Hazrat Muhammad met indestructible Al-Khijr (Lord Kabir) twice in his lifetime in youth and old age but the age and form of Al-Khijr (Lord Kabir) had not changed at all. This, by itself proves, that Al-Khijr (Lord Kabir) is immortal.
जगत्गुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के उद्देश्य
संत रामपाल जी का उद्देश्य है कि सभी मानव, एक सर्वोच्च ईश्वर कबीर जी की पूजा करें और अपने मूल निवास सतलोक में वापस लौटकर पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर की शरण ग्रहण करें। सर्वोच्च ईश्वर कबीर जी की उपासना की चाह रखने वाला व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म, वर्ण, जाति, वर्ग समुदाय का क्यों ना हो, जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ले सकता है।
संत रामपाल जी ने प्रमाणित सत्य भक्ति साधना देने के साथ-साथ समाज हित के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं। दयालु संत चाहते हैं कि समाज में कोई भी प्राणी किसी भी कारण से दुःखी जीवन नहीं जिए। प्रत्येक जीव की समस्याओं का समाधान हो। मनुष्यों पर कोई भी आपदा न आए और धरती स्वर्ग समान बन जाए। संत रामपाल जी महाराज जी का एक ही सपना है सभी बुराइयों से मुक्त विश्व बनाना और रिश्वत खोरी, भ्रष्टाचार मुक्त समाज का निर्माण करना।
संत रामपाल जी महाराज समाज के एकमात्र पथ प्रदर्शक हैं जो सतभक्ति देकर सर्व बुराइयां दूर कर कलयुग में सतयुग ला रहे हैं। श्रीमद्भगवदगीता, वेदों, क़ुरान, बाईबल, श्रीगुरुग्रंथ साहिब आदि सदग्रंथों के ज्ञान सार “एक भगवान और एक भक्ति” के अनुरूप सतभक्ति द्वारा पूर्ण मोक्ष प्रदान कर सतगुरु मानव कल्याण कर रहे हैं। कुरीतियों, बुराइयों और भ्रष्टाचार से मुक्त समाज बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं। आपसी वैमनस्य मिटाकर विश्व शांति स्थापित कर धरती को स्वर्ग बनाने की ओर अग्रसर हैं। सतगुरु की असीम कृपा से भारत शीघ्र सोने की चिड़िया बनेगा और विश्वगुरु के खोए सम्मान को अर्जित करेगा।
संत रामपाल जी महाराज ने तत्वज्ञान के आधार पर मानव के सभी पक्षों का विवेचन किया है, सही जीवन जीने के आदर्शों को सिखाया है। संत रामपाल जी महाराज के शिष्य बनने के लिए कुछ नियम होते हैं जिनका आजीवन पालन करना होता है। आज लाखों लोग संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर बुराईयां पूरी तरह से छोड़ चुके हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने जाति, धर्म व ऊंच नीच से मुक्त मार्ग बताया है। संत रामपाल जी के यहाँ कोई भी जाति, धर्म, उच्च पद या सामान्य वर्ग का कोई भाई बन्धु जाए वे सभी से प्यार और समभाव से पेश आते हैं। वहां न किसी को अपनी जाति का अभिमान होता है, न ही धर्म का और न किसी पद प्रतिष्ठा का। संत रामपाल जी ने सभी के लिए संदेश है:-
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।
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कबीर, कोड़ी-कोड़ी जोड़ी कर, कीने लाख करोर।
पैसा एक ना संग चलै, केते दाम बटोर।।
भावार्थ:- दान धर्म पर पैसा खर्च किया नहीं, लाखों-करोड़ों रूपये जमा कर लिए। संसार छोड़कर जाते समय एक पैसा भी साथ नहीं चलेगा, चाहे कितना ही धन संग्रह कर लो।
हज़रत मुहम्मद जी व उनके 1 लाख 80 हजार अनुयायी शाकाहारी थे। हज़रत मुहम्मद जी ने मुसलमानों को यह आदेश दिया था कि कभी भी "खून-ख़राबे व ब्याज़ के करीब ना भटकना" (प्रमाण- पुस्तक जीवनी हज़रत मुहम्मद, सल्लाहु अलैहि वसल्लम, पृष्ठ 307) फिर क्यों मुसलमान धर्म में निर्दोष जानवरों का क़त्ल व मांस खाया जाता है ब्लॉक? यह अल्लाह के विधान के विरुद्ध है।
पात्र कुपात्र विचार के तब दीजै ताहि दान।
देता लेता सुख लह अन्त होय नहीं हान।।
भावार्थ:- दान कुपात्र को नहीं देना चाहिए। सुपात्र को दान हर्षपूर्वक देना चाहिए। सुपात्र गुरूदेव बताया है। फिर कोई भूखा है, उसको भोजन देना चाहिए। रोगी का उपचार अपने वित सामने धन देकर करना, बाढ़ पीड़ितों, भूकंप पीड़ितों को समूह बनाकर भोजन-कपड़े अपने हाथों देना सुपात्र को दिया दान कहा है। इससे कोई हानि नहीं होती।
प्रश्न : यदि गीता ज्ञान देने वाला (श्री विष्णु उर्फ श्री कृष्ण जी) जन्मता-मरता है यानि नाशवान है तो अविनाशी यानि जन्म-मरण से रहित कौन प्रभु है जो गीता ज्ञान दाता से अन्य है?
उत्तर:- गीता अध्याय 2 श्लोक 17:- (गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य परमेश्वर की महिमा कही है) नाशरहित तो उसको जान जिससे यह संपूर्ण जगत व्याप्त है। इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है। {गीता अध्याय 18 श्लोक 46 में भी अपने से अन्य परमेश्वर की महिमा गीता ज्ञान दाता ने बताई है।}
श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 7 श्लोक 29 और अध्याय 8 श्लोक 3 में कहा गया है कि जो व्यक्ति वृद्धावस्था और मृत्यु के कष्ट से छुटकारा पाना चाहता है वह परम अक्षर ब्रह्म को जानता है।
वह परम अक्षर ब्रह्म कौन है?
अवश्य पढ़ें पवित्र पुस्तक गीता तेरा ज्ञान अमृत।
और अधिक जानकारी के लिए सुनिये जगत गुरू तत्व दर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के अमृत प्रवचन सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रों के आधार पर आधारित साधना टीवी पर रात्रि 7.30 बजे
On the occasion of the Divya Dharma Yagya Diwas, hundreds of dowry-free marriages were solemnized in 10 Satlok Ashrams, eliminating the evil practice completely through the auspicious guidance of Sant Rampal Ji Maharaj
क्रियावान कर्म:- अपने जीवन काल में जो कर्म प्राणी करता है, वे क्रियावान कर्म कहे जाते हैं। ये 75% तो प्रारब्ध कर्म होते हैं यानि जो संस्कार यानि भाग्य में लिखे हैं, वे किए जाते हैं, 25% कर्म करने में जीव स्वतंत्र है। 75% कर्म करने में जीव बाध्य है क्योंकि वे प्रारब्ध में लिखे होते हैं, परतंत्र हैं। परंतु पूर्ण संत मिलने पर परिस्थिति बदल जाती है।
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