में, कभी गर्मी में और कभी सर्दियों में आती।
इसे मलमास क्यों कहते हैं?
अधिक मास में सूर्य की संक्राति नहीं होती है यानी पूरे माह में सूर्य का राशि परिवर्तन नहीं होता है। इस कारण ये माह मलिन हो जाता है, मलिन मास यानी मलमास। माह में नामकरण, जनेऊ संस्कार, विवाह आदि मांगलिक कर्म के मुहूर्त नहीं रहते हैं। इस माह में जरूरत की चीजें खरीदी जा सकती हैं। विवाह की तारीख तय कर सकते हैं। नए घर की बुकिंग भी की जा सकती है।
इस माह में भगवान विष्णु की आराधना क्यों की जाती है?
इस संबंध कथा प्रचलित है कि मलिन माह होने की वजह से कोई भी देवता इस माह का स्वामी नहीं बनना चाहता था। तब मलमास ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। इसके बाद विष्णुजी ने इस मास को अपना श्रेष्ठ नाम पुरुषोत्तम दिया। साथ ही, ये वर भी दिया कि माह में भागवत कथा सुनना, पढ़ना, शिवजी का पूजन करना, धार्मिक कर्म, दान करने वाले भक्तों को अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।
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13 months in Samvat 2077, Adhikamas, Navratri will start from 17 October, ashwin adhikamas facts, significance of adhikamas
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Aaj ka panchang: आज अनंत चतुर्दशी प्रात: 9 बज कर 39 मिनट तक, इसके बाद पूर्णिमा, पढ़ें आज का पंचांग पंचक जारी है। पूर्णिमा व्रत एवं पूर्णिमा श्राद्ध। अनंत चतुर्दशी। महालया श्राद्ध आरम्भ। सूर्य दक्षिणायण। सूर्य उत्तर गोल। शरद ऋतु। अपराह्न 3 बजे से सायं 4 बज कर 30 मिनट तक राहुकालम्। 1 सितंबर,... पूरी खबर के लिए यहां क्लिक करें www.livehindustan.com
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1 सितंबर 2020: पंचांग, शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय
1 सितंबर 2020: पंचांग, शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय
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1 सितंबर 2020 का दैनिक पंचांग
हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय एवं काल की सटीक गणना की जाती है। पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण हैं। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र…
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Navratri 2019 date & time – नवरात्रि 2019 शुभ चौघड़िया मुहूर्त
Navratri 2019 : जानें कब से शुरू हो रहे है नवरात्र ( JAI MATA DI )
आपको ये जानकर बहुत खुशी होगी इस नवरात्रि माता रानी मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी. हमारे हिंदू धर्म में नवरात्र और बहुत से तौयार का बहुत अधिक महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार शारदीय नवरात्र की शुरूआत 29 सितंबर 2019 से शुभारंभ हो रहे है जोकि 7 अक्टूबर 2019 तक होगे। इस बार पूरे नौ दिन मां दुर्गा की उपासना की जाएगी। वहीं 8 अक्टूबर को बहुत ही धूमधाम के साथ विजयदशमी यानि दशहरा के अलावा दुर्गा विसर्जन का त्योहार मनाया जाएगा। आपको बता दें कि इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार हो कर आएगी और उनका प्रस्थान भी घोड़े पर ही होगा।
शास्त्रों में मां दुर्गा के नौ रूपों का बखान किया गया है. देवी के इन स्वरूपों की पूजा नवरात्रि में विशेष रूप से की जाती है. नवरात्रि के नौ दिन लगातार माता का पूजन चलता है.
29 सितंबर, प्रतिपदा – बैठकी या नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना – शैलपुत्री
30 सितंबर, द्वितीया – नवरात्रि 2 दिन तृतीय- ब्रह्मचारिणी पूजा
1 अक्टूबर, तृतीया – नवरात्रि का तीसरा दिन- चंद्रघंटा पूजा
2 अक्टूबर, चतुर्थी – नवरात्रि का चौथा दिन- कुष्मांडा पूजा
3 अक्टूबर, पंचमी – नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती पूजा, स्कंदमाता पूजा
4 अक्टूबर, षष्ठी – नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी पूजा
5 अक्टूबर, सप्तमी – नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती पूजा
6 अक्टूबर, अष्टमी – नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन
7 अक्टूबर, नवमी – नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
8 अक्टूबर, दशमी – दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी
Navratri 2019 : कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त ( JAI MATA DI )
इस बार नवरात्र पर कलश स्थापना की बात करें तो इसका शुभ मुहूर्त सुबह 6.16 बजे से 7.40 बजे (सुबह) के बीच है। इसके अलावा दोपहर में 11.48 बजे से 12.35 के बीच अभिजीत मुहूर्त भी है जिसके बीच आप कलश स्थापना कर सकते हैं। बता दें कि अश्विन की प्रतिपदा तिथि 28 सितंबर को रात 11.56 से ही शुरू हो रही है और यह अगले दिन यानी 29 सितंबर क�� रात 8.14 बजे खत्म होगी।
Navratri 2019 : कलश स्थापना की विधि ( JAI MATA DI )
कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा के स्थान पर मिट्टी और पानी को मिलाकर एक समतल वेदी तैयार कर लें जिस पर कलश को रखा जाना है। इस मिट्टी से तैयार जगह के बीचों बीच कलश को रखें। कलश में गंगा जल भर दें। साथ ही कुछ सिक्के, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत आदि भी डाल दें। कलश के चारों ओर जौ के बीच डालें। इसके बाद कलश के ऊपर आम की पत्तियां रखें और उसे ढक्कन से ढक दें। कलश के ऊपरी हिस्से पर मौली या रक्षा सूत्र बांधे। साथ ही तिलक भी लगाये। कलश रखने के लिए आप मिट्टी की वेदी से अलग एक बड़े पात्र का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में आपको उस पात्र में मिट्टी भरनी होगी और उसमें जौ के बीज डालने होंगे। बहरहाल, अब कलश के ऊपर लाल कपड़े या लाल चुन्नी में ढका नारियल रख दें। नारियल को भी रक्षा सूत्र से बांधे। कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह भी जरूर बनायें। इसके साथ ही आपकी कलश स्थापना पूरी हो चुकी है और आप अपनी पूजा शुरू कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि अगले 9 दिनों तक उन हिस्सों में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते रहें जहां आपने जौ के बीज डाले हैं।
Navratri 2019 : पूजा विधि ( JAI MATA DI )
कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा के स्थान पर मिट्टी और पानी को मिलाकर एक समतल वेदी तैयार कर लें जिस पर कलश को रखा जाना है। इस मिट्टी से तैयार जगह के बीचों बीच कलश को रखें। कलश में गंगा जल भर दें। साथ ही कुछ सिक्के, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत आदि भी डाल दें। कलश के चारों ओर जौ के बीच डालें। इसके बाद कलश के ऊपर आम की पत्तियां रखें और उसे ढक्कन से ढक दें। कलश के ऊपरी हिस्से पर मौली या रक्षा सूत्र बांधे। साथ ही तिलक भी लगाये। कलश रखने के लिए आप मिट्टी की वेदी से अलग एक बड़े पात्र का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में आपको उस पात्र में मिट्टी भरनी होगी और उसमें जौ के बीज डालने होंगे। बहरहाल, अब कलश के ऊपर लाल कपड़े या लाल चुन्नी में ढका नारियल रख दें। नारियल को भी रक्षा सूत्र से बांधे। कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह भी जरूर बनायें। इसके साथ ही आपकी कलश स्थापना पूरी हो चुकी है और आप अपनी पूजा शुरू कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि अगले 9 दिनों तक उन हिस्सों में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते रहें जहां आपने जौ के बीज डाले हैं।
नवरात्रि के 9 दिन और 9 देवियां
पहले दिन- शैलपुत्री
दूसरे दिन- ब्रह्मचारिणी
तीसरे दिन- चंद्रघंटा
चौथे दिन- कुष्मांडा
पांचवें दिन- स्कंदमाता
छठे दिन- कात्यानी
सातवें दिन- कालरात्रि
आठवें दिन- महागौरी
नवें दिन- सिद्धिदात्री
दशहरे का शुभ संयोग
नवमी के अगले दिन दशहरा का त्योहार है। 7 अक्टूबर 2019 को महानवमी दोपहर 12.38 तक रहेगी। इसके दशमी यानी दशहरा होगा। 8 अक्टूबर को विजयदशमी रवि योग में दोपहर 2.51 तक रहेगी। यह बहुत ही शुभ मानी गई है।
दुर्गा पूजा
अष्टमी तिथि – रविवार, 6 अक्टूबर 2019
अष्टमी तिथि प्रारंभ – 5 अक्टूबर 2019 से 09:50 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – 6 अक्टूबर 2019 10:54 बजे ��क
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।। नमो नमः ।। ।।भाग्यचक्र ।। आज का पंचांग :- संवत :- २०७८ ( आनंद ) दिनांक :- 12 सितंबर 2021 सूर्योदय :- 06:13 सूर्यास्त :- 18:34 सूर्य राशि :- सिंह चंद्र राशि :- वृश्चिक चंद्रोदय :- 11:22 चन्द्रास्त :- 22:33 मास :- भाद्रपद तिथि :- षष्ठी वार :- सूर्यवार नक्षत्र :- विशाखा योग :- वैधृ करण :- कौलव अयन:- दक्षिणायन पक्ष :- शुक्ल ऋतू :- वर्षा लाभ :- 09:17 - 10:50 अमृत:- 10:51 - 12:22 शुभ :- 13:55 - 15:28 राहु काल :- 17:01 - 18:34 जय श्री महाकाल :- *विघ्नविनाशक-गणेश-द्वादशनामस्तोत्रम्* सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।। धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।। विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।। हिन्दी अर्थ- 1. सुमुख 2.एकदन्त 3.कपिल 4. गजकर्णक 5. लम्बोदर 6. विकट 7. विघ्ननाश 8. विनायक 9. धूम्रकेतु 10. गणाध्यक्ष 11. भालचन्द्र 12. गजानन - इन बारह नामों को विद्यारम्भकाल में, विवाहकाल में, प्रवेशकाल में, निर्गम काल में (यात्रा के समय), संग्राम के समय और संकट के समय जो पढे अथवा सुने भी, उन्हें कोई विध्न नहीं होता है। आज का मंत्र :- ""|| ॐ घृणि सूर्याय नमः।। ||"" *🙏नारायण नारायण🙏* जय श्री महाकाल। माँ महालक्ष्मी की कृपा सदैव आपके परिवार पर बनी रहे। 🙏🌹जय श्री महाकाल🌹🙏 श्री महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग का आज का भस्म आरती श्रृंँगार दर्शन। 12 सितंबर 2021 ( सूर्यवार ) जय श्री महाकाल। सभी प्रकार के ज्योतिष समाधान हेतु। For Kundli /Horoscope Queries : Name :- Date of Birth :- Time of Birth:- Place of Birth :- Question:- Mobile Number :- Whatsapp@9522222969 https://www.facebook.com/Bhagyachakraujjain शुभम भवतु ! 9522222969 https://www.instagram.com/p/CTtOWEsB1gs/?utm_medium=tumblr
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नवरात्रि के पहले दिन यानि 29 सितंबर को सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत योग का शुभ संयोग बन रहा है। नवरात्रि 29 सितंबर, रविवार से शुरू हो रही है। आश्विन प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि तक नवरात्रि है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाएगी। प्रतिपदा तिथि यानी 29 सितंबर को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त है। इसी दिन कलश स्थापना के साथ देवी शैलपुत्री की पूजा भी होगी। फिर इसके बाद क्रमशः ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कत्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा होगी। 06 अक्टूबर को महाअष्टमी और 07 अक्टूबर को महानवमी पड़ेगी। इसके बाद 08 अक्टूबर को विसर्जन के साथ नवरात्रि का समापन होगा। नवरात्रि शुभ मुहूर्त- नवरात्रि के पहले दिन यानि 29 सितंबर को सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत योग का शुभ संयोग बन रहा है। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि इस बार घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त की अवधि लंबी रहेगी। हिंदू पंचांग के मुताबिक सुबह के समय घट स्थापना का शुभ मुहूर्त 9 बजकर 15 मिनट से लेकर 12 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। इसके बाद दोपहर के समय 1 बजकर 45 मिनट से लेकर 3 बजकर 15 मिनट तक रहेगा। फिर शाम के समय घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 6 बजकर 15 मिनट से लेकर 9 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। आर्थिक समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए नवरात्रि में इन मंत्रों का करें जाप... सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:। स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।। https://www.instagram.com/p/B29Q8sTAg0A/?igshid=177mo4j1imfu
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हरतालिका तीज (गौरी तृतीया) व्रत
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हरतालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं। यह तीज का त्यौहार भाद्रपद मास शुक्ल की तृतीया तिथि को मनाया जाता हैं।
यह आमतौर पर अगस्त – सितम्बर के महीने में ही आती है. इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते है। भगवान शिव और पार्वती को समर्पित इस व्रत को लेकर इस बार उलझन की स्थिति बनी हुई है। व्रत करने वाले इस उलझन में हैं कि उन्हें किस दिन यह व्रत करना चाहिए। इस उलझन की वजह यह है कि इस साल पंचांग की गणना के अनुसार तृतीया तिथि का क्षय हो गया है यानी पंचांग में तृतीया तिथि का मान ही नहीं है।
आपको बता दें कि इस विषय पर ना सिर्फ व्रती बल्कि ज्योतिषशास्त्री और पंचांग के जानकर भी दो भागों में बंटे हुए हैं। एक मत के अनुसार हरतालिका तीज का व्रत 1 सितंबर को करना शास्त्र सम्मत होगा क्योंकि यह व्रत हस्त नक्षत्र में किया जाता है जो एक सितंबर को है। 1 सितंबर को पूरे दिन तृतीया तिथि होगी। संध्या पूजन के समय भी तृतीया तिथि का मान रहेगा जिससे व्रत के लिए 1 सितंबर का दिन ही सब प्रकार से उचित है। 2 तारीख को सूर्योदय चतुर्थी तिथि में होने से इस दिन चतुर्थी तिथि का मान रहेगा ऐसे में तृतीया तिथि का व्रत मान्य नहीं होगा।
1 सितंबर को सूर्योदय द्वितीया तिथि में होगा जो 8 बजकर 27 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इसके बाद से तृतीया यानी तीज शुरू हो जाएगी और अगले दिन यानी 2 सितंबर को सूर्योदय से पूर्व ही सुबह 4 बजकर 57 मिनट पर तृतीया समाप्त होकर चतुर्थी शुरू हो जाएगी।
2 सितंबर को हरतालिका तीज को उचित मानने वाले विद्वानों का तर्क है कि शास्त्रों में चतुर्थी तिथि व्याप्त तृतीया तिथि को सौभाग्य वृद्धि कारक माना गया है लेकिन इसका कोई (एकमत) शास्त्रीय प्रमाण देखने को नही मिला। इनके अनुसार ग्रहलाघव पद्धति से बने पंचांग के अनुसार 8 बजकर 58 मिनट तक तृतीया तिथि रहेगी। इसके बाद चतुर्थी तिथि हो जाएगी। हरतालिका व्रत में एक नियम यह भी है कि हस्त नक्षत्र में व्रत करके चित्रा नक्षत्र में व्रत का पारण करना चाहिए। हस्त नक्षत्र 2 सितंबर के दिन प्रातः 8 बजकर 34 मिनट तक रहेगा इसलिये व्रति 1 सितंबर के दिन व्रत रखकर 2 सितंबर के दिन प्रातः 8 बजकर 34 मिनट के बाद चित्रा नक्षत्र में पारण कर सकते है यही शास्त्रसम्मत भी रहेग���।
खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता हैं। कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरतालिका का व्रत श्रेष्ठ समझा गया हैं।
विधि-विधान से हरितालिका तीज का व्रत करने से जहाँ कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है, वहीं विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है।
हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी एवम गणेश जी की पूजा का महत्व हैं। यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता हैं। शिव जैसा पति पाने के लिए कुँवारी कन्या इस व्रत को विधि विधान से करती हैं।
महिलाओं में संकल्प शक्ति बढाता है हरितालिका तीज का व्रत
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हरितालिका तीज का व्रत महिला प्रधान है।इस दिन महिलायें बिना कुछ खायें -पिये व्रत रखती है।यह व्रत संकल्प शक्ती का एक अनुपम उदाहरण है। संकल्प अर्थात किसी कर्म के लिये मन मे निश्चित करना कर्म का मूल संकल्प है।इस प्रकार संकल्प हमारी अन्तरीक शक्तियोंका सामोहिक निश्चय है।इसका अर्थ है-व्रत संकल्प से ही उत्पन्न होता है।व्रत का संदेश यह है कि हम जीवन मे लक्ष्य प्राप्ति का संकल्प लें ।संकल्प शक्ति के आगे असंम्भव दिखाई देता लक्ष्य संम्भव हो जाता है।माता पार्वती ने जगत को दिखाया की संकल्प शक्ति के सामने ईश्वर भी झुक जाता है।
अच्छे कर्मो का संकल्प सदा सुखद परिणाम देता है। इस व्रत का एक सामाजिक संदेश विषेशतः महिलाओं के संदर्भ मे यह है कि आज समाज मे महिलायें बिते समय की तुलना मे अधिक आत्मनिर्भर व स्वतंत्र है।महिलाओं की भूमिका मे भी बदलाव आये है ।घर से बाहर निकलकर पुरुषों की भाँति सभी कार्य क्षेत्रों मे सक्रिय है।ऎसी स्थिति मे परिवार व समाज इन महिलाओं की भावनाओ एवं इच्छाओं का सम्मान करें,उनका विश्वास बढाएं,ताकि स्त्री व समाज सशक्त बनें।
हरतालिका तीज व्रत विधि और नियम
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हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय। हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती, गणेश एव रिद्धि सिद्धि जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से बनाई जाती हैं।
विविध पुष्पों से सजाकर उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर चौकी रखी जाती हैं। चौकी पर एक अष्टदल बनाकर उस पर थाल रखते हैं। उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं। सभी प्रतिमाओ को केले के पत्ते पर रखा जाता हैं। सर्वप्रथम कलश के ऊपर नारियल रखकर लाल कलावा बाँध कर पूजन किया जाता हैं कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प चढ़ाकर विधिवत पूजन होता हैं। कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं।
उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं। तत्पश्चात माता गौरी की पूजा की जाती हैं। उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं। इसके बाद अन्य देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है।
इसके बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़ी जाती हैं। इसके पश्चात आरती की जाती हैं जिसमे सर्वप्रथम गणेश जी की पुनः शिव जी की फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं। इस दिन महिलाएं रात्रि जागरण भी करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है। हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता।
प्रातः अन्तिम पूजा के बाद माता गौरी को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं। ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं। उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं। अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं।
भगवती-उमा की पूजा के लिए ये मंत्र बोलना चाहिए 👇
ऊं उमायै नम:
ऊं पार्वत्यै नम:
ऊं जगद्धात्र्यै नम:
ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:
ऊं शांतिरूपिण्यै नम:
ऊं शिवायै नम:
भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करनी चाहिए 👇
ऊं हराय नम:
ऊं महेश्वराय नम:
ऊं शम्भवे नम:
ऊं शूलपाणये नम:
ऊं पिनाकवृषे नम:
ऊं शिवाय नम:
ऊं पशुपतये नम:
ऊं महादेवाय नम:
निम्न नामो का उच्चारण कर बाद में पंचोपचार या सामर्थ्य हो तो षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। पूजा दूसरे दिन सुबह समाप्त होती है, तब महिलाएं द्वारा अपना व्रत तोडा जाता है और अन्न ग्रहण किया जाता है।
हरतालिका व्रत पूजन की सामग्री
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1- फुलेरा विशेष प्रकार से फूलों से सजा होता है।
2- गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत।
3- केले का पत्ता।
4- विविध प्रकार के फल एवं फूल पत्ते।
5- बेल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, तुलसी मंजरी।
6- जनेऊ , नाडा, वस्त्र,।
7- माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामग्री, जिसमे चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, महावर, मेहँदी आदि एकत्र की जाती हैं। इसके अलावा बाजारों में सुहाग पूड़ा मिलता हैं जिसमे सभी सामग्री होती हैं।
8- घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, नारियल, कलश।
9- पञ्चामृत - घी, दही, शक्कर, दूध, शहद।
हरतालिका तीज व्रत कथा
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भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी।
श्री भोलेशंकर बोले- हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर व्यतीत किए। माघ की विक्राल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।
तुम्हारे पिता तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। उन्हें बड़ा क्लेश होता था। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा।
नारदजी ने कहा- गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं।
नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गद्गद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्नचित होकर वे बोले- श्रीमान्! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।
तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। मगर इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।
तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया - मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिवशंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी।
उसने कहा- सखी! प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।
तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी।
इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागीं। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।
तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा - मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।
तब मैं 'तथास्तु' कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।
तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा- पिताजी! मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे।
गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधानपूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया।
हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।
हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि
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👉 हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है।
👉 हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं।
👉 पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
👉 इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें।
👉 सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है।
👉 इसमें शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है। यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
👉 इस प्रकार पूजन के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं व ककड़ी-हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।
हरितालका तीज पूजा मुहूर्त
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हरितालिका पूजन प्रातःकाल ना करके प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त में किया जाना ही शास्त्रसम्मत है।
प्रदोषकाल निकालने के लिये आपके स्थानीय सूर्यास्त में आगे के 96 मिनट जोड़ दें तो यह एक घंटे 36 मिनट के लगभग का समय प्रदोष काल माना जाता है।
प्रदोष काल मुहूर्त : सायं 06:41 से रात्रि:8:58 तक
पारण अगले दिन प्रातः काल 8 बजकर 34 मिनट के बाद करना उत्तम रहेगा।
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|| आज का पंचांग || Aaj Ka Panchang - 23 September 2020, Wednesday(बुधवार) || देवांश पंचांग || Dewans Panchang || By - Dr Dadhichy - डॉ० दधीचि
आज का ज्ञान :- पाए स्त्री आज्ञाकारी, पुत्र रहे कर जोड़। धन की तृष्णा छुए नहीं, पाए सुख बेजोड़ ।।
23 सितंबर 2020, बुधवार
तिथि: सप्तमी, रात: 1:18 तक
पक्ष:- शुक्ल
मास:- प्रथम आश्विन
सूर्योदय:- 6:00
सूर्यास्त:- 6:00
काल:- उत्तर
नक्षत्र:- ज्येष्ठा रात:- 12:28 उपरान्त मूल
योग:- प्रीति
करण:- गर
दिक्शूल:- उत्तर
अर्द्धपहरा:- दिवा 3, 5 रात्रि 5,7
WhatsApp पर देवांश दैनिक पंचांग प्राप्त करने हेतु इस ग्रुप में जुड़ें और जोड़ें | ॐ || Invite Link:- https://chat.whatsapp.com/Eebfo76NqasGCQ9M08iE8t
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किस दिन मनायें हरतालिका तीज व्रत,जिससे मिले संतान सुख और सौभाग्य? हिन्दी पंचांग के अनुसार, हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। हरतालिका तीज 1 सितंबर या 2 सितंबर में से किस तारीख को मनाई जाएगी, इस बात को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति है। कुछ लोग 1 सितंबर की तारीख बता रहे हैं तो कुछ 2 सितंबर की तारीख को सही बता रहे हैं। इस दुविधा को खत्म करने के लिए हमने शास्त्रों का सहारा लिया और निष्कर्ष ये निकला है कि हरतालिका तीज का व्रत 2 सितम्बर को ही करना उचित है। इस वर्ष सौभाग्य रक्षा का व्रत हरतालिका तीज 02 सितंबर दिन सोमवार को ही मान्य है। ज्योतिषीय गणना की मान्यता के अनुसार, चतुर्थी युक्त तृतीया का सौभाग्य वृद्धि में विशिष्ट महत्व है। 02 सितंबर सोमवार को तृतीया का पूर्ण मान, हस्त नक्षत्र का उदयातिथि योग तथा सायंकाल चतुर्थी तिथि की पूर्णता तीज पर्व की महत्ता को बढ़ाती है। इसका प्रमाण ‘पर्व मुहूर्त निर्णय ग्रन्थ’ में इस प्रकार प्राप्त है- “चतुर्थी हस्त नक्षत्र सहिताया तु सा तृतीया फलप्रदा।” इतना ही नहीं, प्रमाण यह भी मिलता है कि हस्त नक्षत्र में तीज का पारण वर्जित है, जबकि रविवार 01 सितंबर को व्रती महिलाओं को 02 सितंबर दिन सोमवार के भोर में पारण हस्त नक्षत्र में ही करना पड़ेगा, जो शास्त्रों के अनुसार उचित नहीं है। यदि 02 सितंबर को व्रत रखेंगे तो 03 सितंबर दिन मंगलवार के भोर में चित्रा नक्षत्र का पारण सौभाग्य-वृद्धि में सहायक माना गया है। अतः सर्वसिद्ध हरितालिका तीज व्रत चतुर्थी युक्त तृतीया एवं हस्त नक्षत्र के कारण 02 सितंबर सोमवार को ही मान्य है। For Free Prediction Call Now: 0124-6674671 or whatsapp: 9821599237 कोई समस्या है या कोई सवाल है तो दिए हुए लिंक पे क्लिक कर आप अपनी समस्या और अपने सवाल भेज सकते है :- https://goo.gl/rfz1Cb *For more information, visit us: www.astroscience.com or www.yesicanchange.com #GdVashist #Astrology #FreePrediction #LalKitab #VashistJyotish #DialAstroGuru #hartalikateej https://www.instagram.com/p/B108UZKFaFm/?igshid=ndhjr7heekrd
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हिंदू कैलेंडर के अनुसार सितंबर के तीसरे हफ्ते में पितृपक्ष खत्म होगा। इसके बाद हिंदू कैलेंडर में अश्विन महीने का अधिकमास शुरू हो जाएगा। इन दिनों में द्वादशी तिथि से अमावस्या तक श्राद्ध किए जा सकेंगे। इस हफ्ते सर्व पितृ अमावस्या और कन्या संक्रांति पर्व मनाए जाएंगे। इस हफ्ते बड़े तीज त्योहार नहीं रहेंगे। सिर्फ अधिकमास की शुरुआत पर भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए व्रत किए जाएंगे। वहीं इस हफ्ते हिंदी दिवस और राष्ट्रीय इंजीनियर दिवस मनाए जाएंगे।
ज्योतिष के नजरिये से भी ये सप्ताह खास रहेगा। इस सप्ताह सूर्य कन्या राशि में आ जाएगा। इन दिनों में खरीदारी और मांगलिक कामों के लिए 3 शुभ मुहूर्त रहेंगे। जिनमें 3 सर्वार्थसिद्धि और 1 रवियोग रहेगा।
14 से 20 सितंबर तक का पंचांग
14 अगस्त, सोमवार - अश्विन कृष्णपक्ष, द्वादशी
15 सितंबर, मंगलवार - अश्विन कृष्णपक्ष, त्रयोदशी
16 सितंबर, बुधवार - अश्विन कृष्णपक्ष, चतुर्दशी
17 सितंबर, गुरुवार - अश्विन कृष्णपक्ष, अमावस्या, सर्व पितृ अमावस्या
18 सितंबर, शुक्रवार - अश्विन शुक्लपक्ष, अधिकमास, प्रतिपदा
19 सितंबर, शनिवार - अश्विन शुक्लपक्ष, अधिकमास, द्वितीया
20 सितंबर, रविवार - अश्विन शुक्लपक्ष, अधिकमास, तृतीया
अन्य महत्वपूर्ण दिन और जयंती
14 सितंबर, सोमवार - हिंदी दिवस
15 सितंबर, मंगलवार - राष्ट्रीय इंजीनियर दिवस
ज्योतिषीय नजरिये से ये सप्ताह
14 सितंबर, सोमवार - सर्वार्थसिद्धि योग
15 सितंबर, मंगलवार - सर्वार्थसिद्धि योग
17 सितंबर, गुरुवार - सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश
20 सितंबर, बुधवार - सर्वार्थसिद्धि योग, रवियोग
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Weekly almanac, this week will start more and sun will change amount to start shopping and start new work 3 auspicious time
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Pitrupaksh 2020: इस तारीख को है पूर्णिमा का श्राद्ध, पितरों का तर्पण करने से मिलता है पितरों का आशीर्वाद हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से होती है और समापन आश्विन की अमावस्या पर होता है। इन 16 दिनों में पितरों का श्राद्ध कर उनका तर्पण किया जाता है। 1 सितंबर को... पूरी खबर के लिए यहां क्लिक करें www.livehindustan.com
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