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#शादी क���ने की सही उम्र
abhay121996-blog · 3 years
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'तेरी बेटी पलक तो पांच बार शादी करेगी', श्‍वेता तिवारी से ऐसी घट‍िया बातें करते हैं लोग Divya Sandesh
#Divyasandesh
'तेरी बेटी पलक तो पांच बार शादी करेगी', श्‍वेता तिवारी से ऐसी घट‍िया बातें करते हैं लोग
टीवी ऐक्‍ट्रेस और ‘बिग बॉस’ फेम श्‍वेता तिवारी (Shweta Tiwari) ने अपनी पर्सनल लाइफ में बहुत कुछ झेला है। लेकिन अब उनका गुबार फूट चुका है। राजा चौधरी और अभ‍िनव कोहली के साथ उनकी दोनों शादियां टूट (broken marriage) गई हैं। ऐक्‍ट्रेस घरेलू हिंसा (Domestic Violence) का भी श‍िकार बनीं। सोशल मीडिया पर उन्‍हें आए दिन ट्रोल किया जाता है। हाल ही दिए इंटरव्‍यू में श्‍वेता ने बताया कि लोग उनके साथ कितनी घटिया बातें करते हैं। ऐक्‍ट्रेस ने यह भी कहा है कि लोग उनकी बेटी पलक तिवारी (Palak Tiwari) को लेकर भी ओछी बातें करते हैं। ट्रोल्‍स (Social Media Trolls) उन्‍हें यहां तक ताना देते हैं कि ‘तूने दो बार शादी की है, तेरी बेटी तो पांच बार शादी करेगी।’टीवी ऐक्‍ट्रेस श्‍वेता तिवारी (Shweta Tiwari) ने हाल ही अपने इंटरव्‍यू में अपनी टूटी हुई शादीशुदा जिंदगी (broken marriage) को लेकर गंभीर खुलासे किए हैं। घरेलू हिंसा से लेकर लोगों के ताने तक श्‍वेता ने सब झेला है। श्‍वेता ने अब बताया है कि लोग उनकी बेटी पलक तिवारी (Palak Tiwari) को लेकर कितनी घटिया बातें (Social Media Trolls) करते हैं।टीवी ऐक्‍ट्रेस और ‘बिग बॉस’ फेम श्‍वेता तिवारी (Shweta Tiwari) ने अपनी पर्सनल लाइफ में बहुत कुछ झेला है। लेकिन अब उनका गुबार फूट चुका है। राजा चौधरी और अभ‍िनव कोहली के साथ उनकी दोनों शादियां टूट (broken marriage) गई हैं। ऐक्‍ट्रेस घरेलू हिंसा (Domestic Violence) का भी श‍िकार बनीं। सोशल मीडिया पर उन्‍हें आए दिन ट्रोल किया जाता है। हाल ही दिए इंटरव्‍यू में श्‍वेता ने बताया कि लोग उनके साथ कितनी घटिया बातें करते हैं। ऐक्‍ट्रेस ने यह भी कहा है कि लोग उनकी बेटी पलक तिवारी (Palak Tiwari) को लेकर भी ओछी बातें करते हैं। ट्रोल्‍स (Social Media Trolls) उन्‍हें यहां तक ताना देते हैं कि ‘तूने दो बार शादी की है, तेरी बेटी तो पांच बार शादी करेगी।’ट्रोलर्स हर दिन लांघते हैं मर्यादा, करते हैं ओछी बातेंश्‍वेता तिवारी के खुलासे चौंकाने वाले हैं। ऐसा इसलिए कि प्‍यार बांटने की तमाम कोश‍िशों के बीच दुनिया में नफरत किस हद तक प्रभावी है, यह श्‍वेता की बातों से पता चलती है। श्‍वेता तिवारी ने 19 साल की उम्र में राजा चौधरी से शादी की थी। राजा चौधरी कथ‍ित तौर पर श्‍वेता को पीटते थे। वह भी बेटी पलक के सामने। दोनों का तलाक हो गया। श्‍वेता ने इसके बाद अभ‍िनव कोहली से शादी की। लेकिन यह शादी भी बहुत दिनों तक नहीं चली। सोशल मीडिया पर घटिया लोग हर दिन मर्यादा लांघते हैं। एक महिला और उससे अध‍िक एक मां होने के नाते श्‍वेता यह सब झेलती हैं, ताकि बच्‍चों का भविष्‍य अच्‍छा बने। लेकिन वह यह भी कहती हैं कि उनके बच्‍चों ने इन अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है। ‘लिव-इन और ब्रेकअप पर क्‍यों नहीं बोलते लोग”बॉलिवुड बबल’ को दिए इंटरव्‍यू में श्‍वेता ने बताया कि लोग उन्‍हें यहां तक कहते हैं कि वह तीसरी शादी न करे, क्‍योंकि वह भी टूट जाएगी। श्‍वेता अपने दर्द को बयान करते हुए कहती हैं, ‘कोई तब सवाल नहीं उठाता जब आप 10 साल लिव-इन रिलेशन में रहते हैं और फिर जुदा हो जाते हैं। लेकिन जब आप किसी असफल शादी से बाहर निकलते हैं तो लोग आपको ताने मारते हैं।’लोग कहते हैं- श्‍वेता तीसरी शादी मत करनाश्‍वेता का गुबार अब फूट चुका है। वह बताती हैं, ‘लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि तीसरी शादी मत करना। मैं उनसे यही कहना चाहती हूं कि यह बताने वाले वो कौन होते हैं? क्‍या वह मेरी शादी का खर्च उठाने वाले हैं? यह मेरी जिंदगी है। मेरे फैसले हैं। किसी को इसमें दखल देने का कोई हक नहीं है।”पलक ने जितना देखा है, वह शायद शादी ही न करे’श्‍वेता इंटरव्‍यू में आगे बताती हैं कि ट्रोलर्स न सिर्फ उन्‍हें बल्‍क‍ि उनकी बेटी पलक तिवारी को भी टारगेट करते हैं। श्‍वेता कहती हैं, ‘मुझे इंस्‍टाग्राम पर मेसेज आते हैं। लोग कहते हैं कि तुमने दो बार शादियां की हैं। देखना तुम्‍हारी बेटी पांच बार शादी करेगी। मेरी बेटी ने अब तक जो भी देखा है, जितना भी सहा है, मुझे लगता है कि शायद वह शादी ही न करे। वह समझदार है, अपने फैसले और अपने भले के लिए क्‍या सही है, वह यह जानती है।”मैंने गलत लोगों को चुना’श्‍वेता तिवारी को अपने फैसलों पर पछतावा भी है। वह कहती हैं, ‘मैंने गलत लोगों को चुना और इस कारण मेरे बच्‍चे भी इस परेशानी को झेल रहे हैं। मेरी बेटी ने मुझे पिटते हुए देखा है। मेरा छोटा सा बेटा रेयांश अभी से पुलिस और जजों के बारे में जानता है। वह सिर्फ 4 साल का है।”मेरे बच्‍चे छुपाते हैं अपनी फीलिंग्‍स’श्वेता अपने बच्‍चों के बारे में बात करते हुए कहती हैं, ‘मेरे बच्चे कभी अपने दुख को जाहिर नहीं करते। मैं सोचकर हैरान रह जाती हूं कि दोनों आखिर इतना खुश कैसे हैं, जबकि उनके आसपास इतना कुछ हो रहा है। सोचती हूं कि क्या दोनों बच्चे मुझसे अपनी फीलिंग्स छिपाने की कोशिश कर रहे हैं? मेरे बच्चों ने बहुत कुछ सहा है।’1998 में की थी पहली शादी, 9 साल बाद तलाकश्वेता तिवारी ने 1998 में राजा चौधरी से पहली शादी की थी। दो साल बाद साल 2000 में उन्होंने बेटी पलक को जन्म दिया। श्वेता और राजा चौधरी के बीच खूब लड़ाई-झगड़े होने लगे। श्वेता ने तब राजा चौधरी पर मारपीट करने और टॉर्चर करने का आरोप लगाया था। शादी के 9 साल बाद श्वेता ने राजा चौधरी से तलाक ले लिया। दूसरे पति ने दी ‘बर्बाद’ करने की धमकीराजा चौधरी से तलाक के 6-7 साल बाद श्वेता तिवारी की जिंदगी में अभिनव कोहली आए। लेकिन अब उनकी दूसरी शादी भी टूटने की कगार पर है। श्वेता ने बताया कि अभिनव उन्हें बर्बाद करने की धमकी देते रहते हैं। वह बताती हैं, ‘मेरे घर की लॉबी में अभिनव मुझसे कहा था कि एक और औरत की इमेज खराब करने में क्या लगता है? बस एक पोस्ट। सिर्फ एक पोस्ट और तुम बर्बाद हो जाओगी। मैं बता रहा हूं। उसके 5-6 दिन बाद उसने पोस्ट करना शुरू कर दिया। लोग कहते हैं बड़ी अच्छी बनती फिरती है, बड़ी सुंदर बनती फिरती है। देखो कैसी लाइफ है? पति नहीं संभाल पाई।’
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simpleoptimsticgirl · 3 years
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हाँ तो फिर शुरू हुआ दूरियों में भी प्यार का एहसास । लड़का दूर था ऊपर से शादी हुई थी पहले से तो छुट्टियों में लड़की सोचती की मुझसे मिलने आए और बीवी सोचती उससे।  लड़का समझदार था काफी अच्छे से निभाया सब।  क्युकी लड़का लड़की दोनों नौकरी वाले थे तो समय मिलता था शनिवार इतवार का, जिसमे लड़का सब संभाल रहा था ताकि किसी तरफ कोई दिक्कत ना हो।  बहुत बार तो ऐसा हुआ की वो लड़की से मिलने ही आया और घर नहीं गया तो फिर धीरे धीरे शुरू हुआ घर में शक का बढ़ना की क्यों नहीं आता। ख़ैर आसान नहीं था दोनों को संभालना पर हाँ जैसे तैसे चलता गया।  लड़के के हिसाब से वो और उसकी बीवी में "अंडरस्टैंडिंग" नहीं थी , जो शायद हाँ नहीं थी और उसका कारन न तो उसकी जल्दी शादी थी बल्कि इंसान का स्वभाव था , एक चीज़ तो सबसे अच्छी थी लड़के की वो ये की बचपन से ही जिम्मेदारियां ले ली उसने और क्युकी क्युकी समय से पहले जिम्मेदारियां ली तो स्व्भविक सबकी उम्मीदें भी उससे बढ़ गयी और हाँ वो उनको जितना बन स्का पूरा बी करता गया।  पर कहते हैं न जिम्मेदारियां भी तभी सही लगती जब उनको सरहाया जाए पर वो शायद कभी हुआ नहीं।  समय बीतता गया जीवन का उनका और घर वाले तो क्या कोई न कोई कुछ गिनवाता ही चला गया , घर है न ये सब चलता रहता शायद ये मान के वो करता भी गया, पर इंसान तो इंसान है न एक समय पे कोई सुनने समझने वाला चाइये होता और ऐसा साथी अगर उम्र भर हो तो बात ही क्या फिर वरना फिर इंसान बस भरता जाता और वही होता गया।  जब बहुत परेशां हुआ देखा लड़के को , तो जिस लड़की से प्यार किया उसने जितना बन सका जैसे बन सका साथ दिया और धीरे धीरे फिर शुरू हुआ जिंदगी भर साथ रहने की बातें।  सबसे अच्छा समय तब आया जब लड़की जिसने हालाँकि उसके बच्चो को जनम नहीं दिया था फिर भी मन में ख्वाब बुने जो शायद खुद जनम देने से भी ज्यादा थे, क्युकी लड़का हमेशा इस बात से डरता था की बच्चो पे कुछ गलत असर तो नहीं पड़ेगा कभी।
सब कुछ चलते चले साल २०१९ बीतता गया , लड़की २८ साल की थी घर वाले लड़का देख रहे थे क्युकी समाज कहा किसी की सुनता , लड़की मना करती गयी, एक बार तो सामने हाँ हो गयी और फिर जैसे भी बन सका मना किया लड़के को और लड़की के घर पे रायता फैलना था वो फैल गया।  ख़ैर सब चलता रहा , इन सब के बीच लड़के की बीवी को ये समझ आ गया की लड़का किसी और लड़की को चाहने लगा है , और अपने मायके जा के उसने लड़की के घर पे कुछ लोगो को भेजा।  इन सब के बिच लड़के ने माना की अब ऐसा कुछ नहीं और बीवी को ले आया घर।  फिर क्या एक तरफ ये की लड़की नहीं है दूसरी तरफ वो थी।  लड़के के कहने पे ये मान के की सब सही कर लगे चलता गया
और इन सब के चलते उन दोनों में आपस में लड़ाईया बढ़ने लगी , फिर आया साल "२०२० ", ये कहु की इस साल को स्वर्णिम पन्नो में लिखा जाना चाइये या ये कहु की इसे ऐसा माना जाए की पानी की लेहेरे आए और कुछ लिखा हुआ मिटा गयी।।।।
इस साल का पहला दिन लड़का लड़की का साथ शुरू हुआ , लड़के के घर से ससुराल से फ़ोन पे ही लड़ाईया होती रही।  साल बढ़ा कुछ खुशिया ले कर आया लड़के के घर पे और फेब्रुअरी तक सब हो गया।। उसके बाद चला सिलसिला लड़ाइयों ब्लॉक अनब्लॉक रूठने मानाने का।  बीवी लड़के के साथ रहने लगी (कारन कुछ भी रहा) , और फिर घर गयी तो लौटी नहीं।  इन सब के बिच लड़की मिलने गयी लड़के से वो भी घर वालो की दिलाई गाडी से और बस फिर क्या क्युकी घर वालो को पता नहीं था फ़ोन आया लड़की के घर से , लड़की गाड़ी चला क पहुंचने लगी और एक झटके में गाड़ी ने पलटा खाया , जाने कोनसी शक्ति साथ थी की गाड़ी की हालत और लड़की की हालत एक जैसी नहीं थी।  
बस फिर सिलसिले शुरू हुए अलग तरह के हर तरफ हर तरह से।।।
to be continued
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margdarsanme · 4 years
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 1 Silver Wedding
NCERT Class 12 Hindi :: Chapter 1 Silver Wedding (सिल्वर वैडिंग)
वितान, भाग 2 (पूरक पाठ्यपुस्तक)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है, लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों? चर्चा कीजिए। (CBSE-2008, 2010, 2016)उत्तर:यशोधर बाबू बचपन से ही जिम्मेदारियों के बोझ से लद गए थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। उनका पालन-पोषण उनकी विधवा बुआ ने किया। मैट्रिक होने के बाद वे दिल्ली आ गए तथा किशन दा जैसे कुंआरे के पास रहे। इस तरह वे सदैव उन लोगों के साथ रहे जिन्हें कभी परिवार का सुख नहीं मिला। वे सदैव पुराने लोगों के साथ रहे, पले, बढ़े। अत: उन परंपराओं को छोड़ नहीं सकते थे। उन पर किशन दा के सिद्धांतों का बहुत प्रभाव था। इन सब कारणों से यशोधर बाबू समय के साथ बदलने में असफल रहते हैं। दूसरी तरफ, उनकी पत्नी पुराने संस्कारों की थीं। वे एक संयुक्त परिवार में आई थीं जहाँ उन्हें सुखद अनुभव हुआ। उनकी इच्छाएँ अतृप्त रहीं। वे मातृ सुलभ प्रेम के कारण अपनी संतानों का पक्ष लेती हैं और बेटी के अंगु एकपाई पहात हैं। वे बेयों के किसी मामले में दल नाहीं देता। इस प्रकर वे स्वायं को शीघ्र ही बदल लेती है। 
प्रश्न 2.पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते/सकती हैं? (CBSE-2009, 2012, 2014)उत्तर:‘जो हुआ होगा’ वाक्यांश का प्रयोग किशनदा की मृत्यु के संदर्भ में होता है। यशोधर ने किशनदा के जाति भाई से उनकी मृत्यु का कारण पूछा तो उसने जवाब दिया- जो हुआ होगा अर्थात् क्या हुआ, पता नहीं। इस वाक्य की अनेक छवियाँ बनती हैं –
पहला अर्थ खुद कहानीकार ने बताया कि पता नहीं, क्या हुआ।
दूसरा अर्थ यह है कि किशनदा अकेले रहे। जीवन के अंतिम क्षणों में भी किसी ने उन्हें नहीं स्वीकारा। इस कारण उनके मन में जीने की इच्छा समाप्त हो गई।
तीसरा अर्थ समाज की मानसिकता है। किशनदा ���ैसे व्यक्ति का समाज के लिए कोई महत्त्व नहीं है। वे सामाजिक नियमों के विरोध में रहे। फलतः समाज ने भी उन्हें दरकिनार कर दिया।
प्रश्न 3.‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं? इस काव्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है? (CBSE-2008, 2009, 2011).
उत्तर:यशोधर बाबू ‘समहाउ इंप्रॉपर’ वाक्यांश का प्रयोग तकिया कलाम की तरह करते हैं। उन्हें जब कुछ अनुचित लगता में उन्हें कई कमियाँ नजर आती हैं। वे नए के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते। यह वाक्यांश उनके असंतुलन एवं अज व्यिक्तिवक अर्थ प्रश्न करता है। पाठ में अकस्थान पर”समाहाट इपािर वाक्याश का प्रयोग हुआ है।
दफ़्तर में सिल्वर वैडिंग पर
स्कूटर की सवारी पर
साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलने पर
अपनों से परायेपन का व्यवहार मिलने पर
डी०डी०ए० फ़्लैट का पैसा न भरने पर
पुत्र द्वारा वेतन पिता को न दिए जाने पर
खुशहाली में रिश्तेदारों की उपेक्षा करने पर
पत्नी के आधुनिक बनने पर
शादी के संबंध में बेटी के निर्णय पर
घर में सिल्वर वैडिंग पार्टी पर
केक काटने की विदेशी परंपरा पर आदि
कहानी के अंत में यशोधर के व्यक्तित्व की सारी विशेषता सामने उभरकर आती है। वे जमाने के हिसाब से अप्रासंगिक हो गए हैं। यह पीढ़ियों के अंतराल को दर्शाता है।
प्रश्न 4.यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान है और कैसे? (CBSE-2012)उत्तर:मेरे जीवन को दिशा देने में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान मेरे गुरुओं का रहा है। उन्होंने हमेशा मुझे यही शिक्षा दी कि सत्य बोलो। सत्य बोलने वाला व्यक्ति हर तरह की परेशानी से मुक्त हो जाता है जबकि झूठ बोलने वाला अपने ही जाल में फँस जाता है। उसे एक झूठ छुपाने के लिए सैकड़ों झूठ बोलने पड़ते हैं। अपने गुरुओं की इस बात को मैंने हमेशा याद रखा। वास्तव में उनकी इसी शिक्षा ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी।
प्रश्न 5.वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं? (सैंपल पेपर-2005)उत्तर:इस कहानी में दर्शाए गए परिवार के स्वरूप व संरचना आज भी लगभग हर परिवार में पाई जाती है। संयुक्त परिवार प्रथा समाप्त हो रही है। पुरानी पीढ़ी की बातों या सलाह को नयी पीढ़ी सिरे से नकार रही है। नए युवा कुछ नया करना चाहते हैं, परंतु बुजुर्ग परंपराओं के निर्वाह में विश्वास रखते हैं। यशोधर बाबू की तरह आज का मध्यवर्गीय पिता विवश है। वह किसी विषय पर अपना निर्णय नहीं दे सकता। माताएँ बच्चों के समर्थन में खड़ी नजर आती हैं। आज बच्चे अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने में अधिक खुश रहते हैं। वे आधुनिक जीवन शैली को ही सब कुछ मानते हैं। लड़कियाँ फ़ैशन के अनुसार वस्त्र पहनती हैं। यशोधर की लड़की उसी का प्रतिनिधि है। अत: यह कहानी आज लगभग हर परिवार की है।
प्रश्न 6.निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे/कहेंगी और क्यों?(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य(ख) पीढ़ी अंतराल(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव।उत्तर:मेरी समझ में पीढ़ी अंतराल ही ‘सिल्वर वैडिंग’ शीर्षक कहानी की मूल संवेदना है। यशोधर बाबू और उसके पुत्रों में एक पीढ़ी को अंतराल है। इसी कारण यशोधर बाबू अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाते हैं। यह सिद्धांत और व्यवहार की लड़ाई है। यशोधर बाबू सिद्धांतवादी हैं तो उनके पुत्र व्यवहारवादी। आज सिद्धांत नहीं व्यावहारिकता चलती है। यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं जो नयी पीढ़ी के साथ कहीं भी तालमेल नहीं रखते। पीढ़ी का अंतराल और उनके विचारों का अंतराल यशोधर बाबू और उनके परिवार के सदस्यों में वैचारिक अलगाव पैदा कर देता है।
प्रश्न 7.अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?उत्तर:हमारे घर व विद्यालय के आस-पास निम्नलिखित बदलाव हो रहे हैं जिन्हें बुजुर्ग पसंद नहीं करते
युवाओं द्वारा मोबाइल का प्रयोग करना।
युवाओं द्वारा पैदल न चलकर तीव्र गति से चलाते हुए मोटर-साइकिल या स्कूटर का प्रयोग।
लड़कियों द्वारा जीन्स व शर्ट पहनना।
लड़के-लड़कियों की दोस्ती व पार्क में घूमना।
खड़े होकर भोजन करना।
तेज आवाज में संगीत सुनना।
बुजुर्ग पीढ़ी इन सभी परिवर्तनों का विरोध करती है। उन्हें लगता है कि ये हमारी संस्कृति के खिलाफ़ हैं। कुछ सुविधाओं को वे स्वास्थ्य की दृष्टि से खराब मानते हैं तो कुछ उनकी परंपरा को खत्म कर रहे हैं। महिलाओं व लड़कियों को अपनी सभ्यता व संस्कृति के अनुसार आचरण करना चाहिए।
प्रश्न 8.यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं है।(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।उत्तर:यशोधर बाबू के बारे में हमारी यही धारणा बनती है कि यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता है पर पुराना छोड़ता नहीं, इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है। यद्यपि वे सिद्धांतवादी हैं तथापि व्यावहारिक पक्ष भी उन्हें अच्छी तरह मालूम है। लेकिन सिद्धांत और व्यवहार के इस द्वंद्व में यशोधर बाबू कुछ भी निर्णय लेने में असमर्थ हैं। उन्हें कई बार तो पत्नी और बच्चों का व्यवहार अच्छा लगता है तो कभी अपने सिद्धांत। इस द्वंद्व के साथ जीने के लिए मजबूर हैं। उनका दफ्तरी जीवन जहाँ सिद्धांतवादी है वहीं पारिवारिक जीवन व्यवहारवादी। दोनों में सामंजस्य बिठा पाना उनके लिए लगभग असंभव है। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.नया छोकरा चड्ढा किस प्रकार की धृष्टता करता था?उत्तर:चड्ढा असिस्टेंट ग्रेड में आया था। चूंकि वह नौजवान था, इसलिए वह पंत बाबू के साथ धृष्टता किया करता था। उनकी उम्र का लिहाज भी वह नहीं करता था। उनकी घड़ी को वह चूनेदानी कहता; कभी उनकी कलाई पकड़ लेता। उसे इस बात का जरा भी खयाल नहीं होता था कि पंत बुजुर्ग व्यक्ति हैं। वह तो अपनी जवानी के जोश में जो कुछ करता उसे अच्छा लगता है। धीरे-धीरे यशोधर पंत ने इन बातों की ओर ध्यान देना छोड़ दिया। वे किसी तरह का विरोध भी नहीं करते थे।
प्रश्न 2.किशनदा का बुढ़ापा सुखी क्यों नहीं रहा?उत्तर:बाल-जती किशनदा का बुढ़ापा सुखी नहीं रहा। उनके तमाम साथियों ने हौजखास, ग्रीनपार्क, कैलाश कहीं-न-कहीं ज़मीन ली, मकान बनवाया, लेकिन उन्होंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। रिटायर होने के छह महीने बाद जब उन्हें क्वार्टर खाली करना पड़ा तब उनके द्वारा उपकृत लोगों में से एक ने भी उन्हें अपने यहाँ रखने की पेशकश नहीं की। स्वयं यशोधर बाबू उनके सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रख पाए क्योंकि उस समय तक उनकी शादी हो चुकी थी और उनके दो कमरों के क्वार्टर में तीन परिवार रहा करते थे। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क्वार्टर लेकर रहे और फिर अपने गाँव लौट गए जहाँ साल भर बाद उनकी मृत्यु हो गई। विचित्र बात यह है कि उन्हें कोई भी बीमारी नहीं हुई। बस रिटायर होने के बाद मुरझाते-सूखते ही चले गए। अकेलेपन ने उनके अंदर की जीवनशक्ति को समाप्त कर दिया था।
प्रश्न 3.पीढ़ी का अंतराल किस तरह हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा है? स्पष्ट करें।उत्तर:पीढ़ी का अंतराल आने से विचार नहीं मिलते। युवा लोग पुराने विचारों को ढकोसला, मात्र परंपरा और दकियानूसी मानते हैं। वे तो पुराने विचारों को पूरी तरह त्याग देते हैं। इसीलिए पुराने विचार रखने वाले और कहने वाले उन्हें फालतू आदमी लगते हैं। विचारों को इस मतभेद ने मध्यवर्गीय जीवन को बहुत प्रभावित किया है। मध्यवर्गीय परिवार आज संयुक्त परिवार प्रथा को भूला चुके हैं क्योंकि विचारों का मतभेद वहाँ भी है। यशोधर पंत का जीवन इसी पीढ़ी अंतराल ने प्रभावित किया है। अपने बच्चों के विचारों को वे अपना नहीं सकते और अपने विचारों को वे छोड़ नहीं सकते। अपनाने और छोड़ने की इस दुविधा भरी स्थिति में यशोधर बाबू सपरिवार, होते हुए भी स्वयं को अकेला पाते हैं।
प्रश्न 4.आज पारिवारिक संबंध आर्थिक संबंधों पर ज्यादा निर्भर रहते हैं, स्पष्ट करें।उत्तर:विज्ञान के इस युग में आज संबंधों का मानक आर्थिक स्थिति बन गई है। आज पारिवारिक संबंध तभी सही रहते हैं जब आर्थिक स्थिति बेहतर हो। यशोधर पंत की पारिवारिक स्थिति इसी अर्थ पर निर्भर करती है। बच्चे चाहते हैं कि पिता किसी न किसी ढंग से ऊपरी कमाई करें और उनका जीवन सुखी बनाएँ लेकिन सिद्धांतवादी पंत ने ऐसा कभी सोचा भी नहीं। और तो और अपने कोटे का निर्धारित फ्लैट भी उन्होंने नहीं लिया। इन सभी बातों से उनके बच्चे सदा उनसे खिन्न रहे। यद्यपि बड़ा बेटा भूषण एक विज्ञापन एजेंसी में पंद्रह सौ रुपये मासिक की नौकरी करता है तथापि पिता और पुत्र के बीच की वैचारिक खाई बनाने में पैसे की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कहीं न कहीं पैसा ही इन संबंधों को प्रभावित कर रहा है।
प्रश्न 5.गीता की महिमा सुनते-सुनते जनार्दन शब्द सुनते ही यशोधर पंत क्या सोचने लगते हैं?उत्तर:गीता की महिमा सुनते-सुनते अचानक यशोधर पंत के कानों में ‘जनार्दन’ शब्द सुनाई पड़ा। यह सुनते ही उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद आ गई। उन्हें याद आया कि परसों ही चिट्ठी आई है कि उनके जीजा जी बीमार हैं। वे अहमदाबाद में रहते हैं। ऐसे समय में उनका हाल-चाल जानने के लिए अहमदाबाद जाना ही होगा। यशोधर पंत एक मिलनसार व्यक्ति हैं। हर किसी के सुख-दुख में वे जाते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी पारिवारिकता के प्रति उत्साही बनें। लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। पत्नी और बच्चों का तो यह मानना है कि पुराने रिश्तों के प्रति लगाव रखना मूर्खता है? क्योंकि इन्हें निभाने के लिए समय और पैसा दोनों की हानि होती है। अपने जीजा जनार्दन जोशी का हाल-चाल जानने के लिए वे अहमदाबाद जाने के लिए उतावले हैं जब बड़ा बेटा उन्हें पैसे देने से मना कर देता है तो वे उधार पैसे लेकर अहमदाबाद जाने का निर्णय करते हैं।
प्रश्न 6.यशोधर पंत ने भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचा, केवल वर्तमान के बारे में ही चिंता की। क्यों ?उत्तर:सिद्धांतवादी लोग लकीर का फकीर बन जाते हैं। उन्हें भविष्य की कोई फिक्र नहीं होती। वे तो बस वर्तमान को ही सब कुछ मानते हैं। यशोधर पंत भी ऐसे ही व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों के इस आग्रह को कई बार ठुकराया कि कोई मकान मोल क्यों न ले लिया जाए। रिटायर होने के बाद तो सरकारी क्वार्टर छोड़ना पड़ेगा, लेकिन इस बात को यशोधर बाबू ने कभी समझने का प्रयत्न ही नहीं किया। सदा यही कहते रहे कि जो होगा देखा जाएगा। यशोधर बाबू ने तो किशनदा की एक बात को गाँठ में बाँध लिया है कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं और समझदार लोग उसमें रहते हैं। इसलिए वर्तमान में जीन वाले यशोधर पंत भविष्य की चिंता करता भी तो क्यों?
प्रश्न 7.यशोधर बाबू किशनदा की किन परंपराओं को अभी तक निभा रहे हैं?उत्तर:यशोधर बाबू किशनदा के भक्त हैं। वे उनके विचारों का अनुसरण करते हैं, जो निम्नलिखित हैं(क) उन्होंने कभी मकान नहीं लिया क्योंकि किशनदा ने कहा कि मूर्ख मकान बनाते हैं, समझदार उसमें रहते हैं।(ख) उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा।(ग) उन्हें हर नई चीज़ में कमी नज़र आती थी।(घ) वे किशनदा की उस बात को मानते हैं कि जवानी में व्यक्ति गलतियाँ करता है, परंतु बाद में समझदार हो जाता है।(ङ) वे ‘जन्यो पुन्यू’ के दिन सब कुमाउँनियों को जनेऊ बदलने के लिए अपने घर बुलाते थे, होली गवाते थे तथा रामलीला की तालीम के लिए क्वार्टर का एक कमरा देते थे।
प्रश्न 8.यशोधर बाबू की घर के लोगों से किस-किस बात पर नहीं बनती ?उत्तर:पिछले कई वर्षों से यशोधर बाबू का अपनी पत्नी और बच्चों से हर छोटी-बड़ी बात में मतभेद होने लगा है। इसी वजह से वह घर जल्दी लौटना पसंद नहीं करते। जब तक बच्चे छोटे थे तब तक वह उनकी पढ़ाई-लिखाई में मदद कर सकते थे। अब बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी पा गया है। यद्यपि ‘समहाउ’ यशोधर बाबू को अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन देने वाली यह नौकरी कुछ समझ में आती नहीं।
वह कहते हैं कि डेढ़ हजार रुपया तो हमें अब रिटायरमेंट के पास पहुँच कर मिला है, शुरू में ही डेढ़ हजार रुपया देने वाली इस नौकरी में ज़रूर कुछ पेंच होगा। यशोधर जी का दूसरा बेटा दूसरी बार आई.ए.एस. देने की तैयारी कर रहा है। और यशोधर बाबू के लिए यह समझ सकना असंभव है कि जब यह पिछले साल ‘एलाइड सर्विसेज’ की सूची में, माना काफ़ी नीचे आ गया था, तब इसने ज्वाइन करने से इंकार क्यों कर दिया? उनका तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका चला गया है और उनकी एकमात्र बेटी न केवल तमाम प्रस्तावित वर अस्वीकार करती चली जा रही है बल्कि डॉक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए स्वयं भी अमेरिका चले जाने की धमकी दे रही है। यशोधर बाबू जहाँ बच्चों की इस तरक्की से खुश होते हैं वहा ‘समहाउ’ यह भी अनुभव करते हैं कि वह खुशहाली भी कैसी जो अपनों में परायापन पैदा करे। अपने बच्चों द्वारा गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा उन्हें ‘समहाउ’ हुँचती नहीं।
प्रश्न 9.यशोधर बाबू की पत्नी ने मॉडर्न बनने के पीछे क्या तर्क दिए थे?उत्तर:यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं है, परंतु बच्चों की तरफदारी करने की मातृसुलभ मजबूरी ने उन्हें भी मॉडर्न बना डाला है। जिस समय उनकी शादी हुई थी यशोधर बाबू के साथ गाँव से आए ताऊजी और उनके दो विवाहित बेटे भी रहा करते थे। इस संयुक्त परिवार में पीछे ही पीछे बहुओं में गज़ब के तनाव थे लेकिन ताऊजी के डर से कोई कुछ कह नहीं पाता था। यशोधर बाबू की पत्नी को शिकायत है कि संयुक्त परिवार वाले उस दौर में पति ने हमारा पक्ष कभी नहीं लिया, बस जिठानियों की चलने दी। उनका यह भी मानना है कि मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी। जितने भी नियम इनकी बुढ़िया ताई के लिए थे, वे सब मुझ पर भी लागू करवाए – ऐसा कहती है घरवाली बच्चों से। बच्चे उससे सहानुभूति व्यक्त करते हैं। फिर वह यशोधर जी से उन्मुख होकर कहती है-मैं भी इन बातों को उसी हद तक मानूंगी जिस हद तक सुभीता हो। अब मेरे कहने से वह सब ढोंग-ढकोसला हो नहीं सकता।
प्रश्न 10.कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए कि यशोधर बाबू का व्यक्तित्व किशनदा के पूर्ण प्रभाव में विकसित हुआ था।अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर बताइए कि यशोधर बाबू किशनदा को अपना आदर्श क्यों मानते थे?उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में यशोधर बाबू किशनदा के मानस पुत्र लगते हैं। उनका व्यक्तित्व किशनदा की प्रतिच्छया है। कम उम्र में यशोधर पहाड़ से दिल्ली आ गए थे तथा किशनदा ने ही उन्हें आश्रय दिया था। उन्हें सरकारी विभाग में नौकरी दिलवाई। इस तरह जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाले व्यक्ति से प्रभावित होना स्वाभाविक है। किशनदा की निम्नलिखित आदतों का यशोधर बाबू ने जीवन भर निर्वाह किया
ऑफिस में सहयोगियों के साथ संबंध
सुबह सैर करने की आदत
पहनने-ओढ़ने का तरीका
किराए के मकान में रहना
आदर्श बातें करना
किसी बात को कहकर मुसकराना
सेवानिवृत्ति के बाद गाँव जाने की बात कहना आदि
यशोधर बाबू ने रामलीला करवाना आदि भी किशनदा से ही सीखा। वे अंत तक अपने सिद्धांतों पर चिपटे रहे। किशनदा के उत्तराधिकारी होते हुए भी उन्होंने परिवार नामक संस्था को बनाया।
प्रश्न 11.‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी का प्रमुख पात्र वर्तमान में रहता है, किंतु अतीत को आदर्श मानता है। इससे उसके व्यवहार में क्या-क्या विरोधाभास दिखाई पड़ते हैं? सोदाहरण उल्लेख कीजिए। (CBSE-2012)अथवायशोधर पंत की पीढ़ी की विवशता यह है कि वे पुराने को अच्छा समझते हैं और वर्तमान से तालमेल नहीं बिठा पाते। ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए। (CBSE-2012)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ का प्रधान पात्र वर्तमान में रहता है, किंतु अतीत में जीता है। भविष्य के साथ कदम मिलाने में असमर्थ रहता है। – उपर्युक्त कथन के आलोक में यशोधर बाबू के अंतरवंद्व पर सोदाहरण प्रकाश डालिए। (CBSE-2011)अथवा‘यशोधर बालू दो भिन्न कालखंडों में जी रहे हैं’-पक्ष या विपक्ष में सोदाहरण तर्क दीजिए। (CBSE-2016)उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ का प्रधान पात्र यशोधर बाबू है। वह रहता तो वर्तमान में हैं, परंतु जीता अतीत में है। वह अतीत को आदर्श मानता है। यशोधर को पुरानी जीवन शैली, विचार आदि अच्छे लगते हैं, वे उसका स्वप्न हैं। परंतु वर्तमान जीवन में वे अप्रासंगिक हो गए हैं। कहानी में यशोधर का परिवार नए ज़माने की सोच का है। वे प्रगति के नए आयाम छूना चाहते हैं। उनका रहन-सहन, जीने का तरीका, मूल्यबोध, संयुक्त परिवार के कटु अनुभव, सामूहिकता का अभाव आदि सब नए ज़माने की देन है। यशोधर को यह सब ‘समहाड इम्प्रापर’ लगता है। उन्हें हर नई चीज़ में कमी नजर आती है। वे नए जमाने के साथ तालमेल नहीं बना पा रहे। वे अधिकांश बदलावों से असंतुष्ट हैं। वे बच्चों की तरक्की पर खुलकर प्रतिक्रिया नहीं दे पाते। यहाँ तक कि उन्हें बेटे भूषण के अच्छे वेतन में गलती नजर आती है। दरअसल यशोधर बाबू अपने समय से आगे निकल नहीं पाए। उन्हें लगता है कि उनके जमाने की सभी बातें आज भी वैसी ही होनी चाहिए। यह संभव नहीं है। इस तरह के रूढ़िवादी व्यक्ति समाज के हाशिए पर चले जाते हैं।
प्रश्न 12.यशोधर के स्वभाव को ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर बताइए। (CBSE-2010)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू के स्वभाव की किंहीं तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (CBSE-2008, 2009)अथवायशोधर पंत की तीन चारित्रित विशेषताएँ सोदाहरण बताइए। (CBSE-2014)उत्तर:यशोधर पंत गृह मंत्रालय में सेक्शन अफ़सर हैं। वह पहाड़ से दिल्ली आए थे और यहाँ किशनदा के घर रहे। उनका यशोधरपर असर था। यशोधर के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
भौतिक सख के विरोधी – यशोधर भौतिक संसाधनों के घोर विरोधी थे। उन्हें घर या दफ्तर में पार्टी करना पसंद नहीं था। वे पैदल चलते थे या साइकिल पर चलते थे। केक काटना, काले बाल करना, मेकअप, धन संग्रह आदि पसंद नहीं था।
असंतुष्ट पिता – यशोधर जी एक असंतुष्ट पिता भी थे। अपने बच्चों के विचारों से सहमत नहीं थे। बेटी के पहनावे को वे सही नहीं मानते थे। उन्हें बच्चों की प्रगति से भी ईष्र्या थी। बेटे उनसे किसी बात में सलाह नहीं लेते थे क्योंकि उन्हें सब कुछ गलत नज़र आता था।
परंपरावादी – यशोधर परंपरा का निर्वाह करते थे। उन्हें सामाजिक रिश्ते निबाहने में आनंद आता था। वे अपनी बहन को नियमित तौर पर पैसा भेजते थे। वे रामलीला आदि का आयोजन करवाते थे।
अपरिवर्तनशील – यशोधर बाबू आदर्शो से चिपके रहे। वे समय के अनुसार अपने विचारों में परिवर्तन नहीं ला सके। वे रूढ़िवादी थे। उन्हें बच्चों के नए प्रयासों पर संदेह रहता था। वे सेक्शन अफ़सर होते हुए भी साइकिल से दफ्तर जाते थे।
निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 13.यशोधर बाबू किन जीवन-मूल्यों को थामे बैठे हैं? नई पीढ़ी उन्हें प्रासंगिक क्यों नहीं मानती? तर्कसम्मत उत्तर दीजिए। (CBSE-2015)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के पात्र किशनदा के उन जीवन-मूल्यों की चर्चा कीजिए जो यशोधर बाबू की सोच में आजीवन बने रहे। (CBSE-2014)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर उन जीवन-मूल्यों पर विचार कीजिए जो यशोधर बाबू को किशनदी से उत्तराधिकार में मिले थे। आप उनमें से किन्हें अपनाना चाहेंगे? (CBSE-2015)उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में लेखक ने दो पीढ़ियों के अंतराल को बताया है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि उनकी पत्नी, बच्चे व सहयोगी नई पीढ़ी का। यशोधर बाबू निम्नलिखित जीवनमूल्यों को थामे हुए हैं
सादगी – यशोधर बाबू सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। आधुनिक वस्तुएँ उन्हें पसंद नहीं थी। वे साइकिल पर दफ्तर जाते थे तथा फटा पुलोवर पहनकर दूध लाते थे।
परंपराओं से लगावे – उनका अपनी संस्कृति से लगाव था। वे होली जैसे त्योहार पर कार्यक्रम करवाते थे।
सामूहिकता – यशोधर बाबू अपनी उन्नति के साथ-साथ रिश्तेदारों, साथियों की उन्नति के बारे में चिंतित रहते थे।
त्याग की भावना – यशोधर पंत में त्याग की भावना थी। उन्होंने कभी संग्रह की भावना नहीं अपनाई।
नई पीढ़ी यशोधर पंत के जीवन-मूल्यों को अप्रासंगिक मानती है। उनका लक्ष्य सिर्फ धन कमाना है। वे भौतिक चकाचौंध को ही सब कुछ मानते हैं। इसके अलावा, सामूहिक या संयुक्त परिवार के कष्ट उन्होंने अनुभव किए हैं। उन्हें व्यक्तिगत उन्नति के अवसर नहीं मिलते थे। इन सभी कारणों से नई पीढ़ी पुराने मूल्यों को स्वीकार नहीं करती।
प्रश्न 14.‘सिल्वर वैडिंग’ वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2014)उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। इस कहानी में यशोधर पंत प्राचीन मूल्यों के प्रतीक हैं। उनके विपरीत उनकी संतान नए युग का प्रतिनिधित्व करती है। दोनों पीढ़ियों के अपने-अपने जीवन मूल्य हैं। भूषण व यशोधर की बेटी वर्तमान समय के बदलते जीवन-मूल्यों की झलक दिखलाते हैं। नई पीढ़ी जन्म-दिन, सालगीरह आदि पर केक काटने में विश्वास रखती है। नई पीढ़ी तेज़ी से आगे बढ़ना चाहती है। इसके लिए वे परंपरागत व्यवस्था को छोड़ने में संकोच नहीं करते।
यशोधर बाबू परंपरा से जुड़े हुए हैं। वे सादगी का जीवन जीना चाहते हैं। संग्रह वृत्ति, भौतिक चकाचौंध से दूर, वे आत्मीयता, सामूहिकता के बोध से युक्त हैं। इन सबके कारण वे भौतिक संसाधन नहीं एकत्र कर पाते । फलतः वे घर में ही अप्रासांगिक हो जाते हैं। उनकी पत्नी बाहरी आवरण को बदल पाती है, परंतु मूल संस्कारों को नहीं छोड़ पाती। बच्चों की हठ के सम्मुख वह मॉडर्न बन जाती है। समय परिवर्तनशील होता है। जीवन-मूल्य भी अपने रूप को बदल लेते हैं।
प्रश्न 15.‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में आधुनिक पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थ चित्रण है। उदाहरण देते हुए इस कथन का विवेचन करें।उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में आधुनिक पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थपरक चित्रण है। यशोधर के परिवार में उनके बेटे, बेटी व पत्नी हैं। ये सभी आधुनिक विचारों के समर्थक हैं। उन्हें यशोधर के आदर्श व मूल्य अप्रासांगिक नज़र आते हैं। बड़ा बेटा भूषण एक प्राइवेट कंपनी में अच्छा वेतन पाता है। दूसरा बेटा आई०ए०एस० की तैयारी कर रहा है। तीसरा बेटा छात्रवृत्ति लेकर अमेरिका गया। बेटी अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है। पत्नी अपने पुराने कष्टों के लिए पति को जिम्मेदार मानती है। यह पीढ़ी मौज-मस्ती में विश्वास रखती है। ये भौतिक संसाधनों को जीवन का अंतिम सत्य मानते हैं। दूसरी तरफ यशोधर बाबू रामलीला करवाने, रिश्तेदारों के मोह, सादगीपूर्ण जीवन, नीरस जीवन आदि मूल्यों में विश्वास रखते हैं। कई जगह वे संतान की प्रगति से ही ईर्ष्या करते हुए दिखाई देते हैं। इन सब कारणों से परिवार उन्हें कोई तवज्जो नहीं देता। इस प्रकार परिवार में तनाव होता है। पारिवारिक मूल्य विघटित होते जाते हैं।
प्रश्न 16.‘यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।’-इस कथन के पक्ष-विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (CBSE-2008, 2012)उत्तर:यशोधर बाबू अपने जीवनदर्शन के कारण पुरानी परंपरा के व्यक्ति नज़र आते हैं। वे जीवनभर अपने सिद्धांतों का पालन करते रहे। उनके व्यक्तित्व पर किशनदा का प्रभाव रहा। यशोधर बाबू ने अपने पद के हिसाब से जीवन जीया। वे सहकर्मियों के साथ मधुर संबंध भी रखते थे। वे सामाजिक व्यक्ति थे। नौकरी में होने के बावजूद वे संयुक्त परिवार को मानते थे। वे सामाजिक रिश्तों को निभाते थे। वे अपनी बहन को नियमित तौर पर पैसा भेजते हैं। बीमार जीजा को देखने जाने के बारे में सोचते हैं। यशोधर बाबू भारतीय संस्कारों को भी अपनाते हैं।
वे अपने घर में कुमाऊँनी परंपरा से संबंधित आयोजनसालोंसाल तक करवाते रहे। उनकी इच्छा थी कि समाज में उन्हें सम्मानित व्यक्ति समझा जाए। वे भौतिक चकाचौंध को गलत समझते थे। उन्हें अप ने बच्चों की प्रगति अच्छी लगती थी, परंतु उनका वैचारिक दायरा बहुत बड़ा नहीं था। वे अपनी आमदनी के अनुरूप खर्च करना चाहते थे। इन गुणों से उन्हें आदर्श व्यक्तित्व माना जा सकता है। नई पीढ़ी को उनके जीवन के प्रमुख तत्वों को आत्मसात करना चाहिए।
प्रश्न 17.यशोधर पंत की आँखों में नमी आने का क्या कारण हो सकता है? यदि भूषण की जगह आप होते और शेष परिस्थितियाँ ठीक कहानी की ही तरह होती तो आपका व्यवहार अपने ‘बब्बा’ के प्रति कैसा होता?उत्तर:भूषण ने अपने पिता को ऊनी ड्रेसिंग गाउन उपहार स्वरूप दिया ताकि वह दूध लाते समय ठंड से बचा रहे। यह सुनकर पंत की आँखों में नमी आ गई। इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं
यशोधर को यह बात दिल से लगी। भूषण ने स्वयं दूध लाने की जिम्मेदारी नहीं ली। उसने पिता की सेहत के लिए तथा अपनी प्रतिष्ठा के लिए यह गाउन दिया था।
दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि यशोधर के पथप्रदर्शक किशनदा की मौत दयनीय दशा में हुई। उन्होंने परिवार नहीं बनाया। फलतः किसी ने उनकी देखभाल नहीं की। यशोधर को लगा कि उनकी देखभाल करने वाला परिवार भी है।
यदि भूषण की जगह हम होते तो हम अपने ‘बब्बा’ के प्रति अच्छा व्यवहार करते। उन्हें पूरा सम्मान दिया जाता। उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखा जाता।
प्रश्न 18.‘यशोधर बाबू चाहते हैं कि उन्हें समाज का सम्मानित बुजुर्ग माना जाए, लेकिन जब समाज ही न हो तो यह पद उन्हें क्यों कर मिले?’ यशोधर बाबू का ऐसा चाहना क्या उचित है? उनकी यह सोच आपको कहाँ तक अपील करती है?उत्तर:यशोधर का स्वयं को सम्मानित करवाने की चाह उचित ही है। इसका कारण यह है कि यशोधर ने सारी उम्र समाज की परंपराओं का निर्वाह किया। व्यक्तिगत सुखों को तिलांजलि दी थी। आदर्श जीवन को जीया। अतः उनका चाहना ठीक है, परंतु आज समाज बदल गया है।
पुरानी पद्धति पर जीवन जीने वाले अप्रासंगिक माने जाने लगे हैं। आदर्श व्यवहार की कसौटी पर असफल हो रहा है। ऐसे माहौल में यशोधर जैसे व्यक्तियों की इच्छा धराशयी हो जाती है। ये लोग समयानुसार अपने में बदलाव नहीं कर पाते और घर में ही अकेले रह जाते हैं।
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मेरा वो पहला मजा Mera Wo Pehla Maja
मुझे अपना पहला मिलन, वो पहला एहसास आपके साथ शेयर करने में थोड़ा संकोच हो रहा है, जब मैंने पहली बार किसी स्त्री को अपने एकदम समीप वो भी पूर्ण निर्वस्त्र देखा व उस निर्वस्त्र स्त्री से भरपूर पहला मिलन का आनंद लिया था। दरअसल मित्रों वो स्त्री कोई गैर नहीं, बल्कि मेरी अपनी सगी चाची थी, जो मेरी हमउम्र थी। मित्रों मेरा नाम विरेन है और अब मैं आपको शुरू से व विस्तार से बताता हूं कि आखिर कैसे मैं अपनी ही सगी चाची से प्यार कर बैठा और वो सबकुछ कर बैठा, जो मेरे चाचा, चाची साथ करते रहे होंगे। घर में उस रोज सब बेहद खुश थे। हम सब भाई-बहन व मेरे माता-पिता मिलकर गांव जाने की तैयारियां कर रहे थे। दरअसल मेरे चाचा की शादी थी गांव में। मैं अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ा था और मेरी उम्र 16 साल की थी। हम सब लोग शादी के तीन हफ्ते पहले ही गांव चले गये थे। केवल चाचा ने अपनी शादी के एक हफ्ते पहले आना था, उनको आॅफिस से छुट्टी नहीं मिल पाई थी। गांव में पहुंच कर बहुत अच्छा लगा। वो गांव की हरियाली, शुद्ध हवा व मीठा शीतल पानी। दरअसल मैं पहाड़ी क्षेत्र का रहने वाला हूं, इसलिए मेरा गांव पहाड़ से संबंधित है और आप तो जानते ही होंगे मित्रों गांव की आबो हवा व वहां वातावरण कैसा होता है…? गांव में सुबह उठकर जब मैं नहाने के लिए झरने में जाता था, तब वहां पर कई गांव की औरतें व खूबसूरत लड़कियां वस्त्र धोने व गगरी में पानी भरने आती थीं। सच कहूं, मित्रों उस समय मेरा नहाने में कम और उन जवान सुंदर लड़कियों को देखने में ज्यादा ध्यान होता था। गांव की अल्हड़ लड़कियां जब पानी भरकर गगरी उठाने के लिए झुकती थीं, तो नुमाया हो रहे यौवन रूपी कलशों का नज़ारा देखकर मेरा मन बेचैन हो उठता था। मन करता कि बस एक बार उस लड़की का प्यार अकले में पा लूं, तो बस मजा ही आ जाये। लेकिन क्या कहूं यारों, अपने मन के ‘अरमान’ को अपने ही ‘हाथों’ कुचलना पड़ता था। मैं रोज नहाने झरने पर जाता और रोज लड़कियों को देखकर केवल आंहें भरता और आ जाता। सोचता, कभी तो वो वक्त आयेगा, जब मेरी भी कोई गर्लफ्रैंड होगी या कोई ऐसी स्त्री या लड़की होगी, जो मुझसे प्रेम करेगी और मैं उसके साथ वो सब करूंगा, जो झरने के पास आने वाली लड़कियों के बारे में मैं मन-ही-मन कल्पना करता था। खैर ठंडी आंहें भरते हुए ही दिन गुजरने लगे और चाचा की शादी के दिन नजदीक आने लगे। चाचा की शादी को अब एक हफ्ते रह गये और चाचा भी अब तक गांव पहुंच गये थे। चाचा और मेरे बीच सात साल का अंतर था। हम दोनों में दोस्तों जैसा व्यवहार था, जिस कारण हम लगभग अपनी हर पर्सनल बातें आपस में शेयर कर लेते थे। मैं भी चाचा को उनकी शादी को लेकर व आने वाली नई द��ल्हन को लेकर चाचा से हंसी-ठिठोली करता रहता था। चाचा भी मुझसे खुलकर बातें करते थे और मुझसे मेरी गर्लफ्रैंडों व गांव की लड़कियों के बारे में कुछ न कुछ पूछते ही रहते थे। एक रोज इसी प्रकार मैंने भी चाचा से हंसी-मजाक के बीच कह दिया, “अब तो चाचा…।“ “अब तो क्या बे?“ चाचा मेरी ओर देखकर बोले। “चाची के सपने देख रहे होंगे आप।“ मैं छेड़ते हुए बोला, “क्यों, सच कह रहा हू न मैं?“ “अबे ज्याद न बोल समझा। चाचा हूूं तेरा, कोई लंगोटिया यार नहीं हूं।“ “अरे चाचा बता भी दो, क्यों भाव खा रहे हो।“ “हां ले रहा हूं सपने, तुझे कोई एतराज है?“ “मुझे क्या एतराज होगा चाचा।“ मैं चाचा को कोहनी मारते हुए बोला, “चाची के सपने लो या चाची की…।“ “चाची की क्या बे।“ चाचा मुस्कराते हुए मेरे कान पकड़ कर बोले, “ज्यादा ही ओपन हो रहा चाचा से अपने।“ “अरे मेरे ओपन होने से क्या होता है, ओपन तो जब चाची होगी आपके सामने मजा तो तब आयेगा।“ “मुझे मजा आये न आये, तू पहले मजे ले ले।“ चाचा मुस्कराते हुए बोले, “वैसे तू क्यों इतना बावला हो रहा है चाची को लेकर?“ “भला मैं क्यों चाची को लेकर बावला होने लगा। मैं तो गांव की गोरियों को देखकर बेसुध हो जाता हूं। जी करता है कि बस…“ “क्या जी करता है बेटे?“ चाचा भी मुस्करा के बोलते, “बेटे अपने ‘जी’ को संभाल और फिलहाल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे और इस समय मेरी शादी पर ध्यान दे, लड़कियों पर नहीं। वैसे भी बहुत काम हैं शादी में।“ “ये तो सही कहा चाचा आपने। काम तो वाकई बहुत हैं।“ फिर हमारी हंसी-ठिठोली यहीं समाप्त हो गई और हम सब शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गये। निश्चित समय पर चाचा की शादी हो गई और हम लोग दुल्हन को यानी रिश्ते में मेरी चाची को लेकर घर आ गये। क्या बताऊं मित्रों चाची क्या थी, अप्सरा थी अप्सरा। मेरे दिल की सुनों, तो मेरे लिए वो अप्सरा से भी कहीं बढ़कर स्वप्न सुंदरी थी। मैं मन ही मन चाचा की किस्मत पर नाज करने लगा और थोड़ी-थोड़ी जलन भी होने लगी। मन में आने लगा कि, काश! ये लड़की मेरी झोली में डाल देता भगवान, तो मेरी लाॅटरी ही निकल जाती। मगर ऐसा नहीं हो सकता था, वो तो मेरी चाची बनकर मेरे सामने आई थी। चाचा की शादी हो चुकी थी और चाची भी घर आ गई थी। मेहमान धीरे-धीरे जा चुके थे। मेरे चाचा और चाची की सुहागरात भी हो गई। अगली सुबह जब चाचा अपने कमरे से निकले तो मैं मन ही मन उन्हें देखकर सोचने लगा, कि हाय क्या-क्या हुआ होगा रात को सुहागकक्ष में…. मौका पाकर मैंने चाचा से छेड़ की, “हाल कैसा है जनाब का?“ “मेरे हाल तो ठीक है, मगर तेरी आंखें देखकर लगता है तेरे हाल ठीक नहीं हैं।“ “हां चाचा वो रात को जरा देर से सोया था न, इसलिए नींद पूरी नहीं हुई।“ “अबे देर से तो मैं भी सोया था, मेरी आंखें तो ऐसी नहीं हो रहीं।“ “तुमन तो साक्षात् जलवा देखा होगा, मैं तो कवेल ख्यालों में ही जलवा देखकर खोया रहा और जागता रहा। सुहागरात आपकी थी, जाग मैं रहा था।“ सुनकर चाचा हंस पड़े और मैं भी हंसे बिना नहीं रह पाया…. खैर इसी प्रकार दिन बीतने लगे और हम सब लोग शहर अपने घर आ गये। चाचा हमारे साथ ही रहते थे, सो चाची भी यहीं हमारे घर पर रहने लगी थी। चाचा की शादी को तीन माह बीत गये थे। इस बीच चाची और मैं काफी घुल-मिल गये थे। चाची और मैं हमउम्र थे। मेरी चाची का नाम कोमल था। मेरी चाची की एक बात थी, वो जब भी मुझसे बात करती तो एकदम नजरों से नजरें मिलाकर करती थी। उनकी कजरारी आंखें जब मेरी आंखों से मिलती, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगता। चाची और मेरे बीच काफी हंसी-मजाक होता था। मैं चाची को बहुत हंसाया करता था। चाची इतना हंसती, कि पेट पकड़ कर लोट-पोट हो जाती। फिर कहती, “बस कर, हंसा-हंसा के क्या मार डालेगा।“ अब मित्रों मैं आपको उस रोज की बात बताता हूं, जिसको जानने के लिए आप भी उत्सुक होंगे। उस रोज चाची और मैं घर में अकेले ही थे। मेरे माता-पिता व चाचा जी गांव में दो-तीन दिन के लिए किसी रिश्तेदार की शादी में शामिल होने गये थे। हम भाई-बहन व चाची घर में रह गई थी। चाची इसलिए नहीं गई, कि कोई खाना बनाने के लिए व हमारी देखभाल के लिए भी घर में चाहिए था। उस रोज मैं स्कूल नहीं गया था। मैंने सिर दर्द का बहाना बना लिया था, दरअसल मैं चाची के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहता था। शायद मैं चाची को मन ही मन चाहने लगा था। मेरे भाई-बहन स्कूल चले गये थे। दोपहर के लगभग 12 बजे का समय रहा होगा, जब चाची मेरे पास आई और बोली, “विरेन तेरे सिर में ज्यादा दर्द हो रहा है, तो डिस्प्रिन दे दूं। वरना मैं फिर नहाने जा रही हूं। उसके बाद ही कोई काम करूंगी।“ चाची के गुलाबी होंठों से ‘नहाना’ शब्द सुनकर मेरे मन के तार झनझना उठे। मैंने चाची से कहा, “चाची जो कमाल आपके हाथों में है, वो डिस्प्रिन में कहा।“ “मतलब।“ चाची ने पूछा। “मतलब अगर नहाने से पहले थोड़ी देर मेरा सिर दबा दें, तो सिर दर्द में कुछ आराम आ जाये।“ “तभी तो पूछ लिया मैंने तुझे।” चाची मेरे पास आई और मेरे गालों पर हाथ फेरते हुए बोली, ”तू मुझसे शरमा रहा था क्या?” चाची ने मुझे छुआ, तो एकाएक मेरा चंचल ‘जानवर’ अंदर ही अंदर चहल-कदमी करने लगा। मैंने उस वक्त अपने आपको संभाला और पूछा, ”आप क्या पूछना चाह रही हैं चाची? किस बात से शरमाऊंगा मैं?“ ”जब मैंने तुझे पूछा, तब तूने कहा कि मेरा सिर दुख रहा है दबा दो।” चाची मुस्कराई और बोली, ”पहले नहीं बोल सकता था। मैं क्या मना कर देती।” ”काश! उस चीज के लिए भी ‘हां’ कह दो कभी।” मैं दबी आवाज में धीरे से बोला। ”क्या?” चाची ने जैसे मेरी बात सुन ली थी, ”क्या चीज कह रहा है तू?” “क..क..कुछ नहीं चाची।” मैं सकपकाता हुआ बोला, ”आप नहालो, मुझे केवल सिर दर्द का बाम थमा दो। मैं खुद ही सिर पर मल लूंगा।” “ठीक है फिर खुद ही लगा ले।” चाची भी जानबूझ कर दिललगी करती हुई मुस्कराई और बोली, ”मैं तो चली नहाने।“ पता नहीं कहां से मुझमें हिम्मत आई और मैंने एकाएक चाची का हाथ पकड़ लिया और बोला, ”मत जाओ न छोड़कर।” चाची मेरी ऊपर आते-आते गिरती हुई बची। मगर फिर भी वह काफी हद तक मेरे बदन से छू चुकी थी। उनके अंग-प्रत्यंग जाने-अन्जाने मेरे बदन से छू गये थे, जिससे मुझे बड़ा रोचक आनंद आया था। चाची ने भी शायद मेरी दशा भांप ली थी। मगर फिर भी बात को नजरअंदाज करती हुई बोली, ”अभी तो खुद ही नखरे कर रहा था कि खुद लगा लूंगा बाम। अब क्या हुआ? और मैं वाॅशरूम जा रही हूं नहाने, कोई घर छोड़कर नहीं जा रही हूं।” इस बार चाची ने मेरी आंखों में झांकते हुए बोला, ”वैसे तेरे चाचा की पकड़ और तेरी पकड़ एक जैसी है। वो भी इसी तरह रात को जोर लगा कर…” फिर चाची एकाएक चुप हो गई। शायद समझ गई थी कि वह अपने भतीजे से क्या कह रही है…? ”आगे कहो न चाची।” मैं भी उत्साहित होकर बोला, ”जोर लगाकर क्या?” ”चुप हो जा।” चाची दूसरी ओर मुंह करके अपनी हंसी छिपती हुई बोली, ”अभी तो तेरे सिर में दर्द हो रहा था। अब क्या हुआ, मेरी बातों में तुझे बड़ा मजा आ रहा है।“ ”बातों में तो कम से कम मजा लेने दो चाची।” मेरे मुंह से भी निकल गया, ”मेरा मतलब मैं अभी कुंवारा हूं न, इसलिए शादी के बाद क्या होता है, उस बात से अन्जान हूं। अभी आपसे बात करके जान लूंगा, तो भविष्य में परेशानी नहीं आयेगी।” ”ज्यादा बातें न बना।” चाची नाटकीय नाराजगी दिखाती हुई बोली, ”जब शादी का वक्त आयेगा, तब अपने आप सब समझ आ जायेगा। अभी पढ़ाई पर ध्यान दो…” ”अच्छा चाची एक बात बताओ।” मैं अब थोड़ा-थोड़ा खुलने लगा था, “अभी जब आप मेरे ऊपर गिरीं जब मैंने आपका हाथ पकड़ कर रोका, तो मुझे बहुत ही अजीब सा लगा। आपके शरीर के हिस्से मुझे स्पर्श हुए तो ऐसा लगा मानो जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी और मजा इसी में है। ये क्या था…? ऐसा क्यों हुआ? क्या आपको भी हुआ…अभी ऐसा, जैसा मुझे हुआ?” ”चुपकर पगले।” चाची मेरे होंठों पर अंगुलि रखती हुई बोली, ”चाची से ऐसी बातें नहीं पूछा करते। वैसे बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होता है।” फिर चाची उठी और बाथरूम की ओर जाती हुई बोली, ”अच्छा अब चली मैं नहाने। तू सोचता रह, जो तूने सोचना है।” फिर चाची बाथरूम में घुस गई और नहाने लगी। साथ ही वह बेहद भड़कीला गीत भी गुनगुना रही थी…”कभी मेरे साथ कोई रात गुजार।“ मैं चाची की आवाज को सुनकर बिस्तर पर ही लेटा-लेटा उत्तेजित हो रहा था। साथ ही सोचता जा रहा था, चाची इस समय बाथरूम में बिल्कुल निर्वस्त्र होगी। कैसे-कैसे अपने गोरे खिले हुए कबूतरों पर साबुन मल-मल कर रगड़ रही होगी। पानी भी कभी उनकी संकरी ‘प्रेमगली’ से गुजरता होगा, तो कभी पीछे की गलियारी से अपना रास्ता खोजता हुआ बाथरूम की नाली में मिल जाता होगा।”
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abhay121996-blog · 3 years
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'रुबीना की पार्टी' में नताल्‍या इलीना ने जीता दिल, राहुल महाजन से शादी के बाद बन गईं हिंदू Divya Sandesh
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'रुबीना की पार्टी' में नताल्‍या इलीना ने जीता दिल, राहुल महाजन से शादी के बाद बन गईं हिंदू
‘बिग बॉस-14’ भले ही खत्‍म हो गया है, लेकिन इसकी मस्‍ती अभी भी जारी है। शो के बाद अब इसके कंटेस्‍टेंट्स पार्टी मोड में हैं। राहुल महाजन (Rahul Mahajan) ने सोमवार शाम को शो की विनर रुबीना दिलैक (Rubina Dilaik) और बाकी कंटेस्‍टेंट्स के लिए अपने घर पर जबरदस्‍त पार्टी दी। इस पार्टी में अभ‍िनव शुक्‍ला (Abhinav Shukla) से लेकर अर्शी खान और (Arshi Khan) निक्‍की तंबोली (Nikki Tamboli) तक ने खूब मस्‍ती की। लेकिन फैन्‍स का ध्‍यान खींचा ‘भाभी जी’ नताल्‍या इलीना (Natalya Ilina) ने। नताल्‍या, राहुल महाजन की पत्‍नी हैं। वह रूसी हैं और एक होस्‍ट होने के नाते उन्‍होंने पार्टी में चार चांद लगा द‍िए।राहुल महाजन ने रुबीना दिलैक और बिग बॉस के दोस्‍तों के लिए शानदार पार्टी दी। इस पार्टी के वीडियोज और फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। लोगों की सबसे ज्‍यादा दिलचस्‍पी राहुल महाजन की रश‍ियन बीवी नताल्‍या इलीना को लेकर है। आइए, जानते हैं कौन है नताल्‍या और क्‍यों उन्‍होंने हिंदू धर्म अपना लिया है।’बिग बॉस-14′ भले ही खत्‍म हो गया है, लेकिन इसकी मस्‍ती अभी भी जारी है। शो के बाद अब इसके कंटेस्‍टेंट्स पार्टी मोड में हैं। राहुल महाजन (Rahul Mahajan) ने सोमवार शाम को शो की विनर रुबीना दिलैक (Rubina Dilaik) और बाकी कंटेस्‍टेंट्स के लिए अपने घर पर जबरदस्‍त पार्टी दी। इस पार्टी में अभ‍िनव शुक्‍ला (Abhinav Shukla) से लेकर अर्शी खान और (Arshi Khan) निक्‍की तंबोली (Nikki Tamboli) तक ने खूब मस्‍ती की। लेकिन फैन्‍स का ध्‍यान खींचा ‘भाभी जी’ नताल्‍या इलीना (Natalya Ilina) ने। नताल्‍या, राहुल महाजन की पत्‍नी हैं। वह रूसी हैं और एक होस्‍ट होने के नाते उन्‍होंने पार्टी में चार चांद लगा द‍िए।सोशल मीडिया पर नतालिया के हैं चर्चेराहुल महाजन की इस पार्टी में अभ‍िनव शुक्‍ला और अर्शी खान ने भाभी जी के साथ खूब मस्‍ती की। पार्टी के वीडियोज सोशल मीडिया पर धूम मचा रहे हैं। इसमें प्‍यारी सी नताल्‍या भी डांस करती हुई नजर आ रही हैं।राहुल महाजन ने दी पार्टी, भाभी नताल‍िया संग खूब नाचे अभ‍िनव शुक्‍ला और अर्शी खान #AbhinavShukla #RubinaDilaik… https://t.co/XdWTEytMjE— NBT Entertainment (@NBTEnt) 1614667255000कजाकिस्‍तान की रहने वाली हैं नतालियासोशल मीडिया पर लोगों की दिलचस्‍पी नताल्‍या को लेकर बढ़ गई है। नताल्‍या मूल रूप से कजाकिस्तान की रहने वाली हैं। वह राहुल महाजन की तीसरी पत्‍नी हैं। आइए, आगे जानते हैं नताल्‍या के बारे में हर वह बात जो हमें पता है।राहुल महाजन से 18 साल छोटी हैं नतालियानताल्‍या पेशे से मॉडल और ऐक्‍ट्रेस हैं। साल 1993 में पैदा हुईं नताल्‍या, राहुल महाजन से उम्र में 18 साल छोटी हैं। दोनों ने 20 नवंबर 2018 को मुबंई के मालाबार हिल स्‍थ‍ित एक मंदिर में शादी की।2016 में क‍िया था बॉलिवुड डेब्‍यूनताल्‍या ने 2016 में फिल्‍म ‘मुरारी द मैड जेंटलमैन’ से बॉलिवुड डेब्‍यू किया। इसमें उन्‍होंने एक अमेरिकी महिला जेनी का किरदार निभाया था।शादी के बाद नतालिया ने अपनाया हिंदू धर्मबीते दिनों ‘बिग बॉस-14’ में एंट्री से ठीक पहले राहुल महाजन ने एक इंटरव्‍यू में खुलासा किया है कि शादी के बाद उनकी बीवी नताल्या ने हिंदू धर्म अपना लिया है। राहुल महाजन ने नताल्‍या से पहले श्वेता सिंह और डिंपी गांगुली से शादी की थी। दिवंगत राजनेता प्रमोद महाजन के बेटे राहुल पर उनकी दोनों पूर्व पत्‍नि‍यों ने घरेलू हिंसा का आरोप लगाया था। ‘श‍िव-पार्वती’ की तरह चाहते हैं र‍िश्‍ताराहुल महाजन ने इंटरव्‍यू में बताया कि नताल्‍या रशियन है, लेकिन अब वह हिंदू धर्म अपना चुकी हैं। राहुल कहते हैं, ‘मैं उसे हमेशा भगवान शिव और पार्वती का उदाहरण देता ��ूं। मैं कहता हूं कि पति-पत्नी का रिश्ता शिव-पार्वती की तरह ही होना चाहिए। मुझे लगता है कि एक सही साथी और परिवार के लिए अच्छी किस्मत की जरूरत होती है।”रेलवे ट्रैक की तरह है हमारा र‍िश्‍ता’हमारे सहयोगी ‘ईटाइम्‍स’ से बातचीत में राहुल महाजन ने नताल्‍या संग रिश्‍ते को लेकर कहा, ‘हम रेलवे के ट्रैक की तरह हैं। हम दोनों साथ चलते हैं, लेकिन एक-दूसरे के मामलों में ज्‍यादा दखल नहीं देते। हम एक-दूसरे को जरूरी स्‍पेस देते हैं। हम हमारी शादी में संतुलन बनाने के लिए सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। नताल्‍या रश‍ियन है और उसने हिंदू धर्म को अपना लिया है।’दोनों साथ में पढ़ते हैं भगवदगीताराहुल ने आगे बताया कि वह और नताल्‍या दोनों ही श‍िव और पार्वती को पत्‍नी-पत्‍नी के रिश्‍ते में आइडल की तरह देखते हैं। नताल्‍या और राहुल ने साथ में गीता समेत ढेर सारी पौराण‍िक किताबें पढ़ी हैं। बिग बॉस-14 में एंट्री से पहले राहुल ने कहा था कि वह नताल्‍या के साथ बेहद खुश हैं और अब किसी लिंक-अप्‍स में नहीं पड़ना चाहते।
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abhay121996-blog · 3 years
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'रुबीना की पार्टी' में नताल्‍या इलीना ने जीता दिल, राहुल महाजन से शादी के बाद बन गईं हिंदू
‘बिग बॉस-14’ भले ही खत्‍म हो गया है, लेकिन इसकी मस्‍ती अभी भी जारी है। शो के बाद अब इसके कंटेस्‍टेंट्स पार्टी मोड में हैं। राहुल महाजन (Rahul Mahajan) ने सोमवार शाम को शो की विनर रुबीना दिलैक (Rubina Dilaik) और बाकी कंटेस्‍टेंट्स के लिए अपने घर पर जबरदस्‍त पार्टी दी। इस पार्टी में अभ‍िनव शुक्‍ला (Abhinav Shukla) से लेकर अर्शी खान और (Arshi Khan) निक्‍की तंबोली (Nikki Tamboli) तक ने खूब मस्‍ती की। लेकिन फैन्‍स का ध्‍यान खींचा ‘भाभी जी’ नताल्‍या इलीना (Natalya Ilina) ने। नताल्‍या, राहुल महाजन की पत्‍नी हैं। वह रूसी हैं और एक होस्‍ट होने के नाते उन्‍होंने पार्टी में चार चांद लगा द‍िए।राहुल महाजन ने रुबीना दिलैक और बिग बॉस के दोस्‍तों के लिए शानदार पार्टी दी। इस पार्टी के वीडियोज और फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। लोगों की सबसे ज्‍यादा दिलचस्‍पी राहुल महाजन की रश‍ियन बीवी नताल्‍या इलीना को लेकर है। आइए, जानते हैं कौन है नताल्‍या और क्‍यों उन्‍होंने हिंदू धर्म अपना लिया है।’बिग बॉस-14′ भले ही खत्‍म हो गया है, लेकिन इसकी मस्‍ती अभी भी जारी है। शो के बाद अब इसके कंटेस्‍टेंट्स पार्टी मोड में हैं। राहुल महाजन (Rahul Mahajan) ने सोमवार शाम को शो की विनर रुबीना दिलैक (Rubina Dilaik) और बाकी कंटेस्‍टेंट्स के लिए अपने घर पर जबरदस्‍त पार्टी दी। इस पार्टी में अभ‍िनव शुक्‍ला (Abhinav Shukla) से लेकर अर्शी खान और (Arshi Khan) निक्‍की तंबोली (Nikki Tamboli) तक ने खूब मस्‍ती की। लेकिन फैन्‍स का ध्‍यान खींचा ‘भाभी जी’ नताल्‍या इलीना (Natalya Ilina) ने। नताल्‍या, राहुल महाजन की पत्‍नी हैं। वह रूसी हैं और एक होस्‍ट होने के नाते उन्‍होंने पार्टी में चार चांद लगा द‍िए।सोशल मीडिया पर नतालिया के हैं चर्चेराहुल महाजन की इस पार्टी में अभ‍िनव शुक्‍ला और अर्शी खान ने भाभी जी के साथ खूब मस्‍ती की। पार्टी के वीडियोज सोशल मीडिया पर धूम मचा रहे हैं। इसमें प्‍यारी सी नताल्‍या भी डांस करती हुई नजर आ रही हैं।राहुल महाजन ने दी पार्टी, भाभी नताल‍िया संग खूब नाचे अभ‍िनव शुक्‍ला और अर्शी खान #AbhinavShukla #RubinaDilaik… https://t.co/XdWTEytMjE— NBT Entertainment (@NBTEnt) 1614667255000कजाकिस्‍तान की रहने वाली हैं नतालियासोशल मीडिया पर लोगों की दिलचस्‍पी नताल्‍या को लेकर बढ़ गई है। नताल्‍या मूल रूप से कजाकिस्तान की रहने वाली हैं। वह राहुल महाजन की तीसरी पत्‍नी हैं। आइए, आगे जानते हैं नताल्‍या के बारे में हर वह बात जो हमें पता है।राहुल महाजन से 18 साल छोटी हैं नतालियानताल्‍या पेशे से मॉडल और ऐक्‍ट्रेस हैं। साल 1993 में पैदा हुईं नताल्‍या, राहुल महाजन से उम्र में 18 साल छोटी हैं। दोनों ने 20 नवंबर 2018 को मुबंई के मालाबार हिल स्‍थ‍ित एक मंदिर में शादी की।2016 में क‍िया था बॉलिवुड डेब्‍यूनताल्‍या ने 2016 में फिल्‍म ‘मुरारी द मैड जेंटलमैन’ से बॉलिवुड डेब्‍यू किया। इसमें उन्‍होंने एक अमेरिकी महिला जेनी का किरदार निभाया था।शादी के बाद नतालिया ने अपनाया हिंदू धर्मबीते दिनों ‘बिग बॉस-14’ में एंट्री से ठीक पहले राहुल महाजन ने एक इंटरव्‍यू में खुलासा किया है कि शादी के बाद उनकी बीवी नताल्या ने हिंदू धर्म अपना लिया है। राहुल महाजन ने नताल्‍या से पहले श्वेता सिंह और डिंपी गांगुली से शादी की थी। दिवंगत राजनेता प्रमोद महाजन के बेटे राहुल पर उनकी दोनों पूर्व पत्‍नि‍यों ने घरेलू हिंसा का आरोप लगाया था। ‘श‍िव-पार्वती’ की तरह चाहते हैं र‍िश्‍ताराहुल महाजन ने इंटरव्‍यू में बताया कि नताल्‍या रशियन है, लेकिन अब वह हिंदू धर्म अपना चुकी हैं। राहुल कहते हैं, ‘मैं उसे हमेशा भगवान शिव और पार्वती का उदाहरण देता हूं। मैं कहता हूं कि पति-पत्नी का रिश्ता शिव-पार्वती की तरह ही होना चाहिए। मुझे लगता है कि एक सही साथी और परिवार के लिए अच्छी किस्मत की जरूरत होती है।”रेलवे ट्रैक की तरह है हमारा र‍िश्‍ता’हमारे सहयोगी ‘ईटाइम्‍स’ से बातचीत में राहुल महाजन ने नताल्‍या संग रिश्‍ते को लेकर कहा, ‘हम रेलवे के ट्रैक की तरह हैं। हम दोनों साथ चलते हैं, लेकिन एक-दूसरे के मामलों में ज्‍यादा दखल नहीं देते। हम एक-दूसरे को जरूरी स्‍पेस देते हैं। हम हमारी शादी में संतुलन बनाने के लिए सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। नताल्‍या रश‍ियन है और उसने हिंदू धर्म को अपना लिया है।’दोनों साथ में पढ़ते हैं भगवदगीताराहुल ने आगे बताया कि वह और नताल्‍या दोनों ही श‍िव और पार्वती को पत्‍नी-पत्‍नी के रिश्‍ते में आइडल की तरह देखते हैं। नताल्‍या और राहुल ने साथ में गीता समेत ढेर सारी पौराण‍िक किताबें पढ़ी हैं। बिग बॉस-14 में एंट्री से पहले राहुल ने कहा था कि वह नताल्‍या के साथ बेहद खुश हैं और अब किसी लिंक-अप्‍स में नहीं पड़ना चाहते।
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margdarsanme · 4 years
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 1 Silver Wedding
NCERT Class 12 Hindi :: Chapter 1 Silver Wedding (सिल्वर वैडिंग)
वितान, भाग 2 (पूरक पाठ्यपुस्तक)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है, लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों? चर्चा कीजिए। (CBSE-2008, 2010, 2016)उत्तर:यशोधर बाबू बचपन से ही जिम्मेदारियों के बोझ से लद गए थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। उनका पालन-पोषण उनकी विधवा बुआ ने किया। मैट्रिक होने के बाद वे दिल्ली आ गए तथा किशन दा जैसे कुंआरे के पास रहे। इस तरह वे सदैव उन लोगों के साथ रहे जिन्हें कभी परिवार का सुख नहीं मिला। वे सदैव पुराने लोगों के साथ रहे, पले, बढ़े। अत: उन परंपराओं को छोड़ नहीं सकते थे। उन पर किशन दा के सिद्धांतों का बहुत प्रभाव था। इन सब कारणों से यशोधर बाबू समय के साथ बदलने में असफल रहते हैं। दूसरी तरफ, उनकी पत्नी पुराने संस्कारों की थीं। वे एक संयुक्त परिवार में आई थीं जहाँ उन्हें सुखद अनुभव हुआ। उनकी इच्छाएँ अतृप्त रहीं। वे मातृ सुलभ प्रेम के कारण अपनी संतानों का पक्ष लेती हैं और बेटी के अंगु एकपाई पहात हैं। वे बेयों के किसी मामले में दल नाहीं देता। इस प्रकर वे स्वायं को शीघ्र ही बदल लेती है। 
प्रश्न 2.पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते/सकती हैं? (CBSE-2009, 2012, 2014)उत्तर:‘जो हुआ होगा’ वाक्यांश का प्रयोग किशनदा की मृत्यु के संदर्भ में होता है। यशोधर ने किशनदा के जाति भाई से उनकी मृत्यु का कारण पूछा तो उसने जवाब दिया- जो हुआ होगा अर्थात् क्या हुआ, पता नहीं। इस वाक्य की अनेक छवियाँ बनती हैं –
पहला अर्थ खुद कहानीकार ने बताया कि पता नहीं, क्या हुआ।
दूसरा अर्थ यह है कि किशनदा अकेले रहे। जीवन के अंतिम क्षणों में भी किसी ने उन्हें नहीं स्वीकारा। इस कारण उनके मन में जीने की इच्छा समाप्त हो गई।
तीसरा अर्थ समाज की मानसिकता है। किशनदा जैसे व्यक्ति का समाज के लिए कोई महत्त्व नहीं है। वे सामाजिक नियमों के विरोध में रहे। फलतः समाज ने भी उन्हें दरकिनार कर दिया।
प्रश्न 3.‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं? इस काव्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है? (CBSE-2008, 2009, 2011).
उत्तर:यशोधर बाबू ‘समहाउ इंप्रॉपर’ वाक्यांश का प्रयोग तकिया कलाम की तरह करते हैं। उन्हें जब कुछ अनुचित लगता में उन्हें कई कमियाँ नजर आती हैं। वे नए के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते। यह वाक्यांश उनके असंतुलन एवं अज व्यिक्तिवक अर्थ प्रश्न करता है। पाठ में अकस्थान पर”समाहाट इपािर वाक्याश का प्रयोग हुआ है।
दफ़्तर में सिल्वर वैडिंग पर
स्कूटर की सवारी पर
साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलने पर
अपनों से परायेपन का व्यवहार मिलने पर
डी०डी०ए० फ़्लैट का पैसा न भरने पर
पुत्र द्वारा वेतन पिता को न दिए जाने पर
खुशहाली में रिश्तेदारों की उपेक्षा करने पर
पत्नी के आधुनिक बनने पर
शादी के संबंध में बेटी के निर्णय पर
घर में सिल्वर वैडिंग पार्टी पर
केक काटने की विदेशी परंपरा पर आदि
कहानी के अंत में यशोधर के व्यक्तित्व की सारी विशेषता सामने उभरकर आती है। वे जमाने के हिसाब से अप्रासंगिक हो गए हैं। यह पीढ़ियों के अंतराल को दर्शाता है।
प्रश्न 4.यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान है और कैसे? (CBSE-2012)उत्तर:मेरे जीवन को दिशा देने में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान मेरे गुरुओं का रहा है। उन्होंने हमेशा मुझे यही शिक्षा दी कि सत्य बोलो। सत्य बोलने वाला व्यक्ति हर तरह की परेशानी से मुक्त हो जाता है जबकि झूठ बोलने वाला अपने ही जाल में फँस जाता है। उसे एक झूठ छुपाने के लिए सैकड़ों झूठ बोलने पड़ते हैं। अपने गुरुओं की इस बात को मैंने हमेशा याद रखा। वास्तव में उनकी इसी शिक्षा ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी।
प्रश्न 5.वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं? (सैंपल पेपर-2005)उत्तर:इस कहानी में दर्शाए गए परिवार के स्वरूप व संरचना आज भी लगभग हर परिवार में पाई जाती है। संयुक्त परिवार प्रथा समाप्त हो रही है। पुरानी पीढ़ी की बातों या सलाह को नयी पीढ़ी सिरे से नकार रही है। नए युवा कुछ नया करना चाहते हैं, परंतु बुजुर्ग परंपराओं के निर्वाह में विश्वास रखते हैं। यशोधर बाबू की तरह आज का मध्यवर्गीय पिता विवश है। वह किसी विषय पर अपना निर्णय नहीं दे सकता। माताएँ बच्चों के समर्थन में खड़ी नजर आती हैं। आज बच्चे अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने में अधिक खुश रहते हैं। वे आधुनिक जीवन शैली को ही सब कुछ मानते हैं। लड़कियाँ फ़ैशन के अनुसार वस्त्र पहनती हैं। यशोधर की लड़की उसी का प्रतिनिधि है। अत: यह कहानी आज लगभग हर परिवार की है।
प्रश्न 6.निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे/कहेंगी और क्यों?(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य(ख) पीढ़ी अंतराल(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव।उत्तर:मेरी समझ में पीढ़ी अंतराल ही ‘सिल्वर वैडिंग’ शीर्षक कहानी की मूल संवेदना है। यशोधर बाबू और उसके पुत्रों में एक पीढ़ी को अंतराल है। इसी कारण यशोधर बाबू अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाते हैं। यह सिद्धांत और व्यवहार की लड़ाई है। यशोधर बाबू सिद्धांतवादी हैं तो उनके पुत्र व्यवहारवादी। आज सिद्धांत नहीं व्यावहारिकता चलती है। यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं जो नयी पीढ़ी के साथ कहीं भी तालमेल नहीं रखते। पीढ़ी का अंतराल और उनके विचारों का अंतराल यशोधर बाबू और उनके परिवार के सदस्यों में वैचारिक अलगाव पैदा कर देता है।
प्रश्न 7.अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बार�� में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?उत्तर:हमारे घर व विद्यालय के आस-पास निम्नलिखित बदलाव हो रहे हैं जिन्हें बुजुर्ग पसंद नहीं करते
युवाओं द्वारा मोबाइल का प्रयोग करना।
युवाओं द्वारा पैदल न चलकर तीव्र गति से चलाते हुए मोटर-साइकिल या स्कूटर का प्रयोग।
लड़कियों द्वारा जीन्स व शर्ट पहनना।
लड़के-लड़कियों की दोस्ती व पार्क में घूमना।
खड़े होकर भोजन करना।
तेज आवाज में संगीत सुनना।
बुजुर्ग पीढ़ी इन सभी परिवर्तनों का विरोध करती है। उन्हें लगता है कि ये हमारी संस्कृति के खिलाफ़ हैं। कुछ सुविधाओं को वे स्वास्थ्य की दृष्टि से खराब मानते हैं तो कुछ उनकी परंपरा को खत्म कर रहे हैं। महिलाओं व लड़कियों को अपनी सभ्यता व संस्कृति के अनुसार आचरण करना चाहिए।
प्रश्न 8.यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं है।(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।उत्तर:यशोधर बाबू के बारे में हमारी यही धारणा बनती है कि यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता है पर पुराना छोड़ता नहीं, इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है। यद्यपि वे सिद्धांतवादी हैं तथापि व्यावहारिक पक्ष भी उन्हें अच्छी तरह मालूम है। लेकिन सिद्धांत और व्यवहार के इस द्वंद्व में यशोधर बाबू कुछ भी निर्णय लेने में असमर्थ हैं। उन्हें कई बार तो पत्नी और बच्चों का व्यवहार अच्छा लगता है तो कभी अपने सिद्धांत। इस द्वंद्व के साथ जीने के लिए मजबूर हैं। उनका दफ्तरी जीवन जहाँ सिद्धांतवादी है वहीं पारिवारिक जीवन व्यवहारवादी। दोनों में सामंजस्य बिठा पाना उनके लिए लगभग असंभव है। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.नया छोकरा चड्ढा किस प्रकार की धृष्टता करता था?उत्तर:चड्ढा असिस्टेंट ग्रेड में आया था। चूंकि वह नौजवान था, इसलिए वह पंत बाबू के साथ धृष्टता किया करता था। उनकी उम्र का लिहाज भी वह नहीं करता था। उनकी घड़ी को वह चूनेदानी कहता; कभी उनकी कलाई पकड़ लेता। उसे इस बात का जरा भी खयाल नहीं होता था कि पंत बुजुर्ग व्यक्ति हैं। वह तो अपनी जवानी के जोश में जो कुछ करता उसे अच्छा लगता है। धीरे-धीरे यशोधर पंत ने इन बातों की ओर ध्यान देना छोड़ दिया। वे किसी तरह का विरोध भी नहीं करते थे।
प्रश्न 2.किशनदा का बुढ़ापा सुखी क्यों नहीं रहा?उत्तर:बाल-जती किशनदा का बुढ़ापा सुखी नहीं रहा। उनके तमाम साथियों ने हौजखास, ग्रीनपार्क, कैलाश कहीं-न-कहीं ज़मीन ली, मकान बनवाया, लेकिन उन्होंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। रिटायर होने के छह महीने बाद जब उन्हें क्वार्टर खाली करना पड़ा तब उनके द्वारा उपकृत लोगों में से एक ने भी उन्हें अपने यहाँ रखने की पेशकश नहीं की। स्वयं यशोधर बाबू उनके सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रख पाए क्योंकि उस समय तक उनकी शादी हो चुकी थी और उनके दो कमरों के क्वार्टर में तीन परिवार रहा करते थे। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क्वार्टर लेकर रहे और फिर अपने गाँव लौट गए जहाँ साल भर बाद उनकी मृत्यु हो गई। विचित्र बात यह है कि उन्हें कोई भी बीमारी नहीं हुई। बस रिटायर होने के बाद मुरझाते-सूखते ही चले गए। अकेलेपन ने उनके अंदर की जीवनशक्ति को समाप्त कर दिया था।
प्रश्न 3.पीढ़ी का अंतराल किस तरह हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा है? स्पष्ट करें।उत्तर:पीढ़ी का अंतराल आने से विचार नहीं मिलते। युवा लोग पुराने विचारों को ढकोसला, मात्र परंपरा और दकियानूसी मानते हैं। वे तो पुराने विचारों को पूरी तरह त्याग देते हैं। इसीलिए पुराने विचार रखने वाले और कहने वाले उन्हें फालतू आदमी लगते हैं। विचारों को इस मतभेद ने मध्यवर्गीय जीवन को बहुत प्रभावित किया है। मध्यवर्गीय परिवार आज संयुक्त परिवार प्रथा को भूला चुके हैं क्योंकि विचारों का मतभेद वहाँ भी है। यशोधर पंत का जीवन इसी पीढ़ी अंतराल ने प्रभावित किया है। अपने बच्चों के विचारों को वे अपना नहीं सकते और अपने विचारों को वे छोड़ नहीं सकते। अपनाने और छोड़ने की इस दुविधा भरी स्थिति में यशोधर बाबू सपरिवार, होते हुए भी स्वयं को अकेला पाते हैं।
प्रश्न 4.आज पारिवारिक संबंध आर्थिक संबंधों पर ज्यादा निर्भर रहते हैं, स्पष्ट करें।उत्तर:विज्ञान के इस युग में आज संबंधों का मानक आर्थिक स्थिति बन गई है। आज पारिवारिक संबंध तभी सही रहते हैं जब आर्थिक स्थिति बेहतर हो। यशोधर पंत की पारिवारिक स्थिति इसी अर्थ पर निर्भर करती है। बच्चे चाहते हैं कि पिता किसी न किसी ढंग से ऊपरी कमाई करें और उनका जीवन सुखी बनाएँ लेकिन सिद्धांतवादी पंत ने ऐसा कभी सोचा भी नहीं। और तो और अपने कोटे का निर्धारित फ्लैट भी उन्होंने नहीं लिया। इन सभी बातों से उनके बच्चे सदा उनसे खिन्न रहे। यद्यपि बड़ा बेटा भूषण एक विज्ञापन एजेंसी में पंद्रह सौ रुपये मासिक की नौकरी करता है तथापि पिता और पुत्र के बीच की वैचारिक खाई बनाने में पैसे की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कहीं न कहीं पैसा ही इन संबंधों को प्रभावित कर रहा है।
प्रश्न 5.गीता की महिमा सुनते-सुनते जनार्दन शब्द सुनते ही यशोधर पंत क्या सोचने लगते हैं?उत्तर:गीता की महिमा सुनते-सुनते अचानक यशोधर पंत के कानों में ‘जनार्दन’ शब्द सुनाई पड़ा। यह सुनते ही उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद आ गई। उन्हें याद आया कि परसों ही चिट्ठी आई है कि उनके जीजा जी बीमार हैं। वे अहमदाबाद में रहते हैं। ऐसे समय में उनका हाल-चाल जानने के लिए अहमदाबाद जाना ही होगा। यशोधर पंत एक मिलनसार व्यक्ति हैं। हर किसी के सुख-दुख में वे जाते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी पारिवारिकता के प्रति उत्साही बनें। लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। पत्नी और बच्चों का तो यह मानना है कि पुराने रिश्तों के प्रति लगाव रखना मूर्खता है? क्योंकि इन्हें निभाने के लिए समय और पैसा दोनों की हानि होती है। अपने जीजा जनार्दन जोशी का हाल-चाल जानने के लिए वे अहमदाबाद जाने के लिए उतावले हैं जब बड़ा बेटा उन्हें पैसे देने से मना कर देता है तो वे उधार पैसे लेकर अहमदाबाद जाने का निर्णय करते हैं।
प्रश्न 6.यशोधर पंत ने भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचा, केवल वर्तमान के बारे में ही चिंता की। क्यों ?उत्तर:सिद्धांतवादी लोग लकीर का फकीर बन जाते हैं। उन्हें भविष्य की कोई फिक्र नहीं होती। वे तो बस वर्तमान को ही सब कुछ मानते हैं। यशोधर पंत भी ऐसे ही व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों के इस आग्रह को कई बार ठुकराया कि कोई मकान मोल क्यों न ले लिया जाए। रिटायर होने के बाद तो सरकारी क्वार्टर छोड़ना पड़ेगा, लेकिन इस बात को यशोधर बाबू ने कभी समझने का प्रयत्न ही नहीं किया। सदा यही कहते रहे कि जो होगा देखा जाएगा। यशोधर बाबू ने तो किशनदा की एक बात को गाँठ में बाँध लिया है कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं औ��� समझदार लोग उसमें रहते हैं। इसलिए वर्तमान में जीन वाले यशोधर पंत भविष्य की चिंता करता भी तो क्यों?
प्रश्न 7.यशोधर बाबू किशनदा की किन परंपराओं को अभी तक निभा रहे हैं?उत्तर:यशोधर बाबू किशनदा के भक्त हैं। वे उनके विचारों का अनुसरण करते हैं, जो निम्नलिखित हैं(क) उन्होंने कभी मकान नहीं लिया क्योंकि किशनदा ने कहा कि मूर्ख मकान बनाते हैं, समझदार उसमें रहते हैं।(ख) उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा।(ग) उन्हें हर नई चीज़ में कमी नज़र आती थी।(घ) वे किशनदा की उस बात को मानते हैं कि जवानी में व्यक्ति गलतियाँ करता है, परंतु बाद में समझदार हो जाता है।(ङ) वे ‘जन्यो पुन्यू’ के दिन सब कुमाउँनियों को जनेऊ बदलने के लिए अपने घर बुलाते थे, होली गवाते थे तथा रामलीला की तालीम के लिए क्वार्टर का एक कमरा देते थे।
प्रश्न 8.यशोधर बाबू की घर के लोगों से किस-किस बात पर नहीं बनती ?उत्तर:पिछले कई वर्षों से यशोधर बाबू का अपनी पत्नी और बच्चों से हर छोटी-बड़ी बात में मतभेद होने लगा है। इसी वजह से वह घर जल्दी लौटना पसंद नहीं करते। जब तक बच्चे छोटे थे तब तक वह उनकी पढ़ाई-लिखाई में मदद कर सकते थे। अब बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी पा गया है। यद्यपि ‘समहाउ’ यशोधर बाबू को अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन देने वाली यह नौकरी कुछ समझ में आती नहीं।
वह कहते हैं कि डेढ़ हजार रुपया तो हमें अब रिटायरमेंट के पास पहुँच कर मिला है, शुरू में ही डेढ़ हजार रुपया देने वाली इस नौकरी में ज़रूर कुछ पेंच होगा। यशोधर जी का दूसरा बेटा दूसरी बार आई.ए.एस. देने की तैयारी कर रहा है। और यशोधर बाबू के लिए यह समझ सकना असंभव है कि जब यह पिछले साल ‘एलाइड सर्विसेज’ की सूची में, माना काफ़ी नीचे आ गया था, तब इसने ज्वाइन करने से इंकार क्यों कर दिया? उनका तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका चला गया है और उनकी एकमात्र बेटी न केवल तमाम प्रस्तावित वर अस्वीकार करती चली जा रही है बल्कि डॉक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए स्वयं भी अमेरिका चले जाने की धमकी दे रही है। यशोधर बाबू जहाँ बच्चों की इस तरक्की से खुश होते हैं वहा ‘समहाउ’ यह भी अनुभव करते हैं कि वह खुशहाली भी कैसी जो अपनों में परायापन पैदा करे। अपने बच्चों द्वारा गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा उन्हें ‘समहाउ’ हुँचती नहीं।
प्रश्न 9.यशोधर बाबू की पत्नी ने मॉडर्न बनने के पीछे क्या तर्क दिए थे?उत्तर:यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं है, परंतु बच्चों की तरफदारी करने की मातृसुलभ मजबूरी ने उन्हें भी मॉडर्न बना डाला है। जिस समय उनकी शादी हुई थी यशोधर बाबू के साथ गाँव से आए ताऊजी और उनके दो विवाहित बेटे भी रहा करते थे। इस संयुक्त परिवार में पीछे ही पीछे बहुओं में गज़ब के तनाव थे लेकिन ताऊजी के डर से कोई कुछ कह नहीं पाता था। यशोधर बाबू की पत्नी को शिकायत है कि संयुक्त परिवार वाले उस दौर में पति ने हमारा पक्ष कभी नहीं लिया, बस जिठानियों की चलने दी। उनका यह भी मानना है कि मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी। जितने भी नियम इनकी बुढ़िया ताई के लिए थे, वे सब मुझ पर भी लागू करवाए – ऐसा कहती है घरवाली बच्चों से। बच्चे उससे सहानुभूति व्यक्त करते हैं। फिर वह यशोधर जी से उन्मुख होकर कहती है-मैं भी इन बातों को उसी हद तक मानूंगी जिस हद तक सुभीता हो। अब मेरे कहने से वह सब ढोंग-ढकोसला हो नहीं सकता।
प्रश्न 10.कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए कि यशोधर बाबू का व्यक्तित्व किशनदा के पूर्ण प्रभाव में विकसित हुआ था।अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर बताइए कि यशोधर बाबू किशनदा को अपना आदर्श क्यों मानते थे?उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में यशोधर बाबू किशनदा के मानस पुत्र लगते हैं। उनका व्यक्तित्व किशनदा की प्रतिच्छया है। कम उम्र में यशोधर पहाड़ से दिल्ली आ गए थे तथा किशनदा ने ही उन्हें आश्रय दिया था। उन्हें सरकारी विभाग में नौकरी दिलवाई। इस तरह जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाले व्यक्ति से प्रभावित होना स्वाभाविक है। किशनदा की निम्नलिखित आदतों का यशोधर बाबू ने जीवन भर निर्वाह किया
ऑफिस में सहयोगियों के साथ संबंध
सुबह सैर करने की आदत
पहनने-ओढ़ने का तरीका
किराए के मकान में रहना
आदर्श बातें करना
किसी बात को कहकर मुसकराना
सेवानिवृत्ति के बाद गाँव जाने की बात कहना आदि
यशोधर बाबू ने रामलीला करवाना आदि भी किशनदा से ही सीखा। वे अंत तक अपने सिद्धांतों पर चिपटे रहे। किशनदा के उत्तराधिकारी होते हुए भी उन्होंने परिवार नामक संस्था को बनाया।
प्रश्न 11.‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी का प्रमुख पात्र वर्तमान में रहता है, किंतु अतीत को आदर्श मानता है। इससे उसके व्यवहार में क्या-क्या विरोधाभास दिखाई पड़ते हैं? सोदाहरण उल्लेख कीजिए। (CBSE-2012)अथवायशोधर पंत की पीढ़ी की विवशता यह है कि वे पुराने को अच्छा समझते हैं और वर्तमान से तालमेल नहीं बिठा पाते। ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए। (CBSE-2012)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ का प्रधान पात्र वर्तमान में रहता है, किंतु अतीत में जीता है। भविष्य के साथ कदम मिलाने में असमर्थ रहता है। – उपर्युक्त कथन के आलोक में यशोधर बाबू के अंतरवंद्व पर सोदाहरण प्रकाश डालिए। (CBSE-2011)अथवा‘यशोधर बालू दो भिन्न कालखंडों में जी रहे हैं’-पक्ष या विपक्ष में सोदाहरण तर्क दीजिए। (CBSE-2016)उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ का प्रधान पात्र यशोधर बाबू है। वह रहता तो वर्तमान में हैं, परंतु जीता अतीत में है। वह अतीत को आदर्श मानता है। यशोधर को पुरानी जीवन शैली, विचार आदि अच्छे लगते हैं, वे उसका स्वप्न हैं। परंतु वर्तमान जीवन में वे अप्रासंगिक हो गए हैं। कहानी में यशोधर का परिवार नए ज़माने की सोच का है। वे प्रगति के नए आयाम छूना चाहते हैं। उनका रहन-सहन, जीने का तरीका, मूल्यबोध, संयुक्त परिवार के कटु अनुभव, सामूहिकता का अभाव आदि सब नए ज़माने की देन है। यशोधर को यह सब ‘समहाड इम्प्रापर’ लगता है। उन्हें हर नई चीज़ में कमी नजर आती है। वे नए जमाने के साथ तालमेल नहीं बना पा रहे। वे अधिकांश बदलावों से असंतुष्ट हैं। वे बच्चों की तरक्की पर खुलकर प्रतिक्रिया नहीं दे पाते। यहाँ तक कि उन्हें बेटे भूषण के अच्छे वेतन में गलती नजर आती है। दरअसल यशोधर बाबू अपने समय से आगे निकल नहीं पाए। उन्हें लगता है कि उनके जमाने की सभी बातें आज भी वैसी ही होनी चाहिए। यह संभव नहीं है। इस तरह के रूढ़िवादी व्यक्ति समाज के हाशिए पर चले जाते हैं।
प्रश्न 12.यशोधर के स्वभाव को ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर बताइए। (CBSE-2010)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू के स्वभाव की किंहीं तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (CBSE-2008, 2009)अथवायशोधर पंत की तीन चारित्रित विशेषताएँ सोदाहरण बताइए। (CBSE-2014)उत्तर:यशोधर पंत गृह मंत्रालय में सेक्शन अफ़सर हैं। वह पहाड़ से दिल्ली आए थे और यहाँ किशनदा के घर रहे। उनका यशोधरपर असर था। यशोधर के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
भौतिक सख के विरोधी – यशोधर भौतिक संसाधनों के घोर विरोधी थे। उन्हें घर या दफ्तर में पार्टी करना पसंद नहीं था। वे पैदल चलते थे या साइकिल पर चलते थे। केक काटना, काले बाल करना, मेकअप, धन संग्रह आदि पसंद नहीं था।
असंतुष्ट पिता – यशोधर जी एक असंतुष्ट पिता भी थे। अपने बच्चों के विचारों से सहमत नहीं थे। बेटी के पहनावे को वे सही नहीं मानते थे। उन्हें बच्चों की प्रगति से भी ईष्र्या थी। बेटे उनसे किसी बात में सलाह नहीं लेते थे क्योंकि उन्हें सब कुछ गलत नज़र आता था।
परंपरावादी – यशोधर परंपरा का निर्वाह करते थे। उन्हें सामाजिक रिश्ते निबाहने में आनंद आता था। वे अपनी बहन को नियमित तौर पर पैसा भेजते थे। वे रामलीला आदि का आयोजन करवाते थे।
अपरिवर्तनशील – यशोधर बाबू आदर्शो से चिपके रहे। वे समय के अनुसार अपने विचारों में परिवर्तन नहीं ला सके। वे रूढ़िवादी थे। उन्हें बच्चों के नए प्रयासों पर संदेह रहता था। वे सेक्शन अफ़सर होते हुए भी साइकिल से दफ्तर जाते थे।
निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 13.यशोधर बाबू किन जीवन-मूल्यों को थामे बैठे हैं? नई पीढ़ी उन्हें प्रासंगिक क्यों नहीं मानती? तर्कसम्मत उत्तर दीजिए। (CBSE-2015)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के पात्र किशनदा के उन जीवन-मूल्यों की चर्चा कीजिए जो यशोधर बाबू की सोच में आजीवन बने रहे। (CBSE-2014)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर उन जीवन-मूल्यों पर विचार कीजिए जो यशोधर बाबू को किशनदी से उत्तराधिकार में मिले थे। आप उनमें से किन्हें अपनाना चाहेंगे? (CBSE-2015)उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में लेखक ने दो पीढ़ियों के अंतराल को बताया है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि उनकी पत्नी, बच्चे व सहयोगी नई पीढ़ी का। यशोधर बाबू निम्नलिखित जीवनमूल्यों को थामे हुए हैं
सादगी – यशोधर बाबू सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। आधुनिक वस्तुएँ उन्हें पसंद नहीं थी। वे साइकिल पर दफ्तर जाते थे तथा फटा पुलोवर पहनकर दूध लाते थे।
परंपराओं से लगावे – उनका अपनी संस्कृति से लगाव था। वे होली जैसे त्योहार पर कार्यक्रम करवाते थे।
सामूहिकता – यशोधर बाबू अपनी उन्नति के साथ-साथ रिश्तेदारों, साथियों की उन्नति के बारे में चिंतित रहते थे।
त्याग की भावना – यशोधर पंत में त्याग की भावना थी। उन्होंने कभी संग्रह की भावना नहीं अपनाई।
नई पीढ़ी यशोधर पंत के जीवन-मूल्यों को अप्रासंगिक मानती है। उनका लक्ष्य सिर्फ धन कमाना है। वे भौतिक चकाचौंध को ही सब कुछ मानते हैं। इसके अलावा, सामूहिक या संयुक्त परिवार के कष्ट उन्होंने अनुभव किए हैं। उन्हें व्यक्तिगत उन्नति के अवसर नहीं मिलते थे। इन सभी कारणों से नई पीढ़ी पुराने मूल्यों को स्वीकार नहीं करती।
प्रश्न 14.‘सिल्वर वैडिंग’ वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2014)उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। इस कहानी में यशोधर पंत प्राचीन मूल्यों के प्रतीक हैं। उनके विपरीत उनकी संतान नए युग का प्रतिनिधित्व करती है। दोनों पीढ़ियों के अपने-अपने जीवन मूल्य हैं। भूषण व यशोधर की बेटी वर्तमान समय के बदलते जीवन-मूल्यों की झलक दिखलाते हैं। नई पीढ़ी जन्म-दिन, सालगीरह आदि पर केक काटने में विश्वास रखती है। नई पीढ़ी तेज़ी से आगे बढ़ना चाहती है। इसके लिए वे परंपरागत व्यवस्था को छोड़ने में संकोच नहीं करते।
यशोधर बाबू परंपरा से जुड़े हुए हैं। वे सादगी का जीवन जीना चाहते हैं। संग्रह वृत्ति, भौतिक चकाचौंध से दूर, वे आत्मीयता, सामूहिकता के बोध से युक्त हैं। इन सबके कारण वे भौतिक संसाधन नहीं एकत्र कर पाते । फलतः वे घर में ही अप्रासांगिक हो जाते हैं। उनकी पत्नी बाहरी आवरण को बदल पाती है, परंतु मूल संस्कारों को नहीं छोड़ पाती। बच्चों की हठ के सम्मुख वह मॉडर्न बन जाती है। समय परिवर्तनशील होता है। जीवन-मूल्य भी अपने रूप को बदल लेते हैं।
प्रश्न 15.‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में आधुनिक पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थ चित्रण है। उदाहरण देते हुए इस कथन का विवेचन करें।उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में आधुनिक पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थपरक चित्रण है। यशोधर के परिवार में उनके बेटे, बेटी व पत्नी हैं। ये सभी आधुनिक विचारों के समर्थक हैं। उन्हें यशोधर के आदर्श व मूल्य अप्रासांगिक नज़र आते हैं। बड़ा बेटा भूषण एक प्राइवेट कंपनी में अच्छा वेतन पाता है। दूसरा बेटा आई०ए०एस० की तैयारी कर रहा है। तीसरा बेटा छात्रवृत्ति लेकर अमेरिका गया। बेटी अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है। पत्नी अपने पुराने कष्टों के लिए पति को जिम्मेदार मानती है। यह पीढ़ी मौज-मस्ती में विश्वास रखती है। ये भौतिक संसाधनों को जीवन का अंतिम सत्य मानते हैं। दूसरी तरफ यशोधर बाबू रामलीला करवाने, रिश्तेदारों के मोह, सादगीपूर्ण जीवन, नीरस जीवन आदि मूल्यों में विश्वास रखते हैं। कई जगह वे संतान की प्रगति से ही ईर्ष्या करते हुए दिखाई देते हैं। इन सब कारणों से परिवार उन्हें कोई तवज्जो नहीं देता। इस प्रकार परिवार में तनाव होता है। पारिवारिक मूल्य विघटित होते जाते हैं।
प्रश्न 16.‘यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।’-इस कथन के पक्ष-विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (CBSE-2008, 2012)उत्तर:यशोधर बाबू अपने जीवनदर्शन के कारण पुरानी परंपरा के व्यक्ति नज़र आते हैं। वे जीवनभर अपने सिद्धांतों का पालन करते रहे। उनके व्यक्तित्व पर किशनदा का प्रभाव रहा। यशोधर बाबू ने अपने पद के हिसाब से जीवन जीया। वे सहकर्मियों के साथ मधुर संबंध भी रखते थे। वे सामाजिक व्यक्ति थे। नौकरी में होने के बावजूद वे संयुक्त परिवार को मानते थे। वे सामाजिक रिश्तों को निभाते थे। वे अपनी बहन को नियमित तौर पर पैसा भेजते हैं। बीमार जीजा को देखने जाने के बारे में सोचते हैं। यशोधर बाबू भारतीय संस्कारों को भी अपनाते हैं।
वे अपने घर में कुमाऊँनी परंपरा से संबंधित आयोजनसालोंसाल तक करवाते रहे। उनकी इच्छा थी कि समाज में उन्हें सम्मानित व्यक्ति समझा जाए। वे भौतिक चकाचौंध को गलत समझते थे। उन्हें अप ने बच्चों की प्रगति अच्छी लगती थी, परंतु उनका वैचारिक दायरा बहुत बड़ा नहीं था। वे अपनी आमदनी के अनुरूप खर्च करना चाहते थे। इन गुणों से उन्हें आदर्श व्यक्तित्व माना जा सकता है। नई पीढ़ी को उनके जीवन के प्रमुख तत्वों को आत्मसात करना चाहिए।
प्रश्न 17.यशोधर पंत की आँखों में नमी आने का क्या कारण हो सकता है? यदि भूषण की जगह आप होते और शेष परिस्थितियाँ ठीक कहानी की ही तरह होती तो आपका व्यवहार अपने ‘बब्बा’ के प्रति कैसा होता?उत्तर:भूषण ने अपने पिता को ऊनी ड्रेसिंग गाउन उपहार स्वरूप दिया ताकि वह दूध लाते समय ठंड से बचा रहे। यह सुनकर पंत की आँखों में नमी आ गई। इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं
यशोधर को यह बात दिल से लगी। भूषण ने स्वयं दूध लाने की जिम्मेदारी नहीं ली। उसने पिता की सेहत के लिए तथा अपनी प्रतिष्ठा के लिए यह गाउन दिया था।
दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि यशोधर के पथप्रदर्शक किशनदा की मौत दयनीय दशा में हुई। उन्होंने परिवार नहीं बनाया। फलतः किसी ने उनकी देखभाल नहीं की। यशोधर को लगा कि उनकी देखभाल करने वाला परिवार भी है।
यदि भूषण की जगह हम होते तो हम अपने ‘बब्बा’ के प्रति अच्छा व्यवहार करते। उन्हें पूरा सम्मान दिया जाता। उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखा जाता।
प्रश्न 18.‘यशोधर बाबू चाहते हैं कि उन्हें समाज का सम्मानित बुजुर्ग माना जाए, लेकिन जब समाज ही न हो तो यह पद उन्हे�� क्यों कर मिले?’ यशोधर बाबू का ऐसा चाहना क्या उचित है? उनकी यह सोच आपको कहाँ तक अपील करती है?उत्तर:यशोधर का स्वयं को सम्मानित करवाने की चाह उचित ही है। इसका कारण यह है कि यशोधर ने सारी उम्र समाज की परंपराओं का निर्वाह किया। व्यक्तिगत सुखों को तिलांजलि दी थी। आदर्श जीवन को जीया। अतः उनका चाहना ठीक है, परंतु आज समाज बदल गया है।
पुरानी पद्धति पर जीवन जीने वाले अप्रासंगिक माने जाने लगे हैं। आदर्श व्यवहार की कसौटी पर असफल हो रहा है। ऐसे माहौल में यशोधर जैसे व्यक्तियों की इच्छा धराशयी हो जाती है। ये लोग समयानुसार अपने में बदलाव नहीं कर पाते और घर में ही अकेले रह जाते हैं।
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 1 Silver Wedding
NCERT Class 12 Hindi :: Chapter 1 Silver Wedding (सिल्वर वैडिंग)
वितान, भाग 2 (पूरक पाठ्यपुस्तक)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है, लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों? चर्चा कीजिए। (CBSE-2008, 2010, 2016)उत्तर:यशोधर बाबू बचपन से ही जिम्मेदारियों के बोझ से लद गए थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। उनका पालन-पोषण उनकी विधवा बुआ ने किया। मैट्रिक होने के बाद वे दिल्ली आ गए तथा किशन दा जैसे कुंआरे के पास रहे। इस तरह वे सदैव उन लोगों के साथ रहे जिन्हें कभी परिवार का सुख नहीं मिला। वे सदैव पुराने लोगों के साथ रहे, पले, बढ़े। अत: उन परंपराओं को छोड़ नहीं सकते थे। उन पर किशन दा के सिद्धांतों का बहुत प्रभाव था। इन सब कारणों से यशोधर बाबू समय के साथ बदलने में असफल रहते हैं। दूसरी तरफ, उनकी पत्नी पुराने संस्कारों की थीं। वे एक संयुक्त परिवार में आई थीं जहाँ उन्हें सुखद अनुभव हुआ। उनकी इच्छाएँ अतृप्त रहीं। वे मातृ सुलभ प्रेम के कारण अपनी संतानों का पक्ष लेती हैं और बेटी के अंगु एकपाई पहात हैं। वे बेयों के किसी मामले में दल नाहीं देता। इस प्रकर वे स्वायं को शीघ्र ही बदल लेती है। 
प्रश्न 2.पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते/सकती हैं? (CBSE-2009, 2012, 2014)उत्तर:‘जो हुआ होगा’ वाक्यांश का प्रयोग किशनदा की मृत्यु के संदर्भ में होता है। यशोधर ने किशनदा के जाति भाई से उनकी मृत्यु का कारण पूछा तो उसने जवाब दिया- जो हुआ होगा अर्थात् क्या हुआ, पता नहीं। इस वाक्य की अनेक छवियाँ बनती हैं –
पहला अर्थ खुद कहानीकार ने बताया कि पता नहीं, क्या हुआ।
दूसरा अर्थ यह है कि किशनदा अकेले रहे। जीवन के अंतिम क्षणों में भी किसी ने उन्हें नहीं स्वीकारा। इस कारण उनके मन में जीने की इच्छा समाप्त हो गई।
तीसरा अर्थ समाज की मानसिकता है। किशनदा जैसे व्यक्ति का समाज के लिए कोई महत्त्व नहीं है। वे सामाजिक नियमों के विरोध में रहे। फलतः समाज ने भी उन्हें दरकिनार कर दिया।
प्रश्न 3.‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं? इस काव्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है? (CBSE-2008, 2009, 2011).
उत्तर:यशोधर बाबू ‘समहाउ इंप्रॉपर’ वाक्यांश का प्रयोग तकिया कलाम की तरह करते हैं। उन्हें जब कुछ अनुचित लगता में उन्हें कई कमियाँ नजर आती हैं। वे नए के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते। यह वाक्यांश उनके असंतुलन एवं अज व्यिक्तिवक अर्थ प्रश्न करता है। पाठ में अकस्थान पर”समाहाट इपािर वाक्याश का प्रयोग हुआ है।
दफ़्तर में सिल्वर वैडिंग पर
स्कूटर की सवारी पर
साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलने पर
अपनों से परायेपन का व्यवहार मिलने पर
डी०डी०ए० फ़्लैट का पैसा न भरने पर
पुत्र द्वारा वेतन पिता को न दिए जाने पर
खुशहाली में रिश्तेदारों की उपेक्षा करने पर
पत्नी के आधुनिक बनने पर
शादी के संबंध में बेटी के निर्णय पर
घर में सिल्वर वैडिंग पार्टी पर
केक काटने की विदेशी परंपरा पर आदि
कहानी के अंत में यशोधर के व्यक्तित्व की सारी विशेषता सामने उभरकर आती है। वे जमाने के हिसाब से अप्रासंगिक हो गए हैं। यह पीढ़ियों के अंतराल को दर्शाता है।
प्रश्न 4.यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान है और कैसे? (CBSE-2012)उत्तर:मेरे जीवन को दिशा देने में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान मेरे गुरुओं का रहा है। उन्होंने हमेशा मुझे यही शिक्षा दी कि सत्य बोलो। सत्य बोलने वाला व्यक्ति हर तरह की परेशानी से मुक्त हो जाता है जबकि झूठ बोलने वाला अपने ही जाल में फँस जाता है। उसे एक झूठ छुपाने के लिए सैकड़ों झूठ बोलने पड़ते हैं। अपने गुरुओं की इस बात को मैंने हमेशा याद रखा। वास्तव में उनकी इसी शिक्षा ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी।
प्रश्न 5.वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं? (सैंपल पेपर-2005)उत्तर:इस कहानी में दर्शाए गए परिवार के स्वरूप व संरचना आज भी लगभग हर परिवार में पाई जाती है। संयुक्त परिवार प्रथा समाप्त हो रही है। पुरानी पीढ़ी की बातों या सलाह को नयी पीढ़ी सिरे से नकार रही है। नए युवा कुछ नया करना चाहते हैं, परंतु बुजुर्ग परंपराओं के निर्वाह में विश्वास रखते हैं। यशोधर बाबू की तरह आज का मध्यवर्गीय पिता विवश है। वह किसी विषय पर अपना निर्णय नहीं दे सकता। माताएँ बच्चों के समर्थन में खड़ी नजर आती हैं। आज बच्चे अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने में अधिक खुश रहते हैं। वे आधुनिक जीवन शैली को ही सब कुछ मानते हैं। लड़कियाँ फ़ैशन के अनुसार वस्त्र पहनती हैं। यशोधर की लड़की उसी का प्रतिनिधि है। अत: यह कहानी आज लगभग हर परिवार की है।
प्रश्न 6.निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे/कहेंगी और क्यों?(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य(ख) पीढ़ी अंतरा��(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव।उत्तर:मेरी समझ में पीढ़ी अंतराल ही ‘सिल्वर वैडिंग’ शीर्षक कहानी की मूल संवेदना है। यशोधर बाबू और उसके पुत्रों में एक पीढ़ी को अंतराल है। इसी कारण यशोधर बाबू अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाते हैं। यह सिद्धांत और व्यवहार की लड़ाई है। यशोधर बाबू सिद्धांतवादी हैं तो उनके पुत्र व्यवहारवादी। आज सिद्धांत नहीं व्यावहारिकता चलती है। यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं जो नयी पीढ़ी के साथ कहीं भी तालमेल नहीं रखते। पीढ़ी का अंतराल और उनके विचारों का अंतराल यशोधर बाबू और उनके परिवार के सदस्यों में वैचारिक अलगाव पैदा कर देता है।
प्रश्न 7.अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?उत्तर:हमारे घर व विद्यालय के आस-पास निम्नलिखित बदलाव हो रहे हैं जिन्हें बुजुर्ग पसंद नहीं करते
युवाओं द्वारा मोबाइल का प्रयोग करना।
युवाओं द्वारा पैदल न चलकर तीव्र गति से चलाते हुए मोटर-साइकिल या स्कूटर का प्रयोग।
लड़कियों द्वारा जीन्स व शर्ट पहनना।
लड़के-लड़कियों की दोस्ती व पार्क में घूमना।
खड़े होकर भोजन करना।
तेज आवाज में संगीत सुनना।
बुजुर्ग पीढ़ी इन सभी परिवर्तनों का विरोध करती है। उन्हें लगता है कि ये हमारी संस्कृति के खिलाफ़ हैं। कुछ सुविधाओं को वे स्वास्थ्य की दृष्टि से खराब मानते हैं तो कुछ उनकी परंपरा को खत्म कर रहे हैं। महिलाओं व लड़कियों को अपनी सभ्यता व संस्कृति के अनुसार आचरण करना चाहिए।
प्रश्न 8.यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं है।(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।उत्तर:यशोधर बाबू के बारे में हमारी यही धारणा बनती है कि यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता है पर पुराना छोड़ता नहीं, इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है। यद्यपि वे सिद्धांतवादी हैं तथापि व्यावहारिक पक्ष भी उन्हें अच्छी तरह मालूम है। लेकिन सिद्धांत और व्यवहार के इस द्वंद्व में यशोधर बाबू कुछ भी निर्णय लेने में असमर्थ हैं। उन्हें कई बार तो पत्नी और बच्चों का व्यवहार अच्छा लगता है तो कभी अपने सिद्धांत। इस द्वंद्व के साथ जीने के लिए मजबूर हैं। उनका दफ्तरी जीवन जहाँ सिद्धांतवादी है वहीं पारिवारिक जीवन व्यवहारवादी। दोनों में सामंजस्य बिठा पाना उनके लिए लगभग असंभव है। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.नया छोकरा चड्ढा किस प्रकार की धृष्टता करता था?उत्तर:चड्ढा असिस्टेंट ग्रेड में आया था। चूंकि वह नौजवान था, इसलिए वह पंत बाबू के साथ धृष्टता किया करता था। उनकी उम्र का लिहाज भी वह नहीं करता था। उनकी घड़ी को वह चूनेदानी कहता; कभी उनकी कलाई पकड़ लेता। उसे इस बात का जरा भी खयाल नहीं होता था कि पंत बुजुर्ग व्यक्ति हैं। वह तो अपनी जवानी के जोश में जो कुछ करता उसे अच्छा लगता है। धीरे-धीरे यशोधर पंत ने इन बातों की ओर ध्यान देना छोड़ दिया। वे किसी तरह का विरोध भी नहीं करते थे।
प्रश्न 2.किशनदा का बुढ़ापा सुखी क्यों नहीं रहा?उत्तर:बाल-जती किशनदा का बुढ़ापा सुखी नहीं रहा। उनके तमाम साथियों ने हौजखास, ग्रीनपार्क, कैलाश कहीं-न-कहीं ज़मीन ली, मकान बनवाया, लेकिन उन्होंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। रिटायर होने के छह महीने बाद जब उन्हें क्वार्टर खाली करना पड़ा तब उनके द्वारा उपकृत लोगों में से एक ने भी उन्हें अपने यहाँ रखने की पेशकश नहीं की। स्वयं यशोधर बाबू उनके सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रख पाए क्योंकि उस समय तक उनकी शादी हो चुकी थी और उनके दो कमरों के क्वार्टर में तीन परिवार रहा करते थे। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क्वार्टर लेकर रहे और फिर अपने गाँव लौट गए जहाँ साल भर बाद उनकी मृत्यु हो गई। विचित्र बात यह है कि उन्हें कोई भी बीमारी नहीं हुई। बस रिटायर होने के बाद मुरझाते-सूखते ही चले गए। अकेलेपन ने उनके अंदर की जीवनशक्ति को समाप्त कर दिया था।
प्रश्न 3.पीढ़ी का अंतराल किस तरह हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा है? स्पष्ट करें।उत्तर:पीढ़ी का अंतराल आने से विचार नहीं मिलते। युवा लोग पुराने विचारों को ढकोसला, मात्र परंपरा और दकियानूसी मानते हैं। वे तो पुराने विचारों को पूरी तरह त्याग देते हैं। इसीलिए पुराने विचार रखने वाले और कहने वाले उन्हें फालतू आदमी लगते हैं। विचारों को इस मतभेद ने मध्यवर्गीय जीवन को बहुत प्रभावित किया है। मध्यवर्गीय परिवार आज संयुक्त परिवार प्रथा को भूला चुके हैं क्योंकि विचारों का मतभेद वहाँ भी है। यशोधर पंत का जीवन इसी पीढ़ी अंतराल ने प्रभावित किया है। अपने बच्चों के विचारों को वे अपना नहीं सकते और अपने विचारों को वे छोड़ नहीं सकते। अपनाने और छोड़ने की इस दुविधा भरी स्थिति में यशोधर बाबू सपरिवार, होते हुए भी स्वयं को अकेला पाते हैं।
प्रश्न 4.आज पारिवारिक संबंध आर्थिक संबंधों पर ज्यादा निर्भर रहते हैं, स्पष्ट करें।उत्तर:विज्ञान के इस युग में आज संबंधों का मानक आर्थिक स्थिति बन गई है। आज पारिवारिक संबंध तभी सही रहते हैं जब आर्थिक स्थिति बेहतर हो। यशोधर पंत की पारिवारिक स्थिति इसी अर्थ पर निर्भर करती है। बच्चे चाहते हैं कि पिता किसी न किसी ढंग से ऊपरी कमाई करें और उनका जीवन सुखी बनाएँ लेकिन सिद्धांतवादी पंत ने ऐसा कभी सोचा भी नहीं। और तो और अपने कोटे का निर्धारित फ्लैट भी उन्होंने नहीं लिया। इन सभी बातों से उनके बच्चे सदा उनसे खिन्न रहे। यद्यपि बड़ा बेटा भूषण एक विज्ञापन एजेंसी में पंद्रह सौ रुपये मासिक की नौकरी करता है तथापि पिता और पुत्र के बीच की वैचारिक खाई बनाने में पैसे की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कहीं न कहीं पैसा ही इन संबंधों को प्रभावित कर रहा है।
प्रश्न 5.गीता की महिमा सुनते-सुनते जनार्दन शब्द सुनते ही यशोधर पंत क्या सोचने लगते हैं?उत्तर:गीता की महिमा सुनते-सुनते अचानक यशोधर पंत के कानों में ‘जनार्दन’ शब्द सुनाई पड़ा। यह सुनते ही उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद आ गई। उन्हें याद आया कि परसों ही चिट्ठी आई है कि उनके जीजा जी बीमार हैं। वे अहमदाबाद में रहते हैं। ऐसे समय में उनका हाल-चाल जानने के लिए अहमदाबाद जाना ही होगा। यशोधर पंत एक मिलनसार व्यक्ति हैं। हर किसी के सुख-दुख में वे जाते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी पारिवारिकता के प्रति उत्साही बनें। लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। पत्नी और बच्चों का तो यह मानना है कि पुराने रिश्तों के प्रति लगाव रखना मूर्खता है? क्योंकि इन्हें निभाने के लिए समय और पैसा दोनों की हानि होती है। अपने जीजा जनार्दन जोशी का हाल-चाल जानने के लिए वे अहमदाबाद जाने के लिए उतावले हैं जब बड़ा बेटा उन्हें पैसे देने से मना कर देता ���ै तो वे उधार पैसे लेकर अहमदाबाद जाने का निर्णय करते हैं।
प्रश्न 6.यशोधर पंत ने भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचा, केवल वर्तमान के बारे में ही चिंता की। क्यों ?उत्तर:सिद्धांतवादी लोग लकीर का फकीर बन जाते हैं। उन्हें भविष्य की कोई फिक्र नहीं होती। वे तो बस वर्तमान को ही सब कुछ मानते हैं। यशोधर पंत भी ऐसे ही व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों के इस आग्रह को कई बार ठुकराया कि कोई मकान मोल क्यों न ले लिया जाए। रिटायर होने के बाद तो सरकारी क्वार्टर छोड़ना पड़ेगा, लेकिन इस बात को यशोधर बाबू ने कभी समझने का प्रयत्न ही नहीं किया। सदा यही कहते रहे कि जो होगा देखा जाएगा। यशोधर बाबू ने तो किशनदा की एक बात को गाँठ में बाँध लिया है कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं और समझदार लोग उसमें रहते हैं। इसलिए वर्तमान में जीन वाले यशोधर पंत भविष्य की चिंता करता भी तो क्यों?
प्रश्न 7.यशोधर बाबू किशनदा की किन परंपराओं को अभी तक निभा रहे हैं?उत्तर:यशोधर बाबू किशनदा के भक्त हैं। वे उनके विचारों का अनुसरण करते हैं, जो निम्नलिखित हैं(क) उन्होंने कभी मकान नहीं लिया क्योंकि किशनदा ने कहा कि मूर्ख मकान बनाते हैं, समझदार उसमें रहते हैं।(ख) उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा।(ग) उन्हें हर नई चीज़ में कमी नज़र आती थी।(घ) वे किशनदा की उस बात को मानते हैं कि जवानी में व्यक्ति गलतियाँ करता है, परंतु बाद में समझदार हो जाता है।(ङ) वे ‘जन्यो पुन्यू’ के दिन सब कुमाउँनियों को जनेऊ बदलने के लिए अपने घर बुलाते थे, होली गवाते थे तथा रामलीला की तालीम के लिए क्वार्टर का एक कमरा देते थे।
प्रश्न 8.यशोधर बाबू की घर के लोगों से किस-किस बात पर नहीं बनती ?उत्तर:पिछले कई वर्षों से यशोधर बाबू का अपनी पत्नी और बच्चों से हर छोटी-बड़ी बात में मतभेद होने लगा है। इसी वजह से वह घर जल्दी लौटना पसंद नहीं करते। जब तक बच्चे छोटे थे तब तक वह उनकी पढ़ाई-लिखाई में मदद कर सकते थे। अब बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी पा गया है। यद्यपि ‘समहाउ’ यशोधर बाबू को अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन देने वाली यह नौकरी कुछ समझ में आती नहीं।
वह कहते हैं कि डेढ़ हजार रुपया तो हमें अब रिटायरमेंट के पास पहुँच कर मिला है, शुरू में ही डेढ़ हजार रुपया देने वाली इस नौकरी में ज़रूर कुछ पेंच होगा। यशोधर जी का दूसरा बेटा दूसरी बार आई.ए.एस. देने की तैयारी कर रहा है। और यशोधर बाबू के लिए यह समझ सकना असंभव है कि जब यह पिछले साल ‘एलाइड सर्विसेज’ की सूची में, माना काफ़ी नीचे आ गया था, तब इसने ज्वाइन करने से इंकार क्यों कर दिया? उनका तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका चला गया है और उनकी एकमात्र बेटी न केवल तमाम प्रस्तावित वर अस्वीकार करती चली जा रही है बल्कि डॉक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए स्वयं भी अमेरिका चले जाने की धमकी दे रही है। यशोधर बाबू जहाँ बच्चों की इस तरक्की से खुश होते हैं वहा ‘समहाउ’ यह भी अनुभव करते हैं कि वह खुशहाली भी कैसी जो अपनों में परायापन पैदा करे। अपने बच्चों द्वारा गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा उन्हें ‘समहाउ’ हुँचती नहीं।
प्रश्न 9.यशोधर बाबू की पत्नी ने मॉडर्न बनने के पीछे क्या तर्क दिए थे?उत्तर:यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं है, परंतु बच्चों की तरफदारी करने की मातृसुलभ मजबूरी ने उन्हें भी मॉडर्न बना डाला है। जिस समय उनकी शादी हुई थी यशोधर बाबू के साथ गाँव से आए ताऊजी और उनके दो विवाहित बेटे भी रहा करते थे। इस संयुक्त परिवार में पीछे ही पीछे बहुओं में गज़ब के तनाव थे लेकिन ताऊजी के डर से कोई कुछ कह नहीं पाता था। यशोधर बाबू की पत्नी को शिकायत है कि संयुक्त परिवार वाले उस दौर में पति ने हमारा पक्ष कभी नहीं लिया, बस जिठानियों की चलने दी। उनका यह भी मानना है कि मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी। जितने भी नियम इनकी बुढ़िया ताई के लिए थे, वे सब मुझ पर भी लागू करवाए – ऐसा कहती है घरवाली बच्चों से। बच्चे उससे सहानुभूति व्यक्त करते हैं। फिर वह यशोधर जी से उन्मुख होकर कहती है-मैं भी इन बातों को उसी हद तक मानूंगी जिस हद तक सुभीता हो। अब मेरे कहने से वह सब ढोंग-ढकोसला हो नहीं सकता।
प्रश्न 10.कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए कि यशोधर बाबू का व्यक्तित्व किशनदा के पूर्ण प्रभाव में विकसित हुआ था।अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर बताइए कि यशोधर बाबू किशनदा को अपना आदर्श क्यों मानते थे?उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में यशोधर बाबू किशनदा के मानस पुत्र लगते हैं। उनका व्यक्तित्व किशनदा की प्रतिच्छया है। कम उम्र में यशोधर पहाड़ से दिल्ली आ गए थे तथा किशनदा ने ही उन्हें आश्रय दिया था। उन्हें सरकारी विभाग में नौकरी दिलवाई। इस तरह जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाले व्यक्ति से प्रभावित होना स्वाभाविक है। किशनदा की निम्नलिखित आदतों का यशोधर बाबू ने जीवन भर निर्वाह किया
ऑफिस में सहयोगियों के साथ संबंध
सुबह सैर करने की आदत
पहनने-ओढ़ने का तरीका
किराए के मकान में रहना
आदर्श बातें करना
किसी बात को कहकर मुसकराना
सेवानिवृत्ति के बाद गाँव जाने की बात कहना आदि
यशोधर बाबू ने रामलीला करवाना आदि भी किशनदा से ही सीखा। वे अंत तक अपने सिद्धांतों पर चिपटे रहे। किशनदा के उत्तराधिकारी होते हुए भी उन्होंने परिवार नामक संस्था को बनाया।
प्रश्न 11.‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी का प्रमुख पात्र वर्तमान में रहता है, किंतु अतीत को आदर्श मानता है। इससे उसके व्यवहार में क्या-क्या विरोधाभास दिखाई पड़ते हैं? सोदाहरण उल्लेख कीजिए। (CBSE-2012)अथवायशोधर पंत की पीढ़ी की विवशता यह है कि वे पुराने को अच्छा समझते हैं और वर्तमान से तालमेल नहीं बिठा पाते। ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए। (CBSE-2012)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ का प्रधान पात्र वर्तमान में रहता है, किंतु अतीत में जीता है। भविष्य के साथ कदम मिलाने में असमर्थ रहता है। – उपर्युक्त कथन के आलोक में यशोधर बाबू के अंतरवंद्व पर सोदाहरण प्रकाश डालिए। (CBSE-2011)अथवा‘यशोधर बालू दो भिन्न कालखंडों में जी रहे हैं’-पक्ष या विपक्ष में सोदाहरण तर्क दीजिए। (CBSE-2016)उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ का प्रधान पात्र यशोधर बाबू है। वह रहता तो वर्तमान में हैं, परंतु जीता अतीत में है। वह अतीत को आदर्श मानता है। यशोधर को पुरानी जीवन शैली, विचार आदि अच्छे लगते हैं, वे उसका स्वप्न हैं। परंतु वर्तमान जीवन में वे अप्रासंगिक हो गए हैं। कहानी में यशोधर का परिवार नए ज़माने की सोच क��� है। वे प्रगति के नए आयाम छूना चाहते हैं। उनका रहन-सहन, जीने का तरीका, मूल्यबोध, संयुक्त परिवार के कटु अनुभव, सामूहिकता का अभाव आदि सब नए ज़माने की देन है। यशोधर को यह सब ‘समहाड इम्प्रापर’ लगता है। उन्हें हर नई चीज़ में कमी नजर आती है। वे नए जमाने के साथ तालमेल नहीं बना पा रहे। वे अधिकांश बदलावों से असंतुष्ट हैं। वे बच्चों की तरक्की पर खुलकर प्रतिक्रिया नहीं दे पाते। यहाँ तक कि उन्हें बेटे भूषण के अच्छे वेतन में गलती नजर आती है। दरअसल यशोधर बाबू अपने समय से आगे निकल नहीं पाए। उन्हें लगता है कि उनके जमाने की सभी बातें आज भी वैसी ही होनी चाहिए। यह संभव नहीं है। इस तरह के रूढ़िवादी व्यक्ति समाज के हाशिए पर चले जाते हैं।
प्रश्न 12.यशोधर के स्वभाव को ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर बताइए। (CBSE-2010)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू के स्वभाव की किंहीं तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (CBSE-2008, 2009)अथवायशोधर पंत की तीन चारित्रित विशेषताएँ सोदाहरण बताइए। (CBSE-2014)उत्तर:यशोधर पंत गृह मंत्रालय में सेक्शन अफ़सर हैं। वह पहाड़ से दिल्ली आए थे और यहाँ किशनदा के घर रहे। उनका यशोधरपर असर था। यशोधर के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
भौतिक सख के विरोधी – यशोधर भौतिक संसाधनों के घोर विरोधी थे। उन्हें घर या दफ्तर में पार्टी करना पसंद नहीं था। वे पैदल चलते थे या साइकिल पर चलते थे। केक काटना, काले बाल करना, मेकअप, धन संग्रह आदि पसंद नहीं था।
असंतुष्ट पिता – यशोधर जी एक असंतुष्ट पिता भी थे। अपने बच्चों के विचारों से सहमत नहीं थे। बेटी के पहनावे को वे सही नहीं मानते थे। उन्हें बच्चों की प्रगति से भी ईष्र्या थी। बेटे उनसे किसी बात में सलाह नहीं लेते थे क्योंकि उन्हें सब कुछ गलत नज़र आता था।
परंपरावादी – यशोधर परंपरा का निर्वाह करते थे। उन्हें सामाजिक रिश्ते निबाहने में आनंद आता था। वे अपनी बहन को नियमित तौर पर पैसा भेजते थे। वे रामलीला आदि का आयोजन करवाते थे।
अपरिवर्तनशील – यशोधर बाबू आदर्शो से चिपके रहे। वे समय के अनुसार अपने विचारों में परिवर्तन नहीं ला सके। वे रूढ़िवादी थे। उन्हें बच्चों के नए प्रयासों पर संदेह रहता था। वे सेक्शन अफ़सर होते हुए भी साइकिल से दफ्तर जाते थे।
निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 13.यशोधर बाबू किन जीवन-मूल्यों को थामे बैठे हैं? नई पीढ़ी उन्हें प्रासंगिक क्यों नहीं मानती? तर्कसम्मत उत्तर दीजिए। (CBSE-2015)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के पात्र किशनदा के उन जीवन-मूल्यों की चर्चा कीजिए जो यशोधर बाबू की सोच में आजीवन बने रहे। (CBSE-2014)अथवा‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर उन जीवन-मूल्यों पर विचार कीजिए जो यशोधर बाबू को किशनदी से उत्तराधिकार में मिले थे। आप उनमें से किन्हें अपनाना चाहेंगे? (CBSE-2015)उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में लेखक ने दो पीढ़ियों के अंतराल को बताया है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि उनकी पत्नी, बच्चे व सहयोगी नई पीढ़ी का। यशोधर बाबू निम्नलिखित जीवनमूल्यों को थामे हुए हैं
सादगी – यशोधर बाबू सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। आधुनिक वस्तुएँ उन्हें पसंद नहीं थी। वे साइकिल पर दफ्तर जाते थे तथा फटा पुलोवर पहनकर दूध लाते थे।
परंपराओं से लगावे – उनका अपनी संस्कृति से लगाव था। वे होली जैसे त्योहार पर कार्यक्रम करवाते थे।
सामूहिकता – यशोधर बाबू अपनी उन्नति के साथ-साथ रिश्तेदारों, साथियों की उन्नति के बारे में चिंतित रहते थे।
त्याग की भावना – यशोधर पंत में त्याग की भावना थी। उन्होंने कभी संग्रह की भावना नहीं अपनाई।
नई पीढ़ी यशोधर पंत के जीवन-मूल्यों को अप्रासंगिक मानती है। उनका लक्ष्य सिर्फ धन कमाना है। वे भौतिक चकाचौंध को ही सब कुछ मानते हैं। इसके अलावा, सामूहिक या संयुक्त परिवार के कष्ट उन्होंने अनुभव किए हैं। उन्हें व्यक्तिगत उन्नति के अवसर नहीं मिलते थे। इन सभी कारणों से नई पीढ़ी पुराने मूल्यों को स्वीकार नहीं करती।
प्रश्न 14.‘सिल्वर वैडिंग’ वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2014)उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। इस कहानी में यशोधर पंत प्राचीन मूल्यों के प्रतीक हैं। उनके विपरीत उनकी संतान नए युग का प्रतिनिधित्व करती है। दोनों पीढ़ियों के अपने-अपने जीवन मूल्य हैं। भूषण व यशोधर की बेटी वर्तमान समय के बदलते जीवन-मूल्यों की झलक दिखलाते हैं। नई पीढ़ी जन्म-दिन, सालगीरह आदि पर केक काटने में विश्वास रखती है। नई पीढ़ी तेज़ी से आगे बढ़ना चाहती है। इसके लिए वे परंपरागत व्यवस्था को छोड़ने में संकोच नहीं करते।
यशोधर बाबू परंपरा से जुड़े हुए हैं। वे सादगी का जीवन जीना चाहते हैं। संग्रह वृत्ति, भौतिक चकाचौंध से दूर, वे आत्मीयता, सामूहिकता के बोध से युक्त हैं। इन सबके कारण वे भौतिक संसाधन नहीं एकत्र कर पाते । फलतः वे घर में ही अप्रासांगिक हो जाते हैं। उनकी पत्नी बाहरी आवरण को बदल पाती है, परंतु मूल संस्कारों को नहीं छोड़ पाती। बच्चों की हठ के सम्मुख वह मॉडर्न बन जाती है। समय परिवर्तनशील होता है। जीवन-मूल्य भी अपने रूप को बदल लेते हैं।
प्रश्न 15.‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में आधुनिक पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थ चित्रण है। उदाहरण देते हुए इस कथन का विवेचन करें।उत्तर:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में आधुनिक पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थपरक चित्रण है। यशोधर के परिवार में उनके बेटे, बेटी व पत्नी हैं। ये सभी आधुनिक विचारों के समर्थक हैं। उन्हें यशोधर के आदर्श व मूल्य अप्रासांगिक नज़र आते हैं। बड़ा बेटा भूषण एक प्राइवेट कंपनी में अच्छा वेतन पाता है। दूसरा बेटा आई०ए०एस० की तैयारी कर रहा है। तीसरा बेटा छात्रवृत्ति लेकर अमेरिका गया। बेटी अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है। पत्नी अपने पुराने कष्टों के लिए पति को जिम्मेदार मानती है। यह पीढ़ी मौज-मस्ती में विश्वास रखती है। ये भौतिक संसाधनों को जीवन का अंतिम सत्य मानते हैं। दूसरी तरफ यशोधर बाबू रामलीला करवाने, रिश्तेदारों के मोह, सादगीपूर्ण जीवन, नीरस जीवन आदि मूल्यों में विश्वास रखते हैं। कई जगह वे संतान की प्रगति से ही ईर्ष्या करते हुए दिखाई देते हैं। इन सब कारणों से परिवार उन्हें कोई तवज्जो नहीं देता। इस प्रकार परिवार में तनाव होता है। पारिवारिक मूल्य विघटित होते जाते हैं।
प्रश्न 16.‘यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।’-इस कथन के पक्ष-विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (CBSE-2008, 2012)उत्तर:यशोधर बाबू अपने जीवनदर्शन के कारण पुरानी परंपरा के व्यक्ति नज़र आते हैं। वे जीवनभर अपने सिद्धांतों का पालन करते रहे। उनके व्यक्तित्व पर किशनदा का प्रभाव रहा। यशोधर बाबू ने अपने पद के हिसाब से जीवन जीया। वे सहकर्मियों के साथ मधुर संबंध भी रखते थे। वे सामाजिक व्यक्ति थे। नौकरी में होने के बावजूद वे संयुक्त परिवार को मानते थे। वे सामाजिक रिश्तों को निभाते थे। वे अपनी बहन को नियमित तौर पर पैसा भेजते हैं। बीमार जीजा को देखने जाने के बारे में सोचते हैं। यशोधर बाबू भारतीय संस्कारों को भी अपनाते हैं।
वे अपने घर में कुमाऊँनी परंपरा से संबंधित आयोजनसालोंसाल तक करवाते रहे। उनकी इच्छा थी कि समाज में उन्हें सम्मानित व्यक्ति समझा जाए। वे भौतिक चकाचौंध को गलत समझते थे। उन्हें अप ने बच्चों की प्रगति अच्छी लगती थी, परंतु उनका वैचारिक दायरा बहुत बड़ा नहीं था। वे अपनी आमदनी के अनुरूप खर्च करना चाहते थे। इन गुणों से उन्हें आदर्श व्यक्तित्व माना जा सकता है। नई पीढ़ी को उनके जीवन के प्रमुख तत्वों को आत्मसात करना चाहिए।
प्रश्न 17.यशोधर पंत की आँखों में नमी आने का क्या कारण हो सकता है? यदि भूषण की जगह आप होते और शेष परिस्थितियाँ ठीक कहानी की ही तरह होती तो आपका व्यवहार अपने ‘बब्बा’ के प्रति कैसा होता?उत्तर:भूषण ने अपने पिता को ऊनी ड्रेसिंग गाउन उपहार स्वरूप दिया ताकि वह दूध लाते समय ठंड से बचा रहे। यह सुनकर पंत की आँखों में नमी आ गई। इसके पीछे ��ो कारण हो सकते हैं
यशोधर को यह बात दिल से लगी। भूषण ने स्वयं दूध लाने की जिम्मेदारी नहीं ली। उसने पिता की सेहत के लिए तथा अपनी प्रतिष्ठा के लिए यह गाउन दिया था।
दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि यशोधर के पथप्रदर्शक किशनदा की मौत दयनीय दशा में हुई। उन्होंने परिवार नहीं बनाया। फलतः किसी ने उनकी देखभाल नहीं की। यशोधर को लगा कि उनकी देखभाल करने वाला परिवार भी है।
यदि भूषण की जगह हम होते तो हम अपने ‘बब्बा’ के प्रति अच्छा व्यवहार करते। उन्हें पूरा सम्मान दिया जाता। उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखा जाता।
प्रश्न 18.‘यशोधर बाबू चाहते हैं कि उन्हें समाज का सम्मानित बुजुर्ग माना जाए, लेकिन जब समाज ही न हो तो यह पद उन्हें क्यों कर मिले?’ यशोधर बाबू का ऐसा चाहना क्या उचित है? उनकी यह सोच आपको कहाँ तक अपील करती है?उत्तर:यशोधर का स्वयं को सम्मानित करवाने की चाह उचित ही है। इसका कारण यह है कि यशोधर ने सारी उम्र समाज की परंपराओं का निर्वाह किया। व्यक्तिगत सुखों को तिलांजलि दी थी। आदर्श जीवन को जीया। अतः उनका चाहना ठीक है, परंतु आज समाज बदल गया है।
पुरानी पद्धति पर जीवन जीने वाले अप्रासंगिक माने जाने लगे हैं। आदर्श व्यवहार की कसौटी पर असफल हो रहा है। ऐसे माहौल में यशोधर जैसे व्यक्तियों की इच्छा धराशयी हो जाती है। ये लोग समयानुसार अपने में बदलाव नहीं कर पाते और घर में ही अकेले रह जाते हैं।
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margdarsanme · 4 years
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NCERT Class 12 Hindi Sarwan Vachan
NCERT Class 12 Hindi :: Sarwan Vachan
CBSE Class 12 Hindi श्रवण एवं वाचन
भाषा का मौखिक प्रयोग ही भाषा का मूल रूप है। इसलिए बोलचाल को ही भाषा का वास्तविक रूप माना जाता है। मानव जीवन में लिखित भाषा की अपेक्षा मौखिक भाषा ही अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, क्योंकि हम अपने दैनिक जीवन के अधिकांश कार्य मौखिक भाषा द्वारा ही संपन्न करते हैं। हास-परिहास, वार्तालाप, विचार-विमर्श, भाषण, प्रवचन आदि कार्यों में मौखिक भाषा का उपयोग स्वयंसिद्ध है। सार्वजनिक जीवन में मौखिक अभिव्यक्ति का विशेष महत्त्व है। जो वक्ता मौखिक अभिव्यक्ति में अधिक कुशल होता है, वह श्रोताओं को अधिक प्रभावित करता है तथा अपना लक्ष्य सिद्ध कर लेता है।
सामाजिक संवाद में कुशल बनने के लिए प्रयोग और अभ्यास भी अनिवार्य है। बिना अभ्यास के आत्म-विश्वास डगमगाने लगता है। यह आवश्यक नहीं है कि अभ्यास के लिए स्थिति सामने लाई जाए क्योंकि शादी, मृत्यु आदि का अवसर कक्षा में नहीं लाया जा सकता। अतः छात्रों को अध्यापक की सहायता से काल्पनिक स्थिति बनाकर अभ्यास करना चाहिए।
(क) मानक उच्चारण के साथ शुद्ध भाषा का प्रयोग।(ख) व्यावहारिक भाषा का प्रयोग।(ग) विनीत और स्पष्ट भाषा का प्रयोग।(घ) विषयानुरूप प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग।
मौखिक अभिव्यक्ति के अनेक रूप हैं; जैसे-
कविता पाठ
कहानी कहना
भाषण
समाचार वाचन
साक्षात्कार लेना व देना
वर्णन करना
वाद-विवाद
परिचर्चा
उद्घोषणा
बधाई देना
धन्यवाद
संवेदना प्रकट करना
आस-पड़ोस में संपर्क
अतिथि का स्वागत।
कुछ महत्त्वपूर्ण रूपों पर यहाँ प्रकाश डाला जा रहा है-
1 कविता सुनाना
कविता सुनाना भी अपने-आप में एक कला है। यह कला कुछ लोगों में जन्म से पाई जाती है तो कुछ इसे अभ्यास द्वारा सीख सकते हैं। कवि सम्मेलनों में जाने तथा कवियों के सान्निध्य से कविता पाठ सुनकर अभ्यास किया जाए तो सीखने का कार्य सरल हो जाता है। कविता पाठ में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
सर्वप्रथम ऐसी कविता का चयन करें जो अपनी रुचि के अनुसार हो, जिसे आप अपने हृदय से पसंद करते हों, क्योंकि ऐसी कविता में ही आप उन भावों को भर सकते हैं, जो आपके दिल से निकलते हैं।
कविता को पूर्णत: कठस्थ कर लें। कंठस्थ कविता से ही लय बनती है।
उस कविता का बार-बार अभ्यास करें।
कंठस्थ कविता को नज़दीकी लोगों को सुनायें।
एकांत कमरे में शीशे के सामने खड़े होकर अपने हाव-भाव को कविता की प्रवृत्ति के अनुसार बनायें।
जो शब्द या वाक्य आपके प्रवाह में बाधक हों, उन्हें बदल कर उनके स्थान पर पर्यायवाची रख दें।
शब्द परिवर्तन से कविता के अर्थ में परिवर्तन नहीं आना चाहिए।
उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
कविता सुनाते समय मुक्त कंठ से कविता का उच्चारण करें।
श्रोता की रुचि व आराम का विशेष ध्यान रखें।
श्रोताओं के हाव-भाव पढ़ने का प्रयत्न करें।
भावों के अनुसार स्वरों में उतार-चढ़ाव होना भी आवश्यक है। हास्य, व्यंग्य व करुणा के भावों के अनुसार वाणी का उतार चढ़ाव अधिक प्रभावशाली बन जाता है।
कविता रुक-रुक कर सुनाई जानी चाहिए, ताकि श्रोतागण उसका पूरा आनंद ले सकें।
श्रोतागण के आनंद को उनके द्वारा दी गई दाद/तालियों से समझा जा सकता है। ऐसे अवसरों पर कविता की उस पंक्ति को दोबारा दोहराया जाना चाहिए।
जिन पंक्तियों पर आप श्रोता का ध्यान आकर्षित करना चाहते हों, उन पंक्तियों को दोहराना चाहिए।
कविता को गाकर भी सुनाया जा सकता है।
कविता का चयन अवसरानुकूल होना चाहिए।
कविता को भावपूर्ण हृदय से सुनाकर श्रोतागण को भाव-विभोर करना ही श्रेष्ठ कविता का वाचन होता है।
अवसरानुकूल कविता की प्रस्तुति से श्रोताओं का भाव-विभोर हो जाना निश्चित है, क्योंकि हृदय से निकली आवाज मन को अवश्य बाँधती है।
अभ्यास प्रश्न
1. निम्नलिखित कविताओं का कक्षा में प्रभावशाली ढंग से वाचन कीज��ए-
(1) झाँसी की रानी की समाधि पर
इस समाधि में छिपी हुई हैएक राख की ढेरी।जलकर जिसने स्वतंत्रता कीदिव्य आरती फेरी॥
यह समाधि, यह लघु समाधि हैझाँसी की रानी की।अंतिम लीलास्थली यही हैलक्ष्मी मर्दानी की॥
यहीं कहीं पर बिखर गई वहभग्न विजय-माला-सी।उसके फूल यहाँ संचित हैंहै यह स्मृति-शाला-सी॥
वार पर वार अंत तकलड़ी वीर बाला-सी।आहुति-सी गिर चढ़ी चिता परचमक उठी ज्वाला-सी॥
बढ़ जाता है मान वीर कारण में बलि होने से।मूल्यवती होती सोने कीभस्म यथा सोने से॥
रानी से भी अधिक हमें अबयह समाधि है प्यारी।यहाँ निहित है स्वतंत्रता कीआशा की चिनगारी॥
इससे भी सुंदर समाधियाँहम जग में हैं पाते।उनकी गाथा पर निशीथ मेंक्षुद्र जंतु ही गाते॥
पर कवियों की अमर गिरा मेंइसकी अमिट कहानी।स्नेह और श्रद्धा से गातीहै वीरों की बानी॥ सहे
बुंदेले हरबोलों के मुखहमने सुनी कहानी।खूब लड़ी मर्दानी वह थीझाँसी वाली रानी॥
यह समाधि, यह चिर समाधिहै झाँसी की रानी की।अंतिम लीलास्थली यही हैलक्ष्मी मर्दानी की॥
-सुभद्रा कुमारी चौहान
(2) निज रक्षा का अधिकार रहे जन-जन को,सबकी सुविधा का भार किंतु शासन को।मैं आर्यों का आदर्श बताने आया।जन-सम्मुख धन को तुच्छ जताने आया।सुख-शांति-हेतु मैं क्रांति मचाने आया,विश्वासी का विश्वास बचाने आया,मैं आया उनके हेतु कि जो तापित हैं,जो विवश, विकल, बल-हीन, दीन शापित हैं।हो जाएँ अभय वे जिन्हें कि भय भासित हैं,जो कौणप-कुल से मूक-सदृश शासित हैं।मैं आया, जिसमें बनी रहे मर्यादा,बच जाय प्रबल से, मिटे न जीवन सादा।सुख देने आया, दुःख झेलने आया,संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लायामैं मनुष्यत्व का नाट्य खेलने आया।मैं यहाँ एक अवलंब छोड़ने आया,गढ़ने आया हूँ, नहीं तोड़ने आया।मैं यहाँ जोड़ने नहीं, बाँटने आया,जगदुपवन में झंखाड़ छाँटने आया।मैं राज्य भोगने नहीं, भुगाने आया।हंसों को मुक्ता-मुक्ति चुगाने आया,भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया।नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया।संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।अथवा आकर्षण पुण्यभूमि का ऐसा,अवतरित हुआ मैं, आप उच्च फल जैसा।
-मैथिलीशरण गुप्त
2. कहानी कहना
कहानी कहना या सुनाना भी एक कला है। एक अच्छा कहानी लिखने वाला अच्छा कहानी सुनाने वाला भी हो, यह आवश्यक नहीं। यह कला अभ्यास के द्वारा प्राप्त की जा सकती है।
विद्यार्थियों को यदि इस कला से अवगत कराया जाए तो उनमें इस गुण का विकास किया जा सकता है। एक अच्छे कहानीकार में निम्नलिखित गुणों का होना अत्यंत आवश्यक होता है-
1. जिस कहानी को सुनाना हो उसका सार कहानी सुनाने वाले के दिमाग में बिलकुल स्पष्ट होना चाहिए।
2. उसे सारी घटनाएँ याद होनी चाहिए जिससे वह कहानी को उलट-पलट कर न सुना दे। क्योंकि ऐसा होने पर कहानी का रस ही समाप्त हो जाता है।
3. कहानी सुनाते समय कहानी के पात्रों, तिथियों, स्थानों का नाम पूर्ण रूपेण याद होना चाहिए। केवल अनुमान लगाकर सुनाई गई कहानी अपनी वास्तविकता खो देती है।
4. भाषा और संवाद भी कहानी की जान होते हैं। भाषा का स्तर उम्र, बौद्धिक स्तर आदि के अनुकूल होने पर ही कहानी प्रभावशाली बन पाती है। संवादों में बचपना या परिपक्वता सामने बैठे श्रोतागण के अनुसार होने पर ही कहानी में रुचि जाग्रत हो सकती है।
5. कहानी को रोचक बनाने के लिए संवाद व वर्णन-दोनों का उचित मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिए। जिस प्रकार भोजन में उचित मात्रा में तेल, मसाले आदि डाले जाएँ तो भोजन रुचिकर बनता है ठीक उसी प्रकार संवाद और वर्णन का सही मेल ही कहानी में जान डाल सकता है।
6. कहानी सुनाते समय श्रोता के हाव-भाव को पढ़ना भी कहानीकार का मुख्य कार्य होता है, क्योंकि श्रोता की रुचि और अरुचि का पता उनके हाव-भाव से लगाकर अपनी कहानी को अधिक रोचक या सरल बनाकर सुनाने पर ही श्रोता की वाह-वाही लूटी जा सकती है।
7. कहानी सुनाने वाले की आवाज़ में एक विशिष्ट आकर्षण होना भी अत्यंत आवश्यक होता है। कहानीकार की आवाज़ का केवल मधुर होना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि उसका बुलंद होना भी जरूरी होता है। यदि आखिरी पंक्ति में बैठा श्रोता उसकी आवाज़ नहीं सुन पा रहा है तो वह कहानी उसके लिए रुचिकर कैसे हो सकती है। इसका अर्थ यह नहीं कि कहानी सुनाने वाला चिल्ला-चिल्लाकर कहानी सुनाए। ऐसा करने पर श्रोतागण के सिर में दर्द भी हो सकता है और अरुचिवश वे वहाँ से उठकर भी जा सकते हैं।
8. कहानी को रोचक बनाने के लिए अच्छे मुहावरों व सूक्तियों के द्वारा भाषा को लच्छेदार बनाना भी आवश्यक होता है। सीधी, सरल भाषा ज्यादा देर तक श्रोताओं को नहीं बाँध सकती है।
9. लच्छेदार भाषा के साथ कहानी कहने वाले की आवाज़ में उतार-चढ़ाव होना भी अत्यंत आवश्यक होता है। आवाज़ का जादू अच्छे-अच्छों के होश उड़ा देता है। एक-सी आवाज़ में कही गई कहानी श्रोता को बाँधने में असफल होती है। लेकिन आवाज़ में उतार-चढ़ाव आवश्यकता के अनुसार ही होना चाहिए अन्यथा अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती। 406
10. जोश और उत्साह की बात बताते समय चेहरे की प्रसन्नता तथा आवाज़ की बुलंदी तथा दुख भरी घटना सुनाते समय भाव-विभोर हो मंद आवाज़ में कही गई बात सीधी श्रोता के दिल में उतर जाती है।
11. भाव-विभोर होकर कहानी सुनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि आपकी आवाज़ सामने बैठे श्रोताओं की आखिरी पंक्ति तक पहुँचनी चाहिए।
12. कहानी की रोचकता को बनाये रखने के लिए जिज्ञासा का बना रहना अत्यंत ज़रूरी है। श्रोता के मन में यदि हर पल यह जिज्ञासा बनी रहे कि अब आगे क्या होगा तो कहानी सुनने का आनंद दुगुना हो जाता है। कहानी सुनाने वाले के द्वारा इस जिज्ञासा को बनाए रखना अति आवश्यक होता है।
13. कहानी बहुत अधिक लंबी नहीं होनी चाहिए अन्यथा श्रोता बोरियत का अनुभव करने लगते हं।
14. कहानी किसी उद्देश्य से परिपूर्ण हो यह भी अति आवश्यक है। निश्चित निष्कर्ष को लेकर सुनाई गई कहानी अधिक रुचिकर होती है।
15. कहानी में हास्य-व्यंग्य का पुट होना चाहिए।
16. कहानी में मार्मिक संवाद अनिवार्य है।
अभ्यास प्रश्न
1. निम्नलिखित कहानियों को कक्षा में रोचक ढंग से सुनाइए
1. एक बार राजा भोज को सपने में व्यक्ति का रूप धारण कर स्वयं ‘सत्य’ ने दर्शन दिए। राजा के पूछने पर सत्य ने बताया “मैं सत्य हूँ जो अंधों की आँखें खोलता हूँ और मृग-तृष्णा में भटके हुओं का भ्रम मिटाता हूँ। यदि तुझमें साहस है तो मेरे साथ चल मैं तेरे भी मन की जाँच कर लूँ।” चूँकि राजा भोज को अपने सत्कर्मों का बहुत अहंकार था इसलिए वह तुरंत ही इसके लिए सहमत हो गया। सत्य उसे अपने साथ मंदिर के उस ऊँचे दरवाजे पर ले गया, जहाँ से एक सुंदर बाग दिखाई देता था।
उस बाग में तीन पेड़ लगे हुए थे। सत्य ने राजा से पूछा ‘क्या तुम बता सकते हो कि ये पेड़ किसके हैं?’ राजा ने प्रसन्नता से भरकर उत्तर दिया – “ये तीनों ही पेड़ मेरे पुण्य कर्म का प्रतिफल हैं। लाल-लाल फलों से लदा हुआ पेड़ मेरे दान का है। पीले फल मेरे न्याय और सफ़ेद फल मेरे तप का प्रभाव दिखलाते हैं।” सत्य ने राजा से कहा, “चल, उन पेड़ों के पास चलकर छूकर देखते हैं।” सत्य ने जैसे ही पहले वृक्ष को छुआ तो क्या देखता है कि सारे फल उसी तरह पृथ्वी पर गिरे जिस प्रकार आसमान से ओले गिरते हैं।
दूसरे पेड़ों को भी छूने पर वही हाल हुआ जो प्रथम का हुआ था। राजा की आँखें नीची हो गईं और उसने सत्य से इसका कारण पूछा। सत्य ने कहा “प्रथम पेड़ के फल इसलिए गिर गये क्योंकि तूने जो कुछ भी किया वह ईश्वर की भक्ति या जीवों के प्रेम से वशीभूत होकर नहीं किया। तूने अपने आपको भुलाने और मिथ्या प्रशंसा पाने के लिए यह सब किया था।” पीले फलों से युक्त पेड़ के संदर्भ में सत्य ने कहा, “जिस न्याय की तू बात करता है वह न्याय तूने मात्र अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किया है।
तू अच्छी तरह से जानता है कि न्याय किसी राज्य की जड़ है और जिस राज्य में न्याय नहीं, वह तो बे-नींव का घर है, जो बुढ़िया के दाँतों की तरह हिलता है, अब गिरा, तब गिरा।” सफ़ेद फल जो कि राजा के अनुसार उसके तप के फल थे के बारे में सत्य ने कहा, “ये फल तप ने नहीं, बल्कि अहंकार ने लगा रखे थे। तेरी ईश्वर की भक्ति, जीवों के प्रति दया, वंदना, विनती सभी इसलिए की गई थी – मानों ईश्वर तुम्हारे बहकावे में आकर स्वर्ग का राजा बना दे।
“अंत में, सत्य ने कहा “मनुष्य तो केवल कर्मों के अनुसार दूसरे मनुष्य की भावना का विचार करता है और ईश्वर मनुष्य के मन की भावना के अनुसार उसके कर्मों का हिसाब लेता है। अतः इन पेड़ों के फल उसी व्यक्ति के हिस्से में आते हैं जो शुद्ध हृदय, निष्कपट, निरहंकार होकर अपना कर्तव्य समझते हुए अपना कार्य करता है। ईश्वर. उसी का निवेदन स्वीकार करते हैं जो नम्रता और श्रद्धा के साथ सच्चे मन से प्रार्थना करता है।”
2.  एक बार मंथरक नाम के जुलाहे के सब उपकरण, जो कपड़ा बुनने के काम आते थे, टूट गए। उपकरणों को फिर से बनाने के लिए लकड़ी की ज़रूरत थी। लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी लेकर वह समुद्र तट पर स्थित वन की ओर चल दिया। समुद्र के किनारे पहुँचकर उसने एक वृक्ष देखा और सोचा कि इसकी लकड़ी से उसके सब उपकरण बन जाएँगे। यह सोचकर वह वृक्ष के तने में कुल्हाड़ी मारने को ही था कि वृक्ष की शाखा पर बैठे हुए एक देव ने उससे कहा – “मैं वृक्ष पर सुख से रहता हूँ और समुद्र की शीतल हवा का आनंद लेता हूँ! तुम्हें वृक्ष को काटना उचित नहीं, दूसरे के सुख को छीनने वाला कभी सुखी नहीं होता
जुलाहे ने कहा – “मैं भी लाचार हूँ। लकड़ी के बिना मेरे उपकरण नहीं बनेंगे, कपड़ा नहीं बुना जाएगा, जिससे मेरे कुटुंबी मर जाएंगे। इसलिए अच्छा यही है कि तुम किसी और वृक्ष का आश्रय लो, मैं इस वृक्ष की शाखाएँ काटने को विवश हूँ।देव ने कहा – “मंथरक! मैं तुम्हारे उत्तर से प्रसन्न हूँ। तुम कोई भी एक वर माँग लो, मैं उसे पूरा करूँगा। केवल इस वृक्ष को मत काटो।मंथरक बोला – “यदि यही बात है तो मुझे कुछ देर का अवकाश दो। मैं अभी घर जाकर अपनी पत्नी से और मित्र से सलाह करके तुमसे वर मागूंगा।देव ने कहा – “मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा।गाँव पहुँचने के बाद मंथरक की भेंट अपने एक मित्र नाई से हो गई। उसने उससे पूछा – “मित्र! एक देव मुझे वरदान दे रहा है। मैं तुमसे पूछने आया हूँ कि कौन-सा वरदान माँगा जाए?नाई ने कहा – “यदि ऐसा है तो राज्य माँग ले। मैं तेरा मंत्री बन जाऊँगा, हम सुख से रहेंगे।”
तब मंथरक ने अपनी पत्नी से सलाह लेने के बाद वरदान का निश्चय लेने की बात नाई से कही। नाई ने स्त्रियों के साथ ऐसी मंत्रणा करना नीति विरुद्ध बतलाया। उसने सम्मति दी कि स्त्रियाँ प्रायः स्वार्थ-परायण होती हैं। अपने सुख-साधन के अतिरिक्त उन्हें कुछ भी सूझ नहीं सकता। अपने पुत्र को भी जब वे प्यार करती हैं, तो भविष्य में उसके द्वारा सुख की कामनाओं से ही करती हैं। मंथरक ने फिर भी पत्नी से सलाह लिए बिना कुछ भी न करने का विचार प्रकट किया। घर पहुँचकर वह पत्नी से बोला – “आज मुझे एक देव मिला है वह एक वरदान देने को उद्यत है। नाई की सलाह है कि राज्य माँग लिया जाए। तू बता कि कौन-सी चीज़ माँगी जाए?
पत्नी ने उत्तर दिया – “राज्य-शासन का काम बहुत कष्टप्रद है। संधि-विग्रह आदि से ही राजा को अवकाश नहीं मिलता। राजमुकुट प्रायः कांटों का ताज होता है। ऐसे राज्य से क्या लाभ जो सुख न दे!मंथरक ने कहा – “प्रिये! तुम्हारी बात सच है। किंतु प्रश्न यह है कि राज्य न माँगा जाए तो क्या माँगा जाए?
मंथरक की पत्नी ने उत्तर दिया – “तुम अकेले दो हाथों से जितना कपड़ा बुनते हो उसमें भी हमारा व्यय पूरा हो जाता है। यदि तुम्हारे हाथ दो की जगह चार हों और सिर भी एक की जगह दो हों तो कितना अच्छा हो। तब हमारे पास आज की अपेक्षा दुगुना कपड़ा हो जाएगा। इससे समाज में हमारा मान बढ़ेगा।”मंथरक को पत्नी की बात जंच गई। समुद्र-तट पर जाकर वह देव से बोला – “यदि आप वर देना ही चाहते हैं तो यह वर दें कि मैं चार हाथ और दो सिर वाला हो जाऊँ।”मंथरक के कहने के साथ ही उसका मनोरथ पूरा हो गया। उसके दो सिर और चार हाथ हो गए, किंतु इस बदली हालत में वह गाँव में आया तो लोगों ने उसे राक्षस समझ लिया और राक्षस-राक्षस कहकर सब उस पर टूट पड़े।
3. भाषण कला
भाषण, भाषा के विभिन्न कौशलों की एक मिश्रित अभिव्यक्ति है। भाषण कौशल की प्रक्रिया में संरचनाओं का सुव्यवस्थित चयन, शब्दों की द्रुतगति से प्रवाहपूर्ण प्रयोग तथा एक निश्चित संख्या में उनको जोड़ना शामिल है। इसमें शब्द समूह और वाक्य साँचों का क्रमबद्ध प्रयोग होता है। भाषण कौशल को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है – एक उच्चारण और दूसरा अभिव्यक्ति। उच्चारण के अंतर्गत समस्त ध्वनि व्यवस्था के प्रायोगिक रूप का समावेश रहता है। विद्यार्थियों को चाहिए कि अपने भाषा को तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें
भाषण ऐसा हो कि श्रोता उसमें रुचि ले सकें।
सदैव भाषण देते समय आरोह अवरोह का ध्यान रखा जाना चाहिए।
भाषण विषयानुकूल तथा भावानुकूल होना चाहिए।
भाषण देते समय क्रियात्मक अभिनय का समावेश करना चाहिए।
भाषण में हास्य व्यंग्य का पुट होना भी आवश्यक होता है, जिससे श्रोतागण उसको रुचिपूर्वक सुन सकें।
 विषय का प्रस्तुतीकरण रोचक व नवीन ढंग से होना चाहिए, अर्थात् उसमें कुछ नयापन होना चाहिए।
भाषण में कठिन शब्दों का प्रयोग न करते हुए आम बोलचाल (हिंदुस्तानी) की भाषा का प्रयोग करना चाहिए ताकि लोग उसे आसानी से समझ सकें।
वक्ता को भाषा के विभिन्न प्रकार के नवीन शब्दों और भाषा के अन्य नवीन तथ्यों का सहज रूप से अभ्यास होना चाहिए।
वक्ता चित्रात्मक तथा प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग कर भाषण को और भी अधिक प्रभावशाली बना सकता है।
विषय से संबंधित कोई विशिष्ट उक्ति या प्रसिद्ध कवि की कविताओं को यदि वक्ता अपने भाषण में जोड़ लेता है तो उसके भाषण में चार चाँद लग जाते हैं।
भाषण देते समय वक्ता को शब्दों के उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए वरना अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है।
छोटे वाक्यों का प्रयोग करना वक्ता के लिए अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
भाषण को तैयार कर यदि वक्ता उसे टेप पर पुनः सुनता है तो वह स्वयं अपनी गलतियों को पहचानकर उन्हें ठीक कर सकता है।
भाषण जोश और उत्साह से भरा होना चाहिए।
भाषण में संबोधन का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। श्रोतागण को किया गया संबोधन अत्यंत सहज व आत्मीय होना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि केवल सभापति या निर्णायक गण ही वहाँ उपस्थित नहीं हैं।
भाषण की शुरुआत पर वक्ता को विशेष ध्यान देना चाहिए। जितनी अधिक प्रभावशाली शुरुआत होगी उतनी ही अधिक श्रोताओंकी प्रशंसा व एकाग्रता वक्ता को मिलेगी।
भाषण का अंत कभी भी अधूरा नहीं रहना चाहिए। अर्थात् भाषण में पूर्णता होनी चाहिए। श्रोताओं को यह न लगे कि आप अपनी बात को स्पष्ट करने में असफल रहे हैं।
भाषण में परिपक्वता अवश्य होनी चाहिए अर्थात् उसमें विषय से हटकर कुछ भी न कहा गया हो तथा कम-से-कम शब्दों में अपनी बात को स्पष्ट किया गया हो।
4. साक्षात्कार लेना व देना
साक्षात्कार लेना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति अभ्यर्थियों की योग्यता की पूर्ण जाँच करता है। वह अभ्यर्थी की हर क्रिया व प्रतिक्रिया को ध्यान से देखता व सुनता है। साक्षात्कार का कार्य शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ स्वभाव को भी जानना होता है।
साक्षात्कार लेते वक्त ध्यान रखने योग्य बातें-
अभ्यर्थी का आत्मविश्वास बनाए रखना चाहिए।
बातचीत का आरंभ परिचयात्मक होना चाहिए।
प्रश्नों की शुरुआत व्यक्तिगत जीवन से संबंधित सामान्य प्रश्नों से करनी चाहिए।
साक्षात्कार-कर्ता के प्रश्न संक्षिप्त व स्पष्ट होने चाहिए।
अभ्यर्थी द्वारा दिए गए उत्तरों को अनसुना न कर ध्यान से सुनना चाहिए।
अभ्यर्थी द्वारा गलत या भ्रामक उत्तर देने पर एकाध स्पष्टीकरण लेना ही पर्याप्त है।
यदि अभ्यर्थी किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देता है तो उससे अगला प्रश्न पूछ लेना चाहिए।
साक्षात्कार को अधिक लंबा नहीं खींचना चाहिए।
यदि अभ्यर्थी उत्तर को लंबा खींच रहा हो तो आप बीच में यह कहकर अगला प्रश्न पूछ सकते हैं – ‘आपकी बात ठीक है। आप कृपया यह बताएँ कि ……।’
जिस पद हेतु साक्षात्कार लिया जा रहा है, उससे संबंधित एक-दो प्रश्न अवश्य करें।
अभ्यर्थी से आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
उदाहरण
उत्तर प्रदेश राज्य की प्रतिष्ठित न्यायिक सेवा परीक्षा में सिविल जज पद पर सातवें स्थान पर पहले प्रयास में ही चयनित होकर श्री कृष्ण चंद्र पांडेय ने एक महत्त्वपूर्ण सफलता अर्जित की है, प्रशांत दविवेदी ने उनका साक्षात्कार लिया, जो इस प्रकार है-
प्रशांत द्विवेदी – आपकी इस सफलता के लिए बधाई।कृष्ण चंद्र – जी, धन्यवाद।प्रशांत द्विवेदी – आपको अपने चयन की सूचना कैसे मिली?कृष्ण चंद्र – मेरे मित्र हरि प्रकाश शुक्ल APO इलाहाबाद में कार्यरत, द्वारा मुरादाबाद ट्रेनिंग सेंटर पर फ़ोन द्वारा प्राप्त हुई।प्रशांत द्विवेदी – चयन होने पर आपको कैसा लगा?
कृष्ण चंद्र – मुझे गलत सूचना मिली कि मैं असफल हो गया हूँ, लगभग आधे घंटे पश्चात् मुझे इस सफलता की सूचना प्राप्त हुई, इस प्रकार मैंने असफलता का दंश और सफलता की प्रसन्नता-दोनों का अनुभव किया।प्रशांत द्विवेदी – आपको न्यायिक सेवा में जाने की प्रेरणा कैसे मिली?कृष्ण चंद्र – बड़े बहनोई श्री नलिनीश शुक्ला, एडवोकेट ने मुझे प्रेरित किया कि मैं इसे अपना कैरियर बनाऊँ। उन्होंने मुझे सदैव इसके लिए प्रेरित किया, इसके अतिरिक्त मुझे विधि विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्ण विभागाध्यक्ष प्रो. उदय राज राय ने भी प्रेरित किया।प्रशांत द्विवेदी – यह सफलता आपने कितने प्रयासों में अर्जित की?कृष्ण चंद्र – यह मेरा पहला प्रयास था।प्रशांत द्विवेदी – आपने इस परीक्षा के लिए तैयारी किस प्रकार की?
कृष्ण चंद्र – कुछ चुनिंदा बिंदुओं पर प्रामाणिक पुस्तकों से नोट्स बनाए; Bare Acts का सूक्ष्म अवलोकन किया, L-L.M में Interpretation of Statue एक विषय होने के कारण Bare Acts के सूक्ष्म निर्वचन पर ध्यान केंद्रित किया, विभिन्न धाराओं को Co-relate करके अध्ययन किया। मूलतः नोट्स की अपेक्षा किताबें मेरे अध्ययन का केंद्र-बिंदु रहीं। प्रो. रमेश चंद्र श्रीवास्तव जी के निर्देशन में एल-एल.एम. (फाइनल) में ‘हितग्राही में अनुयोजन का अधिकार’ विषय पर डिजर्टेशन लिखने के कारण मेरी लेखनी परिष्कृत हुई, इसका भी लाभ मुझे इस परीक्षा में मिला।प्रशांत द्विवेदी – आपकी सफलता का मूल मंत्र क्या रहा?कृष्ण चंद्र – आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय, कठिन परिश्रम, एकाग्रता एवं कभी न हार मानने वाली अदम्य जिजीविषा। इसके अलावा गुरुजनों का आशीर्वाद, मित्रों का प्रेम, प्रोत्साहन, पारिवारिक सहयोग भी इसमें सहायक हुए। प्रशांत द्विवेदी-साक्षात्कार में पूछे गए प्रश्न क्या थे?कृष्ण चंद्र – साक्षात्कार 3 अगस्त, 20XX दिन शुक्रवार के दिन श्री के.बी. पांडेय (चेयरमैन, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग) के बोर्ड में, बोर्ड के अन्य सदस्य
न्यायमूर्ति वी. के. राव एवं प्रोफेसर खान (अलीगढ़ विश्वविद्यालय) थे, साक्षात्कार लगभग 30 मिनट चला। बोर्ड का रवैया सहयोगात्मक था। साक्षात्कार का आरंभ प्रो. पांडेय ने किया एवं समापन प्रो० खान द्वारा हुआ। सामान्य परिचयात्मक प्रश्नों के अलावा मुझसे कई प्रश्न पूछे गए।प्रशांत द्विवेदी – प्रतियोगिता दर्पण पत्रिका के विषय में आपके क्या विचार हैं?कृष्ण चंद्र – यह पत्रिका सिविल सर्विस के परीक्षार्थियों के लिए रामबाण है। संविधान पर इसका अतिरिक्तांक न्यायिक परीक्षा के लिए अत्यंत उपयोगी है। यदि पत्रिका में कुछ विधिक लेख भी नियमित रूप से प्रकाशित होने लगे तो यह न्यायिक परीक्षा के लिए भी समान रूप से उपयोगी हो जाएगी।प्रशांत द्विवेदी – आगामी प्रतियोगियों के लिए आप क्या परामर्श देंगे?कृष्ण चंद्र – दृढ़ आत्मविश्वास के साथ गंभीर परिश्रमयुक्त सतत् एवं सुव्यवस्थित अध्ययन ही सफलता की सीढ़ी है। Revision is a must पढ़ें, पर स्वयं को Confuse होने ��े बचाए रखें, बस अर्जुन की तरह लक्ष्य पर एकाग्रचित रहें, अंतत: सफलता वरण करेगी ही।
साक्षात्कार देना
छात्रों को अनेक कार्यों के लिए साक्षात्कार देना होता है। कुछ में इसका डर बैठ जाता है। वस्तुतः साक्षात्कार परीक्षा जैसा होता है। इसमें अल्प समय में बहुत कुछ कहना होता है। अभ्यर्थी को दो कार्य करने होते हैं – स्वयं को परिचित कराना तथा साक्षात्कार मंडल को प्रभावित करना।
साक्षात्कार देने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना होता है
साक्षात्कार देते वक्त सहज रहें।
अपनी बात को सरल ढंग से कहें।
साक्षात्कार में जाते समय वेशभूषा संतुलित होनी चाहिए।
साक्षात्कार पर जाने से पहले वरिष्ठ छात्रों से अभ्यास करें।
साक्षात्कार-कक्ष में प्रवेश करने से पहले मुख्य साक्षात्कार कर्ता की ओर मुख करके अंदर आने की अनुमति लें – “क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?”
अंदर आने की अनुमति मिलने के बाद आप संतुलित कदमों से उस कुरसी की ओर बढ़ें जहाँ अभ्यर्थी को बिठाया जाता है। इस क्रिया में आप अपना मुख साक्षात्कार मंडल की ओर रखें। मुसकराते हुए प्रमुख साक्षात्कार कर्ता और अन्य सभी को हाथ जोड़कर नमस्कार कहें। नमस्कार करते समय चेहरे पर विनय का भाव रखें। सम्मान प्रकट करने के लिए सिर तथा शरीर को हल्का-सा झुकाएँ।
आपके हाथ में फाइल या कुछ कागजात होंगे। इसलिए फाइल सहित नमस्कार करने का ढंग सीख लें।
साक्षात्कार के दौरान आप जिन प्रमाण-पत्रों, उपलब्धियों या कागज़ों-पुस्तकों को साक्षात्कार-मंडल को दिखाना चाहते हैं, उन्हें पहले से ही सुव्यवस्थित और ऊपर-ऊपर तैयार रखें। 9. जब तक कुरसी पर बैठने के लिए नहीं कहा जाए, तब तक खड़े रहें।
साक्षात्कार के दौरान स्वयं को चुस्त व तत्पर रखें।
प्रश्न को आराम व ध्यान से समझें।
पूछे गए प्रश्न का उत्तर एकदम न देकर समझकर देना चाहिए।
प्रश्न की प्रवृत्ति के अनुसार उत्तर देने में समय लगाना चाहिए।
आप किसी मुद्दे पर कितने ही विश्वासपूर्ण हों, परंतु अपनी बात पर अड़ना नहीं चाहिए।
यदि साक्षात्कार-कर्ता आपकी बात से असहमत हो तो आप अपनी बात कहते हुए उनके मत को भी सम्मान दें।
प्रश्न का उत्तर न देने पर स्पष्ट कहें – क्षमा कीजिए, मुझे इसका ज्ञान नहीं है।
सारी बातचीत में चेहरे पर घबराहट व तनाव नहीं आना चाहिए।
5. वर्णन करना
वर्णन मौखिक भाषा – व्यवहार का एक महत्त्वपूर्ण रूप है। मनुष्य विभिन्न स्थितियों, व्यक्तियों और वस्तुओं का अनुभव करता है और उनका वर्णन करता है, किंतु अनेक बार प्रशिक्षण के अभाव के कारण वर्णन अव्यवस्थित हो जाता है। कई बार महत्त्वपूर्ण बिंदुओं की उपेक्षा हो जाती है तथा सारा वर्णन प्रभावहीन हो जाता है। इसलिए छात्रों को वर्णन करने की कला का विधिवत् प्रशिक्षण दिया जाए। वर्णन की कुशलता इसी में निहित है कि वर्णनकर्ता पूर्ण आत्मविश्वास और रोचक ढंग से इस प्रकार वर्णन करें कि श्रोता का उत्साह
और रुचि बनी रहे। वर्णन करने की कला की क्षमता का विकास बाल सभा, कक्षा आदि में किसी दृश्य, मनोरंजन, प्रसंग, समारोह, घटना आदि के वर्णन द्वारा किया जा सकता है।
उदाहरण
(क) राजस्थान के किसी गाँव की यात्रा का वर्णनमुझे मालूम नहीं था कि भारत में ‘तिलोनिया’ नाम की भी कोई जगह है जहाँ हमारे देश के समसामयिक इतिहास का एक विस्मयकारी पन्ना लिखा जा रहा है। किसी बड़े शहर में रहते हुए हम केवल अखबार द्वारा ही देश-विदेश के बारे में अपनी जानकारी हासिल करते हैं और आजकल तो इस जानकारी से मन अशांत व क्षुब्ध ही होता है। उस वक्त तक तिलोनिया के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी थी कि वहाँ पर एक स्वावलंबन विकास केंद्र चल रहा है, जिसे स्थानीय ग्रामवासी, स्त्री-पुरुष मिल-जुलकर चला रहे हैं।
बस, इतना ही और मैं वहाँ अपनी किसी प्रयोजन से भी नहीं जा रहा था। मुंबई को जाने वाली जरमैली सड़क को छोड़कर हमारी जीप एक तंग राजस्थानी सड़क पर आ गई थी। मतलब साफ़, समतल सड़क को छोड़कर ऊबड़-खाबड़ सड़क पर आ गई थी पर यहाँ भी दूर-दूर तक कुछ दिखाई नहीं देता था, केवल सपाट मैदान, कंटीली झाड़ियों के झुरमुट और दोपहर का बोझिल वातावरण …… ।
(ख) किसी रमणीक स्थान की यात्रा का वर्णनपिछले वर्ष गरमियों में हमने पिता जी के साथ बद्रीनाथ व केदारनाथ की यात्रा का हठ किया। पिता जी अपने साथ ले जाने को तैयार न थे। उन्होंने हमें बताया कि इन स्थानों की यात्रा करना सहज नहीं है। विशेष रूप से केदारनाथ की यात्रा के अंतिम चरण में लगभग 16 किलोमीटर पैदल चलाना पड़ता है। इस पैदल यात्रा में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। हमने पिता जी के आदेश को अस्वीकार करते हुए उनके साथ जाने का हठ किया।
अत: पिता जी हमें अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए। दिल्ली से बस द्वारा हम लोग हरिद्वार पहुँचे। हम लोग हरिद्वार दो दिन रुके। गंगा मैया के पवित्र जल में स्नान करके मेरा तन-मन शीतल हो गया। गंगा का विराट एवं तीव्र प्रवाह देखकर मैं विस्मय विमुग्ध हो गया। संध्या के समय गंगा मैया की आरती का दृश्य देखकर मेरा मन मयूर नृत्य कर उठा। हरकी पौड़ी पर उस समय हज़ारों लोग उपस्थित थे। बहुत से भक्तजन दोनों हाथों में पुष्प तथा प्रज्ज्वलित दीप रखकर गंगा जी में प्रवाहित कर रहे थे।
अंधकार की चादर ने धरती को ढक लिया था। आकाश के वक्ष पर असंख्य नक्षत्र जगमगा रहे थे और गंगा की तरंगों पर तैरते छोटे-छोटे दीपक एक दिव्य दृश्य उपस्थित कर रहे थे। हरिद्वार में हमने पावन धाम, भीमगोडा, सप्तऋषि आश्रम, दक्षेश्वर महादेव, मंसा देवी, चंडी देवी आदि पवित्र स्थानों के दर्शन किए। दो दिन के पश्चात् हम लोग बस द्वारा ऋषिकेश पहुँचे। हमारे मन में बद्रीनाथ तथा केदारनाथ के पवित्र स्थानों को देखने की उत्कंठा थी अतः हम ऋषिकेश में नहीं रुके तथा केदारनाथ जाने के लिए यात्रा-पत्र लेने वालों की पंक्ति में खड़े हो गए।
तभी हमें ज्ञात हुआ कि यात्रा-पत्र लेने से पहले हैजे का टीका लगवाना अनिवार्य है। मुझे टीका लगवाना अच्छा नहीं लगता, परंतु मैं विवश था। टिकट लेने के पश्चात् हम लोग अन्य यात्रियों के साथ बस में बैठ गए। कुछ देर के पश्चात् बस चल पड़ी। एक ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और दूसरी ओर तन्वंगी गंगा का प्रवाह देखते ही बनता श्रवण एवं वाचन था। पहाड़ी सड़कें निर्धन के भाग्य-सी टेढ़ी-मेढ़ी थीं। पहाड़ी वन अत्यंत मनमोहक प्रतीत हो रहे थे। दिल्ली और यहाँ के वातावरण में ज़मीन-आसमान का अंतर था।
धूप निखरी हुई थी फिर भी यहाँ के वायुमंडल में शीतलता व्याप्त थी। लगभग 56 किलोमीटर की यात्रा के पश्चात् हम लोग कर्णप्रयाग पहुँचे। यहाँ एक छोटा-सा पहाड़ी कस्बा है। यहाँ के लोगों की वेशभूषा और प्रकृति शहर के लोगों से स्पष्टतः भिन्न है। यात्रियों ने कुछ जलपान किया और यात्रा पुनः आरंभ हो गई। रुद्रप्रयाग होते हुए हम लोग श्रीनगर पहुंचे। यहाँ बस लगभग आधा घंटा रुकी। यात्रियों ने भोजन ग्रहण किया और उसके पश्चात् सोनप्रयाग होते हुए हम लोग गौरी कुंड पहुँचे।
यहाँ से केदारनाथ जाने के लिए पैदल रास्ता आरंभ हो जाता है। गौरी कुंड में एक तप्त जल का कुंड है। इस क्षेत्र में मई-जून के महीनों में भी काफ़ी सरदी पड़ती है। यहाँ एक छोटा-सा गाँव है जहाँ गरमियों के दिनों में यात्रियों का जमघट लगा रहता है। गौरी कुंड से पहाड़ी रास्ता अत्यंत दुर्गम हो जाता है। यात्री ‘जय केदारनाथ’ कहते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं। लगभग 7 घंटे की यात्रा के पश्चात् हम केदारनाथ पहुंचे। बरफ़ से ढके पहाड़ों को देखकर हम आत्म-विस्मृत हो गए।
मंदाकिनी के तीव्र प्रवाह का स्वर पहाड़ियों में दिव्य संगीत की सृष्टि कर रहा था। केदारनाथ के निकट ही शंकराचार्य की समाधि के दर्शन भी हमने किए और अगले दिन यहाँ से हम बद्रीनाथ की ओर चल पड़े। रास्ते में ‘तुंगनाथ’ नामक स्थान पर बस रुकी। वहाँ का प्राकृतिक वातावरण अद्भुत है। बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की अत्यंत भव्य मूर्ति है। हमने बद्रीनाथ तथा पंच-शिलाओं के दर्शन किए। यहाँ मुख्य मंदिर के निकट बहती अलकनंदा का प्रवाह देखते ही बनता है। बद्रीनाथ में लगभग चार दिन रहने के बाद हरिद्वार होते हुए दिल्ली वापिस लौट आए।
6. वाद-विवाद
वाद-विवाद किसी विषय के पक्ष-विपक्ष में विचार करने का साधन है। इसका उद्देश्य किसी विवादास्पद मसले पर जनता का ध्यान आकर्षित करना होता है। इसमें भाग लेने वाले कम से कम दो छात्र होते हैं। एक पक्ष में बोलता है तथा दूसरा विपक्ष में। ये वक्ता भरी सभा में बोलते हैं तथा पूरे सदन को संबोधित करते हैं।
वाद-विवाद में सभापति एक निर्णायक मंडल होता है। दोनों वक्ताओं का उद्देश्य पूरे सदन को अपने विचारों से सहमत करना होता है। इसमें एक-दूसरे की बात काटना व अपनी बात रखना होता है।
वाद-विवाद में ध���यान रखने योग्य बातें-
हर प्रतियोगी को अपने पक्ष को तर्क व मज़बूती के साथ प्रस्तुत करना चाहिए।
पक्ष में बोलने वाला वक्ता शांत स्वर में अपने विषय को तर्क व उदाहरणों से पुष्ट करता है।
विपक्ष में बोलने वाला वक्ता आक्रामक होता है। उसके स्वर में धारा प्रवाह बोलने की क्षमता होती है।
पक्ष या विपक्ष – दोनों वक्ताओं को व्यक्तिगत टिप्पणी, कटाक्ष व अभद्र बातों से बचना चाहिए।
दोनों वक्ताओं को सबसे पहले सदन को संबोधित करके विषय बताना होता है।
प्रारंभिक पंक्तियों में ही वक्ता को स्पष्ट कर देना चाहिए कि वह पक्ष में बोल रहा है या विपक्ष में।
वाद-विवाद की अपनी सीमाएँ हैं।
प्रायः वाद-विवाद का आरंभ इस प्रकार होता हैआदरणीय अध्यक्ष महोदय, निर्णायक मंडल व उपस्थित श्रोताओं, आज की वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय है …………..
वाद-विवाद में भाषण कला के सभी गुणों का उपयोग करना चाहिए।
अभ्यास प्रश्न
विषय : क्या चाँद पर अंतरिक्ष यान भेजना भारत के लिए उचित है?पक्ष में-
यह कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी कि धरतीवासियों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान एक कौतूहल का विषय रहा है। तारों, ग्रहों, आकाशगंगाओं का अध्ययन व अंतरिक्ष यात्रा सैकड़ों वर्षों से महत्त्वपूर्ण है। चार हजार वर्ष पूर्व इतालवी दार्शनिक तथा खगोलविद् ब्रुनो ने कहा था कि ब्रह्मांड अनगिनत तारों से भरा पड़ा है, जिनके चारों ओर असीमित मात्रा में ग्रह है, जो ‘होमोसेपियंस’ के लिए खासा शोध का विषय है और रहेगा। गौरतलब है कि मौजूदा ‘हाईटेक युग’ में अंतरिक्ष को लेकर की गई खोजों एवं अभियानों पर नज़र दौड़ाए तो इनमें एक तेज़ वृद्धि नज़र आ रही है।
इस हलचल को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 21वीं शताब्दी में नक्षत्रीय दोहन के लिए बहुत बड़ी राशि का निवेश किया जाने वाला है। 12 वर्षों बाद विश्वभर के वैज्ञानिकों की निगाहें ‘चंदा मामा’ पर टिकी हैं और इन दिनों भारत भी ‘मिशन टू मून’ चंद्रयान भेजने (2008) का निर्णय लिया है, जो न सिर्फ प्रासंगिक, उचित, समयानुकूल व देशहित में है, अपितु इससे देश के चतुर्दिक विकास को भी एक अभूतपूर्व आयाम मिलेगा। इसके कई सबल पक्ष हैं-
1. इससे जहाँ अंतरिक्ष विज्ञान के कई अनसुलझे रहस्य सुलझेंगे, वहीं भारत के चाँद पर अपनी दावेदारी होने से इसकी मिट्टी में पड़े लाखों टन हीलियम-3 से विश्व सहित भारत को आने वाले दिनों में होने वाली ऊर्जा संकट से मुक्ति मिलेगी।
2. इससे अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी को उन्नति मिलेगी जो अंततः भारत की मिसाइल विकास कार्यक्रम को नई तथा उन्नत जानकारी देगी और भारत भी यू.एस.ए. की तरह ‘एयर डिफेंस सिस्टम’ बना सकेगा, जो पूर्णतः देशी तकनीक पर आधारित होगा। कहने का आशय है कि भारतीय लूनर मिशन की सफलता देश की सुरक्षा व खुफिया व्यवस्था को एक नया आयाम देगा।
3. हालांकि भारत जैसे गरीब व विकासशील देश में 3.75 अरब रुपए की महँगी यात्रा को अव्यावहारिक बताया जा रहा है, लेकिन मेरा एक सवाल है कि गरीबी व निर्धनता की आड़ लेकर नई तकनीक को तिलांजलि देना कहाँ की बुद्धिमानी है? इसरो के आँकड़ों पर यदि नजर दौड़ाएँ तो पाएंगे कि प्रक्षेपण और यान की परिक्रमा पर यह खर्च हमारे सालाना अंतरिक्षीय बजट में महज 5-7 फीसदी की बढोत्तरी है जिसकी अनदेखी अंतरिक्ष विज्ञान और अनुसंधान की दृष्टि से सक्षम राष्ट्र भारत के लिए उचित नहीं है, ध्यातव्य है कि पिछले 30 वर्षों में भारत ने 29-30 उपग्रह स्थापित किए हैं और इन पर कुल 10-12 हज़ार करोड़ रुपए खर्च आया, जो अमरीका के 3-4 विफल हो गए, अभियानों के खर्च के बराबर है, ऐसे में चाँद पर आधिपत्य को लेकर यह खर्च सहज ही वहन किया जा सकता है, ताकि बाद में कम-से-कम हम अपने देशवासियों की अपेक्षाओं पर खरे उतर सकें। हकीकत तो यह है कि हम भारतीय भय, भूख, बेरोज़गारी व गरीबी से तो लड़-भिड़ सकते हैं, लेकिन वैचारिक, मानसिक व तकनीकी पिछड़ेपन से कदापि नहीं।
4. मैं ‘मिशन टू मून’ चंद्रयान की वकालत इसलिए भी करना चाहता हूँ कि जिस तरह आज अंटार्कटिका की अकूत खनिज संपदा पर अपना-अपना अधिकार जताने को लेकर विभिन्न देशों में आपाधापी मची हुई है उसकी तरह भविष्य में यदि चाँद की संपत्ति को लेकर काननी पक्ष उभरता है, तो उस समय भारत अपना पॉजिटिव पक्ष तभी पेश कर सकेगा जब आज वह चाँद पर जाने की प्रक्रिया को अंजाम देगा, इस नजरिए से भारत का ‘मिशन टू मून’ और भी प्रासंगिक व ज़रूरी हो जाता है ताकि बाद में चाँद की चाँदी (खनिज संपदा) पर हम भी दावे पेश कर सकें।
5. विवादों में पड़कर हम एक उपलब्धि, एक अभियान, एक नई टेक्नोलॉजी को तिलांजलि नहीं दे सकते। और फिर हम अगर यह लक्ष्य पाने में देर करेंगे, तो बाजी हमारे हाथ से निकल जाएगी। ऐसी स्थिति में हमें दूसरे देशों के सामने ‘याचक मुद्रा’ में खड़ा होना पड़ेगा, जो नागवार गुजरेगा, जरा सोचिए! एक स्वाभिमानी मुल्क के वैज्ञानिक ऐसी स्थिति को किसी सूरत में गँवारा नहीं करेंगे। इतिहास गवाह है कि हर विषय व विपरीत परिस्थिति में हमारे वैज्ञानिकों ने अपने ‘सुपर ब्रेन’ का परिचय दिया है चाहे वह अमरीका द्वारा नकारे जाने पर ‘सुपर कंप्यूटर’ का आविष्कार हो या रूस से क्रायोजनिक इंजन न मिलने पर खुद के द्वारा क्रायोजनिक तकनीक का डेवलपमेंट हो या फिर स्वयं के बूते हरित क्रांति जैसे लक्ष्य को पाना हो।
अंततः इसरो के पूर्व चेयरमैन डॉ० के० कस्तूरीरंगन की मान्यता महत्त्वपूर्ण है, “समूचा भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम वैज्ञानिक जिज्ञासा पूरी करने की अपेक्षा व्यावहारिक ज़रूरतें पूरी करने के लिए बन गया है, इसलिए भारत का ‘चाँद-मिशन’ भी उस दिशा में उठाया गया एक कदम होगा, जिसके तहत् देश को आर्थिक लाभ भले ही नहीं हो, लेकिन इससे टेकनोलॉजी संबंधी जो विशेष क्षमताएँ हासिल होंगी उनका इस्तेमाल स्वदेशी औद्योगिक क्षमता को पुख्ता करने में सहायक हो सकता है।कम-से-कम हमारे युवा वैज्ञानिकों का उत्साहवर्धन होगा तथा हमारे तकनीकी ज्ञान में वृद्धि होगी।
खैर! जो भी इसे लेकर ऊहापोह बने इतना तो तय है कि ‘मिशन टू मून-2008’ वर्तमान समय का तकाजा है क्योंकि इससे न सिर्फ तेज़ी से बदलती दुनिया के अंतरिक्ष में भारत का सिक्का जमेगा, अपितु नक्षत्रीय अभियानों के चुनिंदा क्लब का सदस्य बनकर भविष्य में होने वाली गतिविधियों पर भारतीय दावेदारी को महत्त्वपूर्ण व सशक्त स्थान मिलेगा।
विपक्ष में –
वर्तमान समय में भारत के चंद्रयान-I अभियान की चर्चा चारों ओर है और साथ ही यह विवाद भी उठ खड़ा हुआ है कि भारत द्वारा सन् 2008 में पहला चंद्रयान भेजा जाना उचित है या नहीं? मेरी दृष्टि में भारत द्वारा चंद्रमा पर यान भेजने का निर्णय अनुचित ही नहीं, निरर्थक भी है जिसके कारण निम्नांकित हैं
1. सर्वविदित है कि 21 जुलाई, 1969 को ही चंद्रमा पर अमरीकी यान अपोलो-I नील.ए. आर्मस्ट्रांग को लेकर पहुंच चुका था और उसके बाद कई यान और कई वैज्ञानिक चंद्रमा पर जा चुके हैं और कई महत्त्वपूर्ण खोजें हो चुकी हैं, चाँद के संबंध में बहुत कुछ जाना जा चुका है, फिर चंद्रमा पर 2008 में भारत द्वारा यान भेजने जाने का औचित्य क्या है?
2. भारत के इस चंद्रयान-I अभियान पर चार अरब रुपए के व्यय का अनुमान है, यदि इतने पैसे खर्च करके भारत कोई उन्नत सेटेलाइट छोड़े तो उसे संचार, सूचना आदि के क्षेत्रों में ज्यादा लाभ होगा, यदि इतने पैसे बेरोज़गारी, निरक्षरता आदि के उन्मूलन पर खर्च किए जाएँ तो ठोस परिणाम संभव है।
3. अब तक जिन राष्ट्रों ने अपने यान चंद्र-तल पर भेजे हैं, उनकी उच्च तकनीक का लोहा सारा विश्व मानता है, उन राष्ट्रों की तकनीक के आगे भारतीय तकनीक अभी शैशवास्था में है, अत: हमारे भारतीय वैज्ञानिक अब तक हुई खोजों से अलग चंद्रमा पर कुछ खोज कर लेंगे यह बाद गले नहीं उतरती।
4. भारत द्वारा छोड़े गए एक सेटेलाइट में पुर्जे 60-70% विदेशी होते हैं, इस चंद्रयान में भी अधिकांश पुर्जे विदेशी ही लगे होंगे। स्पष्टतः इस अभियान से भारतीय तकनीक को कोई लाभ पहुँचने वाला नहीं है।
5. इस चंद्रयान अभियान के बाद जैसा कि कहा जा रहा है कि भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। सारे विश्व को यह पता है कि भारत के इस स्वदेशी (?) यान के सारे पुर्जे विदेशी हैं, “कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा” वाली कहावत ही चरितार्थ होती है इस भारतीय अभियान के संदर्भ में।
6. भारत की इस अलाभकारी योजना के पीछे न सिर्फ पैसे बर्बाद होंगे, बल्कि मानव ऊर्जा जो किसी अन्य तरफ लगाए जाने पर कुछ नई खोज कर सकती है, वह भी बर्बाद होगी।
7. भारत जैसे गरीब राष्ट्र में जहाँ एक ओर लोगों की न्यूनतम बुनियादी मानवीय आवश्यकताएँ यथा भोजन, वस्त्र, आवास तक उपलब्ध नहीं है, वहीं दूसरी ओर इतने रुपए ��ंद्रयान-I जैसी अलाभकारी योजनाओं पर खर्च किए जाएँ, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
अंततः इतना ही कहा जा सकता है कि चर्चित चंद्रयान-I अभियान अनावश्यक एवं अनुचित है और हमारे नीति निर्धारकों को इस प्रकार के अनावश्यक कार्यों से परहेज करना चाहिए।
7.  उद्घोषणा/कार्यक्रम प्रस्तुति
उद्घोषणा करना भी एक विशेष कला है। एक कुशल मंच संचालक सभी कार्यक्रमों में जान फूंक सकता है। उद्घोषणा वह कला है, जिसके आधार पर दर्शकों व श्रोताओं की रुचि व जिज्ञासा को बनाए रखा जा सकता है। उद्घोषक के पास हाज़िरजवाबी, प्रेरक प्रसंगों का भंडार तथा हास्य प्रसंगों का भंडार होना चाहिए।उद्घोषणा करते वक्त निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
उद्घोषक को सुखद और शालीन वेशभूषा में मंच पर आना चाहिए।
उसके हाथों में फाइल और पेन होना चाहिए।
उसके पास प्रस्तुत होने वाले सभी कार्यक्रमों की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
उद्घोषक को यह भी जान लेना चाहिए कि प्रस्तुत होने वाले कार्यक्रम का मुख्य भाव या विषय क्या है? उद्घोषक को कार्यक्रम पेश होने से पहले वैसी ही भूमिका देनी चाहिए।
कार्यक्रम की सफल प्रस्तुति के बाद मंच से उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। वह प्रशंसा ऐसी हो कि श्रोताओं के मन में जो भाव चल रहे हों, लगभग उसी को कहना चाहिए।
उद्घोषक ही श्रोताओं से तालियाँ बजवाता है तथा कलाकारों व श्रोताओं का मनोबल ऊँचा रखता है। उसे कार्यक्रम की प्रशंसा से ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जिससे हॉल तालियों से गूंज उठे।
यदि उद्घोषक को मशहूर कवियों या विचारकों की छोटी-छोटी काव्य पंक्तियाँ, सूक्तियाँ या शेर आदि याद हों और वह उचित अवसर पर उन्हें कुशलता से सुना दे तो कार्यक्रम का रंग ही कुछ और हो जाता है।
उद्घोषक का मुख्य काम होता है-प्रस्तुत होने वाले कार्यक्रमों का परिचय देना और उनका आनंद लेने के लिए श्रोताओं को तैयार करना। इसके लिए उसे अलग से समय नहीं लेना चाहिए।
उद्घोषक को कम-से-कम बोलना चाहिए। दो कार्यक्रमों के बीच में आधे मिनट से दो मिनट का जो खाली समय होता है, उसे बस उसी का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
उद्घोषक की आवाज़ सुरीली होनी चाहिए।
उद्घोषक तथा समाचार वाचक में अंतर स्पष्ट होना चाहिए।
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margdarsanme · 4 years
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NCERT Class 12 Hindi Sarwan Vachan
NCERT Class 12 Hindi :: Sarwan Vachan
CBSE Class 12 Hindi श्रवण एवं वाचन
भाषा का मौखिक प्रयोग ही भाषा का मूल रूप है। इसलिए बोलचाल को ही भाषा का वास्तविक रूप माना जाता है। मानव जीवन में लिखित भाषा की अपेक्षा मौखिक भाषा ही अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, क्योंकि हम अपने दैनिक जीवन के अधिकांश कार्य मौखिक भाषा द्वारा ही संपन्न करते हैं। हास-परिहास, वार्तालाप, विचार-विमर्श, भाषण, प्रवचन आदि कार्यों में मौखिक भाषा का उपयोग स्वयंसिद्ध है। सार्वजनिक जीवन में मौखिक अभिव्यक्ति का विशेष महत्त्व है। जो वक्ता मौखिक अभिव्यक्ति में अधिक कुशल होता है, वह श्रोताओं को अधिक प्रभावित करता है तथा अपना लक्ष्य सिद्ध कर लेता है।
सामाजिक संवाद में कुशल बनने के लिए प्रयोग और अभ्यास भी अनिवार्य है। बिना अभ्यास के आत्म-विश्वास डगमगाने लगता है। यह आवश्यक नहीं है कि अभ्यास के लिए स्थिति सामने लाई जाए क्योंकि शादी, मृत्यु आदि का अवसर कक्षा में नहीं लाया जा सकता। अतः छात्रों को अध्यापक की सहायता से काल्पनिक स्थिति बनाकर अभ्यास करना चाहिए।
(क) मानक उच्चारण के साथ शुद्ध भाषा का प्रयोग।(ख) व्यावहारिक भाषा का प्रयोग।(ग) विनीत और स्पष्ट भाषा का प्रयोग।(घ) विषयानुरूप प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग।
मौखिक अभिव्यक्ति के अनेक रूप हैं; जैसे-
कविता पाठ
कहानी कहना
भाषण
समाचार वाचन
साक्षात्कार लेना व देना
वर्णन करना
वाद-विवाद
परिचर्चा
उद्घोषणा
बधाई देना
धन्यवाद
संवेदना प्रकट करना
आस-पड़ोस में संपर्क
अतिथि का स्वागत।
कुछ महत्त्वपूर्ण रूपों पर यहाँ प्रकाश डाला जा रहा है-
1 कविता सुनाना
कविता सुनाना भी अपने-आप में एक कला है। यह कला कुछ लोगों में जन्म से पाई जाती है तो कुछ इसे अभ्यास द्वारा सीख सकते हैं। कवि सम्मेलनों में जाने तथा कवियों के सान्निध्य से कविता पाठ सुनकर अभ्यास किया जाए तो सीखने का कार्य सरल हो जाता है। कविता पाठ में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
सर्वप्रथम ऐसी कविता का चयन करें जो अपनी रुचि के अनुसार हो, जिसे आप अपने हृदय से पसंद करते हों, क्योंकि ऐसी कविता में ही आप उन भावों को भर सकते हैं, जो आपके दिल से निकलते हैं।
कविता को पूर्णत: कठस्थ कर लें। कंठस्थ कविता से ही लय बनती है।
उस कविता का बार-बार अभ्यास करें।
कंठस्थ कविता को नज़दीकी लोगों को सुनायें।
एकांत कमरे में शीशे के सामने खड़े होकर अपने हाव-भाव को कविता की प्रवृत्ति के अनुसार बनायें।
जो शब्द या वाक्य आपके प्रवाह में बाधक हों, उन्हें बदल कर उनके स्थान पर पर्यायवाची रख दें।
शब्द परिवर्तन से कविता के अर्थ में परिवर्तन नहीं आना चाहिए।
उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
कविता सुनाते समय मुक्त कंठ से कविता का उच्चारण करें।
श्रोता की रुचि व आराम का विशेष ध्यान रखें।
श्रोताओं के हाव-भाव पढ़ने का प्रयत्न करें।
भावों के अनुसार स्वरों में उतार-चढ़ाव होना भी आवश्यक है। हास्य, व्यंग्य व करुणा के भावों के अनुसार वाणी का उतार चढ़ाव अधिक प्रभावशाली बन जाता है।
कविता रुक-रुक कर सुनाई जानी चाहिए, ताकि श्रोतागण उसका पूरा आनंद ले सकें।
श्रोतागण के आनंद को उनके द्वारा दी गई दाद/तालियों से समझा जा सकता है। ऐसे अवसरों पर कविता की उस पंक्ति को दोबारा दोहराया जाना चाहिए।
जिन पंक्तियों पर आप श्रोता का ध्यान आकर्षित करना चाहते हों, उन पंक्तियों को दोहराना चाहिए।
कविता को गाकर भी सुनाया जा सकता है।
कविता का चयन अवसरानुकूल होना चाहिए।
कविता को भावपूर्ण हृदय से सुनाकर श्रोतागण को भाव-विभोर करना ही श्रेष्ठ कविता का वाचन होता है।
अवसरानुकूल कविता की प्रस्तुति से श्रोताओं का भाव-विभोर हो जाना निश्चित है, क्योंकि हृदय से निकली आवाज मन को अवश्य बाँधती है।
अभ्यास प्रश्न
1. निम्नलिखित कविताओं का कक्षा में प्रभावशाली ढंग से वाचन कीजिए-
(1) झाँसी की रानी की समाधि पर
इस समाधि में छिपी हुई हैएक राख की ढेरी।जलकर जिसने स्वतंत्रता कीदिव्य आरती फेरी॥
यह समाधि, यह लघु समाधि हैझाँसी की रानी की।अंतिम लीलास्थली यही हैलक्ष्मी मर्दानी की॥
यहीं कहीं पर बिखर गई वहभग्न विजय-माला-सी।उसके फूल यहाँ संचित हैंहै यह स्मृति-शाला-सी॥
वार पर वार अंत तकलड़ी वीर बाला-सी।आहुति-सी गिर चढ़ी चिता परचमक उठी ज्वाला-सी॥
बढ़ जाता है मान वीर कारण में बलि होने से।मूल्यवती होती सोने कीभस्म यथा सोने से॥
रानी से भी अधिक हमें अबयह समाधि है प्यारी।यहाँ निहित है स्वतंत्रता कीआशा की चिनगारी॥
इससे भी सुंदर समाधियाँहम जग में हैं पाते।उनकी गाथा पर निशीथ मेंक्षुद्र जंतु ही गाते॥
पर कवियों की अमर गिरा मेंइसकी अमिट कहानी।स्नेह और श्रद्धा से गातीहै वीरों की बानी॥ सहे
बुंदेले हरबोलों के मुखहमने सुनी कहानी।खूब लड़ी मर्दानी वह थीझाँसी वाली रानी॥
यह समाधि, यह चिर समाधिहै झाँसी की रानी की।अंतिम लीलास्थली यही हैलक्ष्मी मर्दानी की॥
-सुभद्रा कुमारी चौहान
(2) निज रक्षा का अधिकार रहे जन-जन को,सबकी सुविधा का भार किंतु शासन को।मैं आर्यों का आदर्श बताने आया।जन-सम्मुख धन को तुच्छ जताने आया।सुख-शांति-हेतु मैं क्रांति मचाने आया,विश्वासी का विश्वास बचाने आया,मैं आया उनके हेतु कि जो तापित हैं,जो विवश, विकल, बल-हीन, दीन शापित हैं।हो जाएँ अभय वे जिन्हें कि भय भासित हैं,जो कौणप-कुल से मूक-सदृश शासित हैं।मैं आया, जिसमें बनी रहे मर्यादा,बच जाय प्रबल से, मिटे न जीवन सादा।सुख देने आया, दुःख झेलने आया,संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लायामैं मनुष्यत्व का नाट्य खेलने आया।मैं यहाँ एक अवलंब छोड़ने आया,गढ़ने आया हूँ, नहीं तोड़ने आया।मैं यहाँ जोड़ने नहीं, बाँटने आया,जगदुपवन में झंखाड़ छाँटने आया।मैं राज्य भोगने नहीं, भुगाने आया।हंसों को मुक्ता-मुक्ति चुगाने आया,भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया।नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया।संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।अथवा आकर्षण पुण्यभूमि का ऐसा,अवतरित हुआ मैं, आप उच्च फल जैसा।
-मैथिलीशरण गुप्त
2. कहानी कहना
कहानी कहना या सुनाना भी एक कला है। एक अच्छा कहानी लिखने वाला अच्छा कहानी सुनाने वाला भी हो, यह आवश्यक नहीं। यह कला अभ्यास के द्वारा प्राप्त की जा सकती है।
विद्यार्थियों को यदि इस कला से अवगत कराया जाए तो उनमें इस गुण का विकास किया जा सकता है। एक अच्छे कहानीकार में निम्नलिखित गुणों का होना अत्यंत आवश्यक होता है-
1. जिस कहानी को सुनाना हो उसका सार कहानी सुनाने वाले के दिमाग में बिलकुल स्पष्ट होना चाहिए।
2. उसे सारी घटनाएँ याद होनी चाहिए जिससे वह कहानी को उलट-पलट कर न सुना दे। क्योंकि ऐसा होने पर कहानी का रस ही समाप्त हो जाता है।
3. कहानी सुनाते समय कहानी के पात्रों, तिथियों, स्थानों का नाम पूर्ण रूपेण याद होना चाहिए। केवल अनुमान लगाकर सुनाई गई कहानी अपनी वास्तविकता खो देती है।
4. भाषा और संवाद भी कहानी की जान होते हैं। भाषा का स्तर उम्र, बौद्धिक स्तर आदि के अनुकूल होने पर ही कहानी प्रभावशाली बन पाती है। संवादों में बचपना या परिपक्वता सामने बैठे श्रोतागण के अनुसार होने पर ही कहानी में रुचि जाग्रत हो सकती है।
5. कहानी को रोचक बनाने के लिए संवाद व वर्णन-दोनों का उचित मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिए। जिस प्रकार भोजन में उचित मात्रा में तेल, मसाले आदि डाले जाएँ तो भोजन रुचिकर बनता है ठीक उसी प्रकार संवाद और वर्णन का सही मेल ही कहानी में जान डाल सकता है।
6. कहानी सुनाते समय श्रोता के हाव-भाव को पढ़ना भी कहानीकार का मुख्य कार्य होता है, क्योंकि श्रोता की रुचि और अरुचि का पता उनके हाव-भाव से लगाकर अपनी कहानी को अधिक रोचक या सरल बनाकर सुनाने पर ही श्रोता की वाह-वाही लूटी जा सकती है।
7. कहानी सुनाने वाले की आवाज़ में एक विशिष्ट आकर्षण होना भी अत्यंत आवश्यक होता है। कहानीकार की आवाज़ का केवल मधुर होना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि उसका बुलंद होना भी जरूरी होता है। यदि आखिरी पंक्ति में बैठा श्रोता उसकी आवाज़ नहीं सुन पा रहा है तो वह कहानी उसके लिए रुचिकर कैसे हो सकती है। इसका अर्थ यह नहीं कि कहानी सुनाने वाला चिल्ला-चिल्लाकर कहानी सुनाए। ऐसा करने पर श्रोतागण के सिर में दर्द भी हो सकता है और अरुचिवश वे वहाँ से उठकर भी जा सकते हैं।
8. कहानी को रोचक बनाने के लिए अच्छे मुहावरों व सूक्तियों के द्वारा भाषा को लच्छेदार बनाना भी आवश्यक होता है। सीधी, सरल भाषा ज्यादा देर तक श्रोताओं को नहीं बाँध सकती है।
9. लच्छेदार भाषा के साथ कहानी कहने वाले की आवाज़ में उतार-चढ़ाव होना भी अत्यंत आवश्यक होता है। आवाज़ का जादू अच्छे-अच्छों के होश उड़ा देता है। एक-सी आवाज़ में कही गई कहानी श्रोता को बाँधने में असफल होती है। लेक���न आवाज़ में उतार-चढ़ाव आवश्यकता के अनुसार ही होना चाहिए अन्यथा अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती। 406
10. जोश और उत्साह की बात बताते समय चेहरे की प्रसन्नता तथा आवाज़ की बुलंदी तथा दुख भरी घटना सुनाते समय भाव-विभोर हो मंद आवाज़ में कही गई बात सीधी श्रोता के दिल में उतर जाती है।
11. भाव-विभोर होकर कहानी सुनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि आपकी आवाज़ सामने बैठे श्रोताओं की आखिरी पंक्ति तक पहुँचनी चाहिए।
12. कहानी की रोचकता को बनाये रखने के लिए जिज्ञासा का बना रहना अत्यंत ज़रूरी है। श्रोता के मन में यदि हर पल यह जिज्ञासा बनी रहे कि अब आगे क्या होगा तो कहानी सुनने का आनंद दुगुना हो जाता है। कहानी सुनाने वाले के द्वारा इस जिज्ञासा को बनाए रखना अति आवश्यक होता है।
13. कहानी बहुत अधिक लंबी नहीं होनी चाहिए अन्यथा श्रोता बोरियत का अनुभव करने लगते हं।
14. कहानी किसी उद्देश्य से परिपूर्ण हो यह भी अति आवश्यक है। निश्चित निष्कर्ष को लेकर सुनाई गई कहानी अधिक रुचिकर होती है।
15. कहानी में हास्य-व्यंग्य का पुट होना चाहिए।
16. कहानी में मार्मिक संवाद अनिवार्य है।
अभ्यास प्रश्न
1. निम्नलिखित कहानियों को कक्षा में रोचक ढंग से सुनाइए
1. एक बार राजा भोज को सपने में व्यक्ति का रूप धारण कर स्वयं ‘सत्य’ ने दर्शन दिए। राजा के पूछने पर सत्य ने बताया “मैं सत्य हूँ जो अंधों की आँखें खोलता हूँ और मृग-तृष्णा में भटके हुओं का भ्रम मिटाता हूँ। यदि तुझमें साहस है तो मेरे साथ चल मैं तेरे भी मन की जाँच कर लूँ।” चूँकि राजा भोज को अपने सत्कर्मों का बहुत अहंकार था इसलिए वह तुरंत ही इसके लिए सहमत हो गया। सत्य उसे अपने साथ मंदिर के उस ऊँचे दरवाजे पर ले गया, जहाँ से एक सुंदर बाग दिखाई देता था।
उस बाग में तीन पेड़ लगे हुए थे। सत्य ने राजा से पूछा ‘क्या तुम बता सकते हो कि ये पेड़ किसके हैं?’ राजा ने प्रसन्नता से भरकर उत्तर दिया – “ये तीनों ही पेड़ मेरे पुण्य कर्म का प्रतिफल हैं। लाल-लाल फलों से लदा हुआ पेड़ मेरे दान का है। पीले फल मेरे न्याय और सफ़ेद फल मेरे तप का प्रभाव दिखलाते हैं।” सत्य ने राजा से कहा, “चल, उन पेड़ों के पास चलकर छूकर देखते हैं।” सत्य ने जैसे ही पहले वृक्ष को छुआ तो क्या देखता है कि सारे फल उसी तर�� पृथ्वी पर गिरे जिस प्रकार आसमान से ओले गिरते हैं।
दूसरे पेड़ों को भी छूने पर वही हाल हुआ जो प्रथम का हुआ था। राजा की आँखें नीची हो गईं और उसने सत्य से इसका कारण पूछा। सत्य ने कहा “प्रथम पेड़ के फल इसलिए गिर गये क्योंकि तूने जो कुछ भी किया वह ईश्वर की भक्ति या जीवों के प्रेम से वशीभूत होकर नहीं किया। तूने अपने आपको भुलाने और मिथ्या प्रशंसा पाने के लिए यह सब किया था।” पीले फलों से युक्त पेड़ के संदर्भ में सत्य ने कहा, “जिस न्याय की तू बात करता है वह न्याय तूने मात्र अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किया है।
तू अच्छी तरह से जानता है कि न्याय किसी राज्य की जड़ है और जिस राज्य में न्याय नहीं, वह तो बे-नींव का घर है, जो बुढ़िया के दाँतों की तरह हिलता है, अब गिरा, तब गिरा।” सफ़ेद फल जो कि राजा के अनुसार उसके तप के फल थे के बारे में सत्य ने कहा, “ये फल तप ने नहीं, बल्कि अहंकार ने लगा रखे थे। तेरी ईश्वर की भक्ति, जीवों के प्रति दया, वंदना, विनती सभी इसलिए की गई थी – मानों ईश्वर तुम्हारे बहकावे में आकर स्वर्ग का राजा बना दे।
“अंत में, सत्य ने कहा “मनुष्य तो केवल कर्मों के अनुसार दूसरे मनुष्य की भावना का विचार करता है और ईश्वर मनुष्य के मन की भावना के अनुसार उसके कर्मों का हिसाब लेता है। अतः इन पेड़ों के फल उसी व्यक्ति के हिस्से में आते हैं जो शुद्ध हृदय, निष्कपट, निरहंकार होकर अपना कर्तव्य समझते हुए अपना कार्य करता है। ईश्वर. उसी का निवेदन स्वीकार करते हैं जो नम्रता और श्रद्धा के साथ सच्चे मन से प्रार्थना करता है।”
2.  एक बार मंथरक नाम के जुलाहे के सब उपकरण, जो कपड़ा बुनने के काम आते थे, टूट गए। उपकरणों को फिर से बनाने के लिए लकड़ी की ज़रूरत थी। लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी लेकर वह समुद्र तट पर स्थित वन की ओर चल दिया। समुद्र के किनारे पहुँचकर उसने एक वृक्ष देखा और सोचा कि इसकी लकड़ी से उसके सब उपकरण बन जाएँगे। यह सोचकर वह वृक्ष के तने में कुल्हाड़ी मारने को ही था कि वृक्ष की शाखा पर बैठे हुए एक देव ने उससे कहा – “मैं वृक्ष पर सुख से रहता हूँ और समुद्र की शीतल हवा का आनंद लेता हूँ! तुम्हें वृक्ष को काटना उचित नहीं, दूसरे के सुख को छीनने वाला कभी सुखी नहीं होता
जुलाहे ने कहा – “मैं भी लाचार हूँ। लकड़ी के बिना मेरे उपकरण नहीं बनेंगे, कपड़ा नहीं बुना जाएगा, जिससे मेरे कुटुंबी मर जाएंगे। इसलिए अच्छा यही है कि तुम किसी और वृक्ष का आश्रय लो, मैं इस वृक्ष की शाखाएँ काटने को विवश हूँ।देव ने कहा – “मंथरक! मैं तुम्हारे उत्तर से प्रसन्न हूँ। तुम कोई भी एक वर माँग लो, मैं उसे पूरा करूँगा। केवल इस वृक्ष को मत काटो।मंथरक बोला – “यदि यही बात है तो मुझे कुछ देर का अवकाश दो। मैं अभी घर जाकर अपनी पत्नी से और मित्र से सलाह करके तुमसे वर मागूंगा।देव ने कहा – “मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा।गाँव पहुँचने के बाद मंथरक की भेंट अपने एक मित्र नाई से हो गई। उसने उससे पूछा – “मित्र! एक देव मुझे वरदान दे रहा है। मैं तुमसे पूछने आया हूँ कि कौन-सा वरदान माँगा जाए?नाई ने कहा – “यदि ऐसा है तो राज्य माँग ले। मैं तेरा मंत्री बन जाऊँगा, हम सुख से रहेंगे।”
तब मंथरक ने अपनी पत्नी से सलाह लेने के बाद वरदान का निश्चय लेने की बात नाई से कही। नाई ने स्त्रियों के साथ ऐसी मंत्रणा करना नीति विरुद्ध बतलाया। उसने सम्मति दी कि स्त्रियाँ प्रायः स्वार्थ-परायण होती हैं। अपने सुख-साधन के अतिरिक्त उन्हें कुछ भी सूझ नहीं सकता। अपने पुत्र को भी जब वे प्यार करती हैं, तो भविष्य में उसके द्वारा सुख की कामनाओं से ही करती हैं। मंथरक ने फिर भी पत्नी से सलाह लिए बिना कुछ भी न करने का विचार प्रकट किया। घर पहुँचकर वह पत्नी से बोला – “आज मुझे एक देव मिला है वह एक वरदान देने को उद्यत है। नाई की सलाह है कि राज्य माँग लिया जाए। तू बता कि कौन-सी चीज़ माँगी जाए?
पत्नी ने उत्तर दिया – “राज्य-शासन का काम बहुत कष्टप्रद है। संधि-विग्रह आदि से ही राजा को अवकाश नहीं मिलता। राजमुकुट प्रायः कांटों का ताज होता है। ऐसे राज्य से क्या लाभ जो सुख न दे!मंथरक ने कहा – “प्रिये! तुम्हारी बात सच है। किंतु प्रश्न यह है कि राज्य न माँगा जाए तो क्या माँगा जाए?
मंथरक की पत्नी ने उत्तर दिया – “तुम अकेले दो हाथों से जितना कपड़ा बुनते हो उसमें भी हमारा व्यय पूरा हो जाता है। यदि तुम्हारे हाथ दो की जगह चार हों और सिर भी एक की जगह दो हों तो कितना अच्छा हो। तब हमारे पास आज की अपेक्षा दुगुना कपड़ा हो जाएगा। इससे समाज में हमारा मान बढ़ेगा।”मंथरक को पत्नी की बात जंच गई। समुद्र-तट पर जाकर वह देव से बोला – “यदि आप वर देना ही चाहते हैं तो यह वर दें कि मैं चार हाथ और दो सिर वाला हो जाऊँ।”मंथरक के कहने के साथ ही उसका मनोरथ पूरा हो गया। उसके दो सिर और चार हाथ हो गए, किंतु इस बदली हालत में वह गाँव में आया तो लोगों ने उसे राक्षस समझ लिया और राक्षस-राक्षस कहकर सब उस पर टूट पड़े।
3. भाषण कला
भाषण, भाषा के विभिन्न कौशलों की एक मिश्रित अभिव्यक्ति है। भाषण कौशल की प्रक्रिया में संरचनाओं का सुव्यवस्थित चयन, शब्दों की द्रुतगति से प्रवाहपूर्ण प्रयोग तथा एक निश्चित संख्या में उनको जोड़ना शामिल है। इसमें शब्द समूह और वाक्य साँचों का क्रमबद्ध प्रयोग होता है। भाषण कौशल को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है – एक उच्चारण और दूसरा अभिव्यक्ति। उच्चारण के अंतर्गत समस्त ध्वनि व्यवस्था के प्रायोगिक रूप का समावेश रहता है। विद्यार्थियों को चाहिए कि अपने भाषा को तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें
भाषण ऐसा हो कि श्रोता उसमें रुचि ले सकें।
सदैव भाषण देते समय आरोह अवरोह का ध्यान रखा जाना चाहिए।
भाषण विषयानुकूल तथा भावानुकूल होना चाहिए।
भाषण देते समय क्रियात्मक अभिनय का समावेश करना चाहिए।
भाषण में हास्य व्यंग्य का पुट होना भी आवश्यक होता है, जिससे श्रोतागण उसको रुचिपूर्वक सुन सकें।
 विषय का प्रस्तुतीकरण रोचक व नवीन ढंग से होना चाहिए, अर्थात् उसमें कुछ नयापन होना चाहिए।
भाषण में कठिन शब्दों का प्रयोग न करते हुए आम बोलचाल (हिंदुस्तानी) की भाषा का प्रयोग करना चाहिए ताकि लोग उसे आसानी से समझ सकें।
वक्ता को भाषा के विभिन्न प्रकार के नवीन शब्दों और भाषा के अन्य नवीन तथ्यों का सहज रूप से अभ्यास होना चाहिए।
वक्ता चित्रात्मक तथा प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग कर भाषण को और भी अधिक प्रभावशाली बना सकता है।
विषय से संबंधित कोई विशिष्ट उक्ति या प्रसिद्ध कवि की कविताओं को यदि वक्ता अपने भाषण में जोड़ लेता है तो उसके भाषण में चार चाँद लग जाते हैं।
भाषण देते समय वक्ता को शब्दों के उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए वरना अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है।
छोटे वाक्यों का प्रयोग करना वक्ता के लिए अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
भाषण को तैयार कर यदि वक्ता उसे टेप पर पुनः सुनता है तो वह स्वयं अपनी गलतियों को पहचानकर उन्हें ठीक कर सकता है।
भाषण जोश और उत्साह से भरा होना चाहिए।
भाषण में संबोधन का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। श्रोतागण को किया गया संबोधन अत्यंत सहज व आत्मीय होना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि केवल सभापति या निर्णायक गण ही वहाँ उपस्थित नहीं हैं।
भाषण की शुरुआत पर वक्ता को विशेष ध्यान देना चाहिए। जितनी अधिक प्रभावशाली शुरुआत होगी उतनी ही अधिक श्रोताओंकी प्रशंसा व एकाग्रता वक्ता को मिलेगी।
भाषण का अंत कभी भी अधूरा नहीं रहना चाहिए। अर्थात् भाषण में पूर्णता होनी चाहिए। श्रोताओं को यह न लगे कि आप अपनी बात को स्पष्ट करने में असफल रहे हैं।
भाषण में परिपक्वता अवश्य होनी चाहिए अर्थात् उसमें विषय से हटकर कुछ भी न कहा गया हो तथा कम-से-कम शब्दों में अपनी बात को स्पष्ट किया गया हो।
4. साक्षात्कार लेना व देना
साक्षात्कार लेना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति अभ्यर्थियों की योग्यता की पूर्ण जाँच करता है। वह अभ्यर्थी की हर क्रिया व प्रतिक्रिया को ध्यान से देखता व सुनता है। साक्षात्कार का कार्य शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ स्वभाव को भी जानना होता है।
साक्षात्कार लेते वक्त ध्यान रखने योग्य बातें-
अभ्यर्थी का आत्मविश्वास बनाए रखना चाहिए।
बातचीत का आरंभ परिचयात्मक होना चाहिए।
प्रश्नों की शुरुआत व्यक्तिगत जीवन से संबंधित सामान्य प्रश्नों से करनी चाहिए।
साक्षात्कार-कर्ता के प्रश्न संक्षिप्त व स्पष्ट होने चाहिए।
अभ्यर्थी द्वारा दिए गए उत्तरों को अनसुना न कर ध्यान से सुनना चाहिए।
अभ्यर्थी द्वारा गलत या भ्रामक उत्तर देने पर एकाध स्पष्टीकरण लेना ही पर्याप्त है।
यदि अभ्यर्थी किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देता है तो उससे अगला प्रश्न पूछ लेना चाहिए।
साक्षात्कार को अधिक लंबा नहीं खींचना चाहिए।
यदि अभ्यर्थी उत्तर को लंबा खींच रहा हो तो आप बीच में यह कहकर अगला प्रश्न पूछ सकते हैं – ‘आपकी बात ठीक है। आप कृपया यह बताएँ कि ……।’
जिस पद हेतु साक्षात्कार लिया जा रहा है, उससे संबंधित एक-दो प्रश्न अवश्य करें।
अभ्यर्थी से आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
उदाहरण
उत्तर प्रदेश राज्य की प्रतिष्ठित न्यायिक सेवा परीक्षा में सिविल जज पद पर सातवें स्थान पर पहले प्रयास में ही चयनित होकर श्री कृष्ण चंद्र पांडेय ने एक महत्त्वपूर्ण सफलता अर्जित की है, प्रशांत दविवेदी ने उनका साक्षात्कार लिया, जो इस प्रकार है-
प्रशांत द्विवेदी – आपकी इस सफलता के लिए बधाई।कृष्ण चंद्र – जी, धन्यवाद।प्रशांत द्विवेदी – आपको अपने चयन की सूचना कैसे मिली?कृष्ण चंद्र – मेरे मित्र हरि प्रकाश शुक्ल APO इलाहाबाद में कार्यरत, द्वारा मुरादाबाद ट्रेनिंग सेंटर पर फ़ोन द्वारा प्राप्त हुई।प्रशांत द्विवेदी – चयन होने पर आपको कैसा लगा?
कृष्ण चंद्र – मुझे गलत सूचना मिली कि मैं असफल हो गया हूँ, लगभग आधे घंटे पश्चात् मुझे इस सफलता की सूचना प्राप्त हुई, इस प्रकार मैंने असफलता का दंश और सफलता की प्रसन्नता-दोनों का अनुभव किया।प्रशांत द्विवेदी – आपको न्यायिक सेवा में जाने की प्रेरणा कैसे मिली?कृष्ण चंद्र – बड़े बहनोई श्री नलिनीश शुक्ला, एडवोकेट ने मुझे प्रेरित किया कि मैं इसे अपना कैरियर बनाऊँ। उन्होंने मुझे सदैव इसके लिए प्रेरित किया, इसके अतिरिक्त मुझे विधि विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्ण विभागाध्यक्ष प्रो. उदय राज राय ने भी प्रेरित किया।प्रशांत द्विवेदी – यह सफलता आपने कितने प्रयासों में अर्जित की?कृष्ण चंद्र – यह मेरा पहला प्रयास था।प्रशांत द्विवेदी – आपने इस परीक्षा के लिए तैयारी किस प्रकार की?
कृष्ण चंद्र – कुछ चुनिंदा बिंदुओं पर प्रामाणिक पुस्तकों से नोट्स बनाए; Bare Acts का सूक्ष्म अवलोकन किया, L-L.M में Interpretation of Statue एक विषय होने के कारण Bare Acts के सूक्ष्म निर्वचन पर ध्यान केंद्रित किया, विभिन्न धाराओं को Co-relate करके अध्ययन किया। मूलतः नोट्स की अपेक्षा किताबें मेरे अध्ययन का केंद्र-बिंदु रहीं। प्रो. रमेश चंद्र श्रीवास्तव जी के निर्देशन में एल-एल.एम. (फाइनल) में ‘हितग्राही में अनुयोजन का अधिकार’ विषय पर डिजर्टेशन लिखने के कारण मेरी लेखनी परिष्कृत हुई, इसका भी लाभ मुझे इस परीक्षा में मिला।प्रशांत द्विवेदी – आपकी सफलता का मूल मंत्र क्या रहा?कृष्ण चंद्र – आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय, कठिन परिश्रम, एकाग्रता एवं कभी न हार मानने वाली अदम्य जिजीविषा। इसके अलावा गुरुजनों का आशीर्वाद, मित्रों का प्रेम, प्रोत्साहन, पारिवारिक सहयोग भी इसमें सहायक हुए। प्रशांत द्विवेदी-साक्षात्कार में पूछे गए प्रश्न क्या थे?कृष्ण चंद्र – साक्षात्कार 3 अगस्त, 20XX दिन शुक्रवार के दिन श्री के.बी. पांडेय (चेयरमैन, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग) के बोर्ड में, बोर्ड के अन्य सदस्य
न्यायमूर्ति वी. के. राव एवं प्रोफेसर खान (अलीगढ़ विश्वविद्यालय) थे, साक्षात्कार लगभग 30 मिनट चला। बोर्ड का रवैया सहयोगात्मक था। साक्षात्कार का आरंभ प्रो. पांडेय ने किया एवं समापन प्रो० खान द्वारा हुआ। सामान्य परिचयात्मक प्रश्नों के अलावा मुझसे कई प्रश्न पूछे गए।प्रशांत द्विवेदी – प्रतियोगिता दर्पण पत्रिका के विषय में आपके क्या विचार हैं?कृष्ण चंद्र – यह पत्रिका सिविल सर्विस के परीक्षार्थियों के लिए रामबाण है। संविधान पर इसका अतिरिक्तांक न्यायिक परीक्षा के लिए अत्यंत उपयोगी है। यदि पत्रिका में कुछ विधिक लेख भी नियमित रूप से प्रकाशित होने लगे तो यह न्यायिक परीक्षा के लिए भी समान रूप से उपयोगी हो जाएगी।प्रशांत द्विवेदी – आगामी प्रतियोगियों के लिए आप क्या परामर्श देंगे?कृष्ण चंद्र – दृढ़ आत्मविश्वास के साथ गंभीर परिश्रमयुक्त सतत् एवं सुव्यवस्थित अध्ययन ही सफलता की सीढ़ी है। Revision is a must पढ़ें, पर स्वयं को Confuse होने से बचाए रखें, बस अर्जुन की तरह लक्ष्य पर एकाग्रचित रहें, अंतत: सफलता वरण करेगी ही।
साक्षात्कार देना
छात्रों को अनेक कार्यों के लिए साक्षात्कार देना होता है। कुछ में इसका डर बैठ जाता है। वस्तुतः साक्षात्कार परीक्षा जैसा होता है। इसमें अल्प समय में बहुत कुछ कहना होता है। अभ्यर्थी को दो कार्य करने होते हैं – स्वयं को परिचित कराना तथा साक्षात्कार मंडल को प्रभावित करना।
साक्षात्कार देने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना होता है
साक्षात्कार देते वक्त सहज रहें।
अपनी बात को सरल ढंग से कहें।
साक्षात्कार में जाते समय वेशभूषा संतुलित होनी चाहिए।
साक्षात्कार पर जाने से पहले वरिष्ठ छात्रों से अभ्यास करें।
साक्षात्कार-कक्ष में प्रवेश करने से पहले मुख्य साक्षात्कार कर्ता की ओर मुख करके अंदर आने की अनुमति लें – “क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?”
अंदर आने की अनुमति मिलने के बाद आप संतुलित कदमों से उस कुरसी की ओर बढ़ें जहाँ अभ्यर्थी को बिठाया जाता है। इस क्रिया में आप अपना मुख साक्षात्कार मंडल की ओर रखें। मुसकराते हुए प्रमुख साक्षात्कार कर्ता और अन्य सभी को हाथ जोड़कर नमस्कार कहें। नमस्कार करते समय चेहरे पर विनय का भाव रखें। सम्मान प्रकट करने के लिए सिर तथा शरीर को हल्का-सा झुकाएँ।
आपके हाथ में फाइल या कुछ कागजात होंगे। इसलिए फाइल सहित नमस्कार करने का ढंग सीख लें।
साक्षात्कार के दौरान आप जिन प्रमाण-पत्रों, उपलब्धियों या कागज़ों-पुस्तकों को साक्षात्कार-मंडल को दिखाना चाहते हैं, उन्हें पहले से ही सुव्यवस्थित और ऊपर-ऊपर तैयार रखें। 9. जब तक कुरसी पर बैठने के लिए नहीं कहा जाए, तब तक खड़े रहें।
साक्षात्कार के दौरान स्वयं को चुस्त व तत्पर रखें।
प्रश्न को आराम व ध्यान से समझें।
पूछे गए प्रश्न का उत्तर एकदम न देकर समझकर देना चाहिए।
प्रश्न की प्रवृत्ति के अनुसार उत्तर देने में समय लगाना चाहिए।
आप किसी मुद्दे पर कितने ही विश्वासपूर्ण हों, परंतु अपनी बात पर अड़ना नहीं चाहिए।
यदि साक्षात्कार-कर्ता आपकी बात से असहमत हो तो आप अपनी बात कहते हुए उनके मत को भी सम्मान दें।
प्रश्न का उत्तर न देने पर स्पष्ट कहें – क्षमा कीजिए, मुझे इसका ज्ञान नहीं है।
सारी बातचीत में चेहरे पर घबराहट व तनाव नहीं आना चाहिए।
5. वर्णन करना
वर्णन मौखिक भाषा – व्यवहार का एक महत्त्वपूर्ण रूप है। मनुष्य विभिन्न स्थितियों, व्यक्तियों और वस्तुओं का अनुभव करता है और उनका वर्णन करता है, किंतु अनेक बार प्रशिक्षण के अभाव के कारण वर्णन अव्यवस्थित हो जाता है। कई बार महत्त्वपूर्ण बिंदुओं की उपेक्षा हो जाती है तथा सारा वर्णन प्रभावहीन हो जाता है। इसलिए छात्रों को वर्णन करने की कला का विधिवत् प्रशिक्षण दिया जाए। वर्णन की कुशलता इसी में निहित है कि वर्णनकर्ता पूर्ण आत्मविश्वास और रोचक ढंग से इस प्रकार वर्णन करें कि श्रोता का उत्साह
और रुचि बनी रहे। वर्णन करने की कला की क्षमता का विकास बाल सभा, कक्षा आदि में किसी दृश्य, मनोरंजन, प्रसंग, समारोह, घटना आदि के वर्णन द्वारा किया जा सकता है।
उदाहरण
(क) राजस्थान के किसी गाँव की यात्रा का वर्णनमुझे मालूम नहीं था कि भारत में ‘तिलोनिया’ नाम की भी कोई जगह है जहाँ हमारे देश के समसामयिक इतिहास का एक विस्मयकारी पन्ना लिखा जा रहा है। किसी बड़े शहर में रहते हुए हम केवल अखबार द्वारा ही देश-विदेश के बारे में अपनी जानकारी हासिल करते हैं और आजकल तो इस जानकारी से मन अशांत व क्षुब्ध ही होता है। उस वक्त तक तिलोनिया के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी थी कि वहाँ पर एक स्वावलंबन विकास केंद्र चल रहा है, जिसे स्थानीय ग्रामवासी, स्त्री-पुरुष मिल-जुलकर चला रहे हैं।
बस, इतना ही और मैं वहाँ अपनी किसी प्रयोजन से भी नहीं जा रहा था। मुंबई को जाने वाली जरमैली सड़क को छोड़कर हमारी जीप एक तंग राजस्थानी सड़क पर आ गई थी। मतलब साफ़, समतल सड़क को छोड़कर ऊबड़-खाबड़ सड़क पर आ गई थी पर यहाँ भी दूर-दूर तक कुछ दिखाई नहीं देता था, केवल सपाट मैदान, कंटीली झाड़ियों के झुरमुट और दोपहर का बोझिल वातावरण …… ।
(ख) किसी रमणीक स्थान की यात्रा का वर्णनपिछले वर्ष गरमियों में हमने पिता जी के साथ बद्रीनाथ व केदारनाथ की यात्रा का हठ किया। पिता जी अपने साथ ले जाने को तैयार न थे। उन्होंने हमें बताया कि इन स्थानों की यात्रा करना सहज नहीं है। विशेष रूप से केदारनाथ की यात्रा के अंतिम चरण में लगभग 16 किलोमीटर पैदल चलाना पड़ता है। इस पैदल यात्रा में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। हमने पिता जी के आदेश को अस्वीकार करते हुए उनके साथ जाने का हठ किया।
अत: पिता जी हमें अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए। दिल्ली से बस द्वारा हम लोग हरिद्वार पहुँचे। हम लोग हरिद्वार दो दिन रुके। गंगा मैया के पवित्र जल में स्नान करके मेरा तन-मन शीतल हो गया। गंगा का विराट एवं तीव्र प्रवाह देखकर मैं विस्मय विमुग्ध हो गया। संध्या के समय गंगा मैया की आरती का दृश्य देखकर मेरा मन मयूर नृत्य कर उठा। हरकी पौड़ी पर उस समय हज़ारों लोग उपस्थित थे। बहुत से भक्तजन दोनों हाथों में पुष्प तथा प्रज्ज्वलित दीप रखकर गंगा जी में प्रवाह��त कर रहे थे।
अंधकार की चादर ने धरती को ढक लिया था। आकाश के वक्ष पर असंख्य नक्षत्र जगमगा रहे थे और गंगा की तरंगों पर तैरते छोटे-छोटे दीपक एक दिव्य दृश्य उपस्थित कर रहे थे। हरिद्वार में हमने पावन धाम, भीमगोडा, सप्तऋषि आश्रम, दक्षेश्वर महादेव, मंसा देवी, चंडी देवी आदि पवित्र स्थानों के दर्शन किए। दो दिन के पश्चात् हम लोग बस द्वारा ऋषिकेश पहुँचे। हमारे मन में बद्रीनाथ तथा केदारनाथ के पवित्र स्थानों को देखने की उत्कंठा थी अतः हम ऋषिकेश में नहीं रुके तथा केदारनाथ जाने के लिए यात्रा-पत्र लेने वालों की पंक्ति में खड़े हो गए।
तभी हमें ज्ञात हुआ कि यात्रा-पत्र लेने से पहले हैजे का टीका लगवाना अनिवार्य है। मुझे टीका लगवाना अच्छा नहीं लगता, परंतु मैं विवश था। टिकट लेने के पश्चात् हम लोग अन्य यात्रियों के साथ बस में बैठ गए। कुछ देर के पश्चात् बस चल पड़ी। एक ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और दूसरी ओर तन्वंगी गंगा का प्रवाह देखते ही बनता श्रवण एवं वाचन था। पहाड़ी सड़कें निर्धन के भाग्य-सी टेढ़ी-मेढ़ी थीं। पहाड़ी व�� अत्यंत मनमोहक प्रतीत हो रहे थे। दिल्ली और यहाँ के वातावरण में ज़मीन-आसमान का अंतर था।
धूप निखरी हुई थी फिर भी यहाँ के वायुमंडल में शीतलता व्याप्त थी। लगभग 56 किलोमीटर की यात्रा के पश्चात् हम लोग कर्णप्रयाग पहुँचे। यहाँ एक छोटा-सा पहाड़ी कस्बा है। यहाँ के लोगों की वेशभूषा और प्रकृति शहर के लोगों से स्पष्टतः भिन्न है। यात्रियों ने कुछ जलपान किया और यात्रा पुनः आरंभ हो गई। रुद्रप्रयाग होते हुए हम लोग श्रीनगर पहुंचे। यहाँ बस लगभग आधा घंटा रुकी। यात्रियों ने भोजन ग्रहण किया और उसके पश्चात् सोनप्रयाग होते हुए हम लोग गौरी कुंड पहुँचे।
यहाँ से केदारनाथ जाने के लिए पैदल रास्ता आरंभ हो जाता है। गौरी कुंड में एक तप्त जल का कुंड है। इस क्षेत्र में मई-जून के महीनों में भी काफ़ी सरदी पड़ती है। यहाँ एक छोटा-सा गाँव है जहाँ गरमियों के दिनों में यात्रियों का जमघट लगा रहता है। गौरी कुंड से पहाड़ी रास्ता अत्यंत दुर्गम हो जाता है। यात्री ‘जय केदारनाथ’ कहते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं। लगभग 7 घंटे की यात्रा के पश्चात् हम केदारनाथ पहुंचे। बरफ़ से ढके पहाड़ों को देखकर हम आत्म-विस्मृत हो गए।
मंदाकिनी के तीव्र प्रवाह का स्वर पहाड़ियों में दिव्य संगीत की सृष्टि कर रहा था। केदारनाथ के निकट ही शंकराचार्य की समाधि के दर्शन भी हमने किए और अगले दिन यहाँ से हम बद्रीनाथ की ओर चल पड़े। रास्ते में ‘तुंगनाथ’ नामक स्थान पर बस रुकी। वहाँ का प्राकृतिक वातावरण अद्भुत है। बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की अत्यंत भव्य मूर्ति है। हमने बद्रीनाथ तथा पंच-शिलाओं के दर्शन किए। यहाँ मुख्य मंदिर के निकट बहती अलकनंदा का प्रवाह देखते ही बनता है। बद्रीनाथ में लगभग चार दिन रहने के बाद हरिद्वार होते हुए दिल्ली वापिस लौट आए।
6. वाद-विवाद
वाद-विवाद किसी विषय के पक्ष-विपक्ष में विचार करने का साधन है। इसका उद्देश्य किसी विवादास्पद मसले पर जनता का ध्यान आकर्षित करना होता है। इसमें भाग लेने वाले कम से कम दो छात्र होते हैं। एक पक्ष में बोलता है तथा दूसरा विपक्ष में। ये वक्ता भरी सभा में बोलते हैं तथा पूरे सदन को संबोधित करते हैं।
वाद-विवाद में सभापति एक निर्णायक मंडल होता है। दोनों वक्ताओं का उद्देश्य पूरे सदन को अपने विचारों से सहमत करना होता है। इसमें एक-दूसरे की बात काटना व अपनी बात रखना होता है।
वाद-विवाद में ध्यान रखने योग्य बातें-
हर प्रतियोगी को अपने पक्ष को तर्क व मज़बूती के साथ प्रस्तुत करना चाहिए।
पक्ष में बोलने वाला वक्ता शांत स्वर में अपने विषय को तर्क व उदाहरणों से पुष्ट करता है।
विपक्ष में बोलने वाला वक्ता आक्रामक होता है। उसके स्वर में धारा प्रवाह बोलने की क्षमता होती है।
पक्ष या विपक्ष – दोनों वक्ताओं को व्यक्तिगत टिप्पणी, कटाक्ष व अभद्र बातों से बचना चाहिए।
दोनों वक्ताओं को सबसे पहले सदन को संबोधित करके विषय बताना होता है।
प्रारंभिक पंक्तियों में ही वक्ता को स्पष्ट कर देना चाहिए कि वह पक्ष में बोल रहा है या विपक्ष में।
वाद-विवाद की अपनी सीमाएँ हैं।
प्रायः वाद-विवाद का आरंभ इस प्रकार होता हैआदरणीय अध्यक्ष महोदय, निर्णायक मंडल व उपस्थित श्रोताओं, आज की वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय है …………..
वाद-विवाद में भाषण कला के सभी गुणों का उपयोग करना चाहिए।
अभ्यास प्रश्न
विषय : क्या चाँद पर अंतरिक्ष यान भेजना भारत के लिए उचित है?पक्ष में-
यह कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी कि धरतीवासियों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान एक कौतूहल का विषय रहा है। तारों, ग्रहों, आकाशगंगाओं का अध्ययन व अंतरिक्ष यात्रा सैकड़ों वर्षों से महत्त्वपूर्ण है। चार हजार वर्ष पूर्व इतालवी दार्शनिक तथा खगोलविद् ब्रुनो ने कहा था कि ब्रह्मांड अनगिनत तारों से भरा पड़ा है, जिनके चारों ओर असीमित मात्रा में ग्रह है, जो ‘होमोसेपियंस’ के लिए खासा शोध का विषय है और रहेगा। गौरतलब है कि मौजूदा ‘हाईटेक युग’ में अंतरिक्ष को लेकर की गई खोजों एवं अभियानों पर नज़र दौड़ाए तो इनमें एक तेज़ वृद्धि नज़र आ रही है।
इस हलचल को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 21वीं शताब्दी में नक्षत्रीय दोहन के लिए बहुत बड़ी राशि का निवेश किया जाने वाला है। 12 वर्षों बाद विश्वभर के वैज्ञानिकों की निगाहें ‘चंदा मामा’ पर टिकी हैं और इन दिनों भारत भी ‘मिशन टू मून’ चंद्रयान भेजने (2008) का निर्णय लिया है, जो न सिर्फ प्रासंगिक, उचित, समयानुकूल व देशहित में है, अपितु इससे देश के चतुर्दिक विकास को भी एक अभूतपूर्व आयाम मिलेगा। इसके कई सबल पक्ष हैं-
1. इससे जहाँ अंतरिक्ष विज्ञान के कई अनसुलझे रहस्य सुलझेंगे, वहीं भारत के चाँद पर अपनी दावेदारी होने से इसकी मिट्टी में पड़े लाखों टन हीलियम-3 से विश्व सहित भारत को आने वाले दिनों में होने वाली ऊर्जा संकट से मुक्ति मिलेगी।
2. इससे अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी को उन्नति मिलेगी जो अंततः भारत की मिसाइल विकास कार्यक्रम को नई तथा उन्नत जानकारी देगी और भारत भी यू.एस.ए. की तरह ‘एयर डिफेंस सिस्टम’ बना सकेगा, जो पूर्णतः देशी तकनीक पर आधारित होगा। कहने का आशय है कि भारतीय लूनर मिशन की सफलता देश की सुरक्षा व खुफिया व्यवस्था को एक नया आयाम देगा।
3. हालांकि भारत जैसे गरीब व विकासशील देश में 3.75 अरब रुपए की महँगी यात्रा को अव्यावहारिक बताया जा रहा है, लेकिन मेरा एक सवाल है कि गरीबी व निर्धनता की आड़ लेकर नई तकनीक को तिलांजलि देना कहाँ की बुद्धिमानी है? इसरो के आँकड़ों पर यदि नजर दौड़ाएँ तो पाएंगे कि प्रक्षेपण और यान की परिक्रमा पर यह खर्च हमारे सालाना अंतरिक्षीय बजट में महज 5-7 फीसदी की बढोत्तरी है जिसकी अनदेखी अंतरिक्ष विज्ञान और अनुसंधान की दृष्टि से सक्षम राष्ट्र भारत के लिए उचित नहीं है, ध्यातव्य है कि पिछले 30 वर्षों में भारत ने 29-30 उपग्रह स्थापित किए हैं और इन पर कुल 10-12 हज़ार करोड़ रुपए खर्च आया, जो अमरीका के 3-4 विफल हो गए, अभियानों के खर्च के बराबर है, ऐसे में चाँद पर आधिपत्य को लेकर यह खर्च सहज ही वहन किया जा सकता है, ताकि बाद में कम-से-कम हम अपने देशवासियों की अपेक्षाओं पर खरे उतर सकें। हकीकत तो यह है कि हम भारतीय भय, भूख, बेरोज़गारी व गरीबी से तो लड़-भिड़ सकते हैं, लेकिन वैचारिक, मानसिक व तकनीकी पिछड़ेपन से कदापि नहीं।
4. मैं ‘मिशन टू मून’ चंद्रयान की वकालत इसलिए भी करना चाहता हूँ कि जिस तरह आज अंटार्कटिका की अकूत खनिज संपदा पर अपना-अपना अधिकार जताने को लेकर विभिन्न देशों में आपाधापी मची हुई है उसकी तरह भविष्य में यदि चाँद की संपत्ति को लेकर काननी पक्ष उभरता है, तो उस समय भारत अपना पॉजिटिव पक्ष तभी पेश कर सकेगा जब आज वह चाँद पर जाने की प्रक्रिया को अंजाम देगा, इस नजरिए से भारत का ‘मिशन टू मून’ और भी प्रासंगिक व ज़रूरी हो जाता है ताकि बाद में चाँद की चाँदी (खनिज संपदा) पर हम भी दावे पेश कर सकें।
5. विवादों में पड़कर हम एक उपलब्धि, एक अभियान, एक नई टेक्नोलॉजी को तिलांजलि नहीं दे सकते। और फिर हम अगर यह लक्ष्य पाने में देर करेंगे, तो बाजी हमारे हाथ से निकल जाएगी। ऐसी स्थिति में हमें दूसरे देशों के सामने ‘याचक मुद्रा’ में खड़ा होना पड़ेगा, जो नागवार गुजरेगा, जरा सोचिए! एक स्वाभिमानी मुल्क के वैज्ञानि�� ऐसी स्थिति को किसी सूरत में गँवारा नहीं करेंगे। इतिहास गवाह है कि हर विषय व विपरीत परिस्थिति में हमारे वैज्ञानिकों ने अपने ‘सुपर ब्रेन’ का परिचय दिया है चाहे वह अमरीका द्वारा नकारे जाने पर ‘सुपर कंप्यूटर’ का आविष्कार हो या रूस से क्रायोजनिक इंजन न मिलने पर खुद के द्वारा क्रायोजनिक तकनीक का डेवलपमेंट हो या फिर स्वयं के बूते हरित क्रांति जैसे लक्ष्य को पाना हो।
अंततः इसरो के पूर्व चेयरमैन डॉ० के० कस्तूरीरंगन की मान्यता महत्त्वपूर्ण है, “समूचा भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम वैज्ञानिक जिज्ञासा पूरी करने की अपेक्षा व्यावहारिक ज़रूरतें पूरी करने के लिए बन गया है, इसलिए भारत का ‘चाँद-मिशन’ भी उस दिशा में उठाया गया एक कदम होगा, जिसके तहत् देश को आर्थिक लाभ भले ही नहीं हो, लेकिन इससे टेकनोलॉजी संबंधी जो विशेष क्षमताएँ हासिल होंगी उनका इस्तेमाल स्वदेशी औद्योगिक क्षमता को पुख्ता करने में सहायक हो सकता है।कम-से-कम हमारे युवा वैज्ञानिकों का उत्साहवर्धन होगा तथा हमारे तकनीकी ज्ञान में वृद्धि होगी।
खैर! जो भी इसे लेकर ऊहापोह बने इतना तो तय है कि ‘मिशन टू मून-2008’ वर्तमान समय का तकाजा है क्योंकि इससे न सिर्फ तेज़ी से बदलती दुनिया के अंतरिक्ष में भारत का सिक्का जमेगा, अपितु नक्षत्रीय अभियानों के चुनिंदा क्लब का सदस्य बनकर भविष्य में होने वाली गतिविधियों पर भारतीय दावेदारी को महत्त्वपूर्ण व सशक्त स्थान मिलेगा।
विपक्ष में –
वर्तमान समय में भारत के चंद्रयान-I अभियान की चर्चा चारों ओर है और साथ ही यह विवाद भी उठ खड़ा हुआ है कि भारत द्वारा सन् 2008 में पहला चंद्रयान भेजा जाना उचित है या नहीं? मेरी दृष्टि में भारत द्वारा चंद्रमा पर यान भेजने का निर्णय अनुचित ही नहीं, निरर्थक भी है जिसके कारण निम्नांकित हैं
1. सर्वविदित है कि 21 जुलाई, 1969 को ही चंद्रमा पर अमरीकी यान अपोलो-I नील.ए. आर्मस्ट्रांग को लेकर पहुंच चुका था और उसके बाद कई यान और कई वैज्ञानिक चंद्रमा पर जा चुके हैं और कई महत्त्वपूर्ण खोजें हो चुकी हैं, चाँद के संबंध में बहुत कुछ जाना जा चुका है, फिर चंद्रमा पर 2008 में भारत द्वारा यान भेजने जाने का औचित्य क्या है?
2. भारत के इस चंद्रयान-I अभियान पर चार अरब रुपए के व्यय का अनुमान है, यदि इतने पैसे खर्च करके भारत कोई उन्नत सेटेलाइट छोड़े तो उसे संचार, सूचना आदि के क्षेत्रों में ज्यादा लाभ होगा, यदि इतने पैसे बेरोज़गारी, निरक्षरता आदि के उन्मूलन पर खर्च किए जाएँ तो ठोस परिणाम संभव है।
3. अब तक जिन राष्ट्रों ने अपने यान चंद्र-तल पर भेजे हैं, उनकी उच्च तकनीक का लोहा सारा विश्व मानता है, उन राष्ट्रों की तकनीक के आगे भारतीय तकनीक अभी शैशवास्था में है, अत: हमारे भारतीय वैज्ञानिक अब तक हुई खोजों से अलग चंद्रमा पर कुछ खोज कर लेंगे यह बाद गले नहीं उतरती।
4. भारत द्वारा छोड़े गए एक सेटेलाइट में पुर्जे 60-70% विदेशी होते हैं, इस चंद्रयान में भी अधिकांश पुर्जे विदेशी ही लगे होंगे। स्पष्टतः इस अभियान से भारतीय तकनीक को कोई लाभ पहुँचने वाला नहीं है।
5. इस चंद्रयान अभियान के बाद जैसा कि कहा जा रहा है कि भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। सारे विश्व को यह पता है कि भारत के इस स्वदेशी (?) यान के सारे पुर्जे विदेशी हैं, “कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा” वाली कहावत ही चरितार्थ होती है इस भारतीय अभियान के संदर्भ में।
6. भारत की इस अलाभकारी योजना के पीछे न सिर्फ पैसे बर्बाद होंगे, बल्कि मानव ऊर्जा जो किसी अन्य तरफ लगाए जाने पर कुछ नई खोज कर सकती है, वह भी बर्बाद होगी।
7. भारत जैसे गरीब राष्ट्र में जहाँ एक ओर लोगों की न्यूनतम बुनियादी मानवीय आवश्यकताएँ यथा भोजन, वस्त्र, आवास तक उपलब्ध नहीं है, वहीं दूसरी ओर इतने रुपए चंद्रयान-I जैसी अलाभकारी योजनाओं पर खर्च किए जाएँ, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
अंततः इतना ही कहा जा सकता है कि चर्चित चंद्रयान-I अभियान अनावश्यक एवं अनुचित है और हमारे नीति निर्धारकों को इस प्रकार के अनावश्यक कार्यों से परहेज करना चाहिए।
7.  उद्घोषणा/कार्यक्रम प्रस्तुति
उद्घोषणा करना भी एक विशेष कला है। एक कुशल मंच संचालक सभी कार्यक्रमों में जान फूंक सकता है। उद्घोषणा वह कला है, जिसके आधार पर दर्शकों व श्रोताओं की रुचि व जिज्ञासा को बनाए रखा जा सकता है। उद्घोषक के पास हाज़िरजवाबी, प्रेरक प्रसंगों का भंडार तथा हास्य प्रसंगों का भंडार होना चाहिए।उद्घोषणा करते वक्त निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
उद्घोषक को सुखद और शालीन वेशभूषा में मंच पर आना चाहिए।
उसके हाथों में फाइल और पेन होना चाहिए।
उसके पास प्रस्तुत होने वाले सभी कार्यक्रमों की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
उद्घोषक को यह भी जान लेना चाहिए कि प्रस्तुत होने वाले कार्यक्रम का मुख्य भाव या विषय क्या है? उद्घोषक को कार्यक्रम पेश होने से पहले वैसी ही भूमिका देनी चाहिए।
कार्यक्रम की सफल प्रस्तुति के बाद मंच से उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। वह प्रशंसा ऐसी हो कि श्रोताओं के मन में जो भाव चल रहे हों, लगभग उसी को कहना चाहिए।
उद्घोषक ही श्रोताओं से तालियाँ बजवाता है तथा कलाकारों व श्रोताओं का मनोबल ऊँचा रखता है। उसे कार्यक्रम की प्रशंसा से ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जिससे हॉल तालियों से गूंज उठे।
यदि उद्घोषक को मशहूर कवियों या विचारकों की छोटी-छोटी काव्य पंक्तियाँ, सूक्तियाँ या शेर आदि याद हों और वह उचित अवसर पर उन्हें कुशलता से सुना दे तो कार्यक्रम का रंग ही कुछ और हो जाता है।
उद्घोषक का मुख्य काम होता है-प्रस्तुत होने वाले कार्यक्रमों का परिचय देना और उनका आनंद लेने के लिए श्रोताओं को तैयार करना। इसके लिए उसे अलग से समय नहीं लेना चाहिए।
उद्घोषक को कम-से-कम बोलना चाहिए। दो कार्यक्रमों के बीच में आधे मिनट से दो मिनट का जो खाली समय होता है, उसे बस उसी का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
उद्घोषक की आवाज़ सुरीली होनी चाहिए।
उद्घोषक तथा समाचार वाचक में अंतर स्पष्ट होना चाहिए।
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