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#सत्तू उत्सव
khabarsamay · 5 years
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vamaapp · 2 years
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अक्षय तृतीया विशेषांक-
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं। यह सनातन धर्मावलंबियों का प्रधान त्यौहार है। इस दिन दिए हुए दान और किए हुए स्नान, होम, जप-तप एवं पूजा-पाठ आदि सभी कर्मों का फल अनंत होता है ,और सभी अक्षय हो जाते हैं इसी से इसका नाम अक्षय तृतीया हुआ है।
इस तिथि को श्री नर नारायण, श्री परशुराम जी एवं भगवान् श्रीविष्णुजी के हयग्रीव आदि अवतार हुए थे। इसलिए इस दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। विशेष बात और भी है कि इस अक्षय तृतीया तिथि को त्रेता युग का भी आरंभ हुआ था ।
अक्षय तृतीया अत्यंत पवित्र और महान् फल देने वाली तिथि है , इसीलिए इस दिन जीवन के प्रत्येक क्षेत्रों में सफलता की आशा से व्रत- उत्सव आदि के अतिरिक्त वस्त्र,शस्त्र स्वर्ण आदि के आभूषण क्रय किए जाते हैं, बनवाए जाते हैं और धारण भी किए जाते हैं।
यह अक्षय तृतीया तिथि स्वयं सिद्ध मुहूर्त के नाम से जानी जाती है इसीलिए इस दिन नवीन स्थान, नूतन संस्थान, व्यावसायिक प्रतिष्ठान का उद्घाटन एवं स्थापन किया जाता है। इस बार अक्षय तृतीया के दिन मंगलवार पड़ रहा है इसलिए सिद्ध योग होने से इस दिन किए हुए प्रत्येक कार्यों में सिद्धि की प्राप्ति होगी और कार्य बनेंगे । मंगल भूमि का पुत्र होने से भूमि संबंधी क्रय- विक्रय व्यापार आदि क्षेत्रों में वृद्धि के पूर्ण संकेत हैं । जो भी बन्धु इन सभी क्षेत्रों में व्यापार कर रहे हैं उनका लाभ शत- प्रतिशत सुनिश्चित है।
अक्षय तृतीया तिथि में जो भक्त व्रत रहते हैं उन्हें प्रातः काल गंगा- स्नान करना चाहिए तथा भगवान् का पूजन करके भगवान् श्रीनर-नारायण के निमित्त भुने हुए जौ अथवा गेहूँ का सत्तू (पंजीरी), श्रीपरशुराम जी के निमित्त कोमल ककड़ी एवं भगवान् श्री हयग्रीव के निमित्त भीगी हुई चने की दाल अर्पण करना चाहिए।
इस अक्षय तृतीया को गौरी पूजन भी किया जाता है। भगवती पार्वती का श्रद्धा एवं भक्ति-भाव से पूजन करके कलश में जल,फल,पुष्प,गन्ध,तिल और अन्न भरकर इस मन्त्र का उच्चारण कर ब्राह्मण को प्रदान करने से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं।
एष धर्मघटो दत्तो ब्रह्मविष्णुशिवात्मकः।अस्य प्रदानात्सकला मम सन्तु मनोरथा:।।
इस अक्षय तृतीया के दिन जौ, चने एवं सत्तू , दही,चावल का खीर,गन्ने का रस , दूध से बने हुए खाद्य पदार्थ, स्वर्ण एवं जल से पूर्ण कलश,अन्य सभी प्रकार के रस और ग्रीष्म ऋतु के उपयोगी वस्तुओं का दान करना चाहिए। यह सब यथाशक्ति करने से अनन्त फल प्राप्त होता है।
#akshyatritiya #blog #information #fact #akshyatritiya2022
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karanaram · 3 years
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🚩रक्षा बंधन कैसे शुरू हुआ, इसका क्या महत्व है? वैदिक राखी से क्या होगा लाभ? 21 अगस्त 2021
🚩भारतीय संस्कृति में श्रावणी पूर्णिमा को मनाया जानेवाला रक्षाबंधन पर्व भाई-बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक है। यह पर्व मात्र रक्षासूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन देने का ही नहीं, वरन् प्रेम, स्नेह, समर्पण, संस्कृति की रक्षा, निष्ठा के संकल्प के जरिये हृदयों को बाँधने का वचन देने का भी पर्व है। हमारी भारतीय संस्कृति त्याग और सेवा की नींव पर खड़ी होकर पर्वरूपी पुष्पों की माला से सुसज्जित है। इस माला का एक पुष्प रक्षाबन्धन का पर्व भी है। इस साल 22 अगस्त को रक्षाबंधन है। राखी बांधने का समय सूर्योदय से शाम 5:30 बजे तक है।
🚩वैदिक रक्षासूत्र बाँधने की परम्परा तो वैदिक काल से रही है, जिसमें यज्ञ, युद्ध, आखेट, नये संकल्प और धार्मिक अनुष्ठान के आरम्भ में कलाई पर सूत का धागा (मौली) बाँधा जाता है।
🚩कैसे शुरू हुआ रक्षाबंधन?
सब कुछ देकर त्रिभुवनपति को अपना द्वारपाल बनानेवाले बलि को लक्ष्मीजी ने राखी बाँधी थी। राखी बाँधनेवाली बहन अथवा हितैषी व्यक्ति के आगे कृतज्ञता का भाव व्यक्त होता है। राजा बलि ने पूछा :) ‘‘तुम क्या चाहती हो?'' लक्ष्मीजी ने कहा : ‘‘वे जो तुम्हारे नन्हे-मुन्ने द्वारपाल हैं, उनको आप छोड़ दो।'' भक्त के प्रेम से वश होकर जो द्वारपाल की सेवा करते हैं, ऐसे भगवान नारायण को द्वारपाल के पद से छुड़ाने के लिए लक्ष्मीजी ने भी रक्षाबंधन-महोत्सव का उपयोग किया।
शचि ने इन्द्र को राखी बाँधी तो इन्द्र में प्राणबल का विकास हुआ और इन्द्र ने युद्ध में विजय प्राप्त की। धागा तो छोटा सा होता है लेकिन बाँधने वाले का शुभ संकल्प और बँधवाने वाले का विश्वास काम कर जाता है।
🚩कुंती ने अभिमन्यु को राखी बाँधी और जब तक राखी का धागा अभिमन्यु की कलाई पर बँधा रहा तब तक वह युद्ध में जूझता रहा। पहले धागा टूटा, बाद में अभिमन्यु मरा। उस धागे के पीछे भी तो कोई बड़ा संकल्प ही काम कर रहा था कि जब तक वह बँधा रहा, अभिमन्यु विजेता बना रहा।
🚩लोकमान्य तिलक जी कहते थे कि मनुष्यमात्र को निराशा की खाई से बचाकर प्रेम, उल्लास और आनंद के महासागर में स्नान कराने वाले जो विविध प्रसंग हैं, वे ही हमारी भारतीय संस्कृति में हमारे हिन्दू पर्व हैं। हे भारतवासियों ! हमारे ऋषियों ने हमारी संस्कृति के अनुरूप जीवन में उल्लास, आनंद, प्रेम, पवित्रता, साहस जैसे सदगुण बढ़ें ऐसे पर्वों का आयोजन किया है।
🚩तिलक जी ने यह ठीक ही कहा कि अपने राष्ट्र की नींव धर्म और संस्कृति पर यदि न टिकेगी तो देश में सुख, शांति और अमन-चैन होना संभव नहीं है।
🚩रक्षाबंधन के पर्व पर एक-दूसरे को आयु, आरोग्य और पुष्टि की वृद्धि की भावना से राखी बाँधते हैं।
🚩रक्षाबंधन का उत्सव श्रावणी पूनम को ही क्यों रखा गया?
भारतीय संस्कृति में संकल्पशक्ति के सदुपयोग की सुंदर व्यवस्था है। ब्राह्मण कोई शुभ कार्य कराते हैं तो कलावा (रक्षासूत्र) बाँधते हैं ताकि आपके शरीर में छुपे दोष या कोई रोग, जो आपके शरीर को अस्वस्थ कर रहे हों, उनके कारण आपका मन और बुद्धि भी निर्णय लेने में थोड़े अस्वस्थ न रह जायें। सावन के महीने में सूर्य की किरणें धरती पर कम पड़ती हैं, किस्म-किस्म के जीवाणु बढ़ जाते हैं, जिससे किसीको दस्त, किसीको उलटियाँ, किसीको अजीर्ण, किसीको बुखार हो जाता है तो किसीका शरीर टूटने लगता है । इसलिए रक्षाबंधन के दिन एक-दूसरे को वैदिक रक्षासूत्र बाँधकर तन-मन-मति की स्वास्थ्य-रक्षा का संकल्प किया जाता है । रक्षासूत्र में कितना मनोविज्ञान है, कितना रहस्य है!
अपना शुभ संकल्प और शरीर के ढाँचे की व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए यह श्रावणी पूनम का रक्षाबंधन महोत्सव है।
‘रक्षाबंधन के दिन वैदिक रक्षासूत्र बाँधने से वर्ष भर रोगों से हमारी रक्षा रहे, बुरे भावों से रक्षा रहे, बुरे कर्मों से रक्षा रहे'- ऐसा एक-दूसरे के प्रति सत्संकल्प करते हैं।
🚩कैसे बनायें वैदिक रक्षासूत्र?
दुर्वा, चावल, केसर, चंदन, सरसों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर एक पीले रंग के रेशमी कपड़े में बांध लें, यदि इसकी सिलाई कर दें तो यह और भी अच्छा रहेगा। इन पांच पदार्थों के अलावा कुछ राखियों में हल्दी, कौड़ी व गोमती चक्र भी रखा जाता है। रेशमी कपड़े में लपेटकर बांधने या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे (मौली) में पिरो दें। आपकी राखी तैयार हो जाएगी।
🚩 वैदिक राखी का महत्व :
वैदिक राखी का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि सावन के मौसम में यदि रक्षासूत्र को कलाई पर बांधा जाये तो इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण भी करता है।
🚩रक्षाबंधन के दिन बहन भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है कि ‘जैसे शिवजी त्रिलोचन हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, वैसे ही मेरे भाई में भी विवेक-वैराग्य बढ़े, मोक्ष का ज्ञान, मोक्षमय प्रेमस्वरूप ईश्वर का प्रकाश आये'। ‘मेरे भैया की सूझबूझ, यश, कीर्ति और ओज-तेज अक्षुण्ण रहें।'
🚩बहनें रक्षाबंधन के दिन ऐसा संकल्प करके रक्षासूत्र बाँधें कि ‘हमारे भाई भगवत्प्रेमी बनें ।' और भाई सोचें कि ‘हमारी बहन भी चरित्रप्रेमी, भगवत्प्रेमी बने।' अपनी सगी बहन व पड़ोस की बहन के लिए अथवा अपने सगे भाई व पड़ोसी भाई के प्रति ऐसा सोचें। आप दूसरे के लिए भला सोचते हो तो आपका भी भला हो जाता है। संकल्प में बड़ी शक्ति होती है। अतः आप ऐसा संकल्प करें कि हमारा आत्मस्वभाव प्रकटे।
🚩सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम्। सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत्।।
‘इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है। इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य रक्षित हो जाता है।' (भविष्य पुराण)
🚩येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वां अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
जिस पतले रक्षासूत्र ने महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बाँध दिया, उसीसे मैं आपको बाँधती हूँ। आपकी रक्षा हो। यह धागा टूटे नहीं और आपकी रक्षा सुरक्षित रहे। - यही संकल्प बहन भाई को राखी बाँधते समय करे। शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय ‘अभिबध्नामि' के स्थान पर ‘रक्षबध्नामि' कहें।
🚩रक्षाबंधन पर्व समाज के टूटे हुए मनों को जोड़ने का सुंदर अवसर है। इसके आगमन से कुटुम्ब में आपसी कलह समाप्त होने लगते हैं, दूरी मिटने लगती है, सामूहिक संकल्पशक्ति साकार होने लगती है।
🚩उपाकर्म संस्कार: इस दिन गृहस्थ ब्राह्मण व ब्रह्मचारी गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गौ-मूत्र को मिलाकर पंचगव्य बनाते हैं और उसे शरीर पर छिड़कते, मर्दन करते व पान करते हैं, फिर जनेऊ बदलकर शास्त्रोक्त विधि से हवन करते हैं। इसे उपाकर्म कहा जाता है। इस दिन ऋषि उपाकर्म कराकर शिष्य को विद्याध्ययन कराना आरम्भ करते थे।
🚩उत्सर्जन क्रिया: श्रावणी पूर्णिमा को सूर्य को जल चढाकर सूर्य की स्तुति तथा अरुंधती सहित सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है और दही-सत्तू की आहुतियाँ दी जाती हैं। इस क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। ( स्रोत: संत आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य ऋषि प्रसाद एवं लोक कल्याण सेतु से संकलित )
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everynewsnow · 3 years
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पोस्ट होली डिटॉक्स: सोल-सूथिंग सत्तू शर्बत मई आपके शरीर और रिबूट को साफ करने में मदद करता है - नुस्खा
पोस्ट होली डिटॉक्स: सोल-सूथिंग सत्तू शर्बत मई आपके शरीर और रिबूट को साफ करने में मदद करता है – नुस्खा
अंत में, वर्ष का सबसे जीवंत त्योहार यहां है। भारत आज (29 मार्च, 2018) होली मना रहा है। यह समय गायन, नृत्य और गुलाल, पानी और इंद्रधनुष के रंग में सराबोर होने का है। और उत्सव में जो कुछ भी शामिल है वह स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों का प्रसार है। होली के दौरान, हम में से अधिकांश गुंगिया, चाट, समोसे, लड्डू और बहुत कुछ के बेकाबू भोग के साथ, द्वि घातुमान हो जाते हैं। हम तंदई, जूस और अन्य स्वादिष्ट पेय…
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myjyotish-astro · 4 years
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Ganga Dussehra Puja Significance.
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गंगा दशहरा 2020 : 1 जून 2020 , सोमवार को पूर्ण भारत वर्ष में गंगा दशहरा का महापर्व मनाया जाएगा। यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। यह पर्व माँ गंगा के अवतरण के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह स्नान — दान एवं व्रत का महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन देवी के स्तोत्र का पाठ भी करना चाहिए , इससे व्यक्ति के जीवन से असमर्थता एवं निर्धनता का वास समाप्त होता है। यह पर्व अत्यंत ही पुण्यकारी एवं मंगलकारी माना जाता है। इस दिन गंगा नदी का पूजन करने से व्यक्ति के जीवन से सभी दुखों का नाश होता है। वह जाने — अनजाने में किए गए दस पापों से मुक्ति प्राप्त करता है। जो उससे शारीरिक , मानसिक एवं वाणी के माध्यम से कभी न कभी सक्षम हुए थे। माँ गंगा पवित्रता एवं शुभता का प्रतिक है। उनके आशीर्वाद से व्यक्ति को जीवन की अशुद्धि समाप्त करने का अवसर प्राप्त होता है।
गंगा दशहरा के दिन दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन पूजा — अर्चना के साथ ही दान — दक्षिणा का भी बहुत महत्व है। यह दिन मुक्ति — मोक्ष के लिए लाभकारी प्रमाणित होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बहुत से कथनों में माँ गंगा को माता पार्वती की बहन कहा गया है। यह आज भी भगवान शिव के जटाओं में वास करती है। कहते है की राजा भागीरथी ने अपनी कठोर तप से माँ गंगा को प्रसन्न किया था। तथा उनके प्रार्थना पर ही माँ गंगा धरती पर अवतरित हुई थी। माँ गंगा हिन्दू धर्म में मोक्षदायिनी के रूप में भी जानी जाती है। गंगा नदी गंगोत्री से निकलकर भारत के विभिन्न स्थानों से गुजरती है। यह सनातन संस्कृति का एक विशेष पर्व है। गंगा दशहरा के दिन सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
मनुष्य जाने — अनजाने में अपने जीवन काल में विभिन्न रूप के पाप करता है। तथा इन सभी पापों के लिए उसे दंड भी भोगना पड़ता है। परन्तु गंगा दशहरा के पूजन में इतनी शक्ति है की व्यक्ति को इन सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। वह कष्टों से मुक्त होकर सुखद जीवन शैली का भागी बनता है। गंगा दशहरा का यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन सभी अधूरे कार्यों की पूर्ति होती है। उसे दुःख एवं व्यथा का सामना नहीं करना पड़ता। गंगा दशहरा के पूजन के फल स्वरुप व्यक्ति को धन , यश , कीर्ति एवं सुख — सुविधाओं की कभी कमी नहीं रहती।
Reference URL: https://www.myjyotish.com/blogs-hindi/ganga-dussehra-2020-why-is-ganga-dussehra-worship-important
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दिल्ली बिहार उत्सव : छठे दिन दिखे कला के विविध रूप has been published on PRAGATI TIMES
दिल्ली बिहार उत्सव : छठे दिन दिखे कला के विविध रूप
नई दिल्ली, (आईएएनएस)| दिल्ली के आईएनए दिल्ली हाट में 15 दिवसीय बिहार उत्सव-2017 के छठे दिन बिहार की जूट की बनी गुड़िया आकर्षण का केंद्र बनी।
साथ ही जूट के बने घरेलू सामान, मधुबनी पेंटिंग, पूसा की प्राकृतिक शहद और बिहारी व्यंजनों में लिट्टी चोखा का लोगों ने जमकर लुत्फ उठाया। बिहार के 105वां स्थापना दिवस के अवसर पर दिल्ली में बिहार उत्सव 2017 का आयोजन बिहार सरकार के उद्योग विभाग की ओर से पटना के उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान द्वारा 16 से 31 मार्च तक यहां के आईएनए स्थित दिल्ली हाट में मनाया जा रहा है। बिहार स्थापना दिवस का यह कार्यक्रम बिहार की संस्कृति, परंपरा और कला पर्यटन को दर्शाता है। इस मौके पर बुधवार को सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन किया जाएगा। उत्सव में हेंडीक्राफ्ट एंड हैंडलूम के 50 स्टॉल लगाए गए हैं। इसके अलावा बिहारी व्यंजन के कई सारे स्टॉल यहां लगाए गए हैं। खाने के शौकीन लोग ‘मिस्टर लिट्टीवाला’ के यहां लिट्टी खा सकते हैं और ‘बिहार की रसोई’ नाम से मशहूर स्टॉल पर जाकर बिहार में बनने वाले विभिन्न प्रकार के सत्तू, चिप्स, चावल व आटा आदि खरीद सकते हैं। अगर आपको प्राकृतिक शहद लेनी हो तो स्टॉल नंबर 7 पर जाकर पूसा की नेचुरल शहद ले सकते हैं। बिहार उत्सव-2017 का विधिवत उद्घाटन 25 मार्च को किया जाएगा। हस्तकरधा एवं हस्तशिल्प के उत्कृष्ट सामानों की बिक्री एवं सह-प्रदर्शनी का आयोजन 31 मार्च तक होगा। कार्यक्रम को खास बनाने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति 22 से 25 मार्च तक की जाएगी। हर स्टॉल पर कुछ न कुछ ऐसा है, जो आपको अपनी ओर आकर्षित जरूर करेगा। इस बार भागलपुरी सिल्क, बसमन बीघा के चादर, मधुबनी पेंटिंग, सीकी के उत्पाद, लकड़ी की मूर्ति और जूट के बने सामान के आकर्षक स्टॉल लगाए गए हैं।
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नई दिल्ली, (आईएएनएस)| दिल्ली के आईएनए दिल्ली हाट में 15 दिवसीय बिहार उत्सव-2017 के छठे दिन बिहार की जूट की बनी गुड़िया आकर्षण का केंद्र बनी।
साथ ही जूट के बने घरेलू सामान, मधुबनी पेंटिंग, पूसा की प्राकृतिक शहद और बिहारी व्यंजनों में लिट्टी चोखा का लोगों ने जमकर लुत्फ उठाया। बिहार के 105वां स्थापना दिवस के अवसर पर दिल्ली में बिहार उत्सव 2017 का आयोजन बिहार सरकार के उद्योग विभाग की ओर से पटना के उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान द्वारा 16 से 31 मार्च तक यहां के आईएनए स्थित दिल्ली हाट में मनाया जा रहा है। बिहार स्थापना दिवस का यह कार्यक्रम बिहार की संस्कृति, परंपरा और कला पर्यटन को दर्शाता है। इस मौके पर बुधवार को सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन किया जाएगा। उत्सव में हेंडीक्राफ्ट एंड हैंडलूम के 50 स्टॉल लगाए गए हैं। इसके अलावा बिहारी व्यंजन के कई सारे स्टॉल यहां लगाए गए हैं। खाने के शौकीन लोग ‘मिस्टर लिट्टीवाला’ के यहां लिट्टी खा सकते हैं और ‘बिहार की रसोई’ नाम से मशहूर स्टॉल पर जाकर बिहार में बनने वाले विभिन्न प्रकार के सत्तू, चिप्स, चावल व आटा आदि खरीद सकते हैं। अगर आपको प्राकृतिक शहद लेनी हो तो स्टॉल नंबर 7 पर जाकर पूसा की नेचुरल शहद ले सकते हैं। बिहार उत्सव-2017 का विधिवत उद्घाटन 25 मार्च को किया जाएगा। हस्तकरधा एवं हस्तशिल्प के उत्कृष्ट सामानों की बिक्री एवं सह-प्रदर्शनी का आयोजन 31 मार्च तक होगा। कार्यक्रम को खास बनाने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति 22 से 25 मार्च तक की जाएगी। हर स्टॉल पर कुछ न कुछ ऐसा है, जो आपको अपनी ओर आकर्षित जरूर करेगा। इस बार भागलपुरी सिल्क, बसमन बीघा के चादर, मधुबनी पेंटिंग, सीकी के उत्पाद, लकड़ी की मूर्ति और जूट के बने सामान के आकर्षक स्टॉल लगाए गए हैं।
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