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#मेरा सफर गीत
lyricss1 · 2 years
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hindistoryok01 · 10 months
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दोनों Dono Title Song Lyrics in Hindi - Armaan Malik
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Dono Title Song Lyrics in Hindi, Dono Title Song lyrics Armaan Malik, Dono Title Song lyrics in hindi Armaan Malik,   अरमान मलिक का दोनों गीत मूवी दोनों का बिल्कुल नया टाइटल ट्रैक है और इस नवीनतम गीत में राजवीर देओल, पालोमा हैं। दोनों टाइटल गाने के बोल इरशाद कामिल ने लिखे हैं जबकि संगीत शंकर एहसान लॉय ने दिया है और वीडियो का निर्देशन अवनीश एस बड़जात्या ने किया है।
· गाने का टाइटल — दोनों टाइटल ट्रैक
· गायक — अरमान मलिक
· गीतकार — इरशाद कामिल
· संगीत — शंकर एहसान लॉय
· कलाकार — राजवीर देयोल, पलोमा
· लेबल — ज़ी म्यूजिक कंपनी
· फ़िल्म — दोनों (2023)
दोनों गीत
है कोई ख़्वाब या ख़ुशी
जो साथ है अब मेरे
बोलुन ये कैसे
तेरा ही था तेरा ही है
जो पास है सब मेरे
बोलुन ये कैसे
बातें होठों पे ठहर सी गई
बातें राहों में बिखर सी गई
तू दिल की बात जान ले
ये बोलदे तुम मेरे
बोलुन ये कैसे
तेरा ही था तेरा ही है
जो पास है सब मेरे
बोलुन ये कैसे
मेरी खामोशी को जान ले
काम तेरे बिन मेरा ना चले
हो हो..
तुम और मैं डोनो डोनो
और सफर
तुम और मैं डोनो डोनो
राहें तन्हा तन्हा सी
दिल ये बहका बहका सा
लेके आई है सुबह
जैसा इश्किया हवा
मैंने ऐसे ही जीना है
मतलब के तुम हो मेरी
हो हो बोलूं ये कैसे
अब और क्या है मांगना
तू है मेरी तो हर दुआ तू है
अब क्या मैंने चाहा तू है
मेरी हर दुआ तू है
तुमसे मिलता जुलता हूं
धीरे-धीरे खुलता हूं
मैं हूं चाहतों का दिन
तुमसे मिलके ढलता हूं
मैंने ऐसे ही जीना है
मतलब के तुम हो मेरे
हो हो..
तुम और मैं डोनो डोनो
और सफर
तुम और मैं डोनो डोनो
राहें तन्हा तन्हा सी
दिल ये बहका बहका सा
लेके आई है सुबह
जैसा इश्किया हवा
मैंने ऐसे ही जीना है
मतलब के तुम हो मेरी
है कोई ख़्वाब या ख़ुशी
जो साथ है अब मेरे
बोलुन ये कैसे
तेरा ही था तेरा ही है
जो पास है सब मेरे
बोलुन ये कैसे
लेखक: इरशाद कामिल
Source link:- https://hindistoryok.com/dono-title-song-lyrics-in-hindi-armaan-malik/
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treasureoftrashhh · 4 years
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'सुख है एक छाँव ढलती आती है, जाती है, दुःख तो अपना साथी है, राही मनवा दुख की चिंता क्यूँ सताती है, दुख तो अपना साथी है।'
मेरे जीवन की हर कठिनाई में मैंने इन पंक्तियों को ही अपना साथी माना है। दिसंबर का सर्द महीना, बस का सफर, ठंडी हवाएं। उस खिड़की पर बैठे बैठे ही मैंने अपने भीतर ख़्यालों के कई युद्घ छेड़ लिये थे। कुछ समय बाद उनसे फोन पर ही बातें करने लग गया। बगल मै मेरे मित्र वाजपाई जी भी बैथे थे। उनका कहना था की ' मैगी मत खाए करो आतंन मै चिपक जात है', यह सुनकर मन बड़ा ही प्रसन्न हुआ की आज के दौर मै भी बसों मै सफर सुहाना हो सकता है। इस सब सच्चाई से परे मेरा मन अटका था मेरे अकेलेपन मे। हम कितना भी ज़ोर लगा ले जो किस्मत में नही लिखा उसे नही पा सकेंगे। जैसे जैसे सफर आगे बढ़ा हवाएं और तेज हो गईं, मेरा मन अभी भी वही पर था कि क्यूं है दुनिया ऐसी? क्यूं नही लोग समझते की जो हमारी और उनकी पीड़ा भिन्न नहीं। हम बिना किसी और की आस किये एक दूसरे का सहारा बन सकते है। उनसे बात खत्म हुई। दुख अभी भी उतना हि था की यह गीत शुरु हुआ। मै इस गीत में मगन था इतना कि मेरी सारी चिन्ताएं इसमे कहीं खो सी गईं। जिस सरलता से मनुष्य की जीवन को इस गीत मै दर्शर्या गया है वह सरहनीय है। यही तो है जीवन मै। सुख साथ छोड़ देता है किन्तु दुख मनुष्य से प्राणों की भांती सदेव साथ रेहता है और हम।सुख की और भागते है। मेरे जीवन में इस गीत का महत्व अमुल्य है। हर बार जब शक्ती कम पडी जब दुनिया ने नकारा, जब अपनो ने दुख दिया तब इन्ही पँक्तियाँ ने मुझे फिरसे उठने का साहस दिया।
'यह मेरी पहले उपन्यास का एक अंश है।'
दूर है मंज़िल, दूर सही, प्यार हमारा क्या कम है
पग में काँटे लाख सही, पर ये सहारा क्या कम है।
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abhay121996-blog · 3 years
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लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में करे सहयोग : आनंदबेन पटेल Divya Sandesh
#Divyasandesh
लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में करे सहयोग : आनंदबेन पटेल
भोपाल। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा है कि जीवन में निरंतर नया सोचने और उसे कर दिखाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कि सरकार में जो कार्य करते है, वह जनसेवा के लिए होता है। प्रत्येक अधिकारी कर्मचारी का दायित्त्व है कि वह जनहित के कार्य करें। आनंदीबेन पटेल बुधवार को राजभवन के सांदीपनि सभागार में राजभवन के अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा आयोजित विदाई समारोह को संबोधित कर रही थीं। कार्यक्रम में अपर मुख्य सचिव सामान्य प्रशासन विनोद कुमार राज्यपाल के प्रमुख सचिव डीपी आहूजा, अपर सचिव मनोज खत्री, विधि अधिकारी श्री डी.पी.एस. गौर भी मौजूद थे। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि हम सबका दायित्त्व है कि लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में सहयोग करें। इसी भावना से राजभवन कर्मचारियों के करीब 100 वर्ष पुराने आवासों के स्थान पर नये आवास का निर्माण का कार्य किया है। उन्होंने इस कार्य में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सहयोग का स्मरण करते हुए, उनके प्रति आभार ज्ञापित किया।
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उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि विदाई जैसा कुछ नहीं होता है। एक जाता है, तो दूसरा आता। यह बदलाव की निरंतरता है। वर्तमान में अच्छे कार्य हो रहे हैं। उन्हें निरंतरता प्रदान करते हुए बदलाव के अनुसार नये कार्य शुरु किये जाना चाहिए। यह प्रगति की प्रक्रिया है। उन्होंने कोविड के पूर्व बच्चों को गीत, संगीत नृत्य, चित्रकला और नाट्य कला के प्रशिक्षण कार्यक्रमों और युवाओं के मार्गदर्शन और कैरियर उन्नयन संबंधी गतिविधियों में सहयोग के कार्यक्रमों को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए पुन: प्रारम्भ करने की आवश्यकता बताई।
आनंदीबेन पटेल ने कहा कि अपनी आवश्यकता से अधिक को दूसरो में बांटने का भाव संतोष प्रदान करता है। संतोष से आनंद की अनुभूति होती है। उन्होंने कहा कि समाज में ऐसे सकारात्मक विचारों के प्रसार में सबको योगदान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कार्य में विलंब किसी के प्रति अन्याय का प्रतीक होता है। समस्याओं के समाधान के त्वरित प्रयास ही व्यवस्था में सुधार करते है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उन्होंने गुजरात में करीब 20 वर्ष कार्य किया। कार्य में क्षण भर का भी विलंब नहीं कर सकते थे। इसी कार्य-शैली से उन्होंने तीन राज्यों में राज्यपाल के रुप में कार्य किया है। राज्यपाल के रुप में उन्हें दिये गए स्नेह, सम्मान और सहयोग के लिए सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। सभी कर्मचारियों को उपहार भेंट किए। विदाई समारोह में राजभवन के अधिकारी-कर्मचारियों ने राज्यपाल के स्नेह, संरक्षण और सहृदयता के प्रसंगों का स्मरण कर राजभवन और उसके कर्मचारियों को दी गई सौगातों के प्रति आभार ज्ञापित करते हुए, उन्हें मानवता के मसीहा के रूप में रूपांकित किया। उन्हें ऐसी शख्सियत बताया, जिसके वर्णन में जितने भी विश्लेषण जोड़े जाएं, वे भी कम हैं। कार्यक्रम में राज्यपाल के विशेष सहायक राजेश बरसैया गुप्ता, सहायक प्रोग्रामर मनीषा श्रीवास्तव राजभवन के कर्मचारी शानु खान, उषा विश्वकर्मा और रेणु राजभर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए आनंदीबेन पटेल की प्रशासनिक दक्षता, सहदृयता, मातृत्वभाव के संस्मरणों का उल्लेख किया।  
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rangmanchbharat · 3 years
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शायरी गज़ल गीत कविता मुक्तक छंद ऑडियो विडीओ रचनाएं ... यह कोई नगमा नहीं है, स्वागत है आपका आपके चिर-प्रतिक्शित हिंदी ब्लॉग वेबसाइट पर !!
http://rangmanchbharat.in/ पर ०१ मई २०२१ को प्रातः १० बजे इस ब्लॉग वेबसाइट का उद्घाटन किया जाएगा । आप सब सादर आमंत्रित हैं पाठक वर्ग के तौर पर भी और लेखक वर्ग के तौर पर भी ।
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चलिए एक नया सफर शुरू करते हैं !!
और आप रॉयल्टी के लिए भी अप्लाई कर सकते हैं । संपर्क करें [email protected] । आपके सारे सवालो का जवाब दिया जाएगा ।
चलते चलते ...
एक चेहरा जो मेरे ख्वाब सजा देता है,
मुझ को मेरे ही ख्यालों में सदा देता है।
वो मेरा कौन है मालूम नहीं है लेकिन,
जब भी मिलता है तो पहलू में जगा देता है।
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pinkbonkweaselkid · 4 years
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प्रसून जोशी बोले- मैं निर्जीव वस्तुओं में भी जीवन देख सकता हूं, स्वामी विवेकानंद पर बनी डॉक्यूमेंट्री देखकर हैरान रह गया था
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प्रसिद्ध गीतकार, लेखक, एड गुरु और कवि प्रसून जोशी बुधवार को 49 साल के हो गए। उनका जन्म 16 सितंबर 1971 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुआ था। उन्हें लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए साल 2015 में पद्मश्री से नवाजा गया था। इस मौके पर उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत करते हुए अपने जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों को साझा किया।
प्रसून ने बताया, 'मेरे परिवार में सभी साहित्य को महत्व देते हैं। इसलिए बचपन से ही मेरा झुकाव साहित्य की ओर था। मुझे तो यह लगता है कि मेरे जीवन में स्पिरिचुअलिटी और प्रकृति का गहरा प्रभाव पड़ा है। प्रकृति आपको संघर्ष करना सिखाती है, आपको छल करना नहीं सिखाती। मैं एक माध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूं।'
'पहाड़ों का जीवन बिल्कुल भी सरल नहीं होता। उत्तराखंड में लोग अक्सर आध्यात्मिकता की खोज में आते हैं। बस प्रकृति को देखकर अभिभूत होना और उससे बहुत कुछ सीखना, बचपन में मैंने यही किया और यही मेरी शब्दावली में भी झलकता है। आज भी कभी जब मैं मुंबई की आपाधापी से परेशान हो जाता हूं तो मैं सीधे उत्तराखंड की तरफ भागता हूं। पहाड़ों का रुख करता हूं। कोरोना काल में भी मैं ऋषिकेश ड्राइव करके गया था और गंगा के किनारे कुछ समय बिताया था।'
मां से ली साहित्य जगत की प्रेरणा
उन्होंने कहा, 'दरअसल मेरी मां और मेरी नानी ने मुझे मेरी जिंदगी में बहुत प्रोत्साहित किया है। मैं मेरी नानीजी के बहुत करीब रहा हूं। उन्होंने 19 साल की उम्र में पढ़ने-लिखने की शुरुआत की और स्कूल की प्रिंसिपल बनकर रिटायर हुईं। उन्होंने मुझे लोक संस्कृति के बारे में बहुत सिखाया।'
'साहित्य जगत की बात की जाए तो मेरी मां ने मुझे सुमित्रानंदन पंत की कविताएं सुनाकर बड़ा किया। जिसके चलते साहित्य की ओर मेरा झुकाव शुरू से ही रहा। मैं मानता हूं कि बचपन में जो आप 16 या 17 साल की उम्र तक करते हैं, वो कहीं ना कहीं आपकी नींव होती है और मेरी नींव में साहित्य रच बस गया था।'
जब खुद सरकंडे की लकड़ी तोड़कर पेन बनाया करते थे
'यूं तो मैं फोन पर भी अपनी रचनाएं लिख लेता हूं लेकिन असली फीलिंग पेन और पेपर के साथ ही आती है। मुझे याद है उस वक्त जब मैं उत्तराखंड में था तब हम सरकंडे की लकड़ी तोड़कर उसे छीलकर, उसे तिकोना आकार देकर पेन बनाया करते थे और जब उस पेन को स्याही में डुबोकर मैं लिखता था तब उस पेन से आ रही आवाज का अपना ही एक आनंद था।'
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परिवार के साथ प्रसून जोशी।
मृत्यु पर लिखी थी पहली कविता
'यह वो समय था जब मैं 15 साल का था। मैं स्कूल में पढ़ा करता था और उस वक्त मैंने मृत्यु पर कविता लिखी थी, जिसे सुनकर मुझे बहुत प्रशंसा मिली लेकिन एक और चीज भी कही गई कि शायद मैं अपनी उम्र से बहुत जल्दी बड़ा हो गया हूं और गंभीर बातें करता हूं।
'जब शुरू-शुरू में लिखता था तो उसमें अध्यात्म का बहुत प्रभाव था। अपनी पहली कविता में मैंने मृत्यु की खूबसूरती का वर्णन किया था कि कैसे किसी खूबसूरत चीज को हम बिना पलक झपकाए देखते हैं और जब आप मृत्यु को देख लेते हैं तो आपकी पलक कभी नहीं झपकती तो क्या मृत्यु इतनी खूबसूरत है? मेरी पहली किताब 17 साल की उम्र में पब्लिश हो गई थी।'
पुस्तकों से एड एजेंसी तक का सफर
'उस वक्त मेरी एक या दो किताबें छप चुकी थीं लेकिन परिवार चलाने के लिए मुझे कहीं ना कहीं नौकरी तो करनी ही थी क्योंकि कविताओं से तो सबका पेट नहीं भर सकता। इसलिए अपने पैरों पर खड़ा होना बहुत जरूरी था। इसीलिए मैंने एमबीए किया। उसके बाद मैं दिल्ली में ही एक ऐड एजेंसी में काम करने लगा। मेरे काम को वहां बहुत सराहा गया।'
'मुझे इंटरनेशनल अवॉर्ड मिले यहां तक कि कांस फिल्म फेस्टिवल में भी ��सी वजह से मुझे प्रशंसा मिली और धीरे-धीरे मेरी कविताएं देखकर लोग मेरे पास आने लगे। मैं उन लोगों की एल्बम के गाने लिखा करता था। उसी समय मैंने मोहित चौहान के बैंड 'सिल्क रूट' के लिए भी गाने लिखे। उसके बाद शुभा मुद्गल जी ने मुझसे संपर्क किया 'अब के सावन ऐसे बरसे' गाने के लिए, तो गैर फिल्मी काम अच्छा चल रहा था।'
फिल्मों के गाने सुनने की मनाही थी
'मुझे बचपन से ही घर में फिल्मी गाने सुनने की परमिशन नहीं थी। रेडियो पर भी अगर कोई फिल्मी गाना सुनता था तो पिताजी कहते थे यह क्या सुन रहे हो। मेरे पिताजी ने भी संगीत में मास्टर्स किया है। वे कहते थे कि कुमार गन्धर्व को सुनो।' 'मेरी लेखन और मेरी शब्दावली शायद इसीलिए इतनी अच्छी है क्योंकि फिल्मों के गानों से मेरा वास्ता नहीं पड़ा, इसीलिए शायद मेरे लेखन में शुद्धता झलकती हो। साथ ही फिल्म जगत के भी जो मेरे दोस्त हैं वे जानते हैं कि जब कभी भी मैं किसी कविता या किसी गीत के बोल सुनाता हूं तो मैं हमेशा गाकर ही सुनाता हूं।'
विवेकानंद की डॉक्यूमेंट्री देखकर दंग रह गया था
'मैं एक दफा हवाई जहाज में सफर कर रहा था और उस समय मैं स्वामी विवेकानंद पर बनी डॉक्यूमेंट्री देख रहा था। जिसमें एक अंश आया जहां वे उसी उत्तराखंड के कसार देवी मंदिर की बात कर रहे थे और उसके सामने वाली चट्टान पर बैठकर उन्हें जो अनुभूति हुई वो बयां कर रहे थे। मैं यह देखकर दंग रह गया क्योंकि मैं भी उसी चट्टान पर अक्सर चार-पांच घंटे बैठा करता था उस घाटी को निहारता था और उस समय जो अनुभूति मुझे हुई, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।'
बेजान वस्तुओं में भी जान दिखती है मुझे
'मुझे लगता है कि दुनिया की सारी वस्तुओं में जान है चाहे वो निर्जीव हो या फिर जीवित। जैसे एक दीपक है, हम कहते हैं कि दीपक बुझ जाता है, जबकि मुझे लगता है कि दीपक सो गया शायद उसकी लौ थक गई और अब वो सो गया। उसी प्रकार जब संजय लीला भंसाली ने फिल्म 'ब्लैक' के लिए मुझे गाना लिखने को कहा, तो मेरे लिए वो एक टफ टास्क था। इसीलिए क्योंकि उस फिल्म में जो किरदार है ना वह सुन सकता है, ना वो बोल सकता है और ना वो देख सकता है इसीलिए मैंने गाना लिखा हां मैंने छू कर देखा है।'
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बेटी के साथ प्रसून जोशी।
फिल्म 'लज्जा' से मिला पहला बड़ा ब्रेक
'उस वक्त मैं दिल्ली में था जब राजकुमार संतोषी जी ने मुझे फिल्म 'लज्जा' के लिए गाना लिखने को कहा। मेरे लिए बहुत बड़ी बात है क्योंकि मैं दो दिग्गजों के साथ काम कर रहा था। जहां उस फिल्म के गाने को आईडी अय्यर ने कंपोज किया था। वही उस गाने को गाने वाली थी भारत कोकिला लता मंगेशकर जी।'
अपर्णा के लिए भी लिखी है कई सारी कविताएं
अपनी पत्नी अपर्णा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, 'अपर्णा से मेरी मुलाकात तब हुई जब हम दोनों ऐड एजेंसी के लिए काम करते थे। धीरे-धीरे हमें पता चला कि हमारे विचार काफी मिलते हैं और फिर हमने शादी कर ली। आज हमारी 15 साल की एक बेटी है और मैंने कुछ कविताएं अपर्णा के लिए भी लिखी हैं जो उनके पास सुरक्षित हैं।
सीबीएफसी में चेयरमैन की पदवी स्वीकारी
'ये वो समय था जब सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन में बहुत कुछ चल रहा था। उस समय मुझे उसका चेयरमैन बनने के लिए बुलाया गया तो मुझे लगा कि वहां मेरी आवश्यकता है और मैं उस पदवी पर संतुलन बना पाऊंगा। इसलिए मैंने 2017 में सीबीएफसी का चेयरमैन बनना स्वीकार किया।'
मेरी पत्नी ने दिया था सबसे बेहतरीन बर्थडे गिफ्ट
'मेरे जन्मदिन पर मुझे किशोरी अमोनकर जी का फोन आया। वे मेरी सबसे प्रिय क्लासिकल म्यूजिशियन रही हैं। मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं। उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने मेरी कुछ रचनाएं पढ़ी हैं। उनकी आवाज सुनते ही मैं बहुत भावुक हो गया। कुछ साल पहले मेरी वाइफ ने इस फोन कॉल को अरेंज किया था।'
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Prasoon Joshi says- I can see life even in inanimate objects, I was shocked to see the documentary on Swami Vivekananda
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shaileshg · 4 years
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सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से ही उनके दोस्‍त संदीप सिंह सवालों के घेरे में हैं। उन पर अभिनेता की मौत के बाद पुलिस को थम्स अप दिखाने और एंबुलेंस के ड्राइवर से कई बार बात करने समेत विदेश भागने की तैयारी करने तक के आरोप लगे। भास्कर से हुई बातचीत में उन्होंने आरोपों पर अपना पक्ष रखा...
सुशांत से कब से संपर्क में नहीं रह पा रहे थे आप?
मैं और सुशांत 2011 से एक-दूसरे को जानते हैं। 2018 तक हम लोग रेगुलर टच में भी रहे। वो सब मैंने इंस्‍टाग्राम पर डाला है। मगर अब मेरी इज्‍जत पर बात आ रही थी तो मुझे सर्टिफिकेट दिखाना पड़ा। चैट सार्वजनिक किए। कोई भी उनको जानने वाला 14 जून को तो नहीं आया। गलती थी कि उस दिन अकेली मीतू दीदी और सुशांत के परिवार वालों की मदद की। हम लोग बिहारी हैं साहब। अनजान की अर्थी को भी कांधा दे देते हैं।
बहरहाल, 2019 में मैं पीएम मोदी फिल्‍म बना रहा था। सुशांत 'दिल बेचारा' और 'छिछोरे' में व्‍यस्‍त रहे। लिहाजा हम संपर्क में नहीं रह सके थे। यह लाजिमी है। काम के चलते तो हम अपने स्‍कूल और कॉलेज फ्रेंड्स के साथ भी टच में नहीं रह पाते हैं। इंसानियत का कोई वजूद नहीं है। मुझे लगा कि जैसे मैं उनके पास जा रहा हूं, वैसे ही इंडस्‍ट्री भी खड़ी होगी।
आप लोग रेगुलर टच में नहीं थे तो उनके निधन की जानकारी कैसे मिली?
मेरे पड़ोसी हैं संजीत कुमार। मैं उस दिन अपनी बिल्डिंग में संजय निरूपम जी को पिक करके आ रहा था। हम तीनों लंच पर मिल रहे थे। उस दौरान मैंने अपने दोस्‍त को क्रॉस चेक करने को कहा कि क्‍या वाकई सुशांत नहीं रहे। टीवी पर न्‍यूज आने ��े बाद महेश शेट्टी को कॉल किया और सुशांत के घर निकल पड़े।
वहां पहुंचने पर पता चला या सिद्धार्थ पिठानी से बात हो सकी कि बॉडी को उतारा किसने था?
मैं तो किसी को जानता नहीं था, जो पूछूं। साथ ही वहां पुलिस अधिकारी इतने थे कि हम किसी से क्‍या बातचीत करते। हम कायर तो हैं नहीं कि वो देख वहां से भाग जाते। मीतू दीदी को अकेला छोड़ देते। पिछले 50 दिनों में मेरे रिलेटिव, दोस्‍त लगातार फोन कर बता रहे हैं कि मैं सबसे बड़ा बेवकूफ हूं, जो इस सिचुएशन में वहां रहा। इंडस्‍ट्री के बाकी लोग तो अपनी इमेज बचाने के चक्‍कर में वहां पहुंचे तक नहीं। तूने आ बैल मुझे मार वाली सिचुएशन पैदा कर ली।
कूपर हॉस्पिटल में एक चश्‍मदीद ने कहा कि सुशांत की टांगें टूटी हुईं थीं। गले पर सुइयां चुभोने के निशान थे?
उस इंसान को सबसे पहले पुलिस और सीबीआई को जाकर ये सारी बातें बोलनी चाहिए। मीडिया में पब्लिसिटी गेन नहीं करनी चाहिए। उसे महाराष्‍ट्र सरकार से लेकर सबको एक लेटर लिखना चाहिए इन सब चीजों के बारे में। बताए कि उसके पास सारी समस्‍याओं का हल है। ऐसा कुछ नहीं है।
आपने भी तो पूरी बॉडी देखी ही होगी?
मैंने सिर्फ चेहरा देखा था। वो भी अंतिम संस्‍कार के वक्‍त, जब चेहरे से कपड़ा हटाया जाता है। जब अंतिम समय में लकड़ी रखी जाती है और माला चढ़ाई जाती है।
मुंबई पुलिस, सीबीआई ने आप से क्‍या पूछा?
जो सवालात आप पूछ रहे हैं, वही थे। उन्‍होंने मीतू दीदी को भी बुलाया। जो लोग उस वक्‍त पर मौजूद थे, सबको बुला रहे हैं। जांच एजेंसियों ने सिर्फ मुझसे ये पूछा कि मैं उन्‍हें 15 और 16 जून का सीक्‍वेंस बता दूं। क्‍या-क्‍या हुआ?
दोनों के सवाल कॉमन थे या कुछ अलग भी रहे?
मुंबई पुलिस के अपने सवाल थे। सीबीआई के अपने सवाल हैं। सब एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। उन सवालों को पब्लिक तो नहीं कर सकते।
आप सुशांत के दोस्त हैं तो सच बताइये कि क्या वो वाकई डिप्रेशन में था या नशे की लत थी?
सात सालों के सफर में कभी ड्रग्‍स नहीं लिया। कभी डिप्रेशन में नहीं रहे। हमेशा मौज-मस्‍ती करते रहे। सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का था। कभी मेरे सामने डिप्रेशन में नहीं दिखा।
सुशांत की बहनों के भी आप करीबी रहे हैं, क्या आपको लगता है कि बहनों ने सुशांत की केयर नहीं की और इसी कारण रिया का दखल बढ़ गया?
मैं यह नहीं जानता, क्‍योंकि सुशांत के परिवार से मैं कभी मिला नहीं। परिवार ने भी कहा ही है कि वो मुझे नहीं जानते थे उससे पहले। यह सच है। परिवार से भी उस मोड़ पर मिलना हुआ, जब अंतिम संस्‍कार हो रहा था। वो शादी या जन्‍मदिन का फंक्‍शन तो था नहीं, जो एक-दूसरों को प्रॉपरली इंट्रोड्यूस करते। आशीर्वाद भी नहीं। बातचीत भी नहीं। सब घर चले गए।
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सुशांत की मौत वाले दिन उनकी बड़ी बहन मीतू के साथ संदीप सिंह।
जांच एजेंसियों की जांच में कभी सवाल उठे कि आखिर बॉडी किसने उतारी? उसके ऐसा करने से बॉडी पर से निशान मिटे होंगे?
यह तो वो इंसान ही जाने, जिसने बॉडी उतारी हो। मगर मुंबई पुलिस, बिहार पुलिस, एनसीबी, ईडी, सीबीआई जांच कर रहे हैं। पब्लिक और मीडिया को जरा इंतजार करना चाहिए। देश की न्‍याय व्‍यवस्था पर भरोसा करना चाहिए। जांच जोर-शोर से चालू है। हकीकत सामने आ जाएगी।
क्या दिशा और सुशांत की मौत में कोई कनेक्शन हो सकता है?
ये बात मैं कैसे कह सकता हूं? यही सवाल तो देश के सवाल हैं। यह सवाल उस इंसान से पूछा जा रहा है, जो फैमिली के साथ सपोर्ट में खड़ा था। अंतिम संस्‍कार में, डेथ सर्टिफिकेट निकालने में। यही तो जांच चल रही है तीन महीनों से कि कोई कनेक्‍शन था या नहीं।
आप कह रहे हैं कि एम्बुलेंस के ड्राइवर का पेमेंट आपने किया था? लेकिन एंबुलेंस के मालिक ने कहा था कि पेमेंट सैमुअल मिरांडा ने किया था?
उस दिन मालिक नहीं, ड्राइवर अक्षय आया था। उसने एबीपी पर साफ-साफ बोला कि उसने संदीप सिंह को चार बार फोन इसलिए किया कि उसका आठ हजार का बिल था। फिर मैंने वो नंबर दीपक साहू को दिया। दीपक साहू ने 22 तारीख को कैश पेमेंट कर दिया। इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया किसी और का इंटरव्‍यू करती रही। नेगेटिव इंटरव्‍यू से टीआरपी ज्‍यादा मिलती है।
सुरजीत सिंह राठौड़ का कहना है कि आपने उन्हें कूपर हॉस्पिटल से बाहर निकलवाया था? उसने आपको मास्टरमाइंड भी कहा?
वो कभी खुद का करणी सेना का मेंबर कहते हैं। कभी एनसीपी का बताते हैं। अब सुनने में आ रहा है कि बतौर प्रोड्यूसर उन्‍होंने सुशांत पर फिल्‍म अनाउंस कर दी है। पहले वो अपनी सफाई दें। कूपर हॉस्पिटल में पुलिस ने मुझसे पूछा था कि यह इंसान कौन है? क्‍या मैं जानता हूं? उस पर मैंने ना में जवाब दिया। तब उनसे साइड होने को कहा गया। उसे वो अपने तरीके से बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। वो सुशांत पर फिल्‍म कैसे बना रहे हैं, वो तो उन्‍हें पता होगा ही।
अब जो हालात हैं, आप का दिल क्‍या कहता है, यह मर्डर है या सुसाइड?
यह सवाल मुझसे क्‍यों पूछा जा रहा है, जो मैं खुद जानना चाहता हूं। पूरी जनता और परिवार जानना चाहता है। अब यह सच्‍चाई छिपने वाली नहीं है। जो लोग मेरी दोस्‍ती और इंसानियत को गाली दे रहे हैं, बिना किसी सबूत के, उन्‍हें पछतावा होगा।
रिया की क्या गलती रही? जैसा कि रिया ने कहा कि प्यार ही गुनाह हो गया, आप क्या मानते हैं?
मुझे यह तो नहीं मालूम। मैं अपनी ही इज्‍जत बचा लूं, वही काफी है। उंगली तो संजय लीला भंसाली, सलमान खान, करण जौहर और सूरज पंचोली तक पर उठ रही है।
सुशांत की मौत वाले दिन बहन के साथ आप थे, उस दिन के बारे में कुछ बताएं?
डेथ सर्टिफिकेट को लेकर परिवार को जो मदद चाहिए थी, वो मैंने की। बाद में भी संपर्क में रहा। पर उसी काम को लेकर।
बीच में खबर आई थी कि आप मुंबई छोड़कर विदेश जाने की तैयारी में हैं। आपके पीआर के वीजा एजेंट्स से संपर्क की चर्चा भी थी?
मैं तो यही हूं। जांच एजेंसियों को सहयोग भी कर रहा हूं।
रिया कह रही हैं कि व��� सुशांत को बहुत सालों से जानती थीं, आप भी कई सालों से सुशांत के दोस्त रहे, क्या कभी उन्होंने रिया का जिक्र किया?
सुशांत ने कभी भी जिंदगी में साल 2018 तक रिया का जिक्र नहीं किया।
कभी सुशांत ने वर्चुअल रिएलिटी और ऑर्गेनिक खेती वाले प्रोग्राम में अपने इनवेस्‍टमेंट को लेकर बात की थी?
आप मेरे चैट्स देख लें, जो पब्लिक डोमेन में हैं अब। हमारी बातें घूमने-फिरने, गीत-संगीत पर होती थीं।
कांग्रेस ने आपके बीजेपी से कनेक्शन पर सवाल उठाए थे, जबकि खुद भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी आपके दुबई कनेक्शन की बात करते हैं?
सुब्रह्मण्यम स्वामी जिम्‍मेदार और अनुभवी नेता हैं। उन्‍होंने लिखा कि संदीप सिंह के दुबई आने-जाने की जांच होनी चाहिए। इसमें उन्‍होंने क्‍या गलत कहा। मैं जांच को तैयार हूं। जैसे एक आम आदमी दुबई आता-जाता है, वहां वीजा का ज्‍यादा प्रॉब्‍लम नहीं है। वहां इंडिया जैसा माहौल ही फील होता है। उसमें क्‍या गलत है।
रिया बार-बार कह रही हैं कि सुशांत ड्रग्स लेते थे, क्या आपके सामने कभी ऐसी कोई बात आई?
देखिए मैं रिया को नहीं जानता। वो भी मुझे नहीं जानती, जैसा उन्‍होंने कहा भी है। मेरे पास उनका नंबर भी नहीं है। उनके मुताबिक जिस तरह सुशांत ने कभी मेरा जिक्र उनसे नहीं किया, ठीक उसी तरह सुशांत ने भी मेरे सामने कभी रिया का जिक्र नहीं किया। तो रिया क्‍या बोलना चाहती हैं, वो उनका ईमान जाने। उनसे पूछताछ चालू है। मुझ पर जो आरोप लगे हैं, उससे हिला हुआ हूं। पिछले 60 दिनों से मेरी मम्‍मी, मेरी बहन मेरा परिवार ठीक से रह नहीं पा रहा है।
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संदीप के मुताबिक वो और सुशांत 2011 से एक-दूसरे को जानते थे और 2018 तक रेगुलर टच में भी रहे थे।
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lokjantoday · 4 years
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मुख्यमंत्री के बाद अब मुख्यमंत्री के सलाहकार के हटने की अफवाह
कुलदीप रावत
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अफवाह आखिर क्या होती है यह अक्सर झूठी होती हैं इसलिए इन्हें अफवाह कहा जाता है ऐसी अफवाह कुछ दिनों पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर भी उड़ाई गई थी जो फिलहाल झूठी लग रही है अब ऐसी ही एक और अफवाह इन दिनों सोशल मीडिया पर फिर से छा गई है वह इस बार मुख्यमंत्री को लेकर नहीं अब उनके मीडिया सलाहकार को लेकर उड़ाई जा रही है मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट कई मक्कार लोगों की आंखों में खटकने लग गए हैं हालांकि यह विरोध उनका शुरू से ही होने लग गया था मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पुराने रहे चंद परिचित मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कई बार कान भर चुके हैं ऐसा इसलिए भी है मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सेटिंग गेटिंग करने वालों की एंट्री बंद कर दी थी हालांकि मुख्यमंत्री का यह फैसला निजी था लेकिन फिर भी उन लोगों को लगता था मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार ने मुख्यमंत्री को मीडिया के चंद मठाधीश कहे जाने वाले पत्रकारों से दूर रहने की हिदायत दी है  कामकाज छोड़ यह मठाधीश  बस हर वक्त तीन दो पांच में लगे रहते थे इन लोगों की एंट्री बंद होने के बाद मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट इनकी आंखों में खटकने लग गया जिसके बाद शुरू हुआ साजिशों का दौर कभी मुख्यमंत्री के लिए और कभी उनकी टीम के लिए
  आज भी वह दिन याद है
दिनांक – 23 दिसम्बर 2019
स्थान – मुख्यमंत्री आवास देहरादून।
मौका – सीएम के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट के वीडियो गीत का लोकार्पण समारोह।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने सम्बोधन में कहा कि ‘मुझे फक्र है कि मेरी मीडिया टीम में रमेश भट्ट जैसे पत्रकार शामिल हैं। रमेश किसी सिफारिश से मेरी टीम में नहीं जुड़े बल्कि मैंने उन्हें ढूंढा और अपनी टीम में शामिल होने का उनसे आग्रह किया था। उन्होंने मेरा आग्रह नहीं ठुकराया और वेतन को लेकर तक कोई बार्गेनिंग नहीं की। किसी को बुरा न लगे तो एक बात बताऊं। रमेश ने बतौर पत्रकार एक बार मेरा इण्टरव्यू किया था। उन्होंने मुझसे जो सवाल-जवाब किये। विषयों पर उनकी पकड़, गंभीरता व गहराई देखकर यकीन हुआ कि वह विद्वान और ऊर्जावान पत्रकार हैं, पूरा अध्ययन करने कुछ विषयों पर मुझसे सवाल पूछने आये हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर जब मीडिया टीम का गठन होना था तो काफी तलाशने के बाद रमेश से सम्पर्क को पाया और आज वह मेरी टीम का हिस्सा हैं। टीम में रमेश की मौजूदगी का मुझे फक्र है और यह प्रदेश के लिये भी गौरव की बात है’। मुख्यमंत्री के इस कथन के बाद अब सिनैरियो अचानक बदल चुका है। चर्चा है कि मुख्यमंत्री दरबार में रमेश भट्ट को हाशिये पर डालने की पुरजोर कोशिशें हो रही हैं। यही वजह है कि आजकल वह सीएम के कार्यक्रमों में फ्रंट में देखने के बजाय पर्दे के पीछे रहकर अपनी सेवायें दे रहे हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि रमेश देश की पत्रकारिता में एक बड़ा नाम रहे हैं। लोकसभा टीवी में 10 साल तक वह सीनियर टीवी ऐंकर रहे। न्यूज नेशन में शुरूआत से डिप्टी एडिटर का सफर उन्होंने बेहद कम समय में तय किया। पत्रकारिता के दौरान 22 देशों का वह भ्रमण कर चुके हैं। उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परेज मुशर्रफ का तीखे सवालों के साथ इण्टरव्यू लिया था जो देशभर में सराहा गया था। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री की टीम में चल रही अंदरूनी सियासत से रमेश भट्ट खिन्न हैं। । कहा जा रहा है रमेश भट्ट 2022 की चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं  भीमताल या फिर अजय भट्ट की विधानसभा सीट रानीखेत से रमेश भट्ट चुनाव लड़ सकते हैं  फिलहाल मसला जो भी हो लेकिन ऐसी अफवाह  काफी तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है लेकिन यदि सच में यह अफवाह सही है तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत केे लिए यह एक बड़ी बुरी खबर है
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devbhumimedia · 5 years
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जरा ठन्डू चलदी, जरा मठ्ठु चलदी, मेरी चदरी छुट्टी ग्ये पिछनै…. चन्द्र सिंह राही की पुण्य तिथि 10 जनवरी पर विशेष..... -डॉ. नंद किशोर हटवाल उत्तराखण्ड के लोगों के लिए चन्द्र सिंह राही का अर्थ है एक ऐसी आवाज जिसमें पहाड़ तैरते थे। उनके गले से लहरें उठती थी और उत्तराखण्ड का पहाड़ उसमें समा जाता था। राही के सुरों के समन्दर में पूरे डूब जाते थे यहां के ऊंचे-ऊंचे...आसमान को छूने वाले डांडे-कांठे। राही के सुरों के समन्दर में जब लहरें उठती थी तो उनमें उछलते, तैरते, अठखेलियां खेलते थे पहाड़। यहां की घाटियों की तरह गहरी आवाज। नदियों की तरह बलखाती लहराती। राही की आवाज में यहां की हरियाली लहलहाती थी। इस हिमालयी प्रदेश की वादियों और फिजाओं की सी खूबसूरत आवाज।  उत्तराखण्डियों के लिए कुछ-कुछ दादा साहेब फाल्के और के0 एल0 सहगल का सा दर्जा लिए चन्द्र सिंह राही जी का जन्म 28 मार्च सन् 1942 को जनपद पौड़ी गढ़वाल के गिंवाली गांव, पट्टी मौंदाड़स्यूं, उत्तराखण्ड में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री दिलबर सिंह नेगी तथा मां का नाम सुंदरा देवी था। चन्द्र सिंह की आठवीं तक की स्कूली शिक्षा गांव में ही हुई थी। बाद में उन्होंने हाईस्कूल किया। आगे दिल्ली में संघर्ष करते हुए उन्होंने विशारद एवं साहित्यरत्न की उपाधियां प्राप्त की। राही जी 15 वर्ष की आयु में सन् 1957 में रोजगार की तलाश में दिल्ली चले गये थे। कई दिनो तक रोजगार की तलाश में भटकते रहे। कहीं रोजगार न मिलने के कारण राही जी ने दिल्ली कनॉट प्लेस के क्षेत्र में बांसुरी बजा-बजाकर गुब्बारे एवं बांसुरियां बेची। एक वर्ष तक जैसे-तैसे जीवन निर्वाह किया। बाद में सदर बाजार में मेहता ऑफसेट प्रेस में छपाई का कार्य सीखना प्रारंभ किया। दुर्भाग्यवश नौ महीने के अंतराल में ही छपाई-मशीन में हाथ कट गया। साल भर तक अस्पताल में पडे़ रहे। किसी तरह हाथ तो बच गया लेकिन दायें हाथ का अगूंठा गंवाना पडा़।  राही का जीवन विकट हो गया था। यह उनका कठिन दौर था। दिल्ली जैसे महानगर में रोजगार का न होना और ऊपर से विकलांग हो जाना किसी त्रासदी से कम नहीं था। लेकिन राही खांटी पहाड़ी थे। बहुत जल्दी हार मानने वालों में नहीं थे। उन्होंने रोजगार की तलाश जारी रखी। रोजगार कार्यालय के माध्यम से एक दिन दिल्ली टेलीफोन विभाग में सेवक के पद पर नियुक्ति मिल गई। यहां से उनके जीवन में नया मोड़ आया। रोजी-रोटी की समस्या काफी हद तक सुलझ गई। संगीत बीज रूप में उनके अंदर था ही, उसके लिए स्पेस मिलने लगा। उनका ध्यान अब संगीत की ओर जाने लगा। पिता की विरासत, संगीत की शिक्षा और आगे का सफर लोक-कला की शिक्षा और संस्कार राही जी ने अपने पिता से प्राप्त किए। चन्द्र सिंह राही जी का बचपन जिस दौर में बीता उस दौर में गढ़वाल में लोकगीत संगीत अपनी मौलिकता के साथ पर्याप्त मा��्रा में मौजूद था और स्वयं चन्द्र सिंह राही इस गीत संगीत के नयी पीढ़ी के वाहक थे। श्रुति और वाचिक माध्यम से उन्होंने अपने बाल्यकाल से ही लोकगीतों को ग्रहण करना शुरू कर दिया था। यही उनकी संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा थी। चूंकि यह शिक्षा उन्होंने सीधे लोक के माध्यम से ग्रहण की इसीलिए उनके अंदर ताजिंदगी लोक की ताजगी बनी रही। चन्द्र सिंह राही के पिता दिलवर सिंह एक अच्छे लोक कलाकार थे। वे जागरी थे। इस कारण उनका स्थानीय गीत-संगीत से गहरा नाता होना स्वाभाविक था। अपने समय में पूरे क्षेत्र में दिलबर सिंह जी का बड़ा नाम था। राही जी ने संगीत की प्रथम शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की। उन्होंने अपने पिता से जागर सीखे और लोकगीतों और लोक की गायन शैलियों से परिचित हुए। वे अपने एक साक्षात्कार में कहते हैं, ‘‘मेरा सौभाग्य है कि मेरे पिताजी अच्छे कलाकार थे। जागरी थे, वादक थे। डौंर थाली हुड़का बजाते। मैंने जागर के क्षेत्र में उनसे ही प्रेरणा ग्रहण की।’’  जैविक रूप से कला राही जी के अंदर जन्मजात तो थी ही और फिर समय, समाज और पिता से राही ने बचपन से ही अनौपचारिक रूप से सीखना आरम्भ कर लिया था। लेकिन दिल्ली में नौकरी मिलने के बाद उनके अंदर संगीत सीखने की ललक पैदा होने लगी। दिल्ली महानगर में जीवन की चुनौतियां भी उनके उत्साह को कम नहीं कर पायी। उन दिनो दिल्ली के अंधविद्यालय में ग्राम-ढुंगा, बुरगांव, जनपद पौड़ी के बचनसिंह जी संगीत के आचार्य थे। चन्द्र सिंह राही ने गुरू-शिष्य परम्परा के तहत विधिवत उनसे शिक्षा ग्रहण की।  चन्द्र सिंह राही ने आकाशवाणी से अपने लोकगीतों को गाने की शुरूवात 1963 से की। इस वर्ष दिल्ली आकाशवाणी से लोकगीतों पर ऑडिशन पास किया। उस समय उनकी उम्र 21 वर्ष थी। इसके बाद आकाशवाणी दिल्ली से फौजी भाइयों के लिए प्रसारित कार्यक्रम में गाना शुरू किया। अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने ’ए’ श्रेणी ;।.ळतंकमद्ध के प्रथम उत्तराखण्डी कलाकार होने का दर्जा प्राप्त किया। यद्यपि 12 साल की उम्र से उन्होने मंचीय गायन शुरू कर दिया था। उनके पिता मेलों-उत्सवों में बचपन से ही चन्द्र सिंह को ले जाया करते थे। परन्तु एक लोकगायक के रूप में उन्हें ख्याति आकाशवाणी ने ही दिलायी। दिल्ली में आकाशवाणी से गाने के बाद 1972 से आकाशवाणी लखनऊ से भी लगातार गाते रहे। उस दौर में आकाशवाणी से प्रायः लोकगीत ही प्रसारित होते थे। राही जी को लोकगीत गाने के लिए ही आमंत्रित किया जाता था। उस दौर में उन्होंने लोकगीतों के साथ अपने दो गीत ‘रूपा की खज्यानी भग्यानी कनि छै...’ और ‘म्यरा मन की तिसळी चोळी न बोल तू पाणि-पाणि...’ भी गाये। जिनको खूब सराहना मिली। आकाशवाणी लखनऊ से ‘गिरि गुंजन’, ‘उत्तरायण’ और नजीबाबाद से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में वे लगातार गाते रहे।  जब कभी उनके गीत आकाशवाणी में बजते तो लोग झूम उठते। उनके कुछ गीत जैसे ‘हिल मां चांदी को बटना...’, ‘मेरी चदरी छुटी पिछनै...’, ऐजा सुवा ग्वालदम की गाड़ी मा...’, ‘सरग तारा जुनाल़ी राता...’, ‘गाड़ो गुलोबंद, गुलबंद को नगीना...’, ‘पार भीड़े की बंसती छोरी रूमा-झुमा...’ आदि बहुत लोकप्रिय हुए। इन गीतों ने अपने समय में धूम मचा दी थी।  चंद्र सिंह राही के पास लोकगीतों- जागर, पंवाड़े, लोक गाथाएं, थड़िया, चौंफला, पंडौ, चांचरी, बद्यी लोकगीतों का विशाल भण्डार था। वे उत्तराखण्ड के लोकवाद्यों के अच्छे जानकार भी थे। ढोल-दमाऊ, हुड़का, डोंर, थाली, मोछंग, सिणैं (पहाड़ी शहनाई), बांसुरी, ढोलक, रणसिंघा, मशकबाजु आदि वाद्ययंत्रों को बजा लेते थे। जब कैसेट का जमाना आया तो उनके गीतों के कैसेट बाजार में आने लगे। उनके कैसेट काफी लोकप्रिय हुए। चन्द्रसिंह ‘राही’ ने लगभग डेढ़ सौ कैसेट-सीडी में किसी न किसी रूप में अपनी उपस्थिति दी। उन्होंने लगभग पांच सौ गीत गाये।  दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल में समय-समय पर उनके साक्षात्कार, लोक गीत एंव लोक वाद्यों की प्रस्तुतियां प्रसारित होती रही। उन्होंने दूरदर्शन में चलने वाले कार्यक्रम फेस इन द क्राउड के लिए भोटिया जनजाति के ऊपर एक डोकोमेन्ट्री फिल्म बनाई, गंगा के प्रदूषण पर भी फिल्म बनाई। उन्होंने गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी लोकगीतों का संग्रह भी किया। लोकसंस्कृति पर उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्रालय, संस्कृति विभाग भारत सरकार की अनेक परियोजनाओं पर कार्य किया जिसमें कि उत्तराखण्ड गढ़वाल के लोक गीत, लोक नृत्य एवं विलुप्त होते लोक वाद्यों पर तीन खण्डों में किया गया महत्वपूर्ण कार्य है। इसी प्रकार मध्य हिमालय गढ़वाल की जागर भक्ति संगीत शैली एवं तंत्र मंत्र पर शोध संकलन का कार्य भी किया।  स्वभाव से विनम्र राही जी ने आडम्बर और बनावटीपन से कोशों दूर रहते अपने मूल स्वभाव को जीवित रखा। गढ़वाली में बातचीत करना उन्हें पसंद था। स्पष्ट वादिता के कारण सही बात बोलने से नहीं चूकते। ‘राही’ जी ने अपनी विरासत अपने परिवार को भी सौंपी है। परिवार का एक-एक सदस्य कलाकार है। सभी ने संगीत शिक्षा अपने पिता से ही ग्रहण की।  दिल्ली की एक संस्था साहित्य मंच राही जी की पचास वर्षो की रचना-यात्रा पर ‘लोक का चितेरा’ नाम से चारू तिवारी के सम्पादकत्व में एक पुस्तक के प्रकाशन की तैयारी कर रहा था। उस बीच राही जी अस्वस्थ हो गये। साहित्य मंच चाहता था कि वे इस पुस्तक का लोकार्पण करें, पर किन्हीं कारणो से ये प्रकाशित नहीं हो सकी। आशा करते हैं कि साहित्य मंच इस पुस्तक को शीघ्र प्रकाशित कर सके ताकि राही जी का सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व पाठकों के सामने आ पाये।  चन्द्र सिंह राही का गायन निसन्देह उनकी गायकी को उत्तराखण्ड की लोकगायकी के आधार स्तम्भ के रूप में देखा जा सकता है। उनके सुरों में यहां का लोक बोलता था। अगर कहा जाय कि उनकी गायकी यहां के लोक की प्रतिनिधि गायकी थी तो गलत न होगा। उनके गायन में यहां का लोक पूर्ण रूप से समाहित रहता। यद्यपि उन्होने संगीत की शिक्षा ली थी लेकिन शास्त्रीयता उनके गायन में कभी हावी नहीं रही। शायद इसीलिए लोक में उनकी ग्राह्यता बहुत अधिक थी।  उत्तराखण्ड के लोकगीतों के मौलिक कण्ठ थे राही और उस मौलिकता को ताजिंदगी बचाए रखने में सफल रहे। लोक की मौलिकता से छेड़-छाड़ नहीं की, ब्यावसायिक दबाओं के बावजूद दांए-बांए नहीं भटके। वे लोकगीतों को जीते थे। वे आवाज की ताकत पर अपने श्रोताओं के दिलों में राज करते रहे। उनके गायन की अपनी शैली थी। चौबीस कैरेट का फोक गाने वाले अपनी शैली के अप्रतिम कलाकार। जरा ठन्डू चलदी, जरा मठ्ठु चलदी, मेरी चदरी छुट्टी ग्ये पिछनै, जरा मठ्ठू चलदी के उलट कुछ जल्दी चले गए, चदरिया पीछे छोड़ दी। उनका कुछ जल्दी चले जाना पहाड़ के लोकसंगीत के लिए कभी न भर पाने वाला खालीपन है। लेकिन राही ने लोक में जो लहरें पैदा की हैं वो उठती रहेंगी। उन्हें कोई नहीं मिटा सकता। लहराता रहेगा पूरा पहाड़ उन लहरों में।  वे याद किये जाते रहेंगे.... भाना हे रंगीली भाना दुरु ऐजै बांज कटण, पार बांणा कु छई घसेरी, रूपैकी खजानी भग्यानी कनि छए, धार मा सी जून दिखेंदी जनि छई, तिलै धारु बोला मधुलि हिराहिर मधुलि, सौली घुराघुर्र दगड़िया, हिल्मा चांदी कु बटीणा...रैंद दिलमा तुमारी रटीणा, सात समुन्दर पार च जाणा ब्वे, जाज म जौलू कि ना, पार बौणा कु छई घसेरी, मालू रे तू मालू नि काटी, हिट बलदा सरासरी रे, तिन हाळमा जाणा रे, जरा ठन्डू चलदी जरा मठ्ठु चलदी, मेरी चदरी छुट्टी ग्ये पिछनै आदि अपने कालजयी गीतों के लिए।
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manishajain001 · 4 years
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प्रसिद्ध गीतकार, लेखक, एड गुरु और कवि प्रसून जोशी बुधवार को 49 साल के हो गए। उनका जन्म 16 सितंबर 1971 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुआ था। उन्हें लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए साल 2015 में पद्मश्री से नवाजा गया था। इस मौके पर उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत करते हुए अपने जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों को साझा किया।
प्रसून ने बताया, 'मेरे परिवार में सभी साहित्य को महत्व देते हैं। इसलिए बचपन से ही मेरा झुकाव साहित्य की ओर था। मुझे तो यह लगता है कि मेरे जीवन में स्पिरिचुअलिटी और प्रकृति का गहरा प्रभाव पड़ा है। प्रकृति आपको संघर्ष करना सिखाती है, आपको छल करना नहीं सिखाती। मैं एक माध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूं।'
'पहाड़ों का जीवन बिल्कुल भी सरल नहीं होता। उत्तराखंड में लोग अक्सर आध्यात्मिकता की खोज में आते हैं। बस प्रकृति को देखकर अभिभूत होना और उससे बहुत कुछ सीखना, बचपन में मैंने यही किया और यही मेरी शब्दावली में भी झलकता है। आज भी कभी जब मैं मुंबई की आपाधापी से परेशान हो जाता हूं तो मैं सीधे उत्तराखंड की तरफ भागता हूं। पहाड़ों का रुख करता हूं। कोरोना काल में भी मैं ऋषिकेश ड्राइव करके गया था और गंगा के किनारे कुछ समय बिताया था।'
मां से ली साहित्य जगत की प्रेरणा
उन्होंने कहा, 'दरअसल मेरी मां और मेरी नानी ने मुझे मेरी जिंदगी में बहुत ��्रोत्साहित किया है। मैं मेरी नानीजी के बहुत करीब रहा हूं। उन्होंने 19 साल की उम्र में पढ़ने-लिखने की शुरुआत की और स्कूल की प्रिंसिपल बनकर रिटायर हुईं। उन्होंने मुझे लोक संस्कृति के बारे में बहुत सिखाया।'
'साहित्य जगत की बात की जाए तो मेरी मां ने मुझे सुमित्रानंदन पंत की कविताएं सुनाकर बड़ा किया। जिसके चलते साहित्य की ओर मेरा झुकाव शुरू से ही रहा। मैं मानता हूं कि बचपन में जो आप 16 या 17 साल की उम्र तक करते हैं, वो कहीं ना कहीं आपकी नींव होती है और मेरी नींव में साहित्य रच बस गया था।'
जब खुद सरकंडे की लकड़ी तोड़कर पेन बनाया करते थे
'यूं तो मैं फोन पर भी अपनी रचनाएं लिख लेता हूं लेकिन असली फीलिंग पेन और पेपर के साथ ही आती है। मुझे याद है उस वक्त जब मैं उत्तराखंड में था तब हम सरकंडे की लकड़ी तोड़कर उसे छीलकर, उसे तिकोना आकार देकर पेन बनाया करते थे और जब उस पेन को स्याही में डुबोकर मैं लिखता था तब उस पेन से आ रही आवाज का अपना ही एक आनंद था।'
परिवार के साथ प्रसून जोशी।
मृत्यु पर लिखी थी पहली कविता
'यह वो समय था जब मैं 15 साल का था। मैं स्कूल में पढ़ा करता था और उस वक्त मैंने मृत्यु पर कविता लिखी थी, जिसे सुनकर मुझे बहुत प्रशंसा मिली लेकिन एक और चीज भी कही गई कि शायद मैं अपनी उम्र से बहुत जल्दी बड़ा हो गया हूं और गंभीर बातें करता हूं।
'जब शुरू-शुरू में लिखता था तो उसमें अध्यात्म का बहुत प्रभाव था। अपनी पहली कविता में मैंने मृत्यु की खूबसूरती का वर्णन किया था कि कैसे किसी खूबसूरत चीज को हम बिना पलक झपकाए देखते हैं और जब आप मृत्यु को देख लेते हैं तो आपकी पलक कभी नहीं झपकती तो क्या मृत्यु इतनी खूबसूरत है? मेरी पहली किताब 17 साल की उम्र में पब्लिश हो गई थी।'
पुस्तकों से एड एजेंसी तक का सफर
'उस वक्त मेरी एक या दो किताबें छप चुकी थीं लेकिन परिवार चलाने के लिए मुझे कहीं ना कहीं नौकरी तो करनी ही थी क्योंकि कविताओं से तो सबका पेट नहीं भर सकता। इसलिए अपने पैरों पर खड़ा होना बहुत जरूरी था। इसीलिए मैंने एमबीए किया। उसके बाद मैं दिल्ली में ही एक ऐड एजेंसी में काम करने लगा। मेरे काम को वहां बहुत सराहा गया।'
'मुझे इंटरनेशनल अवॉर्ड मिले यहां तक कि कांस फिल्म फेस्टिवल में भी इसी वजह से मुझे प्रशंसा मिली और धीरे-धीरे मेरी कविताएं देखकर लोग मेरे पास आने लगे। मैं उन लोगों की एल्बम के गाने लिखा करता था। उसी समय मैंने मोहित चौहान के बैंड 'सिल्क रूट' के लिए भी गाने लिखे। उसके बाद शुभा मुद्गल जी ने मुझसे संपर्क किया 'अब के सावन ऐसे बरसे' गाने के लिए, तो गैर फिल्मी काम अच्छा चल रहा था।'
फिल्मों के गाने सुनने की मनाही थी
'मुझे बचपन से ही घर में फिल्मी गाने सुनने की परमिशन नहीं थी। रेडियो पर भी अगर कोई फिल्मी गाना सुनता था तो पिताजी कहते थे यह क्या सुन रहे हो। मेरे पिताजी ने भी संगीत में मास्टर्स किया है। वे कहते थे कि कुमार गन्धर्व को सुनो।' 'मेरी लेखन और मेरी शब्दावली शायद इसीलिए इतनी अच्छी है क्योंकि फिल्मों के गानों से मेरा वास्ता नहीं पड़ा, इसीलिए शायद मेरे लेखन में शुद्धता झलकती हो। साथ ही फिल्म जगत के भी जो मेरे दोस्त हैं वे जानते हैं कि जब कभी भी मैं किसी कविता या किसी गीत के बोल सुनाता हूं तो मैं हमेशा गाकर ही सुनाता हूं।'
विवेकानंद की डॉक्यूमेंट्री देखकर दंग रह गया था
'मैं एक दफा हवाई जहाज में सफर कर रहा था और उस समय मैं स्वामी विवेकानंद पर बनी डॉक्यूमेंट्री देख रहा था। जिसमें एक अंश आया जहां वे उसी उत्तराखंड के कसार देवी मंदिर की बात कर रहे थे और उसके सामने वाली चट्टान पर बैठकर उन्हें जो अनुभूति हुई वो बयां कर रहे थे। मैं यह देखकर दंग रह गया क्योंकि मैं भी उसी चट्टान पर अक्सर चार-पांच घंटे बैठा करता था उस घाटी को निहारता था और उस समय जो अनुभूति मुझे हुई, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।'
बेजान वस्तुओं में भी जान दिखती है मुझे
'मुझे लगता है कि दुनिया की सारी वस्तुओं में जान है चाहे वो निर्जीव हो या फिर जीवित। जैसे एक दीपक है, हम कहते हैं कि दीपक बुझ जाता है, जबकि मुझे लगता है कि दीपक सो गया शायद उसकी लौ थक गई और अब वो सो गया। उसी प्रकार जब संजय लीला भंसाली ने फिल्म 'ब्लैक' के लिए मुझे गाना लिखने को कहा, तो मेरे लिए वो एक टफ टास्क था। इसीलिए क्योंकि उस फिल्म में जो किरदार है ना वह सुन सकता है, ना वो बोल सकता है और ना वो देख ���कता है इसीलिए मैंने गाना लिखा हां मैंने छू कर देखा है।'
बेटी के साथ प्रसून जोशी।
फिल्म 'लज्जा' से मिला पहला बड़ा ब्रेक
'उस वक्त मैं दिल्ली में था जब राजकुमार संतोषी जी ने मुझे फिल्म 'लज्जा' के लिए गाना लिखने को कहा। मेरे लिए बहुत बड़ी बात है क्योंकि मैं दो दिग्गजों के साथ काम कर रहा था। जहां उस फिल्म के गाने को आईडी अय्यर ने कंपोज किया था। वही उस गाने को गाने वाली थी भारत कोकिला लता मंगेशकर जी।'
अपर्णा के लिए भी लिखी है कई सारी कविताएं
अपनी पत्नी अपर्णा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, 'अपर्णा से मेरी मुलाकात तब हुई जब हम दोनों ऐड एजेंसी के लिए काम करते थे। धीरे-धीरे हमें पता चला कि हमारे विचार काफी मिलते हैं और फिर हमने शादी कर ली। आज हमारी 15 साल की एक बेटी है और मैंने कुछ कविताएं अपर्णा के लिए भी लिखी हैं जो उनके पास सुरक्षित हैं।
सीबीएफसी में चेयरमैन की पदवी स्वीकारी
'ये वो समय था जब सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन में बहुत कुछ चल रहा था। उस समय मुझे उसका चेयरमैन बनने के लिए बुलाया गया तो मुझे लगा कि वहां मेरी आवश्यकता है और मैं उस पदवी पर संतुलन बना पाऊंगा। इसलिए मैंने 2017 में सीबीएफसी का चेयरमैन बनना स्वीकार किया।'
मेरी पत्नी ने दिया था सबसे बेहतरीन बर्थडे गिफ्ट
'मेरे जन्मदिन पर मुझे किशोरी अमोनकर जी का फोन आया। वे मेरी सबसे प्रिय क्लासिकल म्यूजिशियन रही हैं। मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं। उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने मेरी कुछ रचनाएं पढ़ी हैं। उनकी आवाज सुनते ही मैं बहुत भावुक हो गया। कुछ साल पहले मेरी वाइफ ने इस फोन कॉल को अरेंज किया था।'
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Prasoon Joshi says- I can see life even in inanimate objects, I was shocked to see the documentary on Swami Vivekananda
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its-axplore · 4 years
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सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से ही उनके दोस्‍त संदीप सिंह सवालों के घेरे में हैं। उन पर अभिनेता की मौत के बाद पुलिस को थम्स अप दिखाने और एंबुलेंस के ड्राइवर से कई बार बात करने समेत विदेश भागने की तैयारी करने तक के आरोप लगे। भास्कर से हुई बातचीत में उन्होंने आरोपों पर अपना पक्ष रखा...
सुशांत से कब से संपर्क में नहीं रह पा रहे थे आप?
मैं और सुशांत 2011 से एक-दूसरे को जानते हैं। 2018 तक हम लोग रेगुलर टच में भी रहे। वो सब मैंने इंस्‍टाग्राम पर डाला है। मगर अब मेरी इज्‍जत पर बात आ रही थी तो मुझे सर्टिफिकेट दिखाना पड़ा। चैट सार्वजनिक किए। कोई भी उनको जानने वाला 14 जून को तो नहीं आया। गलती थी कि उस दिन अकेली मीतू दीदी और सुशांत के परिवार वालों की मदद की। हम लोग बिहारी हैं साहब। अनजान की अर्थी को भी कांधा दे देते हैं।
बहरहाल, 2019 में मैं पीएम मोदी फिल्‍म बना रहा था। सुशांत 'दिल बेचारा' और 'छिछोरे' में व्‍यस्‍त रहे। लिहाजा हम संपर्क में नहीं रह सके थे। यह लाजिमी है। काम के चलते तो हम अपने स्‍कूल और कॉलेज फ्रेंड्स के साथ भी टच में नहीं रह पाते हैं। इंसानियत का कोई वजूद नहीं है। मुझे लगा कि जैसे मैं उनके पास जा रहा हूं, वैसे ही इंडस्‍ट्री भी खड़ी होगी।
आप लोग रेगुलर टच में नहीं थे तो उनके निधन की जानकारी कैसे मिली?
मेरे पड़ोसी हैं संजीत कुमार। मैं उस दिन अपनी बिल्डिंग में संजय निरूपम जी को पिक करके आ रहा था। हम तीनों लंच पर मिल रहे थे। उस दौरान मैंने अपने दोस्‍त को क्रॉस चेक करने को कहा कि क्‍या वाकई सुशांत नहीं रहे। टीवी पर न्‍यूज आने के बाद महेश शेट्टी को कॉल किया और सुशांत के घर निकल पड़े।
वहां पहुंचने पर पता चला या सिद्धार्थ पिठानी से बात हो सकी कि बॉडी को उतारा किसने था?
मैं तो किसी को जानता नहीं था, जो पूछूं। साथ ही वहां पुलिस अधिकारी इतने थे कि हम किसी से क्‍या बातचीत करते। हम कायर तो हैं नहीं कि वो देख वहां से भाग जाते। मीतू दीदी को अकेला छोड़ देते। पिछले 50 दिनों में मेरे रिलेटिव, दोस्‍त लगातार फोन कर बता रहे हैं कि मैं सबसे बड़ा बेवकूफ हूं, जो इस सिचुएशन में वहां रहा। इंडस्‍ट्री के बाकी लोग तो अपनी इमेज बचाने के चक्‍कर में वहां पहुंचे तक नहीं। तूने आ बैल मुझे मार वाली सिचुएशन पैदा कर ली।
कूपर हॉस्पिटल में एक चश्‍मदीद ने कहा कि सुशांत की टांगें टूटी हुईं थीं। गले पर सुइयां चुभोने के निशान थे?
उस इंसान को सबसे पहले पुलिस और सीबीआई को जाकर ये सारी बातें बोलनी चाहिए। मीडिया में पब्लिसिटी गेन नहीं करनी चाहिए। उसे महाराष्‍ट्र सरकार से लेकर सबको एक लेटर लिखना चाहिए इन सब चीजों के बारे में। बताए कि उसके पास सारी समस्‍याओं का हल है। ऐसा कुछ नहीं है।
आपने भी तो पूरी बॉडी देखी ही होगी?
मैंने सिर्फ चेहरा देखा था। वो भी अंतिम संस्‍कार के वक्‍त, जब चेहरे से कपड़ा हटाया जाता है। जब अंतिम समय में लकड़ी रखी जाती है और माला चढ़ाई जाती है।
मुंबई पुलिस, सीबीआई ने आप से क्‍या पूछा?
जो सवालात आप पूछ रहे हैं, वही थे। उन्‍होंने मीतू दीदी को भी बुलाया। जो लोग उस वक्‍त पर मौजूद थे, सबको बुला रहे हैं। जांच एजेंसियों ने सिर्फ मुझसे ये पूछा कि मैं उन्‍हें 15 और 16 जून का सीक्‍वेंस बता दूं। क्‍या-क्‍या हुआ?
दोनों के सवाल कॉमन थे या कुछ अलग भी रहे?
मुंबई पुलिस के अपने सवाल थे। सीबीआई के अपने सवाल हैं। सब एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। उन सवालों को पब्लिक तो नहीं कर सकते।
आप सुशांत के दोस्त हैं तो सच बताइये कि क्या वो वाकई डिप्रेशन में था या नशे की लत थी?
सात सालों के सफर में कभी ड्रग्‍स नहीं लिया। कभी डिप्रेशन में नहीं रहे। हमेशा मौज-मस्‍ती करते रहे। सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का था। कभी मेरे सामने डिप्रेशन में नहीं दिखा।
सुशांत की बहनों के भी आप करीबी रहे हैं, क्या आपको लगता है कि बहनों ने सुशांत की केयर नहीं की और इसी कारण रिया का दखल बढ़ गया?
मैं यह नहीं जानता, क्‍योंकि सुशांत के परिवार से मैं कभी मिला नहीं। परिवार ने भी कहा ही है कि वो मुझे नहीं जानते थे उससे पहले। यह सच है। परिवार से भी उस मोड़ पर मिलना हुआ, जब अंतिम संस्‍कार हो रहा था। वो शादी या जन्‍मदिन का फंक्‍शन तो था नहीं, जो एक-दूसरों को प्रॉपरली इंट्रोड्यूस करते। आशीर्वाद भी नहीं। बातचीत भी नहीं। सब घर चले गए।
सुशांत की मौत वाले दिन उनकी बड़ी बहन मीतू के साथ संदीप सिंह।
जांच एजेंसियों की जांच में कभी सवाल उठे कि आखिर बॉडी किसने उतारी? उसके ऐसा करने से बॉडी पर से निशान मिटे होंगे?
यह तो वो इंसान ही जाने, जिसने बॉडी उतारी हो। मगर मुंबई पुलिस, बिहार पुलिस, एनसीबी, ईडी, सीबीआई जांच कर रहे हैं। पब्लिक और मीडिया को जरा इंतजार करना चाहिए। देश की न्‍याय व्‍यवस्था पर भरोसा करना चाहिए। जांच जोर-शोर से चालू है। हकीकत सामने आ जाएगी।
क्या दिशा और सुशांत की मौत में कोई कनेक्शन हो सकता है?
ये बात मैं कैसे कह सकता हूं? यही सवाल तो देश के सवाल हैं। यह सवाल उस इंसान से पूछा जा रहा है, जो फैमिली के साथ सपोर्ट में खड़ा था। अंतिम संस्‍कार में, डेथ सर्टिफिकेट निकालने में। यही तो जांच चल रही है तीन महीनों से कि कोई कनेक्‍शन था या नहीं।
आप कह रहे हैं कि एम्बुलेंस के ड्राइवर का पेमेंट आपने किया था? लेकिन एंबुलेंस के मालिक ने कहा था कि पेमेंट सैमुअल मिरांडा ने किया था?
उस दिन मालिक नहीं, ड्राइवर अक्षय आया था। उसने एबीपी पर साफ-साफ बोला कि उसने संदीप सिंह को चार बार फोन इसलिए किया कि उसका आठ हजार का बिल था। फिर मैंने वो नंबर दीपक साहू को दिया। दीपक साहू ने 22 तारीख को कैश पेमेंट कर दिया। इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया किसी और का इंटरव्‍यू करती रही। नेगेटिव इंटरव्‍यू से टीआरपी ज्‍यादा मिलती है।
सुरजीत सिंह राठौड़ का कहना है कि आपने उन्हें कूपर हॉस्पिटल से बाहर निकलवाया था? उसने आपको मास्टरमाइंड भी कहा?
वो कभी खुद का करणी सेना का मेंबर कहते हैं। कभी एनसीपी का बताते हैं। अब सुनने में आ रहा है कि बतौर प्रोड्यूसर उन्‍होंने सुशांत पर फिल्‍म अनाउंस कर दी है। पहले वो अपनी सफाई दें। कूपर हॉस्पिटल में पुलिस ने मुझसे पूछा था कि यह इंसान कौन है? क्‍या मैं जानता हूं? उस पर मैंने ना में जवाब दिया। तब उनसे साइड होने को कहा गया। उसे वो अपने तरीके से बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। वो सुशांत पर फिल्‍म कैसे बना रहे हैं, वो तो उन्‍हें पता होगा ही।
अब जो हालात हैं, आप का दिल क्‍या कहता है, यह मर्डर है या सुसाइड?
यह सवाल मुझसे क्‍यों पूछा जा रहा है, जो मैं खुद जानना चाहता हूं। पूरी जनता और परिवार जानना चाहता है। अब यह सच्‍चाई छिपने वाली नहीं है। जो लोग मेरी दोस्‍ती और इंसानियत को गाली दे रहे हैं, बिना किसी सबूत के, उन्‍हें पछतावा होगा।
रिया की क्या गलती रही? जैसा कि रिया ने कहा कि प्यार ही गुनाह हो गया, आप क्या मानते हैं?
मुझे यह तो नहीं मालूम। मैं अपनी ही इज्‍जत बचा लूं, वही काफी है। उंगली तो संजय लीला भंसाली, सलमान खान, करण जौहर और सूरज पंचोली तक पर उठ रही है।
सुशांत की मौत वाले दिन बहन के साथ आप थे, उस दिन के बारे में कुछ बताएं?
डेथ सर्टिफिकेट को लेकर परिवार को जो मदद चाहिए थी, वो मैंने की। बाद में भी संपर्क में रहा। पर उसी काम को लेकर।
बीच में खबर आई थी कि आप मुंबई छोड़कर विदेश जाने की तैयारी में हैं। आपके पीआर के वीजा एजेंट्स से संपर्क की चर्चा भी थी?
मैं तो यही हूं। जांच एजेंसियों को सहयोग भी कर रहा हूं।
रिया कह रही हैं कि वे सुशांत को बहुत सालों से जानती थीं, आप भी कई सालों से सुशांत के दोस्त रहे, क्या कभी उन्होंने रिया का जिक्र किया?
सुशांत ने कभी भी जिंदगी में साल 2018 तक रिया का जिक्र नहीं किया।
कभी सुशांत ने वर्चुअल रिएलिटी और ऑर्गेनिक खेती वाले प्रोग्राम में अपने इनवेस्‍टमेंट को लेकर बात की थी?
आप मेरे चैट्स देख लें, जो पब्लिक डोमेन में हैं अब। हमारी बातें घूमने-फिरने, गीत-संगीत पर होती थीं।
कांग्रेस ने आपके बीजेपी से कनेक्शन पर सवाल उठाए थे, जबकि खुद भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी आपके दुबई कनेक्शन की बात करते हैं?
सुब्रह्मण्यम स्वामी जिम्‍मेदार और अनुभवी नेता हैं। उन्‍होंने लिखा कि संदीप सिंह के दुबई आने-जाने की जांच होनी चाहिए। इसमें उन्‍होंने क्‍या गलत कहा। मैं जांच को तैयार हूं। जैसे एक आम आदमी दुबई आता-जाता है, वहां वीजा का ज्‍यादा प्रॉब्‍लम नहीं है। वहां इंडिया जैसा माहौल ही फील होता है। उसमें क्‍या गलत है।
रिया बार-बार कह रही हैं कि सुशांत ड्रग्स लेते थे, क्या आपके सामने कभी ऐसी कोई बात आई?
देखिए मैं रिया को नहीं जानता। वो भी मुझे नहीं जानती, जैसा उन्‍होंने कहा भी है। मेरे पास उनका नंबर भी नहीं है। उनके मुताबिक जिस तरह सुशांत ने कभी मेरा जिक्र उनसे नहीं किया, ठीक उसी तरह सुशांत ने भी मेरे सामने कभी रिया का जिक्र नहीं किया। तो रिया क्‍या बोलना चाहती हैं, वो उनका ईमान जाने। उनसे पूछताछ चालू है। मुझ पर जो आरोप लगे हैं, उससे हिला हुआ हूं। पिछले 60 दिनों से मेरी मम्‍मी, मेरी बहन मेरा परिवार ठीक से रह नहीं पा रहा है।
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संदीप के मुताबिक वो और सुशांत 2011 से एक-दूसरे को जानते थे और 2018 तक रेगुलर टच में भी रहे थे।
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gethealthy18-blog · 4 years
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Best Valentine’s Day Shayari 2020 – हैप्पी वैलेंटाइन डे शायरी हिंदी में
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Best Valentine’s Day Shayari 2020 – हैप्पी वैलेंटाइन डे शायरी हिंदी में
Best Valentine’s Day Shayari 2020 – हैप्पी वैलेंटाइन डे शायरी हिंदी में Soumya Vyas Hyderabd040-395603080 January 14, 2020
यूं तो प्रेमियों के लिए प्यार का मौसम पूरे साल चलता है, लेकिन फरवरी में इसका अहसास ही कुछ और होता है। इस खास सेलिब्रेशन के पीछे वजह है वैलेंटाइन डे। 14 फरवरी को मनाया जाने वाला यह दिन सभी लव बर्ड्स के लिए खास होता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को फूल व तोहफे आदि देते हैं, तो कुछ लोग वैलेंटाइन डे डेट पर जाते हैं। इन तोहफों के साथ अपने प्यार के इजहार में चार चांद लगाने के लिए वैलेंटाइन डे शायरी का उपयोग किया जा सकता है। स्टाइलक्रेज कुछ ऐसे ही खास वैलेंटाइन डे कोट्स आपके लिए लेकर आया है। इन कोट्स के साथ वैलेंटाइन डे को बनाइए खास और अपने प्रियतम को भेजिए वैलेंटाइन डे की शायरी। दोस्तों, क्या आप जानते हैं कि वैलेंटाइन डे डेट 14 फरवरी को क्यों मनाया जाता है? अगर नहीं, तो आइए पहले इस बारे में ही जान लेते हैं।
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वैलेंटाइन डे कब मनाया जाता है?
वैलेंटाइन डे डेट वैसे तो 14 फरवरी को होती है, लेकिन इसकी शुरुआत एक हफ्ते पहले, यानी 7 फरवरी को ही हो जाती है। 7 से 14 फरवरी के इस हफ्ते को वैलेंटाइन वीक कहा जाता है, जिसमें तरह-तरह के दिन मनाए जाते हैं और इस हफ्ते की शुरुआत 7 फरवरी को रोज डे से होती है। रोज डे के बाद 8 तारीख को प्रपोज डे आता है। वहीं, 9 फरवरी को चॉकलेट डे मनाया जाता है और 10 को टेडी डे। इसके बाद 11 फरवरी को प्रॉमिस डे मनाया जाता है और 12 फरवरी को हग डे होता है। आखिर में वैलेंटाइन डे डेट यानी 14 फरवरी से एक दिन पहले 13 फरवरी को किस डे मनाया जाता है। 14 फरवरी के साथ वेलेंटाइन वीक का अंत हो जाता है, लेकिन हम आशा करते हैं कि आपके जीवन से प्यार के मौसम का अंत कभी न हो।
लेख में आगे पढ़िए कुछ वैलेंटाइन डे कोट्स और शायरियां, जो आपके प्यार का संदेश आपके पार्टनर तक पहुंचाने में मदद करेंगी।
वैलेंटाइन डे की शायरी – Valentine’s Day Quotes in Hindi
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1. हर दुआ में मांगा है प्यार तुम्हारा, कभी छूटे से न छूटे ये साथ हमारा, हर कदम चलूंगी साथ हाथ थामे, तुम भी न छोड़ना ये दामन हमारा।
2.नया ये एक संसार है, भरपूर इसमें प्यार है, क्या नाम दूं इस रिश्ते को मैं, तुम्हारे बिना ये जीवन बेज़ार है। हैप्पी वैलेंटाइन डे
3. मेरे हर गीत का साज़ हो तुम, मेरी खुशियों का परवाज़ हो तुम, तुमसे मिलता है दिल को सुकून, मेरी ख़्यालों की आवाज़ हो तुम।
4. तुम्हारे होने से मेरा ये जीवन रंगीन है, तुम्हारा प्यार मेरे लिए नाज़नीन है, न जाना तुम दूर, ये वादा करो आज, तुमसे ही मेरे चांद सितारे आफ़रीन हैं।
5. तुझे देख कर मैंने है ये जाना, तुझसे दूर मुझे कभी नहीं जाना, मैं दीवानी और तू है मेरा दीवाना, अब पूरा हो गया ज़िंदगी का फ़साना।
6. चांद से चांदनी लाई हूं, सूरज से मैं रोशनी लाई हूं, साजन तुम्हें क्या दूं और तोहफे में, तुम्हारे लिए मैं अपनी जान लाई हूं। हैप्पी वैलेंटाइन डे
7. जाना आप मेरी ख़ुशी बन गए, मेरे चेहरे की खिलखिलाती हंसी बन गए, आप से पहले किसी को चाहा नहीं इस क़दर, आप अब मेरे जीने की वजह बन गए।
8. तुम आए तो जीने की आई चाहत, तुम आए तो दिल में आई राहत, सूने से पड़े थे दिन ये मेरे, तुम आए तो इनमें आई मुस्कुराहट।
9. मैंने ज़िंदगी का साथ बड़ी शिद्दत से निभाया है, हर मुश्किल क़दम पर तुम्हें अपने साथ पाया है, ख़ुदा से अब नहीं मुझे और कोई दरकार, तुमने मुझे मेरा हर दर्द भुलाया है। हैप्पी वैलेंटाइन डे
10. जैसे रात को होती है चिराग की ज़रूरत, जैसे तपती धूप में होती है फुहार की ज़रूरत, वैसे ही हमें भी ज़िंदगी भर रहेगी, हर कदम पर आपके साथ की ज़रूरत।
11. ज़िंदगी के इस सफर में अक्सर भटक जाती हूं राहों में मैं, कुछ नहीं समझ आता और लौट आती हूं तेरी बाहों में मैं, दुनिया के मेले में जब भी अकेली होती हूं, महफूज़ महसूस करती हूं तेरी पनाहों में मैं।
12. सुनिए, आप हमें बहुत भाते हैं, माना कभी-कभी हम आपको सताते हैं, पर आप ही से तो जन्म-जन्म के नाते हैं, इस वैलेंटाइन डे शायरी से अपना प्यार जताते हैं।
13. मैंने दिल में अपने तुम्हें बसाया है, ये ज़िंदगी धूप और तू साया है, कोई पूछे तो बड़े नाज़ से बताती हूं, कि मेरी ज़िंदगी का तू सरमाया है।
14. ख़ुदा से की थी मैंने एक गुज़ारिश, पूरी हो जाए दिल की हर ख़्वाहिश, ख़ुदा भी हंसा और मुझे तुझसे मिला दिया, अब जाकर पूरी हुई दिल की हर फ़रमाइश।
15. बेनाम से इस प्यार को आज एक नाम दें, अनकहे इक़रार को आज अंजाम दें, बदनाम है ये इश्क़ बे-वजह मोहल्ले में, आओ आज अपनी मोहब्बत को एक इनाम दें। हैप्पी वैलेंटाइन डे
16. कुछ लोगों की मोहब्बत का अंदाज़ अलग होता है, हर कश्ती डूबती नहीं, कुछ का परवाज़ अलग होता है, यूं तो मिलता नहीं हर किसी को तोहफा-ए-इश्क़, और जिसे मिल जाए, उनका इम्तियाज़ अलग होता है।
17. महकने लगती हैं रातें जब ख़्वाबों में तुम आते हो, धीरे-धीरे से जाना, तुम मेरी नींदों में समाते हो, यूं तो बहुत से हैं रिश्ते दुनिया में निभाने के लिए, पर मुझसे ये प्रेम का रिश्ता तुम बख़ूबी निभाते हो।
18. मेरे दिल ने बस एक यही हरसत की है, इसने सिर्फ तुझे पाने की चाहत की है, न जाने कब हो गया मुझपे ख़ुदा का करम, तुझे ज़िंदगी में भेज कर उसने मुझपे इनायत की है।
19. तेरी खु़शबू से मेरी सांसें महकती हैं, तेरे होने से ये ज़िंदगी चेहकती है, किसी लकी चार्म की क्या जरूरत है मुझे, तेरे साथ से मेरी क़िस्मत चमकती है।
20. प्रेम एक एहसास है, ये एहसास है जब तू मेरे पास है, अब क्या मैं अलग और क्या तू जुदा, अब हर सांस में आती तेरी सांस है। हैप्पी वैलेंटाइन डे
21. अपनी तो ज़िंदगी का फ़साना है, एक तू है, एक मैं हूं, और एक अपना याराना है।
22. तुम में न जाने क्या बात है, कि तुम में इस तरह खो जाती हूं, तुम ख़्वाबों में मिलने आओगे, ये सोच कर दिन में भी सो जाती हूं।
23. कपकपाती ठंड में तेरा प्यार धूप है, मेरे जीवन में तेरी जगह बिल्कुल अनूप है। तुझे देखकर बस देखती रह जाती हूं, ख़ुदा ने बड़ी फुर्सत से दिया तुझे ये रूप है। हैप्पी वैलेंटाइन डे
24. आज दिन है प्यार का तो इज़हार किया जाए, दिल-ओ-जान किसी पर निसार किया जाए, आंखों में कब-से है इंतज़ार का सूखापन, चलो उनका करीब से दीदार किया जाए।
25. मेरे आंगन को बरसात का इंतज़ार रहा है, मुझे उनके सपनों से भी प्यार रहा है, बादलों की गूंज को अनसुना कर दिया मैंने, आप से मुझे इस कदर प्यार रहा है। हैप्पी वैलेंटाइन डे
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1. हमारे दिल ने एक ख़्वाब बुना है, ज़िंदगी के सफर में हमने तुम्हें चुना है, आज का दिन है हमारे प्यार के नाम, अपनी धड़कनों में भी मैंने, तुम्हारा नाम ��ुना है। हैप्पी वैलेंटाइन डे
2. नज़र में बसता है एक तेरा चेहरा, तेरे प्यार का रंग मुझपे चढ़ा है गहरा, अब जाकर हुआ है हाल-ए-दिल सुकून, तेरे साथ लगे जैसे वक्त हो ठहरा। हैप्पी वैलेंटाइन डे
3. तू गुज़री कुछ इस कदर मेरे करीब से, कि मेरी रूह महकती है, तेरे दुपट्टे की महक से।
4. रात गहराती जाती है, याद हर पल तेरी सताती है, तू चली जाए दूर कुछ देर के लिए भी, तो तेरे साथ मेरी जान चली जाती है। हैप्पी वैलेंटाइन डे
5. ठहरी हुई शाम में गुनगुनाती-सी तू, उनींदी रातों में ख़्वाब जगाती-सी तू, ग़म के साए चलते थे मेरा हाथ थामे, अब हर कदम पर साथ मुस्कुराती-सी तू। हैप्पी वैलेंटाइन डे
6. रात को अलविदा कहता सूरज-सा तेरा चेहरा, आंखों में अपनी छिपा लेती हो मेरा राज़ हर गहरा, हो कभी काले साए या कभी ये रोशनी ढले, तो लगा लेना मुझे गले, मैं बन जाऊंगा तेरा पहरा। हैप्पी वैलेंटाइन डे
7. प्रेम में डूब कर तुम्हारे, नया जन्म मैं पाया हूं, बेसुध था अब तक इश्क़ से, अब इसकी ताकत समझ पाया हूं, वो घड़ी पुरानी नहीं, जब मुझे इस बात का एहसास हुआ, कि तुम्हें पाकर आखिरकार मैं खु़द को जान पाया हूं।
8. रात भर जाग कर करना तुमसे बात, ज़िंदगी के सुधर गए अब सारे हालात, बता देना पिताजी को कि अब न हों परेशान, एक दिन मैं ही लाऊंगा तुम्हारे घर बरात। हैप्पी वैलेंटाइन डे
9. अदाओं से अपनी मेरे दिल को बहलाती हो, कभी मैं मनाने आऊं, तो बड़ा सताती हो, चाहे हो हमारे बीच गिले शिकवे किसी रोज़, हूं जब भी मैं उदास तो तुम मुझे हंसाती हो।
10. मैक़शी में जितना नशा, उससे ज़्यादा तेरी आंखों में, नज़्म में जितना हुस्न, उससे ज़्यादा तेरी बातों में, बांध लेती हो रातों को अपनी जुल्फ़ों में तुम, सूरज में जितनी चमक, उससे ज़्यादा तेरी निगाहों में। हैप्पी वैलेंटाइन डे
11. मुद्दत हुई थी हमें इश्क़ ढूंढते-ढूंढते, फिर एक रात ख़्वाब में तू आ गई, और समंदर-सा गहरा खारा था जीवन मेरा, फिर एक रोज समंदर में पैर डूबा कर तू बैठ गई।
12. सारा आलम तेरे इश्क़ में डूबा रहता है, ये भी एक दरिया है जो सागर में बहता है, तुम हो तो रंगीन-सी लगती है दुनिया मेरी, तुमसे मैं हूं, ये अब सारा ज़माना कहता है।
13. तुम बातें करो तो शमा-सी जगमगाती है, मैं बेसुध परवाना-सा शमा को देखा करता हूं।
14. तुम नई नवेली ईडीएम, मैं ओल्डस्कूल हिपहॉप प्रिये, नहीं गिरने दूंगा तुम्हारी आंखों से, आंसू का एक भी ड्रॉप प्रिये। हैप्पी वैलेंटाइन डे प्रिये
15. सोचता हूं इन दिनों तुम्हें दम-ब-दम मैं, हर कोई आज कल मुझे तुम्हारे नाम से पुकारता है।
16. मेरे इस प्रेम सफर का आखिरी मुक़ाम हो तुम, मेरी राहें जहां थम जाएं वो मकान हो तुम, दिल मेरा धड़कता है सिर्फ तुम्हारे लिए, मेरे लिए दुनिया में सबसे अमान हो तुम।
17. सदियों पुरानी मांगी दुआ क़ुबूल हुई है, तुम्हें देखा तो जाना, दुआ की उम्र नहीं होती। मान लो कि ये सच है, ख़ुदा की है रहमत हम पर, सनम, इतनी पाक़ मोहब्बत भ्रम नहीं होती। हैप्पी वैलेंटाइन डे
18. मेरी आदत में अब शामिल हो गई हो तुम, मेरी दुआ की तरह कामिल हो गई हो तुम, रात का कोई भटकता मुसाफिर था मैं, ज़िंदगी की मेरी मंज़िल हो गई हो तुम।
19. मेरे हाथों की तुम लकीर बन गई हो, जो कभी न फूटे, वो तक़दीर बन गई हो, ��ेखता हूं ख़्वाब तुम्हारे साथ के हर रोज़, प्रिये, तुम मेरे ख़्वाबों की ताबीर बन गई हो। हैप्पी वैलेंटाइन डे
20. जब से मुझे तुम्हारा सहारा मिल गया है, मेरी डूबती कश्ती को जैसे किनारा मिल गया है, दूर न जाना मुझसे कभी प्रिये, मेरी क़िस्मत को आखिरकार एक सितारा मिल गया है।
21. तू सुबह मेरी, तुझ से ही होती रात मेरी, दिन भर दोस्तों से मैं करता हूं सिर्फ बात तेरी, यूं तो ज़िंदगी में कोई जंग हारा नहीं मैं, लेकिन प्रेम में तुझसे हो गई मात मेरी, हैप्पी वैलेंटाइन डे
22. हर सोच में तेरा ख़याल शामिल है, हर बात में तेरा नाम शामिल है, अब मैं हूं मैं या मैं भी मैं न रहा, मेरे हाल में भी अब तेरा हाल शामिल है।
23. तेरे हुस्न का हर रोज़ दीदार करना चाहता हूं, तुझे शाम-ओ-सहर बेहद प्यार करना चाहता हूं, अगर अब भी है तुझे मेरे प्यार पर सवाल, आज दोबारा अपने इश्क़ का इज़हार करना चाहता हूं। हैप्पी वैलेंटाइन डे
24. मेरे होंठों पर ठहरती हंसी हो तुम, मेरे दिल में धड़कती धड़कन हो तुम, तुम्हें क्या बताऊं कि क्या हो तुम, सच तो ये है, मेरी जान हो तुम।
25. हाल-ए-दिल तुम्हारे सामने बयां करता हूं, तह-ए-दिल से मैं तुमसे प्यार करता हूं, दुनिया जले तो जले मुझसे, मैं अपनी मोहब्बत पर गुमान करता हूं। हैप्पी वैलेंटाइन डे
दोस्तों, हम उम्मीद करते हैं कि इस लेख में बताई गई वैलेंटाइन डे शायरी आपको पसंद आई होगी। इन वैलेंटाइन डे की शायरी की मदद से आप मैसेज के जरिए, कार्ड पर लिखकर या फिर खुद बोलकर भी अपने पार्टनर के प्रति अपने प्यार को बयां कर सकते हैं। हम आशा करते हैं कि यह वेलेंटाइन डे आपके लिए ढेरों खुशियां लाए और आप दोनों के जीवन में प्यार यूं ही बना रहे और आप जीवनभर वैलेंटाइन डे डेट मनाते रहें।
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Soumya Vyas
सौम्या व्यास ने माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय, भोपाल से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बीएससी किया है और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ जर्नलिज्म एंड न्यू मीडिया, बेंगलुरु से टेलीविजन मीडिया में पीजी किया है। सौम्या एक प्रशिक्षित डांसर हैं। साथ ही इन्हें कविताएं लिखने का भी शौक है। इनके सबसे पसंदीदा कवि फैज़ अहमद फैज़, गुलज़ार और रूमी हैं। साथ ही ये हैरी पॉटर की भी बड़ी प्रशंसक हैं। अपने खाली समय में सौम्या पढ़ना और फिल्मे देखना पसंद करती हैं।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/valentines-day-shayari-in-hindi/
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iamsuhailanwar · 5 years
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(Chand Aasaar Geet Ke)... Main Chal Diya Safar Me... (Meri Kalam Se...)
(Chand Aasaar Geet Ke)… Main Chal Diya Safar Me… (Meri Kalam Se…)
https://iamsuhailanwar.blogsopt.in  (चंद आशार गीत के) “मैं चल दिया सफर में “ मैं चल दिया सफर में तन्हा ही – तन्हा ही अपना जुनूने-ख्याल लेकर ख़याले-जूनून रहा सवार मैं मैं चल दिया सफर में तन्हा ही-तन्हा ही वगैर किसी मुश्किल के वगैर किसी फुर्सत के मैं चल दिया सफर में तन्हा ही-तन्हा ही लेकिन मेरा अख्तियार है मेरे खुदा पर वो मुकम्मल कर ही देगा इस सफर में मैं चल दिया सफर में तन्हा ही-तन्हा ही सो…
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Christmas Essay in Hindi : आज दुनियां के सभी देश एक दूसरे से पूरी तरह जुड़े हुए हैं. आपसी मेलमिलाप की इस भावना से लोगों के बीच प्रेम और भाईचारा बन पाया हैं. कुछ दशक पहले तक कोई परम्परा या रिवाज दुनिया के किसी एक कोने तक सिमित थे, सिर्फ वही के लोग उसे मनाते थे. जैसे कि क्रिसमस, कुछ समय पूर्व तक इसाई बहुल देशों का प्रमुख त्योहार था. मगर आज क्रिसमस दुनियां के हर देश में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता हैं.  क्रिसमस क्या है, क्यों मनाया जाता है. Information on Christmas festival के इस निबंध में हम आपकों क्रिसमस 2019 पर छोटा निबंध बता रहे है.
Christmas Essay in Hindi | क्रिसमस पर निबंध 2019
क्रिसमस का अर्थ क्या है (What is the meaning of Christmas)
इस पर्व का नाम क्रिसमस शब्द क्राइस्ते माइसे यानी क्राइस्टमास से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है जीसस क्राइस्ट का बर्थडे. यह दिन हर साल ग्रेट डे अथवा बड़ा दिन के रूप में सेलिब्रेट किया जाता हैं. क्रिसमस का पर्व क्राइस्ट जीसस यानी ईसा मसीह के जन्म दिन के रूप में हर साल 25 दिसम्बर को मनाया जाता हैं. इशु ईसाई धर्म के संस्थापक थे.
क्रिसमस का इतिहास क्या है (What is the history of christmas)
यदि हम क्रिसमस त्योहार के मनाने के इतिहास की तह तक जाए तो न्यू टेस्टामेंट नामक ईसाई धार्मिक पुस्तक के मुताबिक़ इस पर्व की शुरुआत पेरिस की राजधानी रोम से 336 ई में इसकी शुरुआत हुई थी.
क्रिसमस की कहानी (Christmas story)
यदि हम न्यू टेस्टामेंट को आधार मानकर क्रिसमस की कथा के बारे में पढ़े तो यह इस तरह हैं. गॉड ने अपना एक गेब्रियल नाम का एक दूत धरती पर एक लड़की के पास भेजा, जिसका नाम मरियम था. उसनें उस लड़की को जाकर बताया कि आपके गर्भ से गॉड जन्म लेगे, तथा वे बड़े होकर किंग बनेगे तथा इनके साम्राज्य की कोई सीमा नही होगी.
तथा उस बालक का नाम जीसस होगा. इतना कुछ कहने के बाद वह देवदूत मरियम के पति जोसेफ के पास पंहुचा, उसने उसे भी वहीँ बताया और सलाह दी कि आप मरियम के तबियत का ख्याल रखना उनकी अच्छी तरह सेवा करना. तथा उन्हें अकेले मत छोड़ देना.
इतना कुछ कहने के बाद देवदूत चला गया. उस समय वहां पर राजकीय जनगणना चल रही थी. तथा सभी नागरिकों को यह आदेश दिया गया कि वे अपने मूल स्थान पर ही अपनी गणना करवाएं. उधर जोसेफ अपनी पत्नी को नाजरथ पर बिठाकर बेथलेहम शहर की ओर जा रहे थे. कुछ ही सफर तय किया, कि तेज तूफ़ान और घनघौर वर्षा होने लगी थी.
खराब मौसम के चलते जोसेफ तथा मरियम को पास ही के एक अस्तबल में एक रात रूकना पड़ा. वह रात थी 25 दिसम्बर की इसी रात को ठीक बारह बजे मरियम ने जीसस को जन्म दिया. यही वजह है कि इस कहानी को आधार मानकर आज भी ईसाई धर्म के लोग 25 दिसम्बर को ईसा मसीह के जन्म दिवस को क्रिसमस के रूप में मनाते हैं.
क्रिसमस कैसे मनाया जाता है (christmas celebration essay)
इस उत्सव को मनाने की तैयारियां कई महीने पूर्व से ही शुरू हो जाती है. इस मौके पर लोग अपने घरों को साफ़ सुथरा बनाते है सभी अपने लिए अपनी पत्नी व बच्चों के लिए बाजार से नई ड्रेस मंगाते हैं. क्रिसमस का सेलिब्रेशन 24 दिसम्बर की मध्यरात्रि से ही शुरू हो जाता है, क्योंकि जीसस का जन्म भी आधी रात को हुआ था.
इस अवसर पर न सिर्फ ईसाई समुदाय के लोग बल्कि सभी धर्मों के लोग मोमबत्तियां जलाते है तथा माँ मरियम तथा ईसा मसीह की शिक्षाओं को याद करते हैं. पाठ पूजा व प्रार्थना के बाद सभी अनुयायियों द्वारा कैरोल को सभी के साथ मिलकर गीत गाया जाता हैं.
क्रिसमस के दिन लोग एक दूसरे के घर जाते है उन्हें जीसस के अवतरण दिवस तथा अगामी नववर्ष की शुभकामनाएं पेश करते हैं. इस उत्सव पर लोग कई तरह के गीत गाते हैं जिगल बेल्स जिगल बेल्स, जिंगल आल द वे ये कुछ क्रिसमस के गीत हैं.
क्रिसमस मनाने का तरीका (Importance Of Christmas festival And Way Of Celebration Short Paragraph)
कई मायनों में क्रिसमस बेहद ख़ास है, इसलिए यह मेरा प्रिय त्योहार है. इस अवसर पर वाईट और रेड ड्रेस को पहने सफ़ेद बाल और सफ़ेद दाड़ी वाले सांता क्लोज़ के बिना यह उत्सव अपूर्ण ही लगता हैं. रेनडियर पर सवारी करने वाले इन सांता क्लाज की हर बालक को बड़ा इन्तजार रहता है.
पुरानी परम्परा एवं रीती रिवाजों के अनुसार आज भी बड़े बूढ़े लोग इस तरह के सांता क्लोज के साथ आते हैं. अपने प्यारे प्यारे बच्चों को हाथों गिफ्ट उपहार खाने की चीजे देने के साथ साथ उन्हें हैप्पी न्यू ईयर विश करते हैं. इसी कारन आज भी लोग इस तरह के रीती रिवाजों के जरिये बच्चों का मन मोह लेते हैं.
क्रिसमस ट्री क्या होता है इसका महत्व (essay on christmas tree)
यह परम्परा रही है कि क्रिसमस के पेड़ के बिना, इस पर्व को अपूर्ण माना जाता हैं. इस मौके पर अपने घर के आंगन में एक क्रिसमस पेड़ को लगाकर उन्हें भांति भांति के फूलों से सजाने की परम्परा हैं. इस दिन सभी पूजा स्थलों को खूब सजाया जाता हैं. क्रिसमस ट्री को सजाने के पीछे मान्यता यह है कि ऐसा करने से सुख सम्रद्धि का आगमन होता हैं.
क्रिसमस के अवसर पर ईसा मसीह की झाकियां निकाली जाती हैं, लोग अपनी अपनी पसंद के अनुसार कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. सभी लोग अपने पड़ोसियों व रिश्तेदारों के घर जाते हैं. सभी को केक, गिफ्ट तथा मीठा मुहं करवाकर आने वाले न्यू ईयर की बधाईयाँ देते हैं.
25 दिसम्बर के बाद 1 जनवरी तक पूरा सप्ताह लोग इस पर्व को मनाने में व्यस्त रहते हैं. ये नयें वर्ष के स्वागत के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, अच्छे अच्छे वस्त्र धारण करते हैं. एक उत्सव के रूप में सभी लोग सामूहिक गान एवं नृत्यों का आनन्द लेते हैं.
भारत में क्रिसमस का त्योहार (christmas festival in india)
यदि भारत के क्रिसमस के पर्व का असली रूप देखना हो तो गोवा में इसका नजारा सबसे अलग ही हैं. भारत के सभी शहरों में क्रिसमस का उत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं. होली, दिवाली, ईद की तरह क्रिसमस के दिन भी देशभर में राजकीय अवकाश रहता हैं.
इस मौके पर शहरों में अच्छी चहल पहल देखी जा सकती हैं. भारत में तकरीबन 4 करोड़ ईसाई रहते हैं. मगर यह पर्व भले ही ईसाई धर्म का होगा, मगर सभी धर्मों के लोग बड़े ही सद्भाव के साथ इसे मिलकर मनाते हैं. क्रिसमस की प्रार्थना में सभी लोग शामिल होते हैं.
जिस तरह हरेक पर्व कुछ न कुछ शिक्षाएं एवं संदेश देता है वैसे ही क्रिसमस भी हमें आपसी प्रेम, भाईचारे तथा परउपकार की सीख देता हैं. जिस तरह गॉड ईसा मसीह ने अपने छोटे से जीवन काल में मानवता के लिए, आपसी सोहार्द के लिए कार्य किये वह हम सभी के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं.
विश्व में सुख शान्ति तथा सम्रद्धि की स्थापना में इस तरह के पर्वों का बड़ा महत्व हैं. ईसा ने कहा था गॉड अपने सभी संतानों से बेशुमार प्यार करता है इसलिए हमें भी जीवन में प्यार के जरिये ईश्वर के साथ सम्बन्ध बनाने चाहिए. गॉड ने कहा था गरीबों, पीड़ितों, दीन हीनों की सहायता करना ही ईश्वर की सहायता करना हैं. क्रिसमस का पर्व हमें जीसस के विचारों को अपने जीवन में अपनाने का संदेश देता हैं.
क्रिसमस पर 10 लाइन
मेरा प्रिय त्योहार क्रिसमस पर निबंध
ईसाई धर्म के संस्थापक इतिहास एवं मुख्य सिद्धांत
त्योहारों का देश – DESH BHAKTI KAVITA IN HINDI
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sanjaynirala76 · 6 years
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ऐ जिन्दगी , मैं भी , हाड़ मांस का लोथड़ा , निकल पड़ा , सफर पर , हूँ अनभिज्ञ अनजाना , चाह कुछ मेरी भी , अब है तेरी मर्जी , फिर कुछ कहता हूं , तूं गुन , मैं गुनगुनाता हूँ , ऐ जिन्दगी , सफर में मेरी , चाह है , तूं हमसफ़र बनो , ख्वाब बस यही एक , हर नजारा , तुम हर नज़र बनो , जहां हो वफ़ा , हर शाम में , जहां जमें , हर जाम में , जहां चांदनी , हर रात में , उम्मीद की , हर सहर बनो , माना मैं नहीं , काबिल तेरे बना , तूं फलक , मैं गर्दिश भला , तूं पूनम , मैं रात अमावस , नहीं वो , मेरे वास्ते , पर चाह मेरी , तूं हमसफ़र बनो , लिखने में वजन , नहीं कोई मेरे , गीत भी कोई , साज पर चढ़ा नहीं , ना लिख सका , कोई ग़ज़ल , पर गुनगुना सकूं , तुम वो बहर बनो , पतवार नहीं , कोई मेरे , मांझी भी नहीं , कोई मेरा , तन्हा खड़ा , मैं मझधार में , हिचकोले खाता , कश्ती भी , बीच भंवर में , कश्ती को , जो दे किनारा , तुम वो , लहर बनो , ऐ जिन्दगी , सफर में मेरी , चाह है , तूं हमसफ़र बनो ।🤔 धन्यवाद 🙏 _____संजय निराला ✍ (at Nmdc Steel Plant Nagarnar) https://www.instagram.com/p/BqWdU7oneRu/?utm_source=ig_tumblr_share&igshid=idefoh4zvkfm
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pinkbonkweaselkid · 4 years
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शक के घेरे में आए संदीप सिंह बोले- सात साल में सुशांत को कभी ड्रग्‍स लेते और डिप्रेशन में नहीं देखा, मैं अपने दुबई कनेक्‍शन की जांच को भी तैयार
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से ही उनके दोस्‍त संदीप सिंह सवालों के घेरे में हैं। उन पर अभिनेता की मौत के बाद पुलिस को थम्स अप दिखाने और एंबुलेंस के ड्राइवर से कई बार बात करने समेत विदेश भागने की तैयारी करने तक के आरोप लगे। भास्कर से हुई बातचीत में उन्होंने आरोपों पर अपना पक्ष रखा...
सुशांत से कब से संपर्क में नहीं रह पा रहे थे आप?
मैं और सुशांत 2011 से एक-दूसरे को जानते हैं। 2018 तक हम लोग रेगुलर टच में भी रहे। वो सब मैंने इंस्‍टाग्राम पर डाला है। मगर अब मेरी इज्‍जत पर बात आ रही थी तो मुझे सर्टिफिकेट दिखाना पड़ा। चैट सार्वजनिक किए। कोई भी उनको जानने वाला 14 जून को तो नहीं आया। गलती थी कि उस दिन अकेली मीतू दीदी और सुशांत के परिवार वालों की मदद की। हम लोग बिहारी हैं साहब। अनजान की अर्थी को भी कांधा दे देते हैं।
बहरहाल, 2019 में मैं पीएम मोदी फिल्‍म बना रहा था। सुशांत 'दिल बेचारा' और 'छिछोरे' में व्‍यस्‍त रहे। लिहाजा हम संपर्क में नहीं रह सके थे। यह लाजिमी है। काम के चलते तो हम अपने स्‍कूल और कॉलेज फ्रेंड्स के साथ भी टच में नहीं रह पाते हैं। इंसानियत का कोई वजूद नहीं है। मुझे लगा कि जैसे मैं उनके पास जा रहा हूं, वैसे ही इंडस्‍ट्री भी खड़ी होगी।
आप लोग रेगुलर टच में नहीं थे तो उनके निधन की जानकारी कैसे मिली?
मेरे पड़ोसी हैं संजीत कुमार। मैं उस दिन अपनी बिल्डिंग में संजय निरूपम जी को पिक करके आ रहा था। हम तीनों लंच पर मिल रहे थे। उस दौरान मैंने अपने दोस्‍त को क्रॉस चेक करने को कहा कि क्‍या वाकई सुशांत नहीं रहे। टीवी पर न्‍यूज आने के बाद महेश शेट्टी को कॉल किया और सुशांत के घर निकल पड़े।
वहां पहुंचने पर पता चला या सिद्धार्थ पिठानी से बात हो सकी कि बॉडी को उतारा किसने था?
मैं तो किसी को जानता नहीं था, जो पूछूं। साथ ही वहां पुलिस अधिकारी इतने थे कि हम किसी से क्‍या बातचीत करते। हम कायर तो हैं नहीं कि वो देख वहां से भाग जाते। मीतू दीदी को अकेला छोड़ देते। पिछले 50 दिनों में मेरे रिलेटिव, दोस्‍त लगातार फोन कर बता रहे हैं कि मैं सबसे बड़ा बेवकूफ हूं, जो इस सिचुएशन में वहां रहा। इंडस्‍ट्री के बाकी लोग तो अपनी इमेज बचाने के चक्‍कर में वहां पहुंचे तक नहीं। तूने आ बैल मुझे मार वाली सिचुएशन पैदा कर ली।
कूपर हॉस्पिटल में एक चश्‍मदीद ने कहा कि सुशांत की टांगें टूटी हुईं थीं। गले पर सुइयां चुभोने के निशान थे?
उस इंसान को सबसे पहले पुलिस और सीबीआई को जाकर ये सारी बातें बोलनी चाहिए। मीडिया में पब्लिसिटी गेन नहीं करनी चाहिए। उसे महाराष्‍ट्र सरकार से लेकर सबको एक लेटर लिखना चाहिए इन सब चीजों के बारे में। बताए कि उसके पास सारी समस्‍याओं का हल है। ऐसा कुछ नहीं है।
आपने भी तो पूरी बॉडी देखी ही होगी?
मैंने सिर्फ चेहरा देखा था। वो भी अंतिम संस्‍कार के वक्‍त, जब चेहरे से कपड़ा हटाया जाता है। जब अंतिम समय में लकड़ी रखी जाती है और माला चढ़ाई जाती है।
मुंबई पुलिस, सीबीआई ने आप से क्‍या पूछा?
जो सवालात आप पूछ रहे हैं, वही थे। उन्‍होंने मीतू दीदी को भी बुलाया। जो लोग उस वक्‍त पर मौजूद थे, सबको बुला रहे हैं। जांच एजेंसियों ने सिर्फ मुझसे ये पूछा कि मैं उन्‍हें 15 और 16 जून का सीक्‍वेंस बता दूं। क्‍या-क्‍या हुआ?
दोनों के सवाल कॉमन थे या कुछ अलग भी रहे?
मुंबई पुलिस के अपने सवाल थे। सीबीआई के अपने सवाल हैं। सब एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। उन सवालों को पब्लिक तो नहीं कर सकते।
आप सुशांत के दोस्त हैं तो सच बताइये कि क्या वो वाकई डिप्रेशन में था या नशे की लत थी?
सात सालों के सफर में कभी ड्रग्‍स नहीं लिया। कभी डिप्रेशन में नहीं रहे। हमेशा मौज-मस्‍ती करते रहे। सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का था। कभी मेरे सामने डिप्रेशन में नहीं दिखा।
सुशांत की बहनों के भी आप करीबी रहे हैं, क्या आपको लगता है कि बहनों ने सुशांत की केयर नहीं की और इसी कारण रिया का दखल बढ़ गया?
मैं यह नहीं जानता, क्‍योंकि सुशांत के परिवार से मैं कभी मिला नहीं। परिवार ने भी कहा ही है कि वो मुझे नहीं जानते थे उससे पहले। यह सच है। परिवार से भी उस मोड़ पर मिलना हुआ, जब अंतिम संस्‍कार हो रहा था। वो शादी या जन्‍मदिन का फंक्‍शन तो था नहीं, जो एक-दूसरों को प्रॉपरली इंट्रोड्यूस करते। आशीर्वाद भी नहीं। बातचीत भी नहीं। सब घर चले गए।
सुशांत की मौत वाले दिन उनकी बड़ी बहन मीतू के साथ संदीप सिंह।
जांच एजेंसियों की जांच में कभी सवाल उठे कि आखिर बॉडी किसने उतारी? उसके ऐसा करने से बॉडी पर से निशान मिटे होंगे?
यह तो वो इंसान ही जाने, जिसने बॉडी उतारी हो। मगर मुंबई पुलिस, बिहार पुलिस, एनसीबी, ईडी, सीबीआई जांच कर रहे हैं। पब्लिक और मीडिया को जरा इंतजार करना चाहिए। देश की न्‍याय व्‍यवस्था पर भरोसा करना चाहिए। जांच जोर-शोर से चालू है। हकीकत सामने आ जाएगी।
क्या दिशा और सुशांत की मौत में कोई कनेक्शन हो सकता है?
ये बात मैं कैसे कह सकता हूं? यही सवाल तो देश के सवाल हैं। यह सवाल उस इंसान से पूछा जा रहा है, जो फैमिली के साथ सपोर्ट में खड़ा था। अंतिम संस्‍कार में, डेथ सर्टिफिकेट निकालने में। यही तो जांच चल रही है तीन महीनों से कि कोई कनेक्‍शन था या नहीं।
आप कह रहे हैं कि एम्बुलेंस के ड्राइवर का पेमेंट आपने किया था? लेकिन एंबुलेंस के मालिक ने कहा था कि पेमेंट सैमुअल मिरांडा ने किया था?
उस दिन मालिक नहीं, ड्राइवर अक्षय आया था। उसने एबीपी पर साफ-साफ बोला कि उसने संदीप सिंह को चार बार फोन इसलिए किया कि उसका आठ हजार का बिल था। फिर मैंने वो नंबर दीपक साहू को दिया। दीपक साहू ने 22 तारीख को कैश पेमेंट कर दिया। इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया किसी और का इंटरव्‍यू करती रही। नेगेटिव इंटरव्‍यू से टीआरपी ज्‍यादा मिलती है।
सुरजीत सिंह राठौड़ का कहना है कि आपने उन्हें कूपर हॉस्पिटल से बाहर निकलवाया था? उसने आपको मास्टरमाइंड भी कहा?
वो कभी खुद का करणी सेना का मेंबर कहते हैं। कभी एनसीपी का बताते हैं। अब सुनने में आ रहा है कि बतौर प्रोड्यूसर उन्‍होंने सुशांत पर फिल्‍म अनाउंस कर दी है। पहले वो अपनी सफाई दें। कूपर हॉस्पिटल में पुलिस ने मुझसे पूछा था कि यह इंसान कौन है? क्‍या मैं जानता हूं? उस पर मैंने ना में जवाब दिया। तब उनसे साइड होने को कहा गया। उसे वो अपने तरीके से बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। वो सुशांत पर फिल्‍म कैसे बना रहे हैं, वो तो उन्‍हें पता होगा ही।
अब जो हालात हैं, आप का दिल क्‍या कहता है, यह मर्डर है या सुसाइड?
यह सवाल मुझसे क्‍यों पूछा जा रहा है, जो मैं खुद जानना चाहता हूं। पूरी जनता और परिवार जानना चाहता है। अब यह सच्‍चाई छिपने वाली नहीं है। जो लोग मेरी दोस्‍ती और इंसानियत को गाली दे रहे हैं, बिना किसी सबूत के, उन्‍हें पछतावा होगा।
रिया की क्या गलती रही? जैसा कि रिया ने कहा कि प्यार ही गुनाह हो गया, आप ���्या मानते हैं?
मुझे यह तो नहीं मालूम। मैं अपनी ही इज्‍जत बचा लूं, वही काफी है। उंगली तो संजय लीला भंसाली, सलमान खान, करण जौहर और सूरज पंचोली तक पर उठ रही है।
सुशांत की मौत वाले दिन बहन के साथ आप थे, उस दिन के बारे में कुछ बताएं?
डेथ सर्टिफिकेट को लेकर परिवार को जो मदद चाहिए थी, वो मैंने की। बाद में भी संपर्क में रहा। पर उसी काम को लेकर।
बीच में खबर आई थी कि आप मुंबई छोड़कर विदेश जाने की तैयारी में हैं। आपके पीआर के वीजा एजेंट्स से संपर्क की चर्चा भी थी?
मैं तो यही हूं। जांच एजेंसियों को सहयोग भी कर रहा हूं।
रिया कह रही हैं कि वे सुशांत को बहुत सालों से जानती थीं, आप भी कई सालों से सुशांत के दोस्त रहे, क्या कभी उन्होंने रिया का जिक्र किया?
सुशांत ने कभी भी जिंदगी में साल 2018 तक रिया का जिक्र नहीं किया।
कभी सुशांत ने वर्चुअल रिएलिटी और ऑर्गेनिक खेती वाले प्रोग्राम में अपने इनवेस्‍टमेंट को लेकर बात की थी?
आप मेरे चैट्स देख लें, जो पब्लिक डोमेन में हैं अब। हमारी बातें घूमने-फिरने, गीत-संगीत पर होती थीं।
कांग्रेस ने आपके बीजेपी से कनेक्शन पर सवाल उठाए थे, जबकि खुद भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी आपके दुबई कनेक्शन की बात करते हैं?
सुब्रह्मण्यम स्वामी जिम्‍मेदार और अनुभवी नेता हैं। उन्‍होंने लिखा कि संदीप सिंह के दुबई आने-जाने की जांच होनी चाहिए। इसमें उन्‍होंने क्‍या गलत कहा। मैं जांच को तैयार हूं। जैसे एक आम आदमी दुबई आता-जाता है, वहां वीजा का ज्‍यादा प्रॉब्‍लम नहीं है। वहां इंडिया जैसा माहौल ही फील होता है। उसमें क्‍या गलत है।
रिया बार-बार कह रही हैं कि सुशांत ड्रग्स लेते थे, क्या आपके सामने कभी ऐसी कोई बात आई?
देखिए मैं रिया को नहीं जानता। वो भी मुझे नहीं जानती, जैसा उन्‍होंने कहा भी है। मेरे पास उनका नंबर भी नहीं है। उनके मुताबिक जिस तरह सुशांत ने कभी मेरा जिक्र उनसे नहीं किया, ठीक उसी तरह सुशांत ने भी मेरे सामने कभी रिया का जिक्र नहीं किया। तो रिया क्‍या बोलना चाहती हैं, वो उनका ईमान जाने। उनसे पूछताछ चालू है। मुझ पर जो आरोप लगे हैं, उससे हिला हुआ हूं। पिछले 60 दिनों से मेरी मम्‍मी, मेरी बहन मेरा परिवार ठीक से रह नहीं पा रहा है।
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संदीप के मुताबिक वो और सुशांत 2011 से एक-दूसरे को जानते थे और 2018 तक रेगुलर टच में भी रहे थे।
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