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#महिलाओं के लिए कौन सी योजना चल रही है?
sidhimedia24 · 1 year
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Home / breaking / news  मध्य प्रदेश के महिलाओं को हर साल रुपये 12000 दिए जाएंगे Also Read चाकघाट टोल प्लाजा बना लूट का अड्डा 80 की जगह 160 वसूली लाडली बहना योजना  Sidhi Media News  मध्य प्रदेश के महिलाओं को हर साल रुपये 12000 दिए जाएंगे। इसके साथ ही, लाडली बहना योजना के नाम से यह योजना लागू की जाएगी। शिवराज सरकार द्वारा जारी इस योजना को महिलाओं को समर्थित बनाने का प्रयास है। इसके अंतिम दिन पर…
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allgyan · 3 years
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शहीदे आजम भगत सिंह:एक क्रांतिकारी के आखिर 24 घंटे -
शहीदे आजम भगत सिंह और 23 मार्च 1931 -
शहीदे आजम भगत सिंह एक ऐसा नाम जो बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।अब के समय के बच्चे जो उस उम्र में कुछ सोच -समझ नहीं पाते उस उम्र भगत सिंह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गये। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी। फर्क सिर्फ इतना सा था कि सुबह-सुबह जोर की आँधी आई थी। लेकिन जेल के कैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं।उन्होंने कारण नहीं बताया। उनके मुंह से सिर्फ ये निकला कि आदेश ऊपर से है।अभी कैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है,जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुजरा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया। कैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे। बरकत भगत सिंह की कोठरी में गया और वहाँ से उनका पेन और कंघा ले आया। सारे कैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो।आखिर में ड्रॉ निकाला गया।
भगत सिंह ने क्यों कहा -इन्कलाबियों को मरना ही होता है-
अब सब कैदी चुप हो चले थे। उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गुजरने वाले रास्ते पर लगी हुई थी। भगत सिंह और उनके साथी फाँसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरने वाले थे।एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज ऊँची कर उनसे पूछा था, "आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया। " भगत सिंह का जवाब था,"इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है,अदालत में अपील से नहीं।" वॉर्डेन चरत सिंह भगत सिंह के खैरख्वाह थे और अपनी तरफ से जो कुछ बन पड़ता था उनके लिए करते थे। उनकी वजह से ही लाहौर की द्वारकादास लाइब्रेरी से भगत सिंह के लिए किताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं।भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख की 'मिलिट्रिजम', लेनिन की 'लेफ्ट विंग कम्युनिजम' और अपटन सिनक्लेयर का उपन्यास 'द स्पाई' कुलबीर के जरिए भिजवा दें।
भगत सिंह अपने  जेल की कोठरी में शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे-
भगत सिंह जेल की कठिन जिंदगी के आदी हो चले थे। उनकी कोठरी नंबर 14 का फर्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी हुई थी। कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाँच फिट, दस इंच का शरीर बमुश्किल उसमें लेट पाए।भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। मेहता ने बाद में लिखा कि भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे।उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब 'रिवॉल्युशनरी लेनिन' लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हे किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज्यादा समय न बचा हो।मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे?भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, "सिर्फ दो संदेश... साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंकलाब जिदाबाद!" इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें,जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।
वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी गयी -
भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे। राजगुरु के अंतिम शब्द थे, "हम लोग जल्द मिलेंगे।" सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था।मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे। उनके मुंह से निकला, "क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे?" भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं।लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस पाया।
तीनों क्रांतिकारियों अंतिम क्षण -
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आजादी गीत गाने लगे- कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगें ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमाँ होगा।
फिर इन तीनों का एक-एक करके वजन लिया गया।सब के वजन बढ़ गए थे। इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो।
भगत सिंह बोले, "पूरी जिदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया। असल में मैंने कई बार गरीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है। अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है। इसलिए ये माफी मांगने आया है।" जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय, कैदियों ने दूर से आती कुछ पदचापें सुनीं।उनके साथ भारी बूटों के जमीन पर पड़ने की आवाजे भी आ रही थीं। साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।।।" सभी को अचानक जोर-जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे सुनाई देने लगे।फांसी का तख्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफी तंदुरुस्त। फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया गया था।भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख्ते से 'इंकलाब जिदाबाद' का नारा लगाएंगे।
भगत सिंह ने अपने माँ से किया वादा निभाया और फांसी के फंदे को चूमकर -इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया -
लाहौर जिला कांग्रेस के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंट्रल जेल से बिल्कुल लगा हुआ था। भगत सिंह ने इतनी जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाया कि उनकी आवाज सोंधी के घर तक सुनाई दी। उनकी आवाज सुनते ही जेल के दूसरे कैदी भी नारे लगाने लगे। तीनों युवा क���रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई।उनके हाथ और पैर बांध दिए गए। तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा? सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मार कर हटा दिया।काफी देर तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे।अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने उन्हें मृत घोषित किया।
क्यों मृतकों की पहचान  करने से एक अधिकारी ने मना किया -
एक जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हुआ कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया। एक जूनियर अफसर ने ये काम अंजाम दिया।पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संस्कार जेल के अंदर ही किया जाएगा, लेकिन फिर ये विचार त्यागना पड़ा जब अधिकारियों को आभास हुआ कि जेल से धुआँ उठते देख बाहर खड़ी भीड़ जेल पर हमला कर सकती है। इसलिए जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई।उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। पहले तय हुआ था कि उनका अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाएगा, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया।उनके पार्थिव शरीर को फिरोजपुर के पास सतलज के किनारे लाया गया। तब तक रात के 10 बज चुके थे। इस बीच उप पुलिस अधीक्षक कसूर सुदर्शन सिंह कसूर गाँव से एक पुजारी जगदीश अचरज को बुला लाए। अभी उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया।जैसे ही ब्रितानी सैनिकों ने लोगों को अपनी तरफ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ भागे। सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया।अगले दिन दोपहर के आसपास जिला मैजिस्ट्रेट के दस्तखत के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाए गए जिसमें बताया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया।इस खबर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और लोगों ने कहा कि इनका अंतिम संस्कार करना तो दूर, उन्हें पूरी तरह जलाया भी नहीं गया। जिला मैजिस्ट्रेट ने इसका खंडन किया लेकिन किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया।
वॉर्डेन चरत सिंह फूट-फूट कर रोने लगे -
इस तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोधस्वरूप अपनी बाहों पर काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाँ पहन रखी थी���। लगभग सब लोगों के हाथ में काले झंडे थे।लाहौर के मॉल से गुजरता हुआ जुलूस अनारकली बाजार के बीचोबीच रूका। अचानक पूरी भीड़ में उस समय सन्नाटा छा गया जब घोषणा की गई कि भगत सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हुए अवशेषों के साथ फिरोजपुर से वहाँ पहुंच गया है। जैसे ही तीन फूलों से ढ़के ताबूतों में उनके शव वहाँ पहुंचे, भीड़ भावुक हो गई। लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए।उधर, वॉर्डेन चरत सिंह सुस्त कदमों से अपने कमरे में पहुंचे और फूट-फूट कर रोने लगे। अपने 30 साल के करियर में उन्होंने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादुरी से गले नहीं लगाया था जितना भगत सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने।किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि16 साल बाद उनकी शहादत भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एक कारण साबित होगी और भारत की जमीन से सभी ब्रिटिश सैनिक हमेशा के लिए चले जाएंगे।
शहीद-ए-आजम का भगत सिंह नाम कैसे पड़ा -
भारत माँ के इस महान सपूत का नाम उनकी दादी के मुँह से निकले लफ्जों के आधार पर रखा गया था।जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह की जेल से रिहाई हुई थी। इस पर उनकी दादी जय कौर के मुँह से निकला 'ए मुंडा ते बड़ा भागाँवाला ए' (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्‍यशाली है)।शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र) यादविंदरसिंह संधु ने बताया कि दादी के मुँह से निकले इन अल्फाज के आधार पर घरवालों ने फैसला किया कि भागाँवाला (भाग्‍यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता होना चाहिए, लिहाजा उनका नाम भगतसिंह रख दिया गया।
शहीद-ए-आजम का नाम भगतसिंह रखे जाने के साथ ही नामकरण संस्कार के समय किए गए यज्ञ में उनके दादा सरदार अर्जुनसिंह ने यह संकल्प भी लिया कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर देंगे। भगतसिंह का परिवार आर्य समाजी था, इसलिए नामकरण के समय यज्ञ किया गया।यादविंदर ने बताया कि उन्होंने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि भगतसिंह बचपन से ही देशभक्ति और आजादी की बातें किया करते थे। यह गुण उन्हें विरासत में मिला था, क्योंकि उनके घर के सभी सदस्य उन दिनों आजादी की लड़ाई में शामिल थे।हमारा उद्देश्य हमेशा रहता है की अपने इतिहास के चुनिंदा घटनाओं से आपको अवगत कराते रहे है। हमारे आर्टिकल आपको अगर पसंद आते है तो हमे अपना समर्थन दे।
पूरा जानने के लिए -http://bit.ly/319PmN5
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duniyakelog · 4 years
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द बैचलर: हन्ना ब्राउन सॉब्स ओवर पीटर वेबर - लेकिन वह उसका 'तीसरा विकल्प' नहीं बनना चाहता
चेतावनी: इस पोस्ट में सोमवार के द प्रीमियर से बैचलर का स्पॉइलर है ।
आपका स्वागत है, बैचलर प्रशंसक।
सोमवार को पीटर वेबर के सीज़न का तीन घंटे का प्रीमियर शुरू हुआ, वेस्टलेक विलेज, कैलिफ़ोर्निया से आकर्षक पायलट - बैचलर हवेली से कुछ ही मिनटों की दूरी पर! - उन्होंने जोर देकर कहा कि वह हेंथ ब्राउन के साथ द बैचलरेट पर अपने रिश्ते के बाद एक नई शुरुआत के लिए तैयार हैं ।
"मैं बहुत उत्साहित हूँ। मुझे नहीं पता कि क्या आ रहा है, लेकिन मुझे पता है कि मेरा जीवन कभी भी एक जैसा नहीं होगा, ”पीटर, 28 ने कहा,“ भले ही मैं हन्नाह के साथ प्यार में था और रिश्ता काम नहीं करता था, मैं बहुत सोच रहा हूँ मेरे साथ रिश्ता आगे बढ़ रहा है। ”
हम चुनिंदा 30 प्रतियोगियों को उनके दिल की बात बताने के लिए पेश किए गए थे । शिकागो के एक 27 वर्षीय वकील केली एक स्टैंडआउट थे। जैसा कि यह पता चला है, केली और पीटर वास्तव में कैलिफोर्निया में एक होटल लॉबी में, संयोग से पहले मिले थे। वह एक दोस्त की शादी के लिए वहाँ गया था और वह अपने 10 साल के हाई स्कूल रीयूनियन के लिए वहाँ गया था।
"यह मुश्किल है कि उस स्थिति को न देखें और सोचें कि मेरे लिए एक प्रमुख संकेत नहीं भेजा जा रहा था, जैसे, 'अरे, आपको वास्तव में ऐसा करना चाहिए," केली ने कहा।
रात एक जल्द ही चल रही थी, और हवेली के रास्ते में महिलाओं के पहले बैच के साथ, मेजबान क्रिस हैरिसन ने पीटर से पूछा कि एपिसोड के अंत तक मिलियन-डॉलर का प्रश्न क्या बन जाएगा: "क्या आप हन्ना के ऊपर हैं?"
"मैं हूँ," पीटर ने कहा। "मैं आज रात यहाँ नहीं होता अगर मैं अपने पीछे रखने और आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं होता।"
वहाँ से प्रवेश द्वार शुरू हुए, जिनमें से कुछ महिलाओं ने पहली रात को भारी भीड़ में बाहर खड़े होने की उम्मीद में सामान्य हरकतों का प्रदर्शन किया। एक सामान्य संदर्भ पीटर की बहुत टालमटोल वाली रात थी, जिसमें हेंथ ऑन द बैचलरेट था। एक प्रतियोगी, काइली ने उसे कंडोम का एक पैकेट पेश किया और दूसरा, डिआंड्रा ने अपनी पीठ पर एक पवनचक्की दिखाते हुए पूछा कि क्या वह "पांच राउंड के लिए तैयार है।" (यदि आप इसे याद नहीं करते हैं, तो पीटर और हन्ना चार सेक्स करते हैं। बार काल्पनिक सुइट में अपने रात के दौरान।) शायद सभी के boldest प्रवेश द्वार सवाना, जो सड़क में पीटर आंखों पर पट्टी और उस पर रात का पहला चुम्बन कुछ ही मिनटों के बाद वे मिले का था।
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लेकिन जब हन्ना ने खुद एक लिमो से बाहर कदम रखा, तो इससे बड़ी कोई हलचल नहीं हुई। दूसरे ने उसे देखा, हवेली अराजकता में उतरी। पीटर हैरान था, लेकिन वास्तव में उसे देखकर प्रसन्न भी हुआ।
हर किसी के लिए बहुत राहत की बात है, हन्ना शांति में आया, बस पायलट पंखों को वापस करना चाहता था कि पीटर ने उसे द बैचलरेट पर उपहार दिया था।
"जब मैंने सुना कि आप बैचलर बनने जा रहे हैं, तो मेरे पास मिश्रित भावनाएं थीं," उसने उसे बताया। “लेकिन जब मैं खड़ा था कि आप कहाँ हैं, तो आपने कहा कि आप अपने सह-पायलट को ढूंढना चाहते हैं और आपने मुझे कुछ दिया है। और मैं चाहता हूं कि आप उस व्यक्ति को खोजें और इसलिए मैं आपके लिए इन्हें वापस लाया। आप महान होने जा रहे हैं। ”
अंदर, पीटर ने बाकी महिलाओं को आश्वस्त करने के लिए एक बिंदु बनाया।
“मुझे पता है कि आप में से कुछ ने हन्नाह को देखा होगा, वह बस से रुक गई थी। और मुझे उससे प्यार हो गया, मैंने सच में किया, ”उसने स्वीकार किया। "लेकिन उसने मुझे अपने पंख वापस दे दिए, यही मैंने उसे पहली रात दी थी। यह वास्तव में अच्छा था और मैंने इसकी सराहना की। अगर कुछ भी हो, तो आज रात को देखने से मुझे आगे बढ़ने की उम्मीद है और यह फिर से हो सकता है और मुझे प्यार मिल सकता है। ”
कॉकटेल पार्टी शुरू, शैम्पेन, अजीब टकराव और पहले चुंबन के एक कलंक। "मैंने कई लड़कियों को चूमने किए जाने की उम्मीद नहीं थी!" पीटर एक संकोची मुस्कराहट के साथ कहा। "लेकिन यह सिर्फ तरह का हुआ।"
वह विशेष रूप से केली के लिए आकर्षित लग रहा था, स्वीकार कर रहा था कि वह उम्मीद कर रही थी कि वह शो में आएगी। लेकिन वह सबसे अधिक हन्ना एन द्वारा लिया गया था, जिसने पीटर के रूप में पहली छाप जीती, "मुझे लगता है कि मेरे जीवन में दो हन्नाह के लिए जगह है।"
फिर पहला गुलाब समारोह आया, जहां आठ महिलाओं - एवोनियल, यूनिस, जेड, जेन्ना, कैटरीना, काइली, मौरिसा और मेगन को पैकिंग के लिए भेजा गया।
अगली सुबह, हन्ना एन, केली, डिंड्रा, टैमी, कर्टनी, शियान, विक्टोरिया पी।, जैस्मीन और विक्टोरिया एफ। पहले समूह की तारीख पर आगे बढ़े। एविएशन में क्रैश कोर्स के बाद, उन्हें टैरमैक पर एक बाधा कोर्स के साथ परीक्षण के लिए रखा गया था। केली ने जीत हासिल की (भले ही वह अंतिम दौर में धोखा दिया), जिसका मतलब था कि वह पीटर के साथ तट के नीचे सूर्यास्त की उड़ान ले रही थी।
ग्रुप डेट का शाम वाला हिस्सा वेस्टलेक विलेज के फोर सीजन्स में हुआ, उसी होटल में जहां केली और पीटर मिले थे - इसलिए जब वह घर से गुलाब लेने गई तो उस दिन कोई आश्चर्य नहीं हुआ जब एक भाप से बना घंटे के आदमी के साथ सत्र।
इसके बाद की पहली एक-एक तारीख थी, जो ऑबर्न, अलबामा के 23 वर्षीय पालक माता-पिता भर्ती कराने वाले मैडिसन के पास गई। (और हाँ, एक और अलबामा लड़की का संयोग पीटर पर नहीं खोया गया था, जिसने मजाक में कहा, "मुझे दक्षिणी लड़कियों के लिए एक चीज़ मिल गई है, मुझे लगता है!"
थोड़ा मैडिसन को पता था, वह अभी-अभी उतरी थी कि हम सभी मौसमों में कौन सी सबसे खास तारीख देखेंगे: पीटर उसे अपने माता-पिता के घर ले आया, जहाँ उसने परिवार और दोस्तों के एक अंतरंग समूह के सामने अपने नए सिरे से विवाह समारोह आयोजित किया ।
उन्होंने कहा, "आज का दिन मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत खास दिन था।" "मैडिसन के साथ साझा करने में सक्षम होने के नाते, मुझे आशा है कि वह उसे दिखाता है जहां से मुझे मेरी प्रेरणा मिलती है।"
मैडिसन पीटर की माँ, बारबरा के साथ तैरते हुए मिला - और दिन के अंत में गुलदस्ता भी पकड़ा। "मुझे लगता है कि यहां सभी का स्वागत है," उसने कहा। "यह मेरे जीवन में अब तक की सबसे अविश्वसनीय पहली तारीख थी।"
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पीटर एक ही पृष्ठ पर था, मैडिसन को एक गुलाब देने के बाद जो वे दोनों सहमत थे वह एक "सही पहली तारीख थी।"
"मैं इतनी जल्दी भावनाओं की उम्मीद नहीं कर रहा था," उसने उससे कहा। "यह डरावना है, क्योंकि यह वास्तव में कठिन होने जा रहा है, आपको साझा करने के लिए।"
"काश, मैं आपको बता सकता कि यह आसान हो रहा है, लेकिन यह शायद नहीं है," उन्होंने स्वीकार किया। "लेकिन मैं आपके दिल को पहले से ही देख सकता हूं और आपकी रक्षा के लिए जो कुछ भी मैं कर सकता हूं वह करूंगा और आपके लिए रक्षा करूंगा।"
दोनों ने टेनिल आर्ट्स द्वारा एक लाइव प्रदर्शन के साथ शाम को समाप्त किया - और पीटर के परिवार को आश्चर्यचकित किया गया, जिन्होंने रात के बाकी हिस्सों में नृत्य करने के लिए दिखाया।
अगली सुबह, लॉरेन, सिडनी, पायटन, नताशा, एलेक्सा, केल्सी, मैककेना, अलायाह और सवाना दूसरे समूह की तारीख पर निकलीं। पीटर ने चिढ़ाया कि उनके "बहुत अच्छे दोस्त" ने इसकी योजना बनाई थी, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं। आश्चर्य, आश्चर्य, "दोस्त" हन्ना ब्राउन निकला।
हन्नाह ने एक व्यक्ति के बारे में एक कहानी के साथ बातें कीं, जो उसने एक बार दिनांकित किया था, और यह पता लगाने के लिए एक रॉकेट वैज्ञानिक नहीं लिया था कि वह पीटर और उनके साथ अब-नहीं-निजी रात एक साथ फंतासी सूट में बात कर रही थी।
"मैं सोच रहा था, क्या वह सिर्फ एक अच्छा लड़का है?" उसने कहा। “और फिर उसने मुझे गलत साबित कर दिया। और फिर उसने मुझे फिर से गलत साबित कर दिया, और फिर, और फिर सुबह। हाँ, चार एफ-इंग बार। ”
उन्होंने कहा, "आप जिस बारे में और आपकी कामुकता के बारे में अधिक आश्वस्त हैं, आप एक रिश्ते में जितना अधिक आश्वस्त हो सकते हैं," उसने प्रतियोगियों को बताया। “तो आप सभी सेक्स के बारे में एक व्यक्तिगत कहानी साझा करने जा रहे हैं! यह एक यादगार समय या बस एक कल्पना हो सकती है जो आपके पास हो सकती है - और आप लाइव दर्शकों के सामने ऐसा करने जा रहे हैं। ”
जैसे ही महिलाएं अपनी कहानियां तैयार करने के लिए रवाना हुईं, हन्नाह ने एक निर्माता के रूप में स्वीकार किया, स्वीकार किया कि वह अभी भी पीटर की देखभाल कर रही है, लेकिन यह नहीं जानती कि यह "काम" होगा। बहुत जल्द, वह अकेले बैकस्टेज रो रही थी, और पीटर उस पर जाँच करने के लिए उठी।
"यह बहुत अजीब है," उसने स्वीकार किया, सोफे पर उसके बगल में बैठ गया।
"मुझे पता है। मुझे बहुत खेद है, ”हन्ना ने कहा। "मैं वास्तव में आपके लिए खुश हूं, लेकिन यह अभी बहुत कुछ है।"
यह पीटर के लिए भी बहुत कुछ था। उन्होंने स्वीकार किया कि जब उन्होंने हन्ना को रात एक बजे हवेली में देखा था, तो वह "इस तरह की उम्मीद कर रहा था कि आप कुछ छोड़ नहीं रहे थे, लेकिन आप अंदर आ रहे थे।"
"लेकिन मुझे इसकी ज़रूरत नहीं थी, और मैंने आपको पंख वापस लाने की सराहना की," उसने उसे बताया। "आपको ऐसा नहीं करना था। मैंने आपको वो दिया, और कोई फर्क नहीं पड़ता, आप हमेशा मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं। "
यह बातचीत द बैचलरेट के हन्ना के मौसम के रूप में बदल गई, जिसमें भूतपूर्व रानी ने उसे "दिल बहुत उलझन में था" स्वीकार किया था। (शो में, उसने अपने अंतिम पिक जेद व्याट से शादी का प्रस्ताव स्वीकार किया, ��ेकिन सीखने के बाद सगाई बंद कर दी। कथित तौर पर उनकी एक प्रेमिका थी जब वह शो में गए थे। टायलर कैमरन दूसरे और पीटर तीसरे स्थान पर आए।
"मुझे नहीं पता कि मैंने क्या किया है," हन्ना ने पीटर से बोला, काजल उसके चेहरे को देख रही थी। "मुझे नहीं पता कि मैं क्या कर रहा था।"
जैद को डंप करने के बाद, हन्ना ने जुलाई में अपने सीज़न के लिए फ़ाइनल रोज़ के निष्कर्ष के बाद टायलर को लाइव के लिए कहा। यह काम नहीं किया, क्योंकि उसने जल्द ही गिगी हदीद को डेटिंग करना शुरू कर दिया था - लेकिन सोमवार के एपिसोड में, पीटर ने सोचा कि उसने उसके बजाय बाहर क्यों नहीं पूछा।
"आप जानते हैं कि आपने पिछले एपिसोड में टायलर से कैसे पूछा था? क्या उसने कभी मुझसे पूछा, या ...? "मैंने आपसे ऐसा नहीं पूछा है, और यह लंबे समय से मेरे दिमाग में है।"
"मैं सिर्फ आपके साथ बहुत ईमानदार रह रहा हूं - उस रात के अगले एपिसोड को देखना और फिर उस घटना को देखना, मेरे लिए, यही वह था," उन्होंने जारी रखा। “मैं किसी का तीसरा विकल्प नहीं बनना चाहता। तो यह सिर्फ कठिन था, क्योंकि मुझे पता चला कि आप 20 मिनट चले गए जहां से मैं रहता हूं। और यह सब सामान होता रहा। मैंने सोचा था कि मैं भ्रमित नहीं था, लेकिन अब मैं नहीं जानता। ”
"मैं अभी क्या कर रहा हूँ?" “मुझे नहीं पता कि मैं क्या कर रहा हूँ। आप क्या करेंगे - यह बहुत पागल है। अगर मैंने आपसे घर का हिस्सा बनने के लिए कहा तो आप क्या कहेंगे? "
हन्नाह, अभी भी रो रही है, उसने उसे सीधे जवाब नहीं दिया, बस कह रही है, "मेरा मतलब है, हो सकता है?" लेकिन पीटर धक्का देता रहा, यह जानने की मांग करता रहा कि क्या उसे अपने सीज़न पर घर भेजने पर पछतावा है।
"हाँ, पीटर," उसने जवाब दिया। "मैं हर समय यह सवाल करता हूं।"
"मेरा मतलब है, मैंने आपको बताया - मुझे इसमें कोई संदेह नहीं था कि यह आप और जेड थे। कि तुम मेरे परिवार से मिलने जा रहे हो, ”वह जारी रही। "मुझे नहीं लगता कि मैं जेड के बारे में अपना विचार बदलना चाहता था। यह आरामदायक था, यह वापस उसी चीज में गिर रहा था। लेकिन इस तरह, मैंने इस अनुभव से हर किसी का दिल और खुद को तोड़ दिया। ”
संबंधित वीडियो: टायलर कैमरन को स्नातक के लिए अनुपलब्ध होने का पछतावा नहीं है - 'उन्हें सही समय मिल गया है'
टायलर की स्थिति में वापस आते हुए, जब हन्ना ने उससे पूछा, तो पीटर ने कहा कि उसका "दिल डूब गया"। लेकिन हन्नाह ने कहा कि टायलर "पहुंच से बाहर" था, जबकि उसने पीटर से नहीं सुना था।
"आपने कुछ नहीं कहा," उसने उससे कहा। “मुझे नहीं पता था कि तुम कहाँ थे। मुझे पता था कि आप परेशान थे और उससे निपट रहे थे, इसलिए मैं आपके पास नहीं पहुंचा। और तुम मेरे पास नहीं पहुंचे। मेरा मतलब है, मुझे लगा कि आप बैचलर बनना चाहते हैं। ”
उस समय, न तो निश्चित था कि क्या कहना है।
"मुझे नहीं पता कि अभी क्या करना है," पीटर ने कहा। “मैं बहुत उलझन में हूँ और यह पहला सप्ताह है कि यह पूरी बात शुरू हो रही है। और मैं स्पष्ट रूप से 100 प्रतिशत नहीं हूं जहां मुझे लगा कि मैं था। "
"मैं मदद नहीं कर सकता कि मेरा दिल कैसा लगता है," उन्होंने एक निर्माता के लिए जारी रखा। "मैं उसे को देखें, और मैं सिर्फ उसे पर देख रोकने के लिए नहीं करना चाहते हैं, और मैं सिर्फ उसे चूमना चाहता हूँ और बस ... यह सब काम से बाहर किया है। और यह नहीं था, और मुझे पता है कि यह नहीं था। मुझे ऐसा झटका लगता है क्योंकि मेरे यहाँ लड़कियों का इतना ज़बरदस्त समूह है, किसी से मिलने की उम्मीद है जो उनके लिए भी यह काम करने के लिए वास्तव में तैयार थी। ”
बैचलर एबीसी पर सोमवार (8 बजे ईटी) प्रसारित करता है।
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allgyan · 3 years
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शहीदे आजम भगत सिंह और 23 मार्च 1931 -
शहीदे आजम भगत सिंह एक ऐसा नाम जो बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।अब के समय के बच्चे जो उस उम्र में कुछ सोच -समझ नहीं पाते उस उम्र भगत सिंह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गये। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी। फर्क सिर्फ इतना सा था कि सुबह-सुबह जोर की आँधी आई थी। लेकिन जेल के कैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं।उन्होंने कारण नहीं बताया। उनके मुंह से सिर्फ ये निकला कि आदेश ऊपर से है।अभी कैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है,जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुजरा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया। कैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे। बरकत भगत सिंह की कोठरी में गया और वहाँ से उनका पेन और कंघा ले आया। सारे कैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो।आखिर में ड्रॉ निकाला गया।
भगत सिंह ने क्यों कहा -इन्कलाबियों को मरना ही होता है-
अब सब कैदी चुप हो चले थे। उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गुजरने वाले रास्ते पर लगी हुई थी। भगत सिंह और उनके साथी फाँसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरने वाले थे।एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज ऊँची कर उनसे पूछा था, "आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया। " भगत सिंह का जवाब था,"इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है,अदालत में अपील से नहीं।" वॉर्डेन चरत सिंह भगत सिंह के खैरख्वाह थे और अपनी तरफ से जो कुछ बन पड़ता था उनके लिए करते थे। उनकी वजह से ही लाहौर की द्वारकादास लाइब्रेरी से भगत सिंह के लिए किताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं।भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख की 'मिलिट्रिजम', लेनिन की 'लेफ्ट विंग कम्युनिजम' और अपटन सिनक्लेयर का उपन्यास 'द स्पाई' कुलबीर के जरिए भिजवा दें।
भगत सिंह अपने  जेल की कोठरी में शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे-
भगत सिंह जेल की कठिन जिंदगी के आदी हो चले थे। उनकी कोठरी नंबर 14 का फर्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी हुई थी। कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाँच फिट, दस इंच का शरीर बमुश्किल उसमें लेट पाए।भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। मेहता ने बाद में लिखा कि भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे।उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब 'रिव��ल्युशनरी लेनिन' लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हे किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज्यादा समय न बचा हो।मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे?भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, "सिर्फ दो संदेश... साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंकलाब जिदाबाद!" इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें,जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।
वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी गयी -
भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे। राजगुरु के अंतिम शब्द थे, "हम लोग जल्द मिलेंगे।" सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था।मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे। उनके मुंह से निकला, "क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे?" भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं।लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस पाया।
तीनों क्रांतिकारियों अंतिम क्षण -
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आजादी गीत गाने लगे- कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगें ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमाँ होगा।
फिर इन तीनों का एक-एक करके वजन लिया गया।सब के वजन बढ़ गए थे। इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो।
भगत सिंह बोले, "पूरी जिदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया। असल में मैंने कई बार गरीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है। अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है। इसलिए ये माफी मांगने आया है।" जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय, कैदियों ने दूर से आती कुछ पदचापें सुनीं।उनके साथ भारी बूटों के जमीन पर पड़ने की आवाजे भी आ रही थीं। साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।।।" सभी को अचानक जोर-जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे सुनाई देने लगे।फांसी का तख्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफी तंदुरुस्त। फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया गया था।भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख्ते से 'इंकलाब जिदाबाद' का नारा लगाएंगे।
भगत सिंह ने अपने माँ से किया वादा निभाया और फांसी के फंदे को चूमकर -इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया -
लाहौर जिला कांग्रेस के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंट्रल जेल से बिल्कुल लगा हुआ था। भगत सिंह ने इतनी जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाया कि उनकी आवाज सोंधी के घर तक सुनाई दी। उनकी आवाज सुनते ही जेल के दूसरे कैदी भी नारे लगाने लगे। तीनों युवा क्रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई।उनके हाथ और पैर बांध दिए गए। तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा? सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मार कर हटा दिया।काफी देर तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे।अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने उन्हें मृत घोषित किया।
क्यों मृतकों की पहचान  करने से एक अधिकारी ने मना किया -
एक जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हुआ कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया। एक जूनियर अफसर ने ये काम अंजाम दिया।पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संस्कार जेल के अंदर ही किया जाएगा, लेकिन फिर ये विचार त्यागना पड़ा जब अधिकारियों को आभास हुआ कि जेल से धुआँ उठते देख बाहर खड़ी भीड़ जेल पर हमला कर सकती है। इसलिए जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई।उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। पहले तय हुआ था कि उनका अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाएगा, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया।उनके पार्थिव शरीर को फिरोजपुर के पास सतलज के किनारे लाया गया। तब तक रात के 10 बज चुके थे। इस बीच उप पुलिस अधीक्षक कसूर सुदर्शन सिंह कसूर गाँव से एक पुजारी जगदीश अचरज को बुला लाए। अभी उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया।जैसे ही ब्रितानी सैनिकों ने लोगों को अपनी तरफ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ भागे। सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया।अगले दिन दोपहर के आसपास जिला मैजिस्ट्रेट के दस्तखत के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाए गए जिसमें बताया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया।इस खबर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और लोगों ने कहा कि इनका अंतिम संस्कार करना तो दूर, उन्हें पूरी तरह जलाया भी नहीं गया। जिला मैजिस्ट्रेट ने इसका खंडन किया लेकिन किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया।
वॉर्डेन चरत सिंह फूट-फूट कर रोने लगे -
इस तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोधस्वरूप अपनी बाहों पर काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाँ पहन रखी थीं। लगभग सब लोगों के हाथ में काले झंडे थे।लाहौर के मॉल से गुजरता हुआ जुलूस अनारकली बाजार के बीचोबीच रूका। अचानक पूरी भीड़ में उस समय सन्नाटा छा गया जब घोषणा की गई कि भगत सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हुए अवशेषों के साथ फिरोजपुर से वहाँ पहुंच गया है। जैसे ही तीन फूलों से ढ़के ताबूतों में उनके शव वहाँ पहुंचे, भीड़ भावुक हो गई। लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए।उधर, वॉर्डेन चरत सिंह सुस्त कदमों से अपने कमरे में पहुंचे और फूट-फूट कर रोने लगे। अपने 30 साल के करियर में उन्होंने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादुरी से गले नहीं लगाया था जितना भगत सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने।किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि16 साल बाद उनकी शहादत भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एक कारण साबित होगी और भारत की जमीन से सभी ब्रिटिश सैनिक हमेशा के लिए चले जाएंगे।
शहीद-ए-आजम का भगत सिंह नाम कैसे पड़ा -
भारत माँ के इस महान सपूत का नाम उनकी दादी के मुँह से निकले लफ्जों के आधार पर रखा गया था।जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह की जेल से रिहाई हुई थी। इस पर उनकी दादी जय कौर के मुँह से निकला 'ए मुंडा ते बड़ा भागाँवाला ए' (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्‍यशाली है)।शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र) यादविंदरसिंह संधु ने बताया कि दादी के मुँह से निकले इन अल्फाज के आधार पर घरवालों ने फैसला किया कि भागाँवाला (भाग्‍यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता होना चाहिए, लिहाजा उनका नाम भगतसिंह रख दिया गया।
शहीद-ए-आजम का नाम भगतसिंह रखे जाने के साथ ही नामकरण संस्कार के समय किए गए यज्ञ में उनके दादा सरदार अर्जुनसिंह ने यह संकल्प भी लिया कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर देंगे। भगतसिंह का परिवार आर्य समाजी था, इसलिए नामकरण के समय यज्ञ किया गया।यादविंदर ने बताया कि उन्होंने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि भगतसिंह बचपन से ही देशभक्ति और आजादी की बातें किया करते थे। यह गुण उन्हें विरासत में मिला था, क्योंकि उनके घर के सभी सदस्य उन दिनों आजादी की लड़ाई में शामिल थे।हमारा उद्देश्य हमेशा रहता है की अपने इतिहास के चुनिंदा घटनाओं से आपको अवगत कराते रहे है। हमारे आर्टिकल आपको अगर पसंद आते है तो हमे अपना समर्थन दे।
#इंकलाबजिदाबाद#12घंटेपहलेहीफांसीदीगयी#अपटनसिनक्लेयरकाउपन्यास#आजादीगीतगाने#इन्कलाबियोंकोमरनाहीहोताहै#एकक्रांतिकारीकेआखिर24घंटे#चाचाअजीतसिंह#तीनोंक्रांतिकारियोंअंतिमक्षण#दस्पाई#पंडितनेहरू#पितासरदारकिशनसिंह#फिरोजपुरकपाससतलज#भगतसिंह#भगतसिंहऔर23मार्च1931#भगतसिंहकोकिताबेंपढ़नेकाइतनाशौक#भगतसिंहदेशकेलिएफांसीकेफंदेपरझूल#भगतसिंहनेअपनेमाँसेकियावादानिभाया#भीमसेनसच्चर#मिलिट्रिजम#मुस्लिमसफाईकर्मचारी#राजगुरु#लाहौरकीद्वारकादासलाइब्रेरी#लाहौरकॉन्सपिरेसीकेस#लाहौरसेंट्रलजेल#लेफ्टविंगकम्युनिजम#वॉर्डेनचरतसिंह#वॉर्डेनचरतसिंहफूटफूटकररोनेलगे#शहीदएआजमकाभगतसिंहनामकैसेपड़ा#शहीदेआजमभगतसिंह#सरफरोशीकीतमन्नाअबहमारेदिलमेंहै
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allgyan · 3 years
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शहीदे आजम भगत सिंह और 23 मार्च 1931 -
शहीदे आजम भगत सिंह एक ऐसा नाम जो बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।अब के समय के बच्चे जो उस उम्र में कुछ सोच -समझ नहीं पाते उस उम्र भगत सिंह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गये। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी। फर्क सिर्फ इतना सा था कि सुबह-सुबह जोर की आँधी आई थी। लेकिन जेल के कैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं।उन्होंने कारण नहीं बताया। उनके मुंह से सिर्फ ये निकला कि आदेश ऊपर से है।अभी कैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है,जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुजरा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया। कैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे। बरकत भगत सिंह की कोठरी में गया और वहाँ से उनका पेन और कंघा ले आया। सारे कैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो।आखिर में ड्रॉ निकाला गया।
भगत सिंह ने क्यों कहा -इन्कलाबियों को मरना ही होता है-
अब सब कैदी चुप हो चले थे। उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गुजरने वाले रास्ते पर लगी हुई थी। भगत सिंह और उनके साथी फाँसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरने वाले थे।एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज ऊँची कर उनसे पूछा था, "आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया। " भगत सिंह का जवाब था,"इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है,अदालत में अपील से नहीं।" वॉर्डेन चरत सिंह भगत सिंह के खैरख्वाह थे और अपनी तरफ से जो कुछ बन पड़ता था उनके लिए करते थे। उनकी वजह से ही लाहौर की द्वारकादास लाइब्रेरी से भगत सिंह के लिए किताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं।भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख की 'मिलिट्रिजम', लेनिन की 'लेफ्ट विंग कम्युनिजम' और अपटन सिनक्लेयर का उपन्यास 'द स्पाई' कुलबीर के जरिए भिजवा दें।
भगत सिंह अपने  जेल की कोठरी में शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे-
भगत सिंह जेल की कठिन जिंदगी के आदी हो चले थे। उनकी कोठरी नंबर 14 का फर्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी हुई थी। कोठरी में बस इतनी ही ज��ह थी कि उनका पाँच फिट, दस इंच का शरीर बमुश्किल उसमें लेट पाए।भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। मेहता ने बाद में लिखा कि भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे।उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब 'रिवॉल्युशनरी लेनिन' लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हे किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज्यादा समय न बचा हो।मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे?भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, "सिर्फ दो संदेश... साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंकलाब जिदाबाद!" इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें,जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।
वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी गयी -
भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे। राजगुरु के अंतिम शब्द थे, "हम लोग जल्द मिलेंगे।" सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था।मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे। उनके मुंह से निकला, "क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे?" भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं।लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस पाया।
तीनों क्रांतिकारियों अंतिम क्षण -
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आजादी गीत गाने लगे- कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगें ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमाँ होगा।
फिर इन तीनों का एक-एक करके वजन लिया गया।सब के वजन बढ़ गए थे। इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो।
भगत सिंह बोले, "पूरी जिदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया। असल में मैंने कई बार गरीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है। अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है। इसलिए ये माफी मांगने आया है।" जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय, कैदियों ने दूर से ��ती कुछ पदचापें सुनीं।उनके साथ भारी बूटों के जमीन पर पड़ने की आवाजे भी आ रही थीं। साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।।।" सभी को अचानक जोर-जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे सुनाई देने लगे।फांसी का तख्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफी तंदुरुस्त। फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया गया था।भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख्ते से 'इंकलाब जिदाबाद' का नारा लगाएंगे।
भगत सिंह ने अपने माँ से किया वादा निभाया और फांसी के फंदे को चूमकर -इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया -
लाहौर जिला कांग्रेस के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंट्रल जेल से बिल्कुल लगा हुआ था। भगत सिंह ने इतनी जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाया कि उनकी आवाज सोंधी के घर तक सुनाई दी। उनकी आवाज सुनते ही जेल के दूसरे कैदी भी नारे लगाने लगे। तीनों युवा क्रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई।उनके हाथ और पैर बांध दिए गए। तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा? सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मार कर हटा दिया।काफी देर तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे।अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने उन्हें मृत घोषित किया।
क्यों मृतकों की पहचान  करने से एक अधिकारी ने मना किया -
एक जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हुआ कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया। एक जूनियर अफसर ने ये काम अंजाम दिया।पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संस्कार जेल के अंदर ही किया जाएगा, लेकिन फिर ये विचार त्यागना पड़ा जब अधिकारियों को आभास हुआ कि जेल से धुआँ उठते देख बाहर खड़ी भीड़ जेल पर हमला कर सकती है। इसलिए जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई।उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। पहले तय हुआ था कि उनका अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाएगा, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया।उनके पार्थिव शरीर को फिरोजपुर के पास सतलज के किनारे लाया गया। तब तक रात के 10 बज चुके थे। इस बीच उप पुलिस अधीक्षक कसूर सुदर्शन सिंह कसूर गाँव से एक पुजारी जगदीश अचरज को बुला लाए। अभी उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया।जैसे ही ब्रितानी सैनिकों ने लोगों को अपनी तरफ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ भागे। सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया।अगले दिन दोपहर के आसपास जिला मैजिस्ट्रेट के दस्तखत के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाए गए जिसमें बताया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया।इस खबर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और लोगों ने कहा कि इनका अंतिम संस्कार करना तो दूर, उन्हें पूरी तरह जलाया भी नहीं गया। जिला मैजिस्ट्रेट ने इसका खंडन किया लेकिन किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया।
वॉर्डेन चरत सिंह फूट-फूट कर रोने लगे -
इस तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोधस्वरूप अपनी बाहों पर काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाँ पहन रखी थीं। लगभग सब लोगों के हाथ में काले झंडे थे।लाहौर के मॉल से गुजरता हुआ जुलूस अनारकली बाजार के बीचोबीच रूका। अचानक पूरी भीड़ में उस समय सन्नाटा छा गया जब घोषणा की गई कि भगत सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हुए अवशेषों के साथ फिरोजपुर से वहाँ पहुंच गया है। जैसे ही तीन फूलों से ढ़के ताबूतों में उनके शव वहाँ पहुंचे, भीड़ भावुक हो गई। लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए।उधर, वॉर्डेन चरत सिंह सुस्त कदमों से अपने कमरे में पहुंचे और फूट-फूट कर रोने लगे। अपने 30 साल के करियर में उन्होंने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादुरी से गले नहीं लगाया था जितना भगत सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने।किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि16 साल बाद उनकी शहादत भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एक कारण साबित होगी और भारत की जमीन से सभी ब्रिटिश सैनिक हमेशा के लिए चले जाएंगे।
शहीद-ए-आजम का भगत सिंह नाम कैसे पड़ा -
भारत माँ के इस महान सपूत का नाम उनकी दादी के मुँह से निकले लफ्जों के आधार पर रखा गया था।जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह की जेल से रिहाई हुई थी। इस पर उनकी दादी जय कौर के मुँह से निकला 'ए मुंडा ते बड़ा भागाँवाला ए' (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्‍यशाली है)।शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र) यादविंदरसिंह संधु ने बताया कि दादी के मुँह से निकले इन अल्फाज के आधार पर घरवालों ने फैसला किया कि भागाँवाला (भाग्‍यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता होना चाहिए, लिहाजा उनका नाम भगतसिंह रख दिया गया।
शहीद-ए-आजम का नाम भगतसिंह रखे जाने के साथ ही नामकरण संस्कार के समय किए गए यज्ञ में उनके दादा सरदार अर्जुनसिंह ने यह संकल्प भी लिया कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर देंगे। भगतसिंह का परिवार आर्य समाजी था, इसलिए नामकरण के समय यज्ञ किया गया।यादविंदर ने बताया कि उन्होंने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि भगतसिंह बचपन से ही देशभक्ति और आजादी की बातें किया करते थे। यह गुण उन्हें विरासत में मिला था, क्योंकि उनके घर के सभी सदस्य उन दिनों आजादी की लड़ाई में शामिल थे।हमारा उद्देश्य हमेशा रहता है की अपने इतिहास के चुनिंदा घटनाओं से आपको अवगत कराते रहे है। हमारे आर्टिकल आपको अगर पसंद आते है तो हमे अपना समर्थन दे।
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