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mfvansh · 2 years
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Ccsu Convocation: Atul Maheshwari Award For Ayushi, Preeti Got Murari Lal Maheshwari Gold Medal - सीसीएसयू दीक्षांत समारोह : आयुषी को मिला अतुल माहेश्वरी, प्रीति को मुरारी लाल माहेश्वरी स्वर्ण पदक 
Ccsu Convocation: Atul Maheshwari Award For Ayushi, Preeti Got Murari Lal Maheshwari Gold Medal – सीसीएसयू दीक्षांत समारोह : आयुषी को मिला अतुल माहेश्वरी, प्रीति को मुरारी लाल माहेश्वरी स्वर्ण पदक 
न्यूज डेस्क अमर उजाला, मेरठ Published by: Dimple Sirohi Updated Thu, 23 Dec 2021 12:56 AM IST सार मुजफ्फरनगर के नई मंडी निवासी आयुषी अग्रवाल ने एमजेएमसी मुजफ्फरनगर के श्रीराम कॉलेज से उत्तीर्ण की। आयुषी शिक्षिका बनना चाहती हैं। प्रीति शर्मा को सम्मानित करते राज्यपाल और उप-मुख्यमंत्री – फोटो : amar ujala ख़बर सुनें ख़बर सुनें मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बुधवार…
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avitaknews · 3 years
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CCSU Exam 2021: 22 मार्च से होंगी प्रोफेशनल कोर्स की परीक्षाएं
CCSU Exam 2021: 22 मार्च से होंगी प्रोफेशनल कोर्स की परीक्षाएं
चौ.चरण सिंह विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों में स्नातक-स्नातकोत्तर प्रोफेशनल कोर्स में प्रथम सेमेस्टर की परीक्षाएं 22 मार्च से होंगी। विश्वविद्यालय ने बीबीए, बीसीए, बीजेएमसी, एमजेएमसी, एमएससी… Source link
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gethealthy18-blog · 4 years
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काली किशमिश के फायदे और नुकसान – Black Raisins Benefits and Side Effects in Hindi
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काली किशमिश के फायदे और नुकसान – Black Raisins Benefits and Side Effects in Hindi
शरीर को पर्याप्त पोषण देने के लिए ड्राई फ्रूट्स का सेवन अच्छा विकल्प हो सकता है। ऐसे में अन्य ड्राई फ्रूट्स के साथ काली किशमिश को भी दैनिक आहार में शामिल किया जा सकता है। माना जाता है कि इसमें कई ऐसे जरूरी पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के लिए औषधि के रूप में काम कर सकते हैं। स्टाइलक्रेज के इस लेख में जानते हैं स्वास्थ्य के लिए काली किशमिश खाने के फायदे और काली किशमिश का उपयोग। इसके अलावा, लेख में काली किशमिश के नुकसान के विषय में भी जानकारी दी गई है। काली किशमिश सेहत को ठीक रखने में सहायता करने के साथ-साथ विभिन्न बीमारी के लक्षणों को कम करने में भी मदद कर सकती है।
लेख में आगे हैं काम की बातें
इस लेख के पहले भाग में हम काली किशमिश के फायदे की जानकारी दे रहे हैं।
विषय सूची
काली किशमिश के फायदे – Benefits of Black Raisins in Hindi
बेशक, किशमिश के कई रंग और आकार होते हैं, लेकिन सभी किशमिश को अंगूर से ही बनाया जाता है। कुछ को हरे अंगूर से, तो कुछ को काले अंगूर से। अंगूरों की तरह विभिन्न तरह की किशकिश में भी लगभग एक जैसी ही पोषक तत्व पाए जाते हैं। अब ये पोषक तत्व किस प्रकार फायदा पहुंचाते हैं, यहां विस्तार से जानते हैं।
रक्तचाप को नियंत्रित रखने के लिए
एक शोध से पता चलता है कि काली किशमिश खाने के फायदे रक्तचाप को संतुलित बनाए रखने का काम कर सकते हैं। इस शोध के मुताबिक, काली किशमिश पोटैशियम का अच्छा स्रोत होती है, जो रक्तचाप को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। शोध में यह भी जिक्र मिलता है कि पोटैशियम रक्तचाप को नियंत्रित कर शरीर में सोडियम के नकारात्मक प्रभाव को कम करने में भी मदद कर सकता है (1)।
एनीमिया के लिए
एनीमिया को साधारण शब्दों में खून की कमी कहते हैं। यह समस्या तब उत्पन्न होती है, जब शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिसमें सबसे मुख्य शरीर में आयरन की कमी को माना जाता है। ऐसे में आयरन की पूर्ति के लिए जिन खाद्य पदार्थ का जिक्र किया जाता है, उनमें किशमिश भी शामिल है (2)। इसलिए, माना जा सकता है कि काली किशमिश के फायदे एनीमिया की समस्या में कुछ हद तक लाभदायक साबित हो सकते हैं।
नुकसानदायक कोलेस्ट्रॉल से राहत
काली किशमिश का उपयोग कर खराब कोलेस्ट्रॉल को कम किया जा सकता है। इससे जुड़ा एक शोध एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर पर उपलब्ध है। शोध के अनुसार, काली किशमिश का सेवन एलडीएल (खराब कोलेस्ट्रॉल) के साथ ट्राइग्लिसराइड (ब्लड में मौजूद एक प्रकार का फैट) को कम करने में सहायक हो सकता है (3)। इस आधार पर कहा जा सकता है कि काली किशमिश हानिकारक कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद कर सकती है।
ऑस्टियोपोरोसिस
ऑस्टियोपोरोसिस ऐसी समस्या है, जिसके कारण हड्डियां पतली और कमजोर हो जाती हैं। ऐसी हड्डियों के जल्द फ्रैक्चर होने का जोखिम रहता है (4)। एनसीबीआई की वेबसाइट पर मौजूद एक वैज्ञानिक शोध के मुताबिक, हड्डियों की मजबूती के लिए मैग्नीशियम फायदेमंद हो सकता है। शोध में शामिल एक परीक्षण में जब ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित एक महिला को प्रतिदिन 250 mg मैग्नीशियम दिया गया, तो उस महिला की हड्डियों में बोन मिनरल डेंसिटी का स्तर बढ़ा हुआ देखा गया। इस शोध के अनुसार जिन खाद्य पदार्थों में मैग्नीशियम की समृद्ध मात्रा पाई जाती है, उनमें काली किशमिश भी शामिल है (5)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि काली किशमिश खाने के फायदे ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव और उसके प्रभाव को कुछ हद तक कम करने में देखे जा सकते हैं।
त्वचा के लिए
त्वचा के लिए भी काली किशमिश के लाभ देखे जा सकते हैं। दरअसल, किशमिश में  एंटीबैक्टीरियल प्रभाव पाए जाते हैं, जो त्वचा से जुड़े कई बैक्टीरियल संक्रमण से बचाव और आराम दिलाने में मदद कर सकते हैं। किशमिश में मौजूद एंटीबैक्टीरियल प्रभाव एस. औरियस (Staphylococcus Aureus) जैसे बैक्टीरिया से लड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं (6)। एस. औरियस बैक्टीरिया, शरीर से जुड़े कई संक्रमण के साथ स्किन इन्फेक्शन का भी कारण बनते हैं (7)।
बालों के लिए
एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, विटामिन सी और आयरन की कमी से बाल झड़ने की समस्या उत्पन्न हो सकती है (8)। यहां भी काली किशमिश के लाभ देखे जा सकते हैं, क्योंकि यह आयरन और विटामिन-सी से समृद्ध होती है (9)। ऐसे में बालों की समस्या से राहत पाने के लिए काली किशमिश को दैनिक आहार में जगह दी जा सकती है।
अब आगे हम काली किशमिश के पौष्टिक तत्वों के बारे में बताएंगे।
काली किशमिश के पौष्टिक तत्व – Black Raisins Nutritional Value in Hindi
काली किशमिश में मौजूद पोषक तत्वों को नीचे टेबल के माध्यम से बताया जा रहा है (9)।
पोषक तत्व मात्रा प्रति 100 ग्राम ऊर्जा 300 kcal प्रोटीन 3.57 g कार्बोहाइड्रेट 78.57 g फाइबर 3.6 g शुगर 60.71 g कैल्शियम Ca 36 mg आयरन, Fe 1.93 mg सोडियम, Na 11 mg विटामिन सी 2.1 mg
पढ़ते रहें आर्टिकल
आइए जानते हैं कि काली किशमिश का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है।
काली किशमिश का उपयोग – How to Use Black Raisins in Hindi
काली किशमिश का सेवन कई अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है। नीचे जानिए इसके सेवन के कुछ बेहतरीन तरीके।
कैसे खाएं:
इसे कुकीज में इस्तेमाल किया जा सकता है।
काली किशमिश को केक बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसे अन्य ड्राई फ्रूटस के साथ मिलाकर खाया जा सकता है।
इसे रातभर पानी में भिगोकर, अगली सुबह खाया जा सकता है।
मीठे पकवानों में इसका इस्तेमाल स्वाद बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।
काली किशमिश को दूध के साथ भी खाया जा सकता है।
कब खाएं:
काली किशमिश को सीधे या अन्य ड्राई फ्रूट के साथ सुबह और शाम के वक्त खाया जा सकता है।
दोपहर या रात के खाने के बाद काली किशमिश युक्त मिठाई का सेवन किया जा सकता है।
रात में सोने से पहले काली किशमिश को दूध के साथ लिया जा सकता है।
कितना खाएं:
अन्य ड्राई फ्रूट्स के साथ 10 से 12 काली किशमिश को रात में भिगोकर प्रतिदिन सुबह खाया जा सकता है। शरीर के अनुसार इसके सेवन की उचित मात्रा जानने के लिए आहार विशेषज्ञ से सलाह लेना बेहतर होगा।
और जानने के लिए करें स्क्रॉल
ऊपर हमने काली किशमिश के फायदे बताए हैं, अब जानिए काली किशमिश के नुकसान।
काली किशमिश के नुकसान – Side Effects of Black Raisins in Hindi
कई बार काली किशमिश का अधिक सेवन निम्नलिखित समस्याओं का कारण बन सकता है
किशमिश एक हाई ग्लाइसेमिक युक्त खाद्य पदार्थ है, ऐसे में इसका अधिक सेवन मधुमेह का कारण बन सकता है (10)।
काली किशमिश कैलोरी से भरपूर होती है, ऐसे में इसकी अधिक मात्रा का सेवन शरीर का वजन बढ़ाने का काम कर सकता है (9)।
कुछ लोगों को काली किशमिश के सेवन से एलर्जी हो सकती है (11)।
काली किशमिश का सेवन स्वास्थ्य के लिए किस प्रकार लाभदायक हो सकता है, यह आपको इस लेख के जरिए पता लग गया होगा। ऐसे में काली किशमिश के लाभ प्राप्त करने के लिए इसे दैनिक आहार में शामिल किया जा सकता है। ध्यान रहे, इसकी सीमित मात्रा का ही सेवन करें, नहीं तो लेख में बताए गए दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है। इसका उपयोग करने के लिए आप लेख में बताए गए तरीकों को अपना सकते हैं। उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपके स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगा।
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gethealthy18-blog · 4 years
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वार्म अप करने के तरीके और फायदे – Warm Up Steps And Benefits In Hindi
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वार्म अप करने के तरीके और फायदे – Warm Up Steps And Benefits In Hindi
वार्म अप करने के तरीके और फायदे – Warm Up Steps And Benefits In Hindi Bhupendra Verma
Hyderabd040-395603080 February 18, 2020
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ज्यादा सोच-विचार करने की जरूरत नहीं है। आप प्रतिदिन बस कुछ मिनट वार्म अप कर शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं। वार्म अप का असर पूरे शरीर पर होता है, जिससे कई शारीरिक और मानसिक समस्याओं को दूर रखने में मदद मिल सकती है। वार्म अप करने के साथ-साथ स्वस्थ आहार का सेवन करना भी जरूरी है। अगर आप सोच रहे हैं कि वार्म अप कैसे करना है, तो स्टाइलक्रेज का यह लेख आपके लिए ही है। इस लेख में हम वार्म अप के प्रकार और वार्म अप करने के फायदे पर विस्तार से जानकारी देंगे।
आइए, सबसे पहले जान लेते हैं कि वार्म अप क्या है।
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वार्म अप क्‍या है? – What is Warm Up in Hindi
वार्म अप करने पर मांसपेशियों में पोषक तत्वों व रक्त का संचार बेहतर तरीके से होता है। इससे सभी अंगों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है। साथ ही वार्म अप करने से हृदय और श्वास की गति बढ़ती है, जो हृदय और श्वसन प्रणाली के लिए फायदेमंद है। वार्म अप के पूरे फायदे लेने के लिए इसे कम से कम 5 से 10 मिनट तक करना चाहिए। इसकी शुरुआत धीरे-धीरे करें और फिर बाद में स्पीड बढ़ाएं। कुछ वार्म अप एक्सरसाइज मुख्य रूप से हृदय के बेहतर स्वास्थ्य के लिए की जाती हैं (1)। वार्म अप करने के बाद शरीर में पैदा हुई गर्माहट से मांसपेशियां खुल जाती है, जिससे शरीर को स्ट्रेच करने में मदद मिलती है। वार्म अप से कई शारीरिक और मानसिक लाभ हो सकते हैं। इसके बारे में हम नीचे लेख में विस्तार से जानेंगे।
ऊपर आपने पढ़ा कि वार्म अप क्या है, अब आगे वार्म अप के प्रकार जानेंगे।
वार्म अप के प्रकार – Types of Warm Up in Hindi
वैसे तो वार्म आप के कई तरीके होते हैं, जिनमें से कुछ के बारे में हम बता रहे हैं। इसे आप अपनी दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं।
जॉगिंग और रनिंग (jogging and running)- नियमित मॉर्निंग वॉक, जॉगिंग (धीरे-धीरे दौड़ना) और रनिंग वार्म अप करने का सबसे आसान तरीका है। इसे करने से पूरा शरीर वार्म अप हो जाता है। अगर आपके घर के आसपास कोई मैदान है, तो आप वहां जाकर जॉगिंग या रनिंग कर सकते हैं। जॉगिंग करते समय आप दोनों हाथों की मूवमेंट भी अच्छी तरह करें।
स्ट्रेचिंग (Stretching)- स्ट्रेचिंग भी अच्छा वार्म अप का तरीका है। इससे मांसपेशियों में खिंचाव आता है। ज्यादातर लोग व्यायाम शुरू करने से पहले स्ट्रेचिंग करते हैं, ताकि व्यायाम के बेहतर परिणाम नजर आ सकें। स्ट्रेचिंग से शरीर को लचीला बनाने में भी मदद मिल सकती है। इसे आप किसी समतल स्थान में खड़ा होकर करें। खिलाड़ी भी मैदान पर उतरने से पहले स्ट्रेचिंग जरूर करते हैं।
जंपिंग या रस्सी कूदना (jumping or rope jumping)- जंपिंग या रस्सी कूदने से भी शरीर को वार्म अप किया जा सकता है। आप इसे किसी समतल स्थान पर करें। अगर रस्सी का उपयोग कर रहे हैं, तो शुरुआत में सावधानी पूर्वक करें, क्योंकि कई बार रस्सी पैर में फंस सकती है। इससे गिरने का जोखिम बना रहता है। रस्सी कूदने के फायदे और शरीर का वार्म अप इसे सही तरीके से करने पर ही होगा।
मार्चिंग (Marching)- यह भी वार्म अप का एक तरीका है। इसका अधिकतर लाभ पैरों को होता है। इसे करने के लिए आप सीधा खड़े हो जाएं और फिर एक-एक करके अपने दोनों पैरों घुटनों से मोड़ते हुए 90 डिग्री तक ऊपर उठाएं। आपके तलवे नीचे जमीन की तरफ होने चाहिए।
साइकलिंग (Cycling)- अगर आप कभी जिम जाएं, तो आप वहां देखेंगे कि वर्कआउट शुरू करने से पहले लोग साइकलिंग जरूर करते हैं। साइकलिंग वार्म अप का अच्छा तरीका होता है। इससे पैरों की मांसपेशियों में खिंचाव होता है। यह एक्सरसाइज करने और उसके बेहतर परिणाम के लिए मददगार साबित होती है।
अपर बॉडी वार्म अप (upper body warm up)- यह वार्म अप शरीर के ऊपरी भाग के लिए होता है। इसे करने के लिए आप सबसे पहले सीधा खड़े हो जाएं। उसके बाद दोनों पैरों को कंधों की चौड़ाई जितना फैला लें। फिर दोनों हाथों को कंधे के बराबर फैला लें। इसके बाद पैरों को स्थिर रख कर कमर व कमर से ऊपर वाले हिस्से को बाएं ओर मोड़ें। कुछ सेकंड इसी स्थिति में रहें। फिर सीधे हो जाएं और बाद में दाईं ओर मुड़ें। इसे दोनों तरफ 5 से 8 बार तक कर सकते हैं।
अब इसके आगे हम वार्म अप करने के फायदे जानेंगे।
वार्म अप करने के फायदे – Benefit of Warm Up in Hindi
इसमें कोई शक नहीं की वार्म अप करने से कई शारीरिक लाभ हो सकते हैं। बस इस बात को ध्यान में रखने की जरूरत है कि वार्म अप को सही तरह से किया जा रहा है या नहीं। वार्म अप करने के लाभ इस तरह से हो सकते हैं।
1. लचीलेपन को बढ़ावा
वार्म अप करने से शरीर को कई फायदे हो सकते हैं, जिनमें से एक शरीर के लचीलेपन का बढ़ना भी है। वार्म अप से शरीर के गर्म होने पर मांसपेशियां खुलती हैं। इससे शरीर लचीला बनता है। प्रतिदिन वार्म अप करने पर इसका असर आपको जल्दी नजर आने लगेगा। यही कारण है कि योग करने से पहले भी लोग वार्म अप जरूर करते हैं, ताकि शरीर, हाथ और पैर की गतिविधि में किसी तरह की तकलीफ न हो (2)।
2. चोट के जोखिम को कम करना
चोट के जोखिम को कम करने में भी वार्म अप के फायदे हो सकते हैं। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि एथलीट और खिलाड़ी अभ्यास करने से पहले वार्म-अप और स्ट्रेचिंग जरूर करते हैं। इनसे शारीरिक प्रदर्शन को बेहतर करने और खेल के दौरान लगने वाली चोट को रोकने में मदद मिल सकती है। वार्म अप से मस्कुलोस्केलेटल इंजरी (टिश्यू से संबंधित चोट) के जोखिम को कम किया जा सकता है (3)।
3. रक्त संचार और ऑक्सीजन को बढ़ावा
वार्म अप के फायदे शरीर में रक्त और ऑक्सीजन के संचार को बढ़ाने के लिए भी हो सकते हैं। एक वैज्ञानिक शोध में यह बताया गया है कि वार्म अप और व्यायाम के बाद शरीर में जो गर्मी पैदा होती है, वह मांसपेशियों के तापमान को बढ़ाती है और रक्त को प्रवाहित करने का काम कर सकती है। इससे रक्त को पूरे शरीर में संचारित होने में मदद मिल सकती है। यह जानकारी एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में उपलब्ध है (4)।
4.  मांसपेशियों के तनाव और दर्द में कमी
वार्म अप करने के तरीके सही होने पर मांसपेशियों के तनाव और दर्द को कम करने में मदद मिल सकती है। एनसीबीआई की ओर से प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, वार्म अप के समय मांसपेशियों में खिंचाव आता है, जो इसके तनाव और दर्द को कम करने में मदद कर सकता है (5)। इसलिए, मांसपेशियों के तनाव और दर्द को कम करने के लिए वार्म अप के फायदे हो सकते हैं। इस संबंध में अभी और वैज्ञानिक शोध की आवश्यकता है।
जैसा कि आर्टिकल को पढ़कर समझ आ गया होगा कि वार्म आप क्या होता है और व्यायाम से पहले इसे करना क्यों जरूरी होता है। अगर कोई योग या एक्सरसाइज करने का मन बना रहा है, तो उन्हें ऊपर बताए गए वार्म अप को जरूर करना चाहिए। हां, अगर किसी को चोट लगी हो या फिर किसी तरह का दर्द और अन्य कोई तकलीफ है, तो वार्म अप या व्यायाम करने से पहले डॉक्टर से जरूर बात करें। हम उम्मीद करते हैं कि हमारी यह जानकारी आपके काम आएगी। अगर आपके पास इस लेख से जुड़ी कोई अन्य जानकारी या सुझाव है, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स के मदद से हम तक पहुंचा सकते हैं।
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Bhupendra Verma
भूपेंद्र वर्मा ने सेंट थॉमस कॉलेज से बीजेएमसी और एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी से एमजेएमसी किया है। भूपेंद्र को लेखक के तौर पर फ्रीलांसिंग में काम करते 2 साल हो गए हैं। इनकी लिखी हुई कविताएं, गाने और रैप हर किसी को पसंद आते हैं। यह अपने लेखन और रैप करने के अनोखे स्टाइल की वजह से जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्टोरी और डायलॉग्स भी लिखे हैं। इन्हें संगीत सुनना, फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/warm-up-karne-ke-tarike-aur-fayde-in-hindi/
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पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज (पीआईडी) के कारण, लक्षण और इलाज – Pelvic Inflammatory Disease (PID) Causes, Symptoms and Treatment in Hindi
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पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज (पीआईडी) के कारण, लक्षण और इलाज – Pelvic Inflammatory Disease (PID) Causes, Symptoms and Treatment in Hindi
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज (पीआईडी) के कारण, लक्षण और इलाज – Pelvic Inflammatory Disease (PID) Causes, Symptoms and Treatment in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 January 27, 2020
कुछ शारीरिक समस्याएं ऐसी होती हैं, जिनके बारे में महिलाएं खुलकर किसी से बात नहीं कर पाती हैं। ऐसे में वह समस्या बढ़ जाती है और गंभीर रूप ले लेती है। पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज भी कुछ इसी तरह की समस्या है। इस अवस्था में महिलाओं को तेज दर्द का सामना करना पड़ता है। इसलिए, अगर किसी को भी पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज है, तो उसे तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। स्टाइलक्रेज का हमारा यह आर्टिकल आपको पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज के कारण और पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज के लक्षण जानने में मदद करेगा। साथ ही आप इस आर्टिकल के माध्यम से पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज के उपाय के बारे में भी जान सकेंगे।
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज के कारण जानने से पहले यह क्या होता है, इस बारे में बात करेंगे।
विषय सूची
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज क्या है? – What is Pelvic Inflammatory Disease (PID) in Hindi
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज (पीआईडी) महिलाओं के प्रजनन अंगों में संक्रमण से संबंधित समस्या है। प्रजनन अंग में गर्भाशय (गर्भ), फैलोपियन ट्यूब (एक तरह की नलिका), अंडाशय और गर्भाशय ग्रीवा शामिल होती है। संक्रमण के कारण इनमें से किसी भी हिस्से में सूजन आ सकती है और तेज दर्द का भी सामना करना पड़ता है। यह समस्या ​​विभिन्न तरह के बैक्टीरिया के कारण हो सकती है। वहीं, आमतौर पर यह समस्या सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन (​​एसटीआई) के कारण उत्पन्न होने वाले बैक्टीरिया के कारण होती है। शारीरिक संबंध से फैलने वाले संक्रमण को ही एसटीआई कहते हैं। साथ ही योनि में पाए जाने वाले सामान्य बैक्टीरिया के चलते भी यह समस्या हो सकती है (1)।
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज के लक्षण जानने से पहले इसके कारण के बारे में जान लेते हैं।
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज के कारण – Causes of Pelvic Inflammatory Disease (PID) in Hindi
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज को श्रोणि सूजन की बीमारी के नाम से भी जाना जाता है। इसके लिए मुख्य रूप से बैक्टीरिया जिम्मेदार होते हैं। ये बैक्टीरिया गर्भाशय ग्रीवा में पाए जाते हैं, जो मेडिकल प्रोसीजर (चिकित्सा प्रक्रिया) के समय गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब तक पहुंच सकते हैं, जिससे पीआईडी की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इन मेडिकल प्रोसीजर में ये सब शामिल हैं (2):
प्रसव के दौरान।
एंडोमेट्रियल बायोप्सी (कैंसर की जांच के लिए गर्भ का कोई छोटा-सा टुकड़ा निकालना) के कारण।
गर्भनिरोधक उपकरण के कारण (गर्भावस्था को रोकने के लिए महिलाओं के गर्भाशय में डाले जाने वाले यंत्र)।
गर्भपात होने पर।
गर्भपात करवाने पर भी यह समस्या हो सकती है।
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज के जोखिम कारक के बारे में बताने से पहले हम इसके लक्षणों की जानकारी दे रहे है।
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज के लक्षण – Symptoms of Pelvic Inflammatory Disease (PID) in Hindi
अगर किसी को पीआईडी की समस्या है, तो उनमें ये आम लक्षण दिखाई दे सकते हैं (2):
बुखार आना।
श्रोणि, पेट और पीठ के निचले भाग में दर्द होना।
योनि से निकलने वाले द्रव का असामान्य रंग और गंध आना।
इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी हैं:
शारीरिक संबंध के बाद रक्त का बहना।
अधिक ठंड लगना।
शरीर में थकान महसूस होना।
पेशाब करते वक्त दर्द होना।
बार-बार पेशाब आना।
पीरियड क्रैम्प्स, जिससे सामान्य से अधिक या लंबे समय तक दर्द का अनुभव हो सकता है।
पीरियड के समय असामान्य रक्त का बहना।
भूख न लगना।
मतली और उल्टी होना।
पीरियड का स्किप होना।
यौन संबंध बनाते समय दर्द होना।
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज का इलाज के बारे में जानने से पहले इसके जोखिम कारक के बारे में जानेंगे।
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज के जोखिम कारक – Risk Factors of Pelvic Inflammatory Disease (PID) in Hindi
ऐसा माना जाता है कि प्रति वर्ष करीब 10 लाख महिलाएं पीआईडी की शिकार होती है। 20 वर्ष से कम उम्र की 8 में से 1 किशोरी के पीआईडी के चपेट में आने की आशंका रहती है। पीआईडी के जोखिम उत्पन्न होने के पीछे अन्य अहम कारक इस प्रकार हैं (2) :
अगर कोई गोनोरिया या क्लैमाइडिया (बैक्टीरिया के कारण उत्पन्न समस्या) से प्रभावित व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनता है।
अगर कोई अलग-अलग लोगों के साथ शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसे पीआईडी की समस्या हो सकती है।
अगर किसी को पहले भी एसटीआई की समस्या रही हो, तो उसे भी पीआईडी का सामना करना पड़ सकता है।
जिन्हें पहले पीआईडी की समस्या रही हो, तो उन्हें फिर से यह समस्या होने का खतरा बना रहता है।
अगर किसी ने 20 वर्ष की उम्र से पहले शारीरिक संबंध बनाए हैं, तो उसे भी यह पीआईडी होने की आशंका रहती है।
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज से बचने के उपाय के बारे में जानने से पहले इसके इलाज के बारे में जान लेते हैं।
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज का इलाज – Treatment of Pelvic Inflammatory Disease (PID) in Hindi
श्रोणि सूजन की बीमारी के उपचार में डॉक्टर टेस्ट रिपोर्ट आने से पहले एंटीबायोटिक दवा दे सकते हैं। साथ ही यह समस्या कितनी गंभीर है, डॉक्टर उसी के आधार पर इलाज करते हैं (2)। यहां हम कम व गंभीर पीआईडी की स्थिति के आधार पर कुछ आम इलाज के बारे में बता रहे हैं।
हल्के या कम पीआईडी की स्थिति में :
डॉक्टर इस समस्या से जूझ रहे पीड़ित का चेकअप कर घर भेजने से पहले 2 सप्ताह के लिए एंटीबायोटिक गोलियां दे सकते हैं।
हल्के पीआईडी की स्थिति में मरीज को डॉक्टर से फॉलोअप लेते रहना चाहिए।
 गंभीर पीआईडी की स्थिति में :
ऐसी स्थिति में मरीज को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ सकती है।
इस समस्या से प्रभावित मरीज को पहले इंट्रावेनस थेरेपी (नस के माध्यम से दवाई देना) के माध्यम से एंटीबायोटिक दवाई दी जा सकती है।
इसके बाद एंटीबायोटिक गोलियां खाने के लिए दे सकते हैं।
इस आर्टिकल के अंतिम भाग में हम पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज से बचने के उपाय बता रहे हैं।
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज से बचने के उपाय – Prevention Tips for Pelvic Inflammatory Disease (PID) in Hindi
कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए, तो पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज को होने से रोका जा सकता है। इसके लिए नीचे कुछ बिंदुओं में इससे बचाव के तरीके बताए जा रहे हैं (2)।
यौन संबंध बनाते समय सुरक्षा को ध्यान में रखने पर पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज को रोकने में मदद मिल सकती है।
सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन (एसटीआई) को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका यौन संबंध नहीं बनाना है।
सिर्फ एक पार्टनर के साथ यौन संबंध रखने पर पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज के जोखिम को कम किया जा सकता है।
शारीरिक संबंध बनाने से पहले महिला व पुरुष दोनों को एसटीआई की जांच करा लेनी चाहिए। इससे पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज से बचने में मदद मिल सकती है।
शारीरिक संबंध बनाते समय कंडोम इस्तेमाल करने से इस समस्या को होने से रोका जा सकता है।
ऊपर बताए गए बचने के उपाय के अलावा यह तरीका भी पीआईडी के जोखिम को कम कर सकता है:
एसटीआई की जांच नियमित रूप से करवाते रहें।
पहली बार शारीरिक संबंध बनाने से पहले शरीर की जांच करा लेनी चाहिए। इससे संक्रमण का पता लगाया जा सकता है, ताकि पीआईडी की समस्या से बचा जा सके।
अगर किसी महिला की उम्र 24 वर्ष या इससे अधिक है, तो उसे हर वर्ष क्लैमाइडिया और गोनोरिया की जांच जरूर करवानी चाहिए।
इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपको स्पष्ट हो गया होगा कि पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज क्या होती है। अगर किसी को यह समस्या है, तो उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। आप इस आर्टिकल को अपनी सहेली और परिवार की अन्य महिलाओं के साथ जरूर शेयर करें, ताकि उन्हें भी श्रोणि सूजन की बीमारी के उपचार के बारे में जानकारी मिल सके। हम आशा करते है कि इस आर्टिकल में दी गई प्रत्येक जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। अगर अब भी किसी के मन में इस आर्टिकल से संबंधित कोई सवाल है, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स के मदद से हमसे पूछ सकते हैं। हम जल्द से जल्द वैज्ञानिक प्रमाण सहित जवाब देने का प्रयास करेंगे।
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Bhupendra Verma
भूपेंद्र वर्मा ने सेंट थॉमस कॉलेज से बीजेएमसी और एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी से एमजेएमसी किया है। भूपेंद्र को लेखक के तौर पर फ्रीलांसिंग में काम करते 2 साल हो गए हैं। इनकी लिखी हुई कविताएं, गाने और रैप हर किसी को पसंद आते हैं। यह अपने लेखन और रैप करने के अनोखे स्टाइल की वजह से जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्टोरी और डायलॉग्स भी लिखे हैं। इन्हें संगीत सुनना, फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/pelvic-inflammatory-disease-ke-karan-lakshan-aur-ilaj-in-hindi/
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गुड़ के फायदे और नुकसान – Jaggery Benefits and Side Effects in Hindi
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गुड़ के फायदे और नुकसान – Jaggery Benefits and Side Effects in Hindi
गुड़ के फायदे और नुकसान – Jaggery Benefits and Side Effects in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 January 22, 2020
घर के बड़े-बुजुर्ग हों या फिर डॉक्टर, सभी स्वस्थ रहने के लिए चीनी से दूर रहने की सलाह देते हैं। कायदे से देखा जाए, तो यह बात सही भी है। चीनी कई बीमारियों की जड़ हैं, लेकिन अगर हम कहें कि खाने के बाद थोड़ा मीठा खाना बनता है, तो आपका हैरान होना जायज है। यहां हम मीठे के रूप में चीनी की नहीं, बल्कि गुड़ की बात कर रहे हैं। चीनी के मुकाबले गुड़ को सेहत के लिए फायदेमंद माना गया है। ऐसा माना जाता है कि खाने के बाद गुड़ का सेवन करने से भोजन जल्दी हजम हो जाता है और पाचन तंत्र भी ठीक रहता है। अब इन सभी बातों में कितनी सच्चाई है, स्टाइलक्रेज के इस आर्टिकल में इसी का पता लगाएंगे। यहां हम कुछ शारीरिक समस्याओं की चर्चा भी करेंगे और जानेंगे कि इन समस्याओं में गुड़ कितना फायदेमंद है। इस आर्टिकल में हम गुड़ के औषधीय गुण व गुड़ खाने के फायदे के साथ-साथ गुड़ खाने के नुकसान पर भी चर्चा करेंगे।
इस लेख में सबसे पहले गुड़ के फायदे जानेंगे और आखिर में इसके नुकसान के बारे में।
विषय सूची
गुड़ के फायदे – Benefits of Jaggery in Hindi
गुड़ कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। गुड़ को गन्ने की रस से बनाया जाता है। इसके लिए गन्ने की रस को किसी बड़े बर्तन में रखकर आग से गर्म किया जाता है, जो कुछ समय बाद गुड़ का रूप ले लेता है। वहीं, चीनी को भी गन्ने के रस से प्राप्त किया जाता है, लेकिन चीनी गन्ने के रस का रिफाइंड रूप है, जबकि गुड़ अनरिफाइंड प्रकार है। इस कारण से गुड़ में अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। इस प्रकार ब्राउन शुगर व साधारण चीनी के मुकाबले गुड़ बेहतर विकल्प हो सकता है। आइए, अब गुड़ के फायदों पर विस्तार से चर्चा करते हैं (1) :
1. पाचन में सुधार
लोग अक्सर भोजन के बाद मीठा खाना पसंद करते हैं। ऐसे में चीनी से बनी कोई चीज खाने की जगह गुड़ का सेवन करना उनके पाचन क्रिया के लिए लाभकारी साबित हो सकता है। गुड़ शरीर के लिए डाइजेस्टिव एजेंट की तरह काम करता है। इससे पाचन क्रिया में सुधार हो सकता है (2)। इसलिए, ऐसा माना जा सकता है कि गुड़ के फायदे पाचन में सुधार करने के लिए हो सकते हैं।
2. एनीमिया
एनीमिया वह स्थिति होती है, जब शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है। इससे थकान और कमजोरी होने लगती है। अगर किसी को एनीमिया की समस्या है, तो आयरन युक्त आहार के सेवन से इस समस्या को कम किया जा सकता है। इस बात की पुष्टि एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) में प्रकाशित एक वैज्ञानिक शोध में किया गया है। इस शोध से पता चलता है कि जिन गर्भवती महिलाओं में आयरन की कमी होती है, उन्हें एनीमिया की शिकायत होती है। वहीं, गुड़ को आयरन के मुख्य स्रोत में से एक माना गया है। इसलिए, गुड़ का सेवन करने से शरीर में आयरन की पूर्ति की जा सकती है। साथ ही एनीमिया की समस्या से राहत मिल सकती है (3)।
3. लीवर डिटॉक्सिफिकेशन के लिए
गुड़ खाने के फायदे में लीवर को डिटॉक्सिफाई यानी विषैले पदार्थों को साफ करना भी शामिल है। दरअसल, गुड़ में एंटीटॉक्सिक गुण पाए जाते हैं, जो शरीर से विषैले पदार्थ को बहार निकालने में मदद कर सकता है (4)। इसके अलावा, गुड़ के सेवन से लीवर को रेगुलेट करने में मदद मिल सकती है (5)। गुड़ लीवर को कैसे डिटॉक्सिफाई करता है, इस संबंध में सीधे तौर पर कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है।
4. इम्यून फंक्शन में सुधार
गुड़ का सेवन कर शरीर के इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) को मजबूत करने में मदद मिल सकती है। दरअसल, गुड़ में कुछ मात्रा विटामिन-सी की पाई जाती है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ रखने का काम कर सकता है। अगर प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक रहेगी, तो कई शारीरिक समस्या को दूर रखने में मदद मिल सकती है। इनमें कैंसर और हृदय रोग जैसी घातक बीमारियां भी शामिल हैं (6)।
5. वजन घटाने के लिए
गुड़ खाने के फायदे वजन को कम करने के लिए भी हो सकते हैं। दरअसल, गुड़ में फाइबर पाए जाते है, जो चीनी की तुलना में धीरे धीरे पचता है और शरीर में ऊर्जा को बनाए रखता है (7)। इससे भूख को लंबे समय तक शांत रखा जा सकता है। इसके अलावा, फाइबर मोटापे को कम करने का भी काम कर सकता है (8)। इसलिए, ऐसा माना जा सकता है कि गुड़ वजन को कम करने का काम कर सकता है, लेकिन इस संबंध में अभी और शोध की आवश्यकता है।
6. एंटीऑक्सीडेंट की तरह
गुड़ में सेलेनियम व विटामिन-सी जैसे कई मिनरल व विटामिन पाए जाते हैं, जिनमें एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव होता है। यह एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव शरीर में फ्री रेडिकल्स के असर को कम करता है। साथ ही जुकाम और कैंसर जैसी समस्या से बचाए रखने में भी मदद कर सकता है। इसके अलावा, एंटीऑक्सीडेंट गुण दांतों को स्वस्थ और मसूड़ों को मजबूत के साथ ही हृदय रोग और मोतियाबिंद से निजात दिलाने में मदद कर सकता है (6)।
7. त्वचा के लिए
गुड़ के फायदे त्वचा के लिए भी हो सकते हैं। गुड़ और शहद को मिलाकर बनाए गए लेप को त्वचा पर लगाने से बैक्टीरिया व फंगस की समस्या से राहत मिल सकती है, क्योंकि इसमें एंटीमाइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं (9)। बैक्टीरिया त्वचा संबंधी विभिन्न समस्याओं का कारण बन सकते हैं। इनमें इम्पेटिगो (त्वचा में लाल निशान), एडिमा और सूजन आदि शामिल है (10)। इसलिए, बैक्टीरिया और फंगस के दूर होने से त्वचा स्वस्थ व खिली-खिली नजर आती है। फिलहाल, इस संबंध में और शोध किए जाने की जरूरत है। अभी वैज्ञानिक स्तर पर यह स्पष्ट नहीं है कि गुड़ किस प्रकार त्वचा के लिए फायदेमंद है।
चलिए अब जानते हैं कि गुड़ में कौन-कौन से पोषक तत्व पाए जाते हैं।
गुड़ के पौष्टिक तत्व – Jaggery Nutritional Value in Hindi
किसी भी खाद्य पदार्थ के महत्व को उसमें मौजूद पोषक तत्वों से समझा जा सकता है। यहां हम टेबल के जरिए बता रहे हैं कि गुड़ में कौन-कौन पोषक तत्व और कितनी मात्रा में होते हैं (11)।
पोषक तत्व मूल्य प्रति 100 g ऊर्जा 375 Kcal कार्बोहाइड्रेट 100 g शुगर 100 g सोडियम Na 250 mg
अब आगे जानेंगे कि गुड़ को किस-किस तरह से उपयोग किया जा सकता है।
गुड़ का उपयोग – How to Use Jaggery in Hindi
गुड़ को कई तरह से खाने के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है, जो इस प्रकार है :
कैसे खाएं :
गुड़ को सीधे खाया जा सकता है।
गुड़ को रोटी के साथ खाया जा सकता है।
इसे चाय में चीनी की जगह मिलाया जा सकता है।
गुड़ और तिल को मिलाकर लड्डू बनाया जा सकता है।
इसे हलवा बनाने में उपयोग किया जा सकता है।
गुड़ से स्वादिष्ट गुलगुले भी बनाए जा सकते हैं।
कई लाेग गुड़ की बनी चिक्की भी स्वाद से खाते हैं।
कब खाएं :
सुबह और शाम गुड़ की चाय पी जा सकती है।
दोपहर और रात को खाना खाने के बाद थोड़ा-सा गुड़ खाया जा सकता है।
कितना खाएं : फिलहाल ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि प्रतिदिन कितना गुड़ खाना चाहिए। इसलिए, गुड़ की उचित मात्रा जानने के लिए आहार विशेषज्ञ की सलाह ली जा सकती है।
आइए, अब जानते हैं कि गुड़ खाने के नुकसान क्या-क्या हैं।
गुड़ के नुकसान – Side Effects of Jaggery in Hindi
कई बार गुड़ खाने के नुकसान भी हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं:
अधिक मात्रा में गुड़ खाने से इसमें मौजूद शुगर के कारण टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग की जोखिम बढ़ सकती है (12)।
 अधिक मात्रा में गुड़ खाने से आंत में कीड़े होने की समस्या हो सकती है।
अब तो स्पष्ट हो गया कि चीनी का बेहतरीन विकल्प गुड़ है। इसलिए, मीठा खाने के शौकीन लोगों को मीठे से परहेज करने की जरूरत नहीं है। बस वो चीनी की जगह सीमित मात्रा में गुड़ का सेवन करें। इससे न सिर्फ मीठे की तलब पूरी होगी, बल्कि गुड़ के औषधीय गुण भी मिलेंगे। हां, अगर कोई मधुमेह या ह्रदय रोग से पीड़ित है, तो वह डॉक्टर की सलाह पर ही गुड़ का इस्तेमाल करे। हम उम्मीद करते हैं कि इस लेख में दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। अगर आप गुड़ के संबंध में और कुछ जानना चाहते हैं, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स के जरिए हमें संपर्क कर सकते हैं।
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भूपेंद्र वर्मा ने सेंट थॉमस कॉलेज से बीजेएमसी और एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी से एमजेएमसी किया है। भूपेंद्र को लेखक के तौर पर फ्रीलांसिंग में काम करते 2 साल हो गए हैं। इनकी लिखी हुई कविताएं, गाने और रैप हर किसी को पसंद आते हैं। यह अपने लेखन और रैप करने के अनोखे स्टाइल की वजह से जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्टोरी और डायलॉग्स भी लिखे हैं। इन्हें संगीत सुनना, फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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रस्सी कूदने के फायदे और नुकसान – Skipping Rope Benefits and Side Effects in Hindi
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रस्सी कूदने के फायदे और नुकसान �� Skipping Rope Benefits and Side Effects in Hindi
रस्सी कूदने के फायदे और नुकसान – Skipping Rope Benefits and Side Effects in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 January 10, 2020
कई लोग फिट होने के बारे में सोचते हैं, लेकिन काम की व्यस्तता के कारण जिम नहीं जा पाते। वहीं, अगर हम यह कहें कि फिट रहने के लिए जिम जाने की जरूरत नहीं है। घर में रहकर ही सेहत पर ध्यान रखा जा सकता है, तो आपको इस पर यकीन नहीं होगा, लेकिन सच में ऐसा संभव है। घर में कुछ समय निकालकर एक्सरसाइज करने से शरीर को फिट रखा जा सकता है। इसके लिए रस्सी कूदना (स्किपिंग रोप) सबसे बेहतर तरीका है। इसे करने पर पूरे शरीर को फिट रखा जा सकता है। रस्सी कूदने के साथ ही पौष्टिक आहार के सेवन का ध्यान रखना भी जरूरी है। इससे कई शारीरिक और मानसिक समस्याओं को दूर रखा जा सकता है। स्टाइलक्रेज का यह लेख आपको रस्सी कूदने का तरीका व रस्सी कूदने के फायदे के साथ ही रस्सी कूदने के नुकसान के बारे में जानने में मदद करेगा।
चलिए पढ़ते है कि रस्सी कूदने के फायदे क्या-क्या हो सकते हैं।
विषय सूची
रस्सी कूदने के फायदे – Benefits of Skipping Rope in Hindi
सही समय और नियम से रस्सी कूदना हर किसी के लिए लाभदायक हो सकता है। ये लाभ कुछ इस प्रकार हो सकते हैं।
1. हृदय स्वास्थ्य में सुधार
रस्सी कूदने से हृदय को स्वस्थ रखा जा सकता है। दरअसल, रस्सी कूदने से हृदय की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। रस्सी कूदने से कार्डियो सर्कुलेशन यानी ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, जो ब्लड को पंप करने के लिए जरूरी होता है। हृदय के स्वस्थ रहने से हार्ट स्ट्रोक और हृदय से जुड़े अन्य जोखिम से बचा जा सकता है (1)। यही वजह है कि रस्सी कूदना को कार्डियो एक्सरसाइज की लिस्ट में जगह दी गई है।
2. कैलोरी बर्न करने में मददगार
अगर कोई मोटापा कम करना चाहता है, तो उनके लिए रस्सी कूदना लाभकारी हो सकता है। रोप स्किपिंग से शरीर में मौजूद अतिरिक्त कैलोरी को बर्न करने में मदद मिल सकती है। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि रस्सी कूदने के फायदे कैलोरी बर्न करने के लिए हो सकते हैं (2) (3)।
3. मोटर फंक्शन और स्टैमिना में सुधार
मोटर फंक्शन मांसपेशियों की कार्यप्रणाली से संबंधित होता है। वहीं, रस्सी कूदने से मांसपेशियां बेहतर तरीके से काम करती हैं। इससे शरीर का संतुलन बनाए रखने में मदद मिल सकती है। इसे बच्चों के लिए अधिक लाभकारी माना जाता है। साथ ही रस्सी कूदने पर शरीर का स्टैमिना भी बढ़ता है। इससे काम करते समय जल्दी होने वाली थकान से बचा जा सकता है (1)।
4. पल्मोनरी में सुधार
खराब खानपान और जीवनशैली की वजह से कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती है। इसमें पल्मोनरी यानी फेफड़ों में मौजूद एक प्रकार की धमानियां भी हैं। पल्मोनरी में समस्या आने पर फेफड़ों से जुड़ी बीमारी हो सकती है। यहां तक कि श्वसन प्रणाली भी प्रभावित हो सकती है (4)। ऐसे में पल्मोनरी धमनियों को स्वस्थ रखना जरूरी हो जाता है। इन्हें स्वस्थ रखने के लिए रस्सी कूदने का सहारा लिया जा सकता है। दरअसल, रस्सी कूदने से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि होती है, जिससे फेफड़े की कार्यप्रणाली में सुधार हो सकता हैं (5)।
5. बोन डेंसिटी में सुधार
आजकल कई लोग ऑस्टियोपोरोसिस और उससे संबंधित समस्या से जूझ रहे हैं। इस अवस्था में हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि जरा-सा झटका लगने पर भी टूट सकती हैं (6)।  बोन डेंसिटी में सुधार के विषय में एनसीबीआई ने एक शोध पब्लिश किया। इस शोध के तहत लड़कियों के दो समूह बनाए गए। एक समूह ने नियमित रूप से रस्सी कूदने का अभ्यास किया। परिणामस्वरूप रस्सी न कूदने वाले ग्रुप के मुकाबले इन लड़कियों की बोन डेंसिटी में सुधार हुआ। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्या से बचने के लिए रस्सी कूदने को अपनी दिनचर्या में शामिल किया जा सकता है (7)।
6. मानसिक स्वास्थ्य के लिए
शारीरिक गतिविधि का मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है। एनसीबीआई द्वारा पब्लिश एक अध्ययन के मुतबिक, जो लोग ज्यादा शारीरिक गतिविधि नहीं करते हैं, उनमें डिप्रेशन (अवसाद) के लक्षण नजर आ सकते हैं। वहीं, रस्सी कूद जैसे अधिक श्रम वाले व्यायाम करने वालों में अवसाद के लक्षण कम होते पाए गए हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि शारीरिक गतिविधि के लिए रस्सी कूदना एक बेहतर उपाय साबित हो सकता है (8)।
7. जोड़ों के लिए लाभदायक
रस्सी कूदने के फायदे जोड़ों के लिए भी हो सकते हैं। नियमित रूप से रस्सी कूदने पर टखने, घुटने, कूल्हे और कंधों के जोड़ों की गतिविधि में तेजी आती है। इसका सकारात्मक असर जोड़ों पर दिखाई दे सकता है और उनमें सुधार हो सकता है (2)। फिलहाल, इस संबंध में और शोध की आवश्यकता है।
आर्टिकल में आगे हम रस्सी कूदने के विभिन्न तरीकों के बारे में जानते हैं।
रस्सी कूदने का तरीका – Ways to do Skipping in Hindi
रस्सी कूदने के कई तरीके होते हैं, लेकिन इनमें से कुछ कठिन होते हैं। उन्हें करने के लिए अभ्यास की जरूरत होती हैं। यहां हम सामान्य से लेकर कठिन तरीकों के बारे में बता रहे हैं।
दोनों पैरों से कूदना (Two leg jump rope) – दोनों पैरों को एकसाथ उठाकर रस्सी कूदना आसान और आम है। जो लोग पहली बार रस्सी कूदने के बारे में सोच रहे हैं, वो इस तरीके से शुरुआत कर सकते हैं।
एक पैर से कूदना (Single-Leg Jump)- इस तरीके को काफी अभ्यास के बाद ही किया जा सकता है। इसमें एक पैर से कूदा जाता है, जिससे लिए पूरे का शरीर संतुलन बनाना जरूरी होता है। अगर किसी ने रस्सी कूदना शुरू ही किया है, तो इसे न करे।
कूदते हुए हाथ क्रॉस करना (cross hand jump)- इस तरह के रस्सी कूद में कूदने वाला अपने हाथों को सामने की तरफ क्रॉस कर लेता है। कई बार इस तरीके को करते समय रस्सी के पैरों में फंसकर गिरने का डर रहता है। इसलिए, यह तरीका सिर्फ अनुभवी लोग ही कर सकते हैं।
नोट : अगर आप पहली बार रस्सी कूदने का अभ्यास कर रहे हैं, तो शुरुआत में कम गति से दोनों पैरों के साथ शुरू करें।
रस्सी कूदने का सही समय जानने के लिए इस लेख को पढ़ते रहें।
रस्सी कूदने का सही समय – Right Time to do Skipping in Hindi
जिस प्रकार व्यायाम करने का निश्चित समय होता है, उसी प्रकार रस्सी कूदने का भी उचित समय सुबह ही है। इससे पूरे शरीर में रक्त संचार बेहतर हो सकता है। इसके अलावा, आप शाम को भी रस्सी कूद सकते हैं। ये द���नों ही समय रस्सी कूदने के लिए बेहतर होते हैं।
आगे हम बता रहे हैं कि किस अवस्था में रस्सी कूदने से बचना चाहिए।
किन लोगों को रस्सी नहीं कूदनी चाहिए? – Who Should Avoid Skipping in Hindi
कुछ समस्याएं ऐसी होती है, जो रस्सी कूदने पर बढ़ सकती है या अन्य जोखिम उत्पन्न कर सकती है। ऐसे में उन अवस्थाओं में रस्सी नहीं कूदनी चाहिए। ये स्थितियों कुछ इस प्रकार हो सकती हैं :
जो लोग दिल से जुड़ी किसी भी तरह की बीमारी से जूझ रहे हैं, उन्हें रस्सी नहीं कूदनी चाहिए।
अगर किसी की सर्जरी हुई है, जो पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है, तो रस्सी कूदने से बचना चाहिए।
उच्च रक्तचाप वालों को रस्सी नहीं कूदनी चाहिए। अगर वो फिर भी ऐसा करना ही चाहते हैं, तो पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
जिन्हें हड्डियों से संबंधित किसी प्रकार की समस्या है, उन्हें रस्सी नहीं कूदनी चाहिए।
अस्थमा की समस्या से जूझ रहे व्यक्ति रस्सी न कूदें, क्योंकि इससे सांस फूल सकती है।
लेख के आखिर भाग में हम रस्सी कूदने के नुकसान के बारे में जानेंगे।
रस्सी कूदने के नुकसान – Side Effects of Skipping in Hindi
जिस तरह रस्सी कूदना शरीर को फायदा पहुंचा सकती है, वैसे ही इससे कुछ नुकसान भी हो सकते हैं। जो इस तरह के हो सकते हैं :
रस्सी कूदते समय रस्सी के टूटने पर चोट लग सकती है।
कई बार पैरों में मोच आ सकती है।
इसे करते समय मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न हो सकता है।
इस लेख को पढ़ने के बाद अब आप भी रस्सी कूदने के बारे में सोच रहे होंगे। रस्सी कूदना इतना फायदेमंद और आसान है कि इसे कोई भी कर सकता है। इसे कब करना बेहतर होगा, इस बात कि जानकारी लेख में ऊपर दी गई है। साथ ही किन स्थितियों में नहीं करना चाहिए, यह भी ऊपर दिया गया है। इसलिए, रस्सी कूदना शुरू करने से पहले इस लेख को ध्यान से अच्छे से पढ़ लें। आशा करते हैं कि इस लेख की जानकारी आपके काम आएगी। इस लेख से जुड़ी अन्य जानकारी के लिए आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स का सहारा ले सकते हैं।
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Bhupendra Verma
भूपेंद्र वर्मा ने सेंट थॉमस कॉलेज से बीजेएमसी और एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी से एमजेएमसी किया है। भूपेंद्र को लेखक के तौर पर फ्रीलांसिंग में काम करते 2 साल हो गए हैं। इनकी लिखी हुई कविताएं, गाने और रैप हर किसी को पसंद आते हैं। यह अपने लेखन और रैप करने के अनोखे स्टाइल की वजह से जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्टोरी और डायलॉग्स भी लिखे हैं। इन्हें संगीत सुनना, फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/rassi-kudne-ke-fayde-aur-nuksan-in-hindi/
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शीर्षासन करने का तरीका और फायदे – Sirsasana (Headstand Pose) Steps And Benefits in Hindi
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शीर्षासन करने का तरीका और फायदे – Sirsasana (Headstand Pose) Steps And Benefits in Hindi
शीर्षासन करने का तरीका और फायदे – Sirsasana (Headstand Pose) Steps And Benefits in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 January 7, 2020
आजकल हर कोई काम-काज की भाग-दौड़ में स्वास्थ्य के साथ समझौता कर रहा है। परिणामस्वरूप तनाव, अवसाद और खराब पाचन तंत्र का सामना करना पड़ता है। अगर आप चाहते हैं कि ऐसी कोई भी समस्या आपको न हो, तो उसके लिए योग पर भरोसा करें। योग शरीर को तरोताजा और मन को शांत रखने में म��द कर सकता है। हालांकि, इसके लिए कई योगासन है, लेकिन स्टाइलक्रेज के इस आर्टिकल में हम सिर्फ शीर्षासन की बात करेंगे। आर्टिकल में शीर्षासन करने का तरीका और शीर्षासन के फायदे के साथ-साथ शीर्षासन के नुकसान के बारे में विस्तार से बताया गया है। हमारे लिए यह जानना भी जरूरी है कि सिर्फ शीर्षासन करने से कोई चमत्कार नहीं होने वाला। इसके साथ-साथ पौष्टिक आहार का सेवन करना और संतुलित जीवनशैली का पालना करना भी जरूरी है।
इस लेख के सबसे पहले भाग में हम जानेंगे कि शीर्षासन किसे कहते हैं।
विषय सूची
शीर्षासन क्या है? – What is Sirsasana (Headstand Pose) in hindi
शीर्षासन संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है, शीर्ष यानी सिर और आसन यानी मुद्रा। इस योगासन का मतलब होता है, सिर के बल योग करना। इस आसन को सबसे कठिन माना गया है। संभवत: यही कारण है कि इसे सभी आसनों के शीर्ष पर रखा गया है। इस कारण से भी इसे शीर्षासन कहा जाता है। इस आसन को करते समय शरीर पूरी तरह विपरीत स्थिति में होता है यानी सिर के बल खड़ा होने का प्रयास किया जाता है। शीर्षासन मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह को बढ़ाने में मदद कर सकता है। इससे याददाश्त को मजबूत करने और दिमाग की कार्य क्षमता को बढ़ाने में मदद मिल सकती है (1)।
इस आर्टिकल के अगले हिस्से में शीर्षासन के फायदे के बारे में जानेंगे।
शीर्षासन करने के फायदे – Benefits of Sirsasana (Headstand Pose) in hindi
किसी भी योग को सही तरीके से किया जाए, तो वह लाभकारी होता है। ऐसे ही शीर्षासन के भी लाभ हो सकते हैं, जो इस प्रकार है:
1. तनाव दूर करने के लिए
इन दिनों तनाव होना आम बात है। इसे दूर करने के लिए योग का सहारा लिया जा सकता है। इसी संबंध में एनसीबीआई ने एक रिसर्च पेपर को प्रकाशित किया है। इस रिसर्च पेपर के अनुसार, तनाव व उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए योग का प्रयोग किया गया। इन योगासनों में शीर्षासन को भी जगह दी गई, जिसके सकारात्मक परिणाम नजर आए (2)। शीर्षासन शरीर और मन को शांत करने में मदद करता है। इससे तनाव दूर हो सकता है (3)। इसलिए, शीर्षासन के लाभ में तनाव से छुटकारा पाना शामिल हो सकता है।
2. पाचन के लिए
पेट को ठीक रखने के लिए पाचन तंत्र का अच्छे से काम करना जरूरी है। ऐसे में पाचन क्रिया को बेहतर बनाने के लिए शीर्षासन का सहारा लिया जा सकता है। इस आसन के जरिए होने वाली शारीरिक गतिविधि आहार को पचाने में मदद कर सकती है (4)। शीर्षासन करने से शरीर में खून का प्रवाह बेहतर होता है, जिसका असर पाचन तंत्र भी नजर आ सकता है। इस प्रकार शीर्षासन के फायदे में बेहतर पाचन तंत्र भी शामिल है।
3. अस्थमा के इलाज में मदद
योग में श्वसन क्रिया के मुख्य भूमिका मानी जाती है। इसलिए, श्वसन क्रिया से संबंधित किसी भी समस्या को दूर करने के लिए योग करना अच्छा माना जा सकता है। वहीं, अस्थमा श्वसन क्रिया से जुड़ी समस्या है। इसके कारण सांस फूलने लगती है। ऐसे में शीर्षासन करने पर अस्थमा की स्थिति में सुधार हो सकता है। फिलहाल, इस संबंध में और वैज्ञानिक शोध किए जाने की जरूरत है।
4. इनफर्टिलिटी (बांझपन)
महिला और पुरुष दोनों के लिए योग एक सामान फायदा पहुंचाने का काम कर सकता है। महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन के कारण इनफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है (5)। इसे संतुलित करने के लिए योग मदद कर सकता है। वहीं, पुरुषों में स्पर्म काउंट कम होने पर इनफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है (6)। शीर्षासन की मदद से स्पर्म काउंट भी बढ़ सकता है। जिससे कि महिलाओं और पुरुषों की इनफर्टिलिटी यानी बांझपन की समस्या दूर हो सकती हैं। फिलहाल, अभी इस बात की पुष्टि करने के लिए किसी तरह का वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है।
5. डिप्रेशन (अवसाद)
योग के माध्यम से मूड में सुधार किया जा सकता है। जैसा कि लेख में ऊपर बताया गया है कि शीर्षासन करने पर मस्तिष्क में रक्त संचार बढ़ सकता है। इससे डिप्रेशन से निकलने में मदद मिल सकती है (7)। इसलिए, योग को अवसाद के लिए अच्छा इलाज माना जा सकता है।
ऊपर आपने शीर्षासन के फायदे पढ़े, आगे हम इस आसन को करने के तरीके बता रहे हैं।
शीर्षासन योग मुद्रा करने का तरीका – Steps to Do Sirsasana in Hindi
शीर्षासन को करने के लिए सबसे पहले चटाई बिछाकर वज्रासन की अवस्था में आ जाएं।
फिर दोनों हाथों की उंगलियों को इंटरलॉक करते हुए, आगे की तरफ झुककर हाथों को जमीन पर रखें।
अब सिर को झुकाकर हाथों के बीच में रखते हुए जमीन से सटाएं।
फिर पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाएं और सीधे कर लें।
इस स्थिति में सिर के बल शरीर पूरी तरह सीधा होना चाहिए।
कुछ सेकंड इसी मुद्रा में बने रहे और सामान्य गति से सांस लेते रहें।
फिर सांस छोड़ते हुए पैरों को नीचे करें और धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में आ जाएं।
शुरुआत में इस आसन को दो से तीन बार तक करें।
शीर्षासन करने का तरीका जानने के बाद आगे हम इस करने के कुछ टिप्स बता रहे हैं।
शुरुआती लोगों के लिए शीर्षासन करने की टिप्स
जो लोग पहली बार इस आसन को कर रहे हैं, उनके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। ऐसे लोगों के लिए हम कुछ काम की बातें बता रहे हैं।
इस आसन को पहली बार कर रहे हैं, तो विशेषज्ञ की निगरानी में करें।
इस आसान की शुरुआत में संतुलन बनाना मुश्किल हो सकता है। इसलिए, दीवार का सहारा लेना बेहतर होगा।
इस आसन को सुबह खली पेट करना उचित होगा।
शरीर का पूरा भार सिर्फ सिर पर न डालें, बल्कि बाहों और कंधों पर भी रखें।
इस प्रक्रिया से पहली वाली मुद्रा में धीरे से आएं। ध्यान रहे गले में झटका न लगे।
इस लेख के अगले भाग में शीर्षासन करने से पहले कुछ सावधानियों के बारे में बताया गया है।
शीर्षासन योग के लिए कुछ सावधानियां – Precautions for Sirsasana In Hindi
शीर्षासन करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखने से विभिन्न प्रकार के नुकसान से बचा जा सकता है।
कंधे, बुजाओं, पीठ, सिर या गर्दन में दर्द हो, तो इस आसन को करने से बचें।
उच्च रक्तचाप, हार्ट फेलियर व बेरी एन्यूरिज्म (दिमाग की नसों से जुड़ी समस्या) और 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को यह आसन नहीं करना चाहिए।
अगर शरीर में किसी तरह की कमजोरी हो रही है, तो इस आसन को न करें।
गर्भवती को इस आसन से बचना चाहिए।
शीर्षासन करने के चमत्कारी लाभ तो आप इस लेख को पढ़ने ���े बाद जान ही गए होंगे। इसलिए, आप बिना देरी किए आज से ही इसे करने का अभ्यास शुरू कर दें। साथ ही ध्यान रखें कि इसे प्रशिक्षित योग शिक्षक की देखरेख में ही करें, वरना फायदे की जगह नुकसान हो सकता है। साथ ही योग करने का लाभ तभी मिलेगा, जब आप इसे नियमित रूप से करेंगे। उम्मीद करते हैं कि इस आर्टिकल में दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। अगर आप शीर्षासन के संबंध में और कुछ जानना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स के जरिए अपने सवाल हमारे साथ साझा कर सकते हैं।
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लोबिया के फायदे, उपयोग और नुकसान – Cowpeas (Lobia) Benefits and Side Effects in Hindi
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लोबिया के फायदे, उपयोग और नुकसान – Cowpeas (Lobia) Benefits and Side Effects in Hindi
लोबिया के फायदे, उपयोग और नुकसान – Cowpeas (Lobia) Benefits and Side Effects in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 December 24, 2019
लोबिया एक तरह का पौधा होता है, जिसकी फलियों को सब्जी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसकी फलियां बाहर से हरे रंग की होती है। वहीं, इसके बीज का रंग काला, भूरा, लाल सफेद हो सकता है। इसके बीज को दाल की तरह भी उपयोग किया जा सकता है। लोबिया के बीज पोषक तत्व से समृद्ध होते हैं, जो कई रोग को दूर रखने का काम कर सकते हैं। लोबिया रोग मुक्त रहने में मदद कर सकता है। वहीं, बीमारी की अवस्था में रोग के लक्षणों को कम कर सकता है। हां, अगर कोई गंभीर रूप से बीमार है, तो डॉक्टर से इलाज कराना जरूरी है। स्टाइलक्रेज के इस आर्टिकल में हम लोबिया के फायदे और लोबिया के नुकसान दोनों पर विस्तार से जानकारी देंगे।
विषय सूची
सबसे पहले लोबिया के फायदे पढ़ेंगे और फिर आर्टिकल के अंत में इसके नुकसान जानेंगे।
लोबिया के फायदे – Benefits of Cowpeas (Lobia) in Hindi
अगर कोई लोबिया का सेवन करता है, तो उसे कई शारीरिक लाभ हो सकते हैं, जो निम्न प्रकार से हैं:
1. हृदय रोग के लिए
एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के एक शोध के अनुसार, उच्च फाइबर वाले आहार का सेवन करने से हृदय से संबंधित रोगों से बचा जा सकता है। फैट और कोलेस्ट्रॉल की अधिकता हृदय संबंधी कई जोखिमों को बढ़ावा देती है, ऐसे में फाइबर हृदय संबंधी रोगों को दूर रखने में मदद कर सकता है। फाइबर हृदय वाले भाग में फैट जमने से रोक सकता है। साथ ही कोलेस्ट्रॉल को कम करने का भी काम कर सकता है। वहीं, लोबिया को फाइबर का अच्छा स्रोत माना गया है (1)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि लोबिया के फायदे हृदय रोग में भी लाभदायक साबित हो सकते हैं।
2. एंटी-कैंसर की तरह
एनसीबीआई में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, कुछ दालों और सूखी बीन्स में एंटी-कैंसर गुण पाए जाते हैं। इन्हीं बीन्स में लोबिया भी शामिल है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि इसका सेवन कर कैंसर जैसी घातक बीमारी को दूर रखा जा सकता है (2)। वहीं, अगर कोई कैंसर से जूझ रहा है, तो उसे डॉक्टर से उचित उपचार करना चाहि��, क्योंकि कैंसर का इससे बेहतर और कोई इलाज नहीं है। साथ ही इस अवस्था में डॉक्टर की सलाह पर ही लोबिया का सेवन करना चाहिए।
3. उच्च रक्तचाप
उच्च रक्तचाप के कारण हार्ट अटैक, किडनी डैमेज जैसे जोखिम उत्पन्न होने की आशंका रहती है (3)। इस समस्या से बचे रहने में लोबिया की फली मददगार साबित हो सकती है। दरअसल, लोबिया में एंटी-हाइपरटेंसिव गुण पाए जाते हैं, जो बढ़ते हुए रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक साबित हो सकते हैं (4)। वहीं, अगर कोई उच्च रक्तचाप से ग्रस्त है, तो उसे घरेलू उपचार के साथ-साथ डॉक्टर की सलाह पर दवा का सेवन भी जरूर करना चाहिए।
4. मधुमेह के लिए
मधुमेह की समस्या होने पर डॉक्टरों द्वारा कई खाद्य पदार्थों से परहेज करने की सलाह दी जाती है। ऐसे में लोबिया का सेवन मधुमेह की समस्या में फायदेमंद साबित हो सकता है। इसके लिए लोबिया की फली में पाए जाने वाले पोलीफिनॉल की अहम भूमिका हो सकती है। दरअसल, पोलीफिनॉल में कई औषधीय गुणों के साथ एंटी-डायबिटिक प्रभाव मौजूद होता है, जो रक्त में शुगर की मात्रा को संतुलन में रखने का काम कर सकता है (5)।
5. एंटी-इंफ्लेमेटरी की तरह
एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, लोबिया में कई पोषक तत्व मौजूद होते हैं और इन्हीं पोषक तत्वों की मौजूदगी के कारण लोबिया में कई औषधीय प्रभाव भी पाए जाते हैं। इनमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण भी शामिल है। इसी गुण के कारण लोबिया का सेवन शरीर की सूजन और दर्द से राहत दिलाने में सहायक साबित हो सकता है (6)।
6. क्रोनिक डिसीसेस (Chronic Diseases)
अगर कोई लंबे समय से बीमारी से ग्रसित है, तो इस समस्या से छुटकारा दिलाने में लोबिया मददगार हो सकता है। दरअसल, लोबिया की फली में फेनोलिक यौगिक पाए जाते हैं, जो शरीर को सुरक्षा प्रदान करने का काम कर सकते हैं। इससे लंबे समय से चली आ रही बीमारी से उबरने में कुछ मदद मिल सकती है। बता दें क्रोनिक डिसीसेस में कैंसर, एजिंग, मधुमेह और हृदय रोग आदि शामिल हैं (7)। साथ ही हम यहां स्पष्ट कर दें कि अगर कोई इस अवस्था में है, तो उसे डॉक्टर की सलाह पर ही इस घरेलू उपचार का इस्तेमाल करना चाहिए।
लोबिया के फायदे विस्तार में जानने के बाद आगे हम इसके पौष्टिक तत्वों के बारे में बता रहे हैं।
लोबिया के पौष्टिक तत्व – Cowpeas (Lobia)  Nutritional Value in Hindi
अगर किसी को लोबिया से लाभ पहुंचता है, तो इसके लिए लोबिया में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व सहायक हो सकते हैं। इन पोषक तत्वों के बारे में हमने नीचे चार्ट के जरिए अच्छी तरह बताने का प्रयास किया है (8)।
पोषक तत्व मात्रा प्रति 100 g पानी 89.78 g ऊर्जा 29 kcal प्रोटीन 4.1 g टोटल लिपिड (फैट) 0.25 g कार्बोहाइड्रेट 4.82 g मिनरल्स कैल्शियम ,Ca 63 gm आयरन ,Fe 1.92 mg मैग्नीशियम , Mg  43 mg फास्फोरस ,P 9 mg पोटैशियम ,K 455 mg सोडियम ,Na 7 mg जिंक ,Zn 0.29 mg विटामिन्स विटामिन सी , टोटल एस्कॉर्बिक एसिड 36 mg थाइमिन 0.354 mg राइबोफ्लेविन 0.175 mg नियासिन 1.12 mg विटामिन बी -6 0.177 mg फोलेट DFE 101 µg विटामिन ए RAE 36 µg विटामिन ए, IU 712 IU लिपिड फैटी एसिड, टोटल सैचुरेटेड 0.066 g फैटी एसिड, टोटल मोनोसैचुरेटेड 0.022 g फैटी एसिड, टोटल पॉलीसैचुरेटेड 0.106 g
अब आगे लोबिया के उपयोग के बारे में जानेंगे।
लोबिया का उपयोग – How to Use Cowpeas (Lobia) in Hindi
लोबिया को कई तरह से खाया जा सकता है और इसके स्वाद के साथ पोषण का भी लाभ उठाया जा सकता है। आइए, अब लोबिया को उपयोग करने के कुछ तरीकों पर एक नजर डाल लेते हैं।
कैसे खाएं:
लोबिया की फली व बीजों को सब्जी बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
लोबिया के बीजों को पीसकर इसे कड़ी बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
लोबिया के बीजों की चाट बनाकर खाई जा सकती है।
इसे कुछ दिन भीगाकर रखने के बाद स्प्राउड की तरह खाया जा सकता है।
कब खाएं:
सुबह भीगे हुए लोबिया को खाया जा सकता है।
इसकी सब्जी को दोपहर या रात के खाने में उपयोग कर सकते हैं।
शाम में लोबिया से बने पकौड़े या चाट खाई जा सकती है।
कितना खाएं:
लोबिया को प्रतिदिन 150 से 300 ग्राम तक खाने के लिए उपयोग कर सकते हैं (9)। इस वैज्ञानिक प्रमाण के बावजूद बेहतर होगा कि आप आहार विशेषज्ञ से इसकी मात्रा के बारे में सलाह ले सकते हैं।
आगे लोबिया के नुकसान जानेंगे।
लोबिया से नुकसान – Side Effects of Cowpeas (Lobia) in Hindi
जिस तरह लोबिया लाभदायक हो सकता है, उसी तरह लोबिया के नुकसान भी हो सकते हैं। जिनके बारे में हम कुछ बिंदु के माध्यम से नीचे बता रहे हैं।
लोबिया के अधिक मात्रा में सेवन से पेट संबंधी समस्याएं (जैसे:- अपच, उल्टी, दस्त, पेट फूलना और कब्ज) हो सकती हैं (10)।
गर्भवती को इसके सेवन से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि इसका सेवन गर्भवती के लिए नुकसानदायक हो सकता है (11)।
कुछ लोगों में लोबिया के सेवन से एलर्जी की समस्या हो सकती है।
अब लोबिया के बारे में पढ़कर आप समझ ही गए होंगे कि यह क्या होता है। साथ ही यह किस तरह की  बीमारियों को दूर रखने और उनके लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा आर्टिकल में लोबिया के पोषक मूल्य और इसके उपयोग के कुछ तरीके भी बताएं गए है, जो इसके सेवन में सहायक हो सकते हैं। ध्यान रहे कि लोबिया सिर्फ बीमारी के लक्षण को कम कर सकता है। उचित इलाज के लिए डॉक्टर की सलाह जरूरी है। उम्मीद करते हैं कि यह आर्टिकल आपके काम आएगा। अगर आपके पास इस आर्टिकल से जुड़ी कोई अन्य जानकारी है, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स के मदद से आप उसे हमारे साथ साझा कर सकते हैं।
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मक्खन (बटर) के फायदे, उपयोग और नुकसान – Butter (Makhan) Benefits and Side Effects in Hindi
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मक्खन (बटर) के फायदे, उपयोग और नुकसान – Butter (Makhan) Benefits and Side Effects in Hindi
मक्खन (बटर) के फायदे, उपयोग और नुकसान – Butter (Makhan) Benefits and Side Effects in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 December 24, 2019
अच्छी सेहत और रोगों को दूर रखने के लिए पोषक तत्वों से युक्त आहार को प्राथमिकता देना जरूरी है। ऐसे में उचित आहार का चुनाव करना हमारे लिए जरूरी होता है। यही नियम मक्खन पर भी लागू होता है। अब आप सोचेंगे कि मक्खन कैसे सेहत के लिए लाभदायक हो सकता है। इसमें तो जरूरत से ज्यादा फैट होता है, लेकिन तब भी हम यही कहेंगे कि कुछ मामलों में मक्खन सेहत के लिए फायदेमंद है। अब सेहत के लिहाज से कौन-सा मक्खन खाना चाहिए और कौन सा नहीं, यह आपको लेख में आगे जानने को मिलेगा। स्टाइलक्रेज के इस आर्टिकल में हम मक्खन के फायदे, मक्खन के नुकसान और मक्खन का उपयोग कैसे करें, इस बारे में विस्तार से बताएंगे।
विषय सूची
इस आर्टिकल में सबसे पहले हम यह जानेंगे कि मक्खन क्या है।
मक्खन क्‍या है? – What is Butter in Hindi
मक्खन एक तरह का डेयरी उत्पाद है। इसे दही, लस्सी, मलाई व दूध को मथकर निकाला जाता है। मक्खन को दधिज या माखन के नाम से भी जाना जाता है। मक्खन कई प्रकार के होते हैं, जिनमें दूध से बना बटर, पीनट बटर व कोको बटर मुख्य है। मक्खन में ऊर्जा, वसा और प्रोटीन जैसे मुख्य पोषक तत्व होते हैं (1)। मोनोअनसैचुरेटेड और पॉलीअनसैचुरेटेड फैट वाला बटर का सेवन बेहतर होता है। ध्यान रहे कि इतने गुणों के बाद भी इसे कम मात्रा में सेवन करना ही उचित होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि अगर हाई सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट वाले बटर का सेवन कर रहे हैं, तो हृदय रोग की समस्या बढ़ सकती है (2)। इस आर्टिकल में आगे हम बटर का उपयोग करने के विभिन्न तरीकों व फायदों के बारे में विस्तार से बताएंगे।
आर्टिकल के अगले हिस्से में बटर के फायदे जानेंगे।
मक्खन (बटर) के फायदे – Benefits of Butter in Hindi
स्वास्थ्य के लिहाज से मक्खन के कई फायदे हैं, जिनके बारे में हम यहां बता रहे हैं। साथ ही हम स्पष्ट कर दें कि इसे दवा या किसी मेडिकल ट्रीटमेंट का विकल्प न समझा जाए। यह घरेलू नुस्खे की तरह सिर्फ स्वस्थ्य रहने में मदद कर सकता है। वहीं, अगर कोई बीमार है, तो उसे डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करना चाहिए।
1. हृदय को स्वस्थ रखने के लिए
हृदय को स्वस्थ रखने की बात करें, तो इस मामले में पीनट बटर सबसे बेहतर है, क्योंकि इसमें मोनोअनसैचुरेटेड फैट पाए जाता हैं, जिसे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जा सकता है। मोनोअनसैचुरेटेड फैट, कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में मदद कर सकता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होने पर हृदय रोग से बचना आसान हो जाता है। वहीं, आम बटर में सैचुरेटेड फैट की मात्रा ज्यादा पाई जाती है (3)। इसलिए, ऐसा माना जा सकता है कि मक्खन के फायदे स्वस्थ हृदय के लिए हो सकते हैं।
2. पेट व वजन को कम करे
पेट को बढ़ाने से रोकने में मक्खन का सेवन मददगार हो सकता है। दरअसल, कम फैट वाले आहार का सेवन करने पर बढ़ते मोटापा से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा, कंजुगेटेड लिनोलिक एसिड (CLA) युक्त खाद्य पदार्थ के सेवन से भी वजन को जरूरत से ज्यादा बढ़ने से रोका जा सकता है (4) (5) (6)। इसमें पेट का बढ़ना भी शामिल है। वहीं मक्खन में यह गुण पाया जाता है। फिलहाल, इस संबंध में और शोध किए जाने की जरूरत है (7)।
3. प्रतिरक्षा को मजबूत करने में मददगार
द नेशनल एकेडमी प्रेस (The National Academies Press) के मुताबिक, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण शरीर में संक्रमण और कई अन्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। वहीं, प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए विटामिन-ए मददगार हो सकता है। जिन खाद्य आहार में विटामिन-ए पाए जाते हैं, उनमें मक्खन भी शामिल है (8)। इसलिए, मक्खन को इम्यून सिस्टम के लिए लाभकारी कहा जा सकता है, लेकिन इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि मक्खन कम फैट वाला होना चाहिए। अभी इस संबंध में और शोध किए जाने की जरूरत है।
4. एंटी कैंसर की तरह
बटर के फायदे कैंसर जैसी जानलेवा समस्या को दूर रखने के लिए हो सकते हैं। पीनट में आइसोफ्लेवोन्स, फाइटोस्टेरोल, रेसवेराट्रोल और फेनोलिक एसिड पाए जाते है, जो एक तरह कि एंटी कैंसर की तरह काम करता है। चुकी पीनट बटर, पीनट से बनाए जाते हैं। जो कैंसर की समस्या को दूर रखने के साथ साथ इसके लक्षण से भी राहत दिलाने का काम कर सकता है। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि पीनट बटर को एंटी-कैंसर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है (9)।
5. इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम का इलाज
इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम पेट से जुड़ी समस्या है। इसमें कब्ज, एसिडिटी, बदहजमी व डायरिया आदि समस्याएं हो सकती हैं (10)। इस समस्या से बचने के लिए सीमित मात्रा में बटर का सेवन किया जा सकता है। बटर में ब्यूटायरेट (butyrate) नामक कंपाउंड पाया जाता है, जो शॉट चेन फैटी एसिड का एक प्रकार है (11)। पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने के मामले में ब्यूटायरेट पर भरोसा किया जा सकता है। ब्यूटायरेट आंतों में सूजन को होने से रोक सकता है। साथ ही तरल पदार्थ व इलेक्ट्रोलाइट के स्तर को संतुलित बनाए रखने में मदद कर सकता है (12)। इस प्रकार कहा जाता सकता है कि मक्खन के फायदे में इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम से बचना भी शामिल है। 
इस आर्टिकल के अगले हिस्से में मक्खन के पौष्टिक तत्व के बारे में जानेंगे।
मक्खन के पौष्टिक तत्व – Butter Nutritional Value in Hindi
मक्खन में कौन-कौन से पोषक तत्व पाए जाते हैं, उस बारे में हम नीचे एक टेबल के जरिए बता रहे हैं (1):
पोषक तत्व मूल्य प्रति 100 g पानी 15.87 g ऊर्जा 717 kcal प्रोटीन 0.85 g टोटल लिपिड (फैट) 81.11 g कार्बोहाइड्रेट 0.06 g शुगर 0.06 g कैल्शियम, Ca 24 Mg आयरन Fe 0.02 Mg मैग्नीशियम, Mg 2 Mg फॉस्फोरस, P 24 Mg पोटैशियम, K 24 Mg सोडियम, Na 643 Mg जिंक 0.09 Mg थायमिन 0.005 Mg राइबोफ्लेविन 0.034 Mg नियासिन 0.042 Mg विटामिन बी-6 0.003 Mg फोलेट 3 µg विटामिन ई 2.32 Mg फैटी एसिड, टोटल सैचुरेटेड 51.368 g फैटी एसिड, टोटल मोनोअनसैचुरेटेड 21.021 g फैटी एसिड, टोटल पोलीअनसैचुरेटेड 3.043 g
आइए, अब यह भी जान लेते हैं कि मक्खन का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है।
मक्खन का उपयोग – How to Use Butter in Hindi
मक्खन को कई तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है, जिनमें से सबसे आम तरीकों के बारे में हम यहां बता रहे हैं।
कैसे खाएं:
ब्राउन ब्रेड पर मक्खन (बटर) को लगाकर खाया जा सकता है।
रोटी या पराठे के साथ भी मक्खन को खाया जा सकता है।
कुछ मक्खन ऐसे होते हैं, जिनसे सब्जी बनाकर भी खाया जा सकता है।
कई आहार में बटर को ऊपर से गार्निश किया जा सकता है।
बटर को आमलेट बनाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
कब खाएं:
सुबह ब्रेड के साथ खाया जा सकता है।
दोपहर या रात की सब्जी तैयार करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
शाम के नाश्ता में आमलेट के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं।
कितना खाएं:
प्रतिदिन एक चम्मच या 14 g मक्खन खाना स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद हो सकता है (13)। फिर भी इसके सेवन से पहले आहार विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। वह आपके स्वास्थ्य के अनुसार इसकी उचित मात्रा का सही जानकारी देंगे।
आगे हम बता रहे हैं कि मक्खन के सेवन से क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं।
मक्खन के नुकसान – Side Effects of Butter in Hindi
जिस तरह बटर के फायदे हैं, उसी तरह हाई सैचुरेटेड फैट वाले मक्खन के सेवन से नुकसान भी हो सकते हैं (2), जो इस तरह से हैं:
मक्खन में सैचुरेटेड फैट की मात्रा अधिक होती है। इसके अधिक मात्रा में सेवन से कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का जोखिम हो सकता है (14)।
मक्खन के सेवन से कोलेस्ट्रॉल के बढ़ने पर हृदय रोग की समस्या भी हो सकती है (15)।
मक्खन में वसा की अच्छी मात्रा पाई जाती है। इसलिए, इसके अधिक मात्रा में सेवन करने पर मोटापा बढ़ सकता है।
इस आर्टिकल को पढ़कर यह तो समझ आ ही गया होगा कि मक्खन कितने प्रकार के होते हैं। साथ ही किस तरह के बटर का सेवन उचित होगा। आप मक्खन जरूर खाएं, लेकिन कम फैट वाला और सीमित मात्रा में। साथ ही ध्यान रहे मक्खन किसी भी बीमारी का उपचार नहीं है। इन गंभीर बीमारी की अवस्था में मेडिकल ट्रीटमेंट से बेहतर कुछ नहीं है। उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी। अगर आपके पास इस लेख से जुड़ी अन्य जानकारी या सुझाव है, तो उसे नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स के माध्यम से हम तक पहुंचा सकते हैं।
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Bhupendra Verma
भूपेंद्र वर्मा ने सेंट थॉमस कॉलेज से बीजेएमसी और एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी से एमजेएमसी किया है। भूपेंद्र को लेखक के तौर पर फ्रीलांसिंग में काम करते 2 साल हो गए हैं। इनकी लिखी हुई कविताएं, गाने और रैप हर किसी को पसंद आते हैं। यह अपने लेखन और रैप करने के अनोखे स्टाइल की वजह से जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्टोरी और डायलॉग्स भी लिखे हैं। इन्हें संगीत सुनना, फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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टूना मछली के फायदे और नुकसान – Tuna Fish Benefits and Side Effects in Hindi
टूना मछली के फायदे और नुकसान – Tuna Fish Benefits and Side Effects in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 December 23, 2019
शरीर को रोग मुक्त रखने के लिए सही पोषण का होना जरूरी है। इन पोषक तत्वों की पूर्ति शाकाहारी और मांसाहारी, दोनों तरह के खाद्य पदार्थों से की जा सकती है। अगर बात करें नॉन वेज डाइट की, तो इसमें मछली की एक अहम भूमिका देखी जा सकती है। स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम एक खास प्रकार की मछली ‘टूना’ के शारीरिक फायदों के बारे में बता रहे हैं। जानिए स्वास्थ्य के लिए टूना मछली के फायदे और इसके सेवन के विभिन्न तरीकों के बारे में। साथ ही आपको इस लेख में टूना मछली के नुकसान के विषय में भी जानकारी दी जाएगी। इस बात का ध्यान रखें कि टूना मछली लेख में बताई जाने वाली शारीरिक समस्याओं के प्रभाव व उनके लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है, लेकिन यह किसी भी बीमारी का सटीक इलाज नहीं है। गंभीर स्वास्थ्य समस्या में मेडिकल ट्रीटमेंट को प्राथमिकता जरूर दें।
आइए, लेख में सबसे पहले जान लेते हैं कि टूना मछली क्या है।
विषय सूची
टूना मछली क्‍या है? – What is Tuna Fish in Hindi
टूना एक विशेष प्रकार की मछली है, जिसे टन्नी (Tunny) के नाम से भी जाना जाता है। यह मछली ‘थुन्निनी’ नामक मछलियों की प्रजाति से संबंध रखती है। विश्व भर में इसकी कई प्रजातियां मौजूद हैं। माना जाता है कि इसकी कुछ प्रजातियां 40 से 50 वर्ष तक जीवित रह सकती हैं। इसके अलावा, इसने आकार में भी भिन्नता पाई जाती है। टूना मछली ज्यादातर खारे पानी में रहती हैं। वहीं, अगर इसके स्वाद की बात करें, तो यह खाने में लजीज होती हैं। स्वास्थ्य लाभ के मामले में भी यह किसी से कम नहीं है। आगे लेख में बताया गया है कि इस मछली का सेवन कौन-कौन सी शारीरिक समस्याओं के लिए लाभकारी हो सकता है।
टूना मछली से होने वाले फायदे को जानने के लिए पढ़ते रहें यह लेख।
टूना मछली के फायदे – Benefits of Tuna Fish in Hindi
टूना मछली को आहार में शामिल करना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है। यह कई शारीरिक समस्याओं को दूर रखने में मदद कर सकती है। टूना मछली के फायदे इस तरह से हो सकते हैं।
1. वजन घटाने के लिए
एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, फिश ऑयल का सेवन कमर व नितंब के अनुपात (Waist-Hip Ratio) को कम ���रने में मदद कर सकता है। हालांकि, यह पूरी तरह से शरीर के वजन को कम करने में कितना लाभकारी हो सकता है, इस पर और शोध की आवश्यकता है (1)। वेस्ट-हीप के अनुपात को कम करने के लिए डॉक्टरी परामर्श पर टूना फिश ऑयल की खुराक ली जा सकती है। साथ ही व्यायाम भी जरूरी है।
2. हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए
एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, हड्डियों को स्वस्थ रखने में कैल्शियम और विटामिन डी की अहम भूमिका होती है। कैल्शियम हड्डियों के निर्माण में मदद करता है और विटामिन डी हड्डियों को मजबूत करने में मदद करता है। इससे हड्डियों का स्वास्थ्य बरकरार रहता है। साथ ही ऑस्टियोपोरोसिस जैसे हड्डी रोग और फ्रैक्चर के जोखिम कम करने में कैल्शियम और विटामिन डी के सप्लीमेंट कारगर साबित हो सकते हैं। यहां टूना मछली फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि यह बताए गए दोनों पोषक तत्वों से समृद्ध होती है (2) (3)।
3. गर्भवती महिलाओं के लिए लाभकारी
गर्भवती महिला के लिए खान-पान का ध्यान रखना जरूरी होता है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक, टूना मछली का सेवन गर्भवती और शिशु के लिए लाभदायक हो सकता है। टूना मछली में ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है, जो गर्भवती को हृदय रोग के जोखिम से बचाने में मदद कर सकता है। साथ ही भ्रूण के मस्तिष्क और सेंट्रल नवर्स सिस्टम के विकास में भी सहायक हो सकता है। इसके अलावा, टूना मछली का सेवन जन्म के समय नवजात के वजन और गर्भावस्था के समय पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है (4)।
4. प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा
शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अगर मजबूत है, तो रोग उत्पन्न होने का डर कम हो जाता है। शरीर की प्रतिरक्षा को बनाए रखने में टूना मछली का सेवन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। टूना मछली में ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है, जो शरीर में इम्यूनोमॉड्यूलेटरी (Immunomodulatory) की तरह काम कर सकता है, जिसे इम्यून स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है (5)। इसलिए, टूना के फायदे प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए भी माने जा सकते हैं।
5. आंखों के लिए फायदेमंद
आंखों को स्वस्थ रखने के लिए मछली का सेवन फायदेमंद माना जाता है। उन मछलियों की सूची में टूना का भी नाम शामिल है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध के अनुसार मछलियों में खासकर टूना का सेवन, बढ़ती उम्र के साथ होने वाले नेत्र रोग जैसे एज रिलेटेड मैक्युलर डीजेनेरेशन (Age-related macular degeneration) पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है (6)। हालांकि, इस विषय पर अभी और शोध की आवश्यकता है।
6. हृदय के लिए लाभकारी
एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, टूना मछली के फायदे हृदय स्वास्थ्य के लिए भी हो सकते हैं। जैसा कि हमने बताया कि टूना मछली ओमेगा-3 फैटी एसिड से समृद्ध होती है और यह फैटी हृदय रोग के जोखिम को कम करने के साथ-साथ कार्डियक डेथ (हृदय रोग से होने वाली मृत्यु) के जोखिम को भी कम कर सकता है (7)।
7. स्तन कैंसर को दूर रखने के लिए
एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, विटामिन डी की कमी स्तन कैंसर का कारण बन सकती है। जैसा कि हमने ऊपर बताया कि टूना अन्य पोषक तत्वों के साथ विटामिन-डी से भी समृद्ध होती है और विटामिन-डी का पर्याप्त मात्रा में सेवन स्तन कैंसर से बचाव का काम कर सकता है (8) (9) (3)। हालांकि, टूना मछली सीधे तौर पर स्तन कैंसर के लिए कितनी फायदेमंद होगी, इस पर अभी और शोध की आवश्यकता है। इसलिए, हमारी सलाह यह है कि अगर कोई कैंसर जैसी घातक बीमारी से ग्रस्त है, तो उसे डॉक्टर से उपचार जरूर करवाना चाहिए। सिर्फ घरेलू उपचार के सहारे रहना सही निर्णय नहीं है।
टूना मछली के फायदे जानने के बाद आगे जानिए इसके पौष्टिक तत्वों के बारे में।
टूना मछली के पौष्टिक तत्व – Tuna Fish Nutritional Value in Hindi
टूना मछली में मौजूद पौष्टिक तत्वों को जानने के लिए नीचे हम एक तालिका साझा कर रहे हैं (3)।
पोषक तत्व मात्रा प्रति 100 g पानी 74.03 g ऊर्जा 109 kcal प्रोटीन 24.4 g टोटल लिपिड (फैट) 0.49 g मिनरल कैल्शियम ,Ca 4 gm आयरन ,Fe 0.77 mg मैग्नीशियम , Mg  35 mg फास्फोरस,P 278 mg पोटैशियम ,K 441 mg सोडियम ,Na 45 mg जिंक ,Zn 0.37 mg विटामिन थियामिन 0.118 mg राइबोफ्लेविन 0.115 mg नियासिन 18.475 mg विटामिन बी -6 0.933 mg फोलेट, DFE 2 µg विटामिन बी-12 2.08 µg विटामिन ए, RAE 18 µg विटामिन ए, IU 60 IU विटामिन ई (अल्फा टोकोफेरॉल) 0.24 mg विटामिन डी 69 IU लिपिड फैटी एसिड, टोटल सैचुरेटेड 0.172 g फैटी एसिड, टोटल मोनोसैचुरेटेड 0.116 g फैटी एसिड, टोटल पॉलीअनसैचुरेटेड 0.147 g
लेख के आगे के भाग में जानिए टूना मछली का उपयोग कैसे किया जा सकता है।
टूना मछली का उपयोग – How to Use Tuna Fish in Hindi
नीचे जानिए टूना मछली के सेवन के विभिन्न तरीकों के बारे में –
कैसे खाएं :
इसे फिश करी की तरह खाया जा सकता है।
इसे भूनकर खाया जा सकता है।
इसका सूप बनाकर सेवन किया जा सकता है।
इसे स्टीम करके भी खाया जा सकता है।
कब खाएं :
फिटनेस के शौकीन सुबह या शाम स्टीम फिश खा सकते हैं।
दोपहर या रात के खाने के साथ फिश करी का आनंद लिया जा सकता है।
शाम में भुनी हुई मछली खाई जा सकती है।
कितना खाएं :
टूना मछली को हफ्ते में लगभग 226 ग्राम तक खाया जा सकता है, जो शरीर के लिए लाभदायक हो सकता है (10)। फिर भी इसके सेवन से पहले एक बार आहार विशेषज्ञ से उचित मात्रा की जानकारी ले सकते हैं।
आगे जानिए इससे होने वाले नुकसान के बारे में।
टूना मछली के नुकसान – Side Effects of Tuna Fish in Hindi
जिस तरह टूना मछली लाभ पहुंचाने का काम कर सकती है। वैसे ही कई बार इससे नुकसान भी देखे जा सकते हैं –
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक छोटी मछलियों की तुलना में बड़ी मछलियों में मरकरी की मात्रा अधिक होती है, जिसमें टूना भी शामिल है। यहां मरकरी युक्त मछली गर्भावस्था के दौरान और जन्म के बाद शिशु के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास को बाधित कर सकती है (11)।
जिन्हें मछली खाने की ज्यादा आदत नहीं है, उन्हें पाचन क्रिया से संबंधित परेशानी हो सकती है, लेकिन इसके लिए अभी कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है।
अगर मछ���ी को पकाने से पहले ठीक से साफ न किया जाए, तो संक्रमण का खतरा हो सकता है (12)।
अब तो आप समझ गए होंगे कि स्वास्थ्य के लिए टूना मछली किस प्रकार फायदेमंद हो सकती है। साथ ही कौन-कौन सी बीमारियों के प्रभाव को कम करने के लिए इसका सेवन किया जा सकता है। इसके अलावा, लेख में इसके सेवन करने के विभिन्न तरीकों के बारे में भी बताया गया है। ऐसे में इसके शारीरिक फायदे पाने के लिए इसे दैनिक आहार में शामिल किया जा सकता है। यहां एक बार फिर से बता दें कि टूना मछली लेख में बताई गई किसी भी बीमारी का उपचार नहीं कर सकती है, लेकिन उनके लक्षणों को कम करने में सहायक भूमिका जरूर निभा सकती है। उम्मीद है कि यह लेख आपके लिए लाभकारी साबित होगा। लेख से जुड़ी अन्य जानकारी के लिए आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स की मदद ले सकते हैं।
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Bhupendra Verma
भूपेंद्र वर्मा ने सेंट थॉमस कॉलेज से बीजेएमसी और एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी से एमजेएमसी किया है। भूपेंद्र को लेखक के तौर पर फ्रीलांसिंग में काम करते 2 साल हो गए हैं। इनकी लिखी हुई कविताएं, गाने और रैप हर किसी को पसंद आते हैं। यह अपने लेखन और रैप करने के अनोखे स्टाइल की वजह से जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्टोरी और डायलॉग्स भी लिखे हैं। इन्हें संगीत सुनना, फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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दलिया के फायदे और नुकसान – Bulgur Wheat (Daliya) Benefits and Side Effects in Hindi
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दलिया के फायदे और नुकसान – Bulgur Wheat (Daliya) Benefits and Side Effects in Hindi
दलिया के फायदे और नुकसान – Bulgur Wheat (Daliya) Benefits and Side Effects in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 December 20, 2019
दलिया और दलिया से बने खाद्य पदार्थ पोषक तत्वों से समृद्ध होते हैं। दलिये के सेवन से पोषण तत्वों की कमी से होने वाले समस्या को कम किया जा सकता है। साथ ही यह कई बीमारियों के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। वहीं, अगर कोई गंभीर रूप से बीमार है, तो डॉक्टर की सलाह इसका सेवन करने से इलाज के प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है। ऐसा इसलिए संभव है, क्योंकि इलाज के साथ-साथ सही खान-पान भी जरूरी है। स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम दलिया खाने के फायदे और दलिया खाने के नुकसान दोनों के बारे में जानकारी देंगे।
लेख के शुरुआत में हम यही बता रहे हैं कि दलिया कहा किसे जाता है।
विषय सूची
दलिया क्या है? – What is Bulgur Wheat in Hindi
दलिया एक पौष्टिक आहार होता है, जो टूटे हुए अनाज के मिश्रण से बनता है। इन अनाज में म��ख्य रूप से गेहूं, चावल, बाजरा, मकई व जई आदि शामिल है। भारत में सामान्य रूप से लगभग सभी के घर गेंहू का दलिया पाए जाते हैं। यह कई पोषक तत्व से समृद्ध होता है, जैसे – विटामिन, मिनरल व आयरन। इसे ज्यादातर सुबह के नाश्ते में खाया जाता है, क्योंकि सुबह इसका सेवन करने से शरीर को पर्याप्त ऊर्जा मिलती है और आप दिनभर तारोताजा रहते हैं। इसके सेवन से पाचन, कब्ज और हृदय स्वस्थ जैसी कई समस्याओं को दूर करने में मदद मिल सकती है। इसके बारे में लेख में आगे विस्तार से बताया गया है।
दलिया के फायदे जानने के लिए पढ़ते रहें यह लेख।
दलिया के फायदे – Benefits of Bulgur Wheat in Hindi
दलिया लोगों के आहार में अपनी जगह इसलिए बनाए हुए है, क्योंकि इसका सेवन सेहतमंद होता है। यहां हम इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
1. हृदय स्वाथ्य में सुधार
आजकल हर कोई स्वस्थ रहना चाहता है और दलिये की मदद से ऐसा संभव है। दलिया फाइबर का अच्छा स्रोत होता है, जो हृदय के जोखिम से बचाए रखने में मदद कर सकता है। वहीं, अगर किसी का हृदय संबंधी इलाज चल रहा है, तो दलिया इलाज के प्रभाव को बढ़ा सकता है (1)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि दलिया के फायदे हृदय के लिए भी हो सकते हैं।
2. ब्लड शुगर को नियंत्रण में करने के लिए
एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, दलिया का सेवन करने से ब्लड शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है। दरअसल, दलिया रक्त में शुगर की मात्रा को कम और इंसुलिन के संचार की मात्रा को बढ़ाने में मदद कर सकता है। इससे मधुमेह की समस्या से बचने में सहायता मिल सकती है (2)। साथ ही दलिया को लो ग्लाइसेमिक इंडेक्टस की श्रेणी में रखा गया है, जिस कारण इसे डायबिटीज के मरीजों के लिए अच्छा माना गया है (3) (4)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि दलिया खाने के स्वास्थ्य लाभ वालों को भी हो सकता है।
3. पाचन में मददगार
दलिया खाने के फायदे में बेहतर पाचन तंत्र भी शामिल है। यह दलिया में पाए जाने वाले फाइबर के कारण संभव है। फाइबर खाने को पचाने और पाचन क्रिया में सुधार करने का काम कर सकता है। साथ ही कब्ज को दूर करके पेट को साफ करता है, जिससे पाचन तंत्र बेहतर तरीके से काम करता है (5)।
4. स्वस्थ पेट के लिए
पेट को स्वस्थ रखने के लिए कई तरह के आहार और पेय पदार्थ का सेवन किया जा सकता है, उन्हीं में से एक दलिया भी है। दलिया में फाइबर की अच्छी मात्रा पाई जाती है (6), जो पेट को साफ करने का काम करता है। इससे कि पेट की विभिन्न तरह की समस्याएं दूर हो सकती हैं (7)। इसलिए, दलिया के फायदे पेट के लिए माने जा सकते हैं।
5. कब्ज के लिए
कब्ज की समस्या से निपटने के लिए फाइबर युक्त आहार का सेवन करना चाहिए। इसमें दलिया मदद कर सकता है, क्योंकि दलिया में फाइबर की अच्छी मात्रा पाई जाती है, जो मल को एक साथ शरीर से बाहर निकालने में मदद कर सकता है। इससे कब्ज की समस्या से कुछ राहत मिल सकती है (8)।
6. वजन को कम करने के लिए
दलिया खाने के स्वास्थ्य लाभ में वजन घटाना भी शामिल है। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की ओर से प्रकाशित एक मेडिकल रिसर्च के अनुसार, फाइबर वजन को घटाने का काम कर सकता है। दरअसल, फाइबर शरीर में ऊर्जा को बनाए रखने में मदद कर सकता है, जिससे लंबे समय तक भूख को शांत रखा जा सकता है (9)। वही, दलिया फाइबर का अच्छा स्रोत होता है (10)। इसलिए, ऐसा माना जा सकता है कि वजन घटाने के लिए दलिया फायदेमंद हो सकता है।
इस लेख के आगे भाग में दलिया में मौजूद पौष्टिक तत्व के बारे में जानेंगे।
दलिया के पौष्टिक तत्व – Bulgur Wheat Nutritional Value in Hindi
दलिया में पाए जाने वाले पोषक तत्व के कारण ही यह स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। इन पोषक तत्वों को नीचे चार्ट के जरिए विस्तार से बताया जा रहा है (10)।
पोषक तत्व मात्रा प्रति 100 g पानी 77.76 g ऊर्जा 83 kcal प्रोटीन 3.08 g टोटल लिपिड (फैट) 0.24 g कार्बोहाइड्रेट 18.58 g फाइबर 4.5 g शुगर, टोटल 0.1 g मिनरल्स कैल्शियम ,Ca 10 gm आयरन ,Fe 0.96 mg मैग्नीशियम , Mg  32 mg फास्फोरस ,P 40 mg पोटैशियम ,K 68 mg सोडियम ,Na 5 mg जिंक ,Zn 0.57 mg विटामिन्स विटामिन सी , टोटल एस्कॉर्बिक एसिड 0 mg थाइमिन 0.057 mg राइबोफ्लेविन 0.028 mg नियासिन 1 mg विटामिन बी -6 0.083 mg फोलेट DFE 18 µg विटामिन ई (अल्फा-टोकोफ़ेरॉल) 0.01 mg लिपिड फैटी एसिड, टोटल सैचुरेटेड 0.042 g फैटी एसिड, टोटल मोनोसैचुरेटेड 0.031 g फैटी एसिड, टोटल पॉलीअनसैचुरेटेड 0.098 g
लेख के अगले हिस्से में बताया जा रहा है कि दलिया का उपयोग कैसे किया जाए।
दलिया का उपयोग – How to Use Bulgur Wheat in Hindi
दलिया से कोई एक नहीं, बल्कि कई प्रकार के व्यंजन बनाए जा सकते हैं। ये स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहतंद के लिए भी फायदेमंद है।
कैसे खाएं:
दलिया को फलाफल बनाकर खाया जा सकता है।
दलिया को कई ड्राई फ्रूट और बीन्स में मिलाकर सलाद की तरह खाया जा सकता है।
दलिया को सूप में मिलाकर लिया जा सकता है।
कई आहार में इसे ऊपर से गार्निश करके खाया जा सकता है।
दलिया में दूध और शक्कर डालकर भी खाया जा सकता है।
कब खाएं:
इसे सुबह ड्राई फ्रूट और बिन्स के साथ पका कर खाया जा सकता है।
शाम को दलिया को सूप में मिलकर लिया जा सकता है।
दोपहर या रात के आहार में इसे गार्निश करके खाया जा सकता है।
कितना खाएं :
प्रतिदिन 85 से 226 ग्राम दलिया का सेवन किया जा सकता है (11)। फिर भी इसका सेवन से पहले आहार विशेषज्ञ से इसकी उचित मात्रा के बारे में पूछा जा सकता है।
आइए, अब दलिया खाने के नुकसान के बारे में जान लेते हैं।
दलिया के नुकसान – Side Effects of Bulgur Wheat in Hindi
जिस तरह दलिया खाने के फायदे हो सकते हैं, उसी तरह इसके सेवन से कुछ दुष्प्रभाव होने की आशंका भी रहती है, जो इस प्रकार है:
दलिया के अधिक मात्रा में सेवन करने पर पेट में गैस, पेट फूलना और पेट में ऐंठन जैसी समस्या हो सकती है, क्योंकि इसमें कुछ मात्रा फाइबर की पाई जाती है (10) (12)।
अब आप यह तो बखूबी जान गए होंगे कि दलिया क्या है। इसके सेवन से शरीर को विभिन्न तरह के लाभ मिल सकते हैं। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि दलिया इन लेख में बताई गई समस्याओं को पूरी तरह ठीक नहीं कर सकता है। यह सिर्फ कुछ लक्षणों को कम करने में ही मदद करता है। इसलिए, उचित इलाज के लिए डॉक्टरी परामर्श जरूरी है। हां, यह भी संभव है कि अगर दलिया का सेवन नियमित रूप से किया जाए, तो ये बीमारियां हो ही न। साथ ही इसके नुकसान और उपयोग के बारे में भी लेख में ऊपर बताया गया है। फिर भी आपके मन में किसी तरह का कोई सवाल है, तो आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स की मदद से उसे हम तक पहुंचा सकते हैं। हम जल्द से जल्द जवाब देने का प्रयास करेंगे।
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कासनी के फायदे, उपयोग और नुकसान – Chicory Benefits and Side Effects in Hindi
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कासनी के फायदे, उपयोग और नुकसान – Chicory Benefits and Side Effects in Hindi
कासनी के फायदे, उपयोग और नुकसान – Chicory Benefits and Side Effects in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 November 28, 2019
सदियों से शारीरिक समसओं को दूर करने के लिए विभिन्न जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। खासकर, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में इनकी अहम भूमिका होती है। इसी क्रम में हम आपको ऐसी ही एक जड़ी-बूटी ‘कासनी’ के बारे में बताने जा रहे हैं। माना जाता है कि सामान्य-सा दिखने वाला कासनी का पौधा विभिन्न बीमारियों से बचाव का काम कर सकता है। वहीं, बीमारी की अवस्था में उससे उबरने में मदद कर सकता है और मेडिकल ट्रीटमेंट व दवा के प्रभाव को बढ़ा सकता है। स्टाइलक्रेज के इस लेख में जानते हैं कि कासनी क्या है और कासनी के फायदे क्या-क्या हो सकते हैं। इसके अलावा, आपको इससे होने वाले नुकसानों से भी अवगत कराया जाएगा।
चलिए, लेख की शुरुआत कासनी के परिचय के साथ करते हैं।
विषय सूची
कासनी क्या है? – What is Chicory in Hindi
कासनी एक खास प्रकार की जड़ी-बूटी है, जिसमें कई औषधीय गुण होते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम सिकोरियम इंटीबस (Cichorium Intybus) है और यह डैंडेलियन परिवार से संबंध रखती है। इसका फूल सफेद-नीले रंग का होता है। कासनी (चिकोरी) के पौधे लगभग एक से दो मीटर तक ऊंचे होते हैं। नीचे जानिए कि शरीर के लिए यह औषधीय जड़ी-बूटी किस प्रकार लाभदायक हो सकती है।
उससे पहले जानते हैं कि कासनी सेहत के लिए क्यों अच्छी है।
कासनी आपकी सेहत के लिए क्यों अच्छी होती है?
स्वास्थ्य के लिए कासनी को वरदान माना जा सकता है, कारण है इसमें मौजूद विभिन्न औषधीय गुण। माना जाता है कि यह कई शारीरिक समस्याओं पर प्रभावी असर दिखा सकती है, जिसमें हृदय रोग, कैंसर, गठिया, कब्ज और लीवर-किडनी से जुड़ी समस्या शामिल हैं। इनके अलावा भी यह कई तरह से शरीर को फायदा पहुंचाने का काम कर सकती है, जिसकी जानकारी नीचे दी जाएगी (1)।
आगे कासनी से होने वाले फायदे के बारे में जानेंगे।
कासनी के फायदे – Benefits of Chicory in Hindi
कासनी आपकी सेहत को कई लाभ पहुंचाने का काम कर सकता है, जिसके बारे हम नीचे बता रहे हैं।
1. तनाव और चिंता से राहत
तनाव और चिंता में कासनी का सेवन फायदेमंद साबित हो सकता है। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध के अनुसार, एंटीऑक्सीडेंट गुण मानसिक विकारों से निजात दिलाने में मदद कर सकता है, जिसमें चिंता, तनाव और डिप्रेशन शामिल हैं (2)। एनसीबीआई में प्रकाशित दूसरे शोध के अनुसार, कासनी में एंटीऑक्सीडेंट की अच्छी मात्रा पाई जाती है (3)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि कासनी के फायदे तनाव और चिंता से राहत दिलाने का काम कर सकते हैं।
2. पाचन में फायदेमंद
पाचन तंत्र संबंधी समस्याओं से राहत दिलाने में कासनी की अहम भूमिका हो सकती है। चिकोरी में इनुलिन (Inulin -डाइटरी फाइबर) की अच्छी मात्रा पाई जाती है, जो एसिड रिफ्लक्स (पाचन संबंधी रोग) के साथ-साथ आंतों और पाचन संबंधी कई समस्याओं से निपटने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, यह अपच और हार्टबर्न से भी राहत दिला सकता है (1)।
3. हृदय स्वास्थ्य के लिए
हृदय स्वास्थ्य के लिए भी कासनी को उपयोगी माना जा सकता है। यह एंटीऑक्सीडेंट गुणों से समृद्ध होती है और इससे बनने वाली कॉफी का सेवन शरीर में रक्त और प्लाज्मा के संतुलन में सुधार करने का काम कर सकता है, जिससे हृदय रोग का खतरा बहुत हद तक कम हो सकता है। इसके अलावा, इसमें इनुलिन भी पाया जाता है, जो शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले कोलेस्ट्र��ल के स्तर को कम करने का काम कर सकता है, जिससे दिल का दौरा पड़ने की आशंका कम हो जाती है (1)। वहीं, अगर किसी को दिल से जुड़ी कोई बीमारी है, तो वह डॉक्टर से चेकअप जरूर करवाए और डॉक्टर के निर्देश पर इस घरेलू नुस्खे के साथ-साथ दवा भी ले।
4. लीवर स्वास्थ्य के लिए
लीवर को स्वस्थ रखने में भी कासनी मुख्य भूमिका निभा सकती है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध के अनुसार, कासनी में हेपटोप्रोटेक्टीव (Hepatoprotective) गुण पाए जाते हैं, जो लीवर को सुरक्षित रखने का काम कर सकते हैं (4)।
5. गठिया के लिए
कासनी चूर्ण को गठिया के इलाज में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो ऑस्टियोअर्थराइटिस के दर्द को कम करने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, कासनी मांसपेशियों में दर्द और जोड़ों के दर्द से भी कुछ राहत दिला सकती है (1)।
6. वजन घटाने में मददगार
कासनी के फायदे शरीर के वजन को कम करने के लिए भी देखे जा सकते हैं। कासनी में फाइबर की अच्छी मात्रा पाई जाती है। फाइबर शरीर में ऊर्जा को बनाए रखने के साथ-साथ लंबे समय तक भूख को नियंत्रित रखने का काम कर सकता है। साथ ही अतिरिक्त खाने की आदत पर रोक लग सकती है, फलस्वरूप वजन को नियंत्रित रखने में मदद मिल सकती है (1)।
7. कैंसर के लिए
कासनी ब्रेस्ट और कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव का काम भी कर सकती है। साथ ही कैंसर के लक्षणों पर भी प्रभावी असर दिखा सकती है। इसके लिए चिकोरी में पाए जाने वाले पॉलीफेनॉल्स और फोटोकैमिकल्स गुण सहायक हो सकते हैं। साथ ही इसकी जड़ में भी एंटी-कैंसर गुण पाए जाते हैं (1)। अगर कोई कैंसर से पीड़ित हो, तो उसे सिर्फ घरेलू नुस्खें पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उसे समय रहते उचित मेडिकल ट्रीटमेंट भी करवाना चाहिए।
8. कब्ज से छुटकारा
अगर कोई कब्ज की समस्या से जूझ रहा है, तो उनके लिए कासनी किसी चमत्कार से कम नहीं है। कासनी में इनुलिन नामक तत्व पाया जाता है, जो फाइबर की तरह काम करता है। फाइबर पाचन में सुधार करने के साथ-साथ बाउल सिस्टम को बेहरत करने में मदद कर सकता है, जिससे कब्ज की समस्या से निजात पाया जा सकता है (1)।
9. किडनी की समस्या से राहत
कासनी की जड़ के अर्क को मूत्रवर्धक (Diuretic) की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे पेशाब की मात्रा बढ़ सकती है। पेशाब के जरिए किडनी में मौजूद विषाक्त पदार्थ बाहर हो सकते हैं, जिसका सकारात्मक प्रभाव किडनी स्वास्थ्य पर पड़ सकता है (1)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि कासनी के फायदे किडनी के लिए भी हो सकते हैं।
10. एक्जिमा और कैंडिडा
एक्जिमा त्वचा में सूजन से जुड़ी समस्या है और कैंडिडा त्वचा संबंधी फंगल संक्रमण है (5), (6)। इन दोनों स्थितियों में कासनी के फायदे देखे जा सकते हैं, क्योंकि कासनी एंटी इंफ्लेमेटरी गुण के साथ-साथ एंटी फंगल गुणों से समृद्ध होती है (3)।
लेख में आगे हम कासनी में मौजूद पौष्टिक तत्व के बारे में बता रहे हैं।
कासनी के पौष्टिक तत्व – Chicory Nutritional Value in Hindi
कासनी के पौधे में कई पोषक तत्व से पाए जाते हैं, जिन्हें हम एक चार्ट के माध्यम से जानेंगे (7)।
पोषक तत्व मात्रा प्रति 100 g पानी 92 g ऊर्जा 23 kcal प्रोटीन 1.7 g टोटल लिपिड (फैट) 0.3 g कार्बोहाइड्रेट 4.7 g फाइबर 4 g शुगर, टोटल 0.7 g मिनरल कैल्शियम ,Ca 100 gm आयरन ,Fe 0.9 mg मैग्नीशियम , Mg 30 mg फास्फोरस ,P 47 mg पोटैशियम ,K 420 mg सोडियम ,Na 45 mg जिंक ,Zn 0.42 mg विटामिन विटामिन सी , टोटल एस्कॉर्बिक एसिड 24 mg थियामिन 0.06 mg राइबोफ्लेविन 0.1 mg नियासिन 0.5 mg विटामिन बी -6 0.105 mg फोलेट, DFE 110 µg विटामिन ए, RAE 286 µg विटामिन ई (अल्फा-टोकोफेरॉल) 2.26 mg लिपिड फैटी एसिड, टोटल सैचुरेटेड 0.073 g फैटी एसिड, टोटल मोनोअनसैचुरेटेड 0.006 g फैटी एसिड, टोटल पॉलीअनसैचुरेटेड 0.131 g
लेख के अगले भाग में कासनी खाने के तरीके के बारे में बताया गया है।
कासनी खाने के तरीके – How to Eat Chicory in Hindi
कासनी को डाइट में कई तरह से शामिल किया जा सकता है। इनमें से कुछ आम तरीकों के बारे में हम नीचे बता रहे हैं-
कैसे खाएं :
कासनी को चाय या कॉफी की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
कासनी के ताजे पत्ते को सलाद की तरह आहार में शामिल किया जा सकता है।
कासनी की पत्तियों को सब्जी बनाकर खा सकते हैं।
कासनी चूर्ण को पानी, दूध या शहद के साथ मिलाकर सेवन कर सकते हैं।
कब खाएं :
इससे बने पेय पदार्थ को सुबह या शाम किसी भी समय लिया जा सकता है।
इसकी पत्तियों की सब्जी या सलाद को दोपहर या रात के खाने के साथ ले सकते हैं।
कितना खाएं :
फिलहाल, यह बताना मुश्किल है कि प्रतिदिन इसकी कितनी मात्रा पर्याप्त होती है, क्योंकि इस संबंध में अभी कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इसलिए, इसकी उचित मात्रा जानने के लिए आप आहार विशेषज्ञ से संपर्क करें। वह आपके स्वास्थ्य के अनुसार इसकी प्रतिदिन की खुराक के बारे में बताएंगे।
आगे कासनी से होने वाले कुछ दुष्प्रभावों के बारे में बताया जा रहा है।
कासनी के नुकसान – Side Effects of Chicory in Hindi
कासनी के कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। नीचे जानिए इससे होने वाले नुकसानों के बारे में।
जिन लोगों को एलर्जी की अधिक शिकायत होती है, उन्हें कासनी के सेवन से एलर्जी हो सकती है (8)।
कासनी का अधिक मात्रा में सेवन करने से डाइजेस्टिव ट्रैक्ट में बाधा उत्पन्न हो सकती है (2)।
गर्भावस्था के दौरान व स्तनपानी कराने वाली महिलाओं को इसका सेवन न करने की सलाह दी जाती है।
अब आप यह तो समझ ही गए होंगे कि कासनी क्या है। साथ ही कासनी किस तरह विभिन्न शारीरिक समस्या���ं पर प्रभावी असर दिखा सकती है। इसके अलावा, कासनी से होने वाले नुकसानों के बारे में भी आपको बताया गया है, ताकि पहले से ही सजगता बरती जा सके। एक बार फिर से बता दें कि कासनी किसी भी समस्या का इलाज नहीं है, लेकिन यह समस्या को कम करने में सहायक भूमिका जरूर निभा सकती है। किसी भी बीमारी के इलाज के लिए डॉक्टरी उपचार को नजरअंदाज न करें। अगर इस लेख से जुड़ी कोई अन्य जानकारी आपको चाहिए, तो आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स के जरिए हमसे पूछ सकते हैं।
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लाल मिर्च के फायदे और नुकसान – Cayenne Pepper Benefits and Side Effects in Hindi
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लाल मिर्च के फायदे और नुकसान – Cayenne Pepper Benefits and Side Effects in Hindi
लाल मिर्च के फायदे और नुकसान – Cayenne Pepper Benefits and Side Effects in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 November 26, 2019
व्यंजनों का जायका बढ़ाने और इनमें इच्छानुसार तीखापन लाने के लिए लाल मिर्च की अहम भूमिका होती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि व्यंजनों की दुनिया से अलग लाल मिर्च का उपयोग औषधीय रूप से भी किया जा सकता है। स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम शरीर के लिए लाल मिर्च के फायदे के साथ-साथ लाल मिर्च का उपयोग भी बताएंगे। हालांकि, स्वास्थ्य के लिहाज से लाल मिर्च फायदेमंद है, लेकिन इसे लेख में बताई जा रहीं विभिन्न समस्याओं का पूर्ण इलाज समझना उचित नहीं होगा। हां, यह जरूरी है कि लाल मिर्च समस्या के प्रभाव को कुछ हद तक कम कर सकती है। इसके अलावा, लेख के अंत में हम लाल मिर्च से होने वाले कुछ दुष्प्रभावों से भी आपको अवगत कराएंगे।
सबसे पहले हम लाल मिर्च क्या है, इस बारे में बता रहे हैं।
विषय सूची
लाल मिर्च क्‍या है? – What is Cayenne Pepper (Lal Mirch) in Hindi
विश्व भर में विभिन्न प्रकार की मिर्च पाई जाती हैं, जिनमें से एक कैयेने पेपर (लाल मिर्च) भी है। यह मिर्च लगभग 10 से 25 सेमी लंबी और आमतौर पर पतली होती है। यह स्वाद में तीखी और तासीर गर्म होती है। लाल मिर्च का वैज्ञानिक नाम कैप्सिकम अन्नुम है और यह सोलेनेसी (Solanaceae) परिवार से संबंध रखती है (1)। लाल मिर्च कई तरह के पोषक तत्व से भरपूर होती है, जिसके बारे में लेख में आगे विस्तारपूर्वक बताया जाएगा।
ऊपर आपने जाना कि लाल मिर्च क्या है, अब आगे जानिए इससे होने वाले फायदों के बारे में।
लाल मिर्च के फायदे – Benefits of Cayenne Pepper in Hindi
लाल मिर्च को सही मात्रा में लिया जाए, तो यह कई शारीरिक लाभ पहुंचाने का काम कर सकती है, जो निम्न प्रकार से है :
1. चयापचय को बढ़ाने के लिए
मेटाबॉलिज्म एक अहम शारीरिक प्रक्रिया है, जो शरीर में भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने का काम करता है। इस प्रक्रिया को बढ़ावा देने में लाल मिर्च के फायदे देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि लाल मिर्च में मौजूद कैपेसिकिनोइड्स नामक तत्व मेटाबॉलिज्म प्रक्रिया को बढ़ाने का काम कर सकता है, लेकिन इस पर अभी और शोध की जरूरत है (2)।
2. पाचन में सुधार
लाल मिर्च के फायदे कमजोर पाचन क्रिया में सुधार करने के लिए भी हो सकते हैं (3)। दरअसल, लाल मिर्च में फाइबर की भरपूर मात्रा पाई जाती है, जो खाने को पचाने में सहायक माना जाता है। इसलिए, लाल मिर्च को पाचन के लिए उपयोगी माना जा सकता है (4) (5)।
3. रक्तचाप को कम करने के लिए
बढ़ते रक्तचाप से परेशान लोगों के लिए लाल मिर्च किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। यह बढ़ते रक्तचाप को नियंत्रित करने का काम कर सकती है। दरअसल, कैयेन में कैप्साइसिन (Capsaicin) नामक एक शक्तिशाली घटक पाया जाता है, जो उच्च रक्तचाप को कम करने में सहायक साबित हो सकता है (6)। वहीं, अगर उच्च रक्तचाप की समस्या गंभीर अवस्था में हो, तो बिना देरी किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
4. दर्द को कम करने के लिए
दर्द से पीड़ित लोगों के लिए लाल मिर्च उपयोगी साबित हो सकती है। जैसा कि हमने ऊपर बताया कि इसमें कैप्साइसिन (Capsaicin) नामक एक खास तत्व पाया जाता है, जो पीठ दर्द, जबड़े के दर्द और अन्य प्रकार के दर्द को कुछ हद तक कम कर सकता है (7)। अगर दर्द ज्यादा हो, तो डॉक्टर की सलाह पर दवा जरूर लेनी चाहिए। साथ ही लाल मिर्च को भी घरेलू नुस्खे की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
5. कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए
लाल मिर्च कई स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने का काम कर सकती है, जिनमें से एक कैंसर भी शामिल है। एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की ओर से प्रकाशित एक मेडिकल रिसर्च के अनुसार, लाल मिर्च में एंटीकैंसर गुण पाए जाते हैं, जो कैंसर के जोखिम से बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसमें मौजूद कैप्साइसिन फेफड़े के कैंसर के साथ-साथ गैस्ट्रिक कैंसर से बचाने में भी मदद कर सकता है। कैप्साइसिन कैंसर क��� कारण बनने वाली कोशिकाओं को पनपने से रोकने में मदद कर सकता है (8)। बेशक, लाल मिर्च कैंसर से सुरक्षित रखती है, लेकिन अगर किसी को कैंसर है, तो उसके लिए मेडिकल ट्रीटमेंट से बेहतर कुछ नहीं है।
6. हृदय को सुरक्षा प्रदान करने के लिए
तंदुरुस्त शरीर के लिए हृदय का स्वस्थ रहना जरूरी है। ऐसे में हृदय को स्वस्थ रखने के लिए लाल मिर्च का उपयोग लाभकारी हो सकता है। जैसा कि लेख में ऊपर बताया गया है कि लाल मिर्च में कैप्साइसिन नामक तत्व होता है। यह उच्च रक्तचाप को कम करने का काम कर सकता है और उच्च रक्तचाप को हृदय रोग होने के मुख्य कारणों में गिना जाता है (6) (9)। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि लाल मिर्च हृदय को स्वस्थ रखने में सहयोग दे सकती है, लेकिन इसमें अभी और शोध की आवश्यकता है ।
7. सोरायसिस में सुधार
सोरायसिस एक तरह की त्वचा संबंधित समस्या है, जिसमें त्वचा लाल और पपड़ीदार हो जाती है। इस समस्या से राहत पाने के लिए लाल मिर्च में मौजूद कैप्साइसिन सहायक हो सकता है। इसके लिए कैप्साइसिन युक्त क्रीम या लोशन का उपयोग किया जा सकता है (7)। अच्छा होगा इसके इलाज के लिए एक बार डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
8. जोड़ों के दर्द से राहत
जोड़ों का दर्द दूर करने वाली हर्बल दवाइयों में लाल मिर्च को भी शामिल किया जा सकता है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध के अनुसार लाल मिर्च का उपयोग ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis) के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द में राहत पाने में किया जा सकता है (10)। ऑस्टियोआर्थराइटिस ऐसी अवस्था है, जिसमें हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि छोटी-सी चोट के कारण भी फ्रैक्चर हो सकती हैं। फिलहाल, इस संबंध में और वैज्ञानिक अध्ययन किए जाने की जरूरत है।
ऊपर आपने लाल मिर्च के फायदे पढ़े, आगे इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व के बारे में जानिए।
लाल मिर्च के पौष्टिक तत्व – Cayenne Pepper Nutritional Value in Hindi
लाल मिर्च के पोषक तत्वों को एक चार्ट के जरिए जानेंगे (4)।
पोषक  तत्व मात्रा  प्रति 1 चम्मच पानी 0.145 g ऊर्जा 5.72 kcal प्रोटीन 0.216 g टोटल लिपिड (फैट) 0.311 g कार्बोहाइड्रेट 1.02 g फाइबर 0.49 g शुगर, टोटल 0.186 g मिनरल कैल्शियम, Ca 2.66 gm आयरन, Fe 0.14 mg मैग्नीशियम, Mg  2.74 mg फास्फोरस, P 5.27 mg पोटैशियम, K 36.3 mg सोडियम, Na 0.54 mg जिंक, Zn 0.045 mg विटामिन विटामिन सी , टोटल एस्कॉर्बिक एसिड 1.38 mg थियामिन 0.006 mg राइबोफ्लेविन 0.017 mg नियासिन 0.157 mg विटामिन बी -6 0.044 mg फोलेट, DFE 1.91 µg विटामिन  ए, RAE 37.5 µg विटामिन ई (अल्फा-टोकोफेरॉल) 0.537 mg लिपिड फैटी एसिड, टोटल सैचुरेटेड 0.059 g फैटी एसिड, टोटल मोनोअनसैचुरेटेड 0.049 g फैटी एसिड, टोटल पॉलीअनसैचुरेटेड 0.151 g
ऊपर आपने लाल मिर्च में मौजूद पोषक तत्वों के बारे में जाना, आगे जानिए इसका उपयोग कैसे किया जा सकता है।
लाल मिर्च का उपयोग – How to Use Cayenne Pepper (Lal Mirch) in Hindi
नीचे जानिए लाल मिर्च को आहार में शामिल करने के विभिन्न तरीके।
कैसे खाएं:
सब्जी बनाने में लाल मिर्च का उपयोग किया जा सकता है।
सलाद में इसकी चुटकी भर मात्रा का छिड़काव किया जा सकता है।
इसे सिरका के साथ मिलाया जा सकता है।
विभिन्न प्रकार के अचार बनाने में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
कब खाएं:
जब भी आप भोजन का निर्माण करें, स्वादानुसार इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
दोपहर या शाम के वक्त सलाद खाते समय ऊपर इसे चुटकी भर डाल सकते हैं।
कितना खाएं:
इच्छानुसार तीखेपन के लिए इसकी मात्रा का चयन किया जा सकता है। हालांकि, एक व्यक्ति के लिए बनाए जाने वाले भोजन (एक वक्त) में इसकी दो-तीन चुटकी मात्रा काफी है। सटीक मात्रा के लिए आप आहार विशेषज्ञ से पूछ सकते हैं। ध्यान रहे, इसका अधिक मात्रा में सेवन विभिन्न प्रकार के दुष्प्रभावों का कारण बन सकता है, जिसके बारे में लेख में आगे विस्तार से बताया गया है।
आइए, अब लाल मिर्च खाने के नुकसान के बारे में जान लेते हैं।
लाल मिर्च के नुकसान – Side Effects of Cayenne Pepper in Hindi
नीचे जानिए लाल मिर्च से होने वाले नुकसानों के बारे में –
लाल मिर्च खाने से पेट खराब, दस्त और मल त्याग करते समय जलन हो सकती है (11)।
इसके इस्तेमाल से गैस्ट्रिक की समस्या हो सकती है और यह अल्सर को जटील बना सकता है (1)।
इसका उपयोग करने से एलर्जी और जलन होने का जोखिम बढ़ सकता है (1)।
अगर कोई खूना को पतला करने के लिए वार्फरिन जैसी दवा का सेवन कर रहा है, तो लाल मिर्च का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। जैसा कि लेख में बताया गया है कि लाल मिर्च में कैप्साइसिन पाया जाता है, जो वार्फरिन जैसी दवा के साथ रिएक्शन करके खून को और पतला कर सकता है (12)।
इस लेख से यह तो स्पष्ट हो गया है कि लाल मिर्च का उपयोग करने से कई शारीरिक समस्याओं से बचा जा सकता है। साथ ही इसे उपयोग करते समय उचित मात्रा का ध्यान रखना भी जरूरी है। इसलिए, अगर कोई खाने में तीखेपन का शौकीन है, तो उसे समय रहते अपनी इसी आदत को बदल लेना चाहिए। वहीं, अगर कोई गंभीर रूप से बीमार है, तो वो सिर्फ लाल मिर्च के भरोसे न रहे, उसे जल्द से जल्द से डॉक्टर से इलाज करवाना चाहिए। हम उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। साथ ही अगर आप लाल मिर्च के संबंध में और कुछ पूछना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स के जरिए अपनी बात हम तक पहुंचा सकते हैं।
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Bhupendra Verma
भूपेंद्र वर्मा ने सेंट थॉमस कॉलेज से बीजेएमसी और एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी से एमजेएमसी किया है। भूपेंद्र को लेखक के तौर पर फ्रीलांसिंग में काम करते 2 साल हो गए हैं। इनकी लिखी हुई कविताएं, गाने और रैप हर किसी को पसंद आते हैं। यह अपने लेखन और रैप करने के अनोखे स्टाइल की वजह से जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्टोरी और डायलॉग्स भी लिखे हैं। इन्हें संगीत सुनना, फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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अनार के बीज के तेल के फायदे और नुकसान – Pomegranate Seed Oil Benefits and Side Effects in Hindi
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अनार के बीज के तेल के फायदे और नुकसान – Pomegranate Seed Oil Benefits and Side Effects in Hindi
अनार के बीज के तेल के फायदे और नुकसान – Pomegranate Seed Oil Benefits and Side Effects in Hindi Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 November 25, 2019
अनार की गिनती चुनिंदा स्वादिष्ट और गुणकारी फलों में की जाती है। इसका सेवन ज्यादातर इसके दानों को सीधे खाकर या जूस के रूप में किया जाता है। इसे खाने के कई स्वास्थ्य लाभ हैं, लेकिन इसके बीज भी गुणों के मामले में कम नहीं हैं। माना जाता है कि अनार के बीज का तेल कई शारीरिक परेशानियों पर प्रभावी असर दिखा सकता है। स्टाइलक्रेज के इस लेख में जानिए अनार के बीज के तेल के फायदे और साथ ही जानिए कि अनार के बीज के तेल का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है। अनार के बीज का तेल आपको स्वस्थ रखने के साथ-साथ कुछ बीमारियों से उबरने में मदद भी कर सकता है, लेकिन इसे किसी बीमारी का इलाज नहीं माना जा सकता।
चलिए, अब अनार के बीज के तेल के फायदे के बारे में जानते हैं।
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अनार के बीज के तेल के फायदे – Benefits of Pomegranate Seed Oil in Hindi
अनार के बीज के तेल का इस्तेमाल कई तरह के शारीरिक लाभ पहुंचाने का काम कर सकता है। जो इस प्रकार से हो सकते हैं।
1. प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए
अनार के बीज से बने तेल का उपयोग करने से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत किया जा सकता है। दरअसल, एक वैज्ञानिक शोध में पाया गया है कि अनार के तेल में प्यूनिक एसिड पाया जाता है, जो इम्यून सिस्टम को बेहतर करने में मदद कर सकता है (1) (2)।
2. कोलेस्ट्रोल
अनार के बीज का तेल कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने का काम कर सकता है। दरअसल, अनार के बीज का तेल फाइटोकेमिकल्स से समृद्ध होता है। इसके सप्लीमेंट बढ़ते कोलेस्ट्रोल, खासकर एलडीएल (खराब कोलेस्ट्रोल) को बाधित कर कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने का काम कर सकते हैं (3)।
3. हृदय स्वास्थ्य के लिए
अनार के बीज के तेल का लाभ हृदय को स्वस्थ रखने में भी देखा जा सकता है। दरअसल, अनार के बीज के तेल का सेवन हृदय संबंधी रोगों से बचाव का काम कर सकता है। इस लाभ के पीछे इसमें मौजूद पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड को जिम्मेदार माना जा सकता है। फिलहाल, इस संबंध में अभी और शोध की आवश्यकता है (3)।
4. वजन घटाने के लिए
अगर कोई बढ़ते वजन को लेकर परेशान है, तो अनार के बीज का तेल वजन को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। दरअसल, अनार के बीज से निकले तेल में शरीर के फैट को कम करने (Body Fat Reducing) और लिपिड मेटाबॉलिज्म को सामान्य (Lipid Metabolism-Normalizing) करने जैसे गुण पाए जाते हैं, जो मोटापे की समस्या को कुछ हद तक कम कर सकते हैं (4)।
5. रक्तचाप कम करने के लिए
रक्तचाप के बढ़ने से कई शारीरिक समस्याओं का जन्म हो सकता है। बढ़ते रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए अनार के बीज के तेल का उपयोग किया जा सकता है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध के अनुसार, अनार के बीज के तेल में एंटी हाइपरटेंसिव प्रभाव (Antihypertensive Effects) पाए जाते हैं, जो उच्च रक्तचाप को कम करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं (5)। यहां हम स्पष्ट कर दें कि अनार के बीज का तेल रक्तचाप को कुछ हद तक कम जरूर कर सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह से ठीक नहीं कर सकता है। इसलिए, गंभीर अवस्था में डॉक्टरी इलाज जरूरी है।
6. बैक्टीरियल इन्फेक्शन के लिए
अनार के उत्पाद एंटीबैक्टीरियल और एंटी फंगल गुणों से समृद्ध होते हैं, जिसमें अनार के बीज का तेल भी शामिल है। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि अनार के बीज का तेल बैक्टीरियल संक्रमण पर प्रभावी असर दिखा सकता है (6)।
7. कैंसर के लिए
कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से बचाव में अनार के बीज का तेल सहायक भूमिका निभा सकता है। यहां भी इस तेल में मौजूद प्यूनिक एसिड अपना असर दिखा सकता है। इसी प्यूनिक एसिड में एंटीइंफ्लेमेटरी व एंटी कैंसर गुण पाए जाते हैं, जो कैंसर से बचाव में मदद कर सकते हैं (7)। वहीं, अगर किसी को कैंसर जैसी घातक बीमारी है, तो उसे बिना देरी किए डॉक्टर से इलाज जरूर करवाना चाहिए। साथ ही डॉक्टर की सलाह पर इस घरेलू नुस्खे को भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
8. मुंहासे कम करने के लिए
अनार के बीज के तेल का उपयोग मुंहासों की समस्या को दूर करने में किया जा सकता है। दरअसल, मुंहासे होने की एक वजह बैक्टीरिया भी होता है (8)। जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि अनार के बीज के तेल में एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं (6)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि बैक्टीरिया के कारण पनपने वाले मुंहासों को ठीक करने में यह खास तेल अहम भूमिका निभा सकता है।
9. त्वचा को मॉइस्चराइज करने के लिए
त्वचा को मॉइस्चराइज और टाइट करने में अनार के बीज का तेल कुछ हद तक असर दिखा सकता है। दरअसल, उम्र बढ़ने के साथ-साथ त्वचा अपनी नमी और लोच (Elasticity) खोने लगती है, परिणामस्वरूप, त्वचा रूखी और ढीली होने लगती है (9)। ऐसे में इस तेल की अहम भूमिका देखी जा सकती है, क्योंकि यह एंटी-एजिंग के रूप में काम कर सकता है (10)। हालांकि, यह दोनों स्थितियों में कितना कारगर होगा, इस पर सटीक वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
10. स्किन पिगमेंटेशन और फोटोएजिंग
सूरज की हानिकारक पराबैंगनी किरणों के कारण त्वचा प्रभावित हो सकती है। इससे फोटोएंजिग और हाइपरपिगमेंटेशन जैसी समस्या हो सकती है। ऐसे में अनार के बीज से निकले तेल के कुछ फायदे देखे जा सकते हैं, क्योंकि यह त्वचा की मरम्मत कर यूवी किरणों के प्रभाव को कम कर सकता है (11)। इसलिए, कहा जा सकता है कि अनार के फायदे स्किन पिगमेंटशन को बनाए रखने के साथ-साथ फोटोएजिंग के असर को कम कर सकता है।
चलिए, अब जानते हैं कि अनार के तेल को किस तरह उपयोग किया जा सकता है।
अनार के बीज के तेल का उपयोग – How to Use Pomegranate Seed Oil in Hindi
अनार के बीज के तेल को निम्नलिखित रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है –
अनार के बीज से निकले तेल को भोजन तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
मुंहासों जैसी समस्या के लिए अनार के बीज के तेल को त्वचा पर लगाया जा सकता है।
अनार के तेल को बालों में भी लगाया जा सकता है।
आगे अनार के बीज के तेल से होने वाले नुकसान के बारे में पढ़ेंगे।
अनार के बीज के तेल के नुकसान – Side Effects of Pomegranate Seed Oil in Hindi
अनार के बीज का तेल जिस तरह आपके लिए फायदेमंद हो सकता है, वैसे ही इससे कुछ नुकसान भी हो सकते हैं, जैसे –
जैसा कि हमने बताया इसमें एंटी हाइपरटेंसिव गुण पाया जाता है, जो उच्च रक्तचाप को कम करने का काम करता है (5)। ऐसे में जिन लोगों को निम्न रक्तचाप की समस्या है, उन्हें इसके सेवन से बचना चाहिए।
कुछ लोगों की त्वचा संवेदनशील होती है। ऐसे लोगोंं को अनार के बीज के तेल से एलर्जी हो सकती है।
इस तेल का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट संबंधी समस्या उत्पन्न हो सकती है, जिसमें उलटी, दस्त और पचान तंत्र की समस्या शामिल है। फिलहाल, इस तथ्य की पुष्टि के लिए सटीक वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।
अनार के बीज के तेल से इतने फायदे जानकर आप जरूर हैरान हो गए होंगे, लेकिन यह तेल वास्तव में कारगर है। फिर भी इस तेल को इस्तेमाल में लाने से पहले इस लेख को अच्छे से पढ़ लें और साथ ही इसके इस्तेमाल संबंधी जानकारी के लिए डॉक्टर से भी सलाह लें। इसके अलावा, बाजार से अनार के बीज का तेल लेते समय सावधानी बरतें, क्योंकि यह नकली भी हो सकता है। उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। इस तेल से संबंधित कोई सवाल या सुझाव हो, तो आप कमेंट बॉक्स के माध्यम से हमसे पूछ सकते हैं।
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भूपेंद्र वर्मा ने सेंट थॉमस कॉलेज से बीजेएमसी और एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी से एमजेएमसी किया है। भूपेंद्र को लेखक के तौर पर फ्रीलांसिंग में काम करते 2 साल हो गए हैं। इनकी लिखी हुई कविताएं, गाने और रैप हर किसी को पसंद आते हैं। यह अपने लेखन और रैप करने के अनोखे स्टाइल की वजह से जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्टोरी और डायलॉग्स भी लिखे हैं। इन्हें संगीत सुनना, फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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डिप्थीरिया क्या है? – What is Diphtheria in Hindi
डिप्थीरिया एक तरह का बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, जो कोरयनेबैक्टीरियम डिफ्तर्रिया (Corynebacterium Diphtheriae) नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है। यह मुख्य रूप से नाक और गले की श्लेष्मा झिल्ली (Mucous Membrane) को प्रभावित करता है। यह बैक्टीरिया एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैल सकता है (1), (2)। इसके फैलने के और भी कई कारण हैं, जिनके बारे में नीचे आपको बताया जाएगा। बात करें उपचार की, तो अगर सही से डॉक्टरी इलाज कराया जाए, तो इस समस्या से निजात पाया जा सकता है। साथ ही लेख में बताए जा रहे घरेलू नुस्खे भी इस समस्या से निपटने में मदद कर सकते हैं।
डिप्थीरिया के कारण जानने के लिए लेख को पढ़ते रहें।
डिप्थीरिया के कारण – Causes of Diphtheria in Hindi
जैसा कि ऊपर बताया गया है डिप्थीरिया ‘कोरयनेबैक्टीरियम डिफ्तर्रिया’ नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह बैक्टीरिया निम्नलिखित कारणों से फैल सकता है – (1), (2)।
संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर।
संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने पर।
स्वच्छता की कमी के कारण।
समय पर टीका न लगाने पर।
भीड़ वाली जगह पर जाने से।
ऐसी वस्तु को छूने पर, जिसमें यह बैक्टीरिया हो।
डिप्थीरिया के लक्षण के बारे में जानने के लिए लेख को पढ़ते रहें।
डिप्थीरिया के लक्षण – Symptoms of Diphtheria in Hindi
डिप्थीरिया होने पर इसके सामान्य लक्षण आपको दिखाई देने लग सकते हैं। उन्हें हम नीचे कुछ बिंदुओं के माध्यम से बता रहे हैं (2)।
बुखार और ठंड महसूस होना
गले में खराश या गला बैठना
निगलने में तकलीफ
खांसी
मुंह से लार निकलना
त्वचा का रंग नीला पड़ना
नाक से खून या पानी निकलना
सांस लेने में तकलीफ
त्वचा में घाव
डिप्थीरिया के लिए घरेलू उपाय जानने के लिए लेख को पढ़ते रहें।
डिप्थीरिया के लिए घरेलू उपाय – Home Remedies for Diphtheria in Hindi
कुछ घरेलू उपाय का सहारा लेकर डिप्थीरिया की समस्या से बचा जा सकता है। यहां हम स्पष्ट कर दें कि ये घरेलू उपचार बीमारी से उबरने में मदद तो कर सकते हैं, लेकिन किसी भी मेडिकल उपचार का विकल्प साबित नहीं हो सकते।
1. शहद और नींबू
सामग्री:
एक चम्मच शहद
एक चम्मच नींबू का रस
एक गिलास पानी
उपयोग की विधि:
सबसे पहले पानी को हल्का गर्म करें।
इसमें नींबू के रस और शहद को मिलाएं।
फिर इस मिश्रण को पी लें।
इसे दिन में 1 से 2 बार तक पिया जा सकता है।
कैसे है फायदेमंद:
डिप्थीरिया के लिए घरेलू उपाय शहद और नींबू कारगर भूमिका निभा सकते हैं। जैसा कि हमने बताया कि डिप्थीरिया होने का मुख्य कारण बैक्टीरियल इन्फेक्शन होता है। वहीं, शहद और नींबू में एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो इस समस्या को दूर करने में सहायता पहुंचा सकते हैं (3) (4)।
2. तुलसी
सामग्री:
कुछ तुलसी के पत्ते
एक गिलास पानी
उपयोग की विधि:
पानी में तुलसी के पत्तों को डालें।
फिर इसे हल्का गर्म कर लें।
उसके बाद पानी को छान कर पी लें।
जब तक डिप्थीरिया से छुटकारा न मिले, तब तक दिन में एक से दो बार इसे पीने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
कैसे है फायदेमंद:
तुलसी विभिन्न प्रकार के हर्बल गुणों से भरपूर होती है, जो शरीर को कई प्रकार के लाभ पहुंचाने का काम कर सकती है। इन लाभों में डिप्थीरिया को भी शामिल किया जा सकता है। जैसा  कि आप जान ही चुके हैं कि इस समस्या की अहम वजह बैक्टीरियल इन्फेक्शन होता है। वहीं, तुलसी एंटी बैक्टीरियल गुणों से समृद्ध होती है। इसलिए, ऐसा माना जा सकता है कि डिप्थीरिया के उपचार में तुलसी मदद कर सकती है (5)। फिलहाल, इस संबंध में अभी और वैज्ञानिक शोध किया जाना बाकी है।
3. नमक
सामग्री:
एक छोटा चम्मच नमक
एक गिलास पानी
उपयोग की विधि:
सबसे पहले पानी को हल्का गर्म कर लें।
फिर उसमें नमक मिलाकर अच्छे से घोल लें।
अब इस मिश्रण से गरारे कर लें।
कैसे है फायदेमंद:
गले से संबंधित आम समस्याओं के लिए नमक वाले गर्म पानी से गरारे करने की सलाह दी जाती है। वैसे ही डिप्थीरिया के स्थिति में भी नमक वाले पानी का उपयोग किया जा सकता है। जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कि डिप्थीरिया के लिए बैक्टीरिया जिम्मेदार होते हैं। वहीं, नमक एंटीमाइक्रोबियल गुणों से समृद्ध होता है, जो बैक्टीरिया को कम करने का काम कर सकता है (6)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि नमक से डिप्थीरिया का इलाज किया जा सकता है।
4. अदरक का जूस
सामग्री:
एक चम्मच कटा हुआ अदरक
नींबू के रस की कुछ बूंदें
आधा चम्मच शहद
उपयोग की विधि:
अदरक को अच्छी तरह से पीसकर इसका जूस निकाल लें।
फिर ऊपर से शहद और नींबू का रस डालें।
अब इस मिश्रण का एक चम्मच सेवन करें।
प्रतिदिन एक बार यह उपाय किया जा सकता है।
कैसे है फायदेमंद:
अदरक कई औषधि गुणों से भरपूर होता है। इनमें एंटी माइक्रोबियल और एंटी बैक्टीरियल गुण भी शामिल हैं। ये गुण बैक्टीरियल संक्रमण से बचाव व इलाज का काम कर सकते हैं, जिससे डिप्थीरिया में फायदा मिल सकता है। इसलिए, डिप्थीरिया से बचाव के लिए अदरक का जूस उपयोगी हो सकता है (7)।
5. हर्ब
सामग्री:
कुछ अरंडी की पत्तियां
कुछ सहजन की पत्तियां
2-3 लहसुन की कलियां
उपयोग की विधि:
ऊपर बताए गईं सभी सामग्रियों को साथ में पीसकर पेस्ट तैयार कर लें।
इस पेस्ट में आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर अच्छे से घोल लें।
अब पानी को छानकर गरारे के लिए इस्तेमाल करें।
कैसे है फायदेमंद:
इन सभी जड़ी-बूटियों को कई समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें से एक डिप्थीरिया भी हो सकता है। ऊपर बताई गईं तीनों जड़ी-बूटियां एंटी-बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होती हैं। ये तीनों सामग्रियां बैक्टीरियल इन्फेक्शन को दूर करने का काम कर सकती हैं (8) (9) (10)।
नोट: यहां बताए गए घरेलू उपायों में से कुछ सामग्रियां डिप्थीरिया जैसी अवस्था में कितनी कारगर हैं, इस संबंध में अभी और मेडिकल रिसर्च की जरूरत है। इसलिए, इन घरेलू नुस्खों को उपयोग करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
डिप्थीरिया का इलाज जानने के लिए लेख को पढ़ते रहें।
डिप्थीरिया का इलाज – Diphtheria Treatment in Hindi
डिप्थीरिया की गंभीर स्थिति से बचने के लिए इसका डॉक्टरी इलाज जरूरी है। नीचे जानिए एक डॉक्टर आपकी किस प्रकार मदद सकता है (2)।
एंटी-टॉक्सिन– डिप्थीरिया के इलाज के लिए डॉक्टर आपको एंटी-टॉक्सिन इंजेक्शन लगा सकता है। यह इंजेक्शन मांसपेशी (Muscle) या सीधे नस में दिया जा सकता है।
एंटीबायोटिक– उपचार को प्रभावी बनाने के लिए डॉक्टर एंटी-टॉक्सिन इंजेक्शन के बाद एंटीबायोटिक दवाइयां दे सकता है। इन दवाइयों में पेनिसिलिन (Penicillin) और एरिथ्रोमाइसिन (Erythromycin) शामिल हो सकती हैं।
डिप्थीरिया से बचाव के बारे में जानने के लिए लेख को पढ़ते रहें।
डिप्थीरिया से बचाव – Prevention Tips for Diphtheria in Hindi
प्रतिदिन अपने खान-पान और रहन-सहन में कुछ परिवर्तन कर इस समस्या से बचा जा सकता है, जिसे नीचे कुछ बिंदु के माध्यम से समझेंगे (2):
प्रतिरक्षा प्रणाली के बेहतर रहने से इस बीमारी से बचा जा सकता है। इसलिए, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए फल व सब्जियों का सेवन कर सकते हैं (11)।
समय पर टीकाकरण लगवाने से इस समस्या से बचा जा सकता है।
डिप्थीरिया से पीड़ित व्यक्ति से दूरी बनाकर रखें।
अपने आस-पास साफ सफाई रखें।
कुछ भी खाने-पीने से पहले हाथ जरूर धोएं।
अब आप समझ ही गए होंगे कि डिप्थीरिया क्या है। साथ ही इसके लक्षण और इसके फैलने के विभिन्न कारणों से भी आप परिचित हो गए होंगे। इस लेख में डिप्थीरिया के लिए कुछ घरेलू उपचार भी बताए गए हैं, जो इस समस्या से बचाए रखने में मदद कर सकते हैं। वहीं, अगर कोई डिप्थीरिया से ग्रस्त है, तो उसे सिर्फ घरेलू उपचार नहीं करना चाहिए। साथ में डॉक्टरी इलाज भी जरूरी है। इसके अलावा, लेख से जुड़े अन्य सवालों या सुझावों के लिए आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स की मदद ले सकते हैं।
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Bhupendra Verma
भूपेंद्र वर्मा ने सेंट थॉमस कॉलेज से बीजेएमसी और एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी से एमजेएमसी किया है। भूपेंद्र को लेखक के तौर पर फ्रीलांसिंग में काम करते 2 साल हो गए हैं। इनकी लिखी हुई कविताएं, गाने और रैप हर किसी को पसंद आते हैं। यह अपने लेखन और रैप करने के अनोखे स्टाइल की वजह से जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्टोरी और डायलॉग्स भी लिखे हैं। इन्हें संगीत सुनना, फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/diphtheria-ke-karan-lakshan-gharelu-upay-in-hindi/
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