Tumgik
7pintuverma · 5 years
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विचार लहर के, गुबार अहम के ,और उसमे किरण आशा के - blogwithpk
कभी कभी बादल सूर्य को ढक लेती है । कभी कभी चांद भी, इस अहम मे खुद को खोती है । इसलिए चांद दिन के नजारे से वंचित रहती है। सूरज आज भी अपने तपन को रोती है, जलन के मे दुःखी रहता हैं । फिर दिन रात का पहिया समय पर होता है , जीवन आंचल नित पग धरता है । सत्य यही पर जीवन जीता और मरता है । प्रेषक पिन्टु कुमार वर्मा
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